नवीन समाचार, नैनीताल, 22 अक्टूबर 2023 (Sardiyon men Uttarakhand)। सामान्यतया लोग पहाड़ों पर गर्मियों में आते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि पहाड़ों पर आने का सबसे सही मौसम गर्मियों का नहीं, बल्कि शरद या बसंत ऋतु का यानी अक्टूबर और नवंबर के साथ फरवरी से मार्च तक का समय सबसे अच्छा होता है।
क्योंकि इस मौसम में न यहां गर्मियों की तरह वाहनों के जाम, होटलों के महंगे मिलने की समस्या होती है, न ही बरसात के मौसम की तरह भूस्खलन की संभावना या समस्या। साथ ही वातावरण में धुंध न होने से दूर-दूर के पहाड़ों, हिमालय से लेकर मैदानों तक के दृश्य भी सुंदर नजर आते हैं। साथ ही सर्दियों की गुनगुनी धूप के साथ ही बर्फबारी के सुंदर नजारे भी देखने को मिल जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी आए Sardiyon men Uttarakhand :
ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस मौसम में आप कहां जा सकते हैं: जहां इन सर्दियों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी आए… इन स्थानों पर KMVN यानी कुमाऊँ मंण्डल विकास निगम रहने की अच्छी सुविधाएं भी दे रहा है। इन सुविधाओं के लिए यहाँ क्लिक करें….
- चार धाम: इस मौसम में चारों धाम बदरीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री सहित उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी की शुरुआत हो जाती है, लेकिन रास्ते अपेक्षाकृत साफ व अच्छे मिलते हैं। भीड़भाड़ भी कम होती है। सड़क किनारे छल-छल बहती नदियों के दृश्य भी मनभावन होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहां आते रहते हैं।
- आदि कैलाश व पार्वती सरोवर: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित आदि कैलाश शिव के चीन में स्थित कैलाश पर्वत की प्रतिकृति है। हाल में 12 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां आये थे, और अभिभूत हुये थे और उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें उत्तराखंड में एक स्थान को देखने को कहना हो तो वह आदि कैलाश व जागेश्वर का नाम लेंगे। यही मौसम यहां जाने के लिये उपयुक्त है। आदि कैलाश व पार्वती सरोवर के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ और यहाँ क्लिक करें।
- ‘ॐ’ पर्वत: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में आदि कैलाश के पास ही स्थित स्थित ओम पर्वत पर प्राकृतिक तौर पर ‘ॐ’ के चिन्ह के दर्शन ओम की महत्ता के साथ ही भारतीय दर्शन की महानता से मन को आह्लादित कर देते हैं। ‘ॐ’ पर्वत के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- जागेश्वर: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर करीब सवा सौ मंदिरों का समूह है। प्रधानमंत्री मोदी 12 अक्टूबर 2023 को यहां आये थे और ओम पर्वत के साथ इस स्थान को भी उत्तराखंड के एक सर्वाधिक देखे जाने योग्य स्थानों में बताया था। जागेश्वर के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। साथ ही देखें वीडिओ-नागेशम दारुका वने….
