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October 7, 2024

बड़ा समाचार : उत्तराखंड के कुमाऊं (Kumaon) में निकलेगा खरबों रुपए का सोना, निकालने को हुआ करार, हो जायेंगे मालामाल…

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Kumaon

Uttarakhand Rajniti

नवीन समाचार, पिथौरागढ़, 3 नवंबर 2023 (Kumaon) । उत्तराखंड में एक ऐसी ही जगह है, जहां की धरती में खरबों का सोना है। इस सोने को अब निकालने की भी कवायद तेज हो गई है। पाल राजवंश की राजधानी रहे अस्कोट क्षेत्र में धरती के नीचे दबे सोने को निकलने के लिए हैदराबाद की कंपनी से करार कर लिया गया है। केंद्र सरकार से प्रस्ताव के विस्तार की स्वीकृति का इंतजार है।डीडीहाट क्षेत्र के विधायक एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल ने पिथौरागढ़ में मीडिया से बातचीत में यह जानकारी दी।

कनाडा की कंपनी के साथ हुआ था गोल्ड माइन समझौता : उन्होंने कहा कि पूर्व में कराए गए भूगर्भीय सर्वेक्षण में अस्कोट से जौलजीबी और ओगला से भागीचौरा तक करीब 15 किमी. क्षेत्र के भूगर्भ में सोना, तांबा, जस्ता और शीशा होने की पुष्टि हो चुकी है। कनाडा की कंपनी ने भी सर्वे किया था।

धरती के गर्भ से सोना निकाले जाने के लिए पूर्व में कनाडा की कंपनी के साथ गोल्ड माइन समझौता हुआ था। कंपनी ने क्षेत्र में कई सुरंग तैयार कर सर्वे पूरा कर लिया था। लेकिन, इस बीच अस्कोट अभ्यारण्य का पेंच फंस गया था। जिसके चलते कंपनी को अपना काम बंद करना पड़ा। उसके बाद हैदराबाद की कंपनी के साथ करार हुआ।

खुदाई हुई तो भारत हो जाएगा मालामाल : बिशन सिंह चुफाल ने बताया कि अस्कोट अभ्यारण्य का पेंच हटने के बाद हैदराबाद की एक कंपनी ने सोना निकालने में रुचि दिखाई है। कंपनी के साथ करार हो चुका है। पूर्व में सोना, जस्ता, शीशा आदि खनिज निकालने के लिए जो लीज स्वीकृत हुई थी, उसके विस्तार का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया गया है। जल्द ही इसे स्वीकृति मिल जाने की उम्मीद है। खनन कार्य शुरू होते ही क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव आयेगा।’

आने वाला समय पिथौरागढ़ जनपद का होगा : पूर्व कैबिनेट मंत्री बिशन सिंह चुफाल ने कहा कि आने वाला समय पिथौरागढ़ जनपद का होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदि कैलास और ॐ पर्वत पहुंचने के बाद अब बड़ी तादाद में पर्यटक यहां आने लगे हैं। गढ़वाल में चारधाम यात्रा से जिस तरह हरिद्वार से बद्रीनाथ, केदारनाथ तक के लोगों को फायदा मिला है, उसी तरह आदि कैलास से पूरे जनपद के लोग लाभान्वित होंगे। उन्होंने कहा कि तवाघाट-लिपुलेख सड़क को बेहतर बनाने के लिए भी कार्ययोजना बन रही है।

यह भी पढ़ें : प्रधानमंत्री मोदी की आज की 1 पोस्ट उत्तराखंड के कुमाऊं (Kumaon) मंडल को कर देगी समृद्ध ? देशवासियों से किया बड़ा आह्वान

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 14 अक्टूबर 2023। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गत 12 अक्टूबर को उत्तराखंड के कुमाऊं (Kumaon) मंडल की यात्रा पर आये थे। इसके दो दिन बाद प्रधानमंत्री ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर जो लिखा है, वह उत्तराखंड के कुमाऊं (Kumaon) मंडल को समृद्ध कर देगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

प्रधानमंत्री मोदी ने जो लिखा है, उसका हिंदी अनुवाद है, ‘यदि कोई मुझसे पूछे – यदि आपको उत्तराखंड में एक जगह अवश्य देखनी चाहिए तो वह कौन सी जगह होगी, तो मैं कहूंगा कि आपको राज्य के कुमाऊं (Kumaon) क्षेत्र में पार्वती कुंड और जागेश्वर मंदिर अवश्य देखने चाहिए। प्राकृतिक सुंदरता और दिव्यता आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।

