नवीन समाचार, देहरादून, 3 जनवरी 2024। देश व प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं सोनिया गांधी व राहुल गांधी ने भले न्यौता मिलने के बावजूद भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में नये मंदिर में रामलला की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में जाने पर स्थिति स्पष्ट नहीं की है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में ‘मुस्लिम युनिवर्सिटी’ व जुम्मे की छुट्टी को लेकर विवादों में रहे उत्तराखंड कांग्रेस के बड़े नेता हरीश रावत (Harish Rawat) ने बिना न्यौता मिले भी कह दिया है कि वह अयोध्या जायेंगे। उन्होंने दावा किया है कि भगवान राम ने उन्हें स्वयं न्यौता दिया है।
श्री रावत (Harish Rawat) ने सोशल मीडिया पर एक लंबी पोस्ट लिखकर बताया है, ‘कल रात मुझे ऐसा लगा जैसे प्रभु श्री राजा राम मेरे सिरहाने बैठे हैं और मुझसे कह रहे हैं कि अयोध्या में मेरे रामलला विराजमान विग्रह के दर्शन करने जरुर पहुंचना। मैंने उनसे कहा कि भगवन मेरी भी हार्दिक इच्छा है, जब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक निर्णय दिया तो मैंने उत्साहित भाव से कहा कि मैं भी अयोध्या जाऊंगा और मैं अयोध्या जाना चाहता हूं, कब उपयुक्त रहेगा !
उन्होंने कहा रामनवमी के आस-पास कभी वहां दर्शन के लिए जरूर जाओ और मैं अचकचाकर के उठ कर बैठ गया और मेरे मन में कई तरीके के भाव व प्रसंग उमड़-घुमड़ कर आगे आने लगे। मैंने अपने उद्वेलित मन को समझाया और कहा कि अब तो अयोध्या जाना है, हमारे आराध्य देव का आदेश हो चुका है, इस आदेश के साथ मैं उन करोड़ों भारतवासियों की भावना का हिस्सा बनूंगा जो अपने आराध्य के मूर्ति रूप में अयोध्या में दर्शन करेंगे।
मैं मूर्ति रूप इसलिये कह रहा हूं राम, भारत के लोगों के दिल में हमेशा-हमेशा वास करते हैं। प्रत्येक भारतवासी के दिल में मर्यादा पुरुषोत्तम न्याय के न्याय कारी, कल्याणकारी राजा के रूप में वास करते हैं और इसमें धर्म, क्षेत्र, जाति का बंधन नहीं है, गरीब-अमीर का भी बंधन नहीं है। अमीर जरा अपने उत्साह को दिखा सकता है और गरीब दिल में अपने उत्साह को रखता है, मगर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी सबके दिलों में वास करते हैं।
हिंदू और मुसलमान, सिख, जैन, बौद्ध, इसाई आदि अपने-अपने तरीके से राजा श्री रामचंद्र जी में आस्था रखते हैं। मुसलमान भी उनको अपना पूर्वज मानते हैं। मैं ऐसे बहुत सारे मुसलमान भाइयों को जानता हूं जो रघुवंशियों के साथ अपनी वंशावली को जोड़ते हैं। क्योंकि मैं भी रघुवंशी वंशावली से हूं, इसीलिये हम राम के बजाय राजा रामचंद्र की जय कहते हैं, तो वह लोग भी राजा रामचंद्र की जय कहते हैं, क्योंकि वह उनको अपने कुल के एक महान आराध्य पुरुष राजा के रूप में देखते हैं।
इसी भावना से प्रेरित होकर बाद में राह भटक गये अल्लामा इकबाल ने कहा था कि राम इमामे हिंद है….।’ हालांकि श्री रावत को इस पोस्ट में तरह-तरह कि उलाहना भी मिल रही हैं। किसी ने लिखा है, ‘तब कहा थी मुख्यमंत्री जी आपकी आस्था जब आपके ही पार्टी के नेता राम के होने का सुबूत मांग रहे थे । तो एक अन्य ने पूछा है, ‘राम को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेस की रामभक्ति पर कोई कैसे यकीन करे! माननीय पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) जी कांग्रेस सरकार ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में हालतनामा प्रस्तुत किया था कि राम काल्पनिक हैं और रामायण काल्पनिक कथा..
आपसे पूछना चाहता हूं जब राम काल्पनिक है तो आप किस राम की बात कर रहे हैं ? माफी चाहूंगा, यदि मेरी बात का बुरा लगा हो क्योंकि दर्द मुझे भी हुआ था जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी को काल्पनिक बताया था वर्तमान में कांग्रेस के नेताओं के बयान लगातार दुख दे रहे हैं तो अन्य ने लिखा हैं, ‘आप बड़े आदमी हैं, सीएम हैं तो सपनें में जरूर आये होंगे । हम गरीबों का क्या ? अब क्या कहें ,हमें तो इतनी बड़ी रामायण बनानी भी नहीं आती…।”देखें हरीश रावत (Harish Rawat) की पूरी पोस्ट:
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नवीन समाचार, देहरादून, 10 दिसंबर 2023। 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बरक्श खड़ा दिखाने और बड़ी ऐतिहासिक हार झेलने वाले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) लगता है प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुख्यमंत्री मोदी के भी प्रशंसक हो गये हैं।
रावत (Harish Rawat) ने मोदी के उत्तराखंड वैश्विक सम्मेलन में ‘वेड इन इंडिया’ के तहत उत्तराखंड को ‘वेडिंग डेस्टिनेशन’ के रूप में प्रस्तुत करने और मुख्यमंत्री धामी के उत्तराखंड के उत्पादों को ‘हाउस ऑफ हिमालयाज’ ब्रांड नाम दिए जाने की सराहना की है। रावत का यह रुख कांग्रेस पार्टी की उत्तराखंड इकाई के उलट भी नजर आ रहा है।
रावत (Harish Rawat) ने इस पर सोशल मीडिया पर लिखा है, ‘आज समाचार पत्र पढ़े, एक ‘फील गुड’ का आभास हो रहा है। प्रधानमंत्री जी ने जो बड़े पूंजीपतियों का आह्वान किया कि ‘वेड इन इंडिया’। यह केवल भारत में शादी करने का आह्वान भर नहीं है। पिछले कुछ वर्षों से बहुत सारे औद्योगिक घराने अपना निवेश भारत से बाहर कर रहे हैं। प्रधानमंत्री जी ने उनको भी संदेश दिया है ‘इन्वेस्ट इन इंडिया’। देखते हैं कितना असर पड़ता है।
मगर माननीय मुख्यमंत्री जी ने परिश्रम कर जो एक ‘फील गुड’ का एहसास राज्य के लोगों को करवाया है, अब उनके मंत्रिमंडल का कौशल देखना है कि इस फील गुड के एहसास को अर्थव्यवस्था और सामाजिक कल्याण के विभिन्न क्षेत्रों में किस दूरी तक वह लेकर के जाते हैं। मुझ जैसे लोग इस बार के प्रेमचंद अग्रवाल जी के पिटारे से निकलने वाले बजट पर बहुत गहराई से नजर रखेंगे, क्योंकि फील गुड का एहसास किस सीमा तक अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है वह बजट प्रस्तावों में झलकेगा।
विशेष तौर पर यह देखना पड़ेगा कि यह फील गुड का एहसास एमएसएमई सेक्टर और जो हमारे स्थानीय उत्तराखंडी उद्यमी हैं उन तक कहां तक जा रहा है। क्योंकि अनंतोगत्वा हमारी अर्थव्यवस्था के संचालक तो यही फैक्टर बनेंगे।’
