डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 15 अगस्त 2022 (15 August 1947 in Nainital)। अंग्रेजों के द्वारा बसाये गये और अनुशासन के साथ सहेजे गये नैनीताल नगर में आजाद भारत के पहले दिन यानी 15 अगस्त 1947 को नगर वासियों के उत्साह का कोई सानी नहीं था। लोग नाच-गा रहे थे। 14 अगस्त की पूरी रात्रि मशाल जुलूस निकालने के साथ ही जश्न होता रहा था, बावजूद 15 अगस्त की सुबह तड़के से ही माल रोड पर जुलूस की शक्ल में लोग निकल पड़े थे। कहीं तिल रखने तक को भी जगह नहीं थी।
100 वर्षों की गुलामी और हजारों लोगों के प्राणोत्सर्ग के फलस्वरूप उम्मीदों के नये सूरज की नई किरणों के साथ हवाऐं भी आज मानो बदली-बदली लग रही थीं, और प्रकृति भी हल्की मानो रिमझिम बारिश के साथ आजादी का स्वागत करते हुऐ देशवासियों के आनंद में स्वयं भी शामिल हो रही थी। लोगों में जश्न का जुनून शब्दों की सीमा से परे था। हर कहीं लोग कह रहे थे-अब वतन आजाद है…।
वर्तमान मंडल मुख्यालय नैनीताल उस दौर में तत्कालीन उत्तर प्रांत की राजधानी था। अंग्रेजों के ग्रीष्मकालीन गवर्नमेंट हाउस व सेकरेटरियेट यहीं थे। इस शहर को अंग्रेजों ने ही बसाया था, इसलिये इस शहर के वाशिंदों को उनके अनुशासन और ऊलजुलूल आदेशों के अनुपालन में ज्यादतियों से कुछ ज्यादा ही जलील होना पढ़ता था।
अपर माल रोड पर भारतीय चल नहीं सकते थे। नगर के एकमात्र सार्वजनिक खेल के फ्लैट्स मैदान में बच्चे खेल नहीं सकते थे। शरदोत्सव जैसे ‘मीट्स’ और ‘वीक्स’ नाम के कार्यक्रमों में भारतीयों की भूमिका बस ताली बजाने की होती थी। भारतीय अधिकारियों को भी खेलों व नाचघरों में होने वाले मनोरंजन कार्यक्रमों में अंग्रेजों के साथ शामिल होने की अनुमति नहीं होती थी।
ऐसे में 14 अगस्त 1947 को दिल्ली से तत्कालीन वर्तमान पर्दाधारा के पास स्थित म्युनिसिपल कार्यालय में फोन पर आये आजादी मिलने के संदेश से जैसे नगर वासियों में भारी जोश भर दिया था। इससे कुछ दिन पूर्व तक नगर में सांप्रदायिक तौर पर तनावपूर्ण माहौल था। नगर के मुस्लिम लोग पाकिस्तान के अलग देश बनने-न बनने को लेकर आशंकित थे, उन्होंने तल्लीताल से माल रोड होते हुए मौन जुलूस भी निकाला था। इन्हीं दिनों नगर में (शायद पहले व आखिरी) सांप्रदायिक दंगे भी हुऐ थे, जिसमें राजा आवागढ़ की कोठी (वर्तमान वेल्वेडियर होटल) भी फूंक डाला गया था।
इसके बावजूद 14 अगस्त की रात्रि ढाई-तीन बज तक जश्न चलता रहा था। लोगों ने रात्रि में ही मशाल जुलूस निकाला। देर रात्रि फ्लेट्स मैदान में आतिशबाजी भी की गई। जबकि 15 अगस्त को नगर में हर जाति-मजहब के लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। नगर के सबसे पुराने सीआरएसटी इंटर कॉलेज के बच्चों ने सुबह मॉल रोड होते हुए तल्लीताल गवर्नमेंट हाईस्कूल (वर्तमान जीआईसी) तक जुलूस निकाला।
वहां के हेड मास्टर हरीश चंद्र पंत ने स्मृति स्वरूप सभी बच्चों को 15 अगस्त 1947 लिखा पीतल का राष्ट्रीय ध्वज तथा टेबल पर दो तरफ से देखने योग्य राष्ट्रीय ध्वज व उस दिन की महान तिथि अंकित फोल्डर प्रदान किया। उन्होंने भाषण दिया, ‘अब वतन आजाद है। हम अंग्रेजों की दासता से आजाद हो गये हैं, पर अब देश को जाति-धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर एक रखने व नव निर्माण की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है’।
सुबह म्युनिसिपालिटी (नगर पालिका) में चेयरमैन (पालिका अध्यक्ष) रायबहादुर जसौंत सिंह बिष्ट की अध्यक्षता में बैठक हुई। तत्कालीन म्युनिसिपल कमिश्नर (सभासद) बांके लाल कंसल ने उपाध्यक्ष खान बहादुर अब्दुल कय्यूम को देश की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए पीतल का तिरंगा बैच के रूप में लगाया। इसके बाद चेयरमैन ने यूनियन जैक उतारकर तिरंगा फहरा दिया। इधर फ्लैट्स मैदान में तत्कालीन एडीएम आरिफ अली शाह ने परेड की सलामी ली।
