जानें, क्या है सोलह श्राद्धों का महत्व
दामोदर जोशी ‘देवांशु’, हल्द्वानी, 29 सितम्बर 2018। श्राद्ध, श्रद्धा का वार्षिक अनुष्ठान है। अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का एक पर्व है। वैसे तो प्रतिमाह पड़ने वाला कृष्ण पक्ष (पूर्णिमा के बाद की प्रथमा से लेकर अमावास्या तक) श्राद्ध पक्ष माना जाता है। वहीं कर्मकांडी और भीरु जन नित्य ही ब्रहम् मुहूर्त में उठ कर नित्य कर्म और स्नानोपरान्त की जाने वाली प्रातःकालीन संध्योपासना में अपने दिवंगत आत्मीय जनों का तर्पण भी अवश्य ही करते हैं तथापि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की महाभाद्री यानी पौर्णमासी से लेकर आश्विन कृष्ण पक्ष पितृविसर्जन अमावस्या तक सोलह श्राद्धों का अपना विशेष महत्व है। प्रत्येक गृहस्थ इस अवधि में पितरों की स्मृति में उनकी पुण्य तिथि पर श्राद्ध का आयोजन करता है। अष्टका-अन्वष्टका के श्राद्ध जहॉ विशेष महत्व रखते हैं वहीं अज्ञात पुण्य तिथि वालों के लिए पितृविसर्जन को श्राद्ध संपन्न किया जाता है। बिरादरी या परिवार में अशौच यानी शुद्ध न होने या सूतक (गोत्र या विरादरी में किसी की मृत्यु) होने की स्थिति में श्राद्ध वर्जित रहता है। श्राद्ध के अन्त में किसी कन्या को पातली खिलाने, गाय को गौग्रास देने तथा कौए को उसका भाग यानी हिस्सा श्रद्धा पूर्वक प्रदान किया जाता है। सभी पारिवारिक जन पितरपूजा के वक्त अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, और इसके बाद ही पितृ प्रसाद के रूप में सभी गृहस्थ भोजन ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि पितृ-प्रसाद के रूप में जितने अधिक लोगों को भोजन कराया जायेगा, पितृ-लोक में स्थित पितर उतनी ही अधिक संतुष्ठि-तृप्ति लाभ प्राप्त करते हैं और अपनी संतान को सुख, समृद्धि, विद्या, आयु आदि का अभीष्ठ वरदान व आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
श्राद्ध, पूजा, महत्व, श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है। श्राद्ध का अर्थ अपने देवों, परिवार, वंश परंपरा, संस्कृति और इष्ट के प्रति श्रद्धा रखना है। श्राद्धों के वक्त आपके पूर्वज किसी भी तरह घर आ सकते हैं तो किसी भी आने वाले को घर से बाहर न भगाएं। पितृ पक्ष में पशु पक्षियों को पानी और दाना दे- पितृ पक्ष के दौरान मांस-मदिरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। तर्पण में काले तिल और जो तथा दूध का का प्रोयग करें। पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन करवाएं । इस अवधि में भूलकर भी कुत्ते, बिल्ली, और गाय को भगाना या हानि नहीं पहुंचानी चाहिए।
ज्यादातर लोग अपने घरों में ही तर्पण करते हैं। श्राद्ध का अनुष्ठान करते समय दिवंगत प्राणी का नाम और उसके गोत्र का उच्चारण किया जाता है। हाथों में कुश की पैंती (उंगली में पहनने के लिए कुश का अंगूठी जैसा आकार बनाना) डालकर काले तिल से मिले हुए जल से पितरों को तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि एक तिल का दान बत्तीस सेर स्वर्ण तिलों के बराबर है। परिवार का उत्तराधिकारी या ज्येष्ठ पुत्र ही श्राद्ध करता है। जिसके घर में कोई पुरुष न हो, वहां स्त्रियां ही इस रिवाज को निभाती हैं। परिवार का अंतिम पुरुष सदस्य अपना श्राद्ध जीते जी करने के लिए स्वतंत्र माना गया है। संन्यासी वर्ग अपना श्राद्ध अपने जीवन में कर ही लेते हैं। श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। श्राद्ध का समय दोपहर साढे़ बारह बजे से एक बजे के बीच उपयुक्त माना गया है। यात्रा में जा रहे व्यक्ति, रोगी या निर्धन व्यक्ति को कच्चे अन्न से श्राद्ध करने की छूट दी गई है। कुछ लोग कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी अंश निकालते हैं। कहते हैं कि ये सभी जीव यम के काफी नजदीकी हैं और गाय वैतरणी पार कराने में सहायक है।
हिंदू धर्म ग्रंथों में मनुष्य के ऊपर तीन तरह के ऋण बताए गए हैं। देव, ऋषि तथा पितृ ऋण और इन सभी में पितृ ऋण के निवारण के लिए 15 दिनों के पितृ पक्ष में पितृ यज्ञ करने यानी श्राद्ध कर्म का वर्णन किया गया है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के समय को पितृ पक्ष कहा जाता है और इसी 15 दिनों के अंदर श्राद्ध कर्म कर पितरों को जलदान, पिंड दान की प्रक्रिया की जाती है। श्राद्ध पितृ पक्ष के अंतिम दिन यानी अमावस्या या महालया अमावस्या के रूप में जानी जाती है। महालया अमावस्या पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। जिन लोगों को अपने पूर्वजों या पितरों की पुण्यतिथि का सही दिन ज्ञात नहीं होता है। ऐसे पूर्वजों को इस दिन श्रद्धांजलि और भोजन समर्पित कर याद किया जाता है।
हिंदू धर्म शास्त्रों में इस बात का उल्लेख है कि पितृ पक्ष में तर्पण व श्राद्ध करने से व्यक्ति के पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं इससे घर के अंदर सुख शांति का वातावरण बनता है। इसके साथ ही समृद्धि भी होती है । इसके साथ यह भी मान्यता है कि अगर पितृ नाराज हो जाएं तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना भी करना होता है। पितरों के रुष्ट होने से धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का सामना मनुष्य को करना होता है। संतानहीनता के मामलों में यह कहा जाता है कि ज्योतिषी से कुंडली के पितृ पक्ष (घर) को दिखवा लें और उसका समन भी करें। ज्योतिषी पितृदोष को देखकर पितृ दोष शमन की व्यवस्था करा देते हैं। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करनी चाहिए। माना जाता है कि यमराज 15 दिनों के लिए प्रत्येक वर्ष श्राद्ध पक्ष दौरान सभी जीवो को मुक्त कर देते हैं। जिससे यह सभी जीव अपने स्वजनों के पास पहुंचकर तर्पण, भोजन इत्यादि ग्रहण कर पाते हैं। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि पितर ही अपने कुल की रक्षा करते हैं।