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स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरवर्ग, विराट कोहली को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले बाबा नीब करौरी व उनके कैंची धाम के बारे में सब कुछ

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बाबा नीब करौरी, जिन्होंने नैनीताल की फल पट्टी के सेब को चख कर बना दिया दुनिया का ‘एप्पल’, बाबा व उनके कैंची धाम के बारे में पूरी जानकारी

-फेसबुक, जूलिया, लैरी सहित अनेकों पर बरसी बाबा नीब करौरी की कृपा
-बाबा के कैंची धाम में हर वर्ष 15 जून को लगता है मेला, पिछले वर्षों में एक दिन में देश-विदेश के ढाई लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान
कौन थे बाबा नीम करोली, जिनके PM Modi और जुकरबर्ग समेत दुनियाभर में हैं  भक्त? जानें क्या है कैंची धाम की महत्ता | Interesting facts about Baba neem karoli  Kainchi Dham ...डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, आस्था डेस्क, नैनीताल। (Baba Nib Karori, who tasted the apple of Nainital’s and made it the ‘apple’ of the world, complete information about Baba and his Kainchi Dham) कम ही लोग जानते हैं कि दुनिया की मशहूर एप्पल कंपनी का लोगो आधे खाए सेब का क्यों है ? सच्चाई यह है कि यह सेब वास्तव में उत्तराखंड की सेब, आड़ू, खुबानी व पुलम आदि फलों के लिए विख्यात नैनीताल जिले की रामगढ-भवाली फल पट्टी का है, जिसे यहाँ भवाली के पास कैंची धाम के बाबा नीब करौरी (अपभ्रंश नीम करौरी) ने कभी आधा खाया था। उन्होंने यह सेब आधा खाकर तब भारी नुकसान से परेशान चल रहे स्टीव जॉब्स नाम के व्यक्ति को दिया था, जिन्होंने इसे प्रसाद स्वरुप अपनी कंपनी का लोगो और नाम बना दिया, और कंपनी चल निकली, और आज जैसे मुकाम पर है। यह भी पढ़ें : विराट-अनुष्का सहित हजारों श्रद्धालुओं ने किए बाबा नीब करौली के दर्शन 

हुआ यह कि 1 अप्रैल 1979 को कम्प्यूटर किट बनाने के लिए स्टीब वेजनियर, स्टीब जॉब्स व रोनाल्ड वेन ने एक कम्पनी की कैलिफोर्निया अमेरिका में स्थापना की थी। शुरुआती दौर में कम्पनी को घाटा उठाना पड़ा और स्टीब जॉब्स शांति की तलाश में भटकते हुए भारत के उत्तराखंड आ गए। यहां वे नैनीताल जिले में स्थित कैंची धाम के नीब करौरी बाबा की शरण में शरणागत हुए। कहते हैं कि एक दिन नीब करौरी बाबा ने प्रसाद के रूप में उन्हें अपना एक निवाला बनाया सेब दिया। स्टीब जॉब्स ने उसे ही अपनी सफलता का सूत्र माना और कैलिफोर्निया जाकर उसी आधे खाये सेब को अपनी एप्पल कम्पनी का लोगो बना डाला। इसीलिए एप्पल के लोगों में एक सेब एक ओर से आधा खाया हुआ नजर आता है। यह भी पढ़ें : बाबा नीब करौरी, जिन्होंने नैनीताल की फल पट्टी के सेब को चख कर बना दिया दुनिया का ‘एप्पल’, बाबा व उनके कैंची धाम के बारे में पूरी जानकारी

इसके बाद नीब करौरी बाबा की स्टीब जॉब्स पर ऐसी कृपा बरसी की एप्पल इलेक्ट्रॉनिक की दुनिया का बादशाह बन गया और वर्तमान में उसकी 500 से ज्यादा शाखाएं पूरी दुनिया में हैं। लगभग एक लाख से ज्यादा कर्मचारी व कई मिलियन डॉलर का व्यवसाय कर रही एप्पल कम्पनी के स्टीब जॉब्स के अलावा उनके शिष्य फेसबुक के संस्थापक व प्रमुख मार्क जुकरबर्ग पर भी कैंची धाम में बाबा की कृपा बरसी। यह भी पढ़ें : बाबा नीब करौरी की कृपा से महिला विश्व चैंपियनशिप में जड़ा ऐतिहासिक ‘गोल्डन पंच’

बाबा जी व उनके नाम के बारे में सही जानकारी:

बाबा जी के बारे में सही जानकारी यह है कि उनका जन्म आगरा के निकट फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में जमींदार घराने में मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को हुआ था। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मण दास शर्मा था। इस नाम से अब उत्तर प्रदेश के जिला फर्रुखाबाद में एक रेलवे स्टेशन भी है। यह भी पढ़ें : नाम के पहले अक्षर से जानें किसी भी व्यक्ति के बारे में सब कुछ

बताया जाता है कि उनका 11 वर्ष की उम्र में विवाह हो गया था। इसके बाद बाबा जी ने जल्दी ही घर छोड़ दिया और करीब 10 वर्षों तक घर से दूर रहे। कहा जाता है कि उन्हें मात्र 17 वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त हो गया था। गुजरात के बवानिया मोरबी में बाबा जी ने साधना की और वे वहां ‘तलैयां वाले बाबा’ के नाम से मशहूर हो गए और वृंदावन में वे ‘महाराज जी’ व ‘चमत्कारी बाबा’ के नाम से भी जाने गए। उनको ‘लक्ष्मण दास’, ‘हांड़ी वाला बाबा’, ‘तिकोनिया वाले बाबा’ व ‘भगवान जी’ आदि नामों से भी जाना जाने लगा। ऐसे में एक दिन अचानक उनके पिता उनसे मिलने पहुंचे और गृहस्थ जीवन का पालन करने को कहा। पिता के आदेश को मानते हुए वह घर वापस लौट आए और दोबारा गृहस्थ जीवन शुरू कर दिया। वे गृहस्थ जीवन के साथ-साथ धार्मिक और सामाजिक कामों में भी सहायता करते थे। गृहस्थ जीवन के दौरान उनके दो बेटे और एक बेटी हुई। लेकिन, कुछ समय बाद पुनः उनका घर-गृहस्थी में मन लगना बंद हो गया। इसके बाद 1958 के आस-पास उन्होंने फिर से घर त्याग कर दिया। यह भी पढ़ें : काम की बातें : अपने नाम में ऐसे मामूली सा बदलाव कर लाएं अपने भाग्य में चमत्कारिक बदलाव…