- नैनीताल: विश्व प्रसिद्ध सरोवरनगरी नैनीताल सर्दियों व बसंत के मौसम में आने के लिये सबसे करीब स्थित सर्वश्रेष्ठ गंतव्य हो सकता है। यहां नैनी झील के साथ सुदूर हिमालय पर्वत की करीब 365 किमी लंबी पर्वत श्रृंखला का अन्यत्र कहीं उपलब्ध न होने वाला नजारा लिया जा सकता है। नैनीताल के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- मुक्तेश्वर: नैनीताल जनपद में स्थित मुक्तेश्वर में मुक्ति के ईश्वर यानी भगवान शिव ने तपस्या की थी। यहां से भी हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के नयनाभिराम नजारे दिखते हैं। मुक्तेश्वर के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- रानीखेत: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद स्थित रानीखेत को पर्वतों की रानी भी कहा जाता है। भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट के केंद्र के रूप में स्वच्छता से संरक्षित इस स्थान से भी हिमालय व पहाड़ों के मनमोहक नजारे नजर आते हैं।
विकास की दौड़ में पीछे छूटती प्राकृतिक सुन्दरता व नैसर्गिक शांति यदि आज भी किसी पर्वतीय नगर में उसके मूल स्वरूप में देखनी और उसमें जीना है, तो यूरोपीय शैली युक्त बंगलों-भवनों के साथ किसी यूरोपीय नगर जैसा अनुभव देने वाला उत्तराखंड का रानीखेत पहली पसंद हो सकता है। 1869 में ब्रिटिश आर्मी के कैप्टन रॉबर्ट ट्रूप द्वारा आर्मी के लिए खोजे और बसाए गए इस बेहद रमणीक नगर का इतिहास हालांकि इससे कहीं पहले कुमाऊं के चंद राजवंश के राजा सुखदेव (कहीं सुधरदेव नाम भी अंकित है) की पत्नी रानी पद्मावती से जुड़ा है, जिनके नाम से इस स्थान की पहचान रानीखेत नाम से है।
इतिहास से बात शुरू करें तो रानी पद्मावती उस दौर के कुमाऊं के गंगोलीहाट जैसे बड़े हाट-बाजार द्वाराहाट के राजमहल में रहती थीं। कहते हैं उन्हें हिमालय बेहद पसंद था, लेकिन वह द्वाराहाट से नजर नहीं आता है, इसलिए सबसे निकटस्थ स्थान रानीखेत में कहीं आज के माल रोड स्थित रानीखेत क्लब के पास स्थित एक खेत में अक्सर अपने लाव-लश्कर के साथ आ जाती थीं। तभी से इस स्थान को रानीखेत कहा जाने लगा।
आगे 1815 में अंग्रेजों के कुमाऊं आगमन के बाद कैप्टन ट्रूप 1850 के आसपास कभी यहां आए और वर्तमान लाल कुर्ती के पास अपना बंगला बनवाया, और इसे ब्रिटिश आर्मी के लिए उपयुक्त मानते हुए यहां सैन्य क्षेत्र के रूप में स्थापित कराया। बाद में यहीं कुमाऊं रेजीमेंट का मुख्यालय स्थापित हुआ। (Sardiyon men Uttarakhand)
समुद्र सतह से करीब 1790 से 1869 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रानीखेत आज भी कुमाऊं रेजीमेंट का मुख्यालय है, और कमोबेश पूरा नगर कैंट क्षेत्र के प्रबंधन में आता है। इससे रानीखेत नगर का विकास अवरुद्ध हुआ है, नगर में भवन निर्माण नहीं हो पाते हैं। होटल जैसी सुविधाएं भी सीमित हैं, और इस वजह से नगर वासियों में नाराजगी भी रहती है, बावजूद नगर के कैंट क्षेत्र में होने का ही लाभ है कि रानीखेत आज भी अपने मूल पर्वतीय नगर के स्वरूप में कमोबेश वैसे ही बचा है, जैसा वह दशकों पूर्व था। (Sardiyon men Uttarakhand)
आज भी यहां प्राकृतिक सौंदर्य, जंगल बचे हुए हैं। यहां की ‘फौजी’ साफ-सफाई भी इसी कारण दिल में सुकून देती है। नगर की दूसरी सबसे बड़ी खूबसूरती और ताकत यहां से नेपाल की अन्नपूर्णा से लेकर पंचाचूली, नंदादेवी, त्रिशूल से होकर हिमांचल के बंदरपूछ तक करीब 600 मील लंबी नगाधिराज हिमालय की गगनचुंबी हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के अटूट नजारे हैं, जिन्हें देखने के लिए नगर से कहीं दूर भी नहीं जाना पड़ता है, वरन यह नगर की मुख्य माल रोड और सदर बाजार जैसी बाजारों से भी आसानी से नजर आ जाते हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
