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December 26, 2024

Environment : इस दिवाली पहली बार नैनीताल-टिहरी सहित 8 शहरों के 23 स्थानों के प्रदूषण पर रहेगी नजर…

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Environment

नवीन समाचार, देहरादून, 3 नवंबर 2023 (Environment)। उत्तराखंड में दीपावली के पर्व पर वायु प्रदूषण पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हमेशा नजर बनाये रहता है। इस बार बोर्ड पहली बार नैनीताल और टिहरी सहित प्रदेश के 8 शहरों में 24 स्थानों में दीपावली पर होने वाले ध्वनि एवं वायु प्रदूषण तथा इस दौरान वातावरण में छाने वाले आर्सेनिक सहित अन्य खतरनाक रसायनों को मापने की व्यवस्था करेगा। इस संबंध में दिये गये निर्देशों के तहत एक शहर में तीन जगहों पर ध्वनि की मॉनिटरिंग की जाएगी।

Environment How to prevent air pollution bad effect during Diwali 2020 - शरीर पर नहीं  होगा प्रदूषण का बुरा असर, डॉक्टर ने बताए इस समस्या से निपटने के तरीकेउल्लेखनीय है कि प्रदूषण के दृष्टिकोण से हवा की गुणवत्ता मापने के लिए ‘एक्यूआई’ यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे समझा जाएगा कि किसी स्थान की हवा में कितना प्रदूषण है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव सुशांत कुमार पटनायक ने बताया कि प्रदेश के शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति काफी संतोषजनक है। लेकिन दीपावली के अवसर पर वायु एवं ध्वनि प्रदूषण की स्थिति बिगड़ सकती हैं।

इसलिये बोर्ड दीपावली से एक सप्ताह पूर्व से एक सप्ताह बाद तक यानी 5 नवंबर से 19 नवंबर तक प्रदेश के 8 स्थानों पर वायु एवं ध्वनि प्रदूषण की की मॉनिटरिंग करने जा रहा है। इनमें से 6 स्थानों-देहरादून शहर में घंटाघर और नेहरू कॉलोनी, ऋषिकेश व रुद्रपुर में नगर निगम परिसर, हरिद्वार में ऋषिकुल आयुर्वेदिक कॉलेज, काशीपुर में एलडी भट्ट उप जिला चिकित्सालय, हल्द्वानी में जल संस्थान कार्यालय के निकट आदि स्थानों पर पिछले वर्षों में भी यह व्यवस्था की जाती थी।

जबकि इस वर्ष टिहरी शहर में जिलाधिकारी कार्यालय-नगर पालिका परिषद परिसर एवं नैनीताल में नगर पालिका परिषद परिसर प्रदूषण मॉनीटरिंग स्टेशन की स्थापना जाएगी। श्री पटनायक ने बताया कि इसके अलावा बोर्ड अधिक आवाज के पटाखों की जगह ग्रीन यानी हरित पटाखों को बढ़ावा देने की पहल भी करेगा।

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यह भी पढ़ें (Environment) : पंगूट में बिल्डर के 4 मंजिला होटल के लिए बन रही सड़क के निर्माण पर रोक

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 12 सितंबर 2022 (Environment)। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने नैनीताल के निकट पंगूट में बिल्डर द्वारा किए जा रहे सड़क निर्माण पर रोक लगा दी है। साथ ही सरकार और वन विभाग के साथ ही बिल्डर को भी इस मामले में छह सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है।

(Environment) मामले के अनुसार बुधलाकोट के ग्राम प्रधान ललित चन्द्र ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि बिल्डर उपेंद्र जिंदल द्वारा पंगूट के आरक्षित वन क्षेत्र में सड़क का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें सरकारी मशीनरी से सभी सुविधाएं दी जा रही हैं। हाल ही में वन विभाग ने अनुमोदित हस्तनिर्मित मानचित्र और निर्देशांक को बिल्डर उपेंद्र जिंदल के अनुरूप अलग-अलग निर्देशांक के साथ एक डिजिटल मानचित्र में बदल दिया है।