उल्लेखनीय है कि इसी मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी की उत्तराखंड इकाई के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने एक तरह से मखौल उड़ाते हुये राज्य के औली में हुई ‘गुप्ता बंधुओं’ की बहुचर्चित, क्षेत्र को प्रदूषित करने वाली शादी की याद दिलाई है। गौरतलब है कि करन महरा हरीश रावत (Harish Rawat) के करीबी रिश्तेदार भी हैं।
वहीं प्रधानमंत्री मोदी के उत्तराखंड उत्पादों के लिये ‘हाउस ऑफ हिमालयाज’ ब्रांड नाम दिये जाने पर रावत (Harish Rawat) ने एक अन्य पोस्ट लिखी है, जिसमें उन्होंने कहा है, ‘…प्रधानमंत्री जी ने कल इन्वेस्टर्स समिट में बड़ी महत्वपूर्ण बात कही लोकल-वोकल से ग्लोबल की तरफ बढ़ो! यह एक सशक्त मंत्र है। मैं भी 2014 से इसे गुन-गुना रहा हूं। बस अंतर इतना है कि मैं घर गांव का जोगड़ा हूं, प्रधानमंत्री जी आन गांव के सिद्ध हैं।
प्रधानमंत्री जी ने कहा हाउस ऑफ हिमालयाज के साथ इसको ग्लोबल भी बनाइए। मैं कांग्रेसी हूं और मोदी जी के विचारों का घोर विरोधी हूं। मगर जो बात सबके हित में है तो मैं उसकी सराहना करता हूं। हमने हिमाद्रि आदि कई ब्रांड खड़े किये और आज अच्छा है कि श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने उसको ‘हाउस ऑफ हिमालयाज’ का नाम दिया।
हिमालय से बड़ा दुनिया के अंदर कोई बड़ा ब्रांड नाम नहीं है, इंटरनेशनली भी नहीं है। जब आपने हिमालयाज दामन थामा है तो जरा कस कर के थामिये और उड़ान भरिये। हिच-किचाते हुए हाथों से तलवार नहीं संभाली जाती, हमें प्रहार योजनाबद्ध तरीके से करते हुए आगे बढ़ना पड़ेगा। उत्तराखंडियत जिंदाबाद!! हाउस ऑफ हिमालयाज जिंदाबाद!!’
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यह भी पढ़ें : पूर्व सीएम हरीश रावत (Harish Rawat) की अस्पताल में आज हुई 2 मुलाकातें चर्चा में, एक की रावत ने खुद दी जानकारी…
नवीन समाचार, देहरादून, 27 अक्टूबर 2023
(Harish Rawat)
। गत दिवस हल्द्वानी से काशीपुर लौटते हुये कार के डिवाइडर से टकराने के कारण मामूली रूप से घायल हुये और वर्तमान में देहरादून के जॉलीग्रांट अस्पताल में उपचार करा रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) से लगातार लोग उनकी कुशल क्षेम जानने पहुंच रहे हैं।
इसी कड़ी में शुक्रवार को रावत से मिलने के लिये जहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पहुंचे। साथ ही कुछ देर बार सीबीआई यानी केंद्रीय जांच ब्यूरो की टीम भी जॉलीग्रांट पहुंची और रावत को नोटिस थमा दिया। यह दोनों मुलाकातें आज चर्चा का विषय बनी रहीं।
इस पर श्री रावत ने श्री धामी की मुलाकात की तो नहीं, पर सीबीआई की टीम के आने की जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की है।
श्री रावत ने लिखा है, ‘आज जौलीग्रांट हॉस्पिटल में मेरे स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए एक बड़ी महत्वपूर्ण संस्था भी आई। सीबीआई के दोस्त आये और उन्होंने मुझे एक नोटिस सर्व किया, तो मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ। मैंने कहा जिस दिन हॉस्पिटल में लोग स्वास्थ्य का हाल-चाल पूछने आ रहे हैं तो सीबीआई को लगा होगा फिर कहीं कि मुझसे, देश की अखंडता, एकता, सुरक्षा और लोकतंत्र को कुछ ज्यादा खतरा है, इसलिये हॉस्पिटल में ही उन्होंने मुझे नोटिस सर्वे किया है, वाह सीबीआई !!’
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यह भी पढ़ें : हरीश रावत (Harish Rawat) ने फिर अपने बयान से चौंकाया, क्या लंबी छलांग के लिए एक कदम पीछे हट रहे हैं ‘सिंह’ या….?
नवीन समाचार, देहरादून, 10 मार्च 2023। प्रदेश के पूर्व सीएम व वरिष्ठ कांग्रेस नेता क्या कहते हैं, और क्या करते हैं, तथा उनके कहने के क्या निहितार्थ होते हैं, उसे उनके अलावा शायद ही कोई समझ पाए। पहले राजनीति से सन्यास की बात करने के बाद अभी हाल तक हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव लड़ने की परोक्ष तौर पर इच्छा जताने वाले हरीश रावत (Harish Rawat) ने शुक्रवार को सोशल मीडिया पर एक नया बयान देकर हरीश फिर चर्चाओं में आ गए हैं। यह भी पढ़ें :
रावत ने सोशल मीडिया पर लिखा है, ‘मैं जानता हूं कि स्वास्थ्य, साधन और समय, तीनों मुझसे बार-बार आग्रह कर रहे हैं कि मैं अपनी गतिविधियों को धीरे-धीरे सीमित करूं। मैंने सोचा था कि कांग्रेस के रुभराड़ीसैंण-गैरसैंण कूच में मैं सशरीर उपस्थित नहीं रहूंगा, केवल भावनात्मक उपस्थिति रहेगी। उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जी का संदेश आया है कि ऐसा निर्णय अच्छा नहीं रहेगा। यह भी पढ़ें :
अर्थात 13 मार्च, 2023 को मुझे रुभराड़ीसैंण कूच में कांग्रेस जनों के साथ उपस्थित रहना है, मैं रहूंगा भी। लेकिन एक बात मैं स्पष्ट तौर पर कह देना चाहता हूं कि धीरे-धीरे मुझे अपनी गतिविधियों को सीमित करना है। सोशल मीडिया के माध्यम से ही मैं, प्रदेश कांग्रेस और कांग्रेस की सेवा में उतना भर योगदान देता हूं जितना एक सक्रियतम नेता को देना चाहिए। हमारे पास राज्य में सक्षम नेताओं की अग्रिम पंक्ति मौजूद है। मैं उनको हार्दिक शुभकामना देकर धीरे-धीरे अपनी गतिविधियों को सीमित कर रहा हूं, आज नहीं तो कल !!’
हरीश रावत (Harish Rawat) के इस बयान को एक बार उनके सन्यास की अटकलों से जोड़ा जा रहा है। हालांकि हरीश रावत (Harish Rawat) को करीब से जानने वालों का मानना है कि रावत इतनी आसानी से राजनीति से सन्यास लेने वाले हैं। हरिद्वार सीट पर उनके बाद हरक सिंह रावत सहित कुछ अन्य नेताओं के भी दावेदारी जताने के बाद हरीश रावत (Harish Rawat) का ताजा बयान इस मामले में खुद को बड़ा बनाकर अपने हरिद्वार से चुनाव लड़ने के दावे को मजबूत करने का प्रयास भी हो सकता है।
लिहाजा, इसे हरिद्वार हथियाने के लिए हरीश चंद्र ‘सिंह’ रावत नाम के सिंह का दो कदम पीछे हटकर लंबी छलांग लगाने का प्रयास भी माना जा रहा है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : हरीश रावत (Harish Rawat) ने किससे कहा, ‘यारा बड़ी देर कर दी… तो फिर धामी की नहीं, रावतों की धूम होती..’
