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आज देश के विभिन्न क्षेत्रों में नजर आ रहा उप छाया चंद्रग्रहण के साथ ही सुपर व ब्लड मून

डॉ.नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 26 मई 2021। अंधेरी रातों में कभी छोटा तो कभी बड़ा दिखते हुए हमेशा कौतूहल का केंद्र रहने और शीतल चांदनी बिखेरने वाला चांद बुधवार को कुछ अलग खास पलों का गवाह बनने जा रहा है। बुधवार अपराह्न दो बजकर 17 मिनट से शाम 7 बजकर 19 मिनट तक चांद वर्ष 2021 के पहले चंद्रग्रहण के दौर से गुजर रहा है। खास बात यह भी यह है कि पृथ्वी से अपेक्षाकृत कम दूरी से गुजरने और शाम को सूर्यास्त के दौरान भी होने की वजह से आज का चांद सुपर व ब्लड मून यानी अपेक्षाकृत अधिक बड़ा व लाल रंग का नजर आने वाला है।
स्थानीय एरीज के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे ने बताया कि आज का चंद्रग्रहण भारत देश के लिहाज से उपछाया चंद्रग्रहण है। इसका अर्थ यह है कि आज पृथ्वी व सूर्य के बीच में आने के बावजूद चंद्रमा की छाया भारत के किसी भी हिस्से में सीधे नहीं पड़ रही है। बल्कि भारत चंद्रमा की छाया के बाहरी क्षेत्र में है, इसलिए भारत के पूर्वाेत्तर क्षेत्रों, 7 पूर्वोत्तर राज्यों, पश्चिमी बंगाल व अंडमान निकोबार द्वीप समूह आदि में इसकी उपछाया ही पड़ रही है। इसलिए इसे उपछाया चंद्रग्रहण कहा जा रहा है। इसके अलावा वर्तमान में चूंकि चंद्रमा पृथ्वी के अपेक्षाकृत करीब है, इसलिए इसका आकार अन्य दिनों के सापेक्ष थोड़ा बड़ा दिखाई देगा। इसलिए इसे सुपर मून कहा जा रहा है, और चूंकि यह ग्रहण की स्थिति है, इसलिए चंद्रमा सबसे कम प्रकीर्णित होने वाले लाल रंग से युक्त, सूर्याेदय व सूर्यास्त के समय लालिमा लिये हुए सूर्य की तरह, हल्की लालिमा लिए हुए दिखाई देता है। इसलिए इसे ‘ब्लड मून’ भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि चंद्रग्रहण की घटना खगोल वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण से बड़े अध्ययनों में सहायक नहीं होती है, इसलिए एरीज में चंद्रग्रहण का अध्ययन नहीं किया जाता है। फिर भी यहां दिखाई देने वाले चंद्रग्रहणों को बड़ी दूरबीनों के माध्यम से क्षेत्रीय आम लोगों को दिखाने के प्रबंध किए जाते हैं।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जून 2020। रविवार को सूर्य ग्रहण के दौरान नैनीताल में बादलों के छाये रहने और तेज बारिश होने की कठिन परिस्थितियों के बावजूद यहां से सूर्यग्रहण की लाइव फीड प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजी गई। एरीज के वरिष्ठ सौर वैज्ञानिक व पूर्व कार्यकारी निदेशक डा. वहाब उद्दीन ने बताया कि एरीज काफी दिनों से सूर्यग्रहण की लाइव फीड देने के लिए तैयारी कर रहा था। इसके लिए 15 सेमी की दूरबीन के साथ ही वैकल्पिक तौर पर पांच इंच व्यास की दूरबीन पर भी 2048 पिक्सल गुणा 2048 पिक्सल, 16 बिट व एक इंच गुणा एक इंच चिप युक्त हाई रेजोल्यूशन कैमरे के सीसीडी कैमरे लगाये गये थे। ये कैमरे सूर्य की सतह के छोटे चित्र भी अधिक रेजोल्यूशन के साथ लेने में समर्थ हैं, जबकि सूर्यग्रहण में तो पूरा सूर्य दिखाना था। इसलिए इन कैमरों से सूर्य अपने आभासीय आकार से भी बड़ा एवं स्पष्ट नजर आ रहा था।

यह अलग बात है कि बादलों एवं बारिश के कारण अधिकांश समय एरीज को हनले, लेह की दूरबीन की फीड चलानी पड़ी लेकिन साढ़े 12 बजे के आसपास करीब आधे घंटे के लिए जब एरीज से लाइव स्ट्रीमिंग हुई तो सूर्य के नजारे दुनिया में सर्वश्रेष्ठ थे। डा. वहाब उद्दीन ने बताया कि प्रधानमंत्री के सलाहकार एवं केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में सचिव ने एक दिन पहले ही एरीज की फीड सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय में लेने की जानकारी दी थी।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जून 2020। जिला व मंडल मुख्यालय में रविवार को वर्ष के बड़े दिन यानी 21 जून को लगे सूर्यग्रहण में भी सूर्यग्रहण के नजारे देखे गये। यहां एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान में कोरोना के दृष्टिगत सूर्यग्रहण को ऑनलाइन लाइव स्ट्रीमिंग दिखाने के लिए जूम, यूट्यूब व फेसबुक के माध्यम से विशेष प्रबंध किये गये थे। इसके लिए 15 सेमी व्यास की सोलर टावर टेलीस्कोप को सूर्य की ओर लगाया गया था। अलबत्ता आसमान में बादलों की मौजूदगी की वजह से सूर्यग्रहण का अधिकांश समय नैनीताल से लाइव प्रसारण नहीं हो पाया। ऐसे में आईआईए हान्ले-लद्दाख से सूर्यग्रहण का लाइव प्रसारण किया गया। एरीज के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. शशिभूषण पांडे ने बताया कि यहां सूर्य पर अधिकतम 95 फीसद तक ग्रहण लगा और सूर्य अर्ध वलय या हंसिया के आकार में नजर आया। इसे देखने के लिए लोगों में खासा आकर्षण देखा गया। देश-दुनिया के माध्यम से हजारों लोगांे ने एरीज के माध्यम से सूर्यग्रहण के ऑनलाइन नजारे लिये।

