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March 19, 2024

सीएम ने कहा गुलामी के सभी प्रतीको के नाम बदलेंगे, क्या मॉल रोड से लेकर अन्य स्थानों व संस्थानों के नामों तक भी जाएगी यह मुहिम…?

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नवीन समाचार, नैनीताल, 29 अक्तूबर 2022। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को एलान किया है कि राज्य में उपनिवेशवाद यानी गुलामी के सभी प्रतीकों के नाम बदले जाएंगे। उन्होंने कहा, राज्य में उपनिवेशवाद के सभी प्रतीकों का दोबारा नामकरण किया जाएगा। यह भी पढ़ें : एक बार फिर खाकी पर हमला, गश्त के दौरान किया लोहे की रॉड से हमला…

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद देश में उपनिवेशवाद के सभी प्रतीकों को बदला जा रहा है। उत्तराखंड में सड़कों और शहरों के नाम अंग्रेजों के जमाने के हैं जिनको बदला जाएगा। हमने निर्देश दिए हैं कि राज्य कि उपनिवेशवाद के सभी प्रतीकों का नाम बदल दिया जाए। यह भी पढ़ें : उत्तराखंड-बड़ा समाचार : कूड़ा बीनने वाली निकली विदेशी आतंकी की पत्नी

गौरतलब है कि इसी कड़ी में प्रदेश में लेंसडाउन का नाम बदलने की कवायद शुरू हुई है। आगे देखने वाली बात होगी प्रदेश सरकार क्या छोटी बिलायत भी कही जाने वाली सरोवरनगरी नैनीताल के मॉल रोड, स्नो व्यू, लेंड्स इंड, डॉर्थी शीट-टिफिन टॉप, कैमल्स बैक व लवर्स प्वॉइंट आदि अंग्रेजी नामों को भी बदलती है, या कि यह मुहिम नगर के सबसे पहले बताए जाने वाले घर पिलग्रिम लॉज व इससे लगे पिलग्रिम कंपाउंड से लेकर नगर के चार्टन लॉज, मेविला कंपाउंड, स्टोनले कंपाउंड व लांग व्यू आदि इलाकों से होते हुए नगर में मौजूद एशिया के सबसे पुराने मैथोडिस्ट चर्च सहित अन्य चर्चों व उसी दौर के कॉन्वेंट स्कूलों तक भी जाती है या नही….। 

नैनीताल में औपनिवेशिक पहचान वाले व विरासत महत्व के कुछ भवनों के नाम :

पिलग्रिम हाउस (1841), सेंट जॉन्स इन द विल्डरनेस चर्च (1846), मेथोडिस्ट चर्च (1858), शेरवुड कालेज (1869), सेंट मेरी कान्वेंट (1878), सेंट जोसफ कालेज (1880), गर्नी हाउस (1881), ग्रांड होटल (1892), रैमजे अस्पताल (1892), कैपिटॉल सिनेमा (1892), फेयरहैवन्स, वेल्वेडियर, क्लिफटन, ग्रासमेयर, प्रेयरी, न्यू बेरी लॉज, डडली ग्रोव, वुडस्टाक, मुलाक्लो, एवरफायल, माउंट प्लेजेंट, सेंट लू गार्ज, हटन हॉल, आर्ममोर, आर्डवेल, आर्ल्सफोर्ड, ब्रुकहिल, अर्ल्सकोर्ट, चार्लटन लॉज, कोजी विला, क्रेगलैंड, सैंट क्लाउड, डरहम हाउस, डांडा हाउस, एजहिल, एल्समेर, फर्न कॉटेज, फेयरी हॉल, ग्लेनथार्न, ग्लेनली, ग्लेनको, हेथार्न विला, हेल्वेलिन, हॉक्सडेल, ऐटन हाउस, ऐमिली कॉटेल, जुबली एस्टेट, ज्वाला काटेज, केनिलवर्थ, केंटन लॉज, किलार्नी, लेंगडेल एस्टेट, लंघम हाउस, लौगव्यू, मेनर हाउस, मेट्रोपोल, मेविला, मेलरोज, नारफोक काटेज, ओक रिज काटेज, ओक लॉज, ओल्ड लन्दन हाउस, सेवन ओक्स, प्रायरी, पैरामाउंटसी, प्रिमरोज, कैंट क्विनटिन, रॉक हाउस, रोजमाउंट, स्प्रिंगफील्ड, स्टेनली हॉल, स्टेफोर्ड हाउस, सिल्वर डेन, स्ट्रॉवरी लॉज, सफौक्र हॉल, सनी बैक, सनी डेन, टेम्पलटेन हॉल, थेनेट विला, दि हाइव, वेलहैड, वर्नन काटेज, वेभरली काटेज, फारेस्ट काटेज आदि। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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यह भी पढ़ें : चार दिन की लगातार-भारी बारिश से नैनीताल में अस्तित्व में आए तीन नए ताल

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 10 अक्तूबर 2022। पहाड़ों पर पिछले चार दिनों से लगातार हो रही तेज बारिश से झीलो के शहर नैनीताल के अयारपाटा क्षेत्र में तीन पुराने ताल फिर से सक्रिय हो गये हैं। इनमें से एक ताल शेरवुड कॉलेज के पास एवं एवं दो अरविंदो आश्रम के पीछे पानी से लबालब भरे नजर आ रहे हैं।

अरविंदो आश्रम के पास दो ताल आपस में कुछ मीटर की दूरी पर हैं, और अधिक बारिश होने व भरने पर यह दोनों एक ही झील बन जाते हैं। अभी इन दोनों के बीच करीब 10 मीटर का फासला बना हुआ है। इनके अलावा नैनी झील की सर्वाधिक जल प्रदाता मानी जाने वाली सूखाताल झील भी काफी हद तक बारिश के पानी से भर गई है, जबकि नैनी झील पूरी भरने के बाद इसके गेट कल से खोल दिए गए हैं। देखें विडियो :

क्षेत्रीय सभासद मनोज साह जगाती ने बताया कि शेरवुड कॉलेज के पास के ताल को कृत्रिम बनाने का प्रस्ताव नगर पालिका की बोर्ड बैठक में आया था, इसका उन्होंने विरोध किया था। उनका मानना है कि इन तालों को बिना कुछ भी कृत्रिम तौर पर किए प्राकृतिक स्वरूप में ही रखा जाना चाहिए, जिससे इन्हें भरने वाले प्राकृतिक जलस्रोत प्रभावित न हों, और नैनी झील के जलागम क्षेत्र में होने के कारण इनका पानी रिस-रिस कर लंबे समय तक नैनी झील को रिचार्ज करता रहे।

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यह भी पढ़ें : एक बार फिर शुरू हुई ‘नैनीताल बचाने’ की मुहिम

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 6 मार्च 2022। एक बार फिर नैनीताल बचाने की मुहिम शुरू हुई है। अधिवक्ता नितिन कार्की की अगुवाई में नगर के नए गठित हो रहे ’नैनीताल बचाओ अभियान’ की बैठक में नगर में बाहरी लोगों के बढ़ते दखल एवं नशे के बढ़ते शिकंजे पर चिंता जताई गई, तथा मिलकर इन मुद्दों पर आगे बढ़ने का संकल्प लिया गया।

बैठक में अनुज साह ने प्रदेश में भू-काननू लागू किए जाने पर बल दिया। जबकि रोहित जोशी ने नगर में नगर के ही मूल निवासियों को स्थानीय रोजगार उपलब्ध करवाना इस अभियान की प्राथमिकता है। अधिवक्ता कार्की ने नगर में हो रहे अतिक्रमण पर चर्चा की और उसके समाधान हेतु अपने विचार रखे। अधिवक्ता नवीन जोशी ‘कन्नू’ ने शहर में बढ़ रहे नशे के कारोबार पर अंकुश लगाने एवं टैक्सी चालकों द्वारा मनमाना किराया वसूलने की समस्याएं उठाईं।

पत्रकार कमल जगाती ने इस बात पर जोर दिया कि किस प्रकार नगर के समाज को एकजुट करके शहर में बढ़ रहे आपराधिक मामलों से निजात दिलाई जाये। बैठक में भास्कर जोशी, हर्षित साह, सुरेश बिनवाल, ममता रावत, भावना रावत, भागवत मेर, रविंद्र, किशन मेहरा, चंदन जोशी व सभासद मनोज साह जगाती आदि लोग उपस्थित रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : नैनीताल के विधायक ने इस्तीफा दिया तो पूर्व विधायक ने संभाला मोर्चा…

-केंद्र व राज्य सरकार को आपदा राहत की मांग पर भेजे ज्ञापन

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 28 अक्टूबर 2021। उत्तराखंड क्रांति दल की ओर से गुरुवार को पूर्व विधायक डॉ नारायण सिंह जंतवाल के नेतृत्व में कुमाऊं मंडल के आयुक्त सुशील कुमार से मुलाकात की गई, और उन्हें भारत सरकार तथा राज्य सरकार को संदर्भित एक ज्ञापन सोंपा गया।

ज्ञापन में गत 17 से 20 अक्टूबर के मध्य हुई अतिवृष्टि से जनित आपदा के दृष्टिगत राज्य को विशेष आर्थिक पैकेज के साथ ही वृहद कार्ययोजना तैयार किए जाने की मांग भी की गई।

ज्ञापन में डॉ. जंतवाल की ओर से कहा गया है कि नैनीताल विधानसभा क्षेत्र वर्तमान में प्रतिनिधित्व विहीन है। ऐसे में यहां के प्रथम निर्वाचित विधायक होने के नाते वह इस क्षेत्र के लिए इस आपदा के बाद सतत विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों से समग्र नीति तैयार करने का अनुरोध करते हैं।

