डॉ .नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 26 जुलाई 2023। (Shahadat) करगिल विजय दिवस जब भी आता है, वीरों की भूमि उत्तराखंड का नैनीताल शहर भी गर्व की अनुभूति के साथ अपने एक बेटे, भाई की यादों में खोये बिना नहीं रह पाता। नगर का यह होनहार बेटा देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महावीर चक्र विजेता मेजर राजेश अधिकारी था, जो इस युद्ध में शादी के नौ माह के भीतर ही पत्नी के हाथों की हजार उम्मीदों की गीली मेंहदी को सूखने से पहले और मां के बुढ़ापे का सहारा बनने व नाती-पोतों को गोद में खिलाने के सपनों को एक झटके में तोड़कर चला गया था।
मेजर राजेश अधिकारी ने जिस तरह देश के लिये अपने प्राणों का सर्वोच्च उत्सर्ग किया, उसकी अन्यत्र मिसाल मिलनी कठिन है। 29 वर्षीय राजेश 18 ग्रेनेडियर्स रेजीमेंट में तैनात थे। वह मात्र 10
सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए 15 हजार फीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग चोटी पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा स्थापित की गई पोस्ट को दुश्मन के कब्जे से मुक्त कराने के इरादे से आगे बढ़े थे। इस दौरान सैनिकों से कई फीट आगे रहते हुऐ चल रहे थे, और इस कारण घायल हो गये। इसके बावजूद वह अपने घावों की परवाह किये बगैर आगे बढ़ते रहे। वह 30 मई 1999 का दिन था, जब मेजर राजेश प्वाइंट 4590 चोटी पर कब्जा करने में सफल रहे, इसी दौरान उनके सीने में दुश्मन की एक गोली आकर लगी, और उन्होंने बंकर के पास ही देश के लिये असाधारण शौर्य और पराक्रम के साथ सर्वोच्च बलिदान दे दिया। युद्ध और गोलीबारी की स्थितियां इतनी बिकट थीं कि उनका पार्थिव शरीर करीब एक सप्ताह बाद युद्ध भूमि से लेकर नैनीताल भेजा जा सका।
राजेश ने नगर के सेंट जोसफ कालेज से हाईस्कूल, जीआईसी (जिसके नाम में अब उनका नाम भी जोड़ दिया गया है) से इंटर तथा डीएसबी परिसर से बीएससी की पढ़ाई की थी। पूर्व परिचित किरन से उनका विवाह हुआ था। परिजनों के अनुसार यह ‘लव कम अरेंज्ड’ विवाह था।
लेकिन शादी के नौ माह के भीतर ही वह देश के लिये शहीद हो गये। उनकी शहादत के बाद परिजनों ने उनकी पत्नी को उसके मायके जाने के लिये स्वतंत्र कर दिया। वर्तमान में सैनिक कल्याण विभाग के अनुसार किरन ने पुर्नविवाह कर लिया। उनकी माता मालती अधिकारी अपने पुत्र की शहादत को जीवंत रखने के लिये लगातार संघर्ष करती रहीं, जिसके बावजूद उन्हें जीवित रहने तक व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक दोनों स्तरों पर कुछ खास हासिल नहीं हो पाया।
उल्लेखनीय है कि मरणोपरांत महावीर चक्र प्राप्त 18 ग्रेनेडियर्स के मेजर राजेश सिंह अधिकारी भारतीय सेना अधिकारी थे जिन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी थी। उन्हें मरणोपरांत दूसरे सर्वोच्च भारतीय सैन्य सम्मान, युद्ध के मैदान में बहादुरी के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। मेजर राजेश सिंह अधिकारी का जन्म दिसंबर, 1970 में नैनीताल, उत्तराखंड में हुआ था। राजेश सिंह अधिकारी के पिता का नाम केएस अधिकारी (पिता) और मां का नाम मालती अधिकारी (माता) था।