नैनीताल में ऐसा नजर आया सूर्यग्रहण का सूर्य
सूर्यग्रहण का नज़ारा लेतीं एक वृद्धा

सूर्यग्रहण और नैनीताल का खास कनेक्शन: महान भारतीय ज्योतिर्विद आर्यभट्ट को दिया जाता है सूर्यग्रहण की खोज का श्रेय
नैनीताल। यह संयोग ही है कि सूर्यग्रहण एवं पृथ्वी के बारे में बहुत सी खोजें महान भारतीय ज्योर्तिविद आर्यभट्ट (जन्म 476 ईसवी) ने ही की थीं और नैनीताल में खगोल विज्ञान पर शोध करने वाला बड़ा संस्थान एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान आर्यभट्ट के नाम पर ही स्थित है। ‘आओ जानें भारत: अचंभों की धरती’ पुस्तक के अनुसार आर्यभट्ट ने ही बताया कि पृथ्वी गोल है और उसकी परिधि अनुमानतः 24836 मील है। उन्होंने सूर्यग्रहण की भी खोज करते हुए कहा था कि चंद्रग्रहण में चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी और सूर्यग्रहण में पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा के आ जाने से सूर्यग्रहण पड़ते हैं। उन्होंने चंद्रमा और दूसरे ग्रहों के स्वयं प्रकाशमान न होने बल्कि सूर्य की किरणों के प्रतिबिंबित होने से चमकने, पृथ्वी व अन्य ग्रहणों के सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार कक्षा में घूमने तथा वर्ष में 366 नहीं 365.2591 दिन होने के साथ ही पाई का मान 3.1416 होने के साथ गणितीय समीकरणों का भी आविष्कार किया था। गौरतलब है कि उनके नाम पर ही

Surya Grahan 2020 Timing: सूर्य ग्रहण में भूलकर भी न करें ये काम, जानें कब-कहां और कैसे दिखेगायह भी पढ़ें : आज साल के सबसे बड़े दिन-अमावस्या को सबसे लम्बे सूर्य ग्रहण में चाँद के साथ हरियाणा-उत्तराखंड में चमचमाते कंगन, शेष भारत में हंसियाकार दिखेगा सूर्य

नवीन समाचार, नैनीताल, 20 जून 2020। वर्ष के सबसे बड़े व अमावस्या के दिन-विश्व योग दिवस के अवसर पर रविवार 21 जून को जब सूरज उत्तरायण के अंतिम बिंदु कर्क रेखा पर पहुंचेगा, तब दोपहर के आकाश में सूरज के साथ चंद्रमा भी दिखेगा, लेकिन वह सूरज और पृथ्वी की सीध में होने से चमकता हुआ नहीं दिखकर काली छाया के रूप में दिखेगा। इस दिन सूर्योदय प्रात: 5.35 बजे होकर सूर्यास्त शाम 07.09 बजे होगा। यानी इस दिन की अवधि 13 घंटे 34 मिनट और 1 सेकंड की रहेगी। साल के सबसे बड़े दिन खंडग्रास सूर्यग्रहण की यह अनोखी खगोलीय घटना होगी। खास बात यह भी है कि हरियाणा और उत्तराखंड में तो सूर्य को चमचमाते कंगन के रूप में देखा जा सकेगा, लेकिन देश के अन्य प्रदेशों में यह हंसियाकार रूप में खंडग्रास सूर्यग्रहण दिखाई देगा।

यह भी उल्लेखनीय है कि 21 जून को सुबह 9 बजकर 15 मिनट पर ग्रहण शुरू हो जाएगा और 12.10 बजे दोपहर में पूर्ण ग्रहण दिखेगा। इस दौरान कुछ देर के लिए हल्का अंधेरा सा भी छा जाएगा। इसके बाद 3.04 बजे ग्रहण समाप्त होगा। यानी यह ग्रहण करीब 6 घंटे लंबा होगा। लंबे ग्रहण की वजह से पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हो रही है। बताया गया है कि भारत में वलयाकार सूर्य ग्रहण की शुरुआत पश्चिम राजस्थान से होगी और इसे देखने वाला पहला शहर घरसाना होगा। भारतीय समय के अनुसार, पहला संपर्क 10 बजकर 12 मिनट और 26 सेकंड पर शुरू होगा। वलयाकार सूर्य ग्रहण राजस्थान के अनूपगढ़, श्रीविजयनगर, सूरतगढ़ और एलेनाबाद से होते हुए हरियाणा के सिरसा, रतिया (फतेहाबाद), जाखल, पिहोवा, कुरुक्षेत्र, लाडवा, यमुनानगर से जगदरी और फिर उत्तर प्रदेश के बेहट जिले से गुजरेगा। वलयाकार ग्रहण उत्तराखंड के देहरादून, चंबा, टिहरी, अगस्त्यमुनि, चमोली, गोपेश्वर, पीपलकोटी, तपोवन तथा जोशीमठ से देखने को मिलेगा। जोशीमठ भारत का अंतिम स्थान है जहाँ से ग्रहण देखा जा सकेगा। जोशीमठ में 10 बजकर 27 मिनट और 43 सेकेंड को ग्रहण का पहला संपर्क होगा।

बताया गया है कि आवागमन की दृष्टि से कंगनाकार सूर्यग्रहण देखे जाने के लिये दिल्ली से 160 किमी उत्तर में स्थित कुरुक्षेत्र उपयुक्त स्थल है, जहां सुबह 10.21 बजे से दोपहर 01.47 बजे तक तक चलने वाले ग्रहण के दौरान लगभग 12 बजे 27 सेकंड के लिये यह चमचमाते कंगन के रूप में दिखने लगेगा। इसके अलावा, उत्तराखंड के पर्यटक स्थल देहरादून से भी 9 सेकंड के लिये वलयाकार सूर्य को देखा जा सकेगा।

