नैनीताल : गांधी जी द्वारा स्वयं निर्मित ऐसा गांधी मंदिर, जहां गांधी जी की कोई ही स्मृतियां नहीं…
-बिन मूर्ति-बिन तस्वीर पूजे जा रहे हैं गांधी…
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 2 अक्टूबर 2021। नैनीताल के निकट गांधी ग्राम कहे जाने वाली ताकुला में गांधी जी द्वारा स्थापित एक गांधी मंदिर है। कहते हैं यह ऐसा इकलौता स्थान है, जहां गांधी जी दोबार आए। लेकिन दुःखद बात यह है कि इस मंदिर में, जिसे गांधी अध्ययन केंद्र बनाने सहित बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं, वहां गांधी जी की स्मृतियों के नाम पर केवल एक शिलापट लगा है, जिसमें लिखा है, ‘इस गृह की आधार शिला ज्येष्ठ शुदी 9 संवत 1986 मेंश्री महात्मा मोहन दास कर्म चन्द गांधी जी के हाथों लगाई गई’।
इधर प्रशासन ने गांधी मंदिर का जीर्णोद्धार एवं इसके मार्ग में सुधार के काफी कार्य हुए हैं, परंतु गांधी मंदिर में न ही गांधी जी की कोई मूर्ति, न ही एक भी तस्वीर या उनके द्वारा उपयोग किए गए कोई सामान, उनके द्वारा पढ़ी गई पुस्तकें आदि ही उपलब्ध हैं। बताया गया कि ऐसी काफी सामग्री थी, लेकिन जिसके हाथ जो लगा, गायब कर अपने संग्रह में सजा दी गईं।
उल्लेखनीय है कि गांधी जी ने नैनीताल के अपने प्रवास के दौरान 14 जून 1929 को इस भवन की नींव रखी थी और जब 18 जून 1931 को नैनीताल दूसरी बार आए, तब तक यह भवन बन कर तैयार हो गया था। तब वह यहां पांच दिनों तक रहे। लेकिन इतनी लंबी अवधि तक रहने के बीच की उनकी कोई स्मृति यहां सुरक्षित नहीं है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
ऐसी रही गांधी जी की नैनीताल व कुमाऊँ यात्रा
नैनीताल एवं कुमाऊं के लोग इस बात पर फख्र कर सकते हैं कि महात्मा गांधी जी ने यहां अपने जीवन के 21 खास दिन बिताऐ थे। वह अपने इस खास प्रवास के दौरान 13 जून 1929 से तीन जुलाई तक 21 दिन के कुमाऊं प्रवास पर रहे थे। इस दौरान वह 14 जून को नैनीताल, 15 को भवाली, 16 को ताड़ीखेत तथा इसके बाद 18 को अल्मोड़ा, बागेश्वर व कौसानी होते हुए हरिद्वार, दून व मसूरी गए थे, और इस दौरान उन्होंने यहां 26 जनसभाएं की थीं। कुमाऊं के लोगों ने भी अपने प्यारे बापू को उनके ‘हरिजन उद्धार’ के मिशन के लिए 24 हजार रुपए दान एकत्र कर दिये थे। तब इतनी धनराशि आज के करोड़ों रुपऐ से भी अधिक थी। इस पर गदगद् गांधीजी ने कहा था विपन्न आर्थिक स्थिति के बावजूद कुमाऊं के लोगों ने उन्हें जो मान और सम्मान दिया है, यह उनके जीवन की अमूल्य पूंजी होगी।
14 जून का नैनीताल में सभा के दौरान उन्होंने निकटवर्ती ताकुला गांव में स्व. गोबिन्द लाल साह के मोती भवन में रात्रि विश्राम किया था। इस स्थान पर उन्होंने गांधी आश्रम की स्थापना की, यहाँ आज भी उनकी कई यादें संग्रहीत हैं। इसी दिन शाम और 15 को पुनः उन्होंने नैनीताल में सभा की। यहाँ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने आप लोगों के कष्टों की गाथा यहां आने से पहले से सुन रखी थी। किंतु उसका उपाय तो आप लोगों के हाथ में है। यह उपाय है आत्म शुद्धि।’’ यह भाषण उन्होंने ताड़ीखेत में भी दिया था। 15 को ही उन्होंने भवाली में भी सभा कर खादी अपनाने पर जोर दिया। 16 को वह ताड़ीखेत के प्रेम विद्यालय पहुंचे और वहां भी एक बड़ी सभा में आत्म शुद्धि व खादी का संदेश दिया। 18 को वह अल्मोड़ा पहुंचे, जहां नगर पालिका की ओर से उन्हें सम्मान पत्र दिया गया। इसके बाद उन्होंने 15 दिन कौसानी में बिताए। कौसानी की खूबसूरती से मुग्ध होकर उसे भारत का स्विट्जरलैंड नाम दिया।