उनके साथ पूर्व चेयरमैन मनोहर लाल साह, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्याम लाल वर्मा व सीतावर पंत सहित बढ़ी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद थे। उधर जनपद के दूरस्थ आगर हाईस्कूल टांडी से आईवीआरआई मुक्तेश्वर तक जुलूस निकाला गया था। कुल मिलाकर आजाद भारत के पहले दिन मानो पहाड़ के गाड़-गधेरों व जंगलों में भी जलसे हो रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डुंगर सिंह बिष्ट, हाल में दिवंगत हुए शिक्षक केसी पंत व शिक्षाविद् प्यारे लाल साह आजादी के पहले दिन के किस्से सुनाते न थकते थे।
15 August 1947 in Nainital : जिम कार्बेट सहित सर्वधर्म के लोग शामिल हुए थे नैनीताल में पहले स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में
नैनीताल। नैनीताल में 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए काफी दिनों पूर्व से तैयारियां की जा रही थीं। इस हेतु खास तौर पर ‘इंडिपेंडेंस डे सेलीब्रेशन कमेटी’ बनाई गयी थी। कमेटी के सभी सदस्यों को इस खास दिन को मनाने के लिए व्यक्तिगत आमंत्रण देने के साथ ही सामूहिक तौर पर भी एक छपे प्रारूप में सभी सदस्यों से हस्ताक्षर कराकर उनकी उपस्थिति सुनिश्चित की गयी थी।
इस आमंत्रण पर सबसे ऊपर लिखा गया था-’इंडिपेंडेंस डे वाइब्रेट्स अवर प्रीमियर होम लेंड विद कॉम्प्लीमेंट्स ऑफ द सेलीबेेशन कमेटी’। इस पत्र की एक प्रति हल्द्वानी के तत्कालीन म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन दयाकिशन पांडे के परिवार से प्राप्त हुई है। इससे पता चलता है कि देश की आजादी का पहला ऐतिहासिक दिन मनाने के लिए प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं अंतर्राष्ट्रीय शिकारी जिम कार्बेट सहित हर धर्म के गणमान्यजन शामिल थे।
इस सूची में सबसे ऊपर कुमाऊं के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एवं सेलीब्रेशन कमेटी के अध्यक्ष आईसीएस अधिकारी केएल मेहता एवं उनकी धर्मपत्नी के बाद कमेटी के सचिव एडीएम एएस आरिफ अली शाह का नाम था। उनके पश्चात तत्कालीन विधायक एवं कांग्रेस के मंडल अध्यक्ष श्याम लाल वर्मा, कुमाऊं केसरी कहे जाने वाले शिल्पकार नेता व विधायक खुशी राम, एसएसपी वी ह्वाइटहाउस, महाराजा बलरामपुर पट्टवारी सिंह, काशीपुर के (पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा के पूर्वज) राजा हरीश चंद्र, कुमाऊं के मालदार कहे जाने वाले दान सिंह (डीएसबी परिसर के जमीन देने वाले देव सिंह बिष्ट के पिता) आदि के नाम प्रमुख थे।
इनके अलावा जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डा. मित्तल, सचिव सीबी त्रिपाठी, नैनीताल के स्पेशल मजिस्ट्रेट (बाद में नैनीताल के चेयरमैन बने) मनोहर लाल साह, वन संरक्षक आईएफएस अधिकारी एमडी चर्तुवेदी, तराई भाबर के सुपरिंटेंडेंट बीएस बिष्ट, पीडब्लूडी के अधिशासी अभियंता बीडी नौटियाल, तत्कालीन क्रॉस्थवेट हॉस्पिटल (वर्तमान बीडी पांडे जिला चिकित्सालय) के प्रभारी मेडिकल ऑफीसर डा. डीएन शर्मा, एसडीओ काशीपुर जगदंबा प्रसाद, जिला पूर्ति अधिकारी बीएन माहेश्वरी, आरटीओ जीएस चूड़ामणि, तराई भाबर के एसडीओ पीसी पांडे, नैनीताल के एसडीओ आरएस रावत, असिस्टेंट इंजीनियर पीडब्लूडी उमाकांत, डिप्टी एसपी दौलत सिंह, ट्रेजरी ऑफीसर डीएन त्रिपाठी, तहसीलदार मोहन सिंह चंद, नायब तहसीलदार डीडी जोशी, कांग्रेस मंडल के उपाध्यक्ष मोहम्मद अखलाक, सचिव हीरा लाल साह, कोषाध्यक्ष मोहन लाल वर्मा, कुंती देवी वर्मा, तारा पांडे, भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के करीबी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सीताबर