बाबा ऐसे बने साधु व मिला ‘नीब करौरी नाम 
कहते हैं कि इस दौरान एक दिन बाबा ट्रेन में बिना टिकट के यात्रा कर रहे थे। अंग्रेज टीटी को पता चला तो उन्होंने उन्हें ‘नीब करौरी’ नाम के गांव के पास ट्रेन से उतार दिया। लेकिन यह क्या, बाबा के उतरने के बाद ट्रेन लाख प्रयत्नों के बावजूद यहां से चल नहीं सकी। बाद में एक स्थानीय एक हाथ वाले मजिस्ट्रेट से बाबा की महिमा जान रेलकर्मियों ने उन्हें आदर सहित वापस ट्रेन में बैठाया, जिसके बाद बाबा के ‘चल’ कहने पर ही ट्रेन चल पड़ी। तभी से इस स्थान पर ‘नीब करौरी’ नाम से रेलवे का छोटा स्टेशन बना। कहते हैं कि फर्रुखाबाद जिले के नीब करौरी गाँव में ही वह सर्वप्रथम साधू के रूप में दिखाई दिए थे, इसलिए उन्हें ‘नीब करौरी’ बाबा कहा गया।

बाबा नीब करौरी के कैंची धाम की वेबसाईट के अनुसार भी जब महाराज-जी करीब 30 वर्ष की आयु के थे। कई दिनों तक, किसी ने उन्हें खाना नहीं दिया। भूख ने उन्हें निकटतम शहर के लिए ट्रेन में चढ़ने के लिए मजबूर कर दिया। जब कंडक्टर ने देखा कि एक युवा साधु प्रथम श्रेणी के कोच में बिना टिकट के बैठे हैं, तो उन्होंने ट्रेन का आपातकालीन ब्रेक लगा दिया और ट्रेन रुक गई। इसके बाद कुछ मौखिक बहस के बाद, महाराज जी को अनायास ही ट्रेन से उतार दिया गया। जिस स्थान पर ट्रेन रुकी थी वह उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले का नीब करोरी गाँव था। ट्रेन से उतरने के बाद महाराज जी एक पेड़ की छांव में बैठ गए। यह भी पढ़ें : धनी बनना चाहते हैं तो जानें बाबा नीब करौरी द्वारा बताए धनी बनने के तीन उपाय

उन्हें उतारकर जब ट्रेन को चलाने का प्रयास किया गया तो ट्रेन हर संभव प्रयास करने के बाद भी चल नहीं पायी। इस पर महाराज-जी को जानने वाले एक हाथ वाले एक स्थानीय मजिस्ट्रेट ने रेलवे के अधिकारियों को सुझाव दिया कि वे उस युवा साधु को वापस ट्रेन में बिठा लें। शुरू में अधिकारी इसे अंधविश्वास मान रहे थे, लेकिन ट्रेन को आगे बढ़ाने के कई निराशाजनक प्रयासों के बाद उन्होंने इसे आजमाने का फैसला किया। यह भी पढ़ें : बाबा नीब करौरी के बताये उन संकेतों को जानें, जिनसे आपके जीवन में आने वाले हैं ‘अच्छे दिन’

इस पर कई यात्री और रेलवे के अधिकारी महाराज-जी के पास प्रसाद के रूप में भोजन और मिठाई लेकर पहुंचे। उन्होंने अनुरोध किया कि वह ट्रेन में चढ़े। उन्होंने दो शर्तों पर सहमति व्यक्त की। रेलवे अधिकारियों को नीब करोरी गाँव के लिए एक स्टेशन बनाने (उस समय ग्रामीणों को निकटतम स्टेशन तक कई मील पैदल चलना पड़ता था) और रेलवे को साधुओं के साथ बेहतर व्यवहार करने की शर्त रखी। अधिकारियों ने अपनी शक्ति से यथासंभव करने का वादा किया। इसके बाद महाराज जी ट्रेन में सवार हो गए। तब उन्होंने महाराज-जी से ट्रेन चलाने के लिए कहा। महाराज-जी ने कहा, ‘उसे जाने दो।’ उनके ऐसा कहने पर ट्रेन आगे बढ़ गई। इसके बाद जल्द ही नीब करोरी में एक रेलवे स्टेशन बनाया गया और साधुओं को अधिक सम्मान दिया जाने लगा। कोई साधु बिना टिकट हो तो उसे इस तरह नहीं उतारा जाने लगा।

नीम करोली बाबा का चमत्कारी मंत्र

‘’मै हूँ बुद्धि मलीन अति श्रद्धा भक्ति विहीन। 

करू विनय कछु आपकी, होउ सब ही विधि दिन। 

कृपासिंधु गुरुदेव प्रभु, करि लीजे स्वीकार।’’ 

कैंची धाम कैसे पहुँचें

कैंची धाम नैनीताल, उत्तराखंड, भारत में (https://goo.gl/maps/4BjEiZqqAishw9uTA) स्थित है। यह गंगोत्री धाम के बाद सबसे महत्वपूर्ण चार धामों में से एक है। यहां कुछ विभिन्न तरीके बताए गए हैं जिनसे आप कैंची धाम पहुंच सकते हैं:

  1. हवाई जहाज़: नजदीकी हवाई अड्डे से देहरादून , जो कि उत्तराखंड की राजधानी है, या पंतनगर तक आप कैंची धाम के लिए हवाई जहाज़ का उपयोग कर सकते हैं। वहां से, आप टैक्सी या बस सेवा का उपयोग करके कैंची धाम तक पहुँच सकते हैं।
  2. रेलगाड़ी: रेलगाड़ी से भी आप देहरादून तक जा सकते हैं और वहां से आप कैंची धाम जाने के लिए टैक्सी या बस सेवा का उपयोग कर सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार है, जो उत्तराखंड के मुख्य शहरों में से एक है।
  3. सड़क मार्ग: कैंची धाम पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला तरीका है। कैंची धाम तक सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए निम्नलिखित तरीकों का उपयोग किया जा सकता है:
    1. बस: उत्तराखंड में कई सर्वाधिक उपयोग में आने वाली बस सेवाएं हैं जो कैंची धाम के निकट बस स्टेशन तक पहुंचती हैं। हरिद्वार, रिशिकेश, देहरादून और उत्तराखंड के अन्य महत्वपूर्ण शहरों से बस सेवाएं उपलब्ध हैं। आप अपनी आवश्यकताओं और बजट के अनुसार एक बस यात्रा चुन सकते हैं।
    2. टैक्सी / कार: आप अपनी वाहन से भी कैंची धाम तक पहुंच सकते हैं। आप एक टैक्सी या कार किराए पर भी ले सकते हैं और कैंची धाम तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
    3. मोटरसाइकिल: कुछ लोग कैंची धाम तक मोटरसाइकिल या स्कूटर से जाते हैं। यह एक अच्छा विकल्प हो सकता है, लेकिन इससे पहले आपको अपनी सुरक्षा के लिए सुनिश्चित करना चाहिए कि आपके पास सही गियर और हेलमेट हो। 

      कैंची धाम में ठहरने की सुविधा : कैंची धाम में ठहरने की सुविधाएं सीमित हैं। फिर भी निम्नलिखित विकल्प उपलब्ध हैं:

      1. हल्द्वानी या भवाली, भीमताल में ठहरना भी बेहतर विकल्प हो सकता है। यहां अपेक्षाकृत सस्ती दरों के होटलों में ठहरकर कैंची धाम पहुंचा जा सकता है।
      2. धार्मिक स्थलों के आश्रम या लोज: कैंची धाम में कई आश्रम और धार्मिक स्थल हैं जो आपको ठहरने की सुविधा प्रदान करते हैं। ये स्थान आमतौर पर आध्यात्मिक तपस्या और मन की शांति के लिए समर्पित होते हैं।
      3. होटल और रेस्ट हाउस: कैंची धाम के पास कई होटल और रेस्ट हाउस हैं जो आपको ठहरने की सुविधा प्रदान करते हैं। ये स्थान आपको विभिन्न व्यवसायों की व्यवस्था के साथ अलग-अलग बजट की अनुमति देते हैं।
      4. टेंट और कैंपिंग सुविधाएं: कैंची धाम के पास कुछ टेंट और कैंपिंग सुविधाएं भी हैं जो ठहरने की सुविधा प्रदान करती हैं। ये स्थान वास्तविक रूप से आवेदन करने वाले व्यक्ति के अनुभव पर निर्भर करते हैं।

    कैंची धाम की विभिन्न स्थानों से दूरियाँ  :

      1. दिल्ली से कैंची धाम : दिल्ली से कैंची धाम की दूरी लगभग 340 कि.मी. है। राज्यमार्ग 7 और राष्ट्रीय राजमार्ग 9 के माध्यम से लगभग 7 घंटे 30 मिनट में कैंची धाम तक जा सकते हैं।
      2. लखनऊ से कैंची धाम: लखनऊ से कैंची धाम की दूरी लगभग 400 किलोमीटर है। आप राज्यमार्ग 90 के माध्यम से लगभग 9 घंटे में NH730, NH30 व NH7 से होकर कैंची धाम तक कार या टैक्सी तक आ सकते हैं।
      3. देहरादून से कैंची धाम: देहरादून से कैंची धाम की दूरी लगभग 207 किलोमीटर है। आप देहरादून से टैक्सी, कार या बस सेवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं जो कैंची धाम तक जाती हैं। 
      4. हरिद्वार से कैंची धाम: हरिद्वार से कैंची धाम की दूरी लगभग 232 किलोमीटर है। आप हरिद्वार से बस, कार या टैक्सी सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं जो कैंची धाम तक जाती हैं। 
      5. नैनीताल से कैंची धाम: नैनीताल से कैंची धाम की दूरी लगभग 180 किलोमीटर है

कैंची धाम में तापमान, मौसम :

कैंची धाम की जलवायु शीतोष्ण और उष्णोष्ण दोनों प्रकार की है। यहाँ 

  • गर्मियों (मार्च से मई तक): गर्मियों में यहाँ का तापमान 10°C से 27°C तक होता है। यह समय यात्रा के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होता है।
  • बरसात के मौसम (जून से सितंबर तक): यहाँ मॉनसून के दौरान भारी बारिश होती है। तापमान 15°C से 25°C तक होता है। इस समय लैंडस्लाइड और भूस्खलन का खतरा बना रहता है, इसलिए यात्रा से पहले जानकारी प्राप्त करना अति आवश्यक होता है।
  • सर्दियों (अक्टूबर से फरवरी तक): सर्दियों में यहाँ का तापमान 5°C से 20°C तक होता है। यह अवधि अधिक ठण्डी होती है, लेकिन बर्फ के अभाव में यह अवधि भी यात्रा के लिए उपयुक्त होती है। आप अपनी यात्रा के लिए समय और तापमान को ध्यान में रखते हुए तैयारी कर सकते हैं।

सन्त परंपरा की अनूठी मिसाल है बाबा नीब करोरी का कैंची धाम: यहाँ बाबा करते हैं भक्तों से बातें

