नवीन समाचार, नैनीताल, 12 दिसंबर 2023 (Pahad ke Bete)। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे बेटे के बारे में बताने जा रहे हैं जो था तो एक घी बेचने वाले सामान्य से पिता का बेटा, लेकिन अपने असाधारण कौशल से वह अंग्रेजी दौर में ‘टिंबर किंग ऑफ इंडिया’ और उत्तराखंड का पहला अरबपति ‘मालदार’ कहलाया। देखें उत्तराखंड के पहले अरबपति देश के टिंबर किंग के उत्थान व अवसान की रोमांचक कहानी…
उसका कारोबार भारत के साथ ब्राजील में भी फैला। अपने नाम के पहले शब्द ‘दान’ को उन्होंने ‘दानवीर’ के रूप में भी बदला। उनके नाम पर उनसे ही कर्ज लेकर फिल्म भी बनी। लेकिन अंग्रेजी सरकार में मिली उनकी कामयाबी देश की आजादी के बाद ताश के पत्तों की तरह मिट्टी में मिल गयी। पूरी कहानी बड़ी ही दिलचस्प है।
1906 में जन्म ठाकुर दान सिंह बिष्ट के बारे में कहा जाता है कि वह कुमाऊं, उत्तराखंड के एक सर्वाधिक धनी-मालदार व्यक्ति होने के साथ दानवीर व परोपकारी व्यक्ति भी थे। वह उत्तराखंड के पहले अरबपति थे। लकड़ी के व्यापार में उनकी महारत के चलते उन्हें ‘टिबंर किंग ऑफ इंडिया’ कहा जाता था। उनकी संपत्ति भारत के साथ ही नेपाल तक थी।
वह एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने गरीबी से उठ कर अपना उद्योग का साम्राज्य खड़ा किया। एक दो नहीं बल्कि व्यापार के कई क्षेत्रों में अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि अंग्रेजी हुकूमत भी उनकी कद्रदान हो गई थी। लेकिन बदलते वक्त के साथ उनके खड़े किये साम्राज्य को ऐसी सरकारी दीमक लगी कि उनके जाते ही उनका नाम भी इतिहास के पन्नों में कहीं दब गया।
कहते हैं कि दान सिंह बिष्ट के पूर्वज मूलतः नेपाल के बैतड़ी जिले के थे लेकिन बाद में वे पिथौरागढ़ के क्वीतड़ गांव में आकर बस गए। उनके पिता देव सिंह बिष्ट उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में झूलाघाट में देश की आजादी से पहले अपनी छोटी सी दुकान में घी बेचा करते थे। 1906 में क्वीतड़ गांव में ही देव सिंह के घर दान सिंह नाम के असाधारण बेटे ने जन्म लिया।
जब दान सिंह की उम्र 12 साल रही होगी तभी उन्होंने लकड़ी का व्यापार करने वाले एक ब्रिटिश व्यापारी के साथ बर्मा यानी आज के म्यांमार जाने का फैसला किया। बर्मा में दान सिंह ने लकड़ी के व्यापार की बारीकियों को सीखा, इसी के बल पर उन्होंने बाद में ‘टिबंर किंग आफ इंडिया’ की उपाधि प्राप्त की।
हालांकि बर्मा से लौटने के बाद दान सिंह ने अपने पिता के साथ घी बेचने का काम किया। इसी बीच उनके पिता ने उनके साथ मिलकर एक ब्रिटिश कंपनी से बेरीनाग में एक चाय का बगान खरीद लिया और दान सिंह को चाय बागान की पूरी जिम्मेदारी सोंप दी। कहते हैं कि उस दौर में भारत ही नहीं बल्कि विश्व के चाय व्यापार में चीन का एकछत्र राज था।
दान सिंह ने चीन की चाय तैयार करने प्रक्रिया का अध्ययन किया और इसी के आधार पर अपनी चाय का उत्पादन शुरू किया। कहते हैं कि एक समय ऐसा आया जब बेरीनाग की चाय के जायके की प्रसिद्धि चीन की चाय को भी पीछे छोड़ पूरी दुनिया में फैलने लगी और बेरीनाग की चाय सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि ब्रिटेन और चीन में भी अपने स्वाद का डंका बजाने लगी।
चाय के व्यापार में सफल होने के बाद उन्होंने 1924 में ब्रिटिश इंडियन कॉपरेशन लिमिटेड नामक कंपनी से नैनीताल के ब्रेवरी-बीरभट्टी के पास शराब की भट्टी खरीदी और अपने पिता और अपने लिए बंगला, कार्यालय व कर्मचारियों के रहने के लिए आवासों का निर्माण करवाया। इस इलाके को बाद में ‘बिष्ट स्टेट’ के नाम से जाना जाने गया।
किंग आफ टिंबर के नाम से मशहूर हुए दान सिंह ने अविभाजित भारत में जम्मू कश्मीर, लाहौर, पठानकोट से वजीराबाद तक लकड़ी की बल्लियों की विशाल मंड़ियां स्थापित करने के बाद अपने लकड़ी के व्यापार को कश्मीर से लेकर बिहार व नेपाल तक फैलाया। अपने व्यापार द्वारा उन्होंने उत्तराखंड के साथ साथ देश के अन्य क्षेत्रों के लगभग 6000 लोगों को रोजगार दिया।
इस तरह देखते ही देखते घी बेचने वाले का बेटा दान सिंह बिष्ट अब दान सिंह मालदार बन चुके थे। उन्होंने धीरे धीरे पिथौरागढ़ के अलावा टनकपुर, हल्द्वानी, नैनीताल, मेघालय, असाम तथा नेपाल के बर्दिया और काठमांडू तक में अपनी संपत्तियां खरीदीं और अपने बुद्धि-कौशल और व्यापार के बारे में अपनी सोच से अंग्रेजों तक को अपना कायल कर लिया था। इस दौरान उनकी दोस्ती जिम कॉर्बेट सहित जाने माने ब्रिटिश लोगों से हो गई थी।
दान सिंह उस समय काफी चर्चा में आए थे जब 1945 में उन्होंने मुरादाबाद के राजा गजेन्द्र सिंह की अंग्रेजों द्वारा कर्ज के कारण जब्त की गयी संपत्ति को 2,35,000 रुपये में खरीद लिया था। बताया जाता है कि मालदार यह नहीं चाहते थे कि यह संपत्ति किसी अंग्रेज के कब्जे में जाए इसलिए उन्होंने इसे खरीद लिया। उनका उद्योग जगत का साम्राज्य देश की सीमा से बाहर ब्राजील सहित दूसरे देशों में भी फैलने लग गया था।
खास बात यह भी थी कि अपनी इस अमीरी को उन्होंने केवल खुद पर ही नहीं खर्च किया बल्कि इसकी मदद से उन्होंने अपने नाम के साथ दानवीर भी जोड़ लिया। आजादी के बाद जन कल्याण के लिए उन्होंने कई स्कूल, अस्पताल और खेल के मैदान बनवाए ताकि देश के बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढ़ सकें। उन्होंने 1951 में नैनीताल के तत्कालीन वेलेजली गर्ल्स स्कूल को खरीद कर इसका पुनःनिर्माण कराया और अपने पिता स्वर्गीय देव सिंह बिष्ट के नाम से यहां एक कॉलेज की शुरुआत की।
कहते हैं कि इस कॉलेज के लिए उन्होंने उन दिनों 15 लाख मूल्य की 12 एकड़ से अधिक जमीन और 5 लाख रुपये दान में दिए थे। इसी कॉलेज में तब उनके स्वर्गीय पिता देव सिंह बिष्ट के नाम से आगरा विश्वविद्यालय का डीएसबी कॉलेज और बाद में कुमाऊं विश्वविद्याालय का मुख्य परिसर डीएसबी परिसर बना।
इसके अलावा उन्होंने पिथौरागढ़ में अपनी मां और पिता के नाम से सरस्वती देव सिंह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का निर्माण किया। इस विद्यालय के पास की जमीन खरीद कर एक खेल के मैदान भी बनवाया। इसके अलावा उन्होंने अपनी मां के नाम पर छात्रों के लिए श्रीमती सरस्वती बिष्ट छात्रवृत्ति बंदोबस्ती ट्रस्ट की शुरुआत भी की। इस ट्रस्ट ने द्वितीय विश्वयुद्ध में पिथौरागढ़ के शहीद हुए सैनिकों के बच्चों को पढ़ने के लिए छात्रवृति प्रदान की।