हालांकि ज्योतिषाचार्य डॉ भुवन चंद्र त्रिपाठी, डॉ नवीन चंद्र जोशी, डॉ नवीन चंद्र बेलवाल, डॉ जगदीश चंद्र भट्ट, डॉ मनोज पांडे आदि के अनुसार साल का यह पहला सूर्यग्रहण हल्द्वानी समेत शेष कुमाऊं में तीन घंटे 32 मिनट रहेगा। इस दौरान सूर्य की किरणें सीधी कर्क रेखा पर पड़ेंगी। ज्यातिषियों के मुताबिक ग्रहण का स्पर्श रविवार सुबह 10.24 बजे, मध्य 12.05 बजे और मोक्ष दोपहर 1.56 बजे होगा। पंडित डॉ. नवीन चंद्र जोशी के अनुसार आषाढ़ी अमावस्या, रविवार, मृगशिरा आर्द्रा नक्षत्र, गंड वृद्धि योग में घटित होने वाला सूर्यग्रहण पूरे भारत में दिखाई देगा। उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के कुछ स्थानों पर ग्रहण की कंकण के आकार में जबकि शेष भारत में खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा।
सूर्य ग्रहण का सूतक:
सूर्य ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले यानी शनिवार रात्रि 10.24 बजे से लग जाएगा। सूतक काल में सभी मंदिरों के पट बंद रहेंगे। पंडितों के अनुसार ग्रहण के सूतक से पहले जल व खाद्य सामग्री में तुलसी दल व कुशा रख देना चाहिए। उल्लेखनीय है कि धर्म शास्त्रों के अनुसा रविवार को सूर्य और सोमवार को चंद्रग्रहण होने से चूड़ामणि का दुर्लभ संयोग बनता है। इस दिन स्नान, ध्यान, जप, पूजा पाठ व दान का कई गुना पुण्य प्राप्त होता है। यह ग्रहण धार्मिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण होगा। ग्रहण स्पर्श के समय स्नान व मंत्र जाप, मध्य में हवन-पूजन व मोक्ष के समय स्नान व दान का विशेष महत्व है। ग्रहण काल मंत्र सिद्धि का सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है। धर्मशास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में जल गंगाजल और सभी तरह का दान स्वर्ण के समान होता है। ग्रहण काल में इष्टदेव व मृत्युंजय मंत्र का जाप करना श्रेष्ठ बताया गया है।
राशियों पर ग्रहण का प्रभाव
शुभ: मेष, सिंह, कन्या, मकर
ठीक नहीं: मिथुन, कर्क, वृश्चिक, मीन
मिश्रित: वृषभ, तुला, धनु और कुंभ
सीमाओं पर तनाव बढ़ा सकता है ग्रहण
ज्योतिषियों के मुताबिक ग्रहण देश की सीमाओं पर तनाव को बढ़ा सकता है। हालांकि इसे देश के लिहाज से विजय कारक माना जा रहा है। वहीं अंक शास्त्र के अनुसार मिथुन राशि में राहु की मौजूदगी सूर्य, चंद्रमा व बुध ग्रहों को पीड़ित कर रही है। मंगल मीन राशि में विराजमान हो कर मिथुन राशि के ग्रहों पर नजर डाल रहा है। बुध, गुरु, शुक्र, शनि वक्री हैं। राहु व केतु सदैव वक्री रहते हैं। ग्रहों की ऐसी स्थिति सूर्यग्रहण को विशेष बना रही है। ऐसा जान पड़ता है कि इस ग्रहण का प्रभाव चीन, अमेरिका पर अधिक पड़ेगा, क्योंकि वर्तमान में दोनों देशों पर शनि की साढ़े साती चल रही है।

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-एरीज के निदेशक प्रो. बनर्जी ने दी जानकारी
नवीन समाचार, नैनीताल, 12 जून 2020। आगामी 21 जून 2020 को वर्ष के सबसे बड़े दिन वलयाकार सूर्य ग्रहण पड़ने जा रहा है। इसे भारत सहित अफ्रीका, एशिया और यूरोप के कुछ भागों में देखा जा सकता है। स्थानीय एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के निर्देशक प्रो. दीपाकर बनर्जी ने बृहस्पतिवार को पत्रकार वार्ता में इस सूर्यग्रहण के बारे में पत्रकार वार्ता में जानकारी दी। बताया कि यह सूर्यग्रहण प्रदेश में भी 21 जून को वलयाकार रूप में प्रातः 10 बजकर 25 मिनट से शुरू होगा, अपराहन 12 बजकर 8 मिनट पर शीर्ष पर होगा और एक बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगा।
प्रो. बनर्जी ने बताया ऐसा सूर्यग्रहण उत्तरी भारत में भी देखा जा सकेगा, जबकि इससे पूर्व सूर्य ग्रहण 26 दिसंबर 2019 को भारत के दक्षिण भागों में देखा गया था, और आगे 21 मई 2031 को यानी 11 वर्ष बाद ही दिख सकेगा। उन्होंने बताया कि देश में पूर्ण सूर्यग्रहण आगे 20 मार्च 2034 को ही देखा जा सकेगा। उन्होंने सूर्य ग्रहण को सीधे आंखों से नहीं बल्कि विशेष चश्मे या कैमरे में लेंस लगाकर देखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि साधारण चश्मे या पेंट किए गए शीशे से भी सूर्य ग्रहण को नहीं देखना चाहिए। उन्होंने बताया कि दुनिया की सबसे बड़ी 2 मीटर व्यास की दूरबीन लद्दाख में जल्दी ही स्वीकृति मिलने के बाद स्थापित की जाएगी, जो अपनी तरह की एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन होगी। बताया कि एरीज भी इसरो के साथ मिलकर इस दूरबीन पर काम कर रहा है। प्रेस वार्ता के दौरान डा. शशिभूषण पांडे ने बताया कि बीती 6 जून को देवस्थल से एकका प्रेक्षण किया गया। इस मौके पर डॉ. सौरभ, शोधार्थी विभूति व रितेश आदि मौजूद रहे।

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-जिला प्रशासन की पहल पर मुख्यालय के स्कूली बच्चों एवं सैलानियों को एरीज में दूरबीनों के माध्यम से कराये गए सूर्यग्रहण के दर्शन