हिमालय की गोद में रचा-बसा देवभूमि उत्तराखण्ड वास्तव में दिव्य देव लोक की अनुभूति कराता है। यहां के कण-कण में देवताओ का वास और पग-पग पर देवालयों की भरमार है, इस कारण एक बार यहां आने वाले सैलानी लौटते हैं तो देवों से दुबारा बुलाने की कामना करते हैं। यहां की शान्त वादियों में घूमने मात्र से सांसारिक मायाजाल में घिरे मानव की सारी कठिनाइयों का निदान हो जाता है। यही कारण है कि पर्यटन प्रदेश कहे जाने वाले उत्तराखण्ड के पर्यटन में बड़ा हिस्सा यहां के तीर्थाटन की दृष्टि से मनोहारी देवालयों में आने वाले सैलानियों की दिनों-दिन बढ़ती संख्या का है। यह राज्य की आर्थिकी को भी बढ़ाने में सबल हैं, यह अलग बात है कि सरकारी उपेक्षा के चलते राज्य में अभी कई सुन्दर स्थान ऐसे है जो सरकार की आंखों से ओझल है, जिस कारण कई पर्यटक स्थलों का अपेक्षित लाभ हासिल नही हो पा रहा है।

यूं कैंची के निकटवर्ती मुक्तेश्वर क्षेत्र का पाण्डवकालीन इतिहास रहा है, बाद के दौर में यह स्थान सप्त ऋषियों तिगड़ी बाबा, नान्तिन बाबा, लाहिड़ी बाबा, पायलट बाबा, हैड़ाखान बाबा, सोमवारी गिरि बाबा व नीब करौरी बाबा आदि की तपस्थली रहा। कहते हैं कि कैंचीधाम में पहले सोमवारी बाबा साधना में लीन रहे। कहते हैं कि सोमबारी बाबा के भक्त नींब करौरी बाबा रानीखेत जाते समय यहां ठहरे थी, इसी दौरान प्रेरणा होने पर उन्होंने यहां रात्रि विश्राम की इच्छा जताई, और 1962 में यहां आश्रम की स्थापना की गई। गत दिनों यह मन्दिर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दिनों में बराक ओबामा का हनुमान प्रेम उजागर होने के बाद बाबा के भक्तों द्वारा ओबामा की विजय के लिए यहाँ किऐ गऐ अनुष्ठान के कारण भी चर्चा में आया था। 

देवभूमि के ऐसे ही रमणीय स्थानों में 20वीं सदी के महानतम संतों व दिव्य पुरुषों में शुमार बाबा नीब करौरी महाराज का कैंची धाम है, जहां अकेले हर वर्ष इसके स्थापना दिवस 15 जून को ही लाखों सैलानी जुटते हैं। बाबा की हनुमान जी के प्रति अगाध आस्था थी, और उनके भक्त उनमें भी हनुमान जी की ही छवि देखते हैं, और उन्हें हनुमान का अवतार मानते हैं। बाबा के भक्तों का मानना है कि बाबा उनकी रक्षा करते हैं, और साक्षात दर्शन देकर मनोकामनाऐं पूरी करते हैं । यहां सच्चे दिल से आने वाला भक्त कभी खाली नहीं लौटता। यहां बाबा की मूर्ति देखकर ऐसे लगता है जैसे वह भक्तों से साक्षात बातें कर रहे हों।

बाबा के कैंची आने की कथा भी बड़ी रोचक है । मंदिर के करीब रहने वाले पूर्णानंद तिवाड़ी के अनुसार 1942 में एक रात्रि खुफिया डांठ नाम के निर्जन स्थान पर एक कंबल ओढ़े व्यक्ति ने कथित भूत के डर से भय मुक्त कराया, और 20 वर्ष बाद लौटने की बात कही। वादे के अनुसार 1962 में वह रानीखेत से नैनीताल लौटते समय कैंची में रुके और सड़क किनारे के पैराफिट पर बैठ गए और पूर्णानंद को बुलाया।

Kainchi Temple (1)Baba Neeb Karori Temple, Kainchi (Nainital)कहा जाता है कि इससे पूर्व सोमवारी बाबा इस स्थान पर भी धूनी रमाते थे, जबकि उनका मूल स्थान पास ही स्थित काकड़ीघाट में कोसी नदी किनारे था। सोमवारी बाबा के बारे में प्रसिद्ध था कि एक बार भण्डारे में प्रसाद बनाने के लिए घी खत्म हो गया। इस पर बाबा ने भक्तों से निकटवर्ती नदी से एक कनस्तर जल मंगवा लिया, जो कढ़ाई में डालते ही घी हो गया। तब तक निकटवर्ती भवाले से घी का कनस्तर आ गया। बाबा ने उसे वापस नदी में उड़ेल दिया। लेकिन यह क्या, वह घी पानी बन नदी में समाहित हो गया।

इधर जब नीब करौरी बाबा कैंची से गुजरे तो उन्हें कुछ देवी सिंहरन सी हुई, इस पर उन्होंने 1962 में यहाँ आश्रम की स्थापना की। बाद में 15 जून 1973 को यहां विंध्यवासिनी और ठीक एक साल बाद मां वैष्णों देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। 1964 से मन्दिर का स्थापना दिवस समारोह अनवरत 15 जून को मनाया जा रहा है।

एक अन्य किंवदंती के अनुसार नैनीताल के निकट अंजनी मंदिर में बहुत पहले कोई सिद्ध पुरुष आये थे, और उन्होंने कहा था कि एक दिन यहाँ अंजनी का पुत्र आएगा, 1944-45 में बाबा के चरण-पद यहाँ पड़े तो लागों ने सिद्ध पुरुष के बचनों को सत्य माना। इस स्थान को तभी से हनुमानगढ़ी कहा गया, बाद में बाबा ने ही यहाँ अपना पहला आश्रम बनाया, इसके बाद निकटवर्ती भूमियाधार सहित वृन्दावन, लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, बद्रीनाथ, हनुमानचट्टी आदि स्थानों में कुल 22 आश्रम स्थापित किये। कहते हैं कि बाबा जी 9 सितम्बर 1973 को कैंची से आगरा के लिए लौटे थे, जिसके दो दिन बाद ही समय बाद इसी वर्ष अनन्त चतुर्दशी के दिन 11 सितम्बर को वृन्दावन में उन्होंने महाप्रयाण किया ।