दान सिंह ने बहुत धन संपत्ति अर्जित की, बहुत दान किये लेकिन आज उनके नाम से ज्यादा लोग परिचित नहीं हैं। इसकी वजह ये है कि उनके निधन के बाद उनका कोई पुत्र नहीं था और उनके वारिसों में एका नहीं रहा। उनकी कम्पनी डीएस बिष्ट एंड संस ने वर्ष 1956 में किच्छा में ‘बिष्ट इंडस्ट्रियल कारपोरेशन लिमिटेड’ नाम से एक शुगर मिल शुरू करने के लिए लाइसेंस लिया था।
उन्हें उम्मीद थी कि भारत सरकार किच्छा शुगर मिल के लिए मुर्शिदाबाद से लायी जा रही मशीनरी को किच्छा लाने में छूट मिल जाएगी। लेकिन उनके इस सपने पर पानी तब फिर गया जब कलकत्ता के बंदरगाह में जहाज में लदी इस मशीनरी को जहाज से नीचे उतारने की अनुमति नहीं दी गई।
मशीनरी इतनी महंगी थी कि दोबारा इसे खरीदने के लिए उन्हें कर्ज उठाना पड़ा लेकिन इसके बावजूद वह एक दिन भी किच्छा शुगर मिल को चला नही पाए। स्थिति ये हो गई कि उन्हें इस शुगर मिल के शेयर बेचने पड़े। यही घटना मालदार के तनाव और फिर उनकी बीमारी की वजह बनी।
इस तरह मालदार दान सिंह बिष्ट 10 सितंबर सन 1964 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। कारण यह भी था कि अंग्रेजी हुकूमत ने जहां उनकी व्यापार कौशलता को सम्मान दिया था लेकिन भारत की आजादी के बाद अपनी ही देश की सरकार ने उन्हें कम आंका।
दान सिंह बिष्ट के कोई बेटा नहीं था और उनकी बेटियां कम उम्र की थीं जिस वजह से उनके बाद उनकी कंपनी डीएस बिष्ट एंड संस की जिम्मेदारी उनके छोटे भाई मोहन सिंह बिष्ट और उनके बेटों ने संभाली। लेकिन किसी में भी दान सिंह जैसी व्यापारिक कौशलता नहीं थी जिस वजह से उनका खड़ा किया हुआ विशाल व्यापार साम्राज्य सिमटता चला गया और एक समाप्त हो गया।
उल्लेखनीय कि दान सिंह के जीवन पर जगमणि पिक्चर्स द्वारा एक हिंदी फिल्म भी बनाई गई थी। मालदार नामक इस फिल्म ने हिमालायी हिस्सों में धूम मचाने के साथ साथ पूरे भारत में बहुत अच्छा कारोबार किया था। खास बात यह भी थी कि दान सिंह के जीवन पर आधारित इस फिल्म को बनाने के लिए दान सिंह से ही 70,000 रुपये उधार लिए गए थे। (Pahad ke Bete)
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यह भी पढ़ें : (Pahad ke Bete) 4 दिन के प्रवास के बाद नैनीताल से रवाना हुये धौनी…
नवीन समाचार, नैनीताल, 20 नवंबर 2023 (Pahad ke Bete) । भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान (Pahad ke Bete) महेंद्र सिंह धौनी सोमवार को अपने चार दिवसीय नैनीताल प्रवास के बाद परिवार सहित वापस लौट गये हैं। बताया गया है कि यहां से पंतनगर के लिये निकले हैं, जहां से वह हवाई मार्ग से आगे अपने गंतव्य को जायेंगे। उल्लेखनीय है कि धौनी यहां गत 17 नवंबर से रह रहे थे। (Pahad ke Bete)
उल्लेखनीय है कि धौनी ने रविवार को यहीं अपनी धर्मपत्नी साक्षी का जन्म दिन मनाया और भारत एवं आस्ट्रेलिया के बीच खेला गया क्रिकेट विश्व कप का फाइनल मुकाबला भी देखा। देखें वीडिओ :
इस बीच साक्षी ने नगर की आराध्य देवी माता नयना के मंदिर में बेटी जीवा सहित दर्शन कर आर्शीवाद लिया और नैनी झील में नौकायन किया। इसके अलावा जन्मदिन के अवसर पर धौनी, उनकी पत्नी एवं बेटी आदि ने नगर के एक सैलून में अपने बाल भी बनवाये। (Pahad ke Bete)
इस दौरान उनका कहना था कि वह विश्व कप के फाइनल मुकाबले की संवेदनशीलता के दृष्टिगत मीडिया में कुछ भी कहने से बच रहे थे। इधर सोमवार को वह पूर्वाह्न करीब 11 बजे नगर से प्रस्थान कर गये। बताया गया है कि पंतनगर से उनकी आगे की उड़ान है। (Pahad ke Bete)
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यह भी पढ़ें : (Pahad ke Bete) धौनी पहुंचे नैनीताल, गूगल की वजह से हुये परेशान
नवीन समाचार, नैनीताल, 17 नवंबर 2023 (Pahad ke Bete)। क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में भारतीय टीम की कप्तानी करते हुये देश को तीनों प्रारूपों के विश्व कप जिताने वाले (Pahad ke Bete) पूर्व भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी शुक्रवार को नैनीताल पहुंचे।
पूरी तरह से अपने नैनीताल आगमन को गुप्त रखने का प्रयास करने के बावजूद (Pahad ke Bete) धौनी नगर के प्रवेश द्वार-लेक ब्रिज चुंगी पर ही पहचान लिये गये, लेकिन स्वयं गूगल मैप के भरोसे चलने की वजह से नगर की संकरी सड़कों पर भटकते रहे। आखिर मीडिया कर्मियों ने उन्हें सही रास्ता बताया और वह पंगोट की ओर रवाना हो गये। बताया गया है कि धौनी की पत्नी साक्षी का जन्मदिन 19 नवंबर को है, और धौनी का 20 नवंबर को पंतनगर से लौटने का कार्यक्रम बताया जा रहा है। लिहाजा वह यहीं अपनी पत्नी का जन्मदिन मना सकते हैं। (Pahad ke Bete)
प्राप्त जानकारी के अनुसार (Pahad ke Bete) धौनी पंजाब के नंबर की ऑडी एवं फॉच्यूनर सहित चार कारों के काफिले के साथ अपराह्न करीब सवा दो तल्लीताल लेक ब्रिज चुंगी से मल्लीताल की ओर लोवर मॉल रोड से गुजरे। इस दौरान मॉल रोड पर काफी भीड़ थी। उन्हें संभवतया पंगोट-किलबरी की ओर जाना था। लेकिन सही रास्ते की जगह वह मनु महारानी तिराहे से पहले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के आवास की ओर चले गये।
वहां से वापस लौटकर पुनः वह गलत दिशा में एटीआई की ओर और वहां केएमवीएन के मुख्यालय की ओर और वहां से फिर से लौटकर एटीआई से पॉलीटेक्निक के पैदल मार्ग की ओर चले गये। वहां मीडिया कर्मियों ने उन्हें रोककर उनका गंतव्य पूछा। उनके पंगोट बताने पर उन्हें सही मार्ग पर वापस मनु महारानी तिराहे से बारापत्थर का मार्ग बताया गया। इसके बाद वह अपने गंतव्य को रवाना हुये। इस दौरान उन्होंने मीडिया कर्मियों के साथ फोटो खिंचवाये लेकिन धन्यवाद जताने के अलावा कोई औपचारिक बात नहीं की। (Pahad ke Bete)
इससे पहले (Pahad ke Bete) धौनी के कैंची धाम में बाबा नीब करौरी के दर्शनों का कार्यक्रम भी बताया जा रहा था, किंतु नैनीताल आते हुये उनके द्वारा कैंची धाम में बाबा नीब करौरी के दर्शन किये जाने की बात सामने नहीं आयी है। गौरतलब है कि इस दौरान मॉल रोड व अन्य स्थानों पर सैलानी एवं आम लोग उन्हें पहचान कर उनके साथ फोटो खींचने की गुहार लगाते रहे, किंतु उन्होंने अपनी गाड़ी का शीशा नहीं खोला और किसी के साथ फोटो भी नहीं खिंचवाये। लोग उनकी गाड़ी के पीछे भागते रहे। (Pahad ke Bete)
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यह भी पढ़ें : (Pahad ke Bete) 20 साल बाद अपने पैतृक गांव पहुंचे महेंद्र सिंह धौनी..