बेशक, उत्तराखंड में घूमने लायक कई प्रसिद्ध जगहें हैं और मैंने भी अक्सर राज्य का दौरा किया है। इसमें केदारनाथ और बद्रीनाथ के पवित्र स्थान शामिल हैं, जो सबसे यादगार अनुभव हैं। लेकिन, कई वर्षों के बाद पार्वती कुंड और जागेश्वर मंदिर में लौटना विशेष रहा।’

Kumaonभूलना न होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबसे उत्तराखंड के चार धाम यानी बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री को प्रमोट किया है, तब के बाद से चार धाम में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है। इस बार यहां 50 लाख के करीब श्रद्धालु तीर्थयात्री पहुंच चुके हैं। ऐसे ही यदि प्रधानमंत्री अब कुमाऊं (Kumaon) मंडल के दो स्थानों की बात कर रहे हैं तो इसके भी दूरगामी सकारात्मक परिणाम होने की पूरी उम्मीद की जा सकती है।

Kumaon Pm Modi In Jageshwar Dham:पीएम ने जागेश्वर धाम पहुंचकर की पूजा-अर्चना,  भगवान जागनाथ का लिया आशीर्वाद - Pm Narendra Modi Reached Jageshwar Dham And  Offered Prayers - Amar Ujala Hindi News Liveगौरतलब है कि जागेश्वर धाम की गणना देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में होती है। कहा जाता है कि यहीं से देश में महादेव शिव की लिंग स्वरूप में पूजा शुरू हुई थी। यहां महादेव शिव की बाल एवं वृद्ध स्वरूपों में पूजा की जाती है। यहां शिव ने स्वयं सप्त ऋषियों के साथ तपस्या की थी। किंतु आज भी जागेश्वर उत्तराखंड के बाहर देशवासियों के लिये अन्जान स्थान है।

इसी तरह पार्वती कुंड, जहां भारत में स्थित महादेव के घर कहे जाने वाले कैलाश पर्वत की प्रतिकृति छोटा या आदि कैलाश के साक्षात दर्शन होते है। इन धार्मिक महत्व के बड़े स्थान से भी देशवासी अन्जान हैं। जबकि देश में ही महादेव से जुड़े अन्य सभी ज्योर्तिलिगों सहित अन्य धार्मिक स्थलों में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

ऐसे में यदि प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर देश-दुनिया के श्रद्धालु जागेश्वर व पार्वती कुंड का रुख करते हैं तो इससे पूरे कुमाऊं (Kumaon) मंडल को आर्थिक तौर पर नया बूस्ट और यहां आने वाले श्रद्धालुओं को उत्तराखंड के कुमाऊं (Kumaon) मंडल को देखने का एक नया नजरिया मिल सकता है, और यह यहां के निवासियों के लिये विकास के नये द्वार खोलने वाला साबित हो सकता है।

उल्लेखनीय है इन दो स्थानों के अलावा भी प्रधानमंत्री मोदी ने कुमाऊं (Kumaon) मंडल के गंगोलीहाट, गोलू देवता, कैंची धाम, नंदा देवी, कटारमल, नारायण आश्रम व कसारदेवी आदि कई अन्य धार्मिक स्थलों के नाम भी पिथौरागढ़ में जनसभा को संबोधित करते हुये लिये थे। इन स्थानों का भी प्रधानमंत्री के संज्ञान में होना भी राज्य बने 23 वर्ष होने के बाद भी उपेक्षित से कुमाऊं (Kumaon) मंडल वासियों में भविष्य की नयी आशायें जगाने वाला हो सकता है।

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यह भी पढ़ें : कुमाऊं (Kumaon) : पाषाण युग से यायावरी का केंद्र रहा है कुमाऊं (Kumaon)

-पाषाणयुगीन हस्तकला को संजोए लखु उडियार से लेकर रामायण व महाभारत काल में हनुमान व पांडवों से लेकर प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग, आदि गुरु शंकराचार्य, राजर्षि विवेकानंद, महात्मा गांधी व रवींद्रनाथ टैगोर सहित अनेकानेक ख्याति प्राप्त जनों के कदम पड़े

