May 3, 2024

Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC1 : उत्तराखंड में ही भाजपा क्यों लायी यूसीसी, जानें क्या उठ रहे हैं यूसीसी पर सवाल और इनमें कितना है दम ?

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Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC

Uttarakhand Rajniti

डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 8 फरवरी 2024 (Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC)। उत्तराखंड सरकार ने बुधवार को विधानसभा में यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता विधेयक पारित कर दिया है। अब यह विधेयक राजभवन को भेजा जायेगा और वहां से स्वीकृत होने के बाद कानून बन जायेगा। इससे पहले भी उत्तराखंड भारत का पहला राज्य बन गया है, जहां सभी धर्मों के लोगों पर तलाक, शादी जैसे मामलों में एक ही कानून का विधेयक राज्य विधान सभा से पारित हो गया है। देखें विडिओ :

आइये जानते हैं कि भाजपा क्यों उत्तराखंड में ही इस विधेयक को सबसे पहले लायी ? क्यों पूरे देश में इस पर चर्चा हो रही है, और इस पर क्या सवाल उठ रहे हैं ? (Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC)

भाजपा के राष्ट्रीय स्तर पर कोर एजेंडे में और चुनावी वादा था UCC (Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC)

UCC, Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCCउल्लेनीय है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले जब पुष्कर सिंह धामी त्रिवेंद्र सिंह रावत व तीरथ सिंह रावत के बाद एक ही विधानसभा काल के दौरान तीसरी बार नेतृत्व परिवर्तन करने की मजबूरी के हालातों में मुख्यमंत्री बने थे तो राज्य में भाजपा के दुबारा से सत्ता में आने की संभावनाएं काफी कम बतायी जा रही थीं। ऐसे में भाजपा ने राज्य में चुनाव जीतने पर समान नागरिक संहिता कानून लाने का दांव खेला। यह मुद्दा भाजपा के राष्ट्रीय स्तर पर कोर एजेंडे में भी शामिल था।

 उत्तराखंड का धार्मिक महत्व (Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC)

उन हालातों में इस मुद्दे को उत्तराखंड में लाने का जो बड़ा कारण दिखता है, वह यह कि एक तो भाजपा राज्य में बहुसंख्यक हिंदू आबादी के वोट लेकर दुबारा सत्ता में आना चाहती थी, दूसरे चूंकि उत्तराखंड एक छोटा एवं हिंदू बहुसंख्यक आबादी वाला राज्य था, ऐसे में संभवतया भाजपा यह भी चाहती थी कि उत्तराखंड में इस कानून को लाकर इसके प्रभाव जाने जायें और आगे इसके पक्ष में माहौल बनाकर धीरे-धीरे इसे सभी राज्यों में और आखिर पूरे देश में लागू कर दिया जाये।

भाजपा इस मुद्दे को लाने के बाद उत्तराखंड में 2022 का चुनाव प्रचंड बहुमत से जीत भी गयी तो उस पर नैतिक रूप से यह मुद्दा लाने का नैतिक दबाव व कारण भी हो गया, जिससे भाजपा को इस विषय को आगे बढ़ाने का बल मिला। इस पर धामी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन कर उसे इस विधेयक का मसौदा तैयार करने का कार्य सोंपा, और अब यह विधेयक विधानसभा से पारित भी हो चुका है।

इस कानून को लाना भाजपा के कोर मुद्दे में शामिल था, इसके बावजूद भाजपा इसे नहीं ला पा रही थी। इसके पीछे मुस्लिमों की संभावित व अपेक्षित नाराजगी के साथ एक कारण यह भी था इसे लाने से भाजपा आदिवासियों व अनुसूचित जनजातियों के अपने बड़े मतदाता वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती थी। इसलिये भी पहले यह प्रयोग के तौर पर उत्तराखंड में लाया गया है। इसमें आदिवासियों, अनुसूचित जनजातियों को छूट दी गई है, ताकि वह नाराज न हों। दूसरे उत्तराखंड में मुसलमानों की आबादी भी ज्यादा नहीं, 13 प्रतिशत है, जोकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की तुलना में 6 प्रतिशत कम है।

उत्तराखंड में मुस्लिम आबादी भी नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, रानीखेत, बागेश्वर आदि कुछ पर्वतीय शहरों और नैनीताल, देहरादून, हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर के मैदानी क्षेत्रों में ज्यादा है। उत्तराखंड से समान नागरिक संहिता कानून लाने का संदेश इसलिये भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि यही गंगा-जमुनी तहजीब कहे जाने वाले देश की गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों के धरती पर उतरने, चार धामों व पंच केदारों की धरती है। हिंदुओं के लिहाज से इसका बड़ा धार्मिक महत्व भी है।

ऐसे में यदि इसका कहीं कोई विरोध होता भी तो उसे संभाला जा सकता है। अलबत्ता, देखने में आ रहा है कि कश्मीर में धारा 370 के हटने तथा तीन तलाक व हलाला आदि पर रोक लगने के बाद मुस्लिम भी उत्तराखंड के यूसीसी विधेयक पर स्पष्ट तौर पर विरोध जरूर कर रहे हैं, लेकिन तार्किक तरीके से धार्मिक आधार पर कोई बिंदुवार आपत्ति नहीं जता पा रहे हैं। ऐसे में संभव है कि यूसीसी कानून के उत्तराखंड के बाद देश के अन्य राज्यों में भी पारित होने का मार्ग प्रशस्त होगा, और खासकर भाजपा चाहेगी कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उसको इसका लाभ मिले। बहरहाल, लाभ मिलेगा या नहीं यह भविष्य बतायेगा।

महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में बड़ा कदम (Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC)

उत्तराखंड का नया यूसीसी कानून सरसरीतौर पर देखने पर समान नागरिक संहिता से अधिक महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम लगता है। चाहे विवाह संबंधी प्राविधान हों या उत्तराधिकार और सहवास यानी लिव-इन रिलेशनशिप के, सभी में महिलाओं को प्राथमिकता दी गयी है। उन्हें पिता की संपत्ति में भाइयों की तरह बराबरी का हक होगा।

अलबत्ता वह यह अधिकार लेंगी या नहीं, यह समाज तय करेगा। लिव इन रिलेशनशिप में रहने के दौरान भी पुरुष साथी द्वारा छोड़े जाने पर वह उससे भरण-पोषण भत्ता ले सकेंगी। ऐसे संबंधों से जन्मे उनके बच्चों को वैध बच्चे का दर्जा मिलेगा। उन्हें 5 साल से छोटे बच्चों को अपने पास रखने का अधिकार भी मिलेगा। मुस्लिम महिलायें भी अब बच्चों को गोद ले सकेंगी।

वैध-तार्किक प्रश्न विहीन विपक्ष (Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC)

हालांकि उत्तराखंड के यूसीसी कानून पर जहां मुस्लिम वैध व तार्किक प्रश्न नहीं पूछ पा रहे हैं, विपक्ष के पास भी विरोध करने की हिम्मत नहीं बची है, जैसा कि इस विधेयक पर चर्चा के दौरान विधानसभा में भी दिखा। विपक्षी कांग्रेस पार्टी विधेयक का सीधा विरोध नहीं कर पायी, और आत्मसमर्पण की मुद्रा में दिखी। केवल विधेयक पर विचार के लिये अधिक समय देने और उसके बताये संशोधनों को भी विधेयक में शामिल करने की बात कहती रही। अलबत्ता इस पर कांग्रेस पार्टी की ओर से दो बड़े सवाल उठाये गये हैं।

पहला सवाल अनुसूचित जनजातियों को छोड़ने का है। विपक्ष का कहना है कि उन्हें छोड़कर कैसे यह विधेयक सबके लिए समान नागरिक संहिता का दावा कर सकता है। हालांकि बहुत संभव है कि चाहे जितने सवाल उठा ले, लेकिन कभी भी विपक्ष इन जनजातियों को भी इसमें शामिल करने की मांग नहीं कर पायेगा। दूसरा विषय समवर्ती सूची का है, जिसे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य उठा रहे हैं।

जल्दबाजी का रोना (Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC)

उनका कहना है कि यूसीसी बिल लाने में उत्तराखंड सरकार ने बहुत जल्दबाजी दिखाई है। उत्तराखंड कॉमन सिविल कोड का ड्राफ्ट सार्वजनिक किए बिना ही पास कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यह बिल आज के कई वर्तमान कानूनों को प्रभावित करेगा और कुछ नई व्यवस्थाएं खड़ी करेगा। इस पहलू पर गहराई से व्यापक मंथन होना चाहिए था। लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया है।

दूसरे, वह कह रहे हैं कि यह कानून केंद्र सरकार को लाना चाहिये था। क्योंकि यह बड़ा विषय है। वैसे भी जब केंद्र सरकार इस पर अपना कानून लायेगी तो राज्यों के कानूनों का महत्व नहीं रह जाएगा। इस तरह राज्यों द्वारा केंद्रों के विषय वाले बिल लाने की परंपरा से आगे राज्यों व केंद्रों के संबंधों पर विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है।

भाजपा पर उत्तराखंड को राजनीतिक प्रयोगशाला बनाने का आरोप (Why BJP bring UCC in Uttarakhand, Question on UCC)

उनका यह भी आरोप है कि भाजपा ने उत्तराखंड को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बना दिया है। और यह भी साफ तौर पर लग रहा है कि भाजपा का उत्तराखंड में यूसीसी लाने का प्रयोग राजनीतिक तौर पर फिलहाल सफल नजर आता है। क्योंकि इस पर उठ रहे प्रश्नों पर अधिक दम नजर नहीं आ रहा है और इसके किसी तरह के बड़े पैमाने पर विरोध की उम्मीद भी कम ही नजर आ रही है।

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