यह चोटियां सुबह-शाम सूर्य की अलग-अलग स्थितियों के बीच अलग-अलग रंगों में अपनी खूबसूरती को नए-नए आयाम देते रहते हैं। साथ ही सुंदर घाटियां, चीड़ और देवदार के ऊंचे पेड़ों युक्त घने जंगल व लताओं युक्त रास्ते, जलधाराएं, सुंदर वास्तु कला अंग्रेजी दौर के बंगले और पर्वतीय शैली में बने प्राचीन मंदिर, ऊंची उड़ान भरते तरह-तरह के पक्षियों और शहरी कोलाहल तथा प्रदूषण से दूर ग्रामीण परिवेश के अद्भुत सौंदर्य का आकर्षण ही है, जिस कारण यह शहर फिल्म निर्माताओं का भी प्रारंभ से ही पसंदीता स्थान रहा है। (Sardiyon men Uttarakhand)
यहां की खूबसूरत लोकेशन पर धरमवीर, हनीमून, हुकूमत व विवाह सहित अनेकों फिल्मों का फिल्मांकन किया गया है। नगर की यही खूबसूरती है कि इसने प्रसिद्ध घुमक्कड़ साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन की भी पसंद रहे, जो 1950 के आसपास अपने परिवार के साथ आए, और लंबे समय यहां रहे। वहीं कभी नीदरलैंड के राजदूत रहे वान पैलेन्ट ने रानीखेत के बारे में कहा-‘जिसने रानीखेत को नहीं देखा, उसने भारत को नहीं देखा।’ (Sardiyon men Uttarakhand)
वहीं देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का भी यह पसंदीदा स्थान रहा, जिनके नाम पर नगर की एक सड़क को ‘नेहरू रोड’ कहा जाता है। वहीं रानीखेत के साथ संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री और यूपी के मुख्यमंत्री रहे भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के साथ ही यूपी को हरगोविंद पंत व चंद्रभान गुप्ता के बाद उत्तराखंड को हरीश रावत मुख्यमंत्री देने का रोचक संयोग भी जुड़ा है। नगर के मौजूदा भली स्थिति के पूर्व विधायक व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मदन मोहन उपाध्याय का नाम भी आदर के साथ लिया जाता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
लगभग 25 वर्ग किलोमीटर में फैला रानीखेत नजदीकी काठगोदाम रेलवे स्टेशन से 85 किमी, पंतनगर हवाई अड्डे से 119, नैनीताल से 63, अल्मोड़ा से 50, कौसानी से 85 और दिल्ली से 279 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नगर के खास दर्शनीय स्थलों में मुख्य नगर से 6 किलोमीटर की दूरी पर गोल्फ प्रेमियों की पहली पसंद-गोल्फ ग्राउंड, इसके पास ही प्राचीन व प्रसिद्ध कालिका मंदिर, खूबसूरत संगमरमर से बना चिलियानौला स्थित बाबा हैड़ाखान का मंदिर,
18 किमी दूर स्थित बिन्सर महादेव मंदिर, घंटियों के लिए प्रसिद्ध झूला देवी मंदिर, कुमाऊँ रेजिमेंट का संग्रहालय, प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री राम जी लाल द्वारा स्थापित वनस्पति संग्रहायल (हरबेरियम ), डिलीसियस प्रजाति के स्वादिष्ट सेबों के लिए प्रसिद्ध चौबटिया स्थित फलों के उद्यान और फल अनुसंधान केंद्र, करीब 38 किलोमीटर दूर कुमाऊं के कत्यूरी राजवंश के दौर की बेजोड़ कला युक्त विशाल मंदिर समूह, रामायण में संजीवनी बूटी से संबंधित बताए जाने वाले दूनागिरि मंदिर,
महाभारतकालीन पांडुखोली, शीतलाखेत, देश का कोणार्क के बाद दूसरा सूर्य मंदिर कटारमल तथा मछली पकड़ने के लिए प्रसिद्ध 1903 में ब्रितानी सरकार द्वारा निर्मित भालू बांध आदि नजदीकी दर्शनीय स्थल हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