-इनके पथों को भी विकसित किया जाए तो लग सकते हैं कुमाऊं (Kumaon) के पर्यटन को पंख
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, उत्तराखंड का प्राकृतिक व सांस्कृतिक तौर पर समृद्ध कुमाऊं (Kumaon) अंचल युग-युगों से प्रकृति की गोद में ज्ञान और शांति की तलाश में आने वाले लोगों की सैरगाह और पर्यटन के लिए पहली पसंद रहा है। पाषाण युग की हस्तकला आज भी यहां अल्मोडा के पास लखु उडियार नाम के स्थान पर सुरक्षित है जो उस दौर में भी यहां मानव कदमों के पड़ने और उनकी कला प्रियता के साक्षी हैं।

त्रेता युग में रामायण के कई चरित्र व महाभारत काल में कौरव-पांडवों से लेकर आगे प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग, आदि गुरु शंकराचार्य, राजर्षि स्वामी विवेकानंद, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, घुमक्कड़ी साहित्य लेखक राहुल सांस्कृत्यायन, सुप्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा सहित अनेकानेक ख्याति प्राप्त जनों के कदम यहां पड़े।

वहीं स्कंद पुराण के मानसखंड में देवभूमि के रूप में वर्णित अनेकों धार्मिक महत्व के स्थलों से लेकर दुनिया के सबसे ऊंचे श्वेत-धवल नगाधिराज हिमालय पर्वत के अलग-अलग कोणों से सुंदरता के साथ दर्शन कराने वाले और अपनी आबोहवा से बीमार मानवों को प्राकृतिक उपचार से नवयौवन प्रदान करने तथा समृद्ध जैव विविधता और वन्य जीवों से परिपूर्ण जिम कार्बेट पार्क व अस्कोट मृग विहार जैसी अनेकों खूबियों वाले यहां के सुंदर पर्यटन स्थल मानव ही नहीं, पक्षियों को भी आकर्षित करते हैं, और इस कारण पक्षियों के भी पसंदीदा प्रवास स्थल हैं।

कुमाऊं (Kumaon) में इनके अलावा भी अपनी अलग वास्तुकला, सदाबहार फल-फूल, समृद्ध जैव विविधता के साथ ईको-टूरिज्म तथा ऐसी अनेकों विशिष्टताएं (आधुनिक पर्यटन के लिहाज से यूएसपी) हैं कि इनका जरा भी प्रयोग किया जाए तो कुमाऊं (Kumaon) में वर्ष भर कल्पना से भी अधिक संख्या में पर्यटक आ सकते हैं।

पाषाण युग से बात शुरू करें तो अल्मोड़ा से आगे पेटशाल के पास सुयाल नदी के तट पर एक लाख गुफाओं (उडियारों) का समग्र बताए जाने वाले स्थान उस दौर के आदि मानवों द्वारा विशाल चट्टान पर निर्मित भित्ति चित्रों से आकर्षित और आश्चर्यचकित करता है। वहीं त्रेता युग में यहीं दूनागिरि के पास महाबली हनुमान को श्रीराम के अनुज लक्ष्मण को बचाने के लिए संजीवनी बूटी मिली थी।

यहीं सीताबनी-रामनगर में सीता को बनवास के दौरान महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में आश्रय मिला था। यहीं द्वापर युग में पांडवों के कुमाऊं (Kumaon) आगमन की पुष्टि भीमताल, पांडुखोला, पनुवानौला, पांडुथल व कैरूथल जैसे अनेक स्थानों के नामों से होती है। वहीं कुमाऊं (Kumaon) का काशीपुर क्षेत्र न केवल चीनी चात्री ह्वेनसांग और फाहियान के पथ का पाथेय रहा वरन यहां मौजूद प्राचीन गोविषाण किला व पंचायतन मंदिर क्षेत्र पूरी बौद्ध कालीन पुरातात्विक विरासत का गवाह रहा है।