नवीन समाचार, अल्मोड़ा, 15 नवंबर 2023 (Pahad ke Bete)। अपने कॅरियर की बुलंदियों पर कभी पैतृक गांव व प्रदेश का नाम न लेने वाले भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान (Pahad ke Bete) महेंद्र सिंह धोनी आखिर अपने कॅरियर के अवसान पर ही सही, 20 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद अपने पैतृक गांव पहुंच गये हैं।
(Pahad ke Bete) धोनी अपनी पत्नी साक्षी धोनी व बेटी जीवा के साथ बुधवार को अपने गांव ल्वाली अल्मोड़ा पहुंचे हैं। गांव पहुंचने पर ग्रामीणों ने उनका स्वागत किया गया। धोनी व उनकी पत्नी ने गांव में मंदिरों में ईष्ट देव की पूजा अर्चना की। देखें वीडिओ :
आज दोपहर करीब 11 बजे (Pahad ke Bete) महेंद्र सिंह धोनी गांव पहुंचे। उनके गांव पहुंचने पर ग्रामीणों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। ग्रामीणों ने गांव की सड़क में धोनी व उनकी पत्नी का पारंपरिक तरीके से ‘च्यूड़े परखकर’ स्वागत किया। जिसके बाद धोनी ग्रामीणों के साथ अपने पैतृक आवास पहुंचे। (Pahad ke Bete)
इस दौरान गांव और क्षेत्र के युवा क्रिकेट की बारीकियां सीखने के लिए (Pahad ke Bete) धोनी के पास पहुंच गए। बच्चे (Pahad ke Bete) धोनी से कहने लगे हम भी आपकी तरह क्रिकेटर बनना चाहते हैं। (Pahad ke Bete) धोनी ने उनकी हौसला अफजाई की। ग्राम प्रधान दिनेश सिंह धोनी ने बताया कि (Pahad ke Bete) महेंद्र सिंह धोनी व उनकी पत्नी साक्षी गांव पहुंचे है। उन्होंने गांव के हरज्यू मंदिर में पूजा अर्चना की। फिलहाल वह दूसरे मंदिर में पूजा अर्चना कर रहे हैं। ऐसे में ग्रामीण यह कहते भी सुने जा रहे थे कि धौनी को आखिर गांव के ग्राम देवता व कुलदेवता गांव बुलाने में सफल रहे।
ग्राम प्रधान दिनेश सिंह धोनी ने यह भी बताया कि (Pahad ke Bete) महेंद्र सिंह धोनी इससे पहले अपने परिजनों के साथ 2003 में गांव आए थे। 20 साल बाद वह दोबारा गांव आए है। उन्होंने बताया कि इस दौरान ग्रामीणों की धोनी से काफी मुद्दों पर बातचीत भी हुई। (Pahad ke Bete)
(Pahad ke Bete) महेंद्र सिंह धोनी व उनकी पत्नी के गांव पहुंचने पर ग्रामीणों में हर्ष का माहौल है। ग्रामीणों व युवाओं ने उनके साथ जमकर तस्वीरें खींची। बताया गया है कि वह बीती रात नाटाडोल में एक होमस्टे में ठहरे हुए थे। (Pahad ke Bete)
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यह भी पढ़ें : Pahad ke Bete-1 : अब भारतीय क्रिकेटर (Pahad ke Bete) महेंद्र धौनी भी बाबा नीब करौरी के दर पर, लेकिन नहीं कर सके दर्शन… आगे क्या है कार्यक्रम ?
नवीन समाचार, नैनीताल, 15 नवंबर 2023 (Pahad ke Bete)। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान (Pahad ke Bete) महेंद्र सिंह धोनी अपनी पत्नी साक्षी, बेटी जीवा और अपने कुछ दोस्तों के साथ नैनीताल जनपद पहुंचे हैं। बताया जा रहा है कि धोनी कल कैंची धाम पहुंचे थे, लेकिन दर्शन नहीं कर पाये।
वह अब आज सपरिवार कैंची धाम में बाबा नीब करौरी महाराज के दर्शन कर सकते हैं, और इसके बाद अल्मोड़ा जनपद के लमगड़ा क्षेत्र में स्थित अपने पैतृक गांव ल्वाली भी जा सकते हैं। बताया जा रहा है कि वह अगले 5 दिन यहीं रहेंगे और यहीं अपनी पत्नी साक्षी का जन्मदिन भी मनायेंगे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पूर्व भारतीय क्रिकेटर (Pahad ke Bete) महेंद्र सिंह धोनी अपनी पत्नी साक्षी, बेटी जीवा और कुछ खास दोस्तों के साथ मंगलवार सुबह इंडिगो की फ्लाइट से पंतनगर एयरपोर्ट पहुंचे। उन्होंने परिवार के साथ एयरपोर्ट पर करीब आधा घंटे का समय बिताया। इस दौरान उन्होंने एयरपोर्ट कर्मियों के साथ फोटो भी खिंचवाई। बाद में कार से नैनीताल स्थित विश्व प्रसिद्ध बाबा श्री नीब करौरी महाराज के के दर्शनों के लिए नैनीताल जनपद स्थित कैंची धाम पहुंचे।
किंतु यहां अत्यधिक भीड़ को देखते हुये अल्मोड़ा की ओर आगे बढ़ गये। हालांकि उनके नैनीताल स्थित मेस आर्मी गेस्ट हाउस में रुकने की भी चर्चायें हैं, लेकिन पुष्टि नहीं हो रही है।
गौरतलब है कि (Pahad ke Bete) धौनी के उत्तराखंउ आने का खुलासा उनकी पत्नी साक्षी धौनी द्वारा संभवतया रानीबाग के पास से नैनीताल, रानीखेत व भीमताल की दूरियां लिखे बोर्ड का फोटो डालने से हुआ। हालांकि बाद में उनकी पंतनगर एयरपोर्ट की तस्वीर भी सामने आयी। अलबत्ता उनके बारे में पूरी तरह से पुख्ता कोई सूचना नहीं है।
अल्मोड़ा एवं नैनीताल जनपद की पुलिस भी उनके बारे में मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार कयास लगा रही है। नैनीताल की तल्लीताल, भवाली, अल्मोड़ा व लमगड़ा पुलिस खबरों पर ही नजर रखे हुये हैं, और उनके दौरे को निजी दौरा बताते हुये उनके बारे में किसी भी जानकारी से पूरी तरह से इंकार कर रही है।
बताया गया है कि 20 नवंबर को इंडिगो की फ्लाइट से (Pahad ke Bete) धौनी की परिवार सहित वापसी की टिकट बुक है। इस दौरान धोनी की पत्नी साक्षी का 19 नवंबर को जन्मदिन है। माना जा रहा है कि धोनी ने पत्नी का जन्मदिन मनाने के लिए उत्तराखंड को चुना है।
उल्लेखनीय है कि (Pahad ke Bete) धोनी का पैतृक गांव अल्मोड़ा में है। उनके पिता पान सिंह 40 साल पहले अपना पैतृक गांव छोड़ रोजगार के लिए रांची चले गए और तब से वहीं रहते हैं। हालांकि पान सिंह धार्मिक आयोजनों में गांव में आते हैं। (Pahad ke Bete) धोनी को यज्ञोपवीत संस्कार पैतृक गांव ल्वाली में ही हुआ। अलबत्ता अब धोनी के चाचा घनपत सिंह भी गांव में नहीं रहते हैं। वह भी चार वर्ष पूर्व गांव से पलायन कर हल्द्वानी बस गए हैं। धौनी का परिवार इससे पहले वर्ष 2004 में गांव आया था।
भारतीय क्रिकेट टीम को विश्व कप समेत आई.सी.सी.पुरुष टी-20 विश्व कप और आई.सी.सी.चैंपियंस ट्रॉफी तीनों जिताने वाले विकिट कीपर और धुरंदर बल्लेबाज कप्तान ऑनरेरी (Pahad ke Bete) ले.कर्नल महेंद्र सिंह धौनी महेंद्र सिंह धौनी अपने कुमाऊं के निजी दौरे में पहुंचे हैं। दोपहर में दिल्ली से पंतनगर एयरपोर्ट में उतरे जहां एयरपोर्ट अथॉरिटी के हैड ने उनसे मुलाकात की और फ़ोटो खिंचवाया। इसके बाद बेहद सख्त सुरक्षा व्यवस्था के बीच कुछ बच्चों ने भी धौनी के साथ फोटो खिंचवाया।
