पर्यटन, हर्बल के बाद अब जैविक प्रदेश बनेगा उत्तराखंड
-प्रदेश के जैविक उत्पादों का बनेगा अपना राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ब्रांड
-उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड के प्रस्ताव को मुख्य मंत्री ने दी हरी झंडी
-राज्य में ही पहली बार लगने जा रही कलर सॉर्टिंग मशीनों से स्थानीय ख्याति प्राप्त उत्पाद राजमा, चौलाई, गहत, भट्ट आदि के जियोग्रेफिकल इंडेक्स बनेंगे
-इस हेतु रुद्रपुर में मंडी परिषद के द्वारा एक वर्ष के भीतर बनाया जाएगा 1500 टन क्षमता का कोल्ड स्टोर और तीन हजार टन क्षमता का गोदाम
नवीन जोशी, नैनीताल। देश में दालों की बढ़ती कीमतों के बीच यह खबर काफी सुकून देने वाली हो सकती है। अभी भी अपेक्षाकृत सस्ती मिल रहीं उत्तराखण्ड की जैविक दालें (मौंठ 50, भट्ट 70 तथा गहत और राजमा 120 रुपये प्रति किग्रा.) देश की महँगी दालों का विकल्प हो सकती हैं। पर्यटन और जड़ी-बूटी प्रदेश के रूप में प्रचारित उत्तराखंड एक नए स्वरूप में स्वयं को ढालने की राह पर चलने जा रहा है। यह राह है हर्बल प्रदेश बनने की, जिस पर अब तक पर्यटन और जड़ी-बूटी प्रदेश के रूप में प्रचारित किये जा रहे उत्तराखण्ड ने कदम बढ़ा दिए हैं। प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड, मंडी परिषद, उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद एवं कृषि एवं उद्यान आदि विभागों के संयुक्त तत्वावधान में प्रदेश को जैविक प्रदेश यानी जैविक उत्पादों का प्रदेश बनाने की कवायद शुरू कर दी है। इस कड़ी में राज्य के सभी पर्वतीय जिलों के 10 ब्लॉकों को जैविक ब्लॉक घोषित कर दिया गया है। रुद्रप्रयाग जिला जैविक जिले के रूप में विकसित किया जा रहा है, और आगे चमोली व पिथौरागढ़ को भी जैविक जनपद बनाने की तथा अगले चरण में सभी पर्वतीय जिलों को जैविक जिलों के रूप में विकसित किए जाने की योजना है। साथ ही प्रदेश के जैविक उत्पादों के लिए प्रदेश में ही बड़ी प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किए जाने को मुख्यमंत्री के स्तर से हरी झंडी मिल गई है। प्रस्तावित जैविक प्रदेश में जैविक खाद्यान्नों के साथ जैविक दालों के उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
आपने हिमांचल के सेब जैसे अलग-अलग राज्यों के अपने ब्रांड उत्पाद जरूर देखे होंगे, और मन में सवाल उठा होगा कि उत्तराखंड के अपने ब्रांड के कौन से उत्पाद हैं। इसका उत्तर अब तक ‘शून्य’ है, लेकिन शीघ्र ही देश ही वैश्विक स्तर पर देश में पहले से ही जैविक उत्पादों में प्रथम स्थान पर मौजूद उत्तराखंड के राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर के जैविक मुन्स्यारी, धारचूला और हरसिल आदि की अलग-अलग राजमा, ब्यांस घाटी की चौलाई और बेतालघाट-कोटाबाग की गहत, भट्ट की दालों जैसे उत्पाद नजर आने वाले हैं। उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड के इस बाबत एक ठोस प्रस्ताव को बीती देर रात्रि तक देहरादून के बीजापुर गेस्ट हाउस में आयोजित हुई बैठक में मुख्य मंत्री हरीश रावत ने दी हरी झंडी दे दी है। इस प्रस्ताव के तहत मंडी परिषद के द्वारा एक वर्ष के भीतर रुद्रपुर में कलर सॉर्टिंग-ग्रेडिंग मशीनें, प्रोसेसिंग यूनिट और 1500 टन क्षमता का कोल्ड स्टोर और तीन हजार टन क्षमता का विशालकाय गोदाम स्थापित होने जा रहा है, जिसके द्वारा प्रदेश के जैविक उत्पादों के अपने जियोग्रेफिकल इंडेक्स बनेंगे। वहीं ‘जस्ट ऑर्गेनिक’ व ‘अमीरा ग्रुप’ सहित दर्जन भर निर्यातक यहां के उत्पादों को सीधे किसानों से लेकर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराने का कार्य करेंगे।