रानीखेत में गर्मी के दिनों में मौसम सामान्य, जुलाई से लेकर सितम्बर तक का मौसम बरसात का और फिर नवंबर से फरवरी तक बर्फबारी और ठंड वाला होता है, लेकिन हर मौसम में यहां घूमने का अपना अलग आनंद देता है। मैदानी गर्मी से राहत पाने के लिए मार्च से जून तक का किंतु प्राकृतिक सौंदर्य का वास्तविक आनंद प्राप्त करने के लिए सितम्बर से नवंबर के बीच का समय सबसे बेहतर माना जाता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
8. कौसानी: उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद स्थित कौसानी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ‘भारत के स्विट्जरलेंड’ की संज्ञा दी थी। सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली कौसानी की प्राकृतिक सुंदरता आपको इस मौसम में मंत्रमुग्ध कर देगी। (Sardiyon men Uttarakhand)
महाकवि कालीदास के कालजयी ग्रंथ कुमार संभव में नगाधिराज कहे गए हिमालय को बेहद करीब से निहारता और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा ‘भारत का स्विटजरलेंड’ कहा गया ‘कौसानी’ देश के चुनिंदा प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत रमणीक पर्वतीय पर्यटक स्थलों में एक है। महात्मा गांधी को अपनी नीरवता और शांति से गीता के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान कराने और ‘अनासक्ति योग’ ग्रंथ की रचना कराने वाली और प्रकृति के सुकुमार छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की यह जन्म भूमि आदि-अनादि काल से लेकर वर्तमान तक प्रकृति प्रेमियों का पसंदीदा स्थान रही है। करें ‘पहाड़ों की रानी’ से ‘पहाड़ों के राजा’ के दर्शन :
यहां दूर तक कोसी, गोमती और गगास नदियों के बीच फैली कत्यूर, बोरारो व कैड़ारो घाटियों के बीच लहलहाती धान व आलू की खेती, हरे कालीन से बिछे चाय के बागानों और शीतलता बिखेरते देवदार व चीड़ के दरख्तों के बीच पर्वतराज हिमालय को अपनी स्वर्णिम आभा से रंगते सूर्याेदय और सूर्यास्त के स्वर्णिम आभा बिखेरते मनोहारी दृश्य सौंदर्य के वशीभूत सैलानियों को न केवल आकर्षित करते वरन अपना बना लेते हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
कौसानी उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले से 53 किलोमीटर उत्तर में बागेश्वर, पिंडारी-सुंदरढूंगा ग्लेशियर के मार्ग पर समुद्र सतह से लगभग 1950 मीटर यानी 6075 फीट की ऊंचाई पर पिंगनाथ चोटी पर बसा एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा है। यहाँ से बर्फ से ढके नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा ‘ऊं’ जैसे स्वरूप में नजर आता है। साथ ही चौखंबा, नीलकंठ, नंदा घुंटी, नंदा देवी, नंदा खाट व नंदाकोट से लेकर पंचाचूली तक की हिम मंडित पर्वत श्रृंखलाओं का सुंदर व भव्य नजारा भी दिखता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
कहा जाता है कुमाऊं में कत्यूरी राज के दौरान यह क्षेत्र राजा बैचलदेव के अधिकार में आता था, जिन्होंने इसे श्रीचंद तिवारी नाम के एक गुजराती ब्राह्मण को दे दिया था। संभवतया वहीं से गांधी जी इस स्थान के नाम से परिचित हुए और 1929 में एक स्थानीय चाय बागान मालिक के आतिथ्य में केवल दो दिन के प्रवास के लिए यहां आए थे, लेकिन इस स्थान के आकर्षण में पूरे 14 दिन न केवल रुके वरन ध्यान लगाकर ‘अनासक्ति योग’ ग्रंथ की रचना कर डाली। (Sardiyon men Uttarakhand)