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 अक्तूबर 2022। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) को अब अपने मुंह से बयान देने का मौका कम ही मिल पाता है, लेकिन सोशल मीडिया उनके इस शौक को मुंह दे रहा है। उनका ताजा सोशल मीडिया बयान काफी रोचक आया है, जिसमें उन्होंने कहा है, ‘यारा बड़ी देर कर दी… तो फिर धामी की नहीं, रावतों की धूम होती..’। जानते हैं कि रावत ऐसा किससे और क्यों कह रहे हैं।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने यह बाद पूर्व सीएम व भाजपा नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत के उस बयान पर कही है, जिसमें त्रिवेंद्र ने कहा था कि यूकेएसएसएससी बनाने के पीछे मंशा ही गलत थी। उन्होंने कहा है, राज्य में ऐसी संस्थाओं की जरूरत ही नहीं है, जो राज्य की साख गिराने का कार्य करें। यह भी कहा है कि ऐसी संस्थाओं को भंग ही कर देना चाहिए। जबकि त्रिवेंद्र के इस बयान के बाद धामी सरकार ने यूकेएसएसएससी में नए अध्यक्ष के रूप में पूर्व आईपीएस अधिकारी गणेश मर्तोलिया की नियुक्ति कर दी है।
अब पढ़ें रावत ने क्या लिखा है। रावत ने लिखा है, ‘यारा बड़ी देर कर दी समझ आते-आते। 2017 में जब हमने जांच शुरू की थी, जब आपके मंत्री ने विधानसभा के पटल पर स्वीकार किया था कि गड़बड़ियां पाई गई है, जांच रिपोर्ट शासन को मिली है। यदि तब इतना गुस्सा दिखाया होता तो फिर धामी की धूम नहीं होती, रावतों की धूम होती।’
यारा बड़ी देर कर दी समझ आते-आते। 2017 में जब हमने जांच शुरू की थी, जब आपके मंत्री ने विधानसभा के पटल पर स्वीकार किया था कि गड़बड़ियां पाई गई है, जांच रिपोर्ट शासन को मिली है। यदि..https://t.co/KFtQsgxrd4..कोई भूल करने की भी गलती न करे।#uttarakhand @tsrawatbjp pic.twitter.com/gXq8H4oxfY
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) October 12, 2022
उन्होंने आगे लिखा है, ‘धन्य है उत्तराखंड, दरवाजे की चौखट पर सर टकराए तो घर ही गिरा दो। विधानसभा में भर्तियों में धांधलियां हुई तो विधानसभा भवन ही गिरा दो। संस्थाएं खड़ी की हैं, यदि संस्थाओं का दुरुपयोग हुआ है तो उसको रोकिए, दृढ़ कदम उठाइए, संस्थाएं तोड़ने से काम नहीं चलेगा। यदि हमने मेडिकल और उच्च शिक्षा के ‘वॉक इन भर्ती बोर्ड’ नहीं बनाए होते तो आज चिकित्सकों और उच्च शिक्षा में शिक्षकों की भयंकर कमी होती।
यदि गुस्सा दिखाना ही है तो अपनी पार्टी के लोगों को दिखाइए न, ये जितने घोटालेबाज अब तक प्रकाश में आए हैं इनका कोई न कोई संबंध भाजपा से है और विधानसभा भर्ती, यदि घोटाला है तो उसकी शुरुआत से लेकर के…कहां तक कहूं, तो गुस्सा सही दिशा की तरफ निकलना चाहिए। उत्तराखंड का संकल्प होना चाहिए कि जिन लोगों ने भी इन संस्थाओं में गड़बड़ियां की हैं, हम उनको ऐसा दंड देंगे कि कोई दूसरी बार गड़बड़ी करना तो अलग रहा, कोई भूल करने की भी गलती न करे।’ अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : हरीश रावत (Harish Rawat) ने सीएम धामी की फोटो पर लिखा, ‘वाह क्या अंदाज है…’
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 11 अक्तूबर 2022। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) ने गत दिवस उत्तराखंड की राजनीति से किनारा करने का संकेत दिया था, लेकिन लगता है कि वह ऐसा चाह कर भी कर नहीं पा रहे है। खासकर यह भी नजर आ रहा है कि वह हरिद्वार से लोकसभा चुनाव लड़ने का लोभ भी वह संवरण नहीं कर पा रहे हैं, इसका इशारा तो उन्होंने अपने उत्तराखंड की राजनीति से दूर होने वाली पोस्ट मे भी किया था।
इधर, उनका एक ट्वीट काफी चर्चा में है, जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री धामी की गत दिवस बारिश के दौरान सुबह की सैर पर एक ढाबे वाले से बातचीत करने की फोटो को पोस्ट करते हुए लिखा है, ‘वाह क्या अंदाज है! कांग्रेस के दोस्तो 2024 और 2027 के लिए कुछ और कसरत करना शुरू कर दो।’
वाह क्या अंदाज है! कांग्रेस के दोस्तो 2024 और 2027 के लिए कुछ और कसरत करना शुरू कर दो।@pushkardhami @INCUttarakhand pic.twitter.com/z4csqPw3rx
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) October 10, 2022
इसके अलावा भी रावत ने कई अन्य पोस्ट कर खुद पर मीडिया का ध्यान केद्रित करने की कोशिश की है। एक पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ‘धामी सरकार, धोबी के तरीके से घोटाला-घोटाला पीट रही है और उसकी फसल से काम चला लेना चाहती है! उनको किसानों की फसल की चिंता नहीं है।
(Harish Rawat) बेमौसम की भयंकर बारिश ने धान बर्बाद कर दिया है, गन्ना टूट गया है, सब्जियां नष्ट हो गई हैं, मडुवा, गहत, भट्ट, मास आदि चौपट हो गए हैं और राज्य सरकार केवल घोटाला, घोटाला-घोटाला मंत्र जपने में लगी है। किसान भाइयों के दर्द को समझिये, वो भी आपको पुकार रहे हैं।
वही एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ‘एक दिलचस्प मगर उपयोगी बहस छिड़ी है। आदरणीय मोहन भागवत जी ने कहा है कि जनसंख्या में सामाजिक समूहों में असंतुलन पैदा हो रहा है। उसके जवाब में श्री असदुद्दीन ओवैसी जी ने कहा है कि मुसलमान एक बच्चे से दूसरे बच्चे के अंतर का पर्याप्त ध्यान रख रहे हैं और वह सर्वाधिक जनसंख्या व परिवार नियोजन के उपायों का सहारा ले रहे हैं।
(Harish Rawat) बल्कि दोनों में से किसी ने जनसंख्या वृद्धि, देश के कुछ सामाजिक समूहों की विलुप्त होती संख्या का उल्लेख नहीं किया। आज जनसंख्या यदि विस्फोट स्तर तक पहुंची है, इसको नियंत्रित करने के सातवें दशक में सरकार के प्रयासों को पलीता लगाने वाले लोग कौन थे! उस पर भी चर्चा होनी चाहिए।’