30 मई 1999 पाकिस्तान से भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में भारी लड़ाई छिड़ गई। पाकिस्तानी सेना नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री के नियमित रूप से आतंकवादियों के रूप में तैयार घुसपैठ के कारण, भारतीय सेना को उन घुसपैठियों की ऊंचाइयों को साफ करने का आदेश दिया गया था। करगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों के अधिक ऊंचाई पर होने की वजह से भारतीय फौज के लिए यह लड़ाई आसान नहीं थी। करगिल युद्ध को जीतने के लिए भारतीय जवानों ने साहस के साथ-साथ दिमाग का भी प्रयोग किया। दुश्मनों ने कारगिल के टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया था। भारत वहां पर अपनी पकड़ एक बार फिर बनाना चाहता था।
मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री के मेजर राजेश सिंह अधिकारी को तोलोलिंग से पाकिस्तानी घुसपैठिओं को भगाने की जिम्मेदारी दी गयी। 14 मई 1999 को मेजर राजेश अधिकारी ने 10 सदस्यों वाली तीन टीम को तैयार किया और पाकिस्तान के घुसपैठियों को भगाने की योजना बनायी। वह अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपनी कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे। यूनिवर्सल मशीन गन के साथ, उन्होंने दुश्मनों को उनकी स्थिति से कमजोर करते हुए उन्हें बाहर निकाल दिया। उन्होंने तुरंत रॉकेट लॉन्चर टुकड़ी को दुश्मन की स्थिति में शामिल होने का निर्देश दिया और बिना प्रतीक्षा किए, स्थिति में पहुंचे और करीब-चौथाई लड़ाई में दुश्मन के दो कर्मियों को मार डाला।
अधिकारी ने अपनी सूझबूझ से अपनी मध्यम मशीन गन टुकड़ी को आदेश दिया कि वह चट्टानी विशेषता के पीछे की स्थिति को संभाले और दुश्मन को उलझाए। लड़ाई के दौरान, अधिकारी गोलियों से घायल हो गये थे लेकिन उन्होंने सबयूनिट को निर्देशित करना जारी रखा और दूसरे दुश्मन की स्थिति पर कब्जा कर करके उन्हें पछाड़ दिया। तोलोलिंग में दूसरे स्थान पर भी कब्जा करते हुए प्वाइंट 4590 पर भी भारत ने कब्जा कर लिया। हालांकि, बाद में मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने दम तोड़ दिया। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो युद्ध के मैदान में बहादुरी के लिए दूसरा सर्वोच्च भारतीय सैन्य सम्मान है।
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-मुख्यमंत्री ने कहा-सैन्य धाम में संजोई जाएंगी शहीद चंद्रशेखर की स्मृतियां
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 17 अगस्त 2022। (Shahadat) 1984 में सियाचिन में ‘आपरेशन मेघदूत’ के दौरान शहीद हुए लांसनायक चन्द्रशेखर हरबोला का पार्थिव शरीर 38 वर्ष के पश्चात बुधवार को उनके आवास पर पहुंचा। यहां प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी एवं जनपद की प्रभारी मंत्री रेखा आर्या, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य एवं मंडलायुक्त दीपक रावत, डीएम धीराज गर्ब्याल व एसएसपी पंकज भट्ट आदि ने उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये। लालकुआं विधायक डॉ. मोहन बिष्ट व भीमताल विधायक राम सिंह कैड़ा भी घर पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे। देखें विडियो :