(Environment) यह भी कहा है कि बिल्डर ने वहां आरक्षित वन क्षेत्र में एक चार मंजिला होटल का निर्माण किया है। उसके लिए ही सड़क बनाई जा रही है। जबकि प्राधिकरण ने बिल्डर के पक्ष में सड़क स्वीकृत नहीं की थी। याचिका में बिल्डर पर वन भूमि पर भी अतिक्रमण करने की कोशिश करने और बहुमूलय वन संपदा व पक्षियों को अपूरणीय क्षति पहुंचाने का आरोप लगाते हुए सड़क निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें (Environment) : सुबह का चिंताजनक समाचार : उत्तराखंड के हिमालय पर चढ़ रही है टिंबर लाइन, घट रही है बर्फ की चादर, मतलब बढ़ रहा है तापमान…

हिमालय पर निबंध हिंदी में – पढ़े यहाँ Himalaya Essay In Hindi – Hindi  Screen Officialनवीन समाचार, अल्मोड़ा, 27 जुलाई 2022 (Environment) । हिमालय में जलवायु परिवर्तन का असर हर ओर देखने को मिल रहा है। अल्मोड़ा के कोसी कटारमल स्थित जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण संस्थान की शोध रिपोर्ट बताती है कि तापमान बढ़ने से हिमालयी क्षेत्र में ‘ट्री लाइन’ हर वर्ष करीब 1.4 मीटर ऊपर की ओर खिसक रही है।

(Environment) मालूम हो कि ‘ट्री लाइन’ या टिंबर लाइन’ हिमालयी राज्यों में अलग-अलग ऊंचाई पर होती है। यह समुद्री सतह से ऊंचाई के आधार पर पेड़ों के उगने की अंतिम सीमा है। हिमालयी क्षेत्रों में ‘ट्री लाइन’ के बाद पेड़ नहीं उगते हैं। ग्लेशियरों के आसपास किसी भी तरह की वनस्पति नहीं पाई जाती है।

(Environment) इसका अर्थ यह है कि हिमालय सिकुड़ रहा है, और पेड़-पौधे हर वर्ष 1.4 मीटर ऊपर की ओर भी उग रहे हैं। ऐसा गर्मी बढ़ने की वजह से हो सकता है। लिहाजा इसे वैश्विक समस्या-ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव माना जा रहा है। इसका प्रभाव अपनी शीतल जलवायु के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड की हर गतिविधि पर लगातार बढ़ता जा सकता है।

(Environment) हिमालयी पर्यावरण संस्थान की ताजा शोध रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि भी कर रही है कि हिमालया में पर्यावरण खासा प्रभावित हुआ है। बताया गया है कि संस्थान ने तुंगनाथ में 32 सौ से 37 सौ मीटर की ऊंचाई पर यह शोध किया है। सफेद बुरांस पर 5 सालों तक किए गए इस शोध अध्ययन में पाया गया है कि ‘ट्री बेल्ट’ हर साल 1.4 मीटर ऊपरी इलाकों की ओर खिसक रही है।

(Environment) उत्तराखंड में ट्री लाइन या टिंबर लाइन करीब 2750 किमी लंबी है। शोधार्थी और हिमालयी पर्यावरण संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीसीएस नेगी ने बताया कि शोध में जो नतीजे आए हैं, उससे साफ साबित हो रहा है कि हिमालयी क्षेत्र में पारा लगातार चढ़ रहा है। इससे बर्फीला इलाका हर साल कम हो रहा है।

(Environment) पर्यावरण में हो रहे इस बदलाव का सबसे अधिक प्रभाव पश्चिमी हिमालय पर पड़ रहा है। यही वजह है कि बीते 20 सालों में पश्चिमी हिमालया में हर साल 0.11 डिग्री तापमान की वृद्धि हुई है। लगातार बढ़ रहे तापमान का असर सबसे अधिक पेड़-पौधों के पर पड़ रहा है। यही नहीं बढ़ता पारा चरागाह और जड़ी-बूटियों के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है।

(Environment) उल्लेखनीय है कि ग्लेशियर्स के आस-पास किसी भी प्रकार के पेड़-पोधें नही होते हैं लेकिन शोध अध्ययन में जो नतीजे सामने आए हैं, उससे साफ है कि बर्फ की चादर साल दर साल कम हो रही है। ऐसे में हिमालय को बचाने के गंभीर प्रयास किये जाने बेहद जरूरी होते जा रहे हैं। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : नैनीताल (Environment) : हरेला पर्व पर निकलेगा पर्यावरण शांति मार्च, रोपे जाएंगे हाइड्रेंजिया व चेरी ब्लॉसम के फूलदार पौधे

