डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 14 मई 2023। भाजपा कर्नाटक में बुरी तरह से चुनाव हार गई है। इसके बावजूद भविष्य पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कर्नाटक में भाजपा की हार कई मायनों में जरूरी थी। यह भी पढ़ें : बड़ा राजनीतिक विश्लेषण: कर्नाटक विधान सभा चुनाव परिणाम का सबसे बड़ा संदेश, गांधी परिवार के लिए बजी खतरे की ‘जोर की घंटी’
इस हार से भाजपा को राजस्थान व खासकर अपने सत्ता वाले मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव व अगले वर्ष होने वाले लोक सभा चुनाव से पहले आत्मविश्लेषण या आत्मसमीक्षा करने का मौका मिलेगा और जो कमियां हैं, खासकर इस बात की कि पार्टी के क्षेत्रीय नेतृत्व जो अपनी ओर से अपने प्रदेश की जनता की नब्ज को नहीं पकड़ पा रहे हैं, और प्रधानमंत्री मोदी के ‘न खाऊंगा-न खाने दूंगा’ के सूत्र वाक्य के विपरीत उनकी छवि ऐसी बन रही है कि वह खुद तो अकेले-अकेले न केवल खा रहे हैं, बल्कि खाने का कोई मौका नहीं चूक रहे। यह भी पढ़ें : ‘द हल्द्वानी स्टोरी’ पर महिला आयोग ने लिया संज्ञान, धर्म-नाम छुपाकर लड़की से दुष्कर्म करने के आरोपित के मोबाइल में मिली कई लड़कियों के अश्लील वीडियो…
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लेकिन जनता क्या अपनी ही पार्टी के नेताओं को मुफ्त में हिंदुत्व व राष्ट्रवाद तथा प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर दौड़ा रहे हैं। आए डबल इंजन के नाम पर हैं लेकिन उनका अपना इंजन धुंवा दे रहा है। विकास कार्य हो नहीं रहे। जनता रोज खुद तो भ्रष्टाचार से दो-चार हो ही रही है,आरोप खुद राज्य नेतृत्व पर लग रहे हैं। केवल प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चल रहे हैं। उनकी कार्यशैली राज्य स्तर पर किसी भी तरह से कांग्रेस की कार्यशैली से अलग नहीं है। चुनाव में भी उन्हें केवल मोदी मैजिक पर भरोसा है। इसलिए मोदी-मोदी ही रटते रहते हैं। यह भी पढ़ें : युवकों एवं पुलिस कर्मी के बीच मारपीट, अवैध वसूली के आरोप भी, एसपी ने सोंपी जांच…
दूसरी ओर यह भी है कि करीब 24 वर्ष बाद 80 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस पार्टी का गैर गांधी केंद्रीय अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को हिमांचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में लगातार दूसरी जीत मिली है, जबकि इससे पहले गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस को करीब 30 हार मिली थीं। इसे भले अभी कांग्रेसजन न समझ रहे हों, देर सबेर यह बात उनकी समझ में आएगी और इसके साथ कांग्रेस गांधी नेतृत्व से दूर हो सकती है, जो भाजपा के लिए फौरी तौर पर लाभदायक हो सकता है। क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं है कि भाजपा का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा परोक्ष तौर पर गांधी परिवार मुक्त भारत का है। इस कारण ही भाजपा नेतृत्व ‘मां-बेटे’ को लगातार निशाने पर लेते रहे हैं। यह भी पढ़ें : अब गुलदार ने आंगनबाड़ी महिला कार्यकत्री को मार डाला…
लेकिन कांग्रेसजनों को यह समझ में आए, इससे पहले भी वह कर्नाटक की जीत का श्रेय जिस तरह राहुल गांधी को उनकी भारत जोड़ो यात्रा से जोड़ते हुए देने की कोशिश कर रहे हैं, उससे राहुल गांधी और गांधी परिवार की महत्वाकांक्षा का उछाल मारना तय है, और वह खुद को विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने की कोशिश कर सकते हैं। इससे नितीश कुमार व शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेताओं की विपक्षी एकता की कोशिशों को बट्टा लग सकता है। क्योंकि सबको मालूम है कि एक गौरवशाली अतीत के बावजूद कांग्रेस पार्टी का यह 50 वर्ष का युवराज न तो फुल टाइम पॉलिटिक्स करने का आदी है न देश की जमीनी राजनीति व संस्कारों से उस तरह वाकिफ है, जैसा प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी से उम्मीद की जाती है। ऐसे में जनता की नब्ज को गहराई से जानने वाले नितीश बाबू व शरद पवार की कोशिशें धरातल की जगह पटरी से उतर सकती हैं। यह भी पढ़ें : बड़ा समाचार: पूर्व भारतीय दृष्टिबाधित कप्तान ने नाबालिग लड़की को भगाकर बनाकर हवश का शिकार, पहले से था शादीशुदा भी