22 जून को कुली उतार आन्दोलन में अग्रणी रहे बागेश्वर का भ्रमण किया। यहां स्वतन्त्रता सेनानी शांति लाल त्रिवेद्वी, बद्रीदत्त पांडे, देवदास गांधी, देवकीनदंन पांडे व मोहन जोशी से मंत्रणा की। 15 दिन प्रवास के दौरान उन्होंने कौसानी में गीता का अनुवाद भी किया। गांधी जी दूसरी बार 18 जून 1931 को नैनीताल पहुंचे और पांच दिन के प्रवास के दौरान उन्होंने कई सभाएं की। इस दौरान उन्होंने संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर मेलकम हैली से राजभवन में मुलाकात कर जनता की समस्याओं का निराकरण कराया। उनसे प्रांत के जमीदार व ताल्लुकेदारों ने भी मुलाकात की और गांधी के समक्ष अपना पक्ष रखा। इस यात्रा के बाद उत्तर प्रदेश व कुमाऊं में आन्दोलन तेज हो गया। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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नैनीताल। गांधी जयंती पर जिला मुख्यालय के निकट महात्मा गांधी के प्रवास स्थल ताकुला स्थित 1958 में स्थापित गांधी आश्रम में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत फील्ड आउटरीच ब्यूरो नैनीताल विचार गोष्ठी, रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम, बच्चों के लिए क्विज प्रतियोगिता और महिलाओं के लिए कुर्सी दौड़ आदि कार्यक्रम आयोजित हुए।
गांधी जी की आज के दौर में प्रासंगिकता एवं देश की आजादी में उनके योगदान से बच्चों व नई पीढ़ी को जानकारी देने के उद्देश्य से आयोजित कार्यक्रम में विषय प्रवेश करते हुए मनरेगा के नीरज कुमार जोशी ने बताया कि यह संभवतया इकलौता स्थान होगा जहां 1929 में गांधी जी ने आकर भवन की आधारशिला रखी और फिर दुबारा आकर वह यहां रहे। इस दौरान बच्चों से कार्यक्रम में आई जानकारियों के आधार पर प्रश्न पूछे गए एवं सही उत्तर देने वाले बच्चों को पुरस्कृत किया गया। फील्ड आउटरीच ब्यूरोे एवं आंचल कला केंद्र हल्द्वानी के कलाकारों ने रंगारंग लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इससे पूर्व मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षक किरन लाल साह व विशिष्ट अतिथि ज्येष्ठ प्रमुख हिमांशु पांडे आदि ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का औपचारिक शुभारंभ किया। कार्यक्रम में ग्राम प्रधान जानकी चमियाल, प्रद्योत जोशी, प्रचार अधिकारी भूपेंद्र सिंह नेगी, गोपेश बिष्ट, श्रद्धा गुरुरानी जोशी, शोभा चारक, डॉ. दीपा जोशी, श्रमिष्ठा बिष्ट, आनंद बिष्ट, सरिता जोशी, रश्मि बिष्ट व बबलू चमियाल सहित बड़ी संख्या में क्षेत्रीय ग्रामीण मौजूद रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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-यहां पर्वतीय शैली में होम स्टे एवं दूरबीनें लगाई जाएंगी, सैलानी लेंगे आकाशीय पिंडों के नजारे