हरेला पर्व पर निकलेगा पर्यावरण शांति मार्चडॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 14 जुलाई 2022 (Environment) । रोटरी क्लब नैनीताल के द्वारा हरेला त्योहार के उपलक्ष्य में 16 जुलाई को एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। क्लब के यूपी से लेकर उत्तराखंड तक के बड़े कार्यक्षेत्र वाले डिस्ट्रिक्ट 3110 के पर्यावरण समिति के अध्यक्ष विक्रम स्याल ने बताया कि शनिवार को सुबह 9 बजे से डीएसए मैदान के बास्केटबॉल कोर्ट में नगर के विभिन्न विद्यालयों के करीब 200 छात्र-छात्राएं एवं क्लब के सदस्य जुटेंगे और मॉल रोड होते हुए कैनेडी पार्क तक पैदल पर्यावरण शांति मार्च निकालेंगे।

(Environment) आगे कैनेडी पार्क में क्लब के द्वारा ही स्थापित जॉगर्स पार्क एवं खुले जिम के पास नगर के प्रकृति प्रेमी यशपाल रावत की संस्था नासा के सदस्यों के साथ मिलकर हाइड्रेंजिया के 250 पौधे तथा पद्म प्रजाति के चेरी बलसम आदि फूलदार पौधे लगाए जाएंगे, तथा उपस्थित लोगों को हरेला त्योहार के महत्व से अवगत कराया जाएगा। उन्होंनेे उम्मीद जताई कि कुछ ही समय में कैनेडी पार्क रंग-बिरंगे फूलों से महकेगा और अपनी नई पहचान बनाएगा।

(Environment) उन्होंने बताया कि अब तक सेंट जोसेफ कॉलेज से 30, सेंट मैरी कॉन्वेंट की 70, मोहन लाल साह बाल विद्या मंदिर की 30, सैनिक स्कूल के 30 सहित बिड़ला विद्या मंदिर, सनवाल स्कूल और राजकीय बालिका इंटर कॉलेज के छात्र-छात्राओं के प्रतिभाग करने की संभावना है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें (Environment) : बड़ा खतरा: वर्ष 2100 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि बंजर हो चुकी होगी…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 जून 2022 (Environment) । कुमाऊं विश्वविद्यालय के शोध एवं प्रसार निदेशक प्रो ललित तिवारी ने सोमवार को मानव संसाधन विकास केंद्र द्वारा आयोजित फैकल्टी इंडक्शन कार्यक्रम में दो व्याख्यान दिए। इस अवसर पर प्रो. तिवारी ने कहा कि जैव विविधता जीवन का मूल आधार है। समस्त जीवों का जीवन इससे जुड़ा हुआ है।

(Environment) उन्होंने कहा कि अगले नौ वर्ष में यानी 2100 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि बंजर हो चुकी होगी। इसे पुनर्जीवित किया जाए तो तापमान में 2 डिग्री सेल्सिसय की वृद्धि रुक सकती है। उन्होंने कहा कि जैव विविधता प्रतिवर्ष 90 बिलियन डॉलर के कार्बन को सोखती है और 36 बिलियन डॉलर मूल्य का तो भोजन एवं दवाइयां देती है।

(Environment) उन्होंने कहा कि भारत में 20.55 फीसद क्षेत्र में तथा 16 प्रकार के वन पाए जाते है, जबकि इनका एक तिहाई यानी 33 फीसद होना जरूरी है। उत्तराखंड में 41 फीसद में वन, 13 फीसद में बुग्याल, 11 फीसद में बर्फ व ग्लेशियर हैं। बताया कि उत्तराखंड में एक से दो हजार मीटर तक वनों का घनत्व सर्वाधिक है। पिथौरागढ़ में सबसे ज्यादा 2316 पौधों की प्रजातियां मिलती हैं। यहां के 13.79 फीसद भाग को संरक्षित क्षेत्र में रखा गया है।