उन्होंने इस आपदा में प्रभावितों का सही चिन्हीकरण करने एवं परिवार के एक व्यक्ति को तत्काल सरकारी नौकरी दिए जाने के साथ ही नैनीताल नगर के लिए अल्पकालीन के साथ दीर्घकालीन योजना तैयार किए जाने एवं नगर के हितधारकों को साथ लेकर नई पर्यटन नीति बनाने की मांग भी की है। प्रतिनिधिमंडल में प्रकाश पांडे, सज्जन साह, खीमराज बिष्ट, हरीश वारियाल, मदन सिंह बगडवाल व भगवत पंत आदि लोग शामिल रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : 18 सितंबर 1880 जितनी ही बारिश के बावजूद सुरक्षित रहा नैनीताल, जानें सबक और संदेश…

डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 21 अक्टूबर 2021। 18 नवंबर 1841 से बसासत प्रारंभ होना माने जाने वाले नैनीताल के लिए 18 की तारीख तीसरी बार हमेशा के लिए याद रखने योग्य बन गई है। इधर 17, 18 व 19 अक्टूबर के बीच तीन दिनों में नैनीताल में 90, 445 व 60 मिलीमीटर यानी करीब 600 मिलीमीटर यानी करीब 24 इंच बारिश हुई है।

जबकि 18 सितंबर 1880 को भी यहां 16 सितंबर से तीन दिनों के बीच करीब 40 घंटों में 35 इंच यानी 889 मिलीमीटर बारिश होने का रिकॉर्ड दर्ज है। यानी करीब 180 वर्षों के बाद नगर में बारिश का इतिहास दोहराया गया। किंतु दोनों घटनाओं में नुकसान की दृष्टि से बड़ा अंतर है।

18 सितंबर 1880 को ऐसी ही बारिश से आठ सेकेंड के भीतर नैनीताल का भूगोल ही बदल गया था। तब 2500 की जनसंख्या के नैनीताल नगर में 151 लोग जिंदा दफ्न हो गए थे और तब का एशिया का सबसे बड़ा कहा जाने वाला मेयो होटल और तत्कालीन नयना देवी का मंदिर सहित बड़ा हिस्सा जमींदोज हो गया था। इसके बाद ही मलबे से डीएसए मैदान का निर्माण किया गया था। लेकिन इस बार उतनी ही बारिश होने के बावजूद नगर में एक भी जनहानि नहीं हुई है।

इसके पीछे अंग्रेजों द्वारा तब सबक लेकर बनाए गए 100 शाखाओं युक्त कुल एक लाख छह हजार 499 फिट लंबे 50 नालों की बड़ी भूमिका है जो नगर के पूरे बरसाती पानी को नैनी झील में ले जाते हैं और नगर को भूस्खलन से बचाते हैं। इसलिए हमेशा इन नालों को साफ रखने, इनके आसपास अतिक्रमण न करने व इनमें गंदगी न डालने की अपील की जाती है। इस बार नगर में दो भूस्खलन बलियानाला व बिड़ला क्षेत्र में कुमाऊं लॉज के पास हुए हैं। इसके अलावा गत दिनों से केपी छात्रावास के पास भूस्खलन हो रहा है। यह वह क्षेत्र हैं जहां अंग्रेजी दौर में बसात नां के बराबर थी। इसलिए यहां नाला सिस्टम अन्य स्थानों की तरह नहीं बन पाया था।

नगर में फिर नजर आने लग छिटपुट सैलानी
नैनीताल। आपदा के बाद नगर में फिर से छिटपुट सैलानी टहलते एवं नैनी झील में नौकायन करते नजर आने लगे हैं। गौरतलब है कि नगर में अब सभी ओर से सड़कों, बिजली, पानी व इंटरनेट आदि की आपूर्ति सुचारू हो गई है। इसलिए अब यहां आने-जाने में किसी भी तरह का भय नहीं है। केवल हल्द्वानी रोड पर बड़े वाहन अभी नहीं चल पा रहे हैं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : नैनीताल जनपद में आपदा से सरकारी संपत्तियों को 102 करोड़ के नुकसान का प्रारंभिक अनुमान, दूसरे दिन भी दर्जन भर शवों के बरामद होने की सूचना नहीं… 

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 20 अक्टूबर 2021। नैनीताल जनपद में पिछले तीन दिनों में दैवीय आपदा से हुए नुकसान पर जिला प्रशासन बुधवार को पूरी तरह से एक्टिव मोड पर आ गया। डीएम धीराज गर्ब्याल ने बताया कि प्राथमिक तौर पर नैनीताल जनपद में आपदा से लोक निर्माण विभाग, सिचाई विभाग व लघु सिचाई आदि की राजकीय परिसंपत्तियों को 102 करोड़ की क्षति होने का अनुमान है। विस्तृत आंकलन कराया जा रहा है।

देखें वीडियो:

उन्होंने बताया कि जिला मुख्यालय के धोबीघाट क्षेत्र में रह रहे 100 परिवारों को यहां नैनी झील का अत्यधिक पानी आने के कारण जीजीआईसी में शिफ्ट करने को कह दिया गया है। वहां सभी कमरे खुलवा दिए गए हैं। उधर रामनगर के वन ग्राम सुंदरखाल के 30 लोगों को एयरलिफ्ट एवं पांच लोगों को राफ्टिंग के माध्यम से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है, तथा यहां बाढ़ राहत शिविर का संचालन कर उनके लिए लगभग 90 कुंतल राहत सामग्री पहुंचाई गई है।

देखें नैनीताल-रामनगर में बारिश के कहर सहित हल्द्वानी में गौला पुल के टूटने का लाइव वीडियो : 

इसी तरह वन ग्राम पूछड़ी नई बस्ती के 10 परिवारों के 54 लोगों को स्थानीय राजकीय कन्या प्राथमिक विद्यालय में शिफ्ट किया गया है। चूकम गांव में राफ्टों के माध्यम से राहत सामग्री पहुंचाई गई है। वहीं लालकुआं में लगभग 97 बाढ़ प्रभावित परिवारों को गुरुद्वारे में शिफ्ट किया गया है। तल्ला रामगढ़ में फंसे यात्रियों को राशन किट उपलब्ध कराई गई हैं।

देखें कैसे नैनीताल में नैनी झील के उफ़नते पानी से लोगों को बचाने के लिए सेना को संभालनी पड़ी कमान : 

धारी व झूतिया में बचाव कार्यों के लिए टीमें भेजी गईं, अभी शवों के बरामद होने की सूचना नहीं 
नैनीताल। डीएम श्री गर्ब्याल ने बताया कि धारी एवं झूतिया रामगढ़ में कई लोगों के मलबे में दबे होने की सूचना है। मार्ग अवरुद्ध होने के कारण यहां बचाव टीमें नहीं पहुंच पा रही थीं। इस पर धारी के लिए एनडीआरएफ के 20 सदस्यीय दल को हैलीकॉप्टर से शशबनी में उतारा गया है। वहां से 7 किलोमीटर सड़क व सात किलोमीटर पैदल चलकर यह दल घटनास्थल थलाड़ी की ओर रवाना हो गया है। जबकि रामगढ़ के झूतिया में एसडीएम के नेतृत्व में एनडीआरएफ का 12 सदस्यीय दल तथा ग्राम बोहराकोट के लिए एनडीआरएफ का 8 सदस्यीय दल चिकित्सा टीम के साथ मौके पर पहुचं गया है।

देखें आपदा में नैनीताल के हाल :

इसके अलावा उन्होंने बताया कि चौखुटा में पांच बिहारी मजदूरों के शवों को बिहार के अधिकारियों से समन्वय कर दिल्ली भेजने का प्रबंध किया जा रहा है। बताया गया है कि झूतिया के पास ही सकुना में 9 नेपाली मजदूर एक घर में दबे हुए हैं। ‘नवीन समाचार’ ने बुधवार के अंक में यहां घर के बाहर मलबे में दबे एक मजदूर का चित्र भी प्रकाशित किया था। वर्तमान में इस क्षेत्र में बिजली व मोबाइल कनेक्टिविटी न होने से किसी से भी संपर्क नहीं हो पा रहा है।

कैंची व बोहराकोट में चार शव बरामद, पर सकुना में दबे 9 शवों पर अभी भी कोई जानकारी नहीं
नैनीताल। नैनीताल पुलिस व एनडीआरएफ की टीम ने बुधवार को कैंची धाम के पास घर में दबे हुए 21 वर्षीय रिचा एवं 18 वर्षीय अभिषेक तथा बोहरा कोट रामगढ़ में 70 वर्षीय शंभू दत्त डालाकोटी व 59 वर्षीय बसंत डालाकोटी के शवों को मलबे से निकाल लिया। इसके बाद शवों के पंचायतनामा की कार्रवाई की जा रही है।

तल्लीताल थाना पुलिस ने महाराष्ट्र के सैलानियों के दल को बचाया
नैनीताल। तल्लीताल थाना पुलिस ने महाराष्ट्र के बुजुर्ग सैलानियों के 27 सदस्यीय दल की आपदा के दौरान होटल में ठहराने से लेकर उन्हें भोजन उपलब्ध कराने सहित पूरी मदद की। इस पर थाना पुलिस की कार्यशैली की सैलानियों ने भी प्रशंसा की।