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 27 जून 2021। प्रकृति का स्वर्ग कही जाने वाली पर्यटन नगरी सरोवरनगरी के हार में ‘एस्ट्रो टूरिज्म’ का एक ओर नगीना जड़ने जा रहा है। नगर के निकट हल्द्वानी रोड पर करीब 4 किलोमीटर दूर स्थित ताकुला गांव की पहचान अब तक गांधी ग्राम के रूप में होती आई है। यहां वर्ष 1929 और 1932 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने प्रवास किया था। इस कारण सैलानियों के लिए यह गांव और यहां स्थित ‘गांधी मंदिर’ आकर्षण का केंद्र है। लेकिन अब ताकुला की गांव ‘एस्ट्रो टूरिज्म विलेज’ यानी खगोल पर्यटन गांव के लिए होने जा रही है। नैनीताल जनपद में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस गांव को खगोल पर्यटन के लिए विकसित किया जा रहा है। नैनीताल के विधायक संजीव आर्य ने बताया कि इसके लिए 2 करोड़ 46 लाख की वित्तीय स्वीकृति प्राप्त हो गयी है। जल्द ही गांव में अत्याधुनिक दूरबीन स्थापित करने के साथ ही अन्य सुविधाएं विकसित की जाएंगी। उन्होंने कहा कि पलायन की बढ़ती समस्या और ग्रामीणों को पर्यटन रोजगार से जोडने के लिए यह प्रोजेक्ट कारगर साबित होगा। ताकुला एस्ट्रो विलेज में पहाड़ी शैली में होमस्टे बनाए जाएंगे। भवन में अल्मोड़ा के पत्थर और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाएगा। इस प्रयोग से प्रदेश की वास्तुकला को भी संरक्षण मिलेगा। उल्लेखनीय है कि ताकुला गांव के शीर्ष पर स्थित मनोरा पीक पर देश का ख्यातिप्राप्त एरीज यानी आर्यभट्ट प्रेक्षण संस्थान स्थित है, जहां से दूरबीनों के जरिये रोशनी के प्रदूषण से रहित साफ आसमान में सुदूर ब्रह्मांड में स्थित आकाशीय पिंडों का नजारा लेने के साथ ही अध्ययन किया जाता है। लिहाजा ताकुला से भी प्रदूषण रहित आकाशीय पिंडों का सैलानी भव्य नजारे ले सकेंगे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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-गौला नदी पर पुल न होने से है मूल समस्या, गांव के लिए स्वीकृत पैदल पुल कुछ दूर राजनीति के कारण रानीबाग में निर्जन स्थान पर लगा दिया गया

नवीन समाचार, नैनीताल, 20 अप्रैल 2019। क्या किसी महानगर पालिका व राष्ट्रीय राजमार्ग से चंद कदमों की दूरी पर स्थित ऐसे गांव की कल्पना की जा सकती है, जहां आजादी के 7 दशक बाद भी विकास के नाम पर न उस नगर व राष्ट्रीय राजमार्ग से पहुंच मार्ग ही न हो। साथ ही न वहां स्कूल हो, न अस्पताल, और पहुंच मार्ग न होने से राज्य व केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलना तो दूर, उन योजनाओं की जानकारी देने जनप्रतिनिधि व अधिकारी तो छोटे से छोटे सरकारी मुलाजिम भी न पहुंच पाते हों। वह भी तब जब प्रकृति से उस गांव को मन भर सुंदरता प्राप्त हो। नीचे कल-कल करती बहती सदानीरा नदी हो और ऊपर जैव विविधता से परिपूर्ण जंगल और बीच में उर्वर कृषि भूमि, खेती-बागवानी के उपयुक्त खेत और पशुपालन की भी अपार संभावनाएं। ऐसे किसी गांव की भले कल्पना न की जा सकती हो, पर ऐसे एक नहीं अनेकों गांव मौजूद हैं।