(Environment) औषधीय पौधो का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि इनका उल्लेख सुमेरियन सभ्यता से मिलता है सुसूत्र संहिता में 700 प्रजातियों के औषधीय पौधे होने का जिक्र मिलता है। वर्तमान में भारत में 7500 व उत्तराखंड में 701 औषधीय पौधों की प्रजातियां मिलती है। यह क्षेत्र 2050 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी बना सकते है तथा इससे 10 करोड़ लोग लाभान्वित हो सकते हैं। इसके लिए उत्पादन, नियोजन व विपणन की प्रक्रिया को मजबूत करना होगा। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें (Environment) : पंगोट में ‘तितली त्यार’ का आयोजन

Titli Tyar - Butterfly Festival at Corbett, Ramnagar - Odin Tours | Luxury  Tours in India Nepal Bhutan Myanmar | Travel Agency in Dwarka Delhiडॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 19 सितंबर 2021 (Environment) । मुख्यालय के निकटवर्ती पंगोट क्षेत्र में सोमवार को टाइगर फाउंडेशन ऑर्गनाइजेशन के तत्वावधान में ‘तितली त्यार’ यानी तितलियों के त्योहार का आयोजन किया जा रहा है। आयोजक मंडल के मनीष कुमार व शिवम शर्मा ने बताया कि यह आयोजन पूर्व में जिम कॉर्बेट पार्क में आयोजित होता था। अब इसे पहली बार नैनीताल के पास किया जा रहा है।

(Environment) इस कार्यक्रम में तितलियों की रंग-बिरंगी दुनिया पर चर्चा होगी। इसमें तितली विशेषज्ञ सोहेल मदान, शरन वेंकटेश, मुकुल आजाद व गौरव खुल्बे तितलियों पर चर्चा करेंगे। इस दौरान कॉर्बेट क्षेत्र में पाई जाने वाली तितलियों के चित्र, तितलियों को आमंत्रित करने के लिए उनके पसंदीदा पौधों के बगीचे लगाने, होटलों के खाद्य अवशेष से कंपोस्ट खाद बनाने, बीज बम तैयार करने, मैक्रो यानी बहुत छोटे कीट-पतंगों या वस्तुओं की फोटोग्राफी, तितलियों पर फिल्में एवं तितलियों से संबंधित कहानियों आदि के कार्यक्रम होंगे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें (Environment) : 45 साल तक पर्यावरण को प्रदूषित करती रह सकती है प्लास्टिक की एक बोतल

-एनसीसी कैडेटों को एकल प्रयोग प्लास्टिक के भयावह दुष्प्रभावों से अवगत कराया
500ML Plastic Water Bottle, for Beverage, Rs 7 /piece Hi Tech Engineering  Works | ID: 15023138333डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 10 अगस्त 2021(Environment) । 5 यूके नेवल यूनिट एनसीसी नैनीताल के तत्वाधान में सोमवार को स्वतंत्रता दिवस-221 के कार्यक्रमों की श्रृंखला में ’से नो टू सिंगल यूज प्लास्टिक’ यानी ‘एकल प्रयोग प्लास्टिक को नां’ विषय पर ऑनलाइन वेबीनार का आयोजन किया गया ।

(Environment) वेबीनार में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए सब लेफ्टिनेंट डॉ. रीतेश साह ने एनसीसी कैडेटों को बताया कि एक बार में प्रयोग होने वाले प्लास्टिक का निर्माण जीवाश्म ईंधन पर आधारित रसायनों से होता है, यह पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।

(Environment) उन्होंने बताया कि आजकल प्रयोग की जाने वाली पानी की बोतल पृथ्वी पर लगभग 45 साल तक ऐसे ही पड़ी रह कर पर्यावरण को प्रदूषित करती रह सकती है। एकल प्रयोग प्लास्टिक के कारण प्रकृति पर कार्बन दबाव भी अत्यधिक बढ़ता जा रहा है जो उन्हें पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या उत्पन्न कर रहा है।

(Environment) इसके इस्तेमाल के कारण जलीय जीव, जंतु, पक्षी व मानव जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इंसानों में इसकी वजह से अस्थमा, कैंसर, लीवर, किडनी, मस्तिष्क, हृदय रोग व मधुमेह आदि बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। उन्होंने कहा कि समझदारी इसी में है कि हम एकल प्रयोग प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करें व दूसरों को भी जागरूक करें।