पंत वैद्य, शमसुद्दीन, म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन जसौत सिंह बिष्ट, जेसी पांडे, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड नैनीताल के चेयरमैन पंडित जगन्नाथ पांडे, हल्द्वानी म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन दयाकिशन पांडे, हरिकीर्तन मंडल नैनीताल के अध्यक्ष, मोमिन कांफ्रेंस के सचिव अब्दुल सत्तार अंसारी, आर्य समाज के सचिव बांके लाल कंसल, गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष, ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन तल्लीताल के अध्यक्ष दुर्गा शाह (तल्लीताल व्यापार मंडल के वर्तमान अध्यक्ष मारुति नंदन साह के पिता), मल्लीताल के अध्यक्ष बद्री साह, कपड़ा व्यापारी संघ के सचिव श्याम बिहारी लाल टंडन (राम लाल एंड संस के तत्कालीन स्वामी), श्रीराम सेवक सभा के अध्यक्ष साहिब लाल, हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष कृष्णानंद शास्त्री, आर्कडेंकन ऑफ लखनऊ ईडब्लू रॉजर्स, मुस्लिम लीग व शारदा संघ के अध्यक्ष, बार एसोसिएशन के सचिव जीएन पांडे, सेंट जोसफ कॉलेज के प्रधानाचार्य रेवरन ब्रदर जेसी रो, डीआईओएस एके पचौरी (चर्चित आरके पचौरी के पिता), इंस्पेक्टर ऑफ यूरोपियन स्कूल एडब्लू ऑस्टिन, डीएफओ केडी जोशी, म्यूनिसिपल बोर्ड के मेडिकल ऑफीसर आरडी वाधवा, डीएमओएच जे रहमानी, रेजीडेंसियल कॉलेज ब्रेेवरी के प्रधानाचार्य गंगा दत्त पांडे, अधिवक्ता जीडी मश्याल, पीएस गुप्ता, अब्दुल कय्यूम, एसएम अब्दुल्ला, जय लाल साह, नैनीताल क्लब के सचिव कर्नल जॉन डू ग्रे, अंतर्राष्ट्रीय शिकारी एवं पर्यावरणविद् कर्नल जिम कॉर्बेट, परमा शिब लाल साह (जिनके नाम पर नगर में अब धर्मशाला है, एलफिस्टन होटल स्वामी के पिता) कुंवर अब्दुल्ला खान व डीएसए के सचिव बांके लाल साह (अल्का होटल के तत्कालीन स्वामी) के नाम शामिल थे।
15 August 1947 in Nainital : कुमाऊँ का खास सम्बन्ध है राष्ट्रगान-जन गण मन से
नैनीताल। यह तो सभी को पता है कि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने अपनी कालजयी कृति गीतांजलि की रचना कुमाऊं के रामगढ़ में की थी। लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि इस रचना में ही ‘जन-गण-मन’ भी एक पाठ है। यह भी बताया जाता है कि राष्ट्रगान को जिस कर्णप्रिय व ओजस्वी धुन में गाया जाता है, वह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथी रहे कुमाऊं के पिथौरागढ़ जिले के मूनाकोट क्षेत्र के मूल निवासी कैप्टन राम सिंह ने तैयार की थी।
15 अप्रैल 2002 को स्वर्गवासी हुए कैप्टन राम सिंह ने अपने जीवनकाल में खुलासा किया था कि स्वयं नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कैप्टन आबिद हसन के साथ मिलकर जर्मनी में 1941 में ‘शुभ सुख चैन की बरखा बरसे, भारत भाग है जागा’ में संस्कृतनिष्ठ बांग्ला के स्थान पर सरल हिंदुस्तानी शब्दों का प्रयोग करते हुए ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हे…’ गीत का रूपांतरण किया था। आगे कुछ अशुद्धियां रह जाने की वजह से 1943 में सिंगापुर में मुमताज हुसैन ने इसे शुद्ध कर राष्ट्रगान का रूप दिया था।
इसकी धुन को लेकर उनका कहना था कि नेताजी ने सिंगापुर में आह्वान किया था कि राष्ट्रगीत (कौमी तराना) की धुन ऐसी बने कि आजाद हिंद फौज की स्थापना के अवसर पर गायन के दौरान कैथे हाउस (जहां आइएनए स्थापित हुआ) की छत भी दो फाड़ हो जाए और आसमान से देवगण पुष्प वर्षा करने लगें। इसके बाद ही कैप्टन राम सिंह ने इसकी मौलिक धुन तैयार की थी।
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यह भी पढ़ें : भारत को 15 अगस्त, 1947 की रात 12 बजे ही क्यों स्वतंत्रता मिली ?