अपनी पत्नी साक्षी धौनी और मित्रों के साथ पहुंचे (Pahad ke Bete) महेंद्र पहाड़ों की ठंड को देखते हुए जैकिट भी साथ लाए थे। पीठ में बैग टांगे (Pahad ke Bete) धौनी एयरपोर्ट से अपनी सफेद ऑडी के लिए निकले। पंजाब नंबर की धौनी की गाड़ी के साथ चार सफेद अन्य गाड़िया भी सुरक्षाकर्मियों की चल रही थी। धौनी का कारवां सीधे भवाली से गुजरते हुए कैंचीं धाम के समीप पहुंचा। बताया जा रहा है कि वहां भीड़ भाड़ को देखते हुए धौनी लौट आए।
यह भी है कि (Pahad ke Bete) धौनी ने कभी एक बार भी स्वयं को उत्तराखंड का निवासी नहीं बताया है, इससे धौनी को लेकर उत्तराखंड के लोगों में एक तरह की बड़ी नाराजगी भी है।
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यह भी पढ़ें (Pahad ke Bete) : सुबह का सुखद समाचार : नैनीताल की एक सहित उत्तराखंड की 5 हस्तियों को सरकार देगी उत्तराखंड गौरव सम्मान
नवीन समाचार, देहरादून, 7 नवंबर 2022 (Pahad ke Bete)। उत्तराखंड सरकार इस वर्ष से एक नई पहल करने जा रही है। इस पहल के तहत सरकार ने ‘उत्तराखंड गौरव सम्मान पुरस्कार के लिए पांच हस्तियों का नाम चुना है।
उत्तराखंड की 5 हस्तियों को सरकार देगी उत्तराखंड गौरव सम्मान pic.twitter.com/7atDLU5T9P
— Navin Samachar @ deepskyblue-swallow-958027.hostingersite.com (@navinsamachar) November 7, 2022
उत्तराखंड सरकार के सामान्य प्रशासन के सचिव विनोद कुमार सुमन द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि देवभूमि उत्तराखंड में उत्तराखंड गौरव सम्मान पुरस्कार वर्ष 2022 के लिए समिति द्वारा पांच हस्तियों को चुना गया है।
इनमें भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (Pahad ke Bete) अजीत कुमार डोभाल, भारतीय फिल्म जगत से कवि, लेखक, गीतकार एवं वर्तमान में भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष (Pahad ke Bete) प्रसून जोशी, पूर्व चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सेनाध्यक्ष (Pahad ke Bete) स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत, प्रदेश के दिवंगत जनकवि, लेखक, लोक गीतकार (Pahad ke Bete) स्वर्गीय गिरीश चंद्र तिवारी ‘गिर्दा’ तथा साहित्यकार व पत्रकार (Pahad ke Bete) स्वर्गीय वीरेन डंगवाल को उत्तराखंड गौरव सम्मान वर्ष 2022 के लिए चयनित किया गया है।
यह भी पढ़ें : गौरवान्वित हुआ नैनीताल-उत्तराखंड, पहाड़ के बेटे (Pahad ke Bete) ब्रिगेडियर अजय सिंह नेगी को दूसरी बार राष्ट्रपति का विशिष्ट सेवा पदक
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 26 जनवरी 2022। इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर गढ़वाल राइफल्स के ब्रिगेडियर (Pahad ke Bete) अजय सिंह नेगी को दूसरी बार राष्ट्रपति के विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया है। ब्रिगेडियर नेगी का नैनीताल से खास रिश्ता है।
8 फरवरी 1966 को जन्मे (Pahad ke Bete) ब्रिगेडियर अजय सिंह नेगी का परिवार नैनीताल के आल्मा कॉटेज क्षेत्र में रहता है। उनके पिता स्वर्गीय भगवत सिंह नेगी राजकीय पॉलिटेक्निक नैनीताल में यांत्रिक प्रशिक्षक और माता बसंती नेगी नगर के स्नोभ्यू स्थित विद्यालय में शिक्षिका थीं। उनकी पढ़ाई यहीं हुई।
उन्होंने नगर के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय से 1980 में हाई स्कूल और 1982 में इंटरमीडिएट प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया और फिर यहीं डीएसबी परिसर से 1984 में बीएससी की। इस दौरान वह एनसीसी से भी जुड़े थे और सीनियर अंडर ऑफिसर भी रहे। स्कूल और कॉलेज के दिनों में वह हॉकी, क्रिकेट और फुटबॉल भी खेलते थे। यहां एमएससी करने के दौरान ही 1985 में उनका चयन सीडीएस परीक्षा के माध्यम से आईएमए के लिए हुआ।
वर्तमान में दिल्ली में तैनात (Pahad ke Bete) ब्रिगेडियर नेगी अपने साढ़े तीन दशक के सेवाकाल के दौरान उन्होंने जम्मू कश्मीर में कारगिल लद्दाख के साथ ही अन्य सेक्टर में कई सैन्य अभियानों का नेतृत्व करते हुए न केवल आतंकियों का सफाया किया बल्कि मणिपुर सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में भी कई संगठनों को भारी नुकसान पहुंचाया। इन्हीं उपलब्धियों के कारण उन्हें दूसरी बार राष्ट्रपति के विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : नैनीताल से जुड़े दो लेखकों-(Pahad ke Bete) देवेंद्र मेवाड़ी व नमिता गोखले को मिले साहित्य अकादमी पुरस्कार
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 30 दिसंबर 2021 (Pahad ke Bete) । वर्ष 2021 के साहित्य अकादमी पुरस्कार दो ऐसे लेखकों को मिले हैं, जो नैनीताल से संबंधित हैं। केंद्रीय साहित्य अकादमी ने नैनीताल के कालाआगर गांव में जन्मे, पले व बढ़े बाल-विज्ञान लेखक (Pahad ke Bete) देवेंद्र मेवाड़ी को उनके नाटक ‘नाटक नाटक में विज्ञान’ के लिए बाल साहित्य पुरस्कार तथा नैनीताल में पली, बढ़ी व पढ़ी अंग्रेजी लेखिका नमिता गोखले को उनके अंग्र्रेजी उपन्यास ‘थिंग्स टु लिव बिहाइंड’ के लिए अंग्रेजी साहित्य की श्रेणी में यह पुरस्कार देने की घोषणा की है।
(Pahad ke Bete) उल्लेखनीय है कि देवेंद्र मेवाड़ी का जन्म 7 मार्च 1944 को उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के कालाआगर गांव में एक किसान-पशुपालक किशन सिंह मेवाड़ी के घर में हुआ था। पहाड़ की चोटी के इस गांव के लोग गर्मियों के छह माह यहां और सर्दियों के छह माह ककोड़ गांव में बिताते थे। इसलिए इन दोनों स्थानों पर प्रारंभिक से लेकर इंटर तक की शिक्षा के बाद देवेंद्र ने नैनीताल के डीएसबी परिसर से वनस्पति विज्ञान में एमएससी व हिंदी में एमए तथा बाद में राजस्थान विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा किया।
(Pahad ke Bete) 73 वर्षीय देवेंद्र मेवाड़ी ‘मेरी यादों का पहाड़’ जैसी चर्चित आत्मकथात्मक संस्मरण एवं बच्चों को किस्सागोई के अंदाज में विज्ञान की बारीकियों को सरल शब्दों में किस्सा गोई द्वारा अनूठे अंदाज में समझाने के लिए प्रसिद्ध हैं।