ऐसा ही एक गांव है हल्द्वानी महानगर पालिका की सीमा एवं नैनीताल-हल्द्वानी राष्ट्रीय राजमार्ग से चंद कदमों की दूरी पर स्थित भीमताल विधानसभा की पसौली ग्राम सभा का तोक डानीजाला। काठगोदाम-रानीबाग के बीच गुलाबघाटी के मोड़ के ठीक सामने गार्गी-गौला के दूसरी ओर स्थित डानीजाला गांव में 19 परिवार रहते हैं। प्रकृति ने जहां इस गांव को सबकुछ दिया है। यहां के ग्रामीण भी गजब के मेहनती हैं। उन्होंने गांव को खेती के साथ ही बाग-बगीचों और पशुपालन से भी गुलजार किया हुआ है, किंतु शासन-प्रशासन ने इस गांव को कुछ नहीं दिया। ग्रामीण कहते हैं कि और कुछ नहीं इस गांव को नीचे बहती गौला नदी पर एक वाहनों का न सही पैदल पुल ही दे दिया गया होता तो वे भी आज विकास की मुख्य धारा में होते। पैदल पुल न होने से जनप्रतिनिधि और सरकारी कर्मी भी इनके गांव नहीं पहुंचते। बताया कि तीन-चार वर्ष पूर्व तक वे काठगोदाम के गौला बैराज से नदी पार करके किसी तरह पहाड़ पर बनी पगडंडी से गांव में आ जाते थे, लेकिन यह पगडंडी बड़े भूस्खलन की भेंट चढ़ गयी। तब से ये पूरी दुनिया से कट गये हैं। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने स्वयं के प्रयासों से नदी के दोनों छोरों पर तार बांध कर एक ट्रॉली लटकाई है, जिस के जरिये ही वे अपने दुग्ध उत्पाद व फल सब्जी गांव से शहर को लाकर गुजारा करते हैं। कई परिवारों ने इधर नदी के इस ओर काठगोदाम में भी घर बना लिये हैं, ताकि बच्चों को पढ़ा सकें। ग्रामीणों के अनुसार कुछ वर्ष नैनीताल विधायक की विधायक निधि से एक पैदल पुल उनके गांव के लिए स्वीकृत हुआ था जो राजनीति की भेंट चढ़ गया और इसे रानीबाग में श्मशान घाट के पास निर्जन स्थान पर लगा दिया गया है, जिसका कोई लाभ एक भी व्यक्ति को नहीं मिल रहा। बस लोग घूमने के लिए नदी के पार जा कर रोमांचित हो लेते हैं।
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-जनपद के ऐसे 10 गांव बनेंगे पर्यटन गांव, मिलेगा पर्यटन योजनाओं का लाभ -सैलानी जान सकेंगे कहां है नैनीताल में देवगुरु बृहस्पति मंदिर, कहां हो सकती हैं एंग्लिंग और किस गांव में हुई थी फिल्म मधुमति की शूटिंग
नवीन जोशी, नैनीताल। सैलानी क्या, नैनीताल जनपद वासी भी कम ही जानते होंगे कि नैनीताल जनपद में कहीं देश के गिने-चुने देवगुरु बृहस्पति के मंदिरों में से एक स्थित है। यह भी कम ही लोग जानते होंगे कि अपने प्राकृतिक सौंदर्य से बॉलीवुड फिल्म उद्योग को सर्वप्रथम मुख्यालय नैनीताल से भी पहले एक गांव ने रिझाया था। जनपद में मछलियों को पकड़ने के खेल-एंगलिंग की भी अपार संभावनाएं हैं। लेकिन आगे ऐसा ना होगा। विकास की दौड़ में पीछे छूट गए गांवों के देश भारत के इन गांवों में अब पर्यटन की राह खुलने जा रही है, जिसके बाद इन गांवों में सैलानियों के पहुंचने के लिए ढांचागत सुविधाओं का विस्तार होगा, तथा सैलानी और स्थानीय लोग न केवल इन गांवों के बारे में जान पाएंगे, वरन यहां आकर इनकी विशिष्टताओं से रूबरू भी हो पाएंगे।
नैनीताल में मधुमती फिल्म की शूटिंग के दौरान स्थानीय लोगों के साथ दिलीप कुमार
प्रदेश सरकार ने प्रदेश के गांवों को पर्यटन से जोड़ने के लिए उत्तराखण्ड ग्रामीण पर्यटन उत्थान योजना बनाई है, जिसके लिए हर वर्ष पर्यटन की संभावनाओं युक्त गांवों में मूलभूत एवं ढांचागत सुविधाओं का विस्तार किया जाना है, ताकि सैलानी इन गांवों तक पहुंच पाएं। जिला प्रशासन ने योजना के अन्तर्गत मौजूदा वित्तीय वर्ष 2014-15 के प्रथम चरण के लिए 10 एकल ग्राम तथा ग्राम समूहों का चयन किया है, जिसमें ओखलकांडा ब्लॉक में शहर फाटक के पास तुशराड, देवली गावों के पास स्थित