ऐसे ही एक बार बाबा नीब करौरी महाराज ने अपने भक्त को गर्मी की तपती धूप में बचाने के लिए उसे बादल की छतरी बनाकर, उसे उसकी मंजिल तक पहुचवाया। यह भी कहा जाता है कि बाबा अपनी दैवीय ऊर्जा से अचानक ही कहीं भी भक्तों के बीच प्रकट हो जाते थे और फिर अचानक ही लुप्त भी हो जाते थे। यहां तक की वे जिस वाहन में बैठे हो उसका पीछा करने या फिर पैदल चलते समय उनका पीछा करने पर भी वो अचानक ही विलुप्त हो जाते थे। ऐसे न जाने कितने किस्से बाबा और उनके पावन धाम से जुड़े हुए हैं, जिन्हें सुनकर लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं। 

किसी से पैर नहीं छुवाते थे: कहा जाता है कि बाबा को 17 वर्ष की आयु में ही ईश्वर का साक्षात्कार हो गया था। वे बजरंगबली को अपना गुरु और आराध्य मानते थे। बाबा ने अपने जीवनकाल में करीब 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण कराया। लाखों फॉलोअर्स के बावजूद वे आडंबर से दूर रहना पसंद करते थे और एक आम इंसान की तरह रहा रहते थे। मान्यता है कि बाबा नीब करौरी को हनुमान जी की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं। हालांकि वह आडंबरों से दूर रहते थे। न तो उनके माथे पर तिलक होता था और न ही गले में कंठी माला। बाबा किसी से अपना पैर नहीं छुवाते थे, जो कोई भी भक्त बाबा के पैर छूने के लिए आगे बढ़ता था वो उसको रोक देते थे। वो कहते थे कि मेरी जगह हनुमान जी का पैर छुओ…वही कल्याण करेंगे। 

बाबा का 1973 में निधन हुआ। उनकी समाधि वृंदावन में है। साथ ही कैंची, नीब करौरी, वीरापुरम (चेन्नई) और लखनऊ में भी उनके अस्थि कलशों को भू समाधि दी गयी। उनके लाखों देशी और विदेशी भक्त हर दिन यहां बने उनके मंदिरों और उनके समाधि स्थलों पर जाकर बाबा का अदृश्य आशीर्वाद ग्रहण लेते हैं। दरअसल  था, लेकिन आश्रम में अब भी विदेशी आते रहते हैं। इन आश्रमों को ट्रस्ट चलाते हैं।

यह भी पढ़ें : कैंची धाम से निकली थी एप्पल और फेसबुक की तरक्की और ओबामा की जीत की राह

-सिलिकॉन वैली में जुकरबर्ग ने मोदी से किया था इस मंदिर का जिक्र, कहा था-फेसबुक को खरीदने के लिए फोन आने के दौर में इस मंदिर ने दिया था परेशानियों से निकलने का रास्ता
नवीन जोशी, नैनीताल। गत दिवस फेसबुक के संस्थापक व प्रमुख मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक मुख्यालय में मोदी से सवाल पूछने के दौरान अपने बुरे दिन याद करते हुए मोदी को बताया था, ‘जब 2011 के दौर में फेसबुक को खरीदने के लिए अनेक लोगों के फोन आ रहे थे, और वह परेशानी में थे । तब वे अपने गुरु एप्पल (दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल कंपनी) के संस्थापक स्टीव जॉब्स से मिले। जॉब्स ने उन्हें कहा कि भारत जाओ तो उत्तराखंड स्थित बाबा नीब करौरी(अपभ्रंश नीम करोली) के कैंची धाम जरूर जाना। इस पर उन्होंने 2013 में एप्पल कंपनी के तत्कालीन प्रमुख टिम कुक के साथ कैंची धाम के दर्शन किए थे। इसी दौरान करीब एक वर्ष भारत में रहकर उन्होंने यहां लोगों के आपस में जुड़े होने को नजदीकी से देखा, और इससे उनका फेसबुक को एक-दूसरे को जोड़ने के उपकरण के रूप में और मजबूत करने का संकल्प और इरादा और अधिक मजबूत हुआ और उन्होंने फेसबुक को किसी को न बेचकर खुद ही आगे बढ़ाया।
वहीं एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स की बात करें तो स्टीव स्वयं अवसाद के दौर से गुजरने के दौर में 1973 में एक बेरोजगार युवा-हिप्पी के रूप में अपने मित्र डैन कोटके के साथ बाबा नीब करोलीके दर्शन करने आये थे, किंतु इसी बीच 11 सितम्बर 1973 को बाबा के शरीर त्यागने के कारण वह दर्शन नहीं कर पाए, लेकिन यहां से मिली प्रेरणा से उन्होंने अपने एप्पल फोन से 1980 के बाद दुनिया में मोबाइल क्रांति का डंका बजा दिया। यहां तक ​​कहा जाता है की स्टीव ने अपने मशहूर मोनोग्राम (एक बाइट खाये सेब) को कैंची धाम से ही प्रेरित होकर ही बनाया है।

उल्लेखनीय है कि कैंची धाम वर्ष 2013 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दिनों में बराक ओबामा द्वारा अपनी जेब में हमेशा हनुमान जी की मूर्ति रखे जाने की स्वीकारोक्ति के दौर में उनके अमेरिकी समर्थकों द्वारा में उनकी जीत के लिए यहां यज्ञ का आयोजन किए जाने के कारण भी खासा चर्चा में रहा था। कहते हैं कि यह यज्ञ उनकी पत्नी मिशेल ओबामा द्वारा कराया गया था।

इससे पूर्व मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री व फैशन मॉडल जूलिया रॉबर्ट्स का भी बाबा से अद्भुत प्रसंग जुड़ा। हालीवुड की हॉट अभिनेत्री, सुपर स्टार, प्रोड्यूसर और फैशन मॉडल जूलिया राबर्ट्स ने खुद एक पत्रिका को दिए दिए इंटरव्घ्यू में बताया है कि वह आजकल हिंदू धर्म का पालन कर रही हैं। जूलिया ने इस इंटरव्यू में कहा, ‘नीब करोरी बाबा की एक तस्वीर देख कर मैं उस शख्स के प्रति एकदम मोहित हो गई। मैं कह नहीं सकती कि उनकी कौन सी बात मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैं उनके सम्मोहन में फंस गई है।’ 42 साल की जूलिया ने कहा कि हिंदू धर्म में कुछ ऐसा तो है जो मैं इसकी मुरीद हो गई और आजकल इसका पालन भी कर रही हूं । कैथलिक मां और बैप्टिस्ट पिता की संतान जूलिया ने दोहराया कि वह पूरे परिवार के साथ मंदिर जाती हैं, मंत्र पढ़ती हैं और प्रार्थना करती हैं।