बृहस्पतिवार को सरोवरनगरी में ऐसा नजर आया वर्ष का आखिरी सूर्यग्रहण।

नवीन समाचार, नैनीताल, 26 दिसंबर 2019। ‘रिंग ऑफ फायर’ के नाम से जाना जा रहा साल का आखिरी सूर्यग्रहण सरोवरनगरी नैनीताल में अपेक्षित छल्ले के रूप में नहीं, अपितु आंशिक वलयाकार रूप में दिखाई दिया। यहां सूर्य का करीब 45 फीसद हिस्सा ही सूर्यग्रहण के दौरान अदृश्य हो पाया। अलबत्ता इतने से भी नगर में सूर्य की मौजूदगी के बीच शीतलहर चलती महसूस हुई, और इसका असर सूर्यग्रहण का प्रभाव जाने के बाद भी शाम तक ठंड के रूप में देखा गया। इससे पिछले शनिवार से नगर में दिन में महसूस की जा रही गर्मी पर ब्रेक लगता दिखा।
नगर में सूर्यग्रहण का स्पर्श यानी शुरुआत सुबह 8.20 बजे पर हुई। मध्य 9 बजकर 40 मिनट पर व मोक्ष यानी समापन 11 बचकर 2 मिनट पर हुआ। बताया गया है कि भारत में इससे पहले आज के जैसा ‘एन्यूलर’ यानी सूर्य के छल्ले के रूप में नजर आने वाला सूर्यग्रहण 15 जनवरी 2010 को देखा गया था, जबकि अगला सूर्यग्रहण 21 जून 2020 को दिखाई देगा। यह भी बताया जा रहा है कि अगले 100 वर्षों में भारत में केवल छह सूर्यग्रहण ही देखे जा सकेंगे, जो वर्ष 2020, 2031, 2034, 2064, 2085 और 2114 में दिखाई देंगे।
इस दौरान स्थानीय एरीज आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान में जिला प्रशासन की ओर से डीएम सविन बंसल एवं सीडीओ विनीत कुमार की उपस्थिति में विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ।इस अवसर पर बीते दिनों भीमताल कार्निवाल के दौरान प्रशासन द्वारा आयोजित एस्ट्रो फोटोग्राफी प्रतियोगिता के विजेताओं को डीएम के द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। प्रथम स्थान पर रहे दिनेश पालीवाल को 25 हजार, द्वितीय प्रमोद खाती 15 हजार व तृतीय स्थान राजीव दुबे को 10 हजार का चेक व प्रतीक चिन्ह, प्रशस्ति पत्र दिये गये। साथ ही वर्ष 2020 में होने वाली खगोलीय घटनाओं पर आधारित एस्ट्रोनॉमी कलैंडर का भी विमोजन किया गया।  इस दौरान नगर के जीआईसी एवं जीजीआईसी सहित शहीद सैनिक विद्यालय, सीआरएसटी स्कूल सेंट मेरी, आल सेंट कालेज के विद्यालयों के करीब 90 बच्चों एवं पर्यटन विभाग के जरिये आये सैलानियों को तीन दूरबीनों के माध्यम से सूर्य के दर्शन कराए गए। इस मौके पर वरिष्ठ सौर वैज्ञानिक डा. वहाबउद्दीन तथा वैज्ञानिक डा. शशिभूषण पांडे ने बच्चों को सूर्यग्रहण तथा सूर्य में होने वाली सौर चुम्बकीय तूफान, सौर कलंक आदि के बारे में विस्तृत जानकारियां दी र्गइं एवं बच्चों की उत्सुकताओं व जिज्ञासाओं को भी शांत करते हुए उनके प्रश्नों के उत्तर दिये गए। डीएम ने भी बच्चों का उत्साह बढ़ाया, एवं बताया कि कहा सभी विद्यालयो में एंटी ड्रग्स क्लब के साथ ही एस्ट्रोनॉमी क्लब भी बनाये जायेंगे। इस दौरान डिस्ट्रिक एस्ट्रॉनॉमी क्लब के जरिये बच्चों के बीच वैज्ञानिकों से वार्ता, क्विज, निबंध व टॉक प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया। साथ ही बच्चों को एरीज के सांइस सेंटर व ऑडिटोरियम मंे डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी दिखाई गया। वैज्ञानिकों ने बच्चों को बताया कि एन्यूलर सूर्यग्रहण के दौरान चंद्रमा सूर्य की परिधि के अलावा शेष भाग को ढक लेता है, जिससे सूर्य की केवल परिधि दिखाई देती है, जो एक आग के छल्ले की तरह नजर आती है, इसीलिए इस ग्रहण को ‘रिंग ऑफ फायर’ नाम भी दिया गया है। 

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नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जनवरी 2019। 21 जनवरी सोमवार को पौष पूर्णिमा के दिन साल 2019 का पहला चंद्रगहण लग रहा है। ग्रहण का आरंभ सुबह 9 बजकर 4 मिनट पर, ग्रहण का स्पर्श 10 बजकर 11 मिनट पर, मध्य यानी परमग्रास 10 बजकर 42 मिनट पर और स्पर्श समाप्त 11 बजकर 13 मिनट पर होगा। ग्रहण का मोक्ष यानी ग्रहण समाप्त दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर होगा।

करीब 3 घंटे 17 मिनट तक चलने वाले इस चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा लाल दिखेगा। चंद्रमा के इस रंग के कारण खगोलशास्त्री से इसे ब्लडमून चंद्रग्रहण कह रहे हैं। चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा बहुत ही खूबसूरत दिखेगा लेकिन भारत के लोग इस चंद्रग्रहण को नंगी आंखों से नहीं देख सकेंगे क्योंकि दिन के समय ग्रहण लगने की वजह से यह चंद्रग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होगा। यह यूरोप के देशों, अफ्रीका, दक्षिण तथा उत्तरी अमेरिका, हिंद महासागर, मध्य एशिया में अफगानिस्तान के पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में देखा जा सकेगा। लेकिन भारत के लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है। भारत और दुनिया के तमाम देशों के लोग भी हमारे साथ लाइव ग्रहण का वेवकास्ट देख सकते हैं। लाइव वेवकास्ट देखने के लिए नीचे विडियो पर क्लिक करें।

पूर्व समाचार : बादलों के कारण सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण नहीं देख पा रहे हैं तो यहां देखें लाइव..