उन्होंने बच्चों के लिए सौर मंडल की सैर, विज्ञान और हम, विज्ञाननामा, मेरी विज्ञान डायरी, मेरी प्रिय विज्ञान कथाएं, फसलें कहें कहानी, सूरज के आंगन में, सौरमंडल की सैर, विज्ञान बारहमासा, विज्ञान जिनका ऋणी है और पशुओं की प्यारी दुनिया सहित बीस से अधिक पुस्तकों का संपादन किया है।
(Pahad ke Bete) वहीं नमिता गोखले की बात करें तो उनके नाना सीडी पांडे राज्यसभा के सांसद थे और चिड़ियाघर रोड पर बक स्कूल के पास रहते थे। नैनीताल के सेंट मेरीज कॉन्वेंट कॉलेज से वह नमिता पंत के नाम से पढ़ी हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के कानून मंत्री एचआर गोखले के पुत्र से विवाह किया, जिसके बाद वह नमिता गोखले हो गईं।
उन्हें जिस पुस्तक पर पुरस्कार मिला है, उसका लोकार्पण 2015 में नैनीताल के प्रसादा भवन में आयोजित हुए कुमाऊं लिटरेरी फेस्टिवल में अल्मोड़ा के मूल निवासी जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेश पंत के हाथों हुआ था।
(Pahad ke Bete) पंत ने इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद भी किया था। वह हिमालयन इकोज से भी जुड़ी हैं और यहां आती रहती हैं। बताया गया है उनके साहित्य अकादमी पुरस्कार जीतने वाले उपन्यास की विषयवस्तु देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौर के नैनीताल और कुमाऊं से ही संबंधित है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें (Pahad ke Bete) : देश के प्रख्यात भूगर्भ शास्त्री, कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पद्मविभूषण प्रो. वल्दिया का देहावसान
नवीन समाचार, नैनीताल, 29 सितंबर 2020। देश के प्रख्यात भूगर्भ शास्त्री पर्यावरणविद् पद्मविभूषण व पद्मश्री तथा कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति (Pahad ke Bete) प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया का मंगलवार को 85 वर्ष की आयु में असामयिक निधन हो गया। उनके निधन के समाचार से कुमाऊं विश्वविद्यालय, प्रो. वल्दिया द्वारा
(Pahad ke Bete) यहां स्थापित भूविज्ञान विभाग में शोक की लहर छा गई है। उनके निधन पर कूटा यानी कुमाऊं विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की ओर से अध्यक्ष प्रो. ललित तिवारी, महासचिव डा. सुचेतन साह, डा. विनय कुमार, डा. दीपक कुमार, डा. दीपिका गोस्वामी के साथ ही प्रो. राजीव उपाध्याय, डा. बीएस कोटलिया, डा. आशीष तिवारी व विधान चौधरी आदि ने गहरा दुःख व्यक्त किया है।
(Pahad ke Bete) उल्लेखनीय है कि प्रो. वल्दिया मूलतः पिथौरागढ़ जनपद के निवासी हैं, और वर्तमान में बंगलुरू में ही रहते थे। परंतु उनका नैनीताल नगर में भी लांग व्यू क्षेत्र में आवास है, जहां वह अक्सर गर्मियों में आते रहते थे।
भूगर्भविद्, वैज्ञानिक पद्म भूषण (Pahad ke Bete) खड्ग सिंह वल्दिया का जीवन परिचय
माताः श्रीमती नन्दा वल्दिया, पिताः स्व. देव सिंह वल्दिया, जन्मतिथि: 20 मार्च 1937, जन्म स्थान: कलौ (म्यामार), पैतृक गाँव: घंटाकरण जिला-पिथौरागढ़, पारिवारिक स्थिति- एक विवाहित पुत्र, शिक्षा: एमएससी., पीएचडी
प्रमुख उपलब्धियाँ : 1965-66 में अमेरिका के जान हापकिन्स विश्वविद्यालय के ‘पोस्ट डाक्टरल’अध्ययन और फुलब्राइट फैलो। 1969 तक लखनऊ विवि में प्रवक्ता। राजस्थान विवि, जयपुर में रीडर। 1973-76 तक वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियॉलॉजी में वरिष्ट वैज्ञानिक अधिकारी। 1976 से 1995 तक कुमाऊँ विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर रहे।
1981 में कुमाऊँ विवि के कुलपति तथा 1984 और 1992 में कार्यवाहक कुलपति रहे। 1995 से जवाहरलाल नेहरू सेन्टर फार एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च केन्द्र बंगलौर में प्रोफेसर हैं। मध्य हिमालय की भूवैज्ञानिक संरचना से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण अध्ययनों के अध्येता।
(Pahad ke Bete) उल्लेखनीय कार्य के लिए 1976 में ‘शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार’ से सम्मानित। जियॉलाजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा ‘रामाराव गोल्ड मैडल’। 1977-78 में यूजीसी द्वारा राष्ट्रीय प्रवक्ता सम्मान। राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी द्वारा ‘एसके मित्रा एवार्ड’ और डीएन वाडिया मैडल। 1997 में भारत सरकार द्वारा ‘नेशनल मिनरल अवार्ड एक्सीलेंस’।
दो दर्जन से अधिक विशेषज्ञों की राष्ट्रीय समितियों, परिषदों, कमेटियों के सदस्य हैं। 1983 में प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य और योजना आयोग की अनेक उप समितियों के सदस्य रहे। 2 फरवरी से 2003 इन्सा के राष्ट्रीय प्रोफेसर।
हिमालय की ऐतिहासिक व भूगर्भीय परतें खोलने में रहा है (Pahad ke Bete) प्रो. वल्दिया का बड़ा योगदान
-पहाड़ पर मैग्नेसाइट, खड़िया आदि खनिजों की खोज, प्रदेश में बांधों के निर्माण, राज्य के भू-क्षरण संभावित क्षेत्रों की पहचान व बचाव पर रहा है व्यापक कार्य
-कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर में भूविज्ञान विभाग की स्थापना और इसे सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज के स्तर तक पहुंचाने में रहा है अप्रतिम योगदान
(Pahad ke Bete) नवीन जोशी, नैनीताल। मंगलवार को 85 वर्ष की उम्र में दिवंगत हुए ख्यातिलब्ध भूविज्ञानी, शिक्षाविद्, लेखक और पर्यावरणविद् (Pahad ke Bete) प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया का देश के साथ ही उत्तराखंड के लिए कई बड़े उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
(Pahad ke Bete) हिमालय पर्वत के स्थान पर करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व टेथिस महासागर की उपस्थिति होने, और लघु हिमालय के पहाड़ों की संस्तरिकी के अन्य पहाड़ों से इतर उल्टा यानी कम उम्र पहाड़ों के नीचे और अधिक पुराने पहाड़ों के उनके ऊपर होने जैसी अनूठी बातों को दुनिया के समक्ष लाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है।
