घर में शौचालय न होने से महिला ने बेटी खोई, अब लगाई शौचालय बनाने को गुहार…
नवीन समाचार, नैनीताल, 28 जून 2019। नगर के मेट्रोपोल कंपाउंड निवासी महिला रीना पवार पत्नी राजू पवार ने नैनीताल नगर पालिका के अध्यक्ष, अधिशासी अधिकारी एवं सभासदों को पत्र भेजकर उनसे शौचालय बनाने में मदद करने की गुहार लगाई है। पत्र में महिला का कहना है कि उसके पास अपना शौचालय नहीं है। आठ वर्ष पूर्व शौचालय न होने की वजह से उसकी तीन वर्ष की बेटी की जंगल में खुले में शौच जाते हुए गाड़ी से दबकर मौत हो गई थी, और सी कारण महिला को कुत्ते ने भी काट लिया था। वह अंग्रेजी समय के बने एक शौचालय की मरम्मत कर रही थी, किंतु उसे शौचालय नहीं बनाने दिया गया।
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नैनीताल, 14 अक्तूबर 2018। नगर के ‘एक पहल-एक सोच’ अभियान से जुड़े युवाओं ने रविवार के अवकाश का उपयोग नगर के पाइंस स्थित श्मशान घाट में सफाई अभियान चलाने में किया। इस दौरान मनोज साह जगाती, जय जोशी, गोविंद प्रसाद, वैभव चंद्र व सुनील चंद्र आदि युवाओं ने श्मशान घाट में अधजली लकड़ियों व कफन के कपड़ों आदि को इकट्ठा करके जलाया। पोस्टमार्टम किये हुए शवों के साथ जाने वाली पॉलीथीन को भी अलग निस्तारित किया, साथ ही अंतिम संस्कार में प्रयुक्त होने वाली प्लेड, कांच की बोतलों आदि को गड्ढों में डाला। युवाओं ने इसके साथ ही अंतिम संस्कार के लिये जाने वाले लोगों से अपील भी की है कि वे जीवन के आखिरी सत्य के स्थान, जहां से उनके पितरों के स्वर्ग लोक जाने की उम्मीद की जाती है, वहां गंदगी न फैलाएं एवं अंतिम संस्कार में प्रयुक्त सामग्री का सही तरह से निस्तारण करें। उल्लेखनीय है कि इस समूह के युवा 3000 से अधिक कट्टे कूड़ा साफ कर चुके हैं।
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नैनीताल, 30 सितंबर 2018। नगर के युवाओं के ‘एक पहल-एक सोच’ अभियान के तहत लगातार रविवार व अन्य मौकों पर सफाई के लिए अभियान चलाने का सिलसिला जारी है। इसी कड़ी में इस रविवार भी अभियान से जुड़े युवाओं ने डिग्री कॉलेज के निकट शिव मंदिर के पास सफाई अभियान चलाया। इस दौरान करीब 5 कट्टे कूड़ा निकाला गया, जिसमें से गौर करने योग्य बात यह है कि करीब 3 कट्टे शराब व बियर आदि की बोतलें थीं। उल्लेखनीय है कि इस स्थान से दुनिया के सुन्दर नगर नैनीताल का बेहद सुन्दर नजारा भी दिखाई देता है। लेकिन आज सफाई अभियान के बाद युवाओं ने इसे उठाने के बाद इसी स्थान पर ऐसे प्रदर्शित किया कि नगर का कुरूप चेहरा दिखाई देने लगा। इससे नगर के डीएसबी परिसर एवं शिव मंदिर के पास युवाओं द्वारा नशे का अड्डा बना दिये जाने का पता चलता ही है, साथ ही यह भी साफ होता है कि ऐसा करने वाले युवा अपने शहर, प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति भी बिल्कुल संवेदनशील नहीं हैं।
ठंडी सड़क का छात्रा छात्रावास मार्ग बना असामाजिक तत्वों-खुले में शौच का स्थल