नवीन जोशी, नैनीताल। 27 जुलाई को पड़ने जा रहा चंद्रग्रहण 21वीं शताब्दी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण तो है ही, साथ ही यह इसलिए भी खास है कि इस दौरान मंगल ग्रह की भी अनूठी युति बन रही है। 27 जुलाई को मंगल ग्रह के साथ ‘समक्षता’ की अनूठी स्थिति बन रही है। इस स्थिति में 27 जुलाई के सूर्यास्त के दौरान जहां सूर्य पश्चिम दिशा में छुप रहा होगा, वहीं मंगल ठीक इसी समय पूर्व दिशा से उदित हो रहा होगा। यानी मंगल और सूर्य इस दिन पृथ्वी के सापेक्ष ठीक विपरीत दिशाओं में होंगे। साथ ही यह भी विदित तो इसके चार दिन बाद ही 31 जुलाई को मंगल ग्रह पृथ्वी के सर्वाधिक करीब, केवल 15.76 करोड़ किमी की दूरी पर होने वाला है, और 27 जुलाई को भी यह दूरी इससे बहुत अधिक नहीं होगी। यानी इस दिन एक तो सबसे लंबा चंद्र्रग्रहण होगा, साथ ही मंगल भी बहुत करीब होगा। ऐसे में यह मौका खगोल वैज्ञानिकों के लिए तो बहुत खास होगा ही साथ ही चांद-सितारों में रुचि रखने वाले आम लोगों के लिए भी अविस्मरणीय होगा। इस दौरान खासकर वैज्ञानिकों को यह दुविधा भी रहेगी कि वह चांद का अध्ययन करें, अथवा मंगल का, अथवा दोनों का। इस दौरान मंगल की चमक अपनी औसत चमक से करीब 12 गुना अधिक होगी। जिसमें लालिमा लिए लाल ग्रह को पहचान पाना जरा भी मुश्किल नहीं होगा। आसमानी आतिशबाजी में डेल्टा एक्वारिड्स उल्का वृष्टि 27 जुलाई की रात चरम पर रहने वाली है, जिसमें इस वृष्टि की सर्वाधिक उल्काएं नजर आएंगी। इसके बाद भी इसे अगस्त माह तक देखा जा सकेगा। इस दौरान देश के अधिकाँश क्षेत्रों में बरसात के मौसम का आसमान बादलों से ढका हुआ है। ऐसे में चंद्रग्रहण पर भी ‘ग्रहण’ लग रहा है। अधिकाँश लोग चंद्रग्रहण को नहीं देख पा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि 27 जुलाई 2018 के दिन शुक्रवार को पूरे एशिया, यूरोप के अनेक हिस्सों के साथ ही ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका से भी चद्र ग्रहण देखा जा सकेगा। यह चंद्र ग्रहण 31 जनवरी को तीन घंटे 23 मिनट तक रहे ब्लड मून, ब्लू मून और सुपर मून भी कहे गये पहले चंद्रग्रहण के बाद साल 2018 का दूसरा चंद्र ग्रहण है। इस बार का चंद्र ग्रहण इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान हमारी पृथ्वी सूर्य और मंगल के बीच से होकर गुजर रही है, और 27 जुलाई को मंगल 2003 के बाद ऐसी ‘समक्षता’ की सर्वश्रेष्ठ स्थिति में होने वाला है। ऐसे में इस दौरान मंगल 15 वर्ष के बाद पृथ्वी से सबसे नजदीक और साफ दिखाई देगा।

ग्रहणों के बारे में रोचक तथ्य :

वैज्ञानिकों के अनुसार धरती की ऋतुओं की ही तरह ग्रहण का भी बाकायदा सीजन होता है जो लगभग हर छह माह के अंतराल पर आता है और 31 से 37 दिन तक चलता है, और अगले करीब छह माह (173.31 दिन ) तक कोई ग्रहण नहीं पड़ता है। साथ ही सूर्य और चंद्रग्रहण कभी भी अकेले नहीं लगते बल्कि 14 या 15 दिन के अंतराल पर छमाही सीजन की 31 से 37 दिन की अवधि के दौरान हर पूर्णिमा पर अवश्य ही (कभी पूर्ण और कभी आंशिक) चंद्र और हर अमावस्या पर सूर्य ग्रहण पड़ता है। इस अवधि में कम से कम एक-एक अमावस्या और पूर्णिमा अवश्य पड़ती हैं और कभी-कभी तीन भी पड़ सकती हैं।  जो भी ग्रहण पड़ेंगे वे इस 31 से 37 दिन की अवधि में ही पड़ेंगे और छह माह बाद पुन: 31 से 37 दिन का ग्रहण सीजन आएगा और तब उसमें ग्रहण  पड़ेंगे।  ये ग्रहण विश्व के अलग हिस्सों में बारी-बारी से सूर्य और चंद्रमा पर लगते हैं। इसलिए कई बार ये एक ही देश-क्षेत्र से नहीं भी देखे जा सकते हैं।

प्रत्येक सीजन में कम से कम दो और अधिकतम तीन ग्रहण पड़ सकते हैं। इस प्रकार दो सीजन में कम से कम चार व अधिकतम छह ग्रहण पड़ते हैं।  दोनों सीजन के बीच की अवधि छह माह से कुछ 173.31 दिन की होती है जो कि सूर्य के एक से दूसरे गोलार्ध में जाने की अवधि है। इस प्रकार कभी-कभी यदि वर्ष की बिल्कुल शुरुआत में ग्रहण सीजन पड़ जाए तो 365 दिवसीय कैलेंडर वर्ष में तीसरा ग्रहण सीजन भी लग जाता है।  ऐसे में एक वर्ष में अधिकतम कुल सात ग्रहण भी पड़ सकते हैं।  आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान एरीज के निदेशक डा. अनिल पांडे का कहना है कि प्रत्येक ग्रह के अपनी धुरी या सूर्य के चारों ओर घूमने का या धूमकेतु आदि के नजर आने की अवधि का अपना टाइम टेबल होता है जिसके अनुरूप ये चलते हैं।

बीते पांच वर्षों में पड़े ग्रहण और आगामी पांच वर्षों में पड़ने वाले ग्रहणों की नासा द्वारा घोषित तिथियां :

