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December 6, 2024

नाम सूखाताल, लेकिन नैनी झील को देती है वर्ष भर और सर्वाधिक 77 प्रतिशत पानी

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नवीन जोशी, नैनीताल। आईआईटीआर रुड़की के अल्टरनेट हाइड्रो इनर्जी सेंटर (एएचईसी) द्वारा वर्ष 1994 से 2001 के बीच किये गये अध्ययनों के आधार पर 2002 में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार नैनीताल झील में सर्वाधिक 53 प्रतिशत पानी सूखाताल झील से जमीन के भीतर से होकर तथा 24 प्रतिशत सतह पर बहते हुऐ (यानी कुल मिलाकर 77 प्रतिशत) नैनी झील में आता है। इसके अलावा 13 प्रतिशत पानी बारिश से एवं शेष 10 प्रतिशत नालों से होकर आता है। वहीं झील से पानी के बाहर जाने की बात की जाऐ तो झील से सर्वाधिक 56 फीसद पानी तल्लीताल डांठ को खोले जाने से बाहर निकलता है, 26 फीसद पानी पंपों की मदद से पेयजल आपूर्ति के लिये निकाला जाता है, 10 फीसद पानी झील के अंदर से बाहरी जल श्रोतों की ओर रिस जाता है, जबकि शेष आठ फीसद पानी सूर्य की गरमी से वाष्पीकृत होकर नष्ट होता है।

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Water Flowing in Nainital Skeetch-Indira Gandhi Institute Mumbai(1994-1995)

और जानें कहां से कितना आता और कहां कितना जाता है नैनी झील का पानी

Water Flowing in Nainital Skeetch-IIT Roorkee (2002)
Water Flowing in Nainital Skeetch-IIT Roorkee (2002)

वहीं इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंटल रिसर्च मुंबई द्वारा वर्ष 1994 से 1995 के बीच नैनी झील में आये कुल 4,636 हजार घन मीटर पानी में से सर्वाधिक 42.6 प्रतिशत यानी 1,986,500 घन मीटर पानी सूखाताल झील से, 25 प्रतिशत यानी 1,159 हजार घन मीटर पानी अन्य सतह से बहकर, 16.7 प्रतिशत यानी 772 हजार घन मीटर पानी नालों से बहकर तथा शेष 15.5 प्रतिशत यानी 718,500 घन मीटर पानी बारिश के दौरान तेजी से बहकर पहुंचता है। वहीं झील से जाने वाले कुल 4,687 हजार घन मीटर पानी में से सर्वाधिक 1,787,500 घन मीटर यानी 38.4 प्रतिशत यानी डांठ के गेट खोले जाने से निकलता है। 1,537 हजार घन मीटर यानी 32.8 प्रतिशत पानी पंपों के माध्यम से बाहर निकाला जाता है, 783 हजार घन मीटर यानी 16.7 प्रतिशत पानी झील से रिसकर निकल जाता है, वहीं 569,500 घन मीटर यानी 12.2 प्रतिशत पानी वाष्पीकृत हो जाता है।

नाम सूखाताल लेकिन नैनी झील को वर्ष भर और सर्वाधिक देती है पानी

नैनीताल। सूखाताल झील विश्व प्रसिद्ध नैनी सरोवर की सर्वाधिक जल प्रदाता झील है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बेशक सूखाताल झील का नाम सूखी रहने वाली ताल है, लेकिन यह नैनी झील को वर्ष भर और सर्वाधिक पानी देती है। इसके जरिए ही नैनी झील को सर्वाधिक 50 फीसद पानी जमीन के अंदर से रिसकर और 20 फीसद सतह से बहकर पहुंचता है, जबकि झील में अन्य सभी नालों से कुल मिलाकर केवल 10 फीसद और झील के ऊपर बारिश से भी सीधे इतना ही यानी 10 फीसद पानी ही आता है। यह भी उल्लेखनीय है कि जहां सूखाताल की ओर से नैनी झील में 50 फीसद भूजल आता है, जबकि इससे अधिक यानी 55 फीसद भूजल तल्लीताल की ओर से रिसकर बाहर निकल जाता है।