प्राप्त जानकारी के अनुसार महाराष्ट्र के यह पर्यटन चार धाम यात्रा पर हरिद्वार जाते हुए नैनीताल से गुजर रहे थे, तभी यह आपदा आ गई। महाराष्ट्र सरकार की ओर से उत्तराखंड सरकार को इनके फंसने की सूचना दी गई। इस पर तल्लीताल थाना पुलिस ने इन्हें रेस्क्यू कर एक होटल में ठहराया गया, एवं शीला होटल के शैलेंद्र साह के माध्यम से भोजन उपलब्ध कराई गई। इस दौरान पुलिस को तल्लीताल से शीला होटल तक जाने के लिए डांठ एवं मॉल रोड पर भरे पानी में पुलिस की गाड़ी के भी न चल पाने के कारण रोडवेज बस की सहायता लेनी पड़ी। इस पर सैलानियों ने पुलिस के साथ ही नगर की जनता की भी हर संभव सहायता के लिए आभार जताया। इसके बाद उन्हें हल्द्वानी के लिए रवाना कर दिया गया।

कुमाऊं लॉज निवासी पांच परिवारों का सबकुछ आपदा में तबाह
नैनीताल। प्राप्त जानकारी के अनुसार 18 अक्टूबर की रात्रि करीब ढाई बजे नगर के बिड़ला विद्या मंदिर के पास कुमाऊं लॉज में पांच परिवारों के घरों के पीछे बड़ा पत्थर आकर गिरा। इस पर यहां रहने वाले इरफान पुत्र रियाज व गौरव पुत्र मदन राम के परिवार के सात-सात लोग, दीपक पुत्र आनंद राम के परिवार के 6 लोग व विवेक पुत्र ललित के परिवार के चार, हिमांशु पुत्र जमन के परिवार के पांच यानी कुल 34 लोगों ने तत्काल खाली किए। घर खाली करते ही इनके घरों में मलबा घुस गया। इस कारण इनके घर का सारा सामान तहस-नहस हो गया। बुधवार को इनकी सूचना मिलने पर तल्लीताल व्यापार मंडल अध्यक्ष मारुति नंदन साह की ओर से उनके लिए भोजन की वैकल्पिक व्यवस्था की गई। वहीं प्रशासन भी उन्हें जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहा है।

बचाव कार्य में योगदान देते आईजी सेल के संयोजक चोटिल
नैनीताल। आपदा के दौरान पुलिस एवं सेना के साथ कई स्थानीय युवकों ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया। इसी कार्य में लगे भारतीय जनता पार्टी के नगर मंडल के आईटी सेल के संयोजक आयुष भंडारी तल्लीताल की दुकानों में फंसे लोगों को पानी के भयानक बहाव से बचाते हुए चोटिल हो गये। उनके सिर में गंभीर चोट आ गई। इस पर उनके सिर में 3 टांके लगाने पड़े हैं। साथ ही उनके हाथ, पैर और कमर में भी चोट आई है।

सेना के 100 जवानों ने भी दिया बचाव कार्यों में योगदान
नैनीताल। डीएम धीराज गर्ब्याल ने जनपद के कैंची-खैरना क्षेत्र में आपदा से हुए भारी नुकसान को देखते हुए 14-डोगरा रेजीमेंट रानीखेत को खैरना, कैची, निगलाट व रामगढ क्षेत्र में राहत व बचाव कार्य हेतु वार्ता की। इस पर मेजर नरेंद्र व मेजर कोयाक के नेतृत्व में बटालियन की ओर से तुरंत 100 जवानों की दो रेस्क्यू टीमें प्रभावित इलाकों में पहुंचीं और खैरना में फंसे लगभग 500 लोगों को पैक किया हुआ भोजन और खाने का सामान व पानी वितरित किया। बटालियन की मेडिकल रिएक्शन टीम के प्रशिक्षित जवानों के द्वारा चिकित्सा इकाई स्थापित कर प्रभवितों की चिकित्सा जांच कर उपचार भी किया गया। भोजन तैयार करने के लिए खैरना में एक कुक हाउस भी स्थापित किया गया और त्वरित बचाव कार्य कर फंसे हुए लोगों को निकाला।

डांठ में दरार की खबरों का खंडन
नैनीताल। सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता केएस चौहान ने नगर की नैनी झील के आधार तल्लीताल डांठ में आपदा से दरार आने की खबरों का खंडन किया है। श्री चौहान ने पूछे जाने पर बताया कि पुराने रोडवेज बस स्टेशन के पास जिला कलक्ट्रेट जाने वाले मार्ग की ओर डामरीकरण में कुछ दरार नजर आ रही हैं। इस पर उन्हांेने व लोक निर्माण विभाग की टीम ने निरीक्षण किया। लेकिन यह केवल डामर की ऊपरी परत पर दरार है।

ज्योलीकोट क्षेत्र में ग्रामीणों को हुआ आपदा से भारी नुकसान
नैनीताल। पिछले तीन दिनों में आई आफत की बारिश एवं इस दौरान नैनी झील से बलियानाले में गए पानी से ढाकाखेत मे दलीप सिजवाली व पूरन सिजवाली की 6 नाली से ज्यादा भूमि, गाँव का रास्ता, सरियाताल मोटरमार्ग का बड़ा हिस्सा, काजवे, नाले में बने दो पुल बह गए। साथ ही बलियानाला से सटे गोठानी, वीरभट्टी, ढाकाखेत व सरियाताल गाँवों पर खतरा बन गया। इससे लोग दहशत में है। इसके अलावा चोपड़ा में धन सिंह राठौर का आवासीय परिसर, बसगांव में चंदन सिंह कठैत व लक्ष्मण सिंह कठैत आदि की गौशाला, सुरक्षा दीवारें और तकरीबन 3 नाली भूमि, ज्योलीकोट में इम्लड़ा जॉन व अजित सुलोमन के आवास के पीछे, ज्योलीकोट में कैलाश आर्य, प्रकाश चंद्र बेलुवाखान में विजय कुमार व दयाल राम के आवास, स्यालीखेत में सचिन कुमार के आवासीय परिसर के साथ बेलुवाखान के कूँड़, सोलिया ग्रामों में ऊपरी हिस्से में भी भूस्खलन से काफी नुकसान हुआ है, और ग्रामीण दहशत में है।

शेरवानी होटल प्रबंधन ने चलाया कैनेडी पार्क में सफाई अभियान
नैनीताल। नगर के शेरवानी हिल टॉप होटल के कर्मियों ने बुधवार को आपदा के बाद नगर की मॉल रोड के करीब कैनेडी पार्क के पाथ-वे यानी पैदल रास्ते पर सफाई अभियान चलाया। अभियान में होटल के प्रबंधक गोपाल दत्त, दिनेश पालीवाल, जीवन बिष्ट, विनोद पाठक, सूरज, मदन, राजेंद्र कुमार, प्रेम सिंह, राज कुमार, प्रकाश नेगी, अर्जुन, कमल व पान सिंह आदि लोग शामिल रहे।

पुलिस-आरटीओ ने कैंची धाम में फंसे यात्रियों को निकाला
नैनीताल। नैनीताल पुलिस तथा संभागीय परिवहन के द्वारा कैची मंदिर धाम में फंसे यात्रियों व पर्यटकों को शटल सेवा के माध्यम से भवाली भेजा गया। इससे दो दिन से फंसे यात्रियों ने राहत की सांस ली।  आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : मल्लीताल की खड़ी बाजार की डीएम बदलेंगे सूरत…

-पर्वतीय शैली में विकसित होगी मल्लीताल की खड़ी बाजार, डीएम ने स्थानीय हितधारकों के साथ की बैठक
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 1 जुलाई 2021। खड़ी बाजार मल्लीताल तथा राम सेवक सभा को पर्यावरण के अनुकूल एवं परम्परागत शैली में सौंदर्यीकरण करते हुए विकसित किया जायेगा। यह बात जिलाधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल ने बृहस्पतिवार को एलडीए सभागार में खड़ी बाजार के दुकानदारों एवं हितधारकों के साथ क्षेत्र के सौन्दर्यीकरण एवं विकास हेतु आयोजित महत्वपूर्ण बैठक में कही।

श्री गर्ब्याल ने कहा कि सरोवर नगरी नैनीताल पर्यटकों लिए आकर्षण का केंद्र होने के कारण वर्ष भर देश-दुनिया के सैलानियों की आमद बड़ी तादाद में होती है। उन्होंने कहा कि नगर के विभिन्न क्षेत्रों का पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पहाड़ी एवं परम्परागत शैली में विकास किया जायेगा, जिससे नैनीताल में आने वाले पर्यटक यहां की परंपरागत पहाड़ी शैली के भी दर्शन कर सकें। उन्होंने बताया कि खड़ी बाजार की दुकानों एवं रास्तों का स्थानीय शैली में विकसित करते हुए बिजली, टेलीफोन आदि के तारों की भूमिगत व्यवस्था की जायेगी। दुकानों के आगे व किनारों पर पर सागरा फटबार शैली के तथा रास्ते के निर्माण में ग्रेनाइट कोबल पत्थर का उपयोग किया जायेगा।

नगर की मल्लीताल खड़ी बाजार का प्रस्तावित चित्र।

रामलीला ग्राउंड में पटाल आदि का उपयोग ओपन एयर थिएटरनुमा बैठने की जगह बनायी जायेगी। इस दौरान उन्होंने शहर के हाईड्रेन्ट को चेक करने तथा बंद पड़े हाईड्रेंट को सुचारू कराने के निर्देश भी दिए। उन्होंने रामलीला ग्राउंड के दुकानदारों को काम पूरा होने तक अन्य उचित स्थान पर दुकान एवं स्थान आवंटित करने के निर्देश अधिशासी अधिकारी नगर पालिका को दिये। बैठक में एडीएम अशोक जोशी, एसडीएम प्रतीक जैन, जिला विकास प्राधिकरण के सचिव पंकज उपाध्याय, अधिशासी अधिकारी अशोक कुमार वर्मा, अध्यक्ष राम सेवक सभा मनोज साह, जगदीश बवाड़ी सहित दीपक गुरुरानी, सर्वप्रिय कंसल, सुमित कुमार, नीरज नयाल, संजय नागपाल व अर्शी खान आदि लोग उपस्थित रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : अब तल्लीताल की भी सुधरेगी सूरत, डीएम ने विरासत स्वरूप लौटाने के साथ पार्किंग सहित अन्य सुविधाओं का भी खींचा खाका