उन्होंने इस स्थान के बारे में कहा था, ‘इन पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य की मेहमाननवाजी के आगे मानव द्वारा किया गया कोई भी सत्कार फीका है। मैं आश्चर्य के साथ सोचता हूँ कि इन पर्वतों के सौंदर्य और जलवायु से बढ़ कर किसी और जगह का होना तो दूर, इनकी बराबरी भी संसार का कोई सौंदर्य स्थल नहीं कर सकता। अल्मोड़ा के पहाड़ों में करीब तीन सप्ताह का समय बिताने के बाद मैं बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित हूँ कि हमारे यहाँ के लोग बेहतर स्वास्थ्य की चाह में यूरोप क्यों जाते हैं, जबकि यहीं भारत का स्विटजरलेंड मौजूद है।’ (Sardiyon men Uttarakhand)
उनका वह ध्यान केंद्र आज यहां ‘अनासक्ति आश्रम’ के रूप में मौजूद है। कौसानी हिन्दी के छायावादी कवि त्रिमूर्ति महादेवी-पंत-निराला के पंत की न केवल जन्म स्थली रही है, वरन यहीं उनका बचपन बीता और उन्होंने अपनी कवि कालजयी रचनाओं का सृजन भी यहीं किया। उनकी यांदें आज भी यहां प्रसिद्ध इतिहासकार व साहित्यकार पं. नित्यानंद मिश्रा के प्रयासों से निर्मित राजकीय संग्रहालय में अनेक दुर्लभ चित्रों के रूप में मौजूद हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
पंत के पिता गंगा दत्त पंत कौसानी की खूबसूरती के एक प्रमुख आकर्षण, यहां उस दौर में करीब 390 एकड़ में फैले चाय बागान के व्यवस्थापक थे। यहां के चाय बागानों की गिरनार ब्रांड की चाय पहाड़ की खुशबू से लबरेज होती है, और देश ही नहीं जर्मनी, कोरिया और आस्ट्रेलिया तक निर्यात की जाती है। गौरतलब है कि ब्रिटिश शासन काल में महारानी विक्टोरिया ने वर्ष 1885 में भारत के तमाम हिस्सों में टी इस्टेट की स्थापना की थी। (Sardiyon men Uttarakhand)
इसके तहत उत्तराखंड के देहरादून, कौसानी, चौकोड़ी, बेरीनाग, धरमघर (बागेश्वर व पिथौरागढ़ दोनों जिलों की सीमा), भीमताल समेत कई हिस्सों में टी इस्टेट विकसित किये गए थे। इन इलाकों में उत्पादित चाय ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों को भेजी जाती थी। भारत से ब्रिटिश राज के खात्मे से पहले टी इस्टेट को ब्रिटिश मूल की किसी महिला को सौंप दिया गया था। बाद में धीरे-धीरे तमाम लोगों ने टी इस्टेट में शेयर किया। साहित्यकार धर्मवीर भारती ने अपने प्रसिद्ध निबंध ‘ठेले पर हिमालय’ में कौसानी की खूबसूरती को अनेक कोणों से उकेरा है। (Sardiyon men Uttarakhand)
कौसानी के अन्य पर्यटक स्थलों में गांधी जी की लंदन निवासी शिष्या कैथरीन मेरी हेल्वमन द्वारा 1964 में निर्मित लक्ष्मी आश्रम भी है। कैथरीन 1948 में भारत आकर गांधी जी के सत्य, अहिंसा के सिद्धांतों से इतना प्रभावित हुईं कि सरला बहन के रूप में यहीं बस गईं। वह यहां कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल के तहत महिलाओं का संगठन बनाकर उन्हें स्वरोजगार से जोड़कर कार्य करती रहीं। (Sardiyon men Uttarakhand)
कौसानी से 17 किमी की दूरी पर गोमती नदी के तट पर कत्यूरी शासनकाल में 12वीं सदी में बने शिव, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर व सूर्य आदि देवताओं के मंदिर के समूह बैजनाथ भी एक दर्शनीय पौराणिक व धार्मिक महत्व का स्थल है। पास ही में गरुण के पास 21 किमी की दूरी पर कुमाऊं की कुलदेवी कही जाने वाली नंदा देवी एवं कोट भ्रामरी देवी का मंदिर भी बेहद प्रसिद्ध है। बैजनाथ से 28 किमी और आगे बढ़ने पर सरयू और गोमती के संगम पर कुमाऊं की काशी कहा जाने वाला बागेश्वर नाम का स्थान है, जो पिंडारी, सुंदरढूंगा व काफनी ग्लेशियरों के यात्रा मार्ग का बेस शिविर भी है। (Sardiyon men Uttarakhand)
