यहां नहीं हुआ पुणे जैसा अ‘न्याय: नाबालिग ने अपनी साथी 14 वर्षीय बच्ची का अश्लील वीडियो बनाया और साथियों में फैला दिया, छात्रा ने लोकलाज से कर ली थी आत्महत्या
नवीन समाचार, हरिद्धार, 23 मई 2024 (Minor boy did not got bail till Supreme Court)। पुणे में एक नाबालिग की दो लोगों की कार से उड़ाकर हत्या करने के मामले में जहां अदालत ने आरोपित को निबंध लिखने की सजा देकर छोड़ दिया, वहीं उत्तराखंड के एक नाबालिग लड़के को अपनी सहपाठी 14 वर्षीय छात्रा का अश्लील वीडियो बनाना और उसे प्रसारित करना भारी पड़ा है। निचली अदालत के बाद उच्च न्यायालय और अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी उसे जमानत देने से इनकार कर दिया है।
मामले के अनुसार एक 14 वर्षीय बच्ची पिछले साल 22 अक्टूबर को अपने आवास से लापता हो गई थी और बाद में उसका शव बरामद हुआ था। पता चला कि लड़की के साथ पढ़ने वाले एक नाबालिग लड़के ने नाबालिग छात्रा के अश्लील वीडियो शूट किए थे और इसे अपने अन्य साथी छात्रों के बीच प्रसारित कर दिया। ऐसे में अपनी बदनामी के डर से छात्रा ने अपनी जान ले ली।
मृतक बच्ची के पिता की शिकायत पर पुलिस ने आरोपित लड़के पर भारतीय दंड संहिता की धारा 305 और 509 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 13 और 14 के तहत मामला दर्ज किया। जबकि इस साल 10 जनवरी को किशोर न्याय बोर्ड हरिद्वार ने कानून का उल्लंघन करने वाले आरोपित नाबालिग की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
इसके बाद आरोपित की ओर से उत्तराखंड उच्च न्यायालय में जमानत याचिका लगायी गयी तो उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने 1 अप्रैल 2024 को किशोर को जमानत नहीं देने का आदेश दिया। ऐसे में लड़के ने अपनी मां के माध्यम से जमानत के लिए देश की शीर्ष अदालत का रुख किया। (Minor boy did not got bail till Supreme Court)
शीर्ष अदालत में आरोपित के अधिवक्त लोक पाल सिंह ने कहा कि आरोपित के माता-पिता उसकी देखभाल करने के लिए तैयार है। इसलिये बच्चे को सुधार गृह में नहीं रखा जाना चाहिए और उसकी हिरासत उसकी मां को दी जानी चाहिए। लेकिन न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की शीर्ष अदालत की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले की जांच की और कहा कि किशोर को जमानत देने से इनकार करना सही था। (Minor boy did not got bail till Supreme Court)
हर बच्चे के लिये हर अपराध जमानती होता है लेकिन… (Minor boy did not got bail till Supreme Court)
शीर्ष अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के लिए हर अपराध जमानती होता है और नाबालिग जमानत का हकदार है, भले ही अपराध को जमानती या गैर-जमानती के रूप में वर्गीकृत किया गया हो। लेकिन यदि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि ‘कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे’ की रिहाई से उसे किसी ज्ञात अपराधी की संगति में लाने, उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डालने की संभावना है।
अदालत के द्वारा जमानत से इनकार किया जा सकता है। अदालत ने सोशल इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वह एक अनुशासनहीन बच्चा है, जो बुरी संगत में पड़ गया है। उसे सख्त अनुशासन की जरूरत है। रिहा होने पर उसके साथ और भी अप्रिय घटनाएं हो सकती हैं। (Minor boy did not got bail till Supreme Court)
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