(Pahad ke Bete) उत्तराखंड में मैग्नेसाइट तथा खड़िया व स्लेट आदि खनिजों की उपस्थिति से भी उन्होंने दुनिया को रूबरू करवाया, तथा यहां की कमजोर भू संरचना के मद्देनजर भूधंसाव व भूक्षरण संभावित स्थानों की पहचान तथा इनसे बचने के उपाय एवं इनके बीच बांधों के निर्माण पर उनका अप्रतिम योगदान रहा है। कुमाऊं विवि में उनके द्वारा स्थापित भूविज्ञान विभाग आज उच्चानुशील केंद्र (सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज) के स्तर तक पहुंच गया है।
(Pahad ke Bete) 20 मार्च 1937 में प्रदेश के पिथौरागढ़ जिले में जन्मे (Pahad ke Bete) वल्दिया के बारे में बताया जाता है कि वह छात्र जीवन से ही नए शोधों व खोजों में लगे रहते थे। 1976 में कुमाऊं विवि के तत्कालीन डीएसबी संगठक महाविद्यालय में मात्र 39 वर्ष की आयु में प्रोफेसर बनने से पूर्व ही वह राजस्थान विवि उदयपुर व वाडिया इंस्टिट्यूट देहरादून में उपनिदेशक रह चुके हैं।
तथा 1959 में लखनऊ विवि से एमएससी करने और वहीं प्रवक्ता बन जाने के दौरान ही उन्होंने पिथौरागढ़ की चंडाक पहाड़ी व गंगोलीहाट क्षेत्रों में ‘स्ट्रोमेटोलाइट्स” नाम के एक प्रकार के शैवाल की पहचान कर उसके आधार पर करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व हिमालय के पहाड़ों की जगह हजारों मीटर गहरा टेथिस महासागर होने की परिकल्पना कर उसकी विकास यात्रा का अध्ययन करने लगे थे।
1961-62 में 25 वर्ष की उम्र से ही उनके शोध पत्र देशी-विदेशी विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे थे। वे ही पहाड़ों में मैग्नेसाइट खनिज की उपलब्धता को दुनिया के समक्ष अपने शोध पत्रों के माध्यम से लाए, जिसके बाद पिथौरागढ़ व अल्मोड़ा में इसकी फैक्टरियां लगीं।
नैनीताल की नैनी झील के अलावा कश्मीर की डल व भोपाल की झीलों में हुए संरक्षण के कार्य उन्हीं के शोधों के परिणामस्वरूप बताए जाते हैं। डीएसबी में 1975 में बने भूविज्ञान विभाग में अपने शोध छात्रों के साथ इकलौते कक्ष के वर्षा के दौरान पानी चूने के कारण छाते लेकर शोध कार्य करने के दौर से
लेकर 2012 में इसे उच्चानुशील केंद्र बनाने तक को उनके विभाग के लोग उन्हीं का योगदान बताने में नहीं झिझकते। 1995 तक वह कुमाऊं विवि में कार्यरत रहे, तथा इस दौरान भूविज्ञान विभागाध्यक्ष तथा कुमाऊं विवि के कार्यकारी कुलपति भी रहे।
प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकारों की समिति के सदस्य, विज्ञान के क्षेत्र के बड़े पुरस्कार जीएस मोदी, हिंदी सेवी सम्मान एवं पद्मश्री (2007) सम्मानों से वह पूर्व में ही नवाजे जा चुके हैं। वर्तमान में जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च में कार्यरत प्रो. वल्दिया अभी बीते वर्ष तक भी भी पहाड़ से जुड़े हुए थे। वह हर वर्ष गर्मियों में यहां एलपीएस के पास स्थित अपने आवास पर रहने आते थे, तथा पिथौरागढ़ जिले में बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए कार्यशालाएं आयोजित करते थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के बम धमाकों में खोई श्रवण शक्ति
नैनीताल। शुरुआती जीवन में बेहद अभावों में रहकर भी ऊंचाई पर पहुंचे (Pahad ke Bete) प्रो. वल्दिया के दादा म्यांमार (तत्कालीन वर्मा) में राजधानी रंगून के पास कलावा नाम के स्थान पर कार्यरत थे। बताया जाता है कि 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान द्वारा रंगून पर की गई भीषण बमबारी के धमाकों की वजह से उनकी श्रवण शक्ति काफी क्षींण हो गई।
प्रो. वल्दिया की कुछ प्रमुख बातें
-भारतीय महाद्वीप एशिया महाद्वीप को हर वर्ष 54 सेमी की दर से उत्तर दिशा की ओर धकेल रहा है।
-हिमालय के पहाड़ प्रतिवर्ष 18 मिमी की दर से ऊपर उठ रहे हैं।
-नेपाल के पहाड़ तीन से पांच मिमी प्रतिवर्ष की दर से ऊपर उठ रहे हैं।
-छोटे भूकंपों से ही भूगर्भ के भीतर की ऊर्जा बाहर निकलती रहती है, तथा अंदर का तनाव कुृछ हद तक कम होता रहता है।
-प्रकृति मानव के विकास के बीच नहीं आ रही वरन मानव प्रकृति के बीच आ रहा है, इस कारण केदारनाथ जैसी आपदाएं आ रही हैं। -नदियां वर्षों बाद वापस अपने मार्ग पर लौट कर आती हैं, इसलिए नदियों के करीब मानव को प्रतिरोध या अपनी बस्तियां, सड़क आदि नहीं बनानी चाहिए।
मोदी से विज्ञान जगत में निराशा, पर आशा बाकी: पद्मभूषण वल्दिया
-उत्तराखंड की बजाय कर्नाटक की ओर से पुरस्कार मिलने के सवाल को टाल गए
नैनीताल। अभी हाल में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों देश का तीसरा सर्वाेच्च पद्मभूषण पुरस्कार प्राप्त करने वाले भू वैज्ञानिक (Pahad ke Bete) प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश के विज्ञान जगत में निराशा का माहौल है। विज्ञान जगत को ना तो सरकार से दिशा-निर्देश ही प्राप्त हो रहे हैं, और ना अपेक्षित आर्थिक सहायता ही मिल पा रही है।
पीएम मोदी ने स्वयं भी जो घोषणाएं की थीं, वह भी पूरी नहीं हो रही हैं। विज्ञान से जुड़े अनेक संस्थानों में एक-डेढ़ वर्ष से निदेशक व महानिदेशकों की नियुक्ति तक नहीं हो रही है। अलबत्ता, उन्होंने जोड़ा कि वह आशावादी हैं कि मोदी के नेतृत्व में जिस तरह देश अन्य दिशाओं में तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसी तरह विज्ञान जगत के लिए भी ‘अच्छे दिन” आएंगे।
(Pahad ke Bete) प्रो. वल्दिया रविवार (12.04.2015) को मुख्यालय में मीडिया कर्मियों के सवालों के जवाब दे रहे थे। उन्होंने 14 वर्षों में उत्तराखंड के नियोजन से भी स्वयं को असंतुष्ट बताया। अलबत्ता उत्तराखंड के बजाय कर्नाटक की ओर से पद्मभूषण हेतु नाम जाने पर सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा,
और स्वयं के वर्ष में चार माह उत्तराखंड में ही कार्य करने व यहां के लोगों की शुभकामनाओं से एक साधन विहीन व्यक्ति (स्वयं) को सम्मान मिलने की बात कही, लेकिन उनकी जुबां से यह दर्द भी बाहर आया कि जिसे समाज ने भुला दिया था, उसे पुरस्कार के योग्य समझा गया।
हिमालयी क्षेत्र के लिए उन्होंने आपदाओं का सामना करने के लिए नीतियां बनाने व उनका ठीक से क्रियान्वयन करने, जल प्रवाह को बढ़ाने के लिए पहाड़ों पर भी बिना देर किए बड़े पैमाने पर वर्षा जल संग्रहण के प्रयास करने तथा वन संपदा के संरक्षण को स्थानीय जन समुदाय से जोड़ने की आवश्यकता जताई।
प्रो. वल्दिया के दो आलेख:
1. अपने आप नहीं आ रही, बुलाई जा रही हैं आपदाएं !