देश के अन्य प्रांतों में रसायनिक खादों के प्रयोग की प्रतिस्पर्धा के बीच उत्तराखंड राज्य के जैविक उत्पादों की प्रसिद्धि देश भर में है। सर्वमान्य तथ्य है कि उत्तराखंड जैविक उत्पादों के मामले में देश में प्रथम स्थान पर है। हालांकि यह जरूर है कि यहां जैविक उत्पादों का उत्पादन क्षमता से कहीं कम हो रहा है। बावजूद यहां के जैविक उत्पाद देश ही नहीं दुनिया में पहुंच रहे हैं। इस कवायद में अब तक की कार्यप्रणाली यह है कि कई बड़े व्यापारी, निर्यातक यहां से उत्पाद लेकर गुजरात या दक्षिण भारतीय प्रदेशों में उपलब्ध सॉर्टिंग-ग्रेडिंग मशीनों युक्त प्रोसेसिंग यूनिटों में ले जाते हैं, और वहां यहां के उत्पादों को अपने ब्रांड के रूप में बेचते हैं। इस प्रक्रिया में उत्पादों की अधिक मूल्य हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण अपनी ‘जियोग्रेफिक इंडेक्स-जीआई’ यानी भौगोलिक पहचान खो जाती है, या अन्य उत्पादों से विलुप्त हो जाती है। यानी निर्यातक दावे के साथ नहीं कह पाते हैं कि अमुख उत्पाद उत्तराखंड का और जैविक उत्पाद ही है। निर्यातकों को कम मूल्य मिलने की वजह से किसानों को भीअपने उत्पादों का अपेक्षित मूल्य नहीं मिल पाता, और वे लगातार कृषि से विमुख होते जा रहे हैं। इस पूरी समस्या के समाधान के लिए उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड के अध्यक्ष डा. शैलेंद्र मोहन सिंघल के नेतृत्व में एक ठोस प्रस्ताव तैयार किया गया है। इस प्रस्ताव के तहत मंडी परिषद के द्वारा रुद्रपुर में वर्तमान में बन रही फूलों की मंडी के पास उपलब्ध विशाल भूखंड में 1500 टन क्षमता के कोल्ड स्टोर और तीन हजार टन क्षमता के गोदाम सहित पूरी प्रोसेसिंग यूनिट एक वर्ष के भीतर लगा दी जाएगी। बोर्ड के प्रबंध निदेशक धीराज गब्र्याल ने बताया कि इस प्रोसेसिंग यूनिट में प्रदेश के जैविक उत्पादों को कार्बन डाई ऑक्साइड और ओजोन से ऑर्गनिक तरीके से धोने तथा सॉर्टिंग मशीन से बीजों को अलग-अलग मानक (स्टेंडर्ड) आकारों में अलग-अलग करने तथा उनमें हसकिंग यानी छिलका निकालने, उनकी निर्वात में एवं सामान्य पैकेजिंग करने तथा जरूरी आठ से 10 डिग्री सेल्सियस के तापमान में लंबे समय तक रखने और उनमें किसी तरह के कीड़े न लगने आदि के प्रबंध किए जाएंगे। जिससे किसानों और निर्यातकों दोनों को इन उत्पादों के ऊंचे दाम मिल पाएंगे, और इस तरह से प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और प्रदेश जैविक उत्पादों का हब बन पाएगा। उन्होंने बताया कि करीब एक दर्जन निर्यातकों ने भी अपनी ओर से इस प्रस्ताव को बेहद आकर्षक माना है। योजना को आगे चलाने के लिए कंपनियों को पीपीटी मॉडल में दिया जाएगा। मंडी परिषद कंपनियों को यह कार्य आगे बढ़ाने के लिए शुरुआती आर्थिक मदद भी दे सकती है। चूंकि इस पूरे कार्य में प्रदेश सरकार को कोई धन खर्च नहीं करना है, इसलिए इसे सरकार एवं शासन की ओर से तत्काल मंजूरी भी मिल गई है।
पिथौरागढ़, चमोली, रुद्रप्रयाग बनेंगे पूर्ण जैविक जनपद
नैनीताल। उत्तराखंड का अपना जैविक ब्रांड बनाने के साथ दूसरी ओर पर्वतीय जनपदों को पूर्ण जैविक उत्पाद उगाने के लिए प्रेरित करने के प्रयास भी चल रहे हैं। इस कड़ी में पहले चरण में प्रदेश के चार ब्लॉकों, जनपद रुद्रप्रयाग के जखोली व ऊखीमठ, चमोली के देवाल और पिथौरागढ़ के मुन्स्यारी को मुख्यमंत्री हरीश रावत के द्वारा जैविक ब्लॉक घोषित किया गया। इसके बाद कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के जनपद रुद्रप्रयाग के तीसरे ब्लॉक अगत्यमुनि को भी शामिल कर इसे पूर्ण जैविक जनपद घोषित किया गया है, साथ ही उत्तरकाशी के डुंडा, टिहरी के प्रतापनगर, पौड़ी के जहरीखाल, नैनीताल के बेतालघाट व अल्मोड़ा के सल्ट को भी शामिल किया गया, जिसके साथ वर्तमान में राज्य के 10 ब्लॉकों में जैविक ब्लॉक के रूप में कृषि, उद्यान व अन्य संबंधित विभागों के द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने व रसायनिक खादों व दवाइयों की जगह जैविक खाद व दवाइयां किसानों को उपलब्ध कराई जा रही हैं। उत्तराखंड जैविक उत्पाद परिषद के तकनीकी प्रबंधक अमित श्रीवास्तव ने बताया कि आगे चमोली व पिथौरागढ़ जिले के सभी ब्लॉकों को योजना में शामिल कर इन जिलों को पूर्ण जैविक जनपद बनाने की योजना है।