वहीं एक अध्ययन के अनुसार सूखाताल झील नैनी झील के 40 फीसद से अधिक प्राकृतिक जल श्रोतों का जलागम है, लिहाजा इसकी वजह से नैनी झील के जल्द ही पूरी तरह सूख जाने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसी झील से नैनी झील में 70 फीसद पानी पहुंचता है। साथ ही आईआईटी रुड़की की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार नैनी झील में सर्वाधिक 53 फीसद पानी जमीन के भीतर और २४ फीसद सतह से भरकर यानी कुल 77 फीसद पानी आता है। इसमें से सर्वाधिक हिस्सा सूखाताल झील की ओर से ही आता है। वहीं इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंटल रिसर्च मुंबई की 2002 की रिपोर्ट के अनुसार नगर की सूखाताल झील नैनी झील को प्रति वर्ष 19.86 लाख यानी करीब 42.8 फीसद पानी उपलब्ध कराती है।

सरकारी ‘डंपयार्ड’ बना दी गयी है सूखाताल झील

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-नगर पालिका, विद्युत विभाग, जल संस्थान व एडीबी आदि कर रहे अपनी निष्प्रयोज्य सामग्री को रखने के लिये उपयोग
नवीन जोशी, नैनीताल। दुनिया में तीसरा विश्व युद्ध जल के लिए ही होने की भविश्यवाणी, सरोवरनगरी स्थित विश्व प्रसिद्ध नैनी झील का जल स्तर लगातार गिरने की चिंता और इसकी प्रमुख जल प्रदाता सूखाताल झील को पुर्नजीवित करने के प्रति उत्तराखंड उच्च न्यायालय की गंभीरता के त्रिकोण के बीच सूखाताल झील को न केवल आम लोगों ने वरन जिम्मेदार प्रशासनिक विभागों ने कूड़े-कचरे का ‘डंपयार्ड’ बना दिया है।
नगर के बुजुर्ग बताते हैं कि पूर्व में सूखाताल झील बरसात के दिनों में जुलाई माह तक पानी से भर जाती थी, और सितंबर माह तक पानी से भरी रहती थी, तथा अगले वर्ष मार्च-अप्रैल तक इसका पानी रिस-रिस कर नैनी झील में पहुंचता था, जिससे नैनी झील में पानी की मात्रा बनी रहती थी। इसके अलावा चूंकि वर्ष के कुछ माह यह झील अपने नाम के अनुरूप सूखी रहती थी, ऐसे में इधर कुछ दशकों में एक ओर इसके गिर्द की केएल साह ट्रस्ट, वक्फ बोर्ड एवं पालिका की नजूल भूमि में न केवल दर्जन भर निजी घर, वरन जल संस्थान द्वारा झील के कमोबेश बीच में पंप हाउस व एडीबी के स्टोर आदि भी निर्मित हो गये, जिससे झील सिमट गयी। जबकि 1930 व 1950 के शासकीय नोटिफिकेशनों के अनुसार यह निर्माणों के लिये असुरक्षित क्षेत्र घोषित है। साथ ही इसके जलागम क्षेत्र से आये मलबे के साथ ही न केवल निजी स्तर पर कुछ लोगों ने वरन सरकारी विभागों ने भी अन्य स्थानों से लाकर मलबा इस झील में डाल दिया। जिससे झील पट गयी। फलस्वरूप बारिश आने पर जल्दी भरने लगी। इससे झील के किनारे बने घरों में दो मंजिलों तक पानी भरने लगा। जिसके निदान के लिये जिला प्रशासन की ओर से पंप लगाकर पानी को बाहर निकालकर झील को खाली भी करवाया गया। अलबत्ता, इधर उत्तराखंड उच्च न्यायालय के डा. अजय रावत द्वारा दायर याचिका पर आये के आदेशों पर झील से इस तरह पानी निकालने पर रोक लगी, साथ ही झील को वर्ष भर भरे रखने के प्रबंध करने के भी निर्देश आये, तथा इसी याचिका पर आये आदेशों पर पूरे नगर में अवैध निर्माणों पर अंकुश लगा। बावजूद सूखाताल झील पर कभी भी इमानदारी से कार्य नहीं हुआ, उल्टे नगर पालिका, विद्युत विभाग, जल संस्थान, एडीबी आदि ने इसे नये-पुराने पाइपों, डस्टबिन व विद्युत पोलों आदि को रखने का डंपयार्ड बनाकर छोड़ दिया है। डीएम दीपक रावत ने जानकारी दिये जाने पर सूखाताल झील में डाली गयी निष्प्रयोज्य सामग्री को नीलाम कराकर हटवाने की बात कही।

आठ मीटर की ऊंचाई तथा 20 मीटर चौड़ाई व 30 मीटर की लंबाई में पट गई है सूखाताल झील

नैनीताल। इधर हाल में सीडार व कैंब्रिज विवि के शोधकर्ताओं द्वारा शोध अध्ययन करते हुए बताया था कि सूखाताल झील की तलहटी लगातार मलवा डाले जाने से करीब आठ मीटर की ऊंचाई तथा 20 मीटर चौड़ाई व 30 मीटर की लंबाई में पट गई है। इस भारी मात्रा के मलवे की वजह से झील की तलहटी में मिट्टी सीमेंट की तरह कठोर हो गई है, और झील स्विमिंग पूल जैसी बन गई है। इस कारण एक ओर झील की गहराई कम हो गई है, जिसकी वजह से झील दो-तीन दिन की बारिश में भी भर जाती है। लेकिन तलहटी सीमेंट जैसी होने की वजह से इसका पानी अंदर रिस नहीं पा रहा, लिहाजा इससे नैनी झील को पूर्व की तरह रिस-रिस कर प्राकृतिक जल प्राप्त नहीं हो पा रहा है। कैंब्रिज विवि की इंजीनियर फ्रेंचेस्का ओ हेलॉन व सीडार के डा. विशाल सिंह का कहना है कि यदि झील में भरे मलवे और इसमें भरी प्लास्टिक की गंदगी को ही हटा दिया जाए तो इस झील का पुनरुद्धार किया जा सकता है।

नैनी झील की उम्र 2160 से 2700 वर्ष ही शेष बची

अपने शोधों के आधार पर नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के वैज्ञानिक डा. एसपी राय ने बताया कि नैनी झील की आयु एक प्रविधि के अनुसार 2160 और दूसरी प्रविधि के अनुसार 2700 वर्ष शेष बची है। यानी इतनी अवधि में झील मलवे से पट जाएगी और इसमें पानी का नामोनिशान नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि पूर्व में यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया ने झील की आयु महज 200 वर्ष बताई थी। इसके अलावा कार्यशाला में प्रो. पीडी पंत ने पूर्व शोधों के आधार पर बताया कि नैनी झील का निर्माण 47 से 50 हजार वर्ष पूर्व उस दौर में मौजूद नदी में शेर का डांडा व अयारपाटा पहाड़ियों के बीच वर्तमान झील के बीचों-बीच मौजूद नैनीताल भ्रंश के उभरने और इस वजह से तल्लीताल डांठ पर नदी के रुक जाने की वजह से नैनी झील का निर्माण हुआ होगा। सूखाताल झील के उस दौर में नैनी झील का ही जुड़ा हुआ हिस्सा होने की बात भी कही गई। बताया कि झील के पानी के लिए 1927 के रेगुलेशन की व्यवस्था ही चल रही है।

1951 में पहली बार पीने के लिए निकाला गया था पानी

नैनी झील के पानी का उपयोग 1950 तक पीने के लिए नहीं किया जाता था। 1951 में पहली बार पीने के लिए झील से एक लाख लीटर पानी निकाला गया। इसके बाद हर चार साल में पानी की खपत दोगनी होती गई। वरिष्ठ नागरिक व पूर्व सभासद राजेंद्र लाल साह बताते हैं कि 1974 में पहली बार झील का जलस्तर रिकार्ड छह फिट नीचे गिर गया था। यहां बता दें कि पिछले साल जलस्तर रिकार्ड 12 फिट तक नीचे चला गया था।

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