वहीं मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित और नास्तिक रहे डा. लैरी ब्रिलिएंट का बाबा से जुड़ा किस्सा भी बेहद रोचक है। कहा जाता है कि लैरी अपने दोस्तों के साथ बाबा नीब करौरी से मिले थे। इस दौरान उनके दोस्तों ने बाबा को प्रणाम किया था, लेकिन लैरी ने बाबा को प्रणाम नहीं किया। इसी दौरान बाबा ने उन्हें ‘यूएनओ डॉक्टर “कह कर संबोधित किया। इससे लैरी और अधिक चिढ़ गए कि बाबा उन्हें कह रहे हैं-‘तुम डॉक्टर नहीं हो।” लेकिन बताया जाता है कि इस घटना के कुछ ही समय के बाद लैरी को ‘यूएनओ’ यानी ‘यूनाइटेड नेशंश ऑर्गनाइजेशन’ में डॉक्टर पद के लिए ऑफर मिल गया। इसके बाद लैरी भी बाबा के अनन्य भक्त हो गए, और अक्सर कैंची धाम आते रहते हैं।

नेहरू, ओबामा, स्टीव, मार्क, लैरी व जूलिया राबर्टस जैसे भक्तों के राज खोलेगी पुस्तक-लव एवरीवन

Raghvendra das-Ram Das

बाबा राघवेन्द्र दास व गुरु रामदास

Love Everyoneबाबा नीब करौरी के भारत ही नहीं दुनिया भर में लाखों की संख्या में भक्त हैं। हालांकि उनके भक्त उन्हें अनेक चमत्कारों के लिए याद करते हैं। मसलन उनके कैंची धाम में आज भी मौजूद एक उत्तीस के हरे-भरे पेड़ के लिए कहा जाता है कि वह बाबा के जीवन काल में ही सूख गया था, और बाबा के भक्त उस सूखे ठूँठ को काटना चाहते थे, बाबा ने कहा ‘इस पर जल चढ़ाव, आरती करा, यह हरा-भरा हो जाएगा’, सचमुच ऐसा ही हुआ। किंतु एक ऐसा वृत्तांत भी मिलता है जब बाबा ने एक मृत बालक को बहुत प्रार्थना के बाद भी जिलाने से इनकार कर दिया था। बाबा का तर्क था कि ब्रह्मा की बनाई सृष्टि के बनाए नियमों में बदलाव का हक किसी को नहीं है।

वहीँ, मार्क जुकरबर्ग का खुलासा तो अब हुआ है, जबकि बाबा के भक्तों में देश के बड़े राजनयिकों, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, हिमांचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल स्व. राजा भद्री, केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, उत्तराखंड सरकार में सचिव मंजुल कुमार जोशी से लेकर गुरु रामदास के नाम से प्रसिद्ध हुए हारवर्ड विश्व विद्यालय बोस्टन के डा. रिचर्ड एलपर्ट सहित योगी भगवान दास, संगीतकार जय उत्पल, कृष्णा दास, लामा सूर्य दास, मानवाधिकारवादी डा. लैरी ब्रिलिएंट, स्टीव जॉब्स तथा इन सब बाबा के भक्तों और उनके बाबा नीब करोली के साथ हुए दिव्य अनुभवों एवं उनके द्वारा बाबा के लिए प्रयोग किए गए शब्दों को उनके भक्त गुरु रामदास के नाम से प्रसिद्ध हुए ‘बि हियर नाउ’ के लेखक डा. रिचर्ड एलपर्ट ‘लव एवरीवन’के नाम से संग्रहीत कर रहे हैं।

मार्क जुकरबर्ग पर इस तरह बरसी बाबा की कृपा

नैनीताल। फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने विगत वर्ष फेसबुक मुख्यालय में भारत के प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी से सवाल पूछने के दौरान अपने बुरे दिन याद करते हुए बताया था, ‘जब 2011 के दौर में फेसबुक को खरीदने के लिए अनेक लोगों के फोन आ रहे थे, और वह परेशानी में थे, तब वे अपने गुरु एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स से मिले। जॉब्स ने उन्हें कहा कि भारत जाओ तो उत्तराखंड स्थित बाबा नीब करौरी के कैंची धाम जरूर जाना। इस पर उन्होंने 2013 में एप्पल कंपनी के तत्कालीन प्रमुख टिम कुक के साथ कैंची धाम के दर्शन किए थे। इसी दौरान करीब एक वर्ष भारत में रहकर उन्होंने यहां लोगों के आपस में जुड़े होने को नजदीकी से देखा, और इससे उनका ‘फेसबुक को एक-दूसरे को जोड़ने के उपकरण के रूप में और मजबूत करने का’ संकल्प और इरादा और अधिक मजबूत हुआ, और उन्होंने फेसबुक को किसी को न बेचकर खुद ही आगे बढ़ाया।

बाबा के भक्तों में बराक ओबामा, जूलिया रॉबर्ट्स से लेकर अनेक बड़े नाम

नैनीताल। कैंची धाम वर्ष 2013 में अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दिनों में बराक ओबामा द्वारा अपनी जेब में हमेशा हनुमान जी की मूर्ति रखे जाने की स्वीकारोक्ति के दौर में भी चर्चा में आया था। तब उनके अमेरिकी समर्थकों के द्वारा कैंची धाम में उनकी जीत के लिए यहां यज्ञ कराया गया था। कहते हैं कि यह यज्ञ उनकी पत्नी मिशेल ओबामा द्वारा कराया गया था। वहीं, इससे हॉलीवुड की पूर्व मशहूर हॉट अभिनेत्री, सुपर स्टार, प्रोड्यूसर और फैशन मॉडल जूलिया रॉबर्ट्स का भी बाबा से अद्भुत प्रसंग जुड़ा। 42 साल की जूलिया ने खुद एक पत्रिका को दिए इंटरव्घ्यू में बताया है कि वह आजकल हिंदू धर्म का पालन कर रही हैं।

उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा, ‘नीब करौरी बाबा की एक तस्वीर देख कर मैं उस शख्स के प्रति एकदम मोहित हो गई। मैं कह नहीं सकती कि उनकी कौन सी बात मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैं उनके सम्मोहन में फंस गई।’ जूलिया ने कहा कि हिंदू धर्म में कुछ ऐसा तो है जो मैं इसकी मुरीद हो गई और आजकल इसका पालन भी कर रही हूं। कैथलिक मां और बैप्टिस्ट पिता की संतान जूलिया ने दोहराया कि वह पूरे परिवार के साथ मंदिर जाती हैं, मंत्र पढ़ती हैं और प्रार्थना करती हैं। उनके अलावा मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित और नास्तिक रहे डा. लैरी ब्रिलिएंट सहित बाबा के भक्तों की लंबी श्रृंखला है।

इनमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, हिमांचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल स्व. राजा भद्री, केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, राज्य के पूर्व सचिव मंजुल कुमार जोशी से लेकर गुरु रामदास के नाम से प्रसिद्ध हुए हारवर्ड विश्व विद्यालय बोस्टन के डा. रिचर्ड एलपर्ट सहित योगी भगवान दास, संगीतकार जय उत्पल, कृष्णा दास, लामा सूर्य दास सहित अनेक नाम शामिल हैं। इन सब बाबा के भक्तों और उनके बाबा नीब करौरी के साथ हुए दिव्य अनुभवों एवं उनके द्वारा बाबा के लिए प्रयोग किए गए शब्दों को उनके भक्त गुरु रामदास के नाम से प्रसिद्ध हुए ‘बि हियर नाउ’ के लेखक डा. रिचर्ड एलपर्ट ‘लव एवरीवन’ के नाम से संग्रहीत किया गया है।

नास्तिक लैरी बाबा की कृपा से ऐसे बने यूएनओ में डॉक्टर

मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित मानवाधिकारवादी परंतु नास्तिक रहे डा. लैरी ब्रिलिएंट का बाबा से जुड़ा किस्सा भी बेहद रोचक है। कहा जाता है कि लैरी अपने दोस्तों के साथ बाबा नीब करौरी से मिले थे। मिलने पर उनके दोस्तों ने बाबा को प्रणाम किया, लेकिन लैरी ने बाबा को प्रणाम नहीं किया। इसी दौरान बाबा ने उन्हें ‘यूएनओ डॉक्टर“ कह कर संबोधित किया। इससे लैरी और अधिक चिढ़ गए कि बाबा उन्हें कह रहे हैं-‘तुम डॉक्टर नहीं हो।” लेकिन बताया जाता है कि इस घटना के कुछ ही समय के बाद लैरी को ‘यूएनओ’ यानी ‘यूनाइटेड नेशंश ऑर्गनाइजेशन’ में डॉक्टर पद के लिए ऑफर मिल गया। इसके बाद लैरी भी बाबा के अनन्य भक्त हो गए, और अक्सर कैंची धाम आते रहते हैं।

बाबा ने किया चमत्कार: जूलिया रॉबर्ट्स को हिंदू बना दिया 

जी हाँ, बाबा नीब करौरी महाराज ने फिर कमोबेश एक चमत्कार कर डाला है । गत दिवस हिन्दू धर्म अपनाने के लिए चर्चा में आयी हालीवुड की हॉट अभिनेत्री, हॉलीवुड की सुपर स्‍टार, प्रोड्यूसर और फैशन मॉडल  जूलिया राबर्ट्स ने खुद एक पत्रिका को दिए दिए ताजा इंटरव्‍यू में बताया है कि वह आजकल हिंदू धर्म का पालन कर रही हैं। जूलिया ने इस इंटरव्यू में कहा, ‘नीम करोली बाबा की एक तस्‍वीर देख कर मैं उस शख्‍स के प्रति एकदम मोहित हो गई। मैं कह नहीं सकती कि उनकी कौन सी बात मुझे इतनी अच्‍छी लगी कि मैं उनके सम्‍मोहन में फंस गई।’ 42 साल की जूलिया ने कहा कि हिंदू धर्म में कुछ ऐसा तो है जो मैं इसकी मुरीद हो गई और आजकल इसका पालन भी कर रही हूं। कैथलिक मां और बैप्टिस्‍ट पिता की संतान जूलिया ने दोहराया कि वह पूरे परिवार के साथ मंदिर जाती हैं, मंत्र पढ़ती हैं और प्रार्थना करती हैं। मालूम हो कि बाबा के भक्तो में देश के बड़े राजनयिकों प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, हिमांचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल स्व. राजा भद्री, केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, उत्तराखंड सरकार में सचिव मंजुल कुमार जोशी  से लेकर गुरु रामदास के नाम से प्रसिद्ध हुए हारवर्ड विश्व विद्यालय बोस्टन के डा. रिचार्ड एलपर्ट  (‘बी हियर नाउ’ के लेखक) सहित योगी भगवान दास, संगीतकार जय उत्‍तल, कृष्‍णा दास, लामा सूर्य दास, मानवाधिकारवादी डॉ. लैरी ब्रिलिएंट आदि भी नीब करोली बाबा के परम भक्‍तों में शुमार हैं। एप्‍पल कंपनी के सीईओ स्‍टीव जॉब्‍स भी उनके मुरीद हैं। हालांकि एक ऐसा वृत्तांत भी मिलता है जब बाबा ने एक मृत बालक को बहुत प्रार्थना के बाद भी जिलाने से इनकार कर दिया था। बाबा का तर्क था कि ब्रह्मा की बनाई सृष्टि के बनाए नियमों में बदलाव का हक़ किसी को नहीं है।
पढ़िए स्टीव जोब्स की आत्मकथा के ansh: http://www.jankipul.com/2011/11/blog-post_14.html