नवीन जोशी, समय लाइव, नैनीताल। दैवीय आपदा के बारे में जहां धारी देवी की मूर्ति को उनके स्थान से हटाने और प्रदेश में बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं बनाने जैसे अनेक कारण गिनाए जा रहे हैं, वहीं भू-वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि आपदाएं स्वयं नहीं आ रही हैं, वरन बुलाई जा रही हैं। आपदा मनुष्य के पास नहीं आ रहीं, वरन मनुष्य आपदा के पास स्वयं जा रहा है।
दूसरे विश्व में बहुचर्चित ग्लोबल वार्मिग का सर्वाधिक असर पहाड़ों पर हो रहा है।भू-वैज्ञानिक पद्मश्री प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया के अनुसार करीब दो करोड़ वर्ष पुराना हिमालय दुनिया का युवा पहाड़ कहा जाता है। अपने दौर के महासमुद्र टेथिस की कमजोर बुनियाद पर जन्मा हिमालय आज भी युवाओं की तरह ऊंचा उठ रहा है। उन्होंने बताया कि भारतीय भू-प्लेट हर वर्ष करीब 55 मिमी की गति से उत्तर दिशा की ओर बढ़ रही है। ऐसे में ऊंचे उठते पहाड़ अपने गुरुत्व केंद्र को संयत रखने की कोशिश में अतिरिक्त भार को नीचे गिराते रहते हैं।
दूसरी ओर पानी अपनी प्रकृति के अनुसार इसे नीचे की ओर मैदानों से होते हुए समुद्र में मिलाता रहता है। ऐसे में ऊंचे उठते पहाड़ों और नीचे की ओर बहते पानी के बीच हमेशा से एक तरह की जंग चल रही है, और पहाड़ कमजोर होते जा रहे हैं। नदियों के किनारे की रेत, राख, कंकड़-पत्थर व बालू आदि की भूमि पर अच्छी कृषि होने के साथ ही इसके कमजोर होने और कम श्रम से ही कार्य हो जाने के लालच में पहाड़ पर अधिकतर सड़कें नदियों के किनारे ही बनाई जाती हैं।
सड़कों से पानी को हटाने का प्रबंध भी नहीं किया जाता, इस कारण यहां लगातार पानी के रिसते जाने और वाहनों के भार से भूस्खलन होते जाते हैं। सड़कों के किनारे ही बाजार, दुकानें आदि व्यापारिक गतिविधियां विकसित होती हैं। यहां तक कि नदियों के पूर्व में रहे प्रवाह क्षेत्रों में भी भवन बन गए हैं, और गत दिनों आई जल पल्रय में देखें तो सर्वाधिक नुकसान नदियों के किनारे के क्षेत्रों और सड़क के नदी की ओर के भवनों को ही पहुंचा है।
प्रो. खड्ग सिंह वल्दिया का कहना है कि पहाड़ पर अतिवृष्टि, भूस्खलन और बाढ़ का होना सामान्य बात है, लेकिन इनसे होने वाला नुकसान इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितनी बड़ी आबादी के क्षेत्रों में होता है। आबादी क्षेत्रों में निर्बाध रूप से निर्माण हो रहे हैं। सरकार जियोलॉजिकल सव्रे आफ इंडिया की रिपोटरे की भी अनदेखी करती रही है।
नदियों के छूटे पाटों में यह भुलाकर भवन बन गए हैं कि वह वापस अपने पूर्व मार्ग (फ्लड वे) में नहीं लौटेंगी। लेकिन इस बार ऐसा ही हुआ, और अकल्पनीय नुकसान हुआ। वहीं केदारनाथ मंदिर इस लिए बच गया कि यह मंदाकिनी नदी के पूर्वी और पश्चिमी पथों के बीच ग्लेशियरों द्वारा छोड़ी गई जमीन-वेदिका (टैरेस) पर बना हुआ है, जबकि अन्य निर्माण नदी के पूर्व पथों पर बने थे। (राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली संस्करण, जून 29, 2013,शनिवार, पेज-15)
2. हर वर्ष दो सेमी तक ऊपर उठ रहे हैं हम
-एशिया को 54 मिमी प्रति वर्ष उत्तर की ओर धकेल रहा है भारत
नवीन जोशी, नैनीताल। शीर्षक पड़ कर हैरत में न पड़ें । बात हिमालय क्षेत्र के पहाड़ों की हो रही है। शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्राप्त प्रख्यात भू वैज्ञानिक पद्मश्री प्रो. केएस वाल्दिया का कहना है कि भारतीय प्रायद्वीप एशिया को 54 मिमी की दर से हर वर्ष उत्तर की आेर धकेल रहा है। इसके प्रभाव में हिमालय के पहाड़ प्रति वर्ष 18 मिमी तक ऊंचे होते जा रहे हैं।
प्रो. वल्दिया ने कहना है कि भारतीय प्रायद्वीपीय प्लेट 54 मिमी से चार मिमी कम या अधिक की दर से उत्तर दिशा की ओर सरक रही है, इसका दो तिहाई प्रभाव तो बाकी देश पर पड़ता है, लेकिन सवाधिक एक तिहाई प्रभाव यानी 18 मिमी से दो मिमी कम या अधिक हिमालयी क्षेत्र में पड़ता है। मुन्स्यारी से आगे तिब्बतन—हिमालयन थ्रस्ट पर भारतीय व तिब्बती प्लेटों का टकराव होता है।
कहा कि यह बात जीपीएस सिस्टम से भी सिद्ध हो गई है। उत्तराखंड के बाबत उन्होंने कहा कि यहां यह दर 18 से 2 मिमी प्रति वर्ष की है। कहा कि न केवल हिमालय वरन शिवालिक पर्वत श्रृंखला की ऊंचाई भी बढ़ रही है। उन्होंने नेपाल के पहाड़ों के तीन से पांच मिमी तक ऊंचा उठने की बात कही।
उत्तराखंड के बाबत उन्होंने बताया कि यहां मैदानों व शिवालिक के बीच हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट, शिवालिक व मध्य हिमालय के बीच मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी), तथा मध्य हिमालय व उच्च हिमालय के बीच मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) जैसे बड़े भ्रंस मौजूल हैं। इनके अलावा भी नैनीताल से अल्मोड़ा की ओर बढ़ते हुए रातीघाट के पास रामगढ़ थ्रस्ट, काकड़ीघाट के पास अल्मोड़ा थ्रस्ट सहित मुन्स्यारी के पास सैकड़ों की संख्या में सुप्त एवं जागृत भ्रंस मौजूद हैं। हिमालय की ओर आगे बढ़ते हुए यह भ्रंस संकरे होते चले जाते हैं।
लेकिन भू गर्भ में ऊर्जा आशंकाओं से कम
नैनीताल। प्रो. वल्दिया का यह खुलासा पहाड़ वासियों के लिये बेहद सुकून पहुंचाने वाला हो सकता है। अब तक के अन्य वैज्ञानिकों के दावों से इतर प्रो. वल्दिया का मानना है कि छोटे भूकंपों से भी पहाड़ में भूकंप की संभावना कम हो रही है। जबकि अन्य वैज्ञानिकों का दावा है कि 1930 से हिमालय के पहाड़ों में कोई भूकंप न आने से भूगर्भ में इतनी अधिक मात्रा में ऊर्जा का तनाव मौजूद है जो आठ से अधिक मैग्नीट्यूड के भूकंप से ही मुक्त हो सकता है।
इसके विपरीत प्रो.वाल्दिया का कहना है कि हिमालय में सर्वाधिक भूकंप आते रहते हैं। इनकी तीव्रता भले कम हो, लेकिन इस कारण भूगर्भ से ऊर्जा निकलती जा रही है। इसलिये भूगर्भ में उतना तनाव नहीं है, जितना कहा जा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रकृति मां की तरह है, वह कभी किसी का नुकसान नहीं करती। भूकंप व भूस्खलन अनादि काल से आ रहे हैं।