इधर हल्द्वानी के पास गहन नीरव वन में स्थित कालीचौड़ मंदिर आदि गुरु शंकराचार्य का उत्तराखंड में प्रथम पड़ाव रहा है, और यहीं पास ही भुजियाघाट से अंदर जंगल में महर्षि मार्कंडेय के आश्रम के अवेशेष आज भी मौजूद हैं। एक साधारण से भिक्षुक नरेंद्र को एक अणु में ब्रह्मांड का दर्शन कराकर राजर्षि विवेकानंद बनाने वाला पीपल का ‘बोधिवृक्ष” आज भी यहां हल्द्वानी-अल्मोड़ा रोड पर काकड़ीघाट में मौजूद है।

यहां नैनीताल आकर देश को लूटने व राज करने वाले अंग्रेजों को भी अपना घर ‘छोटी बिलायत” नजर आया, तो यहीं के ‘मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं (Kumaon)” की वजह से एक शिकारी से अंतराष्ट्रीय पर्यावरणविद् व लेखक बने जिम कार्बेट के नाम पर रामनगर में स्थापित एशिया का पहला जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और ब्याघ्र अभयारण्य है।

यहीं कौसानी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ‘भारत के स्विटजरलेंड’ के दर्शन हुए और  साहित्यकार डा. धर्मवीर भारती को भी यहीं ‘ठेले पर हिमालय” दिखा, तो गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को यहां रामगढ़ के टैगोर टॉप में और सुप्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा को पास ही उमागढ़ में साहित्य साधना के लिए उपयुक्त ठौर मिला।

यहीं राजुला-मालूशाही और उत्तराखंड की रक्तहीन क्रांति की धरती, कुमाऊं (Kumaon) की काशीबागेश्वर, देश का सबसे बड़ा मंदिर समूह-जागेश्वर, नैना देवी व पूर्णागिरि शक्तिपीठ, सारे संसार से इतर पंचाचूली की गोद में ‘सात संसार-एक मुनस्यार’ कहा जाने वाला मुन्स्यारी,

प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही चाय के बागानों के लिए मशहूर चौकोड़ी-बेरीनाग, उत्तराखंड का कश्मीर-पिथौरागढ़, संस्कृति के साथ ही चंद व कत्यूरी शासकों की राजधानी व स्थापत्य कला के केद्र-चंपावत, अल्मोड़ा, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत सहेजे और स्याल्दे बिखौती मेले के लिए प्रसिद्ध-द्वाराहाट, कोणार्क से भी पुराना बताया जाने वाला अथवा समकालीन कटारमल सूर्य मंदिर,

अपनी खूबसूरत लोकेशन के लिए 60 के दशक में फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद रहा रानीखेत, जैव विविधता के साथ ही हिमालय और सूर्यास्त के दृश्यों के लिए विख्यात मुक्तेश्वर और बिन्सर, सातताल, नल दमयंती ताल, नौकुचियाताल, खुर्पापाल, सरियाताल, हरीशताल व लोहाखामताल आदि झीलों का समग्र-नैनीताल, पक्षी प्रेमियों के लिए ‘इंटरनेशनल बर्ड डेस्टीनेशन’ के रूप में विकसित होने जा रहा किलवरी-पंगोट-विनायक क्षेत्र, आज भी अनूठे पत्थर युद्ध-बग्वाल से पाषाणयुग की याद दिलाने वाला देवीधूरा

नागों की भूमि-बेरीनाग, न्याय के देवी-देवताओं के स्थान घोड़ाखाल, चितई और कोटगाड़ी, प्रसिद्ध वैष्णो देवी शक्तिपीठ सदृश रामायण-महाभारतकालीन द्रोणगिरि वैष्णवी शक्तिपीठ-दूनागिरि, बाबा नींब करौरी का कैंची धाम, हैड़ाखान बाबा के हैड़ाखान व चिलियानौला, सोमवारी बाबा के धारी आश्रम तथा मायावती अद्वैत व नारायण आश्रम, सिख धर्म के प्रसिद्ध स्थल नानकमत्ता और रीठा साहिब के साथ ही हर स्थल अपनी एक अलग विशेषता और खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है।

इसके अलावा भी साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए यहां पिंडारी, सुंदरढूंगा, काफनी व मिलम ग्लेशियरों के साथ ही आदि कैलाश व कैलाश मानसरोवर के ट्रेक, सरयू व कोसी नदियों पर बागेश्वर व पंचेश्वर में रीवर राफ्टिंग, नौकुचियाताल में पैराग्लाइडिंग तथा मुन्स्यारी में स्नो स्कीइंग की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। कुमाऊं (Kumaon) हवाई यातायात से पंतनगर तथा रेलवे से रामनगर, काठगोदाम व टनकपुर तक जबकि सड़क यातायात से सभी प्रमुख स्थानों तक जुड़ा हुआ है।

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यह भी पढ़ें : सुखद : कुमाऊं (Kumaon) में मिली आठवें अजूबे सी आठ तलों वाली अब तक की सबसे बड़ी गुफा….