आगे 87 किमी की दूरी पर स्थित चौकोड़ी से हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं को और भी अधिक करीब से देखा जा सकता है। बैजनाथ से ही दूसरी ओर कुमाऊँ और गढ़वाल मंडलों के मिलन स्थल ग्वालदम होते हुए स्वर्ग से भी सुंदर कहे जाने वाले बेदनी बुग्याल तक जाया जा सकता है। साहसिक खेलों के शौकीन सैलानियों के लिए यहां ट्रेकिंग, रॉक क्लाइबिंग के प्रबंध भी उपलब्ध हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर-178 किमी, निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम-178 किमी तथा दिल्ली 431 किमी की दूरी पर है। मार्च-अप्रेल एवं सितंबर-अक्टूबर कौसानी सहित सभी पर्वतीय पर्यटक स्थलों की सैर एवं प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए सबसे बेहतर समय है, अलबत्ता गर्मियों में भी यहां शीतल जलवायु के लिए आया जा सकता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
कौसानी के प्रेमियों में गांधी जी के साथ ही अनेक अन्य खास हस्तियां भी शामिल हैं, इनमें पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के अलावा यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. कर्ण सिंह व अरुण शौरी के साथ प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं, जो कमोबेश हर वर्ष यहां आते रहते हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
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9. चौकोड़ी: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद का सबसे करीबी पर्यटन स्थल हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के साथ उत्तराखंड की प्रसिद्ध चाय के उत्पादन के लिये अंग्रेजी दौर से प्रसिद्ध रहा है। (Sardiyon men Uttarakhand)
10. मुनस्यारी: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में स्थित मुन्स्यारी से नगाधिराज हिमालय विशालतम, हाथों से छू लेने के अहसास के साथ बेहद सुंदर नजर आता है। पर्वतीय जड़ी-बूटियों व राजमा की दाल आदि के लिये भी यह स्थान प्रसिद्ध है। (Sardiyon men Uttarakhand)
देवभूमि कुमाऊं में एक स्थान ऐसा भी है, जिसके बारे में कोई कहता है-‘सार संसार-एक मुनस्यार’, और कोई ‘सात संसार-एक मुनस्यार’ तो कोई ‘आध संसार-एक मुनस्यार’। लेकिन इन तीनों कहावतों का मूलतः एक ही अर्थ है सारे अथवा सारे अथवा आधे अथवा सात महाद्वीपों युक्त संसार एक ओर और मुन्स्यारी एक ओर। यानी आप पूरी दुनियां देख लें, लेकिन यदि आपने मुन्स्यारी नहीं देखा तो फिर पूरी दुनिया भी नहीं देखी। मुनस्यारी में कुदरत अपने आंचल में तमाम खूबसूरत नजारों के साथ अमूल्य पेड़-पौधे व तमाम जड़ी-बूटियों को छुपाए हुए बताती है कि वह उस पर खासतौर पर मेहरबान है। (Sardiyon men Uttarakhand)
देशी-विदेशी सैलानियों को बेहद पसंद समुद्र सतह से 2,200 मीटर की ऊंचाई पर बसा मुन्स्यारी देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के सीमांत पिथौरागढ़ जिले में तिब्बत और नेपाल सीमा से लगा हुआ एक छोटा का कस्बा है, किंतु इसकी पूरी खूबसूरती इसके सामने खड़ी हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं और नजदीकी खूबसूरत प्राकृतिक स्थलों और यहां की सांस्कृतिक खूबसूरती में निहित है। (Sardiyon men Uttarakhand)
खासकर सामने की विस्मयकारी हिमालय की पांच चोटियांे वाली पंचाचूली पर्वतमाला, जिसे कोई पांच पांडवों के स्वर्गारोहण करने के दौरान प्रयोग की गई पांच चूलियां या रसोइयां कहते हैं तो कोई साक्षात हिमालय पर रहने वाले पंचमुखी देवाधिदेव महादेव। कहते हैं पांडवों ने स्वर्ग की ओर बढ़ने से पहले यहीं आखिरी बार खाना बनाया था। (Sardiyon men Uttarakhand)
