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October 18, 2024

खास होगी नैनीताल की रामलीला, राम-लक्ष्मण की भूमिकाएं निभाएं सगी बहनें, भरत-शत्रुघ्न की भूमिकाओं में भी बालिकाएं

Ramlila

डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल (Nainital Ramlila-Real Sisters will be Ram-Laxman) नैनीताल की ऐतिहासिक मल्लीताल की रामलीला इस बार कुछ खास होने जा रही है। यूं यहां मल्लीताल में श्रीराम सेवक सभा के तत्वावधान में आयोजित होने वाली ऐतिहासिक व प्रमुख रामलीला में पिछले लगभग 20 वर्षों में महिला पात्र महिलाओं-बालिकाओं के द्वारा ही और कई वर्षों से राम जैसे मुख्य पात्र भी बालिकाओं के द्वारा निभाये जा रहे हैं,

Nainital Ramlila-Real Sisters will be Ram-Laxman
नैनीताल की रामलीला में प्रमुख पात्र निभा रही बालिकाएं।

लेकिन गुरुवार से शुरू हो रही रामलीला में पहली बार राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और सीता के साथ ही केकई, मंथरा व सुलोचना जैसे प्रमुख पात्र बालिकाओं द्वारा निभाए जा रहे हैं। खास बात यह भी है कि इन में सगी चार बहनें भी शामिल हैं जो राम एवं लक्ष्मण की मुख्य भूमिकाओं में नजर आएंगी। यह भी कह सकते हैं कि राम व लक्ष्मण के पात्र दो सगी बहनें निभाने जा रही हैं, वहीं केकई-मंथरा संवाद जैसे दृश्यों में भी दो सगी बहनें दिखाई देंगी।

देखें विडियो : रावण व सीता का ऐसा संवाद कहीं और न देखा होगा….

चार सगी कोहली बहनें प्रमुख भूमिकाओं में (Nainital Ramlila-Real Sisters will be Ram-Laxman)

यहां राम की भूमिका अनुष्का कोहली निभा रही हैं, जो पिछले कई वर्षों से सीता की भूमिका निभा रही थीं। वहीं लक्ष्मण की भूमिका उनकी बहन दिव्या कोहली निभा रही हैं, जो पहले सूर्पणखा का पात्र निभाती थीं। इस बार सूर्पणखा के साथ मंथरा और सुलोचना की भूमिका में उन्हीं की एक अन्य बहन श्रुति कोहली और कैकई व शबरी की भूमिकाओं में उनकी चौथी बहन आराधना कोहली नजर आएंगी। कोहली बहनों की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ नहीं है और वे जीवन यापन के लिये वर्ष भर अलग-अलग जगह काम करती हैं और पिछले एक दशक से रामलीला से भी जुड़ी हैं।

इनके अलावा हर्षिता गोसांई सीता का भूमिका में तथा भरत की भूमिका में अनुसुइया वर्मा और शत्रुघ्न की भूमिका में यशस्वी अरोड़ा पहली बार नजर आएंगी। अनुसुइया पहले तल्लीताल की रामलीला में अन्य भूमिकाएं निभाती थीं, जबकि यशस्वी अरोड़ा पहले मल्लीताल में ही सखी जैसे छोटे पात्र निभाती थीं। यह भी पढ़ें : अरे रावण तू धमकी दिखाता किसे, मेरे मन का सुमेरू डिगेगा नहीं… विधायक पहुंची-अब केंद्रीय मंत्री पहुचेंगे..

बालक हो रहे दिशाहीन, बालिकाएं समर्पित-बढ़ रही रामलीलाओं के प्रति रुचि

नैनीताल। मल्लीताल की रामलीला के मुख्य संयोजक एवं सुप्रसिद्ध दिवंगत सिने अभिनेता स्वर्गीय निर्मल पांडे के भाई मिथिलेश पांडे कहते हैं युवा लड़कों की रामलीला के प्रति रुचि कम हो रही है और वे एक तरह से दिशाहीन हो रहे हैं, जो समाज के लिए चिंता का विषय है। दूसरी ओर लड़कियों में रामलीला में अभिनय करने का चाव लगातार बढ़ रहा है।

वे अभिनय के अलावा अन्य कार्यों में भी पूरे मनोयोग, तालीम में बिना एक भी दिन अनुपस्थित रहे पूरे समर्पण के साथ योगदान देती हैं। उनकी आवाज भी मधुर होती है और वे रामलीला के विभिन्न चरित्रों में अपनी शालीनता के कारण गरिमामय भी नजर आती हैं। उन्हें आयोजक संस्था से अच्छा पारिश्रमिक एवं छात्रवृत्ति भी मिलती है।