बाबा के बारे में स्टैंडर्ड स्वीट हल्द्वानी केे स्वामी लाला रामकिशन ने बताया, ” मेरी माली हालत बहुत खराब थी। काम धन्धा कुछ नही था। बडे भाई की दुकान पर मैं उनके कर्मचारी की हैसियत से काम करता था। बडे भाई के साथ ही एक बार मैं कैंची धाम गया। बाबा ने मुझसे कहा, “मैंं तुझसे जो मागूंगा, लायेगा ?” “मैने कहा “अगर हिम्मत हुई तो जरूर लाऊँगा।” तब बाबा ने कहा, “देख सवा मन देसी घी के लड्डू अपने हाथ से बनाकर लाना हनुमान जी के लिये। बोल लायेगा ?” मैं मन ही मन बोल उठा, “अरे ये क्या कह दिया आपने , मेरे पास तो सवा किलो आटा भी अपना नही।” फिर भी मेरे मुह से निकल गया, “अच्छा महाराजजी।”और वापस हल्द्वानी आ गया। 

इस बीच दो तीन हफ़्तों मेंं मैंने सवा मन लड्डू तैयार कर लिये। कराया तो सब कुछ बाबा ने ही, उन्हे लेकर बाबा जी के पास हाजिर हुआ। बाबा ने लड्डुओ का भोग लगवाकर मेरे हाथ से ही सबको प्रसाद पवाया। इसके बाद एक बार फिर कैंची गया ! वहाँ भण्डारा चल रहा था ! मैने भी सेवा की इच्छा की तो बाबा जी बोले , “यहाँ नही तु अपनी दुकान खोल !” मैने कहा ,”बाबा मै तो पागल हूँ ! दुकान कैसे करूँगा ! तब बाबा बोले, “देख, एक तू पागल और एक मै पागल हूँ ! जा अपना काम शुरू कर !” और मुझे गीता की एक पुस्तक देते हूये कहा, “अपनी घरवाली को दे देना ! कहना, पढा करे !” न मालुम क्या अर्थ था इसका !

बाबा जी ही जानें कि कैसे कैसे, क्या क्या, कहाँ कहाँ से हो गया, पर उनके चमत्कार स्वरूप आज मेरे पास एक बडी दुकान ( स्टैण्डर्ड स्वीट हाउस ) है ! और जिस हैसियत से मै (कर्मचारी) से मै स्वंय काम करता था , उस हैसियत के दस कर्मचारी आज मेरी दुकान पर काम करते है ! बाबा जी की दया ही दया है ! सब बदल गया उनकी कृपा से !”

बाबा को याद कर भावुक हुए सरदार मान सिंह नागपाल

नैनीताल। पेशे से एक टैक्सी ड्राइवर रहे, सिख परिवार से आने वाले 81 वर्ष के सरदार मान सिंह नागपाल उर्फ माना पहली बार कैंची धाम के वार्षिकोत्सव में शामिल नहीं हो पाये। इस पर भावुक होते हुए उन्होंने बताया, ‘1963 के आसपास मैं अपनी टैक्सी से सवारियों को लेकर रानीखेत से हल्द्वानी काठगोदाम आ रहा था। तभी कुछ लोगों को एक स्थान पर भीड़ के साथ देखा और किसी अनहोनी के आशंका को समझ कर अपनी टैक्सी यूएसआर 6765 को रोका और उस स्थान पर जाकर देखा।

वहां कोई तपस्वी महाराज बाबाजी के रूप में विराजमान थे। सभी मौजूद लोग बाबा जी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद ले रहे थे। मैंने भी चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। आशीर्वाद देते समय बाबाजी सभी से कुछ ना कुछ पूछ रहे थे। उनसे भी पूछा, कहां से आए हो और क्या काम करते हो ? मैंने जवाब में कहा, मैं टैक्सी ड्राइवर हूं आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। सवारिया भी साथ में हैं। मुझे बाबा जी ने आशीर्वाद देकर नाम पूछा मैंने अपना नाम मान सिंह नागपाल निवासी हल्द्वानी बताया। महाराज जी ने कहा अभी जाओ दो-चार दिन बाद आना। मुझे मथुरा वृंदावन जाना है। ले चलोगे अपनी गाड़ी में ? मैंने हामी भरते हुए कहा, जरूर ले चलेंगे महाराज जी आपको। जिस स्थान पर महाराज जी विराजमान थे उस स्थान पर आज भव्य मंदिर बना है। इसके बाद बाबा जी ने कहीं जाना होता था तो अक्सर याद कर लेते। कई वर्षों तक साथ रहा। इसी प्रकार महाराज जी कई बार हमारे पुश्तैनी निवास राजेंद्र नगर राजपुरा गली नंबर 1 वाले मकान में आए। मेले के आसपास भी मैं मंदिर में मत्था टेकने जाता हूं। साल में दो तीन बार पत्नी के साथ प्रसाद लाकर सभी को देता हूं। परिवार में मेरे परिवार में मेरी धर्मपत्नी प्रेम कौल नागपाल, दो बेटे, दो बहुएं, पोते-पोतिया हैं। बेटियों की शादी हो चुकी है बड़ा बेटा दलजीत सिंह दल्ली अपना कारोबार कर रहे हैं। कई संस्थाओं से भी जुड़े हैं। हल्द्वानी व्यापार मंडल में भी हैं। छोटा बेटा सतपाल सिंह नागपाल कारोबारी है। मेरे साथ ही रहता है।

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार
‘नवीन समाचार’ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल से ‘मन कही’ के रूप में जनवरी 2010 से इंटरननेट-वेब मीडिया पर सक्रिय, उत्तराखंड का सबसे पुराना ऑनलाइन पत्रकारिता में सक्रिय समूह है। यह उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त, अलेक्सा रैंकिंग के अनुसार उत्तराखंड के समाचार पोर्टलों में अग्रणी, गूगल सर्च पर उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ, भरोसेमंद समाचार पोर्टल के रूप में अग्रणी, समाचारों को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाला ऑनलाइन समाचार पोर्टल भी है।
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