-सौंदर्यीकरण के साथ तल्लीताल में पार्किंग व विद्युत बिल जमा कराने की व्यवस्था होगी
नवीन समाचार, नैनीताल, 19 मार्च 2021। डीएम धीराज गर्ब्याल के सरोवरनगरी के सौन्दर्यीकरण, विरासत महत्व के भवनों एवं सड़कों के पुर्नविकास की दिशा में शुक्रवार को जिला कार्यालय सभागार में पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से शहर के विभिन्न क्षेत्रों हेतु तैयार की गयी कार्य योजना के बारे में शहर के गणमान्य व्यक्तियों को जानकारी देते हुए विस्तार से चर्चा की गई।

इस दौरान श्री गर्ब्याल ने रेमजे रोड, तल्लीताल बाजार, डांट चौराहे, मल्लीताल बाजार, पालिका बाजार, राम सेवक सभा एवं रामलीला ग्राउंड, रिक्शा स्टैंड, ओपन एयर थियेटर को विरासत के रूप में विकसित करने हेतु तैयार की गयी कार्य योजना उपस्थित लोगों के समक्ष रखी। साथ ही शहर में पार्किंग व्यवस्था हेतु किये जा रहे कार्यों के बारे में भी विस्तार से बताया। इसकी सभी उपस्थित लोगों ने तारीफ करते हुए शहर के सौंदर्यीकरण कार्य में पूर्ण सहयोग करने की बात कही।

इस दौरान तल्लीताल व्यापार मंडल अध्यक्ष मारुति नंदन साह ने सीवर लाइनों के विभिन्न स्थानों पर क्षतिग्रस्त होने की शिकायत करने पर डीएम ने बताया कि सीवर लाइनों की समस्या के समाधान हेतु एसडीएम की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है। श्री साह सहित सभी लोगों के सुझाव पर डीएम ने तल्लीताल में आरामशीन के पास खाली भूमि पर पार्किंग व्यवस्था हेतु आवश्यक कार्यवाही करने तथा बस स्टेशन पर विद्युत बिलों के जमा करने की व्यवस्था करने के निर्देश भी संबंधित अधिकारियों को दिए। बैठक में आलोक साह, वेद साह, भारत लाल साह, अमनदीप आनंद, प्रकाश बिष्ट, राजन लाल साह, अंचल पंत, पप्पू कर्नाटक, अधिशासी अभियंता विद्युत हारून रशीद, आर्किटैक्ट रक्षित, अधिशासी अभियंता ग्रामीण निर्माण विभाग श्री धर्मशक्तू आदि उपस्थित रहे।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 02 मार्च 2021। सरोवरनगरी नैनीताल की एक पहचान है ‘छोटी बिलायत’ के रूप में। हालिया दिनों में इसे उसी रूप में स्थापित करने की कोशिश में कास्ट आयरन यानी ढलवा लोहे की बनी रेलिंग व बिजली के स्टेंड पोस्टों से पाट दिया गया है। लेकिन अब डीएम धीराज गर्ब्याल नैनीताल को कुमाऊं मंडल के मुख्यालय पर्वतीय पर्यटन नगरी के रूप में पुर्नस्थापित करने की मुहिम पर हैं। इसके लिए नगर के मल्लीताल व तल्लीताल रिक्शा स्टेंड सहित तल्लीताल व मल्लीताल बाजारों को पर्वतीय स्वरूप में बदलने की तैयारी है।

डीएम गर्ब्याल पहले ही मल्लीताल रिक्शा स्टेंड के नए प्रस्तावित स्वरूप को साझा कर चुके हैं, जबकि अब उन्होंने मल्लीताल बाजार के प्रस्तावित स्वरूप को सोशल मीडिया पर साझा किया है। साथ ही उन्होंने मंगलवार को नगर के मल्लीताल बाजार का भ्रमण करके भी अपनी भावी योजना का स्थलीय निरीक्षण किया है। इस दौरान उन्होंने यहां अपने पूर्व प्रयासों की तर्ज पर विरासत पथ बनाने का इरादा जताया है। इसके साथ ही बाजार में बिजली व केबल की लाइनों को अंडरग्राउंड करने की भी योजना है।
देखें डीएम धीराज गर्ब्याल द्वारा तैयार मल्लीताल बाजार का प्रस्तावित स्वरूप:

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नवीन समाचार, नैनीताल, 18 दिसंबर 2020। नगर वासियों और सैलानियों को विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी-सरोवर नगरी नैनीताल को पसंद करते हुए झील विकास प्राधिकरण द्वारा लगाए गए ‘आई लव नैनीताल (I love Nainital)’ लिखे बोर्ड के साथ अति उत्साह में असुरक्षित तरीके से, फोटो खिंचवाना भारी पड़ा है। लगातार समझाने के बावजूद लोगों द्वारा यहां बिना मास्क पहने व सामाजिक दूरी का पालन किए बिना, फोटो खिंचवाने से कोरोना के संक्रमण की संभावना को दृष्टिगत रखते हुए जिला विकास प्राधिकरण ने अपने ‘आई लव नैनीताल’ लिखे बोर्ड को परदे से ढकना पड़ गया है। शुक्रवार को पर्दा लगा कर तल्लीताल डाँठ पर लगाये बोर्ड को ढक दिया गया। बताया गया है कि यह कार्रवाई उच्च न्यायालय के आदेशों पर बनाई गई समिति की रिपोर्ट के आधार पर कोरोना के संक्रमण का भय रहने तक के लिए की गई है।

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सरोवर नगरी नैनीताल को कभी विश्व भर में अंग्रेजों के घर ‘छोटी बिलायत’ के रूप में जाना जाता था, और अब नैनीताल के रूप में भी इस नगर की वैश्विक पहचान है। इसका श्रेय केवल नगर की अतुलनीय, नयनाभिराम, अद्भुत, अलौकिक जैसे शब्दों से भी परे यहां की प्राकृतिक सुन्दरता को दिया जाऐ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