श्री पांडे बताते हैं कि रामलीला में प्रतिभाग करने से बच्चों में रचनात्मकता के साथ अच्छे संस्कार भी आते हैं। यहां काम करने वाले अधिकांश कलाकार बच्चे पढ़ाई में भी अच्छे रहे हैं। लेकिन खासकर बालकों में रामलीला के प्रति घटती रुचि और उनका दिशाहीन होना समाज के लिये चिंताजनक विषय है। श्री पांडे मानते हैं कि अन्य जगहों की रामलीलाओं में भी बालिकाओं की बढ़ती भूमिका स्पष्ट रूप से बालकों की रामलीला के प्रति घटती रुचि को और बालिकाओं की बढ़ती भूमिका उन्हें अब तक मौके न मिलने जैसे कारणों को भी दिखाती है। 

यह भी पढ़ें : कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) का इतिहास : 1830 में मुरादाबाद से हुई कुमाउनी रामलीला की शुरुआत

Devbhumi Sandesh, October 2014
देवभूमि सन्देश, अक्तूबर 2014, उत्तराखंड सरकार की पत्रिका

-नृत्य सम्राट उदयशंकर, महामना मदन मोहन मालवीय व भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत जैसे लोगों का भी रहा है कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) से जुड़ाव
डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में होने वाली कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) की अपनी मौलिकता, कलात्मकता, संगीत एवं राग-रागिनियों में निबद्ध होने के कारण देश भर में अलग पहचान है। खास बात यह भी है कि कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) की शुरुआत कुमाऊं के किसी स्थान के बजाय 1830 में यूपी के रुहेलखंड मंडल के मुरादाबाद से होने के प्रमाण मिलते हैं।

(Ramlila Kumaoni)वहीं 1943 में नृत्य सम्राट उदयशंकर और महामना मदन मोहन मालवीय के साथ भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत जैसे लोगों का भी कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) से जुड़ाव रहा है। उदयशंकर के कल्चरल सेंटर ने पंचवटी का सेट लगाकर उसके आसपास शेष दृश्यों का मंचन तथा छायाओं के माध्यम से फंतासी के दृश्य दिखाने करने जैसे प्रयोग किए, जिनका प्रभाव अब भी कई जगह रामलीलाओं में दिखता है। वहीं महामना की पहल पर प्रयाग के गुजराती मोहल्ले में सर्वप्रथम कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) का मंचन हुआ था।

कुमाऊं में रामलीला के आयोजन की शुरुआत 1860 में अल्मोड़ा के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी, जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर देवी दत्त जोशी को जाता है। लेकिन यह भी बताया जाता है कि श्री जोशी ने ही इससे पूर्व 1830 में यूपी के मुरादाबाद में ऐसी ही कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) कराने की शुरुआत की थी। इसके 20 वर्षों के बाद 1880 में नैनीताल के दुर्गापुर-वीरभट्टी में नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह के प्रयासों से कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) कराने की शुरुआत हुई।

आगे 1890 में बागेश्वर में शिव लाल साह तथा 1902 में देवी दत्त जोशी ने ही पिथौरागढ़ में रामलीला की शुरुआत की। दुर्गापुर नैनीताल का बाहरी इलाका है, इस लिहाज से नैनीताल शहर में 1912 में पहली बार मल्लीताल में कृष्णा साह ने अल्मोड़ा से कलाकारों को लाकर रामलीला का मंचन करवाया, जबकि स्थानीय कलाकारों के द्वारा 1918 में यहां रामलीला प्रारंभ हुई। भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत 1903 में तल्लीताल रामलीला कमेटी के प्रथम अध्यक्ष रहे।

1910 के आसपास भीमताल में रामलीला का मंचन प्रारम्भ हुआ। 1907 से रामलीला को लिखित रूप में सर्वसुलभ बनाने के प्रयासों के अन्तर्गत रामलीला नाटकों को प्रकाशित करने का वास्तविक कार्य प्रारंभ हुआ। पंडित राम दत्त जोशी, केडी कर्नाटक, गांगी सााह, गोविन्द लाल साह, गंगाराम पुनेठा, कुंवर बहादुर सिंह आदि के रामलीला नाटक प्रकाशित हुए। रामलीलाओं में नारद मोह, अश्वमेध यज्ञ, कबन्ध-उद्धार, मायावी वध व श्रवण कुमार आदि के प्रसंगों का मंचन भी किया जाता है।

सामान्यतया रामलीला का मंचन शारदीय नवरात्र के दिनों में रात्रि में होता है, परन्तु जागेश्वर में गर्मियों में और हल्द्वानी में दिन में भी रामलीला मंचन होने के उदाहरण मिलते हैं। नैनीताल के साथ अल्मोड़ा के ‘हुक्का क्लब’ की रामलीलायें काफी प्रसिद्द हैं। हल्द्वानी में उत्तराखंड सरकार के कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत और राज्य के वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी हरवीर सिंह द्वारा भी रामलीला में दशरथ व जनक के किरदार निभाए गए हैं।

पारसी थियेटर के साथ नौटंकी, ब्रज की रास तथा कव्वाली पार्टियांे का भी दिखता है प्रभाव
नैनीताल। कुमाऊं की रामलीला में बोले जाने वाले संवादों, धुन, लय, ताल व सुरों में पारसी थियेटर, नौटंकी, ब्रज की रास तथा कव्वाली पार्टियांे का भी काफी प्रभाव दिखता है, जो इसे अन्य स्थानों की रामलीलाओं से अलग भी करता है। रामलीला के दौरान राम-केवट संवाद, वासुकी विजय व श्रवण कुमार नाटकों में पारसी थियेटर की संवादों को लंबा खींचकर या जोर देकर बोलने की झलक नैनीताल की रामलीला की एक अलग विशिष्टता है।

यह संभवतया यहां अंग्रेजी राज के दौरान अंग्रेजों के भी रामलीला में शामिल होने के प्रभाव के कारण है। इसके अलावा कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) में पात्रों के संवादों में आकर्षण व प्रभावोत्पादकता लाने के लिये कहीं-कहीं स्थानीय बोलचाल के व नेपाली के सरल शब्दों के साथ ही उर्दू की गजल का सम्मिश्रण भी दिखता है, जबकि रावण के दरबार में कुमाउनी शैली के नृत्य का प्रयोग किया जाता है। कुछ जगह अब फिल्मी गाने भी लेने लगे हैं। संवादों में गायन को अभिनय की अपेक्षा अधिक तरजीह दी जाती है।

संगीत पक्ष भी मजबूत
नैनीताल। कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) में रामचरितमानस के दोहों व चौपाईयों पर आधारित गेय संवाद हारमोनियम की सुरीली धुन और तबले की गमकती गूंज के साथ दादर, कहरुवा, चांचर व रुपक तालों में निबद्ध रहते हैं। कई जगहों पर गद्य रुप में संवादों का प्रयोग भी होता है। रामलीला मंचन के दौरान नेपथ्य से गायन तथा अनेक दृश्यों में आकाशवाणी की उदघोषणा भी की जाती है।

रामलीला प्रारम्भ होने के पूर्व सामूहिक स्वर में राम वन्दना “श्री रामचन्द्र कृपालु भजमन“ का गायन किया जाता है। दृश्य परिवर्तन के दौरान खाली समय में ठेठर (विदूशक-जोकर) अपने हास्य गीतों व अभिनय कला से दर्शकों का मनोरंजन करता है।

अभिनय की पाठशाला भी
नैनीताल। कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) कलाकारों के लिए अभिनय की पाठशाला भी साबित होती रही है। कोरस गायन, नृत्य आदि में कुछ महिला पात्रों के अलावा अधिकांशतया सभी पात्र पुरुष होते हैं, लेकिन इधर नैनीताल में मल्लीताल की रामलीला में राम जैसे मुख्य एवं पुरुष पात्रों को भी बालिकाओं द्वारा निभाने की मिसाल मिलती है।

वहीं सूखाताल सहित अन्य जगहों पर बालिकाएं भी स्त्री पात्रों को निभा रही हैं। कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) दिवंगत सिने अभिनेता निर्मल पाण्डेय सहित अनेक कलाकारों की अभिनय की प्रारंभिक पाठशाला भी रही है। 

यह भी पढ़ें : सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है सूखाताल की रामलीला (Ramlila Kumaoni)

-सीमित संसाधनों के बावजूद 60 वर्षों से अनवरत हो रहा सफल संचालन
नैनीताल। यूं सरोवरनगरी में रामलीलाओं (Ramlila Kumaoni) का 1880 से चला आ रहा इतिहास है, किंतु सूखाताल क्षेत्र में वर्ष 1956 से अनवरत बेहद सीमित संसाधनों से हो रही रामलीला की अपनी अलग पहचान है।

आदर्श रामलीला एवं जन कल्याण समिति सूखाताल के तत्वावधान में आयोजित होने वाली यह रामलीला (Ramlila Kumaoni) जहां आज भी ग्रामीण क्षेत्रों की परंपरागत राग-रागिनियों युक्त कुमाउनी रामलीला (Ramlila Kumaoni) की झलक पेश करती है, वहीं साम्प्रदायिक सौहार्द के साथ ही समाज के सभी वर्गों को मंच प्रदान करने की मिसाल पेश करना भी इसकी अलग पहचान है।

बीते वर्षों में कलाकारों पर हो रही मेहनत, नयी पीढ़ी को हस्तांतरित की जा रही इस संस्कृति के कारण भी सूखाताल की रामलीला नगर की पहचान बन गयी है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : नैनीताल की रामलीला (Ramlila Kumaoni) की एक विशेषता यह भी, यहां 41 वर्षों से रामकाज कर रहे हैं भीम व विमल

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 अक्टूबर 2021। नैनीताल की रामलीला (Ramlila Kumaoni) की कई अनूठी विशिष्टताएं हैं। इन्हीं में दो व्यक्तियों भीम सिंह कार्की व विमल चौधरी का जिक्र करना भी जरूरी है। भीम सिंह पिछले 41 वर्षों से मल्लीताल की रामलीला (Ramlila Kumaoni) में रूप सज्जा का कार्य संभाल रहे हैं, जबकि करीब इतना ही समय विमल चौधरी को यहां लगातार वस्त्र सज्जा करते हुए हो गया है।

भीम सिंह बताते हैं इधर कुछ कुछ लोग इस कार्य में आ रहे हैं। रावण के पात्र कैलाश जोशी भी अपना अभिनय न होने पर मदद करते हैं, अन्यथा वह सभी पात्रों की रूप सज्जा का कार्य इतने वर्षों से लगातार रामकाज की तरह कर रहे हैं।

रामलीला (Ramlila Kumaoni) के बीच बमुश्किल वह एक दिन नृत्य नाटिका के रूप में प्रस्तुत किए जाने वाले राम-केवट संवाद के लिए निकालते हैं, जिसमें वह केवट की भूमिका में होते हैं। गौरतलब है कि नगर की तल्लीताल की रामलीला में सईब अहमद के पास रूप सज्जा की जिम्मेदारी रहती है। वह भी पूरे मनोयोग से पिछले कई दशकों से राम, रावण सहित अन्य पात्रों की रूप सज्जा करते हैं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : यहां 28 वर्षों से लगातार बन रहे रावण के किरदार के लिए बजती हैं सीटियां, महिला कलाकार वर्षों से बनती हैं राम

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 अक्टूबर 2021। सरोवरनगरी में इन दिनों शाम से लेकर मध्य रात्रि के बाद तक रामलीलाओं (Ramlila Kumaoni) का मंचन हो रहा है और धार्मिक माहौल बना हुआ है। इस बार नवरात्र नौ की जगह आठ ही दिन के लिए हैं, इसलिए हर दिन लीला का कुछ अधिक मंचन कर एक दिन की रामलीला को शेष आठ दिनों में जोड़कर रामलीला (Ramlila Kumaoni) की जा रही है।

नगर के मल्लीताल स्थित श्रीराम सेवक सभा द्वारा आयोजित हो गई रामलीला (Ramlila Kumaoni) की अपनी अलग पहचान, प्रसिद्धि और कलाकारों की वेशभूषा, मंच संयोजन, लाइटिंग एवं साउंड सिस्टम में भव्यता है। यहां कलाकारों का लंबा अनुभव भी उनके अभिनय में दिखता है। (Nainital Ramlila-Real Sisters will be Ram-Laxman, Nainital News, Ramlila Kumaoni)

उदाहरण के लिए कैलाश जोशी पिछले 28 वर्षों से यहां एवं उससे पूर्व सूखाताल की रामलीला (Ramlila Kumaoni) में रावण का अभिनय करते आ रहे हैं। ऐसे में उनके मंच पर आने पर सीटियां बजने लगती हैं। दर्शक मंच के आगे उनके चित्र व वीडियो लेने के साथ ही मंच के पीछे भी उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए लालायित रहते हैं। दर्शक ही नहीं राम-लक्ष्मण के पात्र भी यहां रावण के साथ फोटो खिंचवाते हैं। (Nainital Ramlila-Real Sisters will be Ram-Laxman, Nainital News, Ramlila Kumaoni)

इसके अलावा नैनीताल की रामलीला (Ramlila Kumaoni) की एक विशेषता यह भी है कि यहां न केवल कमोबेश सभी महिला किरदार महिला कलाकारों के द्वारा निभाए जाते हैं, वरन राम-लक्ष्मण जैसे मुख्य पात्र भी महिला कलाकारों के द्वारा निभाए जाते रहे हैं। यहां सोनी जंतवाल पिछले कई वर्षों से राम का चरित्र निभाती रही हैं। (Nainital Ramlila-Real Sisters will be Ram-Laxman, Nainital News, Ramlila Kumaoni)

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