नवीन समाचार, देहरादून, 2 फरवरी 2024 (UCC)। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार ने उत्तराखंड में यूसीसी (UCC) यानी यूनीफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक सहिता लागू करने की तैयारी लगभग पूरी कर ली है। यूसीसी के ड्राफ्ट को तैयार करने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति ने 2 फरवरी को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को रिपोर्ट सौंप दी है।
आगे धामी सरकार 3 फरवरी को कैबिनेट बैठक में मंजूरी के बाद 5 फरवरी से शुरू होने जा रहे विधानसभा सत्र के दौरान 6 फरवरी को इस पर विधेयक लाने वाली है। पूरी संभावना है कि इस दौरान ही यूसीसी (UCC) का विधेयक पारित हो जाएगा। अगर ऐसा होता है तो यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बना जाएगा। देखें CM ने क्या कहा वीडिओ :
उल्लेखनीय है कि धामी ने वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तराखंड में यूसीसी (UCC) को लागू करने का वादा किया था। इसके बाद धामी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में मई 2022 में पांच सदस्यीय समिति गठित की थी और समिति को उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी थी।
विशेषज्ञ समिति ने ड्राफ्ट तैयार करने से पहले 143 बैठकें कीं और 2.31 लाख से ज्यादा लोगों से सुझाव लिए। इस दौरान सितंबर में समिति का कार्यकाल चार महीने के लिए और फिर 25 जनवरी को एक बार फिर इसका कार्यकाल बढ़ाया गया था।
नए कानून से क्या बदलेगा?
इन नए कानून के तहत तलाक सिर्फ कानूनी प्रक्रिया से ही होगा। यानी देश में तलाक के सारे धार्मिक तरीके अवैध होंगे। इस्लाम या किसी अन्य मजहब में प्रचलित तीन तलाक तो पहले ही सर्वोच्च न्यायालय और फिर संसद से भी अमान्य और दंडनीय अपराध हो गया है। नए कानून की जद में तलाक ए हसन और तलाक ए अहसन भी आएंगे। यानी तलाक के ये एकतरफा तरीके भी गैरकानूनी माने जाएंगे।
लिव-इन में रहने के लिये भी जरूरी होगा पंजीकरण
साथ ही बिना विवाह किए एक साथ रहने यानी लिव इन रिलेशनशिप में बढ़ते अपराधों पर लगाम लगाने का भी प्रावधान नए कानून में हो सकता है। लिव इन में रहने की जानकारी सरकार को तय प्रक्रिया और तय प्रारूप के तहत देनी होगी। यानी इनके भी पंजीकरण का प्रावधान होगा। पंजीकरण की प्रक्रिया के तहत ही लिव इन रिलेशन की जानकारी लड़का लड़की के माता पिता के पास भी जाएगी। जानकारी न देने पर सजा का प्रावधान भी किया गया है।
लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ेगी
इसके अलावा लड़कियों के विवाह करने की न्यूनतम आयु में भी बदलाव किए जाने के संकेत हैं। इसे बढ़ा कर लड़कों के बराबर यानी 21 साल करने पर तो संशय है लेकिन उम्र इतनी तय की जाएगी ताकि लड़कियां विवाह से पहले स्नातक हो सकें।
सबके लिये शादी का पंजीकरण जरूरी
नये कानून में सबके लिए शादी का पंजीकरण अनिवार्य करने का प्रावधान होगा। विवाह के पंजीकरण के बिना परिवार या दंपति को मिलने वाली संयुक्त बैंक खाता, साझा संपत्ति सहित किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नही मिलेगा। ग्राम स्तर पर भी विवाह के पंजीकरण की सुविधा और सेवा मौजूद होगी।
विवाह विच्छेद के लिये पति-पत्नी दोनों को समान आधार-अधिकार मिलेंगे
नए कानून के मसौदे में विवाह की तरह ही विवाह विच्छेद यानी तलाक के भी एक समान आधार होंगे। पति-पत्नी दोनो को तलाक के समान आधार उपलब्ध होंगे। यानी तलाक का जो आधार पति के लिए लागू होगा उसी आधार पर पत्नी भी तलाक लेने के लिए अपना सकेगी।
अभी अलग-अलग मजहबों के अनुयायियों के लिए धार्मिक पर्सनल लॉ हैं। उनके तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग अलग आधार हैं। प्रस्तावित यूसीसी (UCC) के प्रारूप में मजहबी कानून गौण और नया एक समान कानून प्रभावी करने का प्रस्ताव होगा। नए मसौदे में बहुविवाह, हलाला और इद्दत पर रोक लगाने का प्रावधान भी है।
बहु पति या बहु पत्नी विवाह अवैध होंगे
समान नागरिक कानून में बहुपति या बहुपत्नी यानी पॉलीगैमी को कानूनी रूप से अवैध मानते हुए इस पर रोक लगाई जाएगी। यानी अब बिना समुचित आधार और कानून की मंजूरी के वैध पति पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह नहीं कर सकेंगे।
बेटियों को भी मिलेंगे बेटों की तरह पैतृक संपत्ति में अधिकार
नए समान नागरिक कानून के प्रारूप में पैतृक और पारिवारिक उत्तराधिकार के तहत लड़कियों यानी बेटियों को भी लड़कों यानी बेटों के बराबर पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। पर्सनल लॉ के मुताबिक अब तक बेटे के मुकाबले बेटी का हिस्सा कम होता था। लेकिन नए कानून में इसे निरस्त कर बराबरी में लाने की बात कही गई है।
कमाऊ बेटे की मौत पर पत्नी को मुआवजे के साथ माता-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी
नए दौर में आए दिन आने वाली एक और बड़ी समस्या का निदान इस प्रस्तावित कानून में है। किसी नौकरीशुदा बेटे की मौत पर उसकी पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में वृद्ध माता-पिता के भरण पोषण की भी जिम्मेदारी पत्नी पर होने का भी प्रावधान है। लेकिन अगर नौकरी करने वाले पति की मौत के बाद पत्नी अगर पुर्नविवाह कर लेती है तो पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में माता पिता के हिस्से का भी अनुपात निश्चित किया गया है।
बेसहारा सास-ससुर की जिम्मेदारी भी पति की होगी
नए मसौदे में पत्नी के माता-पिता की भी चिंता की गई है। दंपति में से अगर किसी की मौत हो जाए और पत्नी के माता पिता का कोई सहारा न हो तो उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी भी पति को उठानी पड़ेगी। दामाद अगर ऐसा करने से इंकार करे तो उसके सास ससुर इस कानून का सहारा लेकर अपना कानूनी अधिकार प्राप्त कर सकते हैं।
गोद लेने की प्रक्रिया होगी आसान
नए प्रस्तावित कानून में बच्चा या उत्तराधिकारी गोद लेने का अधिकार सबको होगा। धार्मिक मान्यता से ऊपर उठकर कोई भी पुरुष या महिला बच्चा या बच्ची गोद ले सकेंगे। यानी ये अधिकार भी धर्म पंथ और लिंग से ऊपर होगा। यानी मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार मिलेगा। गोद लेने की प्रक्रिया भी आसान की जाएगी।
किसी प्राकृतिक आपदा या पारिवारिक विवाद में बच्चे के अनाथ होने की स्थिति में गार्जियनशिप यानी बच्चे का अभिभावक बनने की प्रक्रिया भी आसान की जाएगी। बच्चे की राय और उसके भविष्य को अधिक महत्व दिया जायेगा। पति-पत्नी के बीच झगड़े और बच्चों के भविष्य के दृष्टिगत उनके बच्चों की कस्टडी सभी पहलुओं पर विचार करते हुए उनके दादा-दादी या नाना-नानी को भी दी जा सकती है।
यह हो सकता है यूसीसी के ड्राफ्ट में :
सूत्रों के हवाले से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर समिति कुछ अहम सिफारिशों के बारे में पता चला है।
1. कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में लागू होने वाले यूसीसी में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने का फैसला हो सकता है। इसके तहत हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समेत किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाली सभी महिलाओं को परिवार और माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा।
2. बेटों की तरह बेटियों की शादी की उम्र भी 21 साल करने का फैसला हो सकता है।
3. मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत कोई भी मुसलमान पुरुष कुछ शर्तों के साथ 4 शादियां कर सकता है। लेकिन उत्तराखंड में प्रस्तावित समान नागरिक संहिता के तहत किसी भी पुरुष और महिला को बहुविवाह करने की अनुमति नहीं होगी।
4. उत्तराखंड में यूसीसी के तहत ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के रजिस्ट्रेशन के प्राविधान पर भी विचार चल रहा है। बताया जा रहा है लिव इन रिश्तों का भी शादी की तरह ही पंजीकरण करना अनिवार्य हो सकता है। लिव-इन रिलेशन पर रहने के लिए लिव-इन जोड़ों के लिए अपने माता-पिता को सूचित करना अनिवार्य होगा। मसौदे में विवाह के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया गया है।
5. एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव यह भी है कि परिवार की बहू और दामाद को भी अपने ऊपर निर्भर बुजुर्गों की देखभाल का जिम्मेदार माना जाएगा।
6. यूसीसी में यह प्रस्ताव भी दिया जा सकता है कि किसी भी धर्म की महिला को संपत्ति में समान अधिकार मिलना चाहिए। इस नियम से मुस्लिम महिलाओं को अधिक अधिकार मिल सकेंगे। अब तक पैतृत संपत्ति के बंटवारे की स्थिति में पुरुष को महिला के मुकाबले दोगुनी संपत्ति मिलती है, लेकिन यूसीसी में बराबर के हक की वकालत की जाएगी। इस तरह किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाली महिलाएं संपत्ति में बराबर की हकदार होंगी।
7. यूसीसी मे एक बड़ा फैसला गोद ली जाने वाली संतानों के अधिकारों को लेकर भी हो सकता है। हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत दत्तक पुत्र या पुत्री को भी जैविक संतान के बराबर का ही हक मिलता है। लेकिन मुस्लिम, पारसी और यहूदी समुदायों के पर्सनल लॉ में बराबर हक की बात नहीं है। ऐसे में यूसीसी लागू होने से गोद ली जाने वाली संतानों को भी बराबर का हक मिलेगा और यह अहम बदलाव होगा।
8. यूसीसी के प्रस्तावित मसौदे में ‘हलाला’ और ‘इद्दत’ की प्रथा को बंद करने की शिफारिश की गई है।
9. ड्राफ्ट में पति और पत्नी दोनों को, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, तलाक लेने के लिए समान आधार और अधिकार देने की सिफारिश की गई है। कोई भी दंपत्ति कानूनी प्रक्रिया के तहत ही तलाक ले सकते हैं।
10. यूसीसी के प्रस्तावित मसौदे में कथित तौर पर बच्चों की संख्या तय करने की सिफारिश की गई है। हालांकि इसमें संख्या का विवरण नहीं दिया गया है।
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यह भी पढ़ें : यूसीसी (UCC) लागू हुई तो कितने प्रभावित होंगे उत्तराखंड के मुस्लिम, यह 6 बदलाव हो सकते हैं
नवीन समाचार, नैनीताल, 5 जुलाई 2023। उत्तराखंड में यूसीसी (UCC) यानी समान नागरिक संहिता लागू होने की एक तरह से उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। इस मामले में यूसीसी (UCC)तैयार कर रही कमेटी अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद यूसीसी (UCC)के तैयार होने की बात कह चुकी है, और मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने के बाद यूसीसी (UCC)को शीघ्र लागू करने की बात कही है।
बताया जा रहा है कि उत्तराखंड में लागू होने वाली यूसीसी (UCC)एक तरह से पूरे देश के लिए प्रयोग की तरह होगी। यानी यहां इसके लागू होने पर आने वाली प्रतिक्रियाओं का असर इसे आगे पूरे देश में लागू होने पर पड़ेगा। यूसीसी (UCC)का सर्वाधिक असर मुस्लिम समुदाय के लोगों पर पड़ने की बात कही जा रही है, हालांकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी कह चुके हैं कि उनका इरादा किसी के पूर्व से चले आ रहे रिवाजों को छेड़ने का नहीं है।
जबकि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भी कहा है कि कोई भी कानून किसी की मान्यताओं पर प्रभाव नहीं डालता है। यह जरूर होता है कि यदि कोई व्यक्ति कानून तोड़ता है और उसके खिलाफ शिकायत की जाती है तो कानून के तहत उस पर कार्रवाई हो सकती है। यहां हम यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि अब तक सूत्रों से यूसीसी (UCC) के जिन प्राविधानों की जानकारी सामने आ रही है, उससे उत्तराखंड में रहने वाली करीब 15 से 16 लाख की मुस्लिम आबादी कितने प्रभावित होगी।
यूसीसी (UCC) के सूत्रों से प्राप्त प्राविधानों के अनुसार कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में लागू होने वाले यूसीसी (UCC) में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने का फैसला हो सकता है। इसके तहत हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सहित सभी धर्मों की महिलाओं को परिवार और माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा।
1. 15 की जगह 21 साल में हो सकेगी बेटियों की शादी
बेटों की तरह बेटियों की शादी की उम्र भी 21 साल करने का फैसला हो सकता है। जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में मुस्लिम लड़की की शादी की उम्र 15 साल है। शादी की उम्र बढ़ने से उन्हें शारीरिक व मानसिक तौर पर बढ़ने के साथ ही पढ़ाई के भी अधिक अवसर मिल सकेंगे।
2. पत्नी को तलाक दिए बिना दूसरे या बहुविवाह की अनुमति नहीं
किसी भी पुरुष और महिला को बहुविवाह करने की अनुमति नहीं होगी। जबकि मुस्लिम शरीयत कानून की धारा दो के तहत कोई भी मुसलमान पुरुष कुछ शर्तों के साथ 4 शादियां कर सकता है। इसके लिए उसे पहली पत्नी की सहमति की कोई आवश्यकता नहीं है। वहीं इसके ठीक विपरीत मुस्लिम महिला अपने पति से तलाक लिए बिना दूसरी शादी नहीं कर सकती।
अब अगर उत्तराखंड में यूसीसी (UCC) लागू होगा तो मुस्लिम पुरुष भी बिना पहली पत्नी को कानूनी तौर पर तलाक दिए दूसरी शादी नहीं कर सकेंगे। यूसीसी (UCC) के ड्राफ्ट में सभी धर्मों पति और पत्नी को तलाक लेने के लिए समान अधिकार देने की सिफारिश की गई है। कोई भी दंपत्ति कानूनी प्रक्रिया के तहत ही तलाक ले सकते हैं। लेकिन वह पहले से हो चुके प्राविधान के तहत एक साथ तीन तलाक नहीं ले सकेंगे।
3. गुजारा भत्ता देने के नियम भी बदलेंगे
इसके अलावा मुसलमान पुरुषों को तलाक के बाद अपनी पत्नी को आजीवन या जब तक उसकी पत्नी दूसरी शादी नहीं कर सकती तब तक गुजारा भत्ता देना होगा। जबकि बताया जाता है कि मुसलमान पुरुषों को केवल तलाक के तीन महीने 10 दिन तक ही अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देना होता है।
4. महिलाओं को मिलेगा पैतृक संपत्ति में बराबर का हक
यूसीसी (UCC) के प्राविधानों के अनुसार मुस्लिम महिलाओं को पैतृक संपत्ति के बंटवारे की स्थिति में अपने भाइयों की तरह समान अधिकार मिल सकता है। जबकि अब तक पैतृक संपत्ति पुरुष को महिला के मुकाबले दोगुनी मिलती है, लेकिन यूसीसी (UCC) में बराबर के हक की वकालत की जा सकती है। इस तरह मुस्लिम महिलाएं लााभान्वित होंगी तो उनके भाइयों को यह नुकसानदेह लग सकता है।
5. गोद लिए बच्चों को भी मिलेगा जैविक बच्चों की तरह बराबरी का हक
यूसीसी (UCC) मे एक बड़ा प्राविधान गोद ली जाने वाली संतानों को भी जैविक संतान के बराबर का ही हक देने का हो सकता है। लेकिन हिंदुओं से इतर मुस्लिम, पारसी और यहूदी समुदायों के पर्सनल लॉ में ऐसी गोद ली गई संतानों को बराबर हक की बात नहीं है। ऐसे में यूसीसी (UCC) लागू होने से गोद ली जाने वाली संतानों को भी बराबर का हक मिल सकता है। यूसीसी (UCC) के प्रस्तावित मसौदे में ‘हलाला’ और ‘इद्दत’ की प्रथा को बंद करने की सिफारिश की गई है। इस सिफारिश का खासकर मुस्लिम महिलाओं पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
6. बच्चों की संख्या हो सकती है तय
इसके अलावा यूसीसी के प्रस्तावित मसौदे में कथित तौर पर बच्चों की संख्या तय करने की सिफारिश की गई है। हालांकि इसमें संख्या का विवरण नहीं दिया गया है। इस सिफारिश का प्रभाव भी मुस्लिम धर्म के लोगों पर पड़ सकता है, जो कथित तौर पर बच्चों को ‘अल्लाह की मर्जी’ से जोड़ते हैं।
(डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ें, यहां क्लिक कर हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें। यहां क्लिक कर हमारे टेलीग्राम पेज से जुड़ें और यहां क्लिक कर हमारे फेसबुक ग्रुप में जुड़ें।
यह भी पढ़ें : उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने पर उत्तराखंड सरकार का बड़ा बयान…
नवीन समाचार, देहरादून, 29 जनवरी 2024। देश में सर्वप्रथम उत्तराखंड में यूसीसी (UCC) यानी यूनीफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू होने का समय करीब आ गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस संबंध में सोमवार को बड़ा बयान दिया। बताया कि प्रदेश में प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (UCC) का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए गठित कमेटी 2 फरवरी को ड्राफ्ट प्रदेश सरकार को सौंपेगी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार देवभूमि उत्तराखण्ड के मूल स्वरूप को बनाए रखने के लिए संकल्पित हैं।
इस संबंध में श्री धामी ‘एक्स’ पर लिखा है, आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विजन और चुनाव से पूर्व उत्तराखण्ड की देवतुल्य जनता के समक्ष रखे गए संकल्प एवं उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप हमारी सरकार प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने हेतु सदैव प्रतिबद्ध रही है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मसौदा तैयार करने के लिए बनी कमेटी 2 फरवरी को अपना ड्राफ्ट प्रदेश सरकार को सौंपेगी और हम आगामी विधानसभा सत्र में विधेयक लाकर समान नागरिक संहिता को प्रदेश में लागू करेंगे।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड सरकार ने आगामी 5 फरवरी को विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाया है। इस सत्र में समान नागरिक संहिता (UCC) का ड्राफ्ट पेश किया जाएगा। माना जा रहा है कि इसके बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चर्चा होगी और समान नागरिक संहिता को कानून का रूप देकर प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा। ऐसा करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य होगा।
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यह भी पढ़ें : यूसीसी (UCC) लागू करने वाला पहला राज्य बनने जा रहा है उत्तराखंड, जानें कितने बदल जायेंगे शादी, लिव-इन, तलाक, गोद लेने व भरण-पोषण के अधिकार…
नवीन समाचार, नैनीताल, 15 नवंबर 2023। उत्तराखंड यूसीसी (UCC) यानी यूनीफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता की राह पर चलने वाला देश का पहला राज्य बनने जा रहा है। देवभूमि की विधान सभा इस कानून के मसौदे यानी विधेयक पर आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान चर्चा कर सकती है। हालांकि देश के संविधान में राज्य को ऐसा अधिकार नहीं है। लेकिन विधान सभा अपनी लक्ष्मण रेखा के दायरे में रहकर कितना कर सकती है यह देखने वाली बात होगी।
विदित हो कि उत्तराखंड सरकार ने 27 मई 2022 को समान नागरिक संहिता की संभावनाएं तलाश कर इसे तैयार करने के लिए और नागरिकों के सभी निजी मामलों से जुड़े कानूनों की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति बनाई थी। इस विधेयक को देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड या कॉमन सिविल कोड की बहुचर्चित कल्पना को साकार करने की नींव के पत्थर माना जा रहा है।
माना जा रहा है कि उत्तराखंड का यह कानून भविष्य में पूरे देश के लिये बनने वाले यूसीसी (UCC) कानून का आधार होगा। लेकिन इस पर विधान सभा में चर्चा से पहले ही राजनीतिक और धार्मिक हंगामा होने के आसार लग रहे हैं। हालांकि सीएम धामी स्पष्ट कर चुके हैं कि उत्तराखंड में प्रस्तावित यूसीसी (UCC) का उद्देश्य किसी वर्ग को निशाना बनाना नहीं हैं। फिर भी 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले उत्तराखंड का यूसीसी (UCC) देश में बड़ा सियासी मुद्दा बन सकता है।
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नवीन समाचार, देहरादून, 30 जून 2023। उत्तराखंड के यूसीसी (UCC) यानी यूनीफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार हो गया है। इसकी घोषणा आज उत्तराखंड यूसीसी कमेटी की अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजना देसाई ने की।
एक पत्रकार वार्ता में नई दिल्ली में न्यायमूर्ति रंजना देसाई ने कहा, ‘मुझे आपको यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि उत्तराखंड के प्रस्तावित समान नागरिक संहिता का मसौदा अब पूरा हो गया है। ड्राफ्ट के साथ विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट मुद्रित की जाएगी। इसके बाद इसे उत्तराखंड सरकार को सौंपा जाएगा।’
न्यायमूर्ति रंजना देसाई ने कहा कि कमेटी ने उत्तराखंड के राजनेताओं, मंत्रियों, विधायकों और आम जनता की राय लेने के बाद ही समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार किया है। वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी को लेकर बहुत उत्साहित हैं। सरकार बनने के बाद यूसीसी पर बहुत तेजी से काम हुआ है। अब यूसीसी का मसौदा तैयार हो चुका है।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में यूसीसी के लिए ड्राफ्ट तैयार किए जाने को लेकर सरकार ने 27 मई 2022 को आदेश जारी कर विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इसके बाद से ही डॉक्टर रंजना देसाई की अध्यक्षता में गठित कमेटी, ड्राफ्ट तैयार करने के लिए काम कर रही थी। विशेषज्ञ समिति की पहली बैठक 4 जुलाई 2022 को हुई थी।
इसके बाद से अभी तक समिति की 63 बैठकें हो चुकी है। लोगों के सुझाव के लिए गठित उप समिति ने करीब 20 हजार लोगों से मुलाकात कर सुझाव लिए हैं, साथ ही समिति को करीब 2 लाख 31 हजार से ज्यादा लिखित सुझाव कमेटी को मिले थे।
इधर गत 2 जून को न्यायमूर्ति रंजना देसाई और उत्तराखंड के लिए यूसीसी का मसौदा तैयार करने वाली समिति के सदस्यों ने विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी और सदस्यों केटी शंकरन, आनंद पालीवाल और डीपी वर्मा से मुलाकात की थी। तब न्यायमूर्ति रंजना देसाई ने कहा था कि विधि आयोग इस मुद्दे को लेकर काम करने पर विचार कर रहा है।