-देखने में कैलास पर्वत की तरह ही है ‘छोटा कैलास’ पर्वत
-बड़ी मान्यता है भीमताल विकास खंड की ग्राम सभा पिनरौ में स्थित शिव के इस धाम की
-पर्वतीय क्षेत्रों से अधिक यूपी के मैदानी क्षेत्रों से पहुंचते हैं श्रद्धालु, महाशिवरात्रि पर लगता है बड़ा मेला

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल। देवों के देव कहे जाने वाले महादेव शिव का सबसे बड़ा धाम है कैलास पर्वत, जहां से विराजते हैं। लेकिन बहुत लोग जानते हैं कि नैनीताल जनपद में भी शिव के कैलास की प्रतिकृति छोटा कैलास के रूप में मौजूद है। अपनी दुर्गमता के कारण मीडिया की पहुंच से दूर भीमताल ब्लॉक के पिनरौ ग्राम सभा स्थित छोटा कैलास की प्रसिद्धि निकटवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में ही नहीं यूपी के सुदूर मैदानी क्षेत्रों तक फैली हुई है, और संभवतया इसीलिये यहां कमोबेश स्थानीय पर्वतीय लोगों से अधिक यूपी के सैलानी, नुकीली-पथरीली चट्टानों पर और कई हरिद्वार से मीलों नंगे पैर चलते हुए कांवड़ लेकर यानी कठोर तपस्या करते हुए पहुंचते हैं, और पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। खास बात यह भी है कि पहाड़ की चोटी पर यहां कोई बड़ा मंदिर नहीं है, और शिव पार्थिव लिंग स्वरूप में खुले में विराजते हैं। इधर हाल में कुछ दूरी पर एक मंदिर बनाया गया है। देखें वीडिओ:
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नैनीताल का छोटा कैलास पर्वत दिखने में करीब-करीब चीन में स्थित कैलास पर्वत जैसा ही है। संभवतया इसी कारण इस स्थान का नाम छोटा कैलास पड़ा हो। पौराणिक मान्यता की बात करें तो पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार मानसखंड के अध्याय 40 से 51 तक नैनीताल से लेकर कैलास तक के क्षेत्र के पुण्य स्थलों, नदी, नालों और पर्वत श्रृंखलाओं का 219 श्लोकों में वर्णन मिलता है।देखें वीडिओ:

मानसखंड में नैनीताल को कैलास मानसरोवर की ओर जाते समय चढ़ाई चढ़ने में थके अत्रि, पुलह व पुलस्त्य नाम के तीन ऋषियों ने मानसरोवर का ध्यान कर उत्पन्न किया गया त्रिऋषि सरोवर, भीमताल को महाबली भीम के गदा के प्रहार तथा उनके द्वारा अंजलि से भरे गंगा जल से उत्पन्न किया गया भीम सरोवर, नौकुचियाताल को नवकोण सरोवर, गरुड़ताल को सिद्ध सरोवर व नल-दमयंती ताल को नल सरोवर कहा गया है। नैनीताल के पास का नाटा भद्रवट, भीमताल के बगल का सुभद्रा नाला, दोनों के गार्गी यानी गौला नदी में मिलन का स्थल भद्रवट यानी चित्रशिला घाट-रानीबाग कहा गया है। इसी गार्गी नदी के शीर्ष पर नौकुचियाताल से आगे करीब 1900 मीटर की ऊंचाई का पर्वत छोटा कैलास कहा जाता है।

पास में ही देवस्थल नाम का स्थान है, जहां पिछले वर्ष एशिया की सबसे बड़ी 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेल्जियम से देश को समर्पित किया था। नीचे गौला नदी के छोर पर युगदृष्टा हैड़ाखान बाबा का धाम स्थित है। छोटा कैलास पहुंचने के लिये हल्द्वानी से रानीबाग, अमृतपुर होते हुए करीब 30 किमी और भीमताल से जंगलियागांव होते हुए करीब 20 किमी सड़क के रास्ते छोटे वाहनों से ग्राम सत्यूड़ा पहुंचा जाता है। यहां से करीब तीन किमी की खड़ी चढ़ाई शिव के इस धाम पर पहुंचाती है। महाशिवरात्रि के दिन यहां हर वर्ष बड़ा मेला लगता है, जिसमें पहली शाम से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो जाता है। रात भर भजन-कीर्तन व जागरण किया जाता है। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार हर वर्ष एक लाख से अधिक सैलानी यहां एक दिन में पहुंचते हैं। अन्य ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 21 मार्च 2021। भीमताल विकास खंड के क्षेत्र पंचायत प्रमुख यानी ब्लॉक प्रमुख डॉ. हरीश बिष्ट ने जनपद के छोटा कैलाश धाम को आदि कैलाश व कैलाश मानसरोवर की यात्रा से जोड़ने के लिए शासन से पत्राचार करने की बात कही है। साथ ही उन्होंने छोटा कैलाश धाम में एक परिक्रमा मार्ग का निर्माण व पौधारोपण करने तथा दो सप्ताह बाद यहां शौचालयों का निर्माण कार्य शुरू करने की बात भी कही।
डॉ. बिष्ट सोमवार को यहां आदि कैलाश समिति की खुली बैठक में शामिल होने पहुंचे थे। इस दौरान मंदिर के पुजारी ललित मोहन पलड़िया व समिति के अध्यक्ष गुमान सिंह ने डॉ. बिष्ट का माला पहनाकर स्वागत किया तथा करीब 2.25 लाख की आय व 80 हजार के खर्च का ब्यौरा भी पेश किया। सामाजिक कार्यकर्ता नवीन क्वीरा ने यहां एक और पेयजल टैंक और मौजूदा पाइपों की जगह वनाग्निरोधी पीपीसी पाइप लाइन लगाने की आवश्यकता जतायी। बैठक में सचिव नंदन सिंह, त्रिलोचन पलड़िया, धर्मेंद्र शर्मा, राजू पलड़िया, मनोहर पलड़िया, उमेश पलड़िया, ईश्वरी दत्त पलड़िया, दुर्गा दत्त पलड़िया, इंदर मेहता, दीवान सिंह सम्भल, विपिन जोशी, दिग्विजय बिष्ट, नवीन पलड़िया आदि लोग भी मौजूद रहे।
-1981 से शुरू हुई यात्रा में 2013 को छोड़कर लगातार बन रहे हैं रिकार्ड, 2010 में 754, 11 में 761, 12 में 774 और 2014 में गए 909 यात्री
नवीन जोशी, नैनीताल। ‘हाई टेक’ होते जमाने में भी आस्था का कोई विकल्प नहीं है। आज भी दुनिया में यह विश्वास कायम है कि ‘प्रभु’ के दर्शन करने हों तो कठिन परीक्षा देनी ही पड़ती है। शायद इसीलिए हिंदुओं के साथ ही जैन, बौद्ध, सिक्ख और बोनपा धर्म के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र, विश्व की सबसे कठिनतम और प्राचीनतम पैदल यात्राओं में शुमार 1,700 किमी लंबी कैलाश मानसरोवर की यात्रा में हर वर्ष यात्रियों की संख्या के नऐ रिकार्ड बनते जा रहे हैं। बीते वर्ष 2017 की यात्रा में 18 दलों में 919 यात्री शामिल हुए, जबकि अब तक का रिकार्ड वर्ष 2014 में 909 यात्रियों का था। गौरतलब है कि इस वर्ष चार बैचों के यात्रा में शामिल होने से पूर्व यात्रा के मांगती व मालपा पड़ावों पर जबर्दस्त आपदा आ गयी थी, जिसमें दर्जन भर लोगों की मृत्यु एवं इससे अधिक लोग अब भी गायब हैं। इस कारण आखिरी चार दलों में 60 यात्रियों की क्षमता के सापेक्ष केवल 37, 47, 40 व 34 यात्री ही शामिल हुए, अन्यथा रिकार्ड और अधिक यात्रियों का हो सकता था।
तीन दलों से शुरू हुई थी यात्रा