इसके अलावा एक अन्य पोस्ट में उन्होंने हरिद्वार में एकांगी पदयात्रा करने का ऐलान करते हुए लिखा है, ‘कल मैं एक मां भगवती के जागरण में गया था। कांग्रेसजनों की व्यथा सुनकर और जिस तरीके का अत्याचार पहले हम सुनते थे कि बिहार में बूथ कैप्चर होते हैं। अब यहां सत्ता द्वारा ग्राम पंचायतें, क्षेत्र पंचायतें और जिला पंचायत कैप्चर की जा रही हैं। मैंने तय किया है कि जिन स्थानों में लोगों ने इस अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई है, मैं उन स्थानों पर एकांगी पदयात्रा करूंगा।
उस पदयात्रा में मेरे साथ केवल 9 लोग रहेंगे और एक मेरी गाड़ी रहेगी। मैं पदयात्रा कर लोकतंत्र की आवाज को हरिद्वार में इस तरीके से समाप्त नहीं होने दूंगा। मैं उधर हेड़ी गांव से चौधरी चरण सिंह जी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर सराय तक जहां मैं, अंबेडकर जी की मूर्ति पर माला समर्पण कर अपनी यात्रा को समाप्त करूंगा और यह यात्रा 1 नवंबर, 2022 से प्रारंभ करूंगा। विस्तृत कार्यक्रम मैं जल्दी जारी करूंगा।
यह पार्ट राजनीति से हटकर के है और यदि मेरी बात शासन तक पहुंच रही हो तो जिन निर्दोष लोगों को जेल में डाला गया है, मुकदमे लगाए गए हैं, लोग अपने गांव से भाग करके इधर-उधर छिपे फिर रहे हैं, उन सबके खिलाफ मुकदमों को वापस लें और जिसमें किसी से गलती हुई है, झड़प होती हैं, जब आप हारे हुए को जीता हुआ डिक्लेअर करोगे, तो जो जीते व्यक्ति के सपोर्टर हैं वह कुछ तो विरोध प्रकट करेंगे और इस तरीके के विरोध को यदि डकैती आदि की धारा में परिवर्तित किया जा रहा है,
(Harish Rawat) अलग-अलग धाराएं लगाई जा रही हैं, यदि इसको सत्ता वापस लेगी तो ठीक है यात्रा भी स्थगित होगी और सत्ता वापस नहीं लेती है तो यात्रा प्रारंभ होगी। देखते हैं हरीश रावत के बाद लोकतंत्र के लिए और कितने लोग बाहर निकलते हैं! हरिद्वार से एक बार फिर संघर्ष का बिगुल बजेगा।’ अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : आखिर.. हरीश रावत (Harish Rawat) ने मांफी मांगी, कहा, ‘भगवान मुझे क्षमा करें, उत्तराखंड मुझे क्षमा करे…. मुझसे गंभीर चूकें हुई हैं !
-अपने बनाए अधिकारी गए जेल तो हरीश रावत (Harish Rawat) ने मांफी मांगी, जांच में पूरा सहयोग करने का भी किया वादा
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 9 अक्तूबर 2022। उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) ने प्रदेश के सेवानिवृत्त पीसीसीएफ यानी प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ. आरबीएस रावत को यूकेएसएसएससी यानी उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग का गठन करते हुए इसका प्रथम अध्यक्ष बनाया था।
अब जबकि डॉ. रावत जेल जा चुके हैं, और उन पर आरोप है कि उनकी उपस्थिति में आयोग के सचिव की पत्नी के घर में वीपीडीओ की विवादित भर्ती परीक्षा का परीक्षा परिणाम तैयार किया गया था और इस दौरान ही जिन करीब 50 अभ्यर्थियों से 7 से 8 लाख रुपए लिए गए थे, उनसे ओएमआर शीट पर उत्तरों के गोले खाली छोड़ने को कहा गया था और आयोग के लोगों ने उनके ओएमआर शीट पर सही उत्तरों के गोले भरे थे। इस पर हरीश रावत की प्रतिक्रिया सामने आई है। यहाँ हूबहू पढ़ें हरीश रावत ने इस पूरे मामले पर क्या कहा है।
बकौल हरीश रावत (Harish Rawat) , ‘अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के जन्म से लेकर अब तक पतन इसकी कहानी से मैं बहुत क्षुब्ध हूँ। बड़े अरमानों से हमने इस संस्था को और मेडिकल व शिक्षा के भर्ती चयन बोर्डों को तथा प्राविधिक शिक्षा बोर्ड को परीक्षा करवाने की अनुमति देने के निर्णयों को लिया था। मन में एक सोच थी कि सारी नियुक्तियों को प्रक्रिया सम्मत बनाया जा सके। समय पर व विधि सम्मत तरीके से नियुक्तियां हो सकें। राज्य जिसे हमने तदर्थ-आउट सोर्स की नियुक्तियों का स्वर्ग बना दिया था। एक अनिश्चितता नौजवानों के भविष्य में स्थाई भाव बन गई थी उसको समाप्त करने के लिये इन संस्थाओं को खड़ा किया गया।
मेरी भावना थी कि नौजवानों के मन में विश्वास की भावना पैदा हो सके कि हम परिश्रम करेंगे तो हमें समय पर विधि सम्मत तरीके से नियुक्तियां मिल जाएंगी। मैंने बड़े तौल करके इनके प्रथम अध्यक्ष और आयोग के सदस्यों को नियुक्त किया, मेडिकल भर्ती बोर्ड और उसके चेयरमैन को नियुक्त किया। यहां तक कि लगभग दवद.निदबजपवदंस बन चुके लोक सेवा आयोग को भी फंक्शनल बनाया, परीक्षाएं करवाई।
(Harish Rawat) आयोग में गड़बड़ी की शिकायत आने पर अध्यक्ष से इस्तीफा मांगा और नये अध्यक्ष की नियुक्ति व्यापक परामर्श करके की। इन दोनों अध्यक्षों के कैरियर ग्राफ को देखेंगे तो आपको भी लगेगा कि ये नियुक्ति करते वक्त हमने कोई गलती नहीं की। लेकिन व्यक्ति कहां और किस क्षण बड़ी गलती कर जाए या अकर्मण्य सिद्ध हो जाए, कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकता है। भगवान मुझे क्षमा करें, उत्तराखंड मुझे क्षमा करें। शायद इन संस्थाओं में नियुक्त व्यक्तियों के चयन में मुझसे गंभीर चूकें हो गई हैं!
मैंने उस कालखंड में अपने साथ काम करने वाले लोगों से कहा है कि हर जांच में पूरा सहयोग करें। उत्तराखंड के साथ न्याय होना चाहिए। जहां कई वर्षों से पुलिस के लोगों की पदोन्नति नहीं हुई थी, पुलिस सिस्टम में एक फ्रस्ट्रेशन था। मैंने उस फ्रस्ट्रेशन को समाप्त करने के लिए भी पुलिस को लेकर कई निर्णय लिए हैं।
(Harish Rawat) आज वह निर्णय स्क्रूटनी के दौर में हैं। मैंने उस कालखंड में मेरे साथ काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति से कहा है कि यदि किसी तरीके की जांच के लिए उनके सहयोग की आवश्यकता है तो वह सहयोग करें और इन जांचों में सहयोग करना हम सबका कर्तव्य है।’ अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : तो आज उत्तराखंड कांग्रेस को अलविदा कह देंगे हरीश रावत (Harish Rawat) !