मुन्स्यारी पहुंचने के लिए 295 किमी की दूरी पर स्थित काठगोदाम और हल्द्वानी नजदीकी रेलवे स्टेशन तथा 330 किमी दूर पंतनगर नजदीकी हवाई अड्डा है। दिल्ली से मुन्स्यारी की सड़क मार्ग से दूरी 612 किमी, नैनीताल से 288 किमी और नए बन रहे पिथौरागढ़ के नैनी सैनी हवाई अड्डे से 128 किमी है। यहां पहुंचने के लिए अल्मोड़ा से आगे धौलछीना, सेराघाट, गणाई, बेरीनाग, चौकोड़ी से थल, नाचनी, टिमटिया, क्वीटी, बिर्थी, डोर, गिरगांव, रातापानी और कालामुनि होते हुए सड़क मार्ग से यहां पहुंचा जाता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
बिर्थी के पास सैकड़ों फीट की ऊंचाई से गिरने वाले दो बड़े झरने और एक लोहे के पुल के पास बाघ की तरह नजर आने वाला पत्थर-टाइगर स्टोन रोमांचित करते हैं। यहां से कठिन चढ़ाई वाली बेहद संकरी सड़क कालामुनि टॉप पर ले जाती है, जहां से पंचाचूली का दर्शन हर किसी की आंखें खुली की खुली रखने वाला होता है। लगता है मानो बांहें फैलाए विशाल हिमालय अपने पास बुला रहा हो, और आगे चलने पर नजर आता है पंचाचूली की गोद में बसा मुन्स्यारी। (Sardiyon men Uttarakhand)
फरवरी से मई यानी बसंत और सितम्बर से नवम्बर यानी हेमंत ऋतुओं को यहां आने के सबसे उपयुक्त समय माना जाता है, इस दौरान यहां धुले-धुले से बेहद खुशनुमा प्राकृतिक नजारे दृष्टिगोचर होते हैं। साफ व सुहावने मौसम में यहां से सूर्याेदय, और खासकर सूर्यास्त के दौरान स्वर्णिम आभा के साथ दमकती पंचाचूली की चोटियांे का नजारा विस्मयकारी होता है। नवम्बर से फरवरी तक की सर्दियों में मुन्स्यारी कालामुनि से ही हिमाच्छादित रहती है, अक्सर होने वाली बर्फवारी के साथ इस दौरान यहां उत्तराखंड राज्य के राज्य वृक्ष बुरांश पर खिले लाल दमकते फूलों के नजारे तो स्वर्ग सरीखे दिव्य होते हैं, किन्तु पहुंचना थोड़ा कठिन होता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
वहीं गर्मियों के दिनों में मुन्स्यारी की शीतलता मानव में नए प्राण भर देती है। यह समय ट्रेकिंग के लिए सर्वश्रेष्ठ रहता है, लेकिन कई बार दूरी से पंचाचूली व अन्य खूबसूरत दृश्य धुंध की वजह से नहीं दिखाई देते हैं। वर्षाकाल में सड़कों के खराब रहने की संभावना रहती है। गर्मियों में होटल, लॉज और गेस्ट हाउसों के भरे होने की समस्या भी रहती है। आवासीय सुविधा के लिए कुमाऊं मंडल विकास निगम के शानदार रेस्ट हाउस के साथ ही लोक निर्माण विभाग का गेस्ट हाउस और कई प्राइवेट होटल भी हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
मुनस्यारी के कालामुनि व खलिया टॉप में स्कीइंग की सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां की हल्की घुमावदार व सुरक्षित ढलानों के अंतराष्ट्रीय स्तर का स्कीइंग स्थल बनने की पूरी संभावनाएं हैं। यह पंचाचूली व मिलम के साथ ही नामिक और रालम ग्लेशियरों के लिए ट्रेकिंग का बेस कैंप भी है, खासकर विदेशी पर्यटक यहां ट्रेकिंग और माउंटेनियरिंग के लिए आते हैं। कालामुनि में स्थानीय लोगों की गहरी आस्था का केंद्र मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर भी है। नवरात्रों में यहां के उल्का देवी मंदिर में ढोल, वाद्य यंत्र व नगाड़ों की भक्तिमय गूंज के साथ ‘मिलकुटिया’ का बहुत बड़ा मेला लगता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
बेटुलीधार, डानाधार और खलिया टॉप नजदीकी खूबसूरत पिकनिक स्पॉट हैं। नीचे घाटी में कल-कल बहती गोरी गंगा में रिवर राफ्टिंग की रोमांचकारी सुविधा उपलब्ध है। गोरी घाटी को टेªकिंग का भी स्वर्ग कहा जाता है। यहां कई जगह औषधीय गुणों युक्त गंधक की मौजूदगी बताई जाती है, जिसके प्रभाव से गोरी गंगा के जल में कई त्वचा रोगों संबंधी औषधीय गुण बताए जाते हैं। इसके जलागम में शंखधुरा, नानासैंण, जेती, जल्थ, सुरंगी, शमेर्ली व गोड़ीपार जैसे छोटे-छोटे गांवों का नजारा भी आकर्षित करता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
इसके पास ही जोहार घाटी है, जो बीते समय में तिब्बत के साथ व्यापार करने का रूट हुआ करता था। बंगाल से लेकर कश्मीर व हिमांचल सहित पूरे देश भर से व्यापारी यहां नमक व ऊन के बने वस्त्रों की खरीद फरोख्त के लिए आया करते हैं। उस दौर की ऐतिहासिक यात्रा की ढेरों यादें यहां आज भी शेर सिंह पांगती द्वारा स्वयं के प्रयासों से तैयार बड़े संग्रहालय में देखी जा सकती हैं। इस संग्रहालय को देखना भी मुन्स्यारी यात्रा का एक बड़ा आकर्षण होता है। यह भी देखें धरती पर स्वर्ग, जैसा पहले कभी न देखा हो, रहस्यमय दारमा
यहां के तिकसेन नाम के बाजार में उच्च हिमालयी क्षेत्रों की जंबू, गंधरैणी, काला जीरा आदि जड़ी-बूटियां, यहां की खास बड़े आकार की राजमा दाल तथा यहां घर-घर में पलने वाली भेड़ों का पश्मीना ऊन व उससे बनी चीजें खास आकर्षण होती हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
मुन्स्यारी वाइल्डलाइफ व बर्ड वांचिंग का भी स्वर्ग है। इस विधा में दिलचस्पी रखने वालों को यहां विस्लिंग थ्रस, वेगटेल, हॉक कूकू, फॉल्कोन और सर्पेंट ईगल सहित सैकड़ों प्रकार की खूबसूरत पक्षियों की चहचहाहट और गुलदार, कस्तूरी मृग व पर्वतीय भालू आदि वन्य जीवों की गूंज आसानी से सुनाई दे जाती है, और बहुधा दर्शन भी हो जाते हैं। (Sardiyon men Uttarakhand)
11. पिंडारी व सुंदरढूंगा ग्लेशियर: उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद स्थित पिंडारी व सुंदरढूंगा ग्लेश्विर सबसे करीब हिमालयी ग्लेशियर हैं। यानी सबसे कम दूरी तय कर यहां ‘जीरो प्वाइंट’ से हिमालय को छुवा जा सकता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
पिंडारी ग्लेशियर उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के बागेश्वर जिले में समुद्र तल से 3627 मीटर (11657 फीट) की ऊंचाई पर नंदा देवी और नंदा कोट की हिमाच्छादित चोटियों के बीच स्थित है। हिमालय के अन्य सभी ग्लेशियरों की तुलना में सबसे आसान पहुंच के कारण पर्वतारोहियों और ट्रेकरों की पहली पसंद पिंडारी ग्लेशियर अपनी खूबसूरती से भी मन को लुभाने वाला है। (Sardiyon men Uttarakhand)
3.2 किमी लंबे और 1.5 किमी चौड़े इस ग्लेशियर का ‘जीरो पॉइंट’ समुद्र तल से 3660 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहीं से पिंडर नदी निकलती है, जो बाद में कर्णप्रयाग से होते हुए अलकनंदा नदी में जाकर मिलती है। पिंडारी ग्लेशियर के बांई ओर समुद्र तल से जिसकी ऊंचाई 3860 मीटर की ऊंचाई पर कफनी ग्लेशियर स्थित है, जिसके लिए द्वाली नाम के पड़ाव से रास्ता अलग होता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
ऐसे पहुंचें पिंडारी, कफनी और सुंदरढूंगा ग्लेशियर
पिंडारी ग्लेशियर जाने के लिए बागेश्वर से कपकोट की ओर 48 किमी आगे सौंग, लोहारखेत तक सड़क जाती है, जहां से धाकुड़ी टॉप तक खड़ी चढ़ाई, वहां से उतार के पैदल मार्ग से इस ट्रेक के आखिरी खाती गांव, द्वाली व फुरकिया होते हुए पिंडारी ग्लेशियर के आखिरी पड़ाव जीरो प्वाइंट पहुंचा जाता है। (Sardiyon men Uttarakhand)
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