(Environment) इस अवसर पर यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर कमांडर डीके सिंह ने कैडेटों का आह्वान किया कि वह अपनी छोटी-छोटी आदतों को बदलकर प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दें।

(Environment) बताया गया कि संगोष्ठी में प्रतिभाग कर रहे सभी कैडेटों को ऑनलाइन प्रमाण पत्र भी प्रदान किए जाएंगे। पेट्टी ऑफीसर सुनीत बलोनी ने भी विचार रखे। जबकि कार्यक्रम में 5 यूके नेवल, 79 यूके, 77 यूके, 8 यूके बटालियन एनसीसी पिथौरागढ़, 24 यूके गर्ल्स बटालियन अल्मोड़ा तथा सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के 1 से अधिक कैडेटों ने प्रतिभाग किया।

(Environment) कार्यक्रम का समन्वयन व संचालन पेट्टी ऑफीसर जयभान ने किया। वेबिनार में प्रशिक्षण अधिकारी कर्नल हितेश काला, मेजर प्रो.एचसीएस बिष्ट, पेट्टी ऑफीसर सतीश व पंकज ओली तथा हेमंत आदि शामिल रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें (Environment) : सड़क निर्माण के मलबे के सही निस्तारण न होने पर केंद्र व राज्य प्रदूषण बोर्ड सहित कई को नोटिस

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 14 जुलाई 2021 (Environment) । उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने राज्य में किये जा रहे सड़को का निर्माण के दौरान उनका मलबा जंगलांे, सड़क के किनारों, खेतो, व नदियों में डाले जाने के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई की।

(Environment) न्यायालय ने इस मामले में लोनिवि व वन विभाग के सचिव, मुख्य वन संरक्षक, रूरल रोड एजेंसी उत्तराखंड, पीएमजीएसवाई, सड़क परिवहन मंत्रालय भारत सरकार, बीआरओ, केंद्र व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण-एनडीआरएफ को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई के लिए चार सप्ताह बाद की तिथि नियत की गई है।

(Environment) मामले के अनुसार हल्द्वानी निवासी अमित खोलिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य के पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण काय तय समय के भीतर पूरा नही हो रहे हैं। सड़क निर्माण के दौरान निर्माण एजेंसी के द्वारा निस्तारण का पैंसा बचाने के लिए मलबा नदियों, नालों, जंगलों और आसपास के क्षेत्रों व गांवों के खेतों में डाला जा रहा है जिससे पर्यावरण को नुकसान होने के साथ ही नदियों में मलबा जमा होने से बाढ़ जैसे हालात पैदा हो सकते है।

कुछ दिन पहले वर्षात होने के कारण कई गांवो में इन सड़कों का मलबा घुस गया। फलस्वरूप नाले बंद हो गए और काश्तकारों के खेत बह गए। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : हिमालयी राज्यों पर मंडरा रहे इस बड़े खतरे की वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

हिमालयी राज्यों पर मंडरा रहा है ये बड़ा खतरा, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनीअंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘एन्वायरमेंटल रिसर्च लेटर्स’ में वैज्ञानिकों ने भारत के बड़े भू-भाग के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। चेतावनी दी है कि बढ़ती गर्मी एवं उमस के संयुक्त प्रभाव से भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी बंगाल, दार्जिलिंग, सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश) 21वीं सदी के अंत तक हीट स्ट्रेस से प्रभावित होने वाला दुनिया का सबसे प्रमुख क्षेत्र होगा।

कोलंबिया विश्वविद्यालय की ‘नासा गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज एवं सेंटर फार इंटरनेशनल अर्थ साइंस इन्फार्मेशन नेटवर्क’ के वैज्ञानिकों के जनवरी 2018 में प्रकाशित शोध पत्र में बढ़ती गर्मी का सबसे बड़ा खतरा हिमालयी पर्वत श्रंखला को बताया गया है। हिमालय भले ही एशिया के आठ देशों की सीमाओं तक विस्तार लिए हुए है, लेकिन सबसे अधिक खतरा भारतीय हिमालय पर ही मंडरा रहा है।