आगे चित्रशिला घाट पर उनका पूरे धार्मिक रीति-रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया गया। यहां हल्द्वानी के मेयर डॉ. जोगेंद्र रौतेला एवं हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदयेश, मेजर जनरल अनिल चंदेल, कुमाऊं रेजीमेंट के कमांडैंट बिग्रेडियर आईएस सनियाल, बिग्रेडियर विश्वजीत सिह, 19-कुमाऊं के सीओ कर्नल बीएस नेगी, कर्नल विक्रमजीत सिंह, स्टेशन कमांडेंट कर्नल अमित मोहन, कर्नल जीवन रावत, कर्नल देवेंद्र नेगी सहित सेना एवं पुलिस के अधिकारियों ने उन्हें पुष्पचक्र भेंट किए। साथ ही पुलिस की गारद ने शोक धुन बजाई एवं सलामी शस्त्र के साथ अंतिम सलामी दी। देखें विडियो :
मुखाग्नि स्वर्गीय हरबोला के रायपुर छत्तीसगढ़ से आए भतीजे ललित हरबोला तथा गांव बिन्ता अल्मोड़ा स्थित हाथीखुर से आए छोटे भाई पूरन चंद्र हरबोला व राजू हरबोला के साथ दोनों बेटियों कविता व बबीता ने मिलकर दी। उल्लेखनीय है कि शहीद का शव गत 13 अगस्त को मिला था। शहीद के परिवार एवं अंतिम यात्रा में शामिल लोगों को शहीद का चेहरा न देख पाने का अफसोस रहा।
इससे पूर्व बुधवार को जैसे ही शहीद चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर डहरिया स्थित उनके आवास पर पहुँचा, पूरा क्षेत्र देश भक्ति के नारों से गुंजायमान हो गया, पार्थिव शरीर को घर के आंगन में पहुंचता देख शहीद की वीरांगना शांता देवी, पुत्री कविता व बबीता तथा अन्य परिजन शोक में गमगीन हो गये। इस दौरान ‘जब तक सूरज चांद रहेगा शहीद चंद्रशेखर तेरा नाम रहेगा’ के नारों से पूरा क्षेत्र गुंजायमान रहा।
सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि शहीद चन्द्रशेखर की शहादत को हमेशा याद रखा जायेगा। उन्होेंने कहा कि देश की सीमाओं की रक्षा तथा देश की संप्रभुता एवं अखण्डता बनाये रखने के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर सैनिक सपूतों, तथा उनके परिजनों के मान-सम्मान एवं कल्याणार्थ के लिए सरकार सदैव तत्पर है। पुष्प चक्र अर्पित करने के पश्चात शहीद चन्द्रशेखर का पार्थिव शरीर चित्रशिला घाट रानीबाग के लिए रवाना हुआ, जहां शहीद को पूरे राजकीय सम्मान व आर्मी बैंड की धुन के साथ भावभीनी विदाई दी गई। चित्रशिला घाट पर सैकडों की संख्या में लोगों द्वारा नम आंखों से शहीद को विदाई दी गई।
भाजपा जिलाध्यक्ष प्रदीप बिष्ट, डा. अनिल कपूर डब्बू, चतुर सिह बोरा, सुरेश तिवारी, प्रकाश हर्बोला, भूप्पी क्वीरा व दिनेश आर्य के साथ ही सीडीओ डा. संदीप तिवारी, सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह, एसडीएम मनीष कुमार के साथ ही के साथ ही सैकड़ों की संख्या में पूर्व सैनिक, जनप्रतिनिधि, क्षेत्रीय जनता उपस्थित रहे।
सांसद अजय भट्ट ने भी जताया शोक, दिया मदद का भरोसा
नैनीताल। केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने कहा कि सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत में 38 साल पहले अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले हल्द्वानी निवासी मां भारती के सपूत चंद्रशेखर के बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा। श्री भट्ट ने कहा कि इस बेहद दुखद क्षण में वह देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले चंद्रशेखर के परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं और हर संभव मदद करेंगे। श्री भट्ट ने कहा कि उत्तराखंड और देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले चंद्रशेखर के बलिदान को हमेशा याद रखेगा। श्री भट्ट ने कहा कि देवभूमि के इस सपूत को वह अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