नैनीताल की वर्तमान रूप में खोज करने का श्रेय अंग्रेज व्यवसायी पीटर बैरन को जाता है, कहते हैं कि उनका शाहजहांपुर के रोजा नाम के स्थान में शराब का कारखाना था। कहा जाता है कि उन्होंने 18 नवम्बर 1841 को नगर की खोज की थी। बैरन के हवाले से सर्वप्रथम 1842 में आगरा अखबार में इस नगर के बारे में समाचार छपा, जिसके बाद 1850 तक यह नगर ‘छोटी बिलायत’ के रूप में देश-दुनियां में प्रसिद्ध हो गया। कुमाऊं विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय एवं भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष भूगर्भ वेत्ता प्रो.सीसी पंत के अनुसार बैरन ने ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों को दिखाने के लिये लंदन की पत्रिका National Geographic में भी नैनीताल नगर के बारे में लेख छापा था। 1843 में ही नैनीताल जिमखाना की स्थापना के साथ यहाँ खेलों की शुरुआत हो गयी थी, जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने लगा। 1844 में नगर में पहले ‘सेंट जोन्स इन विल्डरनेस’ चर्च की स्थापना हुई। 1847 में यहां पुलिस व्यवस्था शुरू हुई। 1862 में यह नगर तत्कालीन नोर्थ प्रोविंस (उत्तर प्रान्त) की ग्रीष्मकालीन राजधानी व साथ ही लार्ड साहब का मुख्यालय बना साथ ही 1896 में सेना की उत्तरी कमांड का एवं 1906 से 1926 तक पश्चिमी कमांड का मुख्यालय रहा। 1872 में नैनीताल सेटलमेंट किया गया। 1880 में नगर का ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया। 1881 में यहाँ ग्रामीणों को बेहतर शिक्षा के लिए डिस्ट्रिक्ट बोर्ड व 1892 में रेगुलर इलेक्टेड बोर्ड बनाए गए। 1892 में ही विद्युत् चालित स्वचालित पम्पों की मदद से यहाँ पेयजल आपूर्ति होने लगी। 1889 में 300 रुपये प्रतिमाह के डोनेशन से नगर में पहला भारतीय कॉल्विन क्लब राजा बलरामपुर ने शुरू किया। कुमाऊँ में कुली बेगार आन्दोलनों के दिनों में 1921 में इसे पुलिस मुख्यालय भी बनाया गया। वर्तमान में यह  कुमाऊँ मंडल का मुख्यालय है, साथ ही यहीं उत्तराखंड राज्य का उच्च न्यायालय भी है। यह भी एक रोचक तथ्य है कि अपनी स्थापना के समय सरकारी दस्तावेजों में 1842 से 1881 तक यह नगर नइनीटाल (Nynee tal) तथा इससे पूर्व 1823 में यहाँ सर्वप्रथम पहुंचे पहले कुमाऊं कमिश्नर जी डब्लू ट्रेल द्वारा 1828 में नागनी ताल (Nagni Tal) भी लिखा गया। 2001 की भारतीय जनगणना के अनुसार नैनीताल की जनसंख्या 38,559 थी। जिसमें पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या क्रमशः 46 व 54 प्रतिशत और औसत साक्षरता दर 81 प्रतिशत थी, जो राष्ट्रीय औसत  59.5 प्रतिशत से अधिक है। इसमें भी पुरुष साक्षरता दर 86 प्रतिशत और महिला साक्षरता 76 प्रतिशत थी। 2011 की जनगणना के अनुसार नैनीताल की जनसंख्या 41,416 हो गई है।
नैनीताल का पौराणिक संदर्भः 
पौराणिक इतिहासकारों के अनुसार मानसखंड के अध्याय 40 से 51 तक नैनीताल क्षेत्र के पुण्य स्थलों, नदी, नालों और पर्वत श्रृंखलाओं का 219 श्लोकों में वर्णन मिलता है। मानसखंड में नैनीताल और कोटाबाग के बीच के पर्वत को शेषगिरि पर्वत कहा गया है, जिसके एक छोर पर सीतावनी स्थित है। कहा जाता है कि सीतावनी में भगवान राम व सीता जी ने कुछ समय बिताया है। जनश्रुति है कि सीता सीतावनी में ही अपने पुत्रों लव व कुश के साथ राम द्वारा वनवास दिये जाने के दिनों में रही थीं। सीतावनी के आगे देवकी नदी बताई गई है, जिसे वर्तमान में दाबका नदी कहा जाता है। महाभारत वन पर्व में इसे आपगा नदी कहा गया है। आगे बताया गया है कि गर्गांचल (वर्तमान गागर) पर्वतमाला के आसपास 66 ताल थे। इन्हीं में से एक त्रिऋषि सरोवर (वर्तमान नैनीताल) कहा जाता था, जिसे भद्रवट (चित्रशिला घाट-रानीबाग) से कैलास मानसरोवर की ओर जाते समय चढ़ाई चढ़ने में थके अत्रि, पुलह व पुलस्त्य नाम के तीन ऋषियों ने मानसरोवर का ध्यान कर उत्पन्न किया था। इस सरोवर में महेंद्र परमेश्वरी (नैना देवी) का वास था। सरोवर के बगल में सुभद्रा नाला (बलिया नाला) बताया गया है, इसी तरह भीमताल के पास के नाले को पुष्पभद्रा नाला कहा गया है, दोनों नाले भद्रवट यानी रानीबाग में मिलते थे। कहा गया है कि सुतपा ऋषि के अनुग्रह पर त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु व महेश चित्रशिला पर आकर बैठ गये और प्रसन्नतापूर्वक ऋषि को विमान में बैठाकर स्वर्ग ले गये। गौला को गार्गी नदी कहा गया है। भीम सरोवर (भीमताल) महाबली भीम के गदा के प्रहार तथा उनके द्वारा अंजलि से भरे गंगा जल से उत्पन्न हुआ था। पास की कोसी नदी को कौशिकी, नौकुचियाताल को नवकोण सरोवर, गरुड़ताल को सिद्ध सरोवर व नल सरोवर आदि का भी उल्लेख है। क्षेत्र का छःखाता या शष्ठिखाता भी कहा जाता था, जिसका अर्थ है, यहां 60 ताल थे। मानसखंड में कहा गया है कि यह सभी सरोवर कीट-पतंगों, मच्छरों आदि तक को मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। इतिहासकार एवं लोक चित्रकार पद्मश्री डा. यशोधर मठपाल मानसखंड को पूर्व मान्यताओं के अनुसार स्कंद पुराण का हिस्सा तो नहीं मानते, अलबत्ता मानते हैं कि मानसखंड करीब 10वीं-11वीं सदी के आसपास लिखा गया एक धार्मिक ग्रंथ है।
कहते हैं कि नैनीताल नगर का पहला उल्लेख त्रिषि-सरोवर (त्रि-ऋृषि सरोवर के नाम से स्कंद पुराण के मानस खंड में बताया जाता है। कहा जाता है कि अत्रि, पुलस्त्य व पुलह नाम के तीन ऋृषि कैलास मानसरोवर झील की यात्रा के मार्ग में इस स्थान से गुजर रहे थे कि उन्हें जोरों की प्यास लग गयी। इस पर उन्होंने अपने तपोबल से यहीं मानसरोवर का स्मरण करते हुए एक गड्ढा खोदा और उसमें मानसरोवर झील का पवित्र जल भर दिया। इस प्रकार नैनी झील का धार्मिक महात्म्य मानसरोवर झील के तुल्य ही माना जाता है। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार नैनी झील को देश के 64 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव जब माता सती के दग्ध शरीर को आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत की ओर ले जा रहे थे, इस दौरान भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उनके शरीर को विभक्त कर दिया था। तभी माता सती की बांयी आँख (नैन या नयन) यहाँ (तथा दांयी आँख हिमांचल प्रदेश के नैना देवी नाम के स्थान पर) गिरी थी, जिस कारण इसे नयनताल, नयनीताल व कालान्तर में नैनीताल कहा गया। यहाँ नयना देवी का पवित्र मंदिर स्थित है।
भौगोलिक संदर्भः 
समुद्र स्तर से 1938 मीटर (6358 फीट) की ऊंचाई (तल्लीताल डांठ पर) पर स्थित नैनीताल करीब तीन किमी की परिधि की 1434 मीटर लंबी, 463 मीटर चौड़ाई व अधिकतम 28 मीटर गहराई व 44.838 हेक्टेयर यानी 0.448 वर्ग किमी में फैली नाशपाती के आकार की झील के गिर्द नैना (2,615 मीटर (8,579 फुट), देवपाटा (2,438 मीटर (7,999 फुट)) तथा अल्मा, हांड़ी-बांडी, लड़िया-कांटा और अयारपाटा (2,278 मीटर (7,474 फुट) की सात पहाड़ियों से घिरा हुआ बेहद खूबसूरत पहाडी शहर है। जिला गजट के अनुसार नैनीताल 29 डिग्री 38 अंश उत्तरी अक्षांश और 79 डिग्री 45 अंश पूर्वी देशांतर पर स्थित है। नैनीताल नगर का विस्तार पालिका मानचित्र के अनुसार सबसे निचला स्थान कृष्णापुर गाड़ व बलियानाला के संगम पर पिलर नंबर 22 (1,406 मीटर यानी 4,610 फीट) से नैना पीक (2,613 मीटर यानी 8,579 फीट) के बीच 1,207 मीटर यानी करीब सवा किमी की सीधी ऊंचाई तक है। इस लिहाज से भी यह दुनिया का अपनी तरह का इकलौता और अनूठा छोटा सा नगर है, जहां इतना अधिक ग्रेडिऐंट मिलता है। नगर का क्षेत्रफल नगर पालिका के 11.66 वर्ग किमी व कैंटोनमेंट के 2.57 वर्ग किमी मिलाकर कुल 17.32 वर्ग किमी है। इसमें से नैनी झील का जलागम क्षेत्र 5.66 वर्ग किमी है, जबकि कैंट सहित कुल नगर क्षेत्र में से 5.87 वर्ग किमी क्षेत्र वनाच्छादित है।
नदी के रुकने से 40 हजार वर्ष पूर्व हुआ था नैनी झील का निर्माण
कुमाऊं विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय एवं भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष भूगर्भ वेत्ता प्रो.सीसी पंत ने देश के सुप्रसिद्ध भूवेत्ता प्रो. खड़ग सिंह वल्दिया की पुस्तक Geology and Natural Environment of Nainital Hills, Kumaon Himalaaya के आधार पर बताया कि नैनीताल कभी नदी घाटी रहा होगा, इसमें उभरा नैनीताल फाल्ट नैनी झील की उत्पत्ति का कारण बना, जिसके कारण नदी का उत्तर पूर्वी भाग, दक्षिण पश्चिमी भाग के सापेक्ष ऊपर उठ गया। इस प्रकार भ्रंशों के द्वारा पुराने जल प्रवाह के रुकने तथा वर्तमान शेर का डांडा व अयारपाटा नाम की पहाड़ियों के बीच गुजरने वाले भ्रंश की हलचल व भू धंसाव से तल्लीताल डांठ के पास नदी अवरुद्ध हो गई, और करीब 40 हजार वर्ष पूर्व नैनी झील की उत्पत्ति हुई होगी। जनपद की अन्य झीलें भी इसी नदी घाटी का हिस्सा थीं, और इसी कारण उन झीलों का निर्माण भी हुआ होगा। नैना पीक चोटी इस नदी का उद्गम स्थल था। नैनी झील सहित इन झीलों के अवसादों के रेडियोकार्बन विधि से किये गये अध्ययन से भी यह आयु तथा इन सभी झीलों के करीब एक ही समय उत्पत्ति की पुष्टि भी हो चुकी है।
प्रो. पंत बताते हैं कि नैनीताल की चट्टानें चूना पत्थर की बनी हुई हैं। चूना पत्थर के लगातार पानी में घुलते जाने से विशाल पत्थरों के अंदर गुफानुमा आकृतियां बन जाती हैं, जिसे नगर में देखा जा सकता है। वहीं कई बार गुुफाओं के धंस जाने से भी झील बन जाती हैं। प्रो. पंत बताते हैं कि खुर्पाताल झील इसी प्रकार गुफाओं के धंसने से बनी है। कुछ पुराने वैज्ञानिक नैनी झील की कारक प्राचीन नदी का हिमनदों से उद्गम भी मानते हैं, पर प्रो. पंत कहते हैं कि यहां हिमनदों के कभी होने की पुष्टि नहीं होती है। लेकिन प्रो. पंत यह दावा जरूर करते हैं कि यहां की सभी झीलें भ्रंशों के कारण ही बनी हैं।
एक अरब रुपये का मनोरंजन मूल्य है नैनी झील का
जी हां, देश-विदेश में विख्यात नैनी झील की मनोरंजन कीमत (Recreational Value)100 करोड़ यानी एक अरब रुपये वार्षिक आंकी गई है। कुमाऊं विश्व विद्यालय में प्राध्यापक रहे एवं हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के पूर्व कुलपति एवं वनस्पति शास्त्री प्रो. एस.पी.सिंह ने वर्तमान स्थिति में यह दावा किया है। गौरतलब है कि प्रो. सिंह ने वर्ष 1995 में इस बाबत बकायदा शोध किया था, और तब नैनी झील का मनोरंजन मूल्य तीन से चार करोड़ रुपये आंका गया था। प्रो. सिंह बताते हैं कि मनोरंजन मूल्य लोगों व यहां आने वाले सैलानियों द्वारा नैनी झील से मिलने वाले मनोरंजन के बदले खर्च की जाने वाली धनराशि को प्रकट करता है। इसमें नाव, घोड़े, रिक्शा, होटल, टैक्सी सहित हर तरह की पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों से अर्जित की जाने वाली धनराशि शामिल हैं। इसे नगर के पर्यटन का कुल कारोबार भी कहा जा सकता है। प्रो. सिंह कहते हैं कि यह मनोरंजन मूल्य चूंकि 0.448 वर्ग किमी यानी करीब 45 हैक्टेयर वाली झील का है, लिहाजा नैनी झील का प्रति हैक्टेयर मनोरंजन मूल्य करीब दो करोड़ रुपये से अधिक है, जबकि इसके संरक्षण के लिये इस धनराशि के सापेक्ष कहीं कम धनराशि खर्च की जाती है।
पूरी तरह मौसम पर निर्भर है नैनी झील
कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्राध्यापक प्रो. जी.एल. साह नैनी झील को पूरी तरह मौसम पर निर्भर प्राकृतिक झील मानते हैं। उनके अनुसार इसमें पानी वर्ष भर मौसम के अनुसार पानी घटता, बढ़ता रहता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे Intermittent Drainage Lake यानी आंतरायिक जल निकास प्रणाली वाली झील है। उनके अनुसार इसमें वर्ष भर पानी आता भी नहीं है और वर्ष भर जाता भी नहीं है। उनके अनुसार नैनी झील में चार श्रोतों से पानी आता है। 1. अपने प्राकृतिक भू-जल श्रोतों से, 2. आसपास के सूखाताल जैसे रिचार्ज व जलागम क्षेत्र से रिसकर 3. धरातलीय प्रवाह से एवं 4. सीधे बारिश से। और यह चारों क्षेत्र कहीं न कहीं मौसम पर ही निर्भर करते हैं।
सूखाताल से आता है नैनी झील में 77 प्रतिशत पानी 
आईआईटीआर रुड़की के अल्टरनेट हाइड्रो इनर्जी सेंटर (एएचईसी) द्वारा वर्ष 1994 से 2001 के बीच किये गये अध्ययनों के आधार पर की 2002 में आई रिपोर्ट के अनुसार नैनीताल झील में सर्वाधिक 53 प्रतिशत पानी सूखाताल झील से जमीन के भीतर से होकर तथा 24 प्रतिशत सतह पर बहते हुऐ (यानी कुल मिलाकर 77 प्रतिशत) नैनी झील में आता है। इसके अलावा 13 प्रतिशत पानी बारिश से एवं शेष 10 प्रतिशत नालों से होकर आता है। वहीं झील से पानी के बाहर जाने की बात की जाऐ तो झील से सर्वाधिक 56 फीसद पानी तल्लीताल डांठ को खोले जाने से बाहर निकलता है, 26 फीसद पानी पंपों की मदद से पेयजल आपूर्ति के लिये निकाला जाता है, 10 फीसद पानी झील के अंदर से बाहरी जल श्रोतों की ओर रिस जाता है, जबकि शेष आठ फीसद पानी सूर्य की गरमी से वाष्पीकृत होकर नष्ट होता है।
वहीं इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंटल रिसर्च मुंबई द्वारा वर्ष 1994 से 1995 के बीच नैनी झील में आये कुल 4,636 हजार घन मीटर पानी में से सर्वाधिक 42.6 प्रतिशत यानी 1,986,500 घन मीटर पानी सूखाताल झील से, 25 प्रतिशत यानी 1,159 हजार घन मीटर पानी अन्य सतह से भरकर, 16.7 प्रतिशत यानी 772 हजार घन मीटर पानी नालों से बहकर तथा शेष 15.5 प्रतिशत यानी 718,500 घन मीटर पानी बारिश के दौरान तेजी से बहकर पहुंचता है। वहीं झील से जाने वाले कुल 4,687 हजार घन मीटर पानी में से सर्वाधिक 1,787,500 घन मीटर यानी 38.4 प्रतिशत यानी डांठ के गेट खोले जाने से निकलता है। 1,537 हजार घन मीटर यानी 32.8 प्रतिशत पानी पंपों के माध्यम से बाहर निकाला जाता है, 783 हजार घन मीटर यानी 16.7 प्रतिशत पानी झील से रिसकर निकल जाता है, वहीं 569,500 घन मीटर यानी 12.2 प्रतिशत पानी वाष्पीकृत हो जाता है।
दुनिया की सर्वाधिक बोझ वाली झील है नैनी झील
नैनी झील का कुल क्षेत्रफल 44.838 हैक्टेयर यानी 0.448 वर्ग किमी यानी आधे वर्ग किमी से भी कम है। इसमें 5.66 वर्ग किमी जलागम क्षेत्र से पानी (और गंदगी भी) आती है। जबकि इस छोटी सी झील पर नगर पालिका के 11.68 वर्ग किमी और केंटोनमेंट बोर्ड के 2.57 वर्ग किमी मिलाकर 14.25 वर्ग किमी क्षेत्रफल की जिम्मेदारी है। इसमें से भी प्रो. साह बताते हैं कि नगर की 80 फीसद जनसंख्या इसके जलागम क्षेत्र यानी 5.66 वर्ग किमी क्षेत्र में ही रहती है। यानी नगर के 14.25 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले शहर की 80 प्रतिशत जनंसख्या इसके जलागम क्षेत्र 5.66 वर्ग किमी में रहती है, इसमें सीजन में हर रोज एक लाख से अधिक लोग पर्यटकों के रूप में भी आते हैं, और यह समस्त जनसंख्या किसी न किसी तरह से मात्र 0.448 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली झील पर निर्भर रहती है। प्रो. साह कहते हैं कि इतने बड़े बोझ को झेल रही यह दुनिया की अपनी तरह की इकलौती झील है।  
झील में प्रदूषण के बावजूद शुद्धतम पेयजल देती है नैनी झील
हाईड्रोलॉजिकल जर्नल-2008 में प्रकाशित भारत के आर.आर दास, आई.मेहरोत्रा व पी.कुमार तथा जर्मनी के टी.ग्रिश्चेक द्वारा नगर में नैनी झील किनारे लगाये गये पांच नलकूपों से निकलने वाले पानी पर वर्ष 1997 से 2006 के बीच किये गये शोध में नैनी झील के जल को शुद्धतम जल करार दिया गया है। कहा गया कि नगर में झील से 100 मीटर की दूरी पर 22.6 से 36.7 मीटर तक गहरे लगाये गये नलकूपों का पानी अन्यत्र पानी के फिल्ट्रेशन के लिये प्रयुक्त किये जाने वाले रेत और दबाव वाले कृत्रिम फिल्टरों के मुकाबले कहीं बेहतर पानी देते हैं। इनसे निकलने वाले पानी को पेयजल के लिये उपयोगी बनाने के लिये क्लोरीनेशन करने से पूर्व अतिरिक्त उपचार करने की जरूरत भी नहीं पड़ती। समान परिस्थितियों में किये गये अध्ययन में जहां फिल्टरों से गुजारने के बावजूद नैनी झील में 2300 एमपीएन कोलीफार्म बैक्टीरिया प्रति 100 मिली पानी में मिले, जोकि क्लोरीनेशन के लिये उपयुक्त 50 एमपीएन से कहीं अधिक थे, जबकि नलकूपों से प्राप्त पानी में कोलीफार्म बैक्टीरिया मिले ही नहीं। इसका कारण यह माना गया कि इन नलकूपों में झील से बिना किसी दबाव के पानी आता है, जबकि कृत्रिम फिल्टरों में पानी को दबाव के साथ गुजारा जाता है, जिसमें कई खतरनाक बैक्टीरिया भी गुजर आते हैं। इसीलिये यहां के प्रयोग को दोहराते हुऐ देश में रिवर बैंक फिल्टरेशन तकनीक शुरू की गई। इन नलकूपों के प्राकृतिक तरीके से शोधित पानी में बड़े फिल्टरों के मुकाबले कम बैक्टीरिया पाये गये।
मल्ली-तल्ली के बीच सात फीट झुकी है नैनी झील
जी हां, मल्लीताल और तल्लीताल के बीच नैनी झील सात फीट झुकी हुई है। झील से पानी बाहर निकाले जाने की पूरी तरह भरी स्थिति में झील की तल्लीताल शिरे पर जब झील की सतह की समुद्र सतह से ऊंचाई 6,357 फीट होती है, तब मल्लीताल शिरे पर झील की सतह की समुद्र सतह ऊंचाई 6,364 फीट होती है। यानी झील के मल्लीताल व तल्लीताल शिरे पर झील की समुद्र सतह से ऊंचाई में सात फीट का अंतर रहता है।
प्राकृतिक वनों का अनूठा शहर है नैनीताल
नैनीताल नगर का एक खूबसूरत पहलू यह भी है कि यह नगर प्राकृतिक वनों का शहर है। वनस्पति विज्ञानी प्रो. एस.पी. सिंह के अनुसार नगर की नैना पीक चोटी में साइप्रस यानी सुरई का घना जंगल है। यह जंगल पूरी तरह प्राकृतिक जंगल है, यानी इसमें पेड़ लगाये नहीं गये हैं, खुद-ब-खुद उगे हैं। नगर के निकट किलबरी का जंगल दुनिया के पारिस्थितिकीय तौर पर दुनिया के समृद्धतम जंगलों में शुमार है। नैनी झील का जलागम क्षेत्र बांज, तिलोंज व बुरांश आदि के सुंदर जंगलों से सुशोभित है। नगर की इस खाशियत का भी इस शहर को अप्रतिम बनाने में बड़ा योगदान है। प्रो. सिंह नगर की खूबसूरती के इस कारण को रेखांकित करते हुऐ बताते हैं कि इसी कारण नैनीताल नगर के आगे जनपद की सातताल, भीमताल, नौकुचियाताल और खुर्पाताल आदि झीलें खूबसूरती, पर्यटन व मनोरजन मूल्य सही किसी भी मायने में कहीं नहीं ठहरती हैं।
इसके अलावा नैनीताल की और एक विशेषता यह है कि यहां कृषि योग्य भूमि नगण्य है, हालांकि राजभवन, पालिका गार्डन, कैनेडी पार्क व कंपनी बाग सहित अनेक बाग-बगीचे हैं।
‘वाकिंग पैराडाइज’ भी कहलाता है नैनीताल
नैनीताल नगर ‘वाकिंग पैराडाइज’ यानी पैदल घूमने के लिये भी स्वर्ग कहा जाता है। क्योंकि यहां कमोबेस हर मौसम में, मूसलाधार बारिश को छोड़कर, दिन में किसी भी वक्त घूमा जा सकता है। जबकि मैदानी क्षेत्रों में सुबह दिन चढ़ने और सूर्यास्त से पहले गर्मी एवं सड़कों में भारी भीड़-भाड़ के कारण घूमना संभव नहीं होता है। जबकि यहां नैनीताल में वर्ष भर मौसम खुशनुमा रहता है, व अधिक भीड़ भी नहीं रहती। नगर की माल रोड के साथ ही ठंडी सड़क में घूमने का मजा ही अलग होता है। वहीं वर्ष 2010 से नगर में अगस्त माह के आखिरी रविवार को नैनीताल माउंटेन मानसून मैराथन दौड़ भी नगर की पहचान बनने लगी है, इस दौरान किसी खास तय नेक उद्देश्य के लिये ‘रन फार फन’ वाक या दौड़ भी आयोजित की जाती है, जो अब मानूसन के दौरान नगर का एक प्रमुख आकर्षण बनता जा रहा है।
नैनीताल में है एशिया का पहला मैथोडिस्ट चर्च
सरोवरनगरी से बाहर के कम ही लोग जानते होंगे कि देश-प्रदेश के इस छोटे से पर्वतीय नगर में देश ही नहीं एशिया का पहला अमेरिकी मिशनरियों द्वारा निर्मित मैथोडिस्ट चर्च निर्मित हुआ, जो कि आज भी कमोबेश पहले से बेहतर स्थिति में मौजूद है। नगर के मल्लीताल माल रोड स्थित चर्च को यह गौरव हासिल है। देश पर राज करने की नीयत से आये ब्रिटिश हुक्मरानों से इतर यहां आये अमेरिकी मिशनरी रेवरन यानी पादरी डा. बिलियम बटलर ने इस चर्च की स्थापना की थी।
यह वह दौर था जब देश में पले स्वाधीनता संग्राम की क्रांति जन्म ले रही थी। मेरठ अमर सेनानी मंगल पांडे के नेतृत्व में इस क्रांति का अगुवा था, जबकि समूचे रुहेलखंड क्षेत्र में रुहेले सरदार अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हो रहे थे। बरेली में उन्होंने शिक्षा के उन्नयन के लिये पहुंचे रेवरन बटलर को भी अंग्रेज समझकर उनके परिवार पर जुल्म ढाने शुरू कर दिये, जिससे बचकर बटलर अपनी पत्नी क्लेमेंटीना बटलर के साथ नैनीताल आ गये, और यहां उन्होंने शिक्षा के प्रसार के लिये नगर के पहले स्कूल के रूप में हम्फ्री कालेज (वर्तमान सीआरएसटी स्कूल) की स्थापना की, और इसके परिसर में ही बच्चों एवं स्कूल कर्मियों के लिये प्रार्थनाघर के रूप में चर्च की स्थापना की। तब तक अमेरिकी मिशनरी एशिया में कहीं और इस तर चर्च की स्थापना नहीं कर पाऐ थे। बताते हैं कि तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नरी हेनरी रैमजे ने 20 अगस्त 1858 को चर्च के निर्माण हेेतु एक दर्जन अंग्रेज अधिकारियों के साथ बैठक की थी। चर्च हेतु रैमजे, बटलर व हैम्फ्री ने मिलकर 1650 डॉलर में 25 एकड़ जमीन खरीदी, तथा इस पर 25 दिसंबर 1858 को इस चर्च की नींव रखी गई। चर्च का निर्माण अक्टूबर 1860 में पूर्ण हुआ। इसके साथ ही नैनीताल उस दौर में देश में ईसाई मिशनरियों के शिक्षा के प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र बन गया। अंग्रेजी लेखक जॉन एन शालिस्टर की 1956 में लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक ‘द सेंचुरी ऑफ मैथोडिस्ट चर्च इन सदर्न एशिया’ में भी नैनीताल की इस चर्च को एशिया का पहला चर्च कहा गया है। नॉर्थ इंडिया रीजनल कांफ्रेंस के जिला अधीक्षक रेवरन सुरेंद्र उत्तम प्रसाद बताते हैं कि रेवरन बटलर ने नैनीताल के बाद पहले यूपी के बदायूं तथा फिर बरेली में 1870 में चर्च की स्थापना की। उनका बरेली स्थित आवास बटलर हाउस वर्तमान में बटलर प्लाजा के रूप में बड़ी बाजार बन चुकी है, जबकि देरादून का क्लेमेंट टाउन क्षेत्र का नाम भी संभवतया उनकी पत्नी क्लेमेंटीना के नाम पर ही प़डा।
1890 में हुई पाल नौकायन की शुरुआत, विश्व का सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित है याट क्लब
1890 में नैनीताल में विश्व के सर्वाधिक ऊँचे याट (पाल नौका, सेलिंग-राकटा) क्लब (वर्तमान बोट हाउस क्लब) की स्थापना हुई। एक अंग्रेज लिंकन होप ने यहाँ की परिस्थितियों के हिसाब से विशिष्ट पाल नौकाएं बनाईं, जिन्हें ‘हौपमैन हाफ राफ्टर’ कहा जाता है, इन नावों के साथ इसी वर्ष सेलिंग क्लब ने नैनी सरोवर में सर्व प्रथम पाल नौकायन की शुरुआत भी की। यही नावें आज भी यहाँ चलती हैं। 1891 में नैनीताल याट क्लब (N.T.Y.C.) की स्थापना हुई। बोट हाउस क्लब वर्तमान स्वरुप में 1897 में स्थापित हुआ। 

