नवीन समाचार, हल्द्वानी, 28 जनवरी 2024 (Pahad ke Utpad)। मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के बैनर तले रविवार को हल्द्वानी में कई संगठनों के द्वारा संयुक्त रूप से मूल निवास स्वाभिमान महारैली निकाली गई। इस दौरान लोगों ने कहा कि आज हम इसके विरुद्ध एकजुट होकर न लड़े तो कल बाहरी ताकतें हम पर राज करेंगी।
इस महारैली की वजह से शहर में यातायात व्यवस्था बुरी तरह से चरमरायी रही। पुलिस ने नैनीताल-बरेली रोड के साथ अन्य मार्गों पर भी वाहनों को प्रतिबंधित रखा। इससे शहर के आंतरिक मार्गों पर वाहनों का जाम लगा रहा।
बहरहाल, आज उत्तराखंड में मूल निवास कानून लागू करने और इसकी कट ऑफ डेट 26 जनवरी 1950 घोषित किए जाने और प्रदेश में सशक्त भू-कानून लागू किए जाने जैसे मुद्दों को लेकर युवाओं सहित अनेक सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के लोग बुद्ध पार्क में जुटे ओर उत्तराखंड मूल निवास स्वाभिमान महारैली निकाली। रैली में अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, नैनीताल, पिथौरागढ़, ऊधमसिंह नगर से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में भू-कानून और मूल निवास के मुद्दे पर गरमाई सियासत के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों पर अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय प्रारूप समिति का गठन किया गया है।
इधर समिति की अध्यक्ष श्रीमती रतूड़ी ने प्रदेश के जिलाधिकारियों से पिछले 10 वर्ष में कृषि एवं बागवानी के लिये जमीने लेने के लिये दी गयी स्वीकृतियों की पूरी सूची तलब की है, जबकि पूर्व में सरकार ने राज्य में कृषि एवं बागवानी के लिये जमीनें लेने पर फौरी रोक लगा दी है। इसे राज्य में सशक्त भूकानून लाने का उपक्रम माना जा रहा है। अलबत्ता सरकार यह भी बताने का प्रयास कर रही है कि राज्य में उद्योगपतियों-उद्योगों के लिये जमीनें उपलब्ध कराने का द्वार खुला हुआ है।
संघर्ष समिति की प्रमुख मांगें
– प्रदेश में ठोस भू कानून लागू हो।
– शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो।
– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
– गैर कृषक की ओर से कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
– राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाए।
– प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
-ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।
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यह भी पढ़ें : (Pahad ke Utpad) अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में गूंजा उत्तराखंड का एक पारंपरिक, प्रसिद्ध व लोकप्रिय वाद्य यंत्र-हुड़का
नवीन समाचार, देहरादून, 22 जनवरी 2024 (Pahad ke Utpad)। अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में उत्तराखंड के एक प्रसिद्ध-पारंपरिक वाद्य यंत्र की गूंज भी सुनाई दी। देश को ‘जय श्री राम‘ के नारों और झंडों के साथ एक सूत्र में पिरोने वाले इस आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों से लाए गए 18 वाद्य यंत्रों में उत्तराखंड के वाद्य यंत्र हुड़के को भी स्थान मिला।
अयोध्या के कार्यक्रम स्थल पर भगवान राम की पूजा में देश के कई राज्यों के प्रमुख वाद्य यंत्रों की मौजूदगी में पूजा पाठ और आरती भी करवाई गई है। इसी कड़ी में उत्तराखंड से हुड़का वाद्य यंत्र अयोध्या में भगवान राम की पूजा अर्चना में इस्तेमाल किया गया।
उल्लेखनीय है कि हुड़का उत्तराखंड के साथ पड़ोसी देश नेपाल में भी प्रयोग होने वाला एक प्राचीन एवं लोकप्रिय एवं एक अलग ठसक के साथ बजाने की कला के साथ निकलने वाली एक अपनी घमक के लिये प्रसिद्ध वाद्य यंत्र है।
हालांकि बदलते दौर में हुड़के का प्रयोग परंपरागत तरीके से होने से अधिक अब मंचीय प्रदर्शनों में परंपरा को दिखाने भर तक सीमित नजर आता है। जबकि पहले यह पहाड़ के झोड़ा, चांचरी व हुड़किया बौल सहित हर तरह के धार्मिक, सांस्कृतिक गीत-संगीत व नृत्यों में आवश्यक रूप से प्रयुक्त किया जाने वाला वाद्य यंत्र रहा है।
इन स्थितियों के बीच अयोध्या में इतने बड़े आयोजन के दौरान इस वाद्य यंत्र की गूंज सुनाई देना सुखद है। उम्मीद की जानी चाहिये कि इससे हुड़का का प्रचार-प्रसार होगा और देश भर में इसकी चर्चा होगी और इसे बढ़ावा मिलेगा।
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यह भी पढ़ें : (Pahad ke Utpad) कुमाऊं विवि की 1 छात्रा के शोध में दावा : जरूरी से अधिक पोषक भोजन ले रही हैं पहाड़ की गर्भवती महिलाएं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की कमी चिंताजनक…
नवीन समाचार, नैनीताल, 7 दिसंबर 2023 (Pahad ke Utpad)। कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर की गृह विज्ञान की छात्रा पूजा पोखरिया ने पहाड़ की गर्भवती महिलाओं पर किये गये अपने शोध में चौकाने वाला खुलासा किया है।
उनका कहना है कि पहाड़ की ग्रामीण गर्भवती महिलाओं की पारवारिक मासिक आय कम होने के बावजूद भी उनमें दैनिक पोषक तत्वों की मात्रा ‘आरडीए’ यानी अनुशंसित आहार भत्ते की मात्रा से अधिक है। इसका कारण यह है कि वह अपने भोजन में मोटे अनाज, दाल, दूध, सब्जी, स्थानीय फलों आदि (Pahad ke Utpad) का उपभोग अपने आहार में करती हैं। ऐसा इसलिये कि उत्तराखंड के पारम्परिक मोटे अनाज, दाल, स्थानीय फलों व सब्जियों मे पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व पाये जाते हैं जो गर्भवती महिलाओं व धात्री माताओ के लिए काफी लाभप्रद होते हैं।
पूजा के गृह विज्ञान विभाग की प्रो. लता पांडे के निर्देशन एवं अब अल्मोड़ा विवि के कुलपति बन चुके डीएसबी परिसर के प्रोफेसर रहे प्रो. सतपाल बिष्ट के सह निर्देशन में ‘नैनीताल जनपद के पर्वतीय क्षेत्रों की ग्रामीण गर्भवती महिलाओं के पोषण स्तर का अध्ययन’ विषय पर पीएचडी की उपाधि के लिये किये गये शोध में यह बात भी सामने आयी है कि पर्वतीय क्षेत्रों की ग्रामीण गर्भवती महिलायें अपने व शिशु के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक तो हैं, परंतु पर्वतीय क्षेत्रों में संशाधनों व स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है।
कहीं स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सक नहीं हैं तो कहीं आवश्यक मशीनों का अभाव है। शोध में यह संस्तुति की गयी है कि राज्य सरकार को आंगनबाड़ी केंद्रों में भी उत्तराखंड के स्थानीय खाद्यानों को अधिक महत्व देना चाहिए, तथा ग्रामीण गर्भवती महिलाओं से जुड़ी समस्याओं को देखने की अधिक आवश्यकता है। पूजा को अपने इस शोध पर मौखिक परीक्षा के बाद शोध उपाधि की संस्तुति कर दी गयी है।
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यह भी पढ़ें (Pahad ke Utpad) : नैनीताल के 3 सहित उत्तराखंड के 18 उत्पादों को मिला जीआई टैग, मिलेगी वैश्विक पहचान…
नवीन समाचार, देहरादून, 4 दिसंबर 2023 (Pahad ke Utpad)। उत्तराखंड के पारंपरिक (Pahad ke Utpad) लाल चावल, बेरीनाग की चाय, नैनीताल की लीची व मोमबत्तियों सहित 18 और उत्पादों को भारतीय विशिष्ट बौद्धिक संपदा के तहत भौगोलिक संकेतांक यानि जीआई टैग मिल गया है और इस तरह वैश्विक पहचान मिल गई है।
राज्य के स्थानीय उत्पादों (Pahad ke Utpad) को जीआई टैग दिलाने में उत्तराखंड आर्गेनिक बोर्ड की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। बोर्ड के एमडी विनय कुमार के अनुसार राज्य के उत्पादों को जीआई टैग मिलना ऐतिहासिक है।
उन्होंने बताया कि अब तक राज्य के नैनीताल के ज्योलीकोट व अन्य स्थानों पर उगने वाले तेजपत्ता, कुमाऊं के पिथौरागढ़ जनपद में च्यूरा वृक्ष के बीजों से बनने वाले तेल, घी व अन्य उत्पादों, मुनस्यारी की राजमा व पिथौरागढ़ के उच्च हिमालयी क्षेत्रों के भोटिया दन, उत्तराखंडी ऐपण, रिंगाल के उत्पादों, ताम्र उत्पादों एवं थुलमा को ही जीआई टैग हासिल था।
जबकि अब उत्तराखंड के पारंपरिक लाल चावल, बेरीनाग की कभी दुनिया में पहचान रखने वाली चाय, पथरी की अचूक दवा मानी जाने वाली गहत की दाल, मंडुआ, झंगोरा, बुरांस के शरबत, काले भट्ट, चौलाई यानी रामदाना, अल्मोड़ा की लखोरी लाल मिर्च, पहाड़ी तुअर दाल, माल्टा, चोट-मोच में उपयोगी बिच्छू घास की बूटी, नैनीताल की मोमबत्तियां, कुमाउंनी रंग्वाली पिछौड़े, नैनीताल की लीची व आडू, चमोली के रम्माण मुखौटे तथा लिखाई वुड कार्विंग (Pahad ke Utpad) को भी जीआई टैग मिल गया है।
उन्होंने बताया कि जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेतांक उत्पादों को विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान के रूप में चिह्नित करता है। जीआई टैग एक संकेत है, जिसका विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति वाले उत्पादों को चिह्नित करने में इस्तेमाल होता है। इससे किसी उत्पाद को विशिष्ट भौगोलिक पहचान दी जाती है। बताया कि उत्तराखंड में सबसे पहले तेज पत्ता को जीआई टैग मिला था।
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यह भी पढ़ें : लीजिए उत्तराखंड का ऐसा पारंपरिक उत्पाद (Pahad ke Utpad)-मडुवा, जिसमें होता है चावल से 34 गुना अधिक कैल्शियम व फाइबर, बिकेगा 38.46 प्रति किलोग्राम की दर पर
नवीन समाचार, नैनीताल, 12 सितंबर 2023 (Pahad ke Utpad)। जनपद के कृषि विज्ञान केंद्र ज्योलीकोट में मंगलवार को एक दिवसीय कृषक गोष्ठी का आयोजन किया गया। ब्लॉक प्रमुख डॉ. हरीश बिष्ट ने दीप प्रज्वलित कर गोष्ठी का शुभारम्भ किया। गोष्ठी में अंतर्राष्टीय मिलेट वर्ष 2023 के अंतर्गत मोटे अनाज के बारे में विस्तृत चर्चा की गई।
(Pahad ke Utpad) इस अवसर पर कृषि वैज्ञानिक डॉ. कंचन नैनवाल ने मडुवा व झंगोरा आदि 9 तरीके के मोटे अनाजों के बारे मे विस्तार से जानकारी देते हुए कृषकांे को फसलों से मिलने वाले पोषण और मोटे अनाज का उत्पादन बढाने तथा गुणवत्ता युक्त उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित के साथ ही पारंम्परिक फसलो के उत्पादन को बढावा देने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि मडुवा में चावल से 34 गुना अधिक कैल्शियम एवं फाइबर मिलता है।
(Pahad ke Utpad) मुख्य कृषि अधिकारी वीके यादव ने बताया कि सरकार द्वारा रुपए 38.46 प्रति किलोग्राम की निर्धारित दर पर मडुवा कृषकों से समूह के माध्यम से क्रय समिति द्वारा क्रय किया जाएगा। जबकि समूहों को मडुवा क्रय करने पर 150 रुपये प्रति कुंतल प्रोत्साहन राशि दी जायेगी। गोष्ठी में कृषकों को सफेद मडुवे की वीएल-382 प्रजाति के बारे विस्तार से बताया गया।
(Pahad ke Utpad) डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट मैनेजर डॉ. सुरेश मठपाल ने विकास खंड भीमताल के बानना में क्रय समिति हेतु स्थान चयनित किया गया है। कार्यक्रम में ग्राम प्रधान भल्यूटी रजनी रावत सहित बड़ी संख्या में कृषक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन उमेश पलड़िया ने किया।
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यह भी पढ़ें : Pahad ke Utpad : उत्तराखंड के 18 स्थानीय उत्पादों को मिलेंगे जीआई टैग, जानें क्या होगा फायदा ?
नवीन समाचार, देहरादून, 12 सितंबर 2023 (Pahad ke Utpad)। देवभूमि उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के प्रयास चल रहे हैं। इसी कड़ी में राज्य के 18 उत्पादों को जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग यानी भौगोलिक संकेतांक मिलने जा रहा है। केंद्रीय उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार मंत्रालय के जीआई रजिस्ट्री विभाग के तत्वावधान में आगामी 17 से 21 नवंबर तक देहरादून में आयोजित होने जा रहे जीआई महोत्सव में इसके प्रमाण पत्र दिए जाएंगे।
(Pahad ke Utpad) कृषि एवं ग्राम्य विकास मंत्री गणेश जोशी ने बताया कि राज्य सरकार ने कुछ समय पहले उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में परंपरागत तौर पर उगाये जाने वाले लाल चावल, बेरीनाग की अंग्रेजी दौर से उगायी जाने वाली चाय, गहत, मंडुवा, झंगोरा, बुरांस के शरबत, काले भट्ट, चौलाई (रामदाना), पहाड़ी तुअर दाल, माल्टा, अल्मोड़ा की लखौरी-लाल मिर्च, नैनीताल जनपद के रामनगर की लीची व रामगढ़ के आड़ू के साथ पांच हस्तशिल्प उत्पादों पर जीआई टैग प्राप्त करने को आवेदन किये थे।
(Pahad ke Utpad) केंद्रीय उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार मंत्रालय के स्तर पर पर इनका परीक्षण हुआ और इसी वर्ष मई में मंत्रालय के अधिकारियों ने विभिन्न जिलों में जाकर सुनवाई की। इन उत्पादों को तय मानकों की कसौटी पर खरा पाया गया है।
(Pahad ke Utpad) उन्होंने बताया कि इससे पहले अब तक उत्तराखंड के 9 स्थानीय उत्पादों-कुमांऊ के पिथौरागढ़ जनपद में पाये जाने वाले व कल्पवृक्ष कहे जाने वाले च्यूरा के बीजों के तेल, मुनस्यारी की राजमा, भोटियाओं द्वारा बनाये जाने वाले दन, कुमाउनी ऐपण, रिंगाल क्राफ्ट, ताम्र उत्पाद एवं थुलमा को जीआई टैग मिल चुका है। इसके साथ राज्य के जीआई टैग प्राप्त उत्पादों की संख्या बढ़कर 27 हो जाएगी। इससे यहां के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी।
(Pahad ke Utpad) मंत्री ने बताया कि महोत्सव में कृषि विश्वविद्यालयों को भी शामिल किया जाएगा और विद्यार्थियों के मध्य जीआई टैग से संबंधित प्रतियोगिताएं भी होंगी और रैली भी निकाली जाएगी। महोत्सव में कृषि, उद्यान, नाबार्ड, उद्योग, संस्कृति, सहकारिता, ग्राम्य विकास, पर्यटन समेत अन्य विभागों की सहभागिता रहेगी।
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यह भी पढ़ें : Pahad ke Utpad : ओमेगा 3 फैटी एसिड, आयरन, जिंक, मैगनीज के महंगे कैप्सूल नहीं उत्तराखंड का यह ‘सुपर फूड’ खाइए, कैल्शियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम जैसे खनिज भी मिलेंगे
-पूरी दुनिया में सुपर फूड ‘फिडरहेड फर्न्स’ के नाम से प्रसिद्ध हो रहा उत्तराखंड का लिंगुड़ा
-ओमेगा 3 फैटी एसिड सहित अनेक खनिजों युक्त लिंगुड़ा कैंसर रोधी होने के साथ हृदय, यकृत, त्वचा व हड्डियों के रोगों के साथ त्वचा रोगों व आंखों की ज्योति बढ़ाने में भी होता है मददगार
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 1 अगस्त 2023। (Pahad ke Utpad) जी हां, महंगे कैप्सूलों में मिलने वाले ओमेगा 3 फैटी एसिड, आयरन, जिंक, मैगनीज के साथ ही कैल्शियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम जैसे खनिजों के पीछे आज अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग दौड़ रहे हैं, लेकिन प्रकृति ने यह तत्व पहाड़ की एक कुछ वर्षों पूर्व तक एक उपेक्षित सी सब्जी में जमकर दिए हैं।
(Pahad ke Utpad) हम उत्तराखंड में बरसात के मौसम में पायी जाने वाली लिंगुड़ या लिंगुड़ा नाम की जंगली सब्जी की बात कर रहे हैं जो ‘फिडरहेड फर्न्स’ यानी सिरे से मुड़े हुए फर्न के नाम से मानव स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद अनेकों गुणों से युक्त होने के कारण ‘सुपर फूड’ के रूप में पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो रहा है और उत्तराखंड से भी अमेरिका सहित अन्य देशों को निर्यात किया जा रहा है।
(Pahad ke Utpad) ऐसा इसलिए कि लिंगुड़ा वैज्ञानिक शोधों में ओमेगा-3 फैटी एसिड का एक उत्कृष्ट गैर-समुद्री वैकल्पिक आहार स्रोत बताया गया है। शोधों में कहा गया है कि इसके खुले हुए पत्तों में किसी भी खाने योग्य हरे पौधे से अधिक संपूर्ण फैटी एसिड स्पेक्ट्रम मौजूद है।
(Pahad ke Utpad) उल्लेखनीय है कि ओमेगा-3 फैटी एसिड पूरे मानव शरीर में कोशिका झिल्ली का एक अभिन्न अंग होता है और सूजन को कम करने, कोलेस्ट्रॉल को प्रबंधित करने और याददाश्त में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आजकल लोग ओमेगा-3 फैटी एसिड प्राप्त करने के लिए महंगी दवाइयां ले रहे हैं, जो कि लिंगुड़े में प्राकृतिक तौर पर पाया जाता है। इसी कारण इसे ‘सुपर फूड’ में शामिल किया गया है।
(Pahad ke Utpad) वैज्ञानिक आधार पर लिंगुड़ा एक फर्न प्रजाति का पौधा है और बरसात के मौसम में जंगलों में स्वयं उत्पन्न होता है। अब तक इसे खेतों में उगाये जाने की जानकारी नहीं है। अलबत्ता बताया जा रहा है अन्य देशों के साथ भारत के कुछ राज्यों में अब टिश्यू कल्चर के माध्यम से भी इसका उत्पादन होने लगा है। इसका वैज्ञानिक नाम डिप्लाजियम एसकुलेंटम है, तथा यह वनस्पतियों के एथाइरिएसी कुल से संबंधित है।
(Pahad ke Utpad) देश के उत्तराखंड व हिमांचल प्रदेश आदि मध्य हिमालय की पर्वतश्रृंखलाओं ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में समुद्र तट से 1800 से 3000 मीटर की ऊचांई पर नमी वाली जगह पर मार्च से जुलाई के मध्य यह उगता है। बताते हैं कि दुनिया भर में लिंगुड़े की लगभग 400 प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन जंगल से इसे तोड़ने में पहचान-विशेषज्ञता की जरूरत होती है। गलती होने पर इसकी जगह किसी अन्य फर्न की सब्जी बनाना जानलेवा भी साबित हो सकता है।
(Pahad ke Utpad) हिमांचल प्रदेश में यह लुंगडू के नाम से जाना जाता है। बरसात के मौसम में पहाड़ों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली इस सब्जी को यहां के लोग परंपरागत तौर पर खाते आ रहे हैं। कटहल की तरह इसका स्वाद मांस की तरह स्वादिस्ट होने की वजह से भी यह हमेशा पर्वतीय क्षेत्रवासियों का पसंदीदा रहा है। लेकिन विदेशों में मांग बढ़ने के बाद अब यह स्थानीय बाजारों से गायब होता जा रहा है।
(Pahad ke Utpad) नैनीताल में अभी यह बेहद सीमित मात्रा में बाजार में आना शुरू हुआ है और इसकी 8-10 डंडियों की गड्डी 20 से 30 रुपए में बिक रही है, जबकि हल्द्वानी की मंगल पड़ाव मंडी में यह 40 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव बिक रहा है।
(Pahad ke Utpad) न केवल इसे पहाड़ के लोग प्रवास पर आने पर मैदानी क्षेत्रों में भी ले जा रहे हैं, बल्कि सुपरफूड के रूप में इसकी पहचान बनने के बाद न केवल मैदानी क्षेत्रों के बाजार में, बल्कि विदेशों तक में इसकी यहां से आपूर्ति की जा रही है। स्थानीय विक्रेताओं ने बताया कि हल्द्वानी व रामनगर में एक-एक प्रोसेसिंग यूनिंग से इसकी आपूर्ति अमेरिका सहित अन्य देशों को भी की जा रही है। इसी कारण यह स्थानीय बाजारों में इस वर्ष उपलब्ध नहीं हो पा रहा है और कीमत भी अधिक है।
Pahad ke Utpad : औषधीय गुणों, विटामिन ए, बी, सी व शक्तिशाली खनिजों से युक्त हैं लिंगुड़ा
नैनीताल (Pahad ke Utpad)। लिंगुड़ा या फिडलहेड्स अपने एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के कारण कैंसररोधी है, साथ ही यह तांबे और लोहे का भी एक अच्छा स्रोत हैं, जो नई लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन के लिए भी आवश्यक होते हैं। साथ ही इसमें एंजाइमों के उत्पादन के लिए आवश्यक मैंगनीज भी होता है जो रक्त शर्करा और थायराइड को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इनमें जिंक भी होता है, जो विकास और प्रोटीन निर्माण के लिए सबसे महत्वपूर्ण खनिजों में से एक है।
(Pahad ke Utpad) साथ ही इसमें कैल्शियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटेशियम जैसे खनिज भी मौजूद होते हैं। इसलिए इसे कुपोषण से निपटने के लिएि भी एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत माना गया है। इसके अलावा लिंगुड़स विटामिन ए, बी कॉम्प्लेक्स और सी सहित पौधों के यौगिकों का एक अच्छा स्रोत हैं। विटामिन ए सूजन को कम करता है और अधः पतन को रोकने में मदद कर सकता है, जबकि विटामिन सी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।
(Pahad ke Utpad) वहीं बी कॉम्प्लेक्स विटामिन राइबोफ्लेविन और नियासिन का एक स्रोत हैं। जबकि विटामिन बी3या नियासिन धमनियों के निर्माण को रोकने और परिसंचरण में सुधार करने में मदद करता है, और उच्च रक्तचाप की रोकथाम और उपचार में भूमिका निभा सकता है। साथ ही यह त्वचा को सूरज की रोशनी से बचाने व रंग को उज्ज्वल करने में भी मदद करता है। इसके अलावा लिंगुड़ा हृदय, आंखों, लीवर यानी यकृत व मधुमेह के मरीजों के लिए भी अच्छा माना जाता है।
(Pahad ke Utpad) इसके अलावा माना जाता है कि इसकी जड़ को बारीक पीसकर लेप बनाकर जोंड़ों पर लगाने से गठिया की बीमारी भी दूर हो जाती हैं। और इसकी सब्जी खाने से मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत हो जाती हैं। भारत में इसे अधिकांशतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जबकि अमेरिका जैसे देशों में इसका उपयोग अचार के रूप में भी किया जाता है। उत्तराखंड में भी कुछ युवा लिंगुड़ा का अचार बना कर 250 रुपये प्रति किलो के भाव में बेच रहे हैं।
(डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..यहां क्लिक कर हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें। यहां क्लिक कर यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से, हमारे टेलीग्राम पेज से और यहां क्लिक कर हमारे फेसबुक ग्रुप में जुड़ें। हमारे माध्यम से अमेजॉन पर सर्वाधिक छूटों के साथ खरीददारी करने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें Pahad ke Utpad : स्वास्थ्य व काम का समाचार: ‘बिच्छू’ की हर्बल चाय पीजिए कोरोना को दूर भगाइये, चाहें तो हर माह एक लाख रुपए भी कमाइये….
नवीन समाचार, अल्मोड़ा, 01 दिसम्बर 2020। (Pahad ke Utpad) जी हां, अब तक झाड़ियों में उपेक्षित मानी जाने वाली व बहुधा दंड देने के लिए प्रयोग में लाए जाने के लिए अभिशप्त ‘बिच्छू’ घास (कंडाली) के बारे में सिद्ध हो गया है कि यह कोरोना भगाने में बेहद कारगर है।
(Pahad ke Utpad) नवस्थापित सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के जंतु विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं शोध प्रमुख डा. मुकेश सामन्त एवं शोधार्थी शोभा उप्रेती, सतीश पांडेय व ज्योति शंकर तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान रायपुर के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के डा. अवनीश कुमार के संयुक्त शोध में बिच्छू घास में 23 ऐसे यौगिकों के खोज की गई है जो कोरोना विषाणु से लड़ने में काफी कारगर हैं।
(Pahad ke Utpad) यह शोध स्विट्जरलैंड से प्रकाशित वैज्ञानिक शोध पत्रिका स्प्रिंगर नेचर के मॉलिक्यूलर डाइवर्सिटी में प्रकाशित भी हो गया है। वहीं यह चिंता भी नहीं कि बिच्छू घास से कोरोना को कैसे भगाया जाए। अल्मोड़ा जिले के ही एक युवा ने बिच्छू घास से हर्बल चाय तैयार कर ली है। यह हर्बल चाय कोरोना को भगाने के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है। इसीलिए इसे है। जिसे अमेजॉन से भी ऑर्डर मिल रहे हैं।
(Pahad ke Utpad) डा.सामन्त ने बताया कि उन्होंने बिच्छू घास में पाए आने वाले 110 यौगिकों को मॉलिक्यूलर डॉकिंग विधि द्वारा स्क्रीनिंग की।
जिसमें से 23 यौगिक ऐसे पाए गए जो मनुष्य के फेफड़ों में पाए जाने वाले एसीइ-2 रिसेप्टर से आबद्ध हो सकते हैं और कोरोना विषाणु के संक्रमण को रोक सकने में काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं। वर्तमान में इन यौगिकों को बिच्छू घास से निकालने का काम चल रहा है उसके बाद इन यौगिकों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल भी किया जा सकता है।
(Pahad ke Utpad) बहुत फायदेमंद है बिच्छू घास
उल्लेखनीय है कि बिच्छू घास एक प्रकार का जंगली पौधा है, इसे छूने से करंट जैसा अनुभव होता है और शरीर में करीब 24 घंटों तक झनझनाहट होती है। यह पौधा उत्तराखंड के सभी पर्वतीय इलाकों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Urtica dioica हैं। इस पौधे को कुमाऊ मंडल में सिसूंण व गढ़वाल मंडल में कंडाली के नाम से जाना जाता है इस पौधे से बिच्छू के डंक जैसा अनुभव होने के कारण ही इसे इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है।
(Pahad ke Utpad) इस पौधे के पत्तांे एव तनांे पर सुई की तरह हल्के कांटे भी होते है। जहाँ लोग इस पौधे को छूने से डरते हैं, तो इसका प्रयोग दंड देने के लिए भी होता है, वहीं इस पौधे के कई मेडिसिनल फायदे भी है। पर्वतीय लोग परंपरागत तौर पर सर्दियों में इसकी गर्म तासीर को देखते हुए इसकी सब्जी खाते हैं।
(Pahad ke Utpad) ‘मडुवे की रोटी के साथ सिसूंण का साग’ परंपरागत तौर पर पहाड़ वासियों का भोजन रहा है। पहाडों पर चढ़ते-उतरते अक्सर लग जाने वाली चोटों व मोच में भी बिच्छू घास छूने पर रामबांण की तरह असर करती है, और पुराने दर्दों को भी दूर कर देती है।
(Pahad ke Utpad) बिच्छू घास में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए कई पोषक तत्व मौजूद हैं। इसका पर्वतीय लोगों को परंपरागत तौर पर पता है। बिच्छू घास में विटामिन ए और सी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए गाँव के बुजुर्ग सर्दी-खाँसी के साथ ही डायबिटीज, गठिया जैसे बीमारियों में भी में भी इसका इस्तेमाल करते हैं।
Pahad ke Utpad : दान सिंह अमेजॉन पर बिच्छू घास की हर्बल चाय ‘माउंटेन टी’ बेचकर हर माह कमा रहे एक लाख रुपए
(Pahad ke Utpad) अल्मोड़ा जिले के नौबाड़ा गाँव के रहने वाले 30 वर्षीय दान सिंह रौतेला ने बिच्छू घास के जरिए पहाड़ के युवाओं के लिए स्वरोजगार की नई राह दिखाई है। पिछले छह वर्षों से दिल्ली मेट्रो के साथ ठेके पर काम कर रहे दान सिंह को देशव्यापी लॉकडाउन के कारण काम मिलना बंद हुआ तो वह गाँव लौट आए और
(Pahad ke Utpad) यहां उन्हांेने बिच्छू घास से “माउंटेन टी” नाम से ‘हर्बल चाय’ तैयार कर अपने रोजगार का बड़ा जरिया बना लिया है। माउंटेन टी आज अमेजन पर 1000 रुपए प्रति किलोग्राम की भाव पर उपलब्ध है। दिल्ली, बिहार, राजस्थान, हिमाचल जैसे कई राज्यों से दान सिंह को इसके हर महीने 100 से अधिक ऑर्डर मिल रहे हैं और वह इससे हर महीने एक लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं।
(Pahad ke Utpad) दान सिंह बताते हैं, ‘गाँव के बुजुर्ग सर्दी-खाँसी में बिच्छू घास की चाय का प्रयोग करते थे। ऐसे में उन्होंने बिच्छू घास में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की क्षमता को देखकर इससे हर्बल टी बनाने का कार्य शुरू किया।
(Pahad ke Utpad) कोरोना विषाणु से बचने के लिए बाजार में इस तरह के औषधीय उत्पादों की माँग बढ़ती देखकर बिच्छु घास से हर्बल टी बनाने का विचार आया।’ इसके बाद, मई 2020 में उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया। वे बताते हैं सर्दी-खाँसी, बुखार आदि में बिच्छू घास की हर्बल चाय का असर 1-2 घंटे में ही देखने को मिल जाता हैं, जिससे उन्हें लगभग एक लाख रुपए की कमाई होती है।
ऐसे बनाते हैं बिच्छू घास से हर्बल चाय
(Pahad ke Utpad) दान सिंह बिच्छू घास के डंडों को काटकर तीन दिनों तक धूप में सूखाने के बाद इसे हाथों से मसल देते हैं, ताकि तने से पत्तियां अलग हो जाए। बिच्छू घास से एक किलो हर्बल टी बनाने में 30-30 ग्राम लेमनग्रास, तुलसी, तेज पत्ता, अदरक आदि भी मिलाया जाता है, जिससे चाय का स्वाद बढ़ने के साथ ही इसमें पोषक तत्व भी बढ़ जाते हैं। इसमें किसी मशीन की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। केवल पैकिंग के लिए एक सीलिंग मशीन की जरूरत पड़ती है।
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यह भी पढ़ें : नैनीताल समाचार Pahad ke Utpad : 14 साल के बच्चे लगा रहे रहे थे ‘दम’, बिच्छू लगाकर उतारा नशा
नवीन समाचार, नैनीताल, 12 मार्च 2020 (Pahad ke Utpad)। शहर में नशे का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। अच्छे घरों के बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। बृहस्पतिवार पूर्वाह्न 11 बजे के लगभग नगर के विमल कुँज से कालाढूंगी जाने वाले पैदल मार्ग पर कुछ छोट छोटे बच्चों के सिगरेट पीने की सूचना पर अयारपाटा वार्ड के सभासद मनोज साह जगाती ने छापा मारा।
(Pahad ke Utpad) श्री जगाती ने बताया कि वहां 4 बच्चे सिगरेट में चरस भरते पाए गए। बच्चों की उम्र 14 से 17 थी। इन बच्चों को शरीर मे झनझनाहट पैदा करने वाली विच्छू घास लगाई गई, और आगे से नशा न करने की सलाह दी गई।उल्लेखनीय है कि सभासद जगाती काफी समय से हर तरह के नशे के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं
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यह भी पढ़ें : समझाएंगे, सुधारेंगे, न सुधरे तो बिच्छू भी लगाएंगे-नैनीताल में ‘मिशन पहाड़’ पर निकले ‘हम पहाड़ी’…
-स्मैक के नशे, स्थानीय लोगों को उनका हक दिलाने के मुद्दे पर जुटे
नवीन समाचार, नैनीताल, 29 दिसंबर 2019 (Pahad ke Utpad)। जिला व मंडल मुख्यालय में समय एक बार पुनः समय करवट लेता नजर आ रहा है। यहां स्थानीय लोग खुद को ‘हम पहाड़ी’ कहते हुए ‘मिशन पहाड़’ पर निकल पड़े हैं। इन लोगों में नगर के पत्रकार, चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता व विभिन्न राजनीतिक दलों से जुडे़ लोग अपने राजनीतिक, धार्मिक-जातीय-क्षेत्रीय विभेद त्यागकर जुटे हैं।
(Pahad ke Utpad) उनका कहना है, वे स्मैक के नशे की विकराल हो चुकी सहित अन्य समस्याओं को लेकर पहाड़ के लोगों के हित के लिए एकजुट हुए हैं। पहले से लोगों को समझा कर सुधारेंगे, और जो नहीं सुधरे तो उसे बिच्छू घास लगाकर कड़ा दंड देने से भी नहीं हिचकेंगे।
(Pahad ke Utpad) नगर के पत्रकार कमल जगाती ने बताया कि उनके मन में काफी समय से स्मैक एवं स्थानीय लोगों के हितों पर हो रहे कुठाराघात को लेकर उद्वेग चल रहा था। उन्होंने सौरभ रावत नाम के युवक से यह बात साझा की तो वे भी उनके साथ अभियान में जुड़ गए। इसके बाद तो सभासद मनोज साह जगाती, चंदन जोशी, धीरज बिष्ट, कैलाश अधिकारी, डा. सरस्वती खेतवाल, डा. एमएस दुग्ताल, डा. केएस धामी, मनोचिकित्सक डा. पांडे सहित लोग अभियान से जुड़ते ही चले गए।
(Pahad ke Utpad) विगत चार दिसंबर से शुरू हुए इस अभियान के ह्वाट्सएप ग्रुप में वर्तमान में 156 सक्रिय लोग जुड़ चुके हैं, जिनमें से 80 लोग हमेशा, किसी भी समय किसी भी समस्या के समाधान के लिए सक्रिय रहते हैं। संस्था में एक ऐसा युवक भी शामिल है, जो 4 वर्ष से स्मैक का आदी था, और अब संस्था की पहल पर स्मैक को छोड़कर स्वयं इसके खिलाफ अभियान से जुड़ गया है।
(Pahad ke Utpad) रविवार को मिशन पहाड़ से जुड़े लोगों-चिकित्सकों ने बीडी पांडे जिला चिकित्सालय में लोगों को स्मैक की विभीषिका के बारे में दावा किया कि शहर में 70 फीसद बच्चों स्मैक ने जकड़ लिया है। साथ ही कई बच्चे फेवीबांड जैसे एड्हीसिव्स का सूंघ कर नशा कर रहे हैं। शहर में कई ऐसे लोग भी हैं जो बच्चों को एड्हीविस सुंधा कर उनसे भीख मंगवाते हैं। ऐसे लोगों को संस्था के लोग बिच्छू लगा चुके हैं। इसके अलावा शहर में मनमानी कर रहे बाइक-टैक्सी चलाने वालों को भी समझाया है।
(Pahad ke Utpad) जगाती ने कहा कि संस्था शहर में गलत तरीके से कार्य कर नगर के पर्यटन व्यवसाय को प्रदूषित कर रहे बाहरी लोगों को भी बाहर करने की पक्षधर है, ताकि शहर के मूल-ईमानदारी से काम करने वाले निवासी कार्य कर सकें और नगर की पर्यटन छवि भी बेहतर हो। उन्हें उनका हक वापस दिलाना भी संस्था का मकसद है। साथ ही संस्था का उद्देश्य संस्था के लोगों द्वारा आपस में छोटी-छोटी धनराशि मिलाकर पहाड़वासियों की छोटी-छोटी मदद करने का भी है।
(Pahad ke Utpad) शीघ्र संस्था के लोगों की बैठक कर संस्था का ठीक से ढांचा एवं भविष्य की रूपरेखा बनायी जाएगी। उन्होंने कहा कि कई स्मैक के आदी युवा स्मैक छोड़ना चाहते हैं, परंतु स्मैक तस्कर उन पर दबाव बनाए हुए हैं। संस्था स्मैक तस्करों के दबाव के आगे ऐसे युवाओं के साथ हर तरह से खड़ी होगी।
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