ऐसी संभावना भी है कि सदी के मध्य अथवा उत्तरार्ध में गर्माहट सहन करने की मानव क्षमता ही बेहद कम हो जाएगी। गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. वीर सिंह का कहना है कि शोध हमें चेता रहे है। हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन गंभीर चेतावनी है। इस पर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो बाद में बहुत देर हो जाएगी।

हैरान करने वाले आंकड़े

वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़कर 410 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) हो चुकी है, जो कि खतरे की घंटी है। यह 18वीं शताब्दी के अंत में 280 पीपीएम मापी गई थी। इस गर्माहट के सबसे अधिक शिकार हिमालय हो रहा हैं।

तप रहा है हिमालय 

जीबी पंत विवि के शोधार्थी श्रेष्ठा, गौतम एवं बावा के शोधपत्र के अनुसार 1982 से 2006 तक हिमालय का तापक्रम 1.5 डिग्री सेल्सियस अर्थात 0.6 डिग्री प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा, जो अत्यंत गंभीर है। उत्तराखंड में सार्वभौमिक गर्माहट की स्थानीय हलचल खतरे की ओर संकेत करती है। वर्ष 1911 में यहां का औसत तापमान 21.0 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता था, जो अब बढ़कर 23.5 डिग्री सेल्सियस हो गया है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

तीन लाख करोड़ की पर्यावरणीय सेवाएं दे रहा है उत्तराखंड
  • पर्यावरण संरक्षण के जरिये देश की आबोहवा को शुद्ध और सांस लेने लायक बनाने में उत्तराखंड अहम योगदान दे रहा है उत्तराखंड

खुद तकलीफें झेलकर पर्यावरण संरक्षण के जरिये देश की आबोहवा को शुद्ध और सांस लेने लायक बनाने में उत्तराखंड अहम योगदान दे रहा है। नियोजन विभाग की ओर से इको सिस्टम सर्विसेज को लेकर कराए जा रहे अध्ययन के प्रारंभिक आकलन को देखें तो विषम भूगोल वाला यह राज्य करीब तीन लाख करोड़ की पर्यावरणीय सेवाएं दे रहा है। इसमें अकेले यहां के वनों का योगदान 98 हजार करोड़ के लगभग है।

71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगलों को सहेज पर्यावरण संरक्षण यहां की परंपरा का हिस्सा है। यही वजह भी है कि यहां के जंगल अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं। कुल भूभाग का लगभग 46 फीसद फॉरेस्ट कवर इसकी तस्दीक भी करता है। इससे न सिर्फ पहाड़ महफूज हैं, बल्कि पर्यावरण के मुख्य कारक हवा, मिट्टी व पानी भी। यही नहीं, गंगा-यमुना जैसी जीवनदायिनी नदियों का उद्गम भी उत्तराखंड ही है।

हर साल ही वर्षाकाल में बड़े पैमाने पर यहां की नदियां अपने साथ बहाकर ले जाने वाली करोड़ों टन मिट्टी से निचले इलाकों को उपजाऊ माटी देती आ रही है। ऐसे में सवाल अक्सर उठता है कि आखिर यह राज्य सालाना कितने की पर्यावरणीय सेवाएं दे रहा है। पूर्व में इसे लेकर 107 बिलियन रुपये का अनुमान लगाया गया था, लेकिन बाद में राज्य सरकार ने खुद इसका आकलन कराने का निश्चय किया।

नियोजन विभाग के जरिये इको सिस्टम सर्विसेज को लेकर सालभर से यह अध्ययन चल रहा है। अब इसके प्रारंभिक आंकड़े सामने आने लगे हैं। इको सिस्टम सर्विसेज को लेकर चल रहे अध्ययन के नोडल अधिकारी मनोज पंत के मुताबिक राज्य के वनों से ही अकेले 98 हजार करोड़ रुपये की सालाना पर्यावरणीय सेवाएं मिलने का अनुमान है।

जंगलों के साथ ही नदी, सॉयल समेत अन्य बिंदुओं को भी शामिल कर लिया जाए तो इन सेवाओं का मोल लगभग तीन लाख करोड़ से अधिक बैठेगा। उन्होंने कहा कि अभी अध्ययन चल रहा है और फाइनल रिपोर्ट आने पर ही पर्यावरणीय सेवाओं के मोल की असल तस्वीर सामने आएगी। 

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