वर्ष 2014  : 15 अप्रैल पूर्ण चंद्र ग्रहण, 29 अप्रैल  सूर्यग्रहण, 08 अक्टूबर पूर्ण चंद्र ग्रहण, 23 अक्टूबर सूर्य ग्रहण 
वर्ष 2015 : 20 मार्च पूर्ण सूर्य ग्रहण, 04 अप्रैल पूर्ण चंद्र ग्रहण, 13 सितंबर सूर्य ग्रहण, 27 सितंबर चंद्र ग्रहण 
वर्ष 2016 :  8-9 मार्च पूर्ण सूर्य ग्रहण, 23 मार्च चंद्र ग्रहण, 18 अगस्त चंद्र ग्रहण, 01 सितंबर सूर्य ग्रहण, 16-17 सितंबर चंद्र ग्रहण 
वर्ष 2017 : 10-11 फरवरी चंद्र ग्रहण26, फरवरी सूर्य ग्रहण, 7-8 अगस्त  चंद्र ग्रहण, 21 अगस्त सूर्य ग्रहण 
वर्ष 2018 : 31 जनवरी पूर्ण चंद्रग्रहण, 15 फरवरी आंशिक सूर्यग्रहण, 13 जुलाई आंशिक सूर्य ग्रहण, 27-28 जुलाई पूर्ण चंद्र ग्रहण, 11 अगस्त आंशिक सूर्य ग्रहण 
वर्ष 2019 : 5-6 जनवरी आंशिक सूर्य ग्रहण, 20-21 जनवरी पूर्ण सूर्य ग्रहण, 2 जुलाई पूर्ण सूर्य ग्रहण, 16-17 जुलाई आंशिक चंद्र ग्रहण, 19 दिसंबर आंशिक सूर्य ग्रहण 
वर्ष 2020 : 19 दिसंबर 1919 के ग्रहण के 15 दिन बाद 10 जनवरी चंद्र ग्रहण, 5 जून चंद्र ग्रहण, 21 जून सूर्य ग्रहण, 4 जुलाई चंद्र ग्रहण 
वर्ष 2021 : 26 मई पूर्ण चंद्र ग्रहण, 10 जून सूर्य ग्रहण, 18-19 नवंबर चंद्र ग्रहण, 4 दिसंबर पूर्ण सूर्य ग्रहण 
वर्ष 2022 : 30 अप्रैल सूर्य ग्रहण, 15 मई चंद्र ग्रहण, 25 अक्टूबर सूर्य ग्रहण, 8 नवंबर पूर्ण चंद्र ग्रहण 
वर्ष 2023 : 20 अप्रैल पूर्ण सूर्य ग्रहण, 5 मई  चंद्र ग्रहण, 14 अक्टूबर सूर्य ग्रहण, 28 अक्टूबर चंद्र ग्रहण

चंद्रग्रहण के समय क्या करें, क्या न करें : 

27 -28 जुलाई 2018 की मध्य रात्रि को घटित होने वाला चंद्रग्रहण पूर्ण चंद्रग्रहण है तथा 21वीं सदी का सबसे देर तक चलने वाला चंद्रग्रहण है । सामान्यतः ग्रहण की अवधि एक या डेढ़ घंटे की होती है, परन्तु यह चंद्रग्रहण 3 घंटे 55 मिनट तक रहेगा। खगोलविदों के अनुसार इतना लंबा चंद्रग्रहण इसके बाद सदी के अंत तक दिखाई नहीं देगा। इस बार ग्रहण के दिन गुरु पूर्णिमा भी है इस कारण इस चंद्रग्रहण का विशेष महत्व होगा। चंद्रग्रहण की शुरुआत चंद्रमा के उदय के साथ रात 11 बजकर 54 मिनट से होगी। ग्रहण का मध्यकाल रात 1 बजकर 54 मिनट पर होगा और ग्रहण की समाप्ति 3 बजकर 49 मिनट पर होगी।

चंद्रग्रहण के दौरान यह करें और यह न करें :

    1. ग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिए।भोजन करने से अनेक प्रकार के व्याधियों से ग्रसित हो सकते है। यही कारण ग्रहणकाल में भोजन करना निषेध है  उस समय घर में रखा हुआ खाना या पेय पदार्थ पुनः उपयोग करने लायक नहीं होता है। हाँ ग्रहण या सूतक से पहले ही यदि सभी भोज्य पदार्थ यथा दूध दही चटनी आचार आदि में कुश  या तुलसी का पत्तारख देते है तो यह भोजन दूषित नहीं होता है और आप पुनः इसको उपयोग में ला सकते है।
    1. सूतक एवं ग्रहण काल में झूठ, कपट, डींग हाँकना आदि कुविचारों से परहेज करना चाहिए।
    1. ग्रहण काल में मन तथा बुद्धि पर पड़ने वाले कुप्रभाव से बचने के लिए जप, ध्यानादि करना चाहिए।
    1. ग्रहण काल में व्यक्ति को मूर्ति स्पर्श, नाख़ून काटना, बाल काटना अथवा कटवाना, निद्रा मैथुन आदि कार्य नहीं करना चाहिए।
    1. इस काल में स्त्री प्रसंग से नर-नारी दोनों को बचना चाहिए अन्यथा आँखो की बिमारी होने का गंभीर खतरा बना रहता है।
    1. इस समय बच्चे, वृद्ध, गर्भवती महिला, एवं रोगी को यथानुकूल खाना अथवा दवा लेने में कोई दोष नहीं लगता है।
    1. ग्रहण काल में शरीर, मन तथा बुद्धि में सामंजस्य बनाये रखना चाहिए मन-माने आचरण करने से मानसिक तथा बौद्धिक विकार के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य का भी क्षय होता है।
  1. ग्रहणकाल में मन, वचन तथा कर्म से सावधान रहना चाहिए।
चंद्रग्रहण के समय क्या करें, क्या न करें
दान करते हुए दानवीर कर्ण

9. चंद्रग्रहण के समय धार्मिक श्रद्धालु लोगों को अपनी राशि के अनुसार दान योग्य वस्तुओं का संग्रह करके संकल्प करना चाहिए तत्त्पश्चात् ग्रहण मोक्ष के अनन्तर अथवा अगले दिन यानि  28 जुलाई 2018 को सुबह सूर्योदय काल में स्नान करके संकल्प पूर्वक अपने सामर्थ्य के अनुसार योग्य ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