नैनीताल। नगर के युवाओं के द्वारा हमेशा की तरह इस रविवार को नगर के ठंडी सड़क से छात्राओं के केपी व एसआर आदि छात्रावासों की ओर जाने मार्ग में सफाई अभियान चलाया। अभियान की अगुवाई कर रहे मनोज साह जगाती ने बताया कि इस मार्ग पर भी भारी मात्रा में शराब की बोतलें पाई गयीं। इसके अलावा कई असामाजिक तत्व भी यहां दिखे। इससे साफ होता है कि यह मार्ग असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है, साथ ही यहां खुले में शौच की हुई भी पायी गयी। चूंकि यह स्थान नैनी झील के बिलकुल करीब है, इसलिए इस गंदगी के हल्की बारिश में भी नैनी झील में जाकर जल का दूषित करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस दौरान 8 कट्टे कूड़ा निकाला गया, जिसमंे 5 कट्टे शराब की बोतलें और 3 कट्टा चिप्स आदि के रैपर व अन्य सामान थे। बताया कि इस तरह अब तक उनके द्वारा नगर से 2715 कट्टे कूड़ा निकाल दिया है। अभियान में सुनील चंद्र,, जय जोशी, वैभव चंद्र, अजय कुमार व हीरा आदि युवा शामिल रहे।
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नैनीताल। बीते कई रविवारों से नगर के युवा स्वयं सेवकों के द्वारा चलाये जा रहे सफाई अभियान का सिलसिला इस रविवार भी जारी रहा। इस दौरान वैभव चंद्र और भारत वीर के नेतृत्व में चले अभियान में नगर की ठंडी सड़क रोड क्षेत्र से मुख्य रूप से छह कट्टे शराब की बोतलें व करीब 2 कट्टे मोमो व इसकी चटनी तथा चिप्स के खाली पैकेट व डिस्पोजल गिलास सहित अन्य गंदगी एकत्र की गयी। अभियान के प्रमुख मनोज साह जगाती ने कहा, ऐसा लगता है जैसे शराबियों ने नगर की ठंडी सड़क सहित जहां भी शांत स्थान हैं, वहां शराब पीने के अड्डे बना दिये हैं। अभियान में हीरा, गोविंद प्रसाद, जय जोशी, भाष्कर आर्य व सुनील चंद्र आदि भी शामिल रहे।
उल्लेखनीय है कि नगर के स्वयंसेवी युवा अब तक करीब 3000 कट्टे कूड़ा, बोतलें आदि साफ़ कर चुके हैं, और उनका अभियान हर रविवार व छुट्टियों को जारी रहता है।
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नैनीताल। जी हां, वैश्विक पहचान रखने वाली नैनी झील को गंदा करने में जहां नगर के हजारों लोगों के साथ ही सैलानी भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते वहीं जान कर आश्चर्य होगा कि झील की सफाई करने के लिए नगर पालिका से सिर्फ छह लोगों के 12 हाथ तैनात किये गये हैं। इसका ही परिणाम है कि बृहस्पतिवार रात्रि आई बारिश के बाद नैनी झील के तल्लीताल शिरे पर तैर रही गंदगी को दो दिन बाद भी साफ नहीं किया जा सका है। गौरतलब है कि झील के ऊपर तो केवल तैरने वाली गंदगी ही नजर आ रही है, जबकि झील की सेहत के लिए सर्वाधिक खतरनाक व नुकसानदेह मलवा व अन्य गंदगी जो झील में डूब जाती है, और झील की तलहटी में मोटी परत चढ़ा देती है, की मात्रा इससे कहीं अधिक है, और उसे झील में जाने से रोकने के प्रयास भी नदारद हैं।
एक छोटे से सरकारी स्कूल ने दिखाया पंतनगर विवि को ‘आईना’, ऐसे दिया ‘मोदी का तोहफा’
शौचालय विहीन परिवारों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने की अभिनव पहल
स्कूलों में प्रवेश सरकारी स्कूलों की आज के दौर की सबसे बड़ी समस्या है। क्योंकि लोगों की बढ़ती आय के साथ कम आय वर्ग के लोग भी जहां गली-मोहल्लों में खुले अंग्रेजी स्कूलों में अपने बच्चों को भेजने लगे हैं। ऐसे में हालिया दौर में यह सच्चाई स्थापित हुई है कि सरकारी स्कूल अति निर्धन वर्ग-घुमंतू, मौसमी कामगारों के बच्चों के भरोसे ही चल रहे हैं। इस समस्या को स्वीकार करते हुए ऊधमसिंह नगर जिले के राजकीय प्राथमिक विद्यालय नगला (पंतनगर) ने बच्चों को अपने विद्यालय में प्रवेश के लिए आकर्षित करने के लिए एक अनूठी, प्रेरणास्पद व अभिनव पहल शुरू की है। साथ ही देश के अग्रणी विश्वविद्यालयों में शामिल एवं अभी हाल में उच्च शिक्षण संस्थानों में स्चच्छता के लिए प्रथम पुरस्कार हासिल करने वाले देश के पहले कृषि विश्वविद्यालय-पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय को भी आईना दिखाया है।