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 4 अक्तूबर 2022। क्या उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत (Harish Rawat) कांग्रेस की उत्तराखंड की राजनीति छोड़ने का मन बना चुके हैं ? क्या उन्हें कांग्रेस में अब कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा? उनका फेसबुक पोस्ट इसी ओर इशारा करता नजर आ रहा है। अगर ऐसा कुछ होता है तो उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका होगा। हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कांग्रेस छोड़ने के संकेत दिए हैं।
श्री रावत ने सोशल मीडिया पर जो लिखा है, उसे हम यहां, हूबहू प्रस्तुत कर रहे हैं, इसमें हरीश रावत (Harish Rawat) कह रहे हैं कि उन्होंने उत्तराखंड में ‘उत्तराखंडियत’ के संकल्प को आगे बढ़ाया। उनके इस अस्त्र को ‘भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, मोदी जी के व्यक्तित्व, पुलवामा एवं बालाकोट से उत्पन्न प्रचंड आंधी और उत्तर प्रदेश में समाज के हिंदू व मुसलमान के रूप में बंटने’ के बावजूद भाजपा नहीं काट पाई।
रावत ने मोदी़, संघ व भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से चुनावी मुकाबले के लिए ‘उत्तराखंडियत’ का भावनात्मक आधार तैयार किया, लेकिन बाद में निर्दलीयों व दूसरे दलों के वोटों को जोड़कर भाजपा में सत्ता में आई और प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी ‘उत्तराखंडियत’ की काट के तौर पर ‘प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मडुवा, बेडू, उत्तराखंडी टोपी आदि प्रतीकों के माध्यम से ’हम भी हैं’ का भाव पैदा किया।
रावत (Harish Rawat) ने कहा है, ‘कोई भी अस्त्र या कवच आधे अधूरे प्रयासों से निर्णायक असर पैदा नहीं करता है। मैं पार्टी को इस अस्त्र के साथ खड़ा नहीं कर पाया। यह मेरी विफलता थी।’ यानी रावत स्वीकार करते हैं कि उत्तराखंडियत के प्रति वह और उनकी सरकार के प्रयास आधे-अधूरे ही रह पाए, इसलिए असर कारक नहीं रहे।
इघर अब लगता है कि हरिद्वार से जुड़ाव के बावजूद जिस तरह पंचायत चुनावों और उससे पहले विधानसभा के उपचुनाव और अन्य मौकों पर उत्तराखंड कांग्रेस में उनकी उपेक्षा होती रही है, इसके बाद उन्होंने ‘जिनके हाथों में बागडोर है उन्हें रास्ता बनाने दो…’ कहते हुए उत्तराखंड की राजनीति को अलविदा कहने का इशारा कर दिया है। बताया जा रहा है कि आज दिल्ली में 11 से 12 बजे तक उत्तराखंड के अंकिता हत्याकांड पर एक घंटे के उपवास के बाद वह उत्तराखंड की राजनीति को अलविदा कह देंगे। देखें हरीश रावत (Harish Rawat) की पूरी पोस्ट:
‘#भगवान_बद्रीश_की_जय आर्थिक, सांस्कृतिक व सामाजिक रूप से उत्तराखंड की क्षमता के संदर्भ में अपने मस्तिष्क में एक परिपक्व सोच पर आने के बाद ही मैं राज्य निर्माण के पक्ष में आया और पार्टी को भी लाने में लग गया। वर्ष 2000 से लगातार इस संदर्भ में मंथन किया। अवसर मिलने पर मैंने इस मंथन को 2014 से धरती पर उकेरना प्रारंभ किया। एक स्पष्ट कार्यक्रम आधारित सोच का परिणाम था कि जब हमने भराड़ीसैंण में विधानसभा भवन व सचिवालय पर कार्य प्रारंभ किया और विधानसभा सत्र वहां आयोजित किए तो एक सर्वपक्षीय स्वीकारोक्ति उभर कर सामने आई।
(Harish Rawat) पहाड़ मैदान की बातें, आर्थिक व संस्कृतिक आधार पर विकसित सामाजिक सोच के आगे मिट गई। सभी सामाजिक क्षेत्रीय समूहों को गैरसैंण में अपना भविष्य दिखाई देने लगा। चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी से बड़ा दल-बदल भी भाजपा को सत्ता में नहीं ला सकता था, यदि भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, मोदी जी के व्यक्तित्व को पुलवामा एवं बालाकोट से उत्पन्न प्रचंड आंधी और उत्तर प्रदेश में समाज को हिंदू व मुसलमान के रूप में बंटने का लाभ नहीं मिला होता। यह प्रचंड अंधड़ भी कांग्रेस को वर्ष 2012 के चुनाव में प्राप्त वोटो को नहीं घटा पाया।
परन्तु निर्दलीयों व दूसरे दलों को प्राप्त वोट भाजपा में जुड़ गये और भाजपा बहुत बड़े बहुमत से सत्ता में आ गई। चुनाव में कांग्रेस पार्टी के वोटों का यथावत बने रहना एक बड़ा संदेश था। मैंने बड़ी हार के बावजूद इस संदेश को सहारा बनाया मोदी़, संघ, भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से चुनावी मुकाबले के लिए स्थानीय संस्कृति, परिवेश, पहचानों व विभिन्नताओं को राज्य की आर्थिकी का आधार बनाकर एक भावनात्मक आकार दिया ‘उत्तराखंडियत’।
(Harish Rawat) चुनाव में हार के बाद भी मैंने बड़ी श्रम साध्यता से इसे एक चुनावी हथियार के रूप में खड़ा किया ताकि हम मोदी़ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मुकाबला कर सकें। भाजपा के रणनीतिकारों ने इस रणनीति को समझा। प्रधानमंत्री जी ने मन की बात में मडुवा, बेडू, उत्तराखंडी टोपी आदि प्रतीकों के माध्यम से ’हम भी हैं’ का भाव पैदा किया।
कोई भी अस्त्र या कवच आधे अधूरे प्रयासों से निर्णायक असर पैदा नहीं करता है। मैं पार्टी को इस अस्त्र के साथ खड़ा नहीं कर पाया। यह मेरी विफलता थी। उत्तराखंडियत को लेकर पार्टी से एकजुटता के बजाए अन्यथा संदेश गया। अंततः जीतते-जीतते कांग्रेस हार गई उत्तराखंड कांग्रेस अभी नहीं लगता अपने को बदलेगी! व्यक्ति को अपने को बदलना चाहिए।
(Harish Rawat) मैं इस निष्कर्ष पूर्ण सोच को आगे बढ़ाने के लिए आशीर्वाद मांगने भगवान बद्रीनाथ के पास गया था। भगवान के दरबार में मेरे मन ने मुझसे स्पष्ट कहा है कि हरीश आप उत्तराखंड के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर चुके हो। उत्तराखंडियत के एजेंडे को अपनाने व न अपनाने के प्रश्न को उत्तराखंड वासियों व कांग्रेस पार्टी पर छोड़ो! सक्रियता बहुधा ईर्ष्या व अनावश्यक प्रतिद्वंदिता पैदा करती है। मेरा मन कह रहा है कि जिनके हाथों में बागडोर है उन्हें रास्ता बनाने दो।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ की समाप्ति के 1 माह बाद स्थानीय और राष्ट्रीय परिस्थितियों का विहंगम विवेचन कर मैं कर्म क्षेत्र व कार्यप्रणाली का निर्धारण करूंगा। थोड़ा विश्राम अच्छा है। फिर भारत जोड़ो यात्रा का इतना महानतम् कार्यक्रम है। हरिद्वार के प्रति मेरा कृतज्ञ मन अपने सामाजिक, सांस्कृतिक व वैयक्तिक संबंधों व निष्ठा को बनाए रखने की अनुमति देता है।
(Harish Rawat) मैं अपने घर गांव व कांग्रेसजनों को हमेशा उपलब्ध रहूंगा। पार्टी की सेवा हेतु में दिल्ली में एक छोटे से उत्तराखंडी बाहुल्य क्षेत्र में भी अपनी सेवाएं दूंगा। पार्टी जब पुकारेगी मैं, उत्तराखंड में भी सेवाएं देने के लिए उत्सुक बना रहूंगा। जय हिंद जय उत्तराखंड।’ अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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नवीन समाचार, देहरादून, 10 मई 2022। पूर्व सीएम व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत (Harish Rawat) पर अब जो चाहे, कुछ न कुछ बोलकर चला जाता है। उनके पूर्व सहयोगी रणजीत रावत व उनके खुद के पुत्र के बाद कांग्रेस के सदस्यता अभियान के प्रभारी और पूर्व प्रदेश महामंत्री राजेंद्र सिंह भंडारी ने पूर्व सीएम हरीश रावत पर सवाल उठाए हैं। पूछा है, पुराने हरीश रावत कहां चले गए हैं ?