समुद्र स्तर से 1938 मीटर (6358 फीट) की ऊंचाई (तल्लीताल डांठ पर) पर स्थित नैनीताल करीब तीन किमी की परिधि की 1434 मीटर लंबी, 463 मीटर चौड़ाई व अधिकतम 28 मीटर गहराई व 44.838 हेक्टेयर यानी 0.448 वर्ग किमी में फैली नाशपाती के आकार की झील के गिर्द नैना (2,615 मीटर (8,579 फुट), देवपाटा (2,438 मीटर (7,999 फुट)) तथा अल्मा, हांड़ी-बांडी, लड़िया-कांटा और अयारपाटा (2,278 मीटर (7,474 फुट) की सात पहाड़ियों से घिरा हुआ बेहद खूबसूरत पहाडी शहर है। जिला गजट के अनुसार नैनीताल 29 डिग्री 38 अंश उत्तरी अक्षांश और 79 डिग्री 45 अंश पूर्वी देशांतर पर स्थित है। नैनीताल नगर का विस्तार पालिका मानचित्र के अनुसार सबसे निचला स्थान कृष्णापुर गाड़ व बलियानाला के संगम पर पिलर नंबर 22 (1,406 मीटर यानी 4,610 फीट) से नैना पीक (2,613 मीटर यानी 8,579 फीट) के बीच 1,207 मीटर यानी करीब सवा किमी की सीधी ऊंचाई तक है। इस लिहाज से भी यह दुनिया का अपनी तरह का इकलौता और अनूठा छोटा सा नगर है, जहां इतना अधिक ग्रेडिऐंट मिलता है। नगर का क्षेत्रफल नगर पालिका के 11.66 वर्ग किमी व कैंटोनमेंट के 2.57 वर्ग किमी मिलाकर कुल 17.32 वर्ग किमी है। इसमें से नैनी झील का जलागम क्षेत्र 5.66 वर्ग किमी है, जबकि कैंट सहित कुल नगर क्षेत्र में से 5.87 वर्ग किमी क्षेत्र वनाच्छादित है।

