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November 22, 2024

उत्तराखंड के हजारों अनियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिये उच्च न्यायालय से आया बड़ा फैसला

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Big Decision for Regularization of Employees

-मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने राज्य सरकार की नियमावली को बैध ठहराया, 10 साल की सेवा अवधि वाले कर्मचारियों का हो सकेगा नियमितीकरण
नवीन समाचार, नैनीताल, 23 फरवरी 2024 (Big Decision for Regularization of Employees)। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राज्य में शासकीय सेवाओं में अनियमित स्थिति में कार्य कर रहे कर्मचारियों के लिये बड़ा व महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश गुरुवार 22 फरवरी को नरेंद्र सिंह बिष्ट और अन्य चार लोगों की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिकाओं की सुनवाई करते हुये सुनाया है।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस संबंध में सभी याचिकाओं को निस्तारित करते हुए निर्णय दिया है कि चार दिसंबर 2018 से पूर्व जिन कार्मिकों को नियमितीकरण किया जा चुका है उन्हें नियमित माना जाए और अन्य को दस वर्ष की दैनिक वेतन के रूप में सेवा करने की बाध्यता के आधार पर नियमित किया जा सकता है।

10 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत हजारों कर्मचारियों के विनियमित होने की उम्मीद (Big Decision for Regularization of Employees)
(Big Decision for Regularization of Employees)

अपने आदेश के साथ खंडपीठ ने राज्य सरकार की वर्ष 2013 की विनियमितीकरण नीति पर अपनी मुहर लगा दी है। उच्च न्यायालय के इस आदेश से राज्य के 10 वर्ष से अधिक समय से कार्यरत हजारों कर्मचारियों के विनियमित होने की उम्मीद की जा रही है।

मामले के अनुसार राज्य सरकार ने वर्ष 2013 में सरकारी विभागों, निगमों, परिषदों एवं स्वायत्तशासी संस्थाओं में काम करने वाले तदर्थ, संविदा कर्मियों के विनियमितीकरण के लिये एक नियमावली तैयार की थी। इसमें प्रावधान किया गया था कि सर्वोच्च न्यायालय उमा देवी के आदेश के आलोक में वर्ष 2011 में बनायी नियमावली के तहत जो कर्मचारी विनियमित नहीं हो पाये उन्हें विनियमित किया जा सके।

सरकार का यह भी तर्क था कि चूंकि उत्तराखंड राज्य 9 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया और उसके कई वर्ष बाद भी सरकारी विभागों का गठन हुआ, इसलिये उनमें तैनात कर्मचारियों को वर्ष 2011 की नियमावली का लाभ नहीं मिल पाया। सरकार ने तब हालांकि 2013 की नियमावली में 10 वर्ष की अवधि को घटाकर पांच साल तक सीमित कर दिया था। सरकार की मंशा थी कि इससे वे कर्मचारी लाभान्वित हो सकेंगे जिन्होंने उत्तराखंड बनने के बाद 10 साल या उससे अधिक की सेवा पूरी कर ली है। (Big Decision for Regularization of Employees)

याचिकाकर्ताओं ने सरकार के इस कदम को वर्ष 2018 में चुनौती दी और कहा कि सरकार विनियमितीकरण के लिये सेवा की अवधि को 10 साल से घटाकर पांच साल नहीं कर सकती है। युगलपीठ में सभी प्रकरणों पर बुधवार को सुनवाई हुई और अदालत ने महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सरकार की वर्ष 2013 की विनियमितीकरण नियमावली को जायज ठहरा दिया। साथ ही पीठ ने सरकार के पांच साल की सेवा अवधि को बढ़ाकर 10 साल कर दिया है। (Big Decision for Regularization of Employees)

इस आदेश के बाद सरकारी विभागों, निगमों और स्वायत्तशासी संस्थाओं, कालेजों और विभागों में तदर्थ और संविदा पर काम करने वाले हजारों कर्मचारियों को विनियमित किया जा सकेगा। इस आदेश से इन कर्मचारियों में खुशी की लहर व्याप्त है। (Big Decision for Regularization of Employees)

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