गौरतलब है कि भाजपा भी कांग्रेस की कर्नाटक में जीत पर किसी तरह की टीका-टिप्पणी करने से बच रही है। बल्कि प्रधानमंत्री मोदी सहित पार्टी के प्रमुख नेताओं ने कांग्रेस को कर्नाटक की जीत के लिए बधाई भी दी है। क्योंकि भाजपा खुद चाहती है कि कांग्रेस को इस जीत पर पूरा खुश होने दिया जाए। इस तथ्य को भी भुला दिया जाए कि कर्नाटक में पिछले करीब 4 दशकों से लगातार हर 5 वर्षों में सत्ता बदलती रहती है, और कांग्रेस की जीत भाजपा की हार इसलिए भी नहीं है, क्योंकि भाजपा ने कर्नाटक में अपने मतदाता खोये नहीं हैं, बल्कि उसे पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 8 लाख अधिक वोट मिले हैं। यह भी पढ़ें : तिहरे हत्याकांड में एक और शव मिला, चौथा शव भी महिला का, अनाथ हो गए हत्यारोपित के डेढ़ व तीन वर्षीय बच्चे
कांग्रेस की जीत केवल जनता दल सेक्युलर के घटे 5 प्रतिशत वोटों की वजह से हुई है। इन वोटों की वजह से ही कांग्रेस ने 136 में से 50 से अधिक सीटें 20 हजार से कम मतों के अंतर से जीती हैं। यह जरूर है कि जनता दल सेक्युलर के मुस्लिम वर्ग के मतदाताओं ने इस बार भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस को वोट दिए हैं, और वह हर राज्य में वहां की परिस्थितियों को देखते हुए भाजपा को हरा सकने वाली पार्टी को वोट देते हैं, और एक तरह से भाजपा भी मान कर चलती है कि उसे इस वर्ग के वोट नहीं मिलने वाले हैं। यह भी पढ़ें : बड़ा समाचार: उत्तराखंड में सरकारी भूमि से कब्जे हटाने के लिए एक सप्ताह के भीतर लागू होगी नई नीति: सीएस
यह भी है कि जिस तरह कांग्रेस अपने एजेंडे पर खुद ही अडिग नहीं है, कभी वह मुस्लिमों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बजरंग दल को बैन करने की बात करती है तो उसके अपने नेताओं को ही मंदिर खुद बनाने के वादे करने पड़ते हैं और चुनाव जीतने के बाद वह हनुमान चालीसा गाती नजर आती है, इससे साफ तौर पर मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के प्रति विश्वस्त नहीं हैं। वे कांग्रेस के साथ केवल तभी तक हैं, जब तक उन्हें लगता है कि वह भाजपा को हरा सकती है। यह अविश्वास कांग्रेस को पूरे देश में, खासकर मुस्लिम बहुल उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों में साफ तौर पर नजर आता है, जहां कांग्रेस चुनावों में जीत का खाता खोलने तक को तरसती नजर आ रही है। यह भी पढ़ें : नैनीताल: दुर्घटना में 18 वर्षीय युवक के सीने के आर-पार हुआ 5 सूत का सरिया
इधर, इस संबंध में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव तारिक अनवर ने कहा कि निश्चित रूप से खड़गेजी पार्टी के लिए भाग्यशाली रहे हैं। पार्टी प्रमुख चुने जाने के तुरंत बाद उन्होंने हिमाचल जीत लिया। चुनाव लड़ने के उनके बड़े अनुभन ने हिमाचल प्रदेश में काफी मदद की। इसी प्रकार उनके गृह राज्य कर्नाटक के हर हिस्से में उनकी गतिशीलता के बारे में सभी जानते हैं.। उनका सभी राज्य के नेताओं द्वारा सम्मान किया जाता है और इस प्रकार वह स्थानीय टीम को एकजुट रखने में सक्षम थे। इसी ने हमारी जीत में अहम भूमिका निभाई।
यह परिस्थितियां हैं जिनकी वजह से कहा जा सकता है कि कर्नाटक में हार भाजपा के लिए जरूरी थी और यह भविष्य के लिहाज से भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकती है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।