नवीन समाचार, गंगोलीहाट, 4 अप्रैल 2022। गुफाओं के क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध गंगोलीहाट में प्रसिद्ध सिद्धपीठ हाटकालिका मंदिर के पास चार स्थानीय युवाओं ने किसी आठवें अजूबे की तरह आठ तल वाली प्राचीन विशाल गुफा रविवार को खोज निकाली है। गुफा के भीतर चट्टानों में विभिन्न पौराणिक चित्र उभरे होने की बात कही जा रही है।

गुफा में मौजूद शिवलिंग पर प्राकृतिक तरीके से जलाभिषेक भी हेा रहा है। गुफा को खोजी युवकों ने ही महाकालेश्वर नाम दिया है। माना जा रहा है कि यह गुफा 150 मीटर गहरी प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर गुफा से भी बड़ी 200 मीटर से अधिक बड़ी हो सकती है, क्षेत्र मेें धार्मिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और साहसिक पर्यटन को नए पंख लगा सकती है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब एक साल पूर्व गंगोलीहाट के युवा दीपक रावल को इस गुफा की जानकारी मिली थी। वह इस गुफा के संकरे प्रवेश द्वार से अंदर गए, परंतु संसाधन नहीं होने से प्रयास सफल नहीं हो सका। लेकिन इधर रविवार को ‘गंगावली वंडर्स ग्रुप’ के टीम प्रभारी सुरेंद्र बिष्ट, ऋषभ रावल, भूपेश पंत और पप्पू रावल ने गुफा में प्रवेश किया। उन्होंने बताया कि गुफा विशाल आकार की है।

वह गुफा में करीब दो सौ मीटर भीतर तक पहुंचे। गुफा में प्रवेश करते ही पहले करीब 35 फीट गहराई में उतरने का मार्ग है। फिर प्राकृतिक रूप से बनी करीब आठ फीट की सीढियां हैं। इससे आगे बढने पर इसी तरह आठ तल तक सीढ़ी और समतल भाग मिलता है। आगे नौवां तल भी नजर आ रहा था, और उससे आगे भी कुछ हो सकता है, लेकिन चारों खोजी युवक उपलब्ध संसाधनों से आठवें तल तक ही पहुंच पाए।

उन्होंने बताया कि क्षेत्र की अन्य गुफाओं की तरह इस गुफा की चट्टानों पर भी शिव लिंग व शिव जटाओं जैसी पौराणिक आकृतियां उभरी हैं। एक शिवलिंग की आकृति पर चट्टान से पानी जैसे लगातार जलाभिषेक करते हुए टपक रहा है। इसके अलावा शेषनाग व अन्य पौराणिक देवी, देवताओं के चित्र भी उभरे हुए नजर आते हैं।

उल्लेखनीय है कि मानस खंड में गंगावली क्षेत्र में 21 गुफाओं का जिक्र है। इनमें से 10 गुफाओं-पाताल भुवनेश्वर, कोटेश्वर, भोलेश्वर, महेश्वर, लाटेश्वर, मुक्तेश्वर, सप्तेश्वर, डाणेश्वर, सप्तेश्वर, भुगतुंग का पता अब तक चल चुका है। रविवार को मिली गुफा के आसपास तीन अन्य गुफा होने के संकेत भी मिल चुके हैं। टीम के सदस्यों का कहना है कि यदि उन्हें आधुनिक उपकरण मिलें तो वे क्षेत्र की तीन अन्य गुफाओं की जानकारी भी सामने लाएंगे

क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई अल्मोड़ा के प्रभारी डा. चंद्र सिंह चौहान एवं ऐसी अनेक अन्य गुफाओं के माध्यम से हजारों वर्ष पुराने मौसम का अध्ययन करने वाले यूजीसी के वैज्ञानिक प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया ने बताया कि वह भी इसी सप्ताह गुफा को देखने जा रहे हैं। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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