यात्रा के इतिहास पर गौर करें तो कैलाश मानसरोवर यात्रा वर्ष 1981 में तीन दलों में मात्र 59 यात्रियों के साथ लेकर शुरू की गई थी। 1992 तक अधिकतम सात दल ही यात्रा पर जा सकते थे। इसके बाद दलों की संख्या बढ़ी। 1999 में 15 दलों में 459 यात्री कैलास गये। उत्तराखंड राज्य बनने तक एक-दो मौकों को छोड़कर यात्रियों की संख्या 500 से नीचे रही। राज्य बनने के वर्ष 2000 से यात्रियों की अधिकतम संख्या 16 तक बढ़ाई गयी। लेकिन हालिया वर्षों में लगातार यात्रा में आने वाले सैलानियों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ष 2007 में तब तक के सर्वाधिक 674 यात्री शिव के धाम कैलाश गये थे। किंतु वर्ष 2008 में चीन की दखलअंदाजी के कारण केवल 10 दलों में 401 यात्री ही यात्रा पूरी कर पाऐ थे। जबकि आगे 2010 में यह आंकड़ा 754 यात्रियों तक पहुंचा, और एक नया रिकार्ड बना। 2011 में पुनः यह रिकार्ड भी टूटा और 761 तीर्थ यात्री कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर पहुंचे। इधर 2012 से 18 दल भेजे जा रहे हैं, अलबत्ता 2013 में केवल एक दल के 51 यात्री ही यात्रा पूरी कर पाऐ। जबकि वर्ष 2012 में 774 तीर्थ यात्रियों ने इस यात्रा पर जाकर रिकार्ड का नया शिखर छुआ था। 2013 में भीषण आपदा की वजह से केवल एक दल ही यात्रा पूरी कर पाया, इस कारण यात्रा कमोबेश पूरी तरह बाधित रही। 2014 में 909 यात्रियों का रिकार्ड बना। 2015 में नाथुला के रास्ते भी कैलास यात्रा का मार्ग खुल गया, जिससे यात्रियों की संख्या में कुछ कमी आई। 2015 में 783 और 2016 में 715 यात्री कैलास की यात्रा पर गये।
ज्ञातव्य हो कि कैलाश मानसरोवर यात्रा तीन देशों (भारत, नेपाल और चीन) के श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ी विश्व की एकमात्र व अनूठी पैदल यात्रा है। पड़ोसी राष्ट्र चीन के रास्ते भारत व नेपाल से इस हेतु अलग अलग यात्राओं का संचालन होता है। नेपाल के रास्ते काफी आसान व लग्जरी क्रूज वाहनों से यात्रा होती है, जबकि भारत से होने वाली कठित यात्रा की जिम्मेदारी 1981 से कुमाऊं मंडल विकास निगम- केएमवीएम के पास है।
केएमवीएन के आतिथ्य को जाता है श्रेय

नैनीताल। विश्व की कठिनतम कैलाश मानसरोवर की पैदल यात्रा में लगातार सैलानियों की संख्या में वृद्धि का श्रेय पूरी तर कुमाऊं मंडल विकास निगम को जाता है। यात्रा में निगम ही यात्रियों को दिल्ली से लेकर चीन की सीमा तक ले जाता एवं उनके आवास व भोजन तथा सामान एवं यात्रियों को लाने-लेजाने के लिए पोनी-पोर्टर आदि की पूरी जिम्मेदारी निभाता है। निगम के एमडी दीपक रावत ने बताया कि कैलाश मानसोवर यात्रा देश के साथ ही निगम के लिये भी प्रतिष्ठा का प्रश्न होती है। इसका पूरा खयाल रखा जाता है। बीते वर्ष तक हर छह दिन में नया दल आता था, इस बार चार दिन में ही नये दल भेजे जा रहे हैं, बीच में धारचूला में मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी में विधानसभा का उपचुनाव, साथ ही पंचायत चुनाव और गुंजी में 12 वर्षों बाद हुआ बड़ा स्थानीय महोत्सव भी आयोजित हुआ, बावजूद सीमित संसाधनों में भी रिकार्ड संख्या में पहुंचे तीर्थयात्रियों को असुविधा नहीं होने दी गई।
हर पैदल शिविर पर दोगुनी होंगी आवासीय सुविधा
नैनीताल। केएमवीएन के एमडी ने आने वाले वर्षों में यात्रियों की संख्या में दो गुनी तक बढ़ोत्तरी होने की संभावना जताई है। बताया कि कैलाश मानसरोवर यात्रा पथ के पैदल पड़ावों में सुविधाओं के विस्तार के लिए एडीबी सहायतित योजना से 26 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। इससे सभी सिरखा, गाला, बुदी, गुंजी, कालापानी व नाभीढांग पैदल शिविरों में पांच से 10 तक नए हट्स बनने जा रहे हैं, इससे हर शिविर में आवासीय सुविधा अब तक की दोगुनी हो जाएगी।