बैरन (18 नवंबर 1841) से पहले ही 1823 में नैनीताल आ चुके थे कमिश्नर ट्रेल

-बैरन ने नहीं ट्रेल ने खोजा था नैनीताल 

-नैनीताल की आज के स्वरूप में स्थापना और खोज को लेकर ऐतिहासिक भ्रम की स्थिति
नवीन जोशी, नैनीताल। इतिहास जैसा लिख दिया जाए, वही सच माना जाता है, और उसमें कोई झूठ हो तो उस झूठ को छुपाने के लिए एक के बाद एक कई झूठ बोलने पड़ते हैं। प्रकृति के स्वर्ग नैनीताल के साथ भी ऐसा ही है। युग-युगों पूर्व स्कंद पुराण के मानस खंड में त्रिऋषि सरोवर के रूप में वर्णित इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि सर्वप्रथम पीटर बैरन नाम का अंग्रेज व्यापारी 18 नवंबर 1841 को यहां पहुंचा, और नगर में अपना पहला घर-पिलग्रिम लॉज बनाकर नगर को वर्तमान स्वरूप में बसाना प्रारंभ किया। लेकिन अंग्रेजी दौर के अन्य दस्तावेज भी इसे सही नहीं मानते। उनके अनुसार 1823 में ही कुमाऊं के दूसरे कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल यहां पहुंच चुके थे और इसकी प्राकृतिक सुन्दरता देखकर अभिभूत थे, लेकिन उन्होंने इस स्थान की सुंदरता और स्थानीय लोगों की धार्मिक मान्यताओं के मद्देनजर इसे न केवल अंग्रेज कंपनी बहादुर की नजरों से छुपाकर रखा, वरन स्थानीय लोगों से भी इस स्थान के बारे में किसी अंग्रेज को न बताने की ताकीद की थी। इसके अलावा भी बैरन के 1841 की जगह 1839 में पहले भी नैनीताल आने की बात भी कही जाती है।

मिस्टर ट्रेल ने नैनीताल के बारे में किसी को कुछ क्यों नहीं बताया, इस बाबत इतिहासकारों का मत है कि शायद उन्हें डर था कि मनुष्य की यहाँ आवक बड़ी तो यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता पर दाग लग जायेंगे, और इस स्थान की पवित्रता को ठेस पहुंचेगी। ट्रेल के बारे में कहा जाता है कि वह कुमाउनी संस्कृति के बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने रानीखेत की कुमाउनी युवती से ही विवाह किया था, और वह अच्छी कुमाउनी भी जानते थे। उन्हें 1834 में हल्द्वानी को बसाने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने ही 1830 में भारत-तिब्बत के बीच 5,212 मीटर की ऊंचाई पर एक दर्रे की खोज की थी, जिसे उनके नाम पर ही ट्रेल’स पास कहा जाता है। बताया जाता है कि उस दौर में निचले क्षेत्रों से लोग पशुचारण के लिए यहां सूर्य निकलने के बाद ही आते थे, और धार्मिक मान्यता के मद्देनजर सूर्य छुपने से पहले लौट जाया करते थे। यही कारण था कि ट्रेल ने इस स्थान की सुंदरता और स्थानीय लोगों की धार्मिक मान्यताओं के मद्देनजर इसे न केवल अंग्रेज कंपनी बहादुर की नजरों से छुपाकर रखा, वरन स्थानीय लोगों से भी इस स्थान के बारे में किसी अंग्रेज को न बताने की ताकीद की थी। इसी कारण 18 नवंबर 1841 में जब शहर के खोजकर्ता के रूप में पहचाने जाने वाले रोजा-शाहजहांपुर के अंग्रेज शराब व्यवसायी पीटर बैरन कहीं से इस बात की भनक लगने पर जब इस स्थान की ओर आ रहे थे तो किसी ने उन्हें इस स्थान की जानकारी नहीं दी। इस पर बैरन को नैंन सिंह नाम के व्यक्ति (उसके दो पुत्र राम सिंह व जय सिंह थे। ) के सिर में भारी पत्थर रखवाना पड़ा। उसे आदेश दिया गया, ‘इस पत्थर को नैनीताल नाम की जगह पर ही सिर से उतारने की इजाजत दी जाऐगी”। इस पर मजबूरन नैन सिंह बैरन को तत्कालीन आर्मी विंग केसीवी के कैप्टन सी व कुमाऊँ वर्क्स डिपार्टमेंट के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर कप्तान वीलर के साथ सैंट लू गोर्ज (वर्तमान बिडला चुंगी) के रास्ते नैनीताल लेकर आया। यह भी उल्लेख मिलता है कि बैरन ने यहाँ के तत्कालीन स्वामी, थोकदार नर सिंह को डरा-धमका कर, यहाँ तक कि उन्हें पहली बार लाई गयी नाव से नैनी झील के बीच में ले जाकर डुबोने की धमकी देकर इस स्थान का स्वामित्व कंपनी बहादुर के नाम जबरन कराया था। हालांकि अंतरराष्ट्रीय शिकारी जिम कार्बेट व ‘कुमाऊं का इतिहास” के लेखक बद्री दत्त पांडे के अनुसार बैरन दिसंबर 1839 में भी नैनीताल को देख कर लौट गया था, और 1841 में पूरी तैयारी के साथ वापस लौटा।

बैरन को बिलायत से भी सुंदर लगा था नैनीताल

नैनीताल। नैनीताल आने के बाद बैरन ने 1842 में आगरा अखबार में नैनीताल के बारे में पहला लेख लिखा। जिसमें लिखा था, ‘अल्मोड़ा के पास एक सुन्दर झील व वनों से आच्छादित स्थान है जो विलायत के स्थानों से भी अधिक सुन्दर है”। हालांकि यह भी यही कारण है कि अंग्रेजों ने नैनीताल को अपने घर बिलायत की तरह ही ‘छोटी बिलायत” के रूप में बसाया, और इसके पर्यावरण और इसकी सुरक्षा के भी पूरे प्रबंध किए।

1840 में (स्थापना से पहले से) स्थापित दुकान भी है शहर में

नैनीताल। दिलचस्प तथ्य है कि जिस शहर की अंग्रेजों द्वारा खोज व बसासत की तिथि 18 नवंबर 1841 बताई जाती है, वहां 1840 में स्थापित दुकान आज भी मौजूद है। तल्लीताल बाजार में ‘शाम लाल एंड संस” नाम की इस दुकान के स्वामी राकेश लाल साह ने बताया कि उनके परदादा शाम (श्याम का अपभ्रंश) लाल साह ने मंडलसेरा बागेश्वर से आकर यहां 1840 में दुकान स्थापित की थी। शुरू में यहां राशन का गोदाम था, जिससे अंग्रेजों को आपूर्ति होती थी। वह अंग्रेजों को उनके पोलो खेलने के लिए प्रशिक्षित घोड़े भी उपलब्ध करवाते थे। 1842-43 में गोदाम कपड़े की दुकान में परिवर्तित हो गई। तभी से दुकान के बाहर इसकी स्थापना का वर्ष लिखा है, जिसे समय-समय पर केवल ऊपर से पेंट कर दिया जाता है। उनके पास दुकान से संबंधित कई पुराने प्रपत्र भी हैं। इस दुकान के पास उस दौर में इंग्लेंड से सीधे कपड़े आयात व निर्यात करने का लाइसेंस भी था। यहां इंग्लेंड का हैरिस कंपनी का ट्वीड का कपड़ा मिलता था। बताया कि अगल-बगल वर्तमान मटरू शॉप में गोविंद एंड कंपनी वाइन शॉप तथा वर्तमान बिदास संस में पॉलसन बटर शॉप भी समकालीन थीं। अंग्रेजी दौर के बहुत बाद के वर्षों तक तल्लीताल बाजार में यहाँ से आगे के बाजार में अंग्रेज सैनिकों, अधिकारियों का जाना प्रतिबंधित था। वहां केवल भारतीय ही खरीददारी कर सकते थे। वहां नाच-गाना भी होता था।

विश्वास करेंगे, 1823 के मानचित्र में प्रदर्शित है नैनीताल

India 1823
India 1823

हम इस मानचित्र की सत्यता का दावा नहीं करते, परंतु 1823 में प्रकाशित बताए गए एटलस में भारत के इस मानचित्र में नैनीताल भी दर्शाया गया है। इस मानचित्र में उत्तराखंड का नैनीताल के अलावा केवल एक ही अन्य नगर-अल्मोड़ा प्रदर्शित किया गया है। यह मानचित्र विश्वसनीय विकीपीडिया की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है, तथा इसे वर्ष 2005 की नगर पालिका नैनीताल द्वारा शरदोत्सव पर प्रकाषित स्मारिका-शरदनंदा में भी प्रकाषित किया गया था। यदि इस मानचित्र पर इसके प्रकाषन का वर्ष 1823 सही लिखा है तो यह सोचने वाली बात होगी कि 18 नवंबर 1841 को अंग्रेजों द्वारा पहली बार खोजा गया बताया जाने वाला नैनीताल 1823 में कोई छोटा स्थान नहीं, अपितु नामचीन स्थान रहा होगा। कम से कम इतना ख्याति प्राप्त कि इस मानचित्र के निर्माता का ध्यान जब उत्तराखंड के स्थानों का नाम लिखने की ओर गया होगा तो उसे अल्मोड़ा के अलावा केवल नैनीताल नाम ही याद आया होगा। उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष यानी 1823 में ही जॉर्ज विलियम ट्रेल के नैनीताल आने की बात कही जाती है। उल्लेखनीय है कि नैनीताल का “त्रिषि सरोवर” के नाम से पौराणिक इतिहास भी है।

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