देवगुरु बृहस्पति मंदिर, देश के गिने-चुने देवगुरु बृहस्पति मंदिर के रूप में ख्याति अर्जित कर सकता है। इसी तरह मुख्यालय का निकटवर्ती भूमियाधार गांव है, जहां गेठिया के पास 1958 में जनपद में पहली बार दिलीप कुमार व वैजयंती माला अभिनीत फिल्म मधुमती की शूटिंग हुई थी, साथ ही आगे उत्तराखंड की राजनीति तथा सामाजिक ताने-बाने पर आधारित राज किरण व स्वप्ना अभिनीत बॉलीवुड फिल्म बंधन बांहों का भी फिल्माई गई थी। इसी तरह रामनगर के पास कोसी नदी पर एंगलिंग की संभावनाओं युक्त अमेल नाम का गांव, मुख्यालय के निकट नलनी व पंगोठ, कालाढुंगी के पास जिम कार्बेट का शीतकालीन प्रवास स्थल-छोटी हल्द्वानी, जिलिंग स्टेट, अमगढ़ी, मोतियापाथर तथा दो अनछुवी प्राकृतिक झीलों के स्थान हरीशताल को भी पर्यटन गांव बनाने की योजना है। डीएम दीपक रावत ने बताया कि इन गांवों को पहले चरण में शामिल करने का शासन के लिए अनुमोदन किया गया है। उम्मीद है कि जल्द योजना शुरू हो जाएगी।
नैनीताल जनपद के पर्यटन विकास हेतु चिन्हित गांव और उनकी विशिष्टताएं
- नलनी, भीमताल ब्लॉक में काठगोदाम से वाया खुर्पाताल बाईपास से आते लगभग 45 किमी की दूरी पर कालाढुंगी-नैनीताल रोड के निकट स्थित यह गांव पारम्परिक ग्राम्य सौदर्य के लिए जाना जाता है।
- पंगोट, बेतालघाट ब्लॉक में जिला मुख्यालय से करीब 10 एवं निकटतम रेलहेड काठगोदाम से लगभग 55 किमी की दूरी पर स्थित पंगोट ग्राम हिम दर्शन तथा सघन वनों के सौंदर्य के लिए ख्याति प्राप्त है।
- जिलिंग इस्टेट, धारी ब्लॉक में काठगोदाम से लगभग 40 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान प्राकृतिक सौदर्य एवं हिमालय के दर्शन के लिए चर्चित है।
- अमगढ़ी, कोटाबाग ब्लॉक में निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर से लगभग 35 किमी की दूरी पर स्थित यह गांव सघन वन और वन्य जन्तुओं के लिए पर्यटकों को आकर्षित करता है।
- अमेल, बेतालघाट ब्लॉक का यह गांव नदीघाटी सौदर्य से परिपूर्ण है, और निकटतम रेल हेड रामनगर से लगभग 60 किमी की दूरी पर कोसी नदी के किनारे स्थित है। यहां मछलियों को शौकिया पकड़ने के खेल- एंगलिंग की अच्छी सम्भावनाएं हैं।
- मोतियापाथर, धारी ब्लॉक का यह स्थान हिमालय की हिमाच्छादित पर्वत श्रंखलाओं के दर्शन तथा फलों के बागानों के लिए जाना जाता है। काठगोदाम से इस गांव की दूरी लगभग 80 किमी है।
- छोटी हल्द्वानी, कोटाबाग ब्लॉक का यह स्थान प्रसिद्ध शिकारी एवं प्रकृतिविद् जिम कार्बेट की शीतकालीन विश्रामस्थली के रूप में प्रसिद्ध है। कालाढूंगी के निकट स्थित इस स्थान की निकटतम रेल हेड काठगोदाम से दूरी मात्र 30 किमी है।
- हरीशताल, ओखलकांडा ब्लॉक का यह स्थान लेक डिस्ट्रिक्ट नैनीताल की दो अनछुवी प्राकृतिक झीलों-हरीश ताल व लोहाखामताल के लिए प्रसिद्ध है, साथ ही नैसर्गिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण है। निकटतम रेल हेड काठगोदाम से लगभग 50 किमी की दूरी पर स्थित है।
- भूमियाधार, अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित भीमताल ब्लॉक का यह गांव काठगोदाम से लगभग 35 किमी की दूरी पर स्थित है। इस गांव के प्राकृतिक सौदर्य से परिपूर्ण वातावरण में ‘मधुमती’ और ‘बंधन बांहों का” फिल्म की भी शूटिंग हुई थी।