राजेंद्र भंडारी ने फेसबुक पर लिखा कि वह राज्य आंदोलनकारी तो थे लेकिन 90 के दशक में राजनीति के बारे में क ख ग नहीं जानते थे। रेडियो में लोकसभा की बहस अल्मोड़ा सांसद हरीश रावत (Harish Rawat) उत्तराखंड के मुद्दों को लेकर दहाड़ते थे तो सीना चौड़ा होता था। कांग्रेस सन् 2000 में उत्तराखंड में जीरो थी, हरीश रावत (Harish Rawat) को संगठन की कमान मिली कार्यकर्ताओं ने हरीश रावत (Harish Rawat) के नेतृत्व में काफी मेहनत की और 2002 के पहले चुनाव में कांग्रेस को जीरो से हीरो बनाया।
पहली निर्वाचित सरकार कांग्रेस की बनी तो हरीश रावत (Harish Rawat) की मेहनत पर बड़ी राजनीति हावी हो गयी और एनडी तिवारी मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन उनका मुख्य सवाल यह है कि पुराने हरीश रावत (Harish Rawat) कहां गायब हो गए, आज सारे साथी उनका साथ छोड़कर क्यों जा रहे है, पहले किशोर उपाध्याय गए। अब जोत सिंह बिष्ट। ये दो लोग ऐसे है जिन्होंने कांग्रेस भवन में टूटी हुई कुर्सी पर बैठकर दिन रात मेहनत कर कांग्रेस को मजबूत करने का काम किया।
आज ये दलील फीकी है कि हरीश रावत (Harish Rawat) ने उनके लिए क्या किया। बुनियाद के खंभों पर कभी अहसान नहीं जताया जाता। हरीश रावत (Harish Rawat) मुख्यमंत्री बने। रणजीत रावत चुनाव हारने के बाद भी मुख्य भूमिका में थे। अंदरूनी सरकार वही चलाते थे। वह क्यों हरीश रावत (Harish Rawat) से अलग हैं। कुल मिलाकर हरीश रावत का कुनबा बिखर रहा है। ऐसे सहयोगी दुबारा कहां से लाएंगे, आखिर कौन इस तरफ ध्यान देगा।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने यह दिया जवाब
देहरादून। राजेंद्र भंडारी को जवाब देते हुए हरीश रावत (Harish Rawat) ने लिखा है कि भंडारी इतना अवश्य देख लें कि आपके सवाल से कसम खाकर मेरा विरोध करने वालों को जरूर राहत मिल रही है। उनके किसी सहयोगी को यदि उनकी स्वार्थ की पूर्ति के लिए कांग्रेस छोड़नी पड़ी है तो वह दोषी हैं। उनके पुत्र-पुत्रियों या कुटुंब की राजनीति के लिए उन्होंने अपने किसी सहयोगी की राजनीति का बलिदान किया हो, तो उनपर सवाल स्वभावतः उठता है।
(Harish Rawat) जब वह कमजोर हैं, जब कांग्रेस कमजोर है, कांग्रेस की आंतरिक राजनीति पर उनकी पकड़ कमजोर है, ऐसे समय में उनपर कई लोग कई चुभते सवाल खड़े कर रहे हैं। वह उन पर अवश्य विचार करेंगे। (डॉ. नवीन जोशी) अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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नवीन समाचार, देहरादून, 1 अप्रैल 2022। उत्तराखंड की राजनीति में फिर शुक्रवार को राजनीतिक चर्चाओं को हवा मिल गई। भाजपा सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्री सतपाल महाराज इन दिनों अपनी पार्टी से राजनीतिक निर्वासन झेल रहे पूर्व सीएम हरीश रावत (Harish Rawat) से मिले।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने स्वयं इस मुलाकात को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक करते हुए कहा है कि वह कोरोना संक्रमण के बाद समय-समय पर संक्रमण शिकार हो जा रहे हैं। कोई न कोई संक्रमण उन्हें रूग्ण कर रहा है। श्री महाराज के पास इस तरीके की रुग्णता के इलाज की कई जानकारियां हैं। उन्होंने श्री महाराज के पर्यटन के क्षेत्र में किए गए कार्यों की भी प्रशंसा की है।
गत दिनों हरीश रावत से मिलने एक कांग्रेसी मूल के भाजपा विधायक ने ‘नवीन समाचार’ को बताया कि वह तो हरीश रावत को बताने, चिढ़ाने उनके घर गए थे कि उनमें हरीश रावत जीत की संभावना नहीं देख रहे थे और वह भाजपा में शामिल होकर चुनाव जीत कर आए हैं। बताया कि हरीश रावत इन दिनों घर पर अकेले हैं, और कमजोर भी लग रहे हैं। भाजपा के लोग हरीश रावत (Harish Rawat) को इसी तरह मिलने जा रहे हैं।
इधर चुनाव हारने के बाद आज शनिवार को पहली बार कोई कांग्रेसी, द्वाराहाट के विधायक मदन बिष्ट हरीश रावत के घर व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नजर आए हैं। (डॉ. नवीन जोशी) अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 30 मार्च 2022। क्या उत्तराखंड की राजनीति कोई नया मोड़ ले रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) लगातार अपनों से घिरे हुए हैं। उन्हें कांग्रेसी नेताओं ने कांग्रेस का ‘भष्मासुर’ तक कह दिया है और चुनाव के बाद शायद ही कोई नेता उनके घर पर उनके दर्द पर ठंडा हाथ रखने आया हो, लेकिन भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से लेकर विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी तक स्वयं उनके घर पर आ चुके हैं।
इसी कड़ी में अब कांग्रेसी मूल की भाजपा की दो महिला विधायकों, सरिता आर्य और शैला रानी रावत हरीश रावत (Harish Rawat) से उनके आवास पर मिली हैं। बताया गया है कि इस दौरान हरीश रावत (Harish Rawat) ने पूर्व कांग्रेस नेत्रियों से उनके लिए कांग्रेस मंे रहते कुछ गलतियां होने की बात कही।
उल्लेखनीय है कि शैलारानी रावत ने विधायक रहते डॉ. हरक सिंह रावत के साथ हरीश रावत (Harish Rawat) से बगावत करते हुए कांग्रेस छोड़ी थी। इसके बाद शैला 2017 में भाजपा के टिकट पर चुनाव हार गई थीं, लेकिन इस बार जीत गई हैं। जबकि सरिता आर्य हरीश रावत को सीएम बनाने के लिए 2017 में दिल्ली में हरीश रावत द्वारा बनाए गए दबाव के दौरान भी साथ थीं। इधर यशपाल व संजीव आर्य के कांग्रेस में आने के बाद टिकट न मिलने पर उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव दर्ज की।