परिवार एवं भाजपा कार्यकर्ताओं ने की शौर्य चक्र देने सहित तीन मांगें
नैनीताल। शहीद चंद्रशेखर हरबोला के परिजनों एवं स्थानीय भाजपा नेताओं ने भाजपा के लेटरपैड पर मुख्यमंत्री से शहीद चंद्रशेखर को शौर्य चक्र देने, सुशीला तिवारी से डहरिया को आने वाले मार्ग का नाम शहीद चंद्रशेखर मार्ग रखने एवं उनके परिवार को आर्थिक सहायता देने की मांग रखी। इसके अलावा शहीद के भाइयों ने बिन्ता अल्मोड़ा में शहीद के गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने की मांग मुख्यमंत्री के समक्ष रखी। इस दौरान मुख्यमंत्री श्री धामी ने कहा शहीद चन्द्रशेखर के बलिदान को हमेशा याद रखा जायेगा। देश के लिए बलिदान देने वाले उत्तराखंड के सैनिकों के लिए सैन्यधाम की स्थापना की जा रही है। शहीद चन्द्रशेखर की स्मृतियों को भी सैन्यधाम में संजोया जायेगा। उन्होंने अन्य मांगों पर सकारात्मक रुख दिखाया। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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-11 बजे तक हल्द्वानी पहुंचने की संभावना
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 17 अगस्त 2022। देश की सीमाओं को मजबूत करने के लिए 38 वर्ष पूर्व 29 मई 1984 को शहादत देने वाले ‘ऑपरेशन मेघदूत’ में जान गंवाने वाले शहीद चंद्रशेखर हरबोला की पार्थिव देह के घर पहुंचने का इंतजार अब निपटता नजर आ रहा है। ताजा जानकारी के अनुसार अभी-अभी यानी बुधवार सुबह 9 बजे पार्थिव देह को चंडीगढ़ ले आया गया और वहां से विमान उन्हें लेकर करीब सवा नौ बजे हल्द्वानी के लिए रवाना हो गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी अपने अन्य कार्यक्रमों को छोड़कर शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए 11.35 बजे हल्द्वानी के एफटीआई हैलीपैड और वहां से 11.40 बजे शहीद के घर पर पहुचेंगे। इस बारे में प्रशासन की ओर मुख्यमंत्री का कार्यक्रम जारी हो गया है। प्रदेश के राज्यपाल सेवानिवृत्त ले. जनरल गुरमीत सिंह के भी शहीद के घर पर पहुंचने की संभावना है।
इस मामले में समन्वय कर रहे 1984 की पूरी घटना के चश्मदीद रहे व इस लड़ाई में शामिल रहे सूबेदार मेजर ऑनरेरी कैप्टन बद्री दत्त उपाध्याय ने बताया कि चंडीगढ़ से करीब दो घंटे में यानी सुबह 11 बजे तक हल्द्वानी के तिकोनिया स्थित हैलीपैड पर पहुंच जाएंगे। बताया गया है कि यहां से करीब एक घंटे की औपचारिकताओं के बाद उन्हें उनके धान मिल स्थित आवास पर लाया जाएगा, जहां उनके परिवार के लोग और अन्य आम लोग शहीद के अंतिम दर्शन कर पाएंगे। उन्होंने बताया कि शहीद को राजकीय सम्मान देने एवं अन्य ऑपचारिकताओं के लिए बड़ी संख्या में सैन्य अधिकारी एवं कर्मचारी काठगोदाम पहुंच गए हैं।
प्रशासन ने भी सुबह 11 बजे तक शहीद की पार्थिव देह के हल्द्वानी पहुंचने की पुष्टि कर दी है। जिलाधिकारी कार्यालय की ओर से बताया गया है कि जिले की प्रभारी मंत्री रेखा आर्य भी शहीद को श्रद्धांजलि देने के लिए हल्द्वानी पहुंच चुकी हैं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