ग्रहण के अशुभ प्रभाव के समाधान के उपाय : 

जिस राशि के लिए ग्रहण का फल अशुभ होगा उस जातक को अपने सामर्थ्य के अनुसार ग्रह राशि (चन्द्रमा तथा राशि स्वामी बुध की) कारक वस्तुओं का दान करना चाहिए इससे जातक के ऊपर पड़ने वाले अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है | साथ ही मंत्र एवं स्तोत्र का जप-पाठ करने से भी अशुभ प्रभाव कम हो जाता है। ग्रहण के बाद औषधि स्नान करने से भी अशुभ प्रभाव को दूर किया जा सकता है।

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शुक्रवार 13 जुलाई को सुबह 7 बजकर 18 मिनट से साल का दूसरा आंशिक सूर्यग्रहण लगने जा रहा है। हालांकि, इस  2 घंटे 25 मिनट तक लगने वाले ग्रहण को भारत में लोग नहीं देख पाएंगे। इसे आस्ट्रेलिया के सुदूर दक्षिणी भागों, तस्मानिया, न्यू जीलैंड के स्टीवर्ट आइलैंड, अंटार्कटिका के उत्तरी हिस्से, प्रशांत और हिंद महासागर में ही देखा जा सकेगा। लेकिन यह ग्रहण कुछ मायनों में दूसरे सूर्यग्रहण से अलग है।

13 जुलाई को चूंकि शुक्रवार है। इस 13 तारीख और शुक्रवार के मेल को लोकप्रिय संस्कृति में ‘बुरी किस्मत’ का सूचक माना जाता है। इस दिन और तारीख को 44 साल पहले 13 दिसंबर 1974 को ग्रहण लगा था। ‘टाइम’ पत्रिका के अनुसार इसके बाद से अब तक कोई भी सूर्यग्रहण इस तारीख को नहीं लगा। आगे अब शुक्रवार और 13 तारीख के मेल वाला ऐसा सूर्यग्रहण 13 सितंबर 2080 को लगेगा।

सूर्य ग्रहण के दौरान क्या करें-क्या नहीं
ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य ग्रहण के 12 घंटे पहले सूतक लग जाते हैं और सूतक के दौरान कुछ खास कामों को करने की मनाही होती है। कोई भी शुभ काम सूतक के समय नहीं करने चाहिए। 12 घंटे के अनुसार सूर्य ग्रहण के सूतक 12 जुलाई की शाम 8 बजे से लग जायेंगे। इसके अलावा अमावस्या भी 13 जुलाई के दिन सुबह 8:17 मिनट तक रहेगी। ज्योतिषों का कहना है कि इस सूर्य ग्रहण का प्रभाव भारत में ज्यादा नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत में ये आंशिक ही दिखाई देगा।
ग्रहण के अलावा आषाढ़ अमावस्या पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए खास मानी जाती है। इसमें श्राद्ध की रस्में की जाती हैं और पूर्वजों को प्रसन्न किया जाता है। इसी के साथ बता दें ग्रहण 13 जुलाई को भारतीय समयानुसार सुबह 7 बजकर 18 मिनट 23 सेकंड से शुरू होगा, और 8 बजकर 13 मिनट 5 सेकंड तक रहेगा। इस दौरान कोई भी काम करने से बचें. माना जाता है ग्रहण के दौरान किसी भी काम को नहीं करना चाहिए।
क्यों लगता है सूर्यग्रहण?
बता दें कि विज्ञान के मुताबिक सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब भी चांद चक्कर काटते हुए सूरज और पृथ्वी के बीच आता है तो पृथ्वी पर सूर्य आंशिक या पूरी तरह से दिखना बंद हो जाता है। सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों के एक ही सीधी रेखा में आ जाने से चांद सूर्य की उपछाया से होकर गुजरता है, जिस वजह से उसकी रोशनी फीकी पड़ जाती है। इसी को सूर्यग्रहण कहा जाता है।

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    • इस अध्ययन से यदि कोई नये वैज्ञानिक तथ्य स्थापित होते हैं, तो वैज्ञानिक दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं जैसे बड़े लक्ष्य के लिए भी कर सकते हैं इस तकनीक का उपयोग
    • एरीज में 104 सेमी की दूरबीन पर एरीज द्वारा ही निर्मित यंत्र पोलेरोमीटर से रख रहे हैं चांद पर नजर
  • आसमान में हल्के बादल, रात्रि तक रहे तो लग सकता है उम्मीदों को झटका
31 जनवरी 2018 के चंद्रग्रहण की ताज़ा तस्वीर

नवीन जोशी, नैनीताल। मानव हर स्थिति में अपने लिए कुछ लाभ के अवसर खोज ही लेता है। करीब 3.63 लाख किमी दूर चांद पर पड़ने जा रही पूर्ण चंद्रग्रहण की आभाषीय स्थिति में भी मानव ने अपना लाभ खोजने का अवसर निकाल लिया है। भारत और जापान के वैज्ञानिक मुख्यालय स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान यानी एरीज में चंद्रग्रहण का एरीज में ही निर्मित पोलेरोमीटर नामक यंत्र से प्रेक्षण कर पृथ्वी के वायुमंडल का अध्ययन करने में जुट गये हैं। यह पहली बार है जब जापान के बाद भारत में इस तरह के चंद्रग्रहण के दौरान प्रेक्षण किये जा रहे हैं। इस अध्ययन से यदि पृथ्वी के वायुमंडल के बारे में यदि कोई नये वैज्ञानिक तथ्य स्थापित होते हैं, तो वैज्ञानिक इस तकनीक का इस्तेमाल दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं जैसे बड़े लक्ष्य के लिए भी कर सकते हैं। अलबत्ता, नैनीताल में बुधवार को उभर आए हल्के बादलों की उपस्थिति ने वैज्ञानिकों की उम्मीदों व संभावनाओं को कुछ झटका देने का इशारा भी किया है।