हर साल, 15 अगस्त के दिन पूरा भारत स्वतंत्रता दिवस मनाता है. लेकिन कभी सोचा है कि इस दिन में क्या ख़ास बात थी, जो हमें 15 अगस्त, 1947 को रात 12 बजे ही स्वतंत्रता मिली ? एक-एक करके इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं।
पहला सवाल- 1947 ही क्यों?
गांधीजी के जनांदोलन से देश की जनता आज़ादी के लिए जागरूक हो गयी थी. वहीं दूसरी तरफ़ सुभाष चन्द्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज की गतिविधियों ने अंग्रेज़ शासन की नाक में दम कर रखा था। 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के ख़त्म होने के समय पर अंग्रेज़ों की आर्थिक हालत बद से बदत्तर हो गयी थी. दूसरे देशों की बात छोड़ दो, वो अपने देश पर शासन करने में ही असमर्थ हो गए थे।
वहीं 1945 के ब्रिटिश चुनावों में लेबर पार्टी की जीत ने आज़ादी के द्वार खोल दिए थे क्योंकि उन्होंने अपने मैनिफेस्टो में भारत जैसी दूसरी इंग्लिश कॉलोनियों को भी आज़ादी देने की बात कही थी।
कई मतभेदों और हंगामे के बावजूद भी भारतीय नेताओं की बात लार्ड वेवेल से शुरू हो गयी थी और स्वतंत्र भारत का सपना सच होने की कगार पर था। फरवरी, 1947 में लार्ड माउंटबैटन को भारत का आख़री वाइसराय चुना गया जिन पर व्यवस्थित तरीके से भारत को स्वतंत्रता दिलाने का कार्यभार था।
शुरूआती योजना के अनुसार भारत को जून, 1948 में आज़ादी मिलने का प्रावधान था. वाइसराय बनने के तुरंत बाद, लार्ड माउंटबैटन की भारतीय नेताओं से बात शुरू हो गयी थी, लेकिन ये इतना भी आसान नहीं था। जिन्ना और नेहरू के बीच बंटवारे को ले कर पहले से ही रस्साकशी चल रही थी. जिन्ना ने अलग देश बनाने की मांग रख दी थी जिसकी वजह से भारत के कई क्षेत्रों में साम्प्रदायिक झगड़े शुरू हो गए थे। माउंटबैटन ने इसकी अपेक्षा नहीं की थी और इससे पहले कि हालात और बिगड़ते, आज़ादी 1948 की जगह 1947 में ही देने की बात तय हो गयी।
दूसरा सवाल- 15 अगस्त ही क्यों?
लार्ड माउंटबैटन 15 अगस्त की तारीख़ को शुभ मानते थे क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के समय 15 अगस्त, 1945 को जापानी आर्मी ने आत्मसमर्पण किया था और उस समय लार्ड माउंटबैटन अलाइड फ़ोर्सेज़ के कमांडर थे।
तीसरा सवाल- रात के 12 बजे ही क्यों?
जब लार्ड माउंटबैटन ने आज़ादी मिलने की तारीख़ 3 जून, 1948 से 15 अगस्त, 1947 कर दी तो देश के ज्योतिषियों में खलबली मच गयी। उनके अनुसार ये तारीख़ अमंगल और अपवित्र थी। लार्ड माउंटबैटन को दूसरी तारीख़ें भी सुझाई गयी थीं, लेकिन वो 15 अगस्त को ही लेकर अडिग थे। ख़ैर, इसके बाद ज्योतिषियों ने एक उपाय निकाला। उन्होंने 14 और 15 अगस्त की रात 12 बजे का समय तय किया क्योंकि अंग्रेज़ों के हिसाब से दिन 12 AM पर शुरू होता है लेकिन हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से सूर्योदय पर…। (15 August 1947 in Nainital, Nainital, History, Nainital History, History of Nainital)
सिर्फ यहीं नहीं, उन्होंने नेहरू जी को ये भी कहा था कि उन्हें अपनी आज़ादी की स्पीच अभिजीत मुहूर्त में 11:51 PM से 12:39 AM के बीच ही देनी होगी। इसमें एक और शर्त ये भी थी कि नेहरू जी को अपनी स्पीच रात 12 बजे तक ख़त्म कर देनी होगी जिसके बाद शंखनाद किया जाएगा, जो एक नए देश के जन्म की गूंज दुनिया तक पहुंचाएगा। (15 August 1947 in Nainital, Nainital, History, Nainital History, History of Nainital)
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