शहीद चद्रशेखर सहित 19 शहीदों को शौर्य चक्र दिए जाने की सिफारिश
शहीद चद्रशेखर सहित 19 शहीदों को शौर्य चक्र एवं उनके कमांडर लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर को कीर्ति चक्र दिए जाने की सिफारिश की गई है। ‘ऑपरेशन मेघदूत’ पर लिखी गई पुस्तक ‘गोरीचिन टु सियाचिन-द अन्टोल्ड सागा ऑफ हॉइस्टिंग द ट्राइकलर ऑन साल्टोरो’ में लेखक विशिष्ट सेवा मेडल प्राप्त ब्रिगेडियर डीके खन्ना ने पुस्तक की भूमिका में ही विश्व के इस अनूठे, कमोबेश बादलों की-सबसे ऊंचाई पर लड़ी एवं जीती गई लड़ाई के हीरो लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर को कीर्ति चक्र एवं इस ऑपरेशन में 29 मई 1984 को जान गंवाने वाले शहीद चंद्रशेखर हरबोला सहित सभी शहीदों को शौर्य चक्र देने की सिफारिश की है। अलबत्ता इस पर अफसोस भी जताया गया है कि सभी शहीदों को केवल ‘जीओसी-इन-सी कमेंडेशन कार्ड्स’ ही दिए गए।
ऑपरेशन मेघदूत में शहीद हुए सैनिकों के नाम
Gorichen to Siachen eBook by D K Khanna पुस्तक में ऑपरेशन मेघदूत में जान गंवाने वाले शहीदों की पूरी सूची भी प्रकाशित की गई है। गौर करने वाली बात यह भी है शहीदों में से अधिकांश उत्तराखंड एवं कुमाऊं मंडल के सैनिक शामिल हैं। इनमें इलाहाबाद यूपी के के अलावा शेष सभी शहीद अल्मोड़ा के हवलदार गोविंद बल्लभ, हवलदार भगवत सिंह, नायक राम सिंह, लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला, सिपाही गंगा सिंह, सिपाही मोहन सिंह भंडारी व सिपाही राजेंद्र सिंह, नैनीताल जनपद के नायक दया किशन, पिथौरागढ़ जनपद के हवलदार मोती सिंह,लांस नायक चंद्रशेखर सिंह कन्याल, सिपाही जगत सिंह, सिपाही महेंद्र पाल सिंह, सिपाही हयात सिंह, सिपाही पुष्कर सिंह, सिपाही जगदीश चंद्र, सिपाही भूपाल सिंह, सिपाही नरेंद्र सिंह व सिपाही भीम सिंह तथा शामिल हैं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 अगस्त 2022। आजादी की 75वीं सालगिरह पर जब देश अमृत महोत्सव के साथ ‘हर घर तिरंगा’ महा उत्सव मना रहा है। तब 38 वर्ष पूर्व देश के लिए शहीद हुए एक 28 वर्षीय जवान का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर उत्तराखंड के हल्द्वानी पहुंचने वाला है। शहीद के परिवार के साथ ही यह पूरे राज्य वासियों के लिए दुःख के साथ संतोष और गर्व का मौका है जब सिचाचिन ग्लेशियर को भारत से आधिकारिक तौर पर मिलाने के लिए भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन मेघदूत’ के दौरान गायब हुए शहीद चंद्रशेखर हरबोला, बैच संख्या 4164584, का पार्थिव शरीर सिचाचिन की बर्फ के नीचे तब जैसी ही संरक्षित-सुरक्षित स्थिति में मिलने की सूचना उनकी पत्नी को भारतीय सेना से प्राप्त हुई है। अब उनके पार्थिव शरीर के कल यानी ठीक 15 अगस्त के दिन घर पहुंचने की उम्मीद की जा रही है।
दिलचस्प बात यह भी है कि यदि स्वर्गीय शहीद चंद्रशेखर हरबोला आज जीवित होते तो 66 वर्ष के होते, लेकिन उन्हें उनकी 64 वर्षीय पत्नी शांता देवी और दो बेटियां कविता व बबीता व उनके बच्चे यानी नाती-पोते 28 वर्षीय युवा के रूप में अंतिम दर्शन कर पाएंगे।