इस प्रकार इन दिनों हरीश रावत (Harish Rawat) के सोशल मीडिया पेज पर भाजपाई नेताओं के चित्र छाये हुए हैं, और टिप्पणियों में कांग्रेसी ही उन्हें उनकी कही हुई ‘मुख्यमंत्री बनूंगा या घर बैठूंगा’ की बात याद दिला रहे हैं। चर्चाएं यहां तक भी उठ रही हैं कि हरीश रावत (Harish Rawat) के एक करीबी सहित दो कांग्रेसी विधायक मुख्यमंत्री धामी के उपचुनाव के लिए सीट खाली कर सकते हैं।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने भी ऐसे कठिन समय में भी चुनाव जीते किसी भी कांग्रेसी विधायक को सार्वजनिक तौर पर बधाई नहीं दी है, बल्कि राज्य सरकार के मुख्यमंत्री, सभी मंत्रियों व विधानसभा अध्यक्ष को उन्होंने सोशल मीडिया पर अलग-अलग पोस्ट बनाकर उनके चित्रों के साथ बधाई देकर बड़ा दिल दिखाया। वह भाजपा सरकार के खिलाफ भी नहीं बोल रहे। या बोल भी रहे हैं तो केवल अपनी पुत्री अनुपमा रावत के विधानसभा क्षेत्र हरिद्वार ग्रामीण को लेकर।
जहां कथित तौर पर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न को लेकर उन्होंने कल एक घंटे का उपवास करते हुए सरकार पर आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ दल को वोट न देने के कारण उनका उत्पीड़न किया जा रहा है, जबकि हल्द्वानी-लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में नगर निगम हल्द्वानी द्वारा की जा रही अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई, जिस पर कांग्रेस के साथ भाजपा के विधायक ने भी आवाज उठाई है, हरीश रावत (Harish Rawat) मौन रहे हैं। अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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नवीन समाचार, देहरादून, 17 मार्च 2022। लालकुआं से चुनाव हारने के बाद हरीश रावत (Harish Rawat) ने पहली बार अपनी हार पर बोला है। उन्होंने कहा, अगर देखें तो वे स्वयं ही अपनी हार की पटकथा लिखते रहे हैं। राजनीतिक घटनाक्रम का जिक्र करते हुए रावत ने कहा, उन्हें लग रहा था जनता वर्तमान सरकार को हटाने के मूड में थी, लेकिन तीन दिन में ऐसा पता नहीं क्या हुआ हम हार गए। उन्होंने कहा कि सब कुछ ठीक था अब लगता हैं प्रारब्ध ही नाराज रहा होगा।
उन्होंने कहा, भाजपा के धन बल के आगे हम पिछड़ गए। उन्हें नहीं लगता कि कांग्रेस ने कहीं चूक की है। उन्होंने अपनी पिछली चार चुनावी पराजयों का जिक्र करते हुए कहा कि वह लोकसभा चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे। लेकिन हरिद्वार की जगह नैनीताल चले गये जहां उनकी तैयारी नहीं थी। 2017 में वह रामनगर से लड़ना चाहते थे, लेकिन लड़े किच्छा से। इस बार रामनगर से लड़ना चाहते थे, लेकिन पहुंच गये लालकुआं।
रावत ने कहा कि ये स्थितियां बताती हैं कि कई बार अपनी हार की स्क्रिप्ट तो वह खुद ही लिख लेते हैं। उन्होंने कहा कि मेरा उत्तराखंड के लोगों में परम विश्वास हैं कि वे रावत को खत्म करेंगे। उन्होंने पारंपरिक सीट के मुद्दे पर कहा कि धारचूला चुन सकता था। जहां से जीता था, लेकिन जिस व्यक्ति ने मेरे लिए सीट खाली की क्या उसका हक मार दूं।
रानीखेत घर की सीट थी फिर भी कैसे किसी का हक मार लूं। हरीश ने कहा कि इसलिए वह इस बार चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे। उन्होंने पार्टी को कह दिया था कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे और अगर पार्टी चाहती तो उन्हें बाद में मुख्यमंत्री बनाती तो सीट खाली की जा सकती थी।
अलबत्ता, हरीश रावत (Harish Rawat) के इस बयान के बाद भी पूरे विश्वास से कहना मुश्किल है कि वह कितना सच कह रहे हैं। पिछली बार वह हरिद्वार ग्रामीण से भी चुनाव लड़े और हारे, जबकि इससे पहले वह हरिद्वार के सांसद रहे। इसकी बात उन्होंने नहीं की। उन्होंने इस बात का जिक्र नहीं किया कि क्यों वह अल्मोड़ा सीट पर मुरली मनोहर जोशी जैसे बड़े नेता को हराने के बावजूद अल्मोड़ा से बार-बार चुनाव हारे और
(Harish Rawat) अल्मोड़ा छोड़ हरिद्वार जाने को मजबूर हुए और फिर क्यों हरिद्वार छोड़ दो विधानसभा सीटों से हारने के बावजूद नैनीताल से लोक सभा चुनाव हारे। और इतनी हारों यानी जनता द्वारा हर ओर से नकार दिए जाने के बावजूद क्यों खुद को पार्टी का चेहरा बनाने की जिद किए रहे, जिस कारण पार्टी विघटित रही और चुनाव हार गई। (डॉ. नवीन जोशी) अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : अब खुद हरीश रावत (Harish Rawat) ने कहा, ‘हरीश रावत रूपी बुराई का भी इस होलिका में कांग्रेस को दहन कर देना चाहिए’
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 15 मार्च 2022। हरीश रावत (Harish Rawat) हर दिन अपने बयानों के लिए चर्चा में रहने की कला जानते हैं। आज उन्होंने सोशल मीडिया पर जो लिखा है, वह उस पर गंभीर हैं या नहीं, जैसे वह पूर्व में विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनने अथवा घर बैठने की बात भी कहने के बावजूद सक्रिय बने हुए हैं।
रावत ने लिखा है, ‘पद और पार्टी टिकट बेचने का आरोप अत्यधिक गंभीर है और यदि वह आरोप एक ऐसे व्यक्ति पर लगाया जा रहा हो, जो मुख्यमंत्री रहा है, जो पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष रहा है, जो पार्टी का महासचिव रहा है और कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य है और आरोप लगाने वाला व्यक्ति भी गंभीर पद पर विद्यमान व्यक्ति हो और उस व्यक्ति द्वारा लगाये गये आरोप को एक अत्यधिक महत्वपूर्ण पद पर विद्यमान व्यक्ति व उसके सपोटर्स द्वारा प्रचारित-प्रसारित करवाया जा रहा हो, तो यह आरोप और भी गंभीर हो जाता है।
यह आरोप मुझ पर लगाया गया है। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि कांग्रेस पार्टी मेरे पर लगे इस आरोप के आलोक में मुझे पार्टी से निष्कासित करे। होली बुराईयों के समन का एक उचित उत्सव है, होलिका दहन और हरीश रावत (Harish Rawat) रूपी बुराई का भी इस होलिका में कांग्रेस को दहन कर देना चाहिए।
आगे माना जा रहा है कि उनके इस बयान के बाद हरीश रावत द्वारा ही बनाए गए प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल अथवा उनके खेमे के प्रवक्ता आगे आएंगे और उनकी इस मांग को सिरे से खारिज कर देंगे। (डॉ. नवीन जोशी) अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : वाह रावत जी, चुनाव में चूक पर प्रीतम के साथ प्रियंका गांधी को भी लपेट दिया…