बुधवार को एरीज में एरीज के निदेशक डा. अनिल कुमार पांडे जापान की निशी हारिमा ऑब्जरवेटरी के निदेशक प्रो. वाई ईटो व जापान के साथ इस संयुक्त परियोजना के प्रभारी दिल्ली विश्वविद्यालय के डा. वाईपी सिंह व वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. शशिभूषण पांडे तथा अन्य के साथ प्रेस से मुखातिब हुए। इस दौरान उन्होंने बताया कि प्रो. ईटो ने चार अप्रैल 2015 को जापान की हवाई स्थित 8 मीटर व्यास की सुबारू नाम की ऑप्टिकल टेलीस्कोप से इस तरह का अध्ययन किया था, जिसके प्रेक्षणों का यहां एरीज से पुष्टि करने की कोशिश है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि जापान में 29 डिग्री अक्षांस से प्रेक्षण किये गये, जबकि इस बार जापान व भारत में 35 अंश अक्षांस पर स्थित एरीज से साथ-साथ इस तरह के प्रेक्षण किये जा रहे हैं, इससे अक्षांसों के अंतर पर अध्ययनों में अंतर का भी अध्ययन किया जा सकेगा। यह अध्ययन इसलिए भी खास हैं कि यह एरीज द्वारा ही वर्ष 2005 में बने पोलरमेट्री (ध्रुवीयमिति) नाम के उपकरण और यहां 1972 में स्थापित 104 सेमी व्यास की संपूर्णानंद दूरबीन पर किए जाएंगे। इस मौके पर दिल्ली विवि की शोध छात्रा सुषमा दास तथा जापान की छात्राएं मायू कारिटाव माई त्सुकाडा भी मौजूद रहीं। वैज्ञानिकों ने बताया कि भूकंप का भूकंप से कोई संबंध नहीं होता। आज अफगानिस्तान के हिंदुकुश क्षेत्र में आये भूकंप से भी आज होने जा रहे चंद्रग्रहण से कोई संबंध नहीं है।

इस तरह होगा अध्ययन
नैनीताल। बुधवार रात्रि चंद्रग्रहण के दौरान जो अध्ययन होना है, उसमें दूरबीन व पोलरमेट्री नाम के उपकरण की मदद से सूर्य व चंद्रमा के बीच आई पृथ्वी के ध्रुवों व बाहरी वायुमंडल से गुजरकर चांद पर पड़ने वाले प्रकाश का अध्ययन किया जाएगा। चूंकि चंद्रग्रहण के दौरान पृथ्वी सूर्य व चांद के बीच आ जाएगी, और पृथ्वी चांद पर पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश को रोक देगी, बावजूद कुछ प्रकाश पृथ्वी के बाहरी छोरों, ध्रुवों से होकर चांद पर चला जाएगा। यही प्रकाश चांद पर लाल रंग की अनुभूति कराकर चांद को ‘ब्लड मून’ या रक्तवर्ण के चांद में बदल देगा। इस प्रकार इस अध्ययन से पृथ्वी के बाहरी वायुमंडल में मौजूद धूल के कणों व अन्य तत्वों का अध्ययन भी किया जा सकेगा। यदि इस तरह कोई वैज्ञानिक तथ्य स्थापित हो जाते हैं तो इस तकनीक का प्रयोग सौरमंडल के अन्य ग्रहों के वातावरण व वहां जीवन की संभावनाओं के अध्ययन में भी किया जा सकेगा।

ब्लू, सुपर व ब्लड मून की ऐसी अगली अनोखी घटना 2034 में होगी

नैनीताल। इसे समझने से पहले यह समझ लें कि किसी अंग्रेजी महीने में दो पूर्णिमा पड़ने पर दूसरी पूर्णिमा के चांद को ‘ब्लू मून’, पूर्णिमा के दिन चांद के अपने परवलयाकार पथ पर धरती से सबसे करीब (करीब 3.63 लाख किमी दूर) होने की स्थिति में पूर्णिमा के चांद को ‘सुपर मून’ एवं ग्रहण की दशा में पृथ्वी के परावर्तित प्रकाश के प्रभाव में लाल दिखाई देने को ‘ब्लड मून’ कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने बताया कि यह तीनों स्थितियां दशकों बाद होती हैं। हालांकि हर वर्ष दुनिया में करीब दो चंद्र और दो या तीन सूर्यग्रहण पड़ते हैं, और आगे 27-28 जुलाई 2018, 20-21 जनवरी 2019, 26 मई 2021, 15-16 मई 2022 को भी चंद्रग्रहण पड़ेंगे, किंतु ब्लू, सुपर व ब्लड मून की घटना अगली बार 25 नवंबर 2034 में होगी। इससे पहले भी ऐसा संयोग करीब डेढ़ दशक पूर्व ही बना था। बताया कि इस दौरान पृथ्वी से सर्वाधिक करीब होने के कारण चांद करीब 12 से 14 फीसद बड़ा एवं 30 फीसद अधिक चमकदार होगा। चंद्रग्रहण शाम 5.18 पर शुरू होगा, 6.21 से 7.37 तक पूर्णता की स्थिति में होगा, और 8.41 बजे समाप्त हो जाएगा।
चंद्रग्रहण पर अध्ययनों के बारे में जानकारी देते एरीज व जापान के वैज्ञानिक।

इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने यह साफ किया कि ब्लू, ब्लड व सुपर मून का चांद के रंगों से कोई संबंध नहीं है। आज तीन रंगों में चांद के दिखने की मीडिया में चल रही बातें झूठी हैं। ब्लू मून का अर्थ चांद का नीला दिखना नहीं है, बल्कि जैसा ऊपर लिखा है वह है। अलबत्ता चांद इस दौरान लाल रंग में नजर आएगा।

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डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार
‘नवीन समाचार’ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल से ‘मन कही’ के रूप में जनवरी 2010 से इंटरननेट-वेब मीडिया पर सक्रिय, उत्तराखंड का सबसे पुराना ऑनलाइन पत्रकारिता में सक्रिय समूह है। यह उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त, अलेक्सा रैंकिंग के अनुसार उत्तराखंड के समाचार पोर्टलों में अग्रणी, गूगल सर्च पर उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ, भरोसेमंद समाचार पोर्टल के रूप में अग्रणी, समाचारों को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाला ऑनलाइन समाचार पोर्टल भी है।
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