इधर जो नुकसान हो रहा है वह इसलिये नहीं कि प्राकृतिक आपदाएं आबादी क्षेत्र में आ रही हैं, वरन मनुष्य ने आपदाओं के स्थान पर आबादी बसा ली हैं। कहा कि वैज्ञानिक व परंपरागत सोच के साथ ही निर्माण करें तो आपदाओं से बच सकते हैं। सड़कों के निर्माण में भू वैज्ञानिकों की रिपोर्ट न लिये जाने पर उन्होंने नाराजगी दिखाई।
अपरदन बढऩे का है खतरा
नैनीताल। पहाड़ों के ऊंचे उठने के लाभ—हानि के बाबत पूछे जाने पर कुमाऊं विवि के भू विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत का कहना है कि इस कारण पहाड़ों पर अपरदन बढ़ेगा। यानी भू क्षरण व भूस्खलनों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। पहाड़ों के ऊंचे उठते जाने से उनके भीतर हरकत होती रहेगी। वह बताते हैं कि इस कारण ही विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट की ऊंचाई 8,848 मीटर से दो मीटर बढ़कर 8,850 मीटर हो गई है। यह जलवायु परिवर्तन का भी कारक हो सकता है ।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 14 2018। भारत तिब्बत सीमा पुलिस के 34 पर्वतारोहियों का एक दल शुक्रवार को सिक्किम के लिंगडुम, गैंगटॉक से अब तक किसी के द्वारा भी फतह न की जा सकी 6,270 मीटर ऊंची चोटी को छूने के लिए निकला है। खास बात यह है कि इस ’ईस्टर्न फ्रंटियर माउंटेनियरिंग एक्सपेडीशन-आईटीवीपी विजय’ दल का नेतृत्व नैनीताल निवासी आईटीबीपी के डिप्टी कमांडेंट परीक्षित साह कर रहे हैं। साथ ही इस दल में नैनीताल के एक अन्य पर्वतारोही सुमित साह भी हैं।
आईटीबीपी के डीआईजी केडी द्विवेदी ने उन्हें आईटीबीपी का ध्वज प्रदान कर इस बेहद कठिन मिशन के लिए रवाना किया है। दल के सदस्यों को इस मिशन के लिए उत्तराखंड के ऑली में पिछले 30 दिनों से कड़ा प्रशिक्षण दिया जा रहा था। बताया गया है कि पूर्वी हिमालय की यह चोटी तकनीकी रूप से अत्यंत कठिन प्राकृतिक चोटी है।
उल्लेखनीय है कि परीक्षित नगर के सेंट जोसफ कॉलेज के छात्र रहे हैं, और वर्तमान में आईटीबीपी की हल्दूचौड़ यूनिट में कार्यरत हैं। उनके दादा स्वर्गीय पूरन लाल साह नगर के अपने समय के अच्छे खिलाड़ी और ‘रेंजर साहब’ के नाम प्रसिद्ध रहे हैं।
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अंडर द स्काई का पार्ट-2 भी उत्तराखंड में फिल्माएंगे डा. एहसान
नवीन जोशी, नैनीताल। कम ही लोग होते हैं जो अपने घर से दूर, दुनिया में प्रसिद्ध होते हैं, लेकिन बाद में घर लौटकर अपनी प्रतिभा का लाभ अपनी मिट्टी को दिलाते हैं।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से निकलकर मुंबई फिल्म उद्योग में देश-दुनिया में अनेक फिल्म फेस्टिवल में आखिरी मुनादी व अंडर द स्काई जैसी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार विजेता स्तर की फिल्म बनाने तथा छोटे पर्दे पर ससुराल सिमर का, प्रतिज्ञा व माता की चौकी जैसे चर्चित शो लिख कर नाम कमाने वाले प्रदेश के बेटे, राष्ट्रीय नाटय़ विद्यालय से स्नातक व उत्तराखंड के इतिहास विषय में पीएचडी की डिग्री प्राप्त डा. एहसान बख्श फिर उत्तराखंड में काम करने जा रहे हैं।
उत्तराखंड के बच्चों को ही लेकर उत्तराखंड में ही बनायी गयी फिल्म अंडर द स्काई को देश के साथ ही दुनिया के फिल्म मेलों में मिली अपार सफलता से उत्साहित एहसान एक बार फिर उत्तराखंड के बच्चों को लेकर इसी फिल्म का पार्ट-2 बनाने जा रहे हैं।
मुख्यालय में 15 से 17 अप्रैल 2017 के बीच नैनीताल में आयोजित देश के पहले स्टूडेंट फिल्म फेस्टिवल-कौतिक में पहुंचे एहसान ने यह खुलासा किया। बताया कि उनकी उत्तराखंड में ही फिल्माई गयी फिल्म ‘आखिरी मुनादी’ देश के साथ ही दुनिया के फ्रांस, इटली, जर्मनी, पोलेंड व रोम आदि के 14 अंतराष्ट्रीय फिल्म मेलों में नामांकित और दिखाई गयी।
वहीं ‘अंडर द स्काई’ भी दुनिया के सबसे बड़े बच्चों की फिल्मों के मेले हॉलेंड के सिनेकिड और चेकोस्लोवाकिया के जिलीन तथा भारत के राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव में दिखाई गयी, तथा उत्तराखंड में एक लाख बच्चों ने यह फिल्म देखी। इसकी सफलता को देखकर वे बच्चों के द्वारा पहाड़ के पर्यावरण व जंगलों को बचाने के संदेश के साथ इस फिल्म का दूसरा भाग शीघ्र फिल्माने जा रहे हैं। इसके लिए शीघ्र पहाड़ के बच्चों के ऑडीशन लिये जायेंगे।
एक साथ दो ‘यूके’ में दिखाई जाएगी हेमंत व चारु की फिल्म-बद्री-द क्लाउड, पार्ट-टू कुमाऊं में बनेगी
नैनीताल। बड़े पर्दे पर कृष जैसी मल्टी स्टारर फिल्म और छोटे परदे पर ऑफिस-ऑफिस से चर्चित हुए ‘पांडे जी’ यानी प्रदेश के पिथौरागढ़ निवासी हेमंत पांडे और हालिया प्रदर्शित ऐतिहासिक शाहकार-मोहनजोदारो में दिखे नैनीताल निवासी कलाकार चारु तिवारी की फिल्म बद्री-द क्लाउड आगामी 21 अप्रैल को एक साथ एक सुंदर संयोग के साथ दो यूके, उत्तराखंड और यूनाइटेड किंगडम में एक साथ दिखने जा रही है। इसके साथ ही इस फिल्म के पार्ट-टू का खाका भी खींच लिया गया है।
खास बात यह भी होगी जहां इस फिल्म का पहला संस्करण प्रदेश के गढ़वाल मंडल में फिल्माया गया था, वहीं दूसरा संस्करण ‘बद्री-द मिस्ट’ कुमाऊं मंडल में फिल्मायी जाएगी। फिल्म के कलाकार हेमंत पांडे व निर्माता-निर्देशन संजय सिंह ने सोमवार को राष्ट्रीय सहारा को बताया कि बद्री-द क्लाउड 21 को उत्तराखंड में के साथ यूनाइटेड किंगडम के छह सिनेमाघरों प्रदर्शित की जाएगी।
पहली फिल्म की तरह ही दूसरी बद्री में भी हेमंत उत्तराखंड घूमने आये युवाओं के साथ गाइड की भूमिका में होंगे। फिल्म में कुमाऊं के नैनीताल, अल्मोड़ा, कौसानी, रानीखेत, पिथौरागढ़ व मुनस्यारी आदि पर्यटक स्थलों की खूबसूरती को उकेरा जाएगा। उत्तराखंड फिल्म विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हेमंत ने कहा कि वे नये मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से एक बार मिल चुके हैं। आगे बोर्ड के कायरे पर नयी सरकार को निर्णय लेना है।