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 14 मार्च 2022। विधानसभा चुनाव में हार मिली तो कांग्रेस पार्टी के चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत (Harish Rawat) पर भी इस्तीफे का दबाव बढ़वा लाजमी है। साथ ही भय है कि कहीं पार्टी कोई कार्रवाई न कर दे। ऐसे में कैसी भी स्थिति में हार न मानने वाले हरीश रावत (Harish Rawat) खुद को बचाने के कब कौन सा पैंतरा चल दें और किसे ढाल बना दें, इसकी कोई हद नहीं है। इस बार तो उन्होंने सीधे प्रियंका गांधी को भी ढाल बना दिया है।
रावत ने कहा है, ‘यह समय चीजों को गहराई से विश्लेषण का है, यदि चूक चुनाव प्रभारी के स्तर पर हुई है तो उन्हें सजा मिलनी चाहिए। जिनके स्तर पर चूक हुई उनको सजा मिले। लेकिन हम सीधे कह दें कि सबको इस्तीफा देना चाहिए, तो वह ठीक नहीं रहेगा।’ रावत ने कहा, ‘अब प्रियंका गांधी जी ने अभूतपूर्व मेहनत की है, पूरी दुनिया साक्षी है। इससे बेहतर तरीके से कोई चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है।’
साफ है कि हरीश याद दिला रहे हैं कि यदि इस्तीफा देना ही हो तो प्रियंका गांधी से भी लिया जाना चाहिए। इसी तरह कार्रवाई होनी हो तो प्रियंका पर भी होनी चाहिए। रावत ने कहा, मैं सभी उम्मीदवारों की हार का उत्तरदायित्व अपने सर पर ले चुका हूं। सभी को मुझ पर गुस्सा निकालने, खरी खोटी सुनाने का हक है। पर सत्य की अनदेखी भी नहीं होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि हरीश रावत (Harish Rawat) वर्ष 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद धारचूला सीट पर उपचुनाव जीते, लेकिन पिछले 8 वर्षों में कोई चुनाव नहीं जीत पाए हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में वह हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा सीट पर चुनाव लड़े, और हारे। 2019 में वह नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े और प्रदेश में सर्वाधिक वोटों के अंतर से हारे और अब लालकुआं में भी उन्होंने हार की ‘चौकड़ी’ मार दी है।
प्रीतम को भी लपेटा…
हरीश रावत (Harish Rawat) हार के बावजूद किस तरह विरोधियों पर अपने तरकश से तीर चला रहे हैं, इसकी बानगी उनके द्वारा प्रीतम सिंह को दिये जवाब से भी देखिए। प्रीतम ने कहा था, हरीश बिना मेहनत किए रामनगर व लालकुआं दूसरे की तैयार की गई फसल खाने चले गए थे। इस पर हरीश ने पलटवार किया है।
(Harish Rawat) रावत ने कहा, प्रीतम ने एक बहुत सटीक बात कही कि आप जब तक किसी क्षेत्र में 5 साल काम नहीं करेंगे तो आपको वहां चुनाव लड़ने नहीं पहुंचना चाहिए। फसल कोई बोये काटने कोई और पहुंच जाए। लेकिन मैं तो चुनाव लड़ने के बजाय चुनाव प्रचार करना चाहता था।
स्क्रीनिंग कमेटी की मीटिंग में राय दी गई कि मुझे चुनाव लड़ना चाहिए। इसके बाद मैंने रामनगर से चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की। वर्ष 2017 में भी वहीं से लड़ना चाहता था, पर रणजीत रावत की गुजारिश पर किच्छा चला गया था। मुझे रामनगर से चुनाव लड़ाने का फैसला भी पार्टी का था और मुझे रामनगर के बजाय लालकुआं विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाने का फैसला भी पार्टी का ही था।’
रावत ने खुलासा किया कि लालकुआं के हालत देख जब वहां से चुनाव लड़ने की अनिच्छा जाहिर की तो पार्टी प्रभारी ने पार्टी के सम्मान का हवाला देते हुए पीछे न हटने का अनुरोध करते हुए असहमति जता दी। आगे रावत ने कहा कि वो किसी क्षेत्र में पांच साल काम करने के बाद ही चुनाव लड़ने की बात से सहमत हैं। लेकिन इस विषय पर सार्वजनिक बहस के बजाय पार्टी के अंदर विचार मंथन कर लिया जाए तो मुझे अच्छा लगेगा।
वहीं मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने की कथित मांग करने वाले आकिल अहमद को पदाधिकारी बनाने की जांच पर रावत ने दावा किया कि उस व्यक्ति के नामांकन से उनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। वह व्यक्ति कभी भी राजनीतिक रूप से मेरे नजदीक नहीं रहा था। रावत ने कहा, लेकिन उस व्यक्ति को राजनीतिक रूप से उपकृत करने वालों को भी सब लोग जानते हैं। उसे किसने सचिव बनाया, फिर महासचिव बनाया और उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में उसे किसका समर्थन हासिल था, यह भी सबको पता है।
उल्लेखनीय है कि आकिल को विवादास्पद बयान के बाद मचे हल्ले-गुल्ले के बावजूद हरीश रावत (Harish Rawat) की पुत्री अनुपमा रावत की सीट हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा का प्रभारी बनाया गया। अब हरीश रावत (Harish Rawat) कह रहे हैं, उसे बनाने में किसका हाथ रहा है, यह अपने आप में जांच का विषय है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 मार्च 2022। कांग्रेस पार्टी और उसके चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष हरीश रावत (Harish Rawat) हार के बाद भी ट्विटर पर सक्रिय हैं। उन्हें खुद के और पार्टी के चुनाव हारने से बड़ा दुःख व चिंता यह है कि वह सोनिया गांधी को कैसे मुंह दिखाएंगे। आज उन्होंने लिखा है, ‘आज दिल्ली में 4 बजे कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक है, मैं उसमें भाग लेने जा रहा हूं। दिल्ली की ओर जाने की कल्पना मात्र से मेरे पांव मन-मन भर भारी हो जाए, कैसे सोनिया जी की चेहरे की तरफ देखूंगा! कितना विश्वास था उनका मुझ पर…’ इस पोस्ट पर देखें कि लोग कैसी-कैसी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।
एक ट्विटर प्रयोक्ता ने हरीश रावत (Harish Rawat) की ही पिछली पोस्ट को टैग कर उन्हें याद दिलाया है, दिल्ली कैसे जा पाओगे हरदा? आपकी तबियत तो रुग्ण है? उल्लेखनीय है कि हरदा ने कल बेटी अनुपमा की जीत के बाद हरिद्वार में गंगा जी को साबिर साहब की दरगाह पर धन्यवाद अदा करने जाने की बात कