लीजिए उत्तराखंड का ऐसा पारंपरिक उत्पाद (Pahad ke Utpad)-मडुवा, जिसमें होता है चावल से 34 गुना अधिक कैल्शियम व फाइबर, बिकेगा 38.46 प्रति किलोग्राम की दर पर

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Pahad ke Utpad

Maduva ki roti Pahad ke Utpad

मडुवा की रोटी

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नवीन समाचार, नैनीताल, 12 सितंबर 2023 (Pahad ke Utpad)। जनपद के कृषि विज्ञान केंद्र ज्योलीकोट में मंगलवार को एक दिवसीय कृषक गोष्ठी का आयोजन किया गया। ब्लॉक प्रमुख डॉ. हरीश बिष्ट ने दीप प्रज्वलित कर गोष्ठी का शुभारम्भ किया। गोष्ठी में अंतर्राष्टीय मिलेट वर्ष 2023 के अंतर्गत मोटे अनाज के बारे में विस्तृत चर्चा की गई।

Maduva ki roti Pahad ke Utpad
मडुवा की रोटी

इस अवसर पर कृषि वैज्ञानिक डॉ. कंचन नैनवाल ने मडुवा व झंगोरा आदि 9 तरीके के मोटे अनाजों के बारे मे विस्तार से जानकारी देते हुए कृषकांे को फसलों से मिलने वाले पोषण और मोटे अनाज का उत्पादन बढाने तथा गुणवत्ता युक्त उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित के साथ ही पारंम्परिक फसलो के उत्पादन को बढावा देने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि मडुवा में चावल से 34 गुना अधिक कैल्शियम एवं फाइबर मिलता है।

मुख्य कृषि अधिकारी वीके यादव ने बताया कि सरकार द्वारा रुपए 38.46 प्रति किलोग्राम की निर्धारित दर पर मडुवा कृषकों से समूह के माध्यम से क्रय समिति द्वारा क्रय किया जाएगा। जबकि समूहों को मडुवा क्रय करने पर 150 रुपये प्रति कुंतल प्रोत्साहन राशि दी जायेगी। गोष्ठी में कृषकों को सफेद मडुवे की वीएल-382 प्रजाति के बारे विस्तार से बताया गया।

डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट मैनेजर डॉ. सुरेश मठपाल ने विकास खंड भीमताल के बानना में क्रय समिति हेतु स्थान चयनित किया गया है। कार्यक्रम में ग्राम प्रधान भल्यूटी रजनी रावत सहित बड़ी संख्या में कृषक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन उमेश पलड़िया ने किया।

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यह भी पढ़ें : Pahad ke Utpad : उत्तराखंड के 18 स्थानीय उत्पादों को मिलेंगे जीआई टैग, जानें क्या होगा फायदा ?

नवीन समाचार, देहरादून, 12 सितंबर 2023 (Pahad ke Utpad)। देवभूमि उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के प्रयास चल रहे हैं। इसी कड़ी में राज्य के 18 उत्पादों को जीआई यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग यानी भौगोलिक संकेतांक मिलने जा रहा है। केंद्रीय उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार मंत्रालय के जीआई रजिस्ट्री विभाग के तत्वावधान में आगामी 17 से 21 नवंबर तक देहरादून में आयोजित होने जा रहे जीआई महोत्सव में इसके प्रमाण पत्र दिए जाएंगे।

कृषि एवं ग्राम्य विकास मंत्री गणेश जोशी ने बताया कि राज्य सरकार ने कुछ समय पहले उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में परंपरागत तौर पर उगाये जाने वाले लाल चावल, बेरीनाग की अंग्रेजी दौर से उगायी जाने वाली चाय, गहत, मंडुवा, झंगोरा, बुरांस के शरबत, काले भट्ट, चौलाई (रामदाना), पहाड़ी तुअर दाल, माल्टा, अल्मोड़ा की लखौरी-लाल मिर्च, नैनीताल जनपद के रामनगर की लीची व रामगढ़ के आड़ू के साथ पांच हस्तशिल्प उत्पादों पर जीआई टैग प्राप्त करने को आवेदन किये थे।

केंद्रीय उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार मंत्रालय के स्तर पर पर इनका परीक्षण हुआ और इसी वर्ष मई में मंत्रालय के अधिकारियों ने विभिन्न जिलों में जाकर सुनवाई की। इन उत्पादों को तय मानकों की कसौटी पर खरा पाया गया है।

उन्होंने बताया कि इससे पहले अब तक उत्तराखंड के 9 स्थानीय उत्पादों-कुमांऊ के पिथौरागढ़ जनपद में पाये जाने वाले व कल्पवृक्ष कहे जाने वाले च्यूरा के बीजों के तेल, मुनस्यारी की राजमा, भोटियाओं द्वारा बनाये जाने वाले दन, कुमाउनी ऐपण, रिंगाल क्राफ्ट, ताम्र उत्पाद एवं थुलमा को जीआई टैग मिल चुका है। इसके साथ राज्य के जीआई टैग प्राप्त उत्पादों की संख्या बढ़कर 27 हो जाएगी। इससे यहां के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी।

मंत्री ने बताया कि महोत्सव में कृषि विश्वविद्यालयों को भी शामिल किया जाएगा और विद्यार्थियों के मध्य जीआई टैग से संबंधित प्रतियोगिताएं भी होंगी और रैली भी निकाली जाएगी। महोत्सव में कृषि, उद्यान, नाबार्ड, उद्योग, संस्कृति, सहकारिता, ग्राम्य विकास, पर्यटन समेत अन्य विभागों की सहभागिता रहेगी।

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यह भी पढ़ें : Pahad ke Utpad : ओमेगा 3 फैटी एसिड, आयरन, जिंक, मैगनीज के महंगे कैप्सूल नहीं उत्तराखंड का यह ‘सुपर फूड’ खाइए, कैल्शियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम जैसे खनिज भी मिलेंगे

-पूरी दुनिया में सुपर फूड ‘फिडरहेड फर्न्स’ के नाम से प्रसिद्ध हो रहा उत्तराखंड का लिंगुड़ा
-ओमेगा 3 फैटी एसिड सहित अनेक खनिजों युक्त लिंगुड़ा कैंसर रोधी होने के साथ हृदय, यकृत, त्वचा व हड्डियों के रोगों के साथ त्वचा रोगों व आंखों की ज्योति बढ़ाने में भी होता है मददगार
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 1 अगस्त 2023। (Pahad ke Utpad) जी हां, महंगे कैप्सूलों में मिलने वाले ओमेगा 3 फैटी एसिड, आयरन, जिंक, मैगनीज के साथ ही कैल्शियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम जैसे खनिजों के पीछे आज अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग दौड़ रहे हैं, लेकिन प्रकृति ने यह तत्व पहाड़ की एक कुछ वर्षों पूर्व तक एक उपेक्षित सी सब्जी में जमकर दिए हैं।

 Pahad ke Utpad Linguda lingudeहम उत्तराखंड में बरसात के मौसम में पायी जाने वाली लिंगुड़ या लिंगुड़ा नाम की जंगली सब्जी की बात कर रहे हैं जो ‘फिडरहेड फर्न्स’ यानी सिरे से मुड़े हुए फर्न के नाम से मानव स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद अनेकों गुणों से युक्त होने के कारण ‘सुपर फूड’ के रूप में पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो रहा है और उत्तराखंड से भी अमेरिका सहित अन्य देशों को निर्यात किया जा रहा है।

ऐसा इसलिए कि लिंगुड़ा वैज्ञानिक शोधों में ओमेगा-3 फैटी एसिड का एक उत्कृष्ट गैर-समुद्री वैकल्पिक आहार स्रोत बताया गया है। शोधों में कहा गया है कि इसके खुले हुए पत्तों में किसी भी खाने योग्य हरे पौधे से अधिक संपूर्ण फैटी एसिड स्पेक्ट्रम मौजूद है।

उल्लेखनीय है कि ओमेगा-3 फैटी एसिड पूरे मानव शरीर में कोशिका झिल्ली का एक अभिन्न अंग होता है और सूजन को कम करने, कोलेस्ट्रॉल को प्रबंधित करने और याददाश्त में सुधार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आजकल लोग ओमेगा-3 फैटी एसिड प्राप्त करने के लिए महंगी दवाइयां ले रहे हैं, जो कि लिंगुड़े में प्राकृतिक तौर पर पाया जाता है। इसी कारण इसे ‘सुपर फूड’ में शामिल किया गया है।

वैज्ञानिक आधार पर लिंगुड़ा एक फर्न प्रजाति का पौधा है और बरसात के मौसम में जंगलों में स्वयं उत्पन्न होता है। अब तक इसे खेतों में उगाये जाने की जानकारी नहीं है। अलबत्ता बताया जा रहा है अन्य देशों के साथ भारत के कुछ राज्यों में अब टिश्यू कल्चर के माध्यम से भी इसका उत्पादन होने लगा है। इसका वैज्ञानिक नाम डिप्लाजियम एसकुलेंटम है, तथा यह वनस्पतियों के एथाइरिएसी कुल से संबंधित है।

देश के उत्तराखंड व हिमांचल प्रदेश आदि मध्य हिमालय की पर्वतश्रृंखलाओं ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में समुद्र तट से 1800 से 3000 मीटर की ऊचांई पर नमी वाली जगह पर मार्च से जुलाई के मध्य यह उगता है। बताते हैं कि दुनिया भर में लिंगुड़े की लगभग 400 प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन जंगल से इसे तोड़ने में पहचान-विशेषज्ञता की जरूरत होती है। गलती होने पर इसकी जगह किसी अन्य फर्न की सब्जी बनाना जानलेवा भी साबित हो सकता है।

हिमांचल प्रदेश में यह लुंगडू के नाम से जाना जाता है। बरसात के मौसम में पहाड़ों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली इस सब्जी को यहां के लोग परंपरागत तौर पर खाते आ रहे हैं। कटहल की तरह इसका स्वाद मांस की तरह स्वादिस्ट होने की वजह से भी यह हमेशा पर्वतीय क्षेत्रवासियों का पसंदीदा रहा है। लेकिन विदेशों में मांग बढ़ने के बाद अब यह स्थानीय बाजारों से गायब होता जा रहा है। नैनीताल में अभी यह बेहद सीमित मात्रा में बाजार में आना शुरू हुआ है और इसकी 8-10 डंडियों की गड्डी 20 से 30 रुपए में बिक रही है, जबकि हल्द्वानी की मंगल पड़ाव मंडी में यह 40 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव बिक रहा है।

न केवल इसे पहाड़ के लोग प्रवास पर आने पर मैदानी क्षेत्रों में भी ले जा रहे हैं, बल्कि सुपरफूड के रूप में इसकी पहचान बनने के बाद न केवल मैदानी क्षेत्रों के बाजार में, बल्कि विदेशों तक में इसकी यहां से आपूर्ति की जा रही है। स्थानीय विक्रेताओं ने बताया कि हल्द्वानी व रामनगर में एक-एक प्रोसेसिंग यूनिंग से इसकी आपूर्ति अमेरिका सहित अन्य देशों को भी की जा रही है। इसी कारण यह स्थानीय बाजारों में इस वर्ष उपलब्ध नहीं हो पा रहा है और कीमत भी अधिक है।

Pahad ke Utpad : औषधीय गुणों, विटामिन ए, बी, सी व शक्तिशाली खनिजों से युक्त हैं लिंगुड़ा

नैनीताल। लिंगुड़ा या फिडलहेड्स अपने एंटी ऑक्सीडेंट गुणों के कारण कैंसररोधी है, साथ ही यह तांबे और लोहे का भी एक अच्छा स्रोत हैं, जो नई लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन के लिए भी आवश्यक होते हैं। साथ ही इसमें एंजाइमों के उत्पादन के लिए आवश्यक मैंगनीज भी होता है जो रक्त शर्करा और थायराइड को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इनमें जिंक भी होता है, जो विकास और प्रोटीन निर्माण के लिए सबसे महत्वपूर्ण खनिजों में से एक है।

साथ ही इसमें कैल्शियम, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटेशियम जैसे खनिज भी मौजूद होते हैं। इसलिए इसे कुपोषण से निपटने के लिएि भी एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत माना गया है। इसके अलावा लिंगुड़स विटामिन ए, बी कॉम्प्लेक्स और सी सहित पौधों के यौगिकों का एक अच्छा स्रोत हैं। विटामिन ए सूजन को कम करता है और अधः पतन को रोकने में मदद कर सकता है, जबकि विटामिन सी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।

वहीं बी कॉम्प्लेक्स विटामिन राइबोफ्लेविन और नियासिन का एक स्रोत हैं। जबकि विटामिन बी3या नियासिन धमनियों के निर्माण को रोकने और परिसंचरण में सुधार करने में मदद करता है, और उच्च रक्तचाप की रोकथाम और उपचार में भूमिका निभा सकता है। साथ ही यह त्वचा को सूरज की रोशनी से बचाने व रंग को उज्ज्वल करने में भी मदद करता है। इसके अलावा लिंगुड़ा हृदय, आंखों, लीवर यानी यकृत व मधुमेह के मरीजों के लिए भी अच्छा माना जाता है।

इसके अलावा माना जाता है कि इसकी जड़ को बारीक पीसकर लेप बनाकर जोंड़ों पर लगाने से गठिया की बीमारी भी दूर हो जाती हैं। और इसकी सब्जी खाने से मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत हो जाती हैं। भारत में इसे अधिकांशतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जबकि अमेरिका जैसे देशों में इसका उपयोग अचार के रूप में भी किया जाता है। उत्तराखंड में भी कुछ युवा लिंगुड़ा का अचार बना कर 250 रुपये प्रति किलो के भाव में बेच रहे हैं।

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यह भी पढ़ें Pahad ke Utpad : स्वास्थ्य व काम का समाचार: ‘बिच्छू’ की हर्बल चाय पीजिए कोरोना को दूर भगाइये, चाहें तो हर माह एक लाख रुपए भी कमाइये….

नवीन समाचार, अल्मोड़ा, 01 दिसम्बर 2020। (Pahad ke Utpad) जी हां, अब तक झाड़ियों में उपेक्षित मानी जाने वाली व बहुधा दंड देने के लिए प्रयोग में लाए जाने के लिए अभिशप्त ‘बिच्छू’ घास (कंडाली) के बारे में सिद्ध हो गया है कि यह कोरोना भगाने में बेहद कारगर है। नवस्थापित सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के जंतु विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं शोध प्रमुख डा. मुकेश सामन्त एवं शोधार्थी शोभा उप्रेती, सतीश पांडेय व ज्योति शंकर तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान रायपुर के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के डा. अवनीश कुमार के संयुक्त शोध में बिच्छू घास में 23 ऐसे यौगिकों के खोज की गई है जो कोरोना विषाणु से लड़ने में काफी कारगर हैं।

यह शोध स्विट्जरलैंड से प्रकाशित वैज्ञानिक शोध पत्रिका स्प्रिंगर नेचर के मॉलिक्यूलर डाइवर्सिटी में प्रकाशित भी हो गया है। वहीं यह चिंता भी नहीं कि बिच्छू घास से कोरोना को कैसे भगाया जाए। अल्मोड़ा जिले के ही एक युवा ने बिच्छू घास से हर्बल चाय तैयार कर ली है। यह हर्बल चाय कोरोना को भगाने के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है। इसीलिए इसे है। जिसे अमेजॉन से भी ऑर्डर मिल रहे हैं।
Pahad ke Utpad  Bichu Ghasडा.सामन्त ने बताया कि उन्होंने बिच्छू घास में पाए आने वाले 110 यौगिकों को मॉलिक्यूलर डॉकिंग विधि द्वारा स्क्रीनिंग की। जिसमें से 23 यौगिक ऐसे पाए गए जो मनुष्य के फेफड़ों में पाए जाने वाले एसीइ-2 रिसेप्टर से आबद्ध हो सकते हैं और कोरोना विषाणु के संक्रमण को रोक सकने में काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं। वर्तमान में इन यौगिकों को बिच्छू घास से निकालने का काम चल रहा है उसके बाद इन यौगिकों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल भी किया जा सकता है।

बहुत फायदेमंद है बिच्छू घास
उल्लेखनीय है कि बिच्छू घास एक प्रकार का जंगली पौधा है, इसे छूने से करंट जैसा अनुभव होता है और शरीर में करीब 24 घंटों तक झनझनाहट होती है। यह पौधा उत्तराखंड के सभी पर्वतीय इलाकों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Urtica dioica हैं। इस पौधे को कुमाऊ मंडल में सिसूंण व गढ़वाल मंडल में कंडाली के नाम से जाना जाता है इस पौधे से बिच्छू के डंक जैसा अनुभव होने के कारण ही इसे इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है।

इस पौधे के पत्तांे एव तनांे पर सुई की तरह हल्के कांटे भी होते है। जहाँ लोग इस पौधे को छूने से डरते हैं, तो इसका प्रयोग दंड देने के लिए भी होता है, वहीं इस पौधे के कई मेडिसिनल फायदे भी है। पर्वतीय लोग परंपरागत तौर पर सर्दियों में इसकी गर्म तासीर को देखते हुए इसकी सब्जी खाते हैं। ‘मडुवे की रोटी के साथ सिसूंण का साग’ परंपरागत तौर पर पहाड़ वासियों का भोजन रहा है। पहाडों पर चढ़ते-उतरते अक्सर लग जाने वाली चोटों व मोच में भी बिच्छू घास छूने पर रामबांण की तरह असर करती है, और पुराने दर्दों को भी दूर कर देती है।

बिच्छू घास में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए कई पोषक तत्व मौजूद हैं। इसका पर्वतीय लोगों को परंपरागत तौर पर पता है। बिच्छू घास में विटामिन ए और सी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए गाँव के बुजुर्ग सर्दी-खाँसी के साथ ही डायबिटीज, गठिया जैसे बीमारियों में भी में भी इसका इस्तेमाल करते हैं।

Pahad ke Utpad : दान सिंह अमेजॉन पर बिच्छू घास की हर्बल चाय ‘माउंटेन टी’ बेचकर हर माह कमा रहे एक लाख रुपए

अल्मोड़ा जिले के नौबाड़ा गाँव के रहने वाले 30 वर्षीय दान सिंह रौतेला ने बिच्छू घास के जरिए पहाड़ के युवाओं के लिए स्वरोजगार की नई राह दिखाई है। पिछले छह वर्षों से दिल्ली मेट्रो के साथ ठेके पर काम कर रहे दान सिंह को देशव्यापी लॉकडाउन के कारण काम मिलना बंद हुआ तो वह गाँव लौट आए और यहां उन्हांेने बिच्छू घास से “माउंटेन टी” नाम से ‘हर्बल चाय’ तैयार कर अपने रोजगार का बड़ा जरिया बना लिया है। माउंटेन टी आज अमेजन पर 1000 रुपए प्रति किलोग्राम की भाव पर उपलब्ध है। दिल्ली, बिहार, राजस्थान, हिमाचल जैसे कई राज्यों से दान सिंह को इसके हर महीने 100 से अधिक ऑर्डर मिल रहे हैं और वह इससे हर महीने एक लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं।
Herbal Tea Pahad ke Utpadदान सिंह बताते हैं, ‘गाँव के बुजुर्ग सर्दी-खाँसी में बिच्छू घास की चाय का प्रयोग करते थे। ऐसे में उन्होंने बिच्छू घास में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की क्षमता को देखकर इससे हर्बल टी बनाने का कार्य शुरू किया। कोरोना विषाणु से बचने के लिए बाजार में इस तरह के औषधीय उत्पादों की माँग बढ़ती देखकर बिच्छु घास से हर्बल टी बनाने का विचार आया।’ इसके बाद, मई 2020 में उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया। वे बताते हैं सर्दी-खाँसी, बुखार आदि में बिच्छू घास की हर्बल चाय का असर 1-2 घंटे में ही देखने को मिल जाता हैं, जिससे उन्हें लगभग एक लाख रुपए की कमाई होती है।

ऐसे बनाते हैं बिच्छू घास से हर्बल चाय
दान सिंह बिच्छू घास के डंडों को काटकर तीन दिनों तक धूप में सूखाने के बाद इसे हाथों से मसल देते हैं, ताकि तने से पत्तियां अलग हो जाए। बिच्छू घास से एक किलो हर्बल टी बनाने में 30-30 ग्राम लेमनग्रास, तुलसी, तेज पत्ता, अदरक आदि भी मिलाया जाता है, जिससे चाय का स्वाद बढ़ने के साथ ही इसमें पोषक तत्व भी बढ़ जाते हैं। इसमें किसी मशीन की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। केवल पैकिंग के लिए एक सीलिंग मशीन की जरूरत पड़ती है।

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यह भी पढ़ें : नैनीताल समाचार Pahad ke Utpad : 14 साल के बच्चे लगा रहे रहे थे ‘दम’, बिच्छू लगाकर उतारा नशा

वीन समाचार, नैनीताल, 12 मार्च 2020। शहर में नशे का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। अच्छे घरों के बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। बृहस्पतिवार पूर्वाह्न 11 बजे के लगभग नगर के विमल कुँज से कालाढूंगी जाने वाले पैदल मार्ग पर कुछ छोट छोटे बच्चों के सिगरेट पीने की सूचना पर अयारपाटा वार्ड के सभासद मनोज साह जगाती ने छापा मारा। श्री जगाती ने बताया कि वहां 4 बच्चे सिगरेट में चरस भरते पाए गए। बच्चों की उम्र 14 से 17 थी। इन बच्चों को शरीर मे झनझनाहट पैदा करने वाली विच्छू घास लगाई गई, और आगे से नशा न करने की सलाह दी गई।उल्लेखनीय है कि सभासद जगाती काफी समय से हर तरह के नशे के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं

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यह भी पढ़ें : समझाएंगे, सुधारेंगे, न सुधरे तो बिच्छू भी लगाएंगे-नैनीताल में ‘मिशन पहाड़’ पर निकले ‘हम पहाड़ी’…

-स्मैक के नशे, स्थानीय लोगों को उनका हक दिलाने के मुद्दे पर जुटे

नवीन समाचार, नैनीताल, 29 दिसंबर 2019। जिला व मंडल मुख्यालय में समय एक बार पुनः समय करवट लेता नजर आ रहा है। यहां स्थानीय लोग खुद को ‘हम पहाड़ी’ कहते हुए ‘मिशन पहाड़’ पर निकल पड़े हैं। इन लोगों में नगर के पत्रकार, चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता व विभिन्न राजनीतिक दलों से जुडे़ लोग अपने राजनीतिक, धार्मिक-जातीय-क्षेत्रीय विभेद त्यागकर जुटे हैं। उनका कहना है, वे स्मैक के नशे की विकराल हो चुकी सहित अन्य समस्याओं को लेकर पहाड़ के लोगों के हित के लिए एकजुट हुए हैं। पहले से लोगों को समझा कर सुधारेंगे, और जो नहीं सुधरे तो उसे बिच्छू घास लगाकर कड़ा दंड देने से भी नहीं हिचकेंगे।

नगर के पत्रकार कमल जगाती ने बताया कि उनके मन में काफी समय से स्मैक एवं स्थानीय लोगों के हितों पर हो रहे कुठाराघात को लेकर उद्वेग चल रहा था। उन्होंने सौरभ रावत नाम के युवक से यह बात साझा की तो वे भी उनके साथ अभियान में जुड़ गए। इसके बाद तो सभासद मनोज साह जगाती, चंदन जोशी, धीरज बिष्ट, कैलाश अधिकारी, डा. सरस्वती खेतवाल, डा. एमएस दुग्ताल, डा. केएस धामी, मनोचिकित्सक डा. पांडे सहित लोग अभियान से जुड़ते ही चले गए।

विगत चार दिसंबर से शुरू हुए इस अभियान के ह्वाट्सएप ग्रुप में वर्तमान में 156 सक्रिय लोग जुड़ चुके हैं, जिनमें से 80 लोग हमेशा, किसी भी समय किसी भी समस्या के समाधान के लिए सक्रिय रहते हैं। संस्था में एक ऐसा युवक भी शामिल है, जो 4 वर्ष से स्मैक का आदी था, और अब संस्था की पहल पर स्मैक को छोड़कर स्वयं इसके खिलाफ अभियान से जुड़ गया है।

रविवार को मिशन पहाड़ से जुड़े लोगों-चिकित्सकों ने बीडी पांडे जिला चिकित्सालय में लोगों को स्मैक की विभीषिका के बारे में दावा किया कि शहर में 70 फीसद बच्चों स्मैक ने जकड़ लिया है। साथ ही कई बच्चे फेवीबांड जैसे एड्हीसिव्स का सूंघ कर नशा कर रहे हैं। शहर में कई ऐसे लोग भी हैं जो बच्चों को एड्हीविस सुंधा कर उनसे भीख मंगवाते हैं। ऐसे लोगों को संस्था के लोग बिच्छू लगा चुके हैं। इसके अलावा शहर में मनमानी कर रहे बाइक-टैक्सी चलाने वालों को भी समझाया है।

जगाती ने कहा कि संस्था शहर में गलत तरीके से कार्य कर नगर के पर्यटन व्यवसाय को प्रदूषित कर रहे बाहरी लोगों को भी बाहर करने की पक्षधर है, ताकि शहर के मूल-ईमानदारी से काम करने वाले निवासी कार्य कर सकें और नगर की पर्यटन छवि भी बेहतर हो। उन्हें उनका हक वापस दिलाना भी संस्था का मकसद है। साथ ही संस्था का उद्देश्य संस्था के लोगों द्वारा आपस में छोटी-छोटी धनराशि मिलाकर पहाड़वासियों की छोटी-छोटी मदद करने का भी है।

शीघ्र संस्था के लोगों की बैठक कर संस्था का ठीक से ढांचा एवं भविष्य की रूपरेखा बनायी जाएगी। उन्होंने कहा कि कई स्मैक के आदी युवा स्मैक छोड़ना चाहते हैं, परंतु स्मैक तस्कर उन पर दबाव बनाए हुए हैं। संस्था स्मैक तस्करों के दबाव के आगे ऐसे युवाओं के साथ हर तरह से खड़ी होगी।

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