जैव विविधता दिवस पर विशेष: 50 वर्षों से भी कम समय में आधी वैश्विक प्रजातियों के नष्ट होने की संभावना
नवीन समाचार, नैनीताल, 22 मई 2023। संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा जैव विविधता के विषय को समझाने और जागरूकता के लिए प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं विश्वविद्यालय के शोध निदेशक प्रो. ललित तिवारी ने विस्तृत जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी के विभिन्न अवयवों के संतुलन को बनाए रखने के लिए जैव विविधता अति आवश्यक है। पारिस्थितिकी तंत्र जो मानव जीवन के कल्याण से जुड़ी सेवाओं की आधार है। यह भी पढ़ें : नैनीताल से पेरिस : नैनीताल की 29 साल की ‘डॉली’ कान्स में डॉल जैसी ड्रेस में छायीं
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वर्ष 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जैव विविधता के लिए 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस घोषित किया। वर्ष 2011 से 2020 की अवधि को संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता दशक के रूप में घोषित किया गया, ताकि जैव विविधता पर एक रणनीतिक योजना का क्रियान्वन किया जा सके, साथ ही प्रकृति के साथ सतत विकास एवं संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सके। आगे वर्ष 2021 से 2030 के दशक को संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत् विकास के जरिए पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के रूप में घोषित किया है। जबकि वर्ष 2023 की थीम ‘फ्रॉम एग्रीमेंट टु एक्शन, बिल्ड बैक बायोडायवर्सिटी है। यह भी पढ़ें : युवक को भारी पड़ा सोशल मीडिया पर अश्लील वीडियो पोस्ट करना, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लिया संज्ञान, फिर…
उन्होंने बताया कि जैव विविधता सतत् विकास चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है। जैव विविधता के संरक्षण हेतु वैश्विक पहल की जा रही है जिसमें भारत की भूमिका एक पक्षकार के रूप में है जिससे वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण प्रगति, आर्थिक विकास और प्रकृति का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। बताया कि जैव विविधता शब्द का प्रयोग पृथ्वी पर जीवन की विशाल विविधता का उपयोग विशेष रूप से एक क्षेत्र या पारिस्थितिकी तंत्र में सभी प्रजातियों को संदर्भित करने हेतु किया जाता है। यह भी पढ़ें : नैनीताल : गुलदार की दहशत में युवक को लगी गोली
जैव विविधता पौधों, विषाणुओं, जानवरों और मनुष्यों सहित हर जीवित चीज को संदर्भित करती है। लेकिन इसमें प्रत्येक प्रजाति में विद्यमान आनुवंशिक अंतर भी शामिल होता है। वर्तमान में 175000 प्रजातियां ज्ञात की जा चुकी है तथा अनुमान है कि 5 से 15 मिलियन प्रजातियां इस पृथ्वी में हो सकती है। जैव विविधता प्रतिवर्ष 26 ट्रिलियन डॉलर की आय देती है और विश्व की 11 प्रतिशत अर्थव्यवस्था जैव विविधता पर आधारित है। ‘वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर द्वारा अपनी प्रमुख लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 में इस बात के प्रति चेताया गया है कि वैश्विक स्तर पर जैव विविधता में भारी गिरावट आ रही है। इस रिपोर्ट में 50 वर्षों से भी कम समय में आधी वैश्विक प्रजातियों के नष्ट होने की बात कही गई है जबकि पहले प्रजातियों में इतनी गिरावट नहीं देखी गई। यह भी पढ़ें : उत्तराखंड का ‘आकाश’ देश का नया सितारा….कौन है आकाश मधवाल जिनके लिए अंबानी परिवार ने खड़े होकर बजाईं तालियाँ ?
उन्होंने कहा कि जैव विविधता के संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है। पौधों की प्रजातियों की एक बड़ी संख्या के होने का अर्थ है, फसलों की अधिक विविधता। अधिक प्रजाति विविधता सभी जीवन रूपों की प्राकृतिक स्थिरता सुनिश्चित करती है। जैव विविधता के संरक्षण हेतु वैश्विक स्तर पर संरक्षण किया जाना चाहिये ताकि खाद्य श्रृंखलाएं बनी रहें। खाद्य श्रृंखला में गड़बड़ी पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकती है। यह भी पढ़ें : शादी का झांसा देकर लंबे समय से बनाता रहा शारीरिक संबंध, गर्भपात भी कराया, फिर महंगा पड़ा शादी से इंकार
उत्तराखंड में देश के 3.43 फीसद व अपने 65 फीसद भूभाग पर वन
उत्तराखंड मे देश के करीब 3.43 प्रतिशत और अपने करीब 65 प्रतिशत भूभाग पर जंगल हैं। इनमें से 19 प्रतिशत भाग बर्फ तो 24295 कुल जंगल हैं। इनमें सर्वाधिक 45.43 प्रतिशत भूभाग पर घने वन हैं। उत्तराखंड में यमुना घाटी से काली गंगा तक गंगा में 968 ग्लेशियर, यमुना में 52, भागीरथी में 238, अलकनंदा में 407 काली गंगा में 271 ग्लेशियर समाहित हैं। इसके अलावा उत्तराखंड में 100 स्तनधारी चिड़ियों, 622 तितलियों, 242 ऑर्किडों, 539 लिकन के साथ एल्गई की 346, ब्रायोफाइट्स की 478, टेरीडोफिट्स की 365, अनावृतबिजी डिकॉट्स की 3811, मोनोकॉट्स की 1250 सहित कुल 4300 प्रजातियां हैं। इनमें से गेठी पेरिस, ग्लोरियस, लिलियम के साथ कोर्डिसेप, हिमालयन मोनाल व ग्रेट हॉर्नबिल सहित 176 प्रजातियां संकट में हैं। यह भी पढ़ें : विवाहिता की अश्लील वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर की वायरल….
इनके अलावा 100 स्तनधारियों व 45 चिड़ियों की प्रजातियों पर भी संकट है। उत्तराखंड 40000 करोड़ रुपए की इकोसिस्टम सर्विस यानी पारिस्थितिकीय सेवाएं देता है। यहां की नदिया गंगा, यमुना, भागीरथी, अलकनंदा, रामगंगा, नायर, कोसी, सरयू व शारदा आदि जैव विविधता कों बढ़ाने में योगदान देती हैं। यह भी बताया कि भारतीय हिमालय में 18440 पौधो के प्रजातियां मिलती हैं इनमें से 9000 आवृतबीजी व 1748 औषधीय प्रजातियां हैं। प्रो. तिवारी ने कहा कि सतत विकास के साथ ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए जैव विविधता ही एक मात्र विकल्प है। सम्पूर्ण मानवता को इसके संरक्षण के प्रति क्रियाशील होकर आगे आने की आवश्यकता है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।