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p style=”text-align: justify;”>इस पहल के तहत प्राथमिक विद्यालय नगला के शिक्षक प्रदीप कुमार पांडे, रवि मोहन व विनय प्रभा पाठक ने अपने वेतन से धनराशि एकत्र कर शौचालय की शीटें खरीदी हैं। इन्हें स्कूल में अपने बच्चों का प्रवेश करने वाले अभिभावकों को दिया जा रहा है। साथ ही शौचालय निर्माण के लिए भी कुछ धनराशि भी दी जा रही है। विद्यालय की शिक्षिका विनय प्रभा पाठक ने बताया कि उनका विद्यालय पंतनगर विश्वविद्यालय परिसर के भीतर है, और उनके यहां अधिकांश बच्चे विश्वविद्यालय के फार्मों, घरों में कार्यरत मजदूरों के होते हैं। इन बच्चों को विद्यालय के शौचालय का प्रयोग करना भी नहीं आता है। यहां तक कि वे इधर-उधर गंदगी कर देते हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके घरों में शौचालय नहीं है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत विचार आया कि क्यों न अपनी ओर से उन्हें शौचालय बनाने के लिए मदद की जाए। इस कोशिश में बच्चों को अपने स्कूल से जोड़ने का उद्देश्य भी जोड़ा गया। इस पहल के बाद काफी बच्चों के अभिभावक शौचालय के लिए शीट व धनराशि लेने विद्यालय पहुंचे, और उन्हें उनके बच्चों को स्कूल में प्रवेश कराने की शर्त पर शीट व धनराशि भेंट की गयी।
गौरतलब है कि विद्यालय के शिक्षकों की इस पहल से पंतनगर विवि की बीते सितंबर माह में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के हाथों दिल्ली के अशोका होटल में देश के स्वच्छ शिक्षण संस्थानों में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने की पोल भी खुलती है। जब विवि अपने यहां कार्यरत मजदूरों को शौचालय उपलब्ध कराना तो दूर, उन्हें शौचालय का उपयोग करना तक नहीं सिखा पा रहा है ऐसे में देश के सबसे स्वच्छ उच्च शिक्षण संस्थान का पुरस्कार उसने किस तरह परीक्षण करने वाली टीम को ‘प्रसन्न करके’ प्राप्त किया होगा, इन हालातों को देखकर समझना अधिक कठिन नहीं है।
श्रीमती विनय प्रभा पाठक जी पिछले 20 वर्षों से शिक्षक की भूमिका का निर्वहन बखूबी कर रही हैं …… इन 20 वर्षों के दौरान उन्होंने बालिकाओं की शिक्षा को लेकर विशेष प्रयास किये हैं ….. उनके द्वारा पढ़ाये गए बच्चों ने भी उनकी इस मेहनत को बेकार नहीं जाने दिया है …….. वर्तमान में भी वह उसी जोश से कार्य कर रही हैं …… शिक्षा को शौचालय से जोड़ने की ये अद्भुत सोच ….. उन्हें हम सबसे अलग तथा बेहतर बनाती है ….. उनकी ये पहल हम सभी के लिए अनुकरणीय है ….🙏🙏🙏🙏🙏 -शिक्षा निदेशक, उत्तराखंड (व्हाट्सएप पर)
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p style=”text-align: justify;”>एक विचार: मैं स्वच्छता के लिये क्या करूंगा.. आप भी बताइयेगा, क्या आप भी कुछ करेंगे…. अधिकतम 150 शब्दों में।
स्वच्छता हमेशा स्वयं से, और स्वयं में भी बाहरी तन से पहले मन से शुरू होती है। यदि हम अपना मन स्वच्छ कर लें तो गंदगी कहीं भी, ना ही हमारे तन, ना हमारे घर, ना घर की देहरी, ना हमारे परिवेश और ना ही हमारे गांव-शहर, प्रदेश-देश और हमारी पृथ्वी माता व अखिल ब्रह्मांड में ही हो सकती है।
आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी जिस तरह ‘मन की बात’ करते हैं, इससे हमें उनके ‘मन की आंतरिक स्वच्छता’ के दर्शन होते हैं। मैंने भी मोदी जी के ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन’ की 50वीं वर्षगांठ पर 2022 तक ‘न्यू इंडिया’ स्थापित करने के लिये ‘स्वच्छ संकल्प से स्वच्छ सिद्धि’ अभियान को देश के जिम्मेदार नागरिक व सैनिक की तरह मन-वचन-कर्म से पूरा करने का संकल्प लिया है। मैं जानता हूं धरा की सफाई के लिए पहले ‘दिमाग का साफ होना’ जरूरी है। इस संकल्प के लिये मैं सर्वप्रथम अपने मन को प्रधानमंत्री मोदीजी की तरह ही स्वच्छ करुंगा और आगे अपने घर को साफ रखूंगा। अपनी चीजें नियत स्थान पर ही रखूंगी। घर का कूड़ा घर की देहरी या गली अथवा खुले स्थान पर नहीं, बल्कि गीले व सूखे कूड़े को अलग कर निश्चित हरे व नीले कूड़ेदानों में ही डालूंगा। कागज-प्लास्टिक जैसे पुर्नउपयोग हो सकने वाले कूड़े और मोबाइल-बैटरियों जैसी रसायनिक गंदगी को कबाड़ी को बेचूंगा, ताकि वे इसे आगे रिसाइकिलिंग के लिये भेजें। खुले में शौच या मूत्रविसर्जन तो बिल्कुल नहीं। और इसके साथ ही समाज में जागरूकता फैलाकर भी मैं देश को गंदगी से मुक्त कर प्रति वर्ष गंदगीजनित संक्रामक बीमारियों पर खर्च होने वाले हजारों करोड़ रुपए बचाने में अपना योगदान दूंगा।
देश को आपस में जोड़ेगा और अपनेपन का भाव भी जगाएगा ‘स्वच्छ भारत अभियान’
नवीन जोशी, नैनीताल। देश में गंदगी-भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, सरकारी लूट-खसोट जैसे अनेक प्रकारों की ही नहीं खासकर कूड़े की, कितनी बड़ी समस्या बन गई है इसे समझने के लिए यह याद करना ही काफी होगा कि इसे साफ करने के उपकरण-झाड़ू को एक नई पार्टी ने अपना चुनाव चिन्ह बनाया, और सत्ता भी प्राप्त कर ली, वहीं वहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी झाड़ू को न केवल अपने वरन देश के अलग-अलग क्षेत्रों के शीर्ष नवरत्नों के हाथ में भी थमा दिया। और तीसरी ओर सर्वोच्च न्यायालय को टिप्पणी करनी पड़ी कि केंद्र सरकार (पूरा देश भी उसमें समाहित है) सफाई के मामले में ‘कुंभकर्णी” नींद सोया हुआ है।
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p style=”text-align: justify;”>झाड़ू को हाथ में उठाना आसान काम नहीं होता। हम केवल वहीं झाड़ू हाथ में लेकर सफाई कर सकते हैं, जिसे हम नितांत अपना मानते हैं। बहुधा हम अपने घर पर झाड़ू लगाते हैं, और कभी-कभार अपने घर के बाहर आसपास की गंदगी पर भी झाड़ू लगाते हैं। लेकिन ऐसा बहुत कठिन होता है कि हम सड़क की भी सफाई करने लगें। सड़कों की सफाई का जिम्मा हमने नगर निकायों, और वहां भी एक वर्ग के कर्मचारियों को देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है। हम खुद अपने हिस्से की सफाई नहीं करते, इसलिए हमने उनका काम बहुत बढ़ा दिया है। इस सवाल को अगर गहराई से समझें तो मानना पड़ेगा कि हम वहीं सफाई करते हैं, जिसे बिलकुल अपना और घर सरीखा मानते हैं। गांवों से शहर में आए लोगों में अपने घर के आसपास की सफाई का भाव कम ही दिखाई देता है। मानना पड़ेगा कि हम किसी स्थान की सफाई तभी कर सकते हैं, जब उस स्थान को अपना घर समझें। प्रधानमंत्री की इस पहल का सीधा लाभ तो देश को साफ करने में होगा ही, इसका परोक्ष लाभ यह भी होगा कि हम अपने घर व परिवेश से बाहर निकलकर अपने शहर, अपने राज्य और अपने देश को भी अपने घर की तरह मान पाएंगे, और कहीं भी गंदगी न करने को प्रेरित होंगे। इससे देश के लोगों में अपनेपन का भाव जागेगा तथा वह आपस में और मजबूती से जुड़ पाएंगे।
इसलिए यदि कुछ लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ में जुड़ रहे हैं, और यहां तक कि केवल अखबारों, मीडिया में फोटो खिंचवाने के लिए भी हाथों में झाड़ू थाम रहे हैं तो यह भी स्वागत योग्य कदम ही कहा जाएगा। कम से इससे कुछ लोग, और खासकर बच्चे और युवा पीढ़ी तो अपने परिवेश को स्वच्छ रखने, कूड़े को इधर-उधर न फैलाने व सही स्थान पर ही डालने को तो प्रेरित होंगे।
सफाई कर्मियों की समस्या:
आंकड़े गवाह हैं कि देश भर में २७ लाख सफाई कर्मचारी हैं। इनमें से ७.७ लाख सफाई कर्मचारी ही सरकारी तौर पर नियुक्त हैं, और करीब २० लाख यानी ८५ फीसदी कर्मचारी ठेके पर काम करते हैं। १३ लाख कर्मचारी आज भी मल-मूत्र साफ करते हैं। ६० फीसदी सफाई कर्मी कलेरा, अस्थमा, मलेरिया और कैंसर से पीडित हैं, और उनमें से ९० फीसदी कर्मियों की मौत ६० की उम्र से पहले ही हो जाती है, और देश में हर घंटे आठ सफाई कर्मचारियों की बुरी जीवन स्थिति की वजह से मौत हो जाती है। सफाई कर्मी की औसतन कमाई ३ से ५ हजार रुपए महीना है। देश में वाल्मीकि समाज की १२०० बस्तियां सुविधारहित नहीं है।
देश में शौचालयों की स्थिति:
एक अनुमान के अनुसार भारत में खुले में शौच की दर विश्व की ६० प्रतिशत है। २०११ की जनगणना के अनुसार शहरी क्षेत्रों में करीब १८ प्रतिशत परिवारों में स्वच्छता की पहुंच नहीं है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अनुमान के अनुसार शहरों की गैर अधिसूचित मलिन बस्तियों के ५१ प्रतिशत घरों में आज भी शौचालय नहीं है। वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार भारत के आठ हजार कस्बों में से केवल १६० में ही सीवेज सिस्टम और सीवेज उपचार संयंत्र उपलब्ध हैं, और उनमें केवल १३ प्रतिशत सीवेज का ही उपचार किया जाता है। इनमें भी ४० प्रतिशत क्षमता देश के केवल दो बड़े शहरों-दिल्ली और मुंबई में ही उपलब्ध है। इसके अलावा एनएफएचएस ३, २००५-०६ के अनुसार भारत में १७ प्रतिशत शहरी परिवारों के घरों में किसी भी प्रकार का शौचालय नहीं थे। २४ प्रतिशत परिवार शौचालय साझा कर रहे थे और १९ प्रतिशत घरों के शौचालय नालियों में खुलते थे, साथ ही पांच प्रतिशत शौचालय में ‘फ्लश” व ‘सेप्टिक टेंक” या गड्ढा नहीं था जिसका अर्थ है कि यहां से निकलने वाला मानव मल भी बिना उपचार के भूमि पर और जल स्रोतों में बहाया जा रहा था। केवल २७.६ प्रतिशत घरों के शौचालय ही सेप्टिक टेंक और ६.१ प्रतिशत में गड्ढे का इस्तेमाल किया गया था। वहीं २०११ की जनगणना के अनुसार केवल ३२.७ प्रतिशत शहरी परिवार ही पाइप लाइन वाली सीवर प्रणाली से जुड़े हैं, जबकि ३८.२ प्रतिशत परिवार अपने मल का निपटारा सेप्टिक टैंक और ७ प्रतिशत गड्ढा शौचालयों में करते हैं। लगभग ५० लाख गड्ढा शौचालयों में कोई स्लैब नहीं है या खुले गड्ढे हैं। इनके अलावा जो १३ लाख सेवा शौचालय हैं, उनमें से भी नौ लाख का अपशिष्ट सीधे नालियों में गिरता है, तथा दो लाख शौचालयों का मानव मल अभी भी अवैध रूप से इंसानों द्वारा उठाया जाता है, और १.८ लाख शौचालय पशुओं द्वारा सेवित है। यानी इस दौरान के पांच-छह वर्षों में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई।
नदियों में गंदगी की समस्या:
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार देश भर के ९०० से अधिक शहरों और कस्बों का ७० फीसदी गंदा पानी पेयजल के लिए उपयोग की जाने वाले नदियों में बिना शोधन के ही छोड़ दिया जाता है। सर्वाधिक पूज्य धार्मिक नदियों मोक्षदायिनी राष्ट्रीय नदी गंगा और यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अब तक करीब १५ अरब रुपये खर्च किए जा चुके हैं, फिर भी उनकी हालत २० साल पहले से ज्यादा बदतर है। वर्ष २००८ तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, शहर और कस्बे ३८,२५४ एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) गंदा पानी छोड़ते हैं, इससे देश की ७० फीसदी नदियां प्रदूषित हो गई हैं। जबकि ऐसे दूषित पानी के शोधन की क्षमता देश में महज ११,७८७ एमएलडी ही है। देश के कई हिस्सों के भूजल में जल प्रदूषण का प्रमुख तत्व फ्लोराइड भी पाया जाने लगा है, जिसे लगातार पीने से फ्लोरोसिस नाम की बीमारी होती है, और इससे रीढ़ तथा सभी हड्डियां टेढ़ी, खोखली और कमजोर होने लगती हैं।
कूड़े से संबंधित कुछ तथ्य:
नेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर के अनुसार देश में हर साल ४४ लाख टन खतरनाक कचरा निकल रहा है। इसमें देश के केवल ३६६ शहरों से प्रतिदिन निकलने वाले कूड़े का हिस्सा १८८,५०० टन का है। अकेले दिल्ली शहर में रोजारा ७२०० मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। देश का हर व्यक्ति प्रतिदिन ५०० ग्राम कूड़ा हर रोज उत्पन्न करता है। इनमें से आधे से अधिक कागज, लकड़ी वगैरह, जबकि २२ फीसदी घरेलू गंदगी होती है। इसमें भी सबसे बड़ा खतरा ई-कूड़े यानी बैटरियों, कंप्यूटरों व मोबाइलों आदि का है, जिनमें पारा, कोबाल्ट जैसे अनेक जहरीले तत्व होते हैं। इसके अलावा एक अलग तरह का बड़ा खतरा मेडिकल कचरे का भी है। इसमें से अधिकांश प्लास्टिक जैसी सामग्री गलती या सड़ती नहीं हैं, और जमीन में जज्ब होकर मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करने और भूगर्भ जल को जहरीला बनाने का काम करती हैं।
इस साल इंसानों से ज्यादा हो जाएंगे मोबाइल फोन
इस साल के अंत तक दुनियाभर में मोबाइल फोनों की संख्या मनुष्य की कुल आबादी से ज्यादा हो जाएगी। इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2014 के अंत तक दुनियाभर में मोबाइल फोन की संख्या छह अरब से बढ़कर 7.3 अरब हो जाएगी जबकि दुनिया की कुल आबादी सात अरब है। सौ से अधिक देशों में मोबाइल फोन की संख्या कुल आबादी से ज्यादा है। रूस में 25 करोड़ मोबाइल फोन हैं, जो कुल आबादी से 1.8 गुना ज्यादा हैं। वहीं ब्राजील में कुल 24 करोड़ मोबाइल फोन हैं जो उसकी कुल आबादी से 1.2 गुना ज्यादा है। इसी तरह भारत में 1.2 अरब आबादी के सापेक्ष 90 करोड़ मोबाइल, चीन में 1.3 अरब आबादी के सापेक्ष 1.2 अरब मोबाइल, अमेरिका में 31.7 करोड़ आबादी के सापेक्ष 32 करोड़ मोबाइल तथा पाकिस्तान में 18 करोड़ आबादी के सापेक्ष 14 करोड़ मोबाइल फोन हैं। इनका कचरा कहाँ जायेगा, इस सवाल का जवाब कोई नहीं खोज रहा है।
गन्दगी की वजह से मौतें:
पूरे देश में 60 प्रतिशत लोग गन्दगी की वजह से ही उत्पन्न इन्फेक्शन यानि संक्रमण और बैक्टीरिया की वजह से बीमार होते हैं। वहीँ डब्ल्यूएचओ के अनुसार अकेले डायरिया से हर साल दुनियाभर में 20 लाख बच्चे मर जाते हैं, जिनमें से हर पांचवां बच्चा भारतीय होता है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के अनुसार, हाथ धोने को आदत में सुधार किया जाए तो 47 प्रतिशत डायरिया कम किया जा सकता है।