गौरतलब है कि मूल रूप से हाथीखाल बिन्ता द्वाराहाट जिला अल्मोड़ा निवासी स्व. देवी दत और बिशना देवी के पुत्र शहीद का परिवार वर्तमान में सरस्वती विहार, नई आईटीआई रोड, डहरिया में रहता है। वह15 दिसम्बर 1971 को कुमांऊ रेजीमेंट केन्द्र रानीखेत से भर्ती हुए थे। 1975 में उनकी शादी हवालबाग निवासी शान्ति देवी से हुई। पत्नी शांता देवी उनके शहीद होने से पहले से नौकरी में थी। जबकि बेटियां छोटी थीं। कई वर्षों तक उनके पार्थिव शरीर की असफल तलाश के बाद आखिर उन्हें शहीद घोषित किया गया। पत्नी को उनकी 18 हजार रुपए ग्रेज्युटी व 60 हजार रुपए बीमा के मिले, अलबत्ता परिवार के सदस्य को नौकरी आदि सुविधाएं नहीं मिलीं।
1984 की इस घटना के चश्मदीद रहे और उनके पार्थिव शरीर को घर वापस लाने की पूरी व्यवथाओं को देख रहे व इस लड़ाई में शामिल रहे सूबेदार मेजर ऑनरेरी कैप्टन बद्री दत्त उपाध्याय ने कहा कि 38 वर्ष बाद स्वर्गीय चंद्रशेखर हरबोला के पार्थिव शरीर का मिलना बहुत बडे़ गर्व का मौका है। इस पर वह बड़ा संतोष और खुद को तृप्त सा महसूस कर रहे हैं। उनके परिवार का भी 38 वर्ष का इंतजार पूरा हो रहा है। अब कोशिश है कि यह इंतजार और लंबा न खिंचे। उन्हें उच्चाधिकारियों ने बताया है कि शहीद का शव आज लेह पहुंचेगा और कोशिश है कि कल 15 अगस्त की शाम तक शहीद का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर नई दिल्ली से होते हुए हल्द्वानी पहुंच जाए।
ऐसे हुए थे शहीद
उन्होंने बताया कि सिचाचिन ग्लेशियर पर अक्साई चिन की ओर चीन व पाकिस्तान के स्यालाबिल्ला पहाड़ी की ओर पुल बनाने की सूचना पर ऑपरेशन मेघदूत के तहत श्रीनगर से वह लोग पैदल सियाचिन गए थे। इस लड़ाई में प्रमुख भूमिका 19 कुमाऊं रेजीमेंट ने निभाई थी। स्वर्गीय चंद्रशेखर हरबोला 19 कुमाऊं रेजीमेंट ब्रावो कंपनी में थे और लेंफ्टिनेंट पीएस पुंडीर के साथ 16 जवान हल्द्वानी के ही नायब सूबेदार मोहन सिंह की आगे की पोस्ट पर कब्जा कर चुकी टीम को मजबूती प्रदान करने जा रहे थे। इसी दौरान 29 मई 1984 की सुबह 4 बजे आए एवलांच यानी हिमस्खलन में पूरी कंपनी बर्फ के नीचे दब गई थी। इस लड़ाई में भारतीय सेना ने सियाचिन के ग्योंगला ग्लेशियर पर कब्जा किया था। अब तक 14 शहीद ही मिल पाए थे। जबकि कुछ शहीदों के पार्थिव शरीर अब भी नहीं मिल पाए हैं।
यह था ऑपरेशन मेघदूत
ऑपरेशन मेघदूत, भारत के जम्मू कश्मीर राज्य में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए भारतीय सशस्त्र बलों के ऑपरेशन के लिए चौथी शताब्दी में महाकवि कालीदास की रचना मेघदूत के नाम पर आधारित कोड-नाम था। यह ऑपरेशन 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया। यह सैन्य अभियान अनोखा था क्योंकि दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण प्राप्त कर किया था।
इस पूरे ऑपरेशन में 35 अधिकारी और 887 जेसीओ-ओआरएस ने अपनी जान गंवा दी थी। वहीं, अपने संस्मरणों में पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने कहा था कि पाकिस्तान ने क्षेत्र का लगभग 900 वर्ग मील (2,300 वर्ग किमी) खो दिया है। जबकि अंग्रेजी पत्रिका टाइम के अनुसार भारतीय अग्रिम सैन्य पंक्ति ने पाकिस्तान द्वारा दावा किए गए इलाके के करीब 1,000 वर्ग मील (2,600 वर्ग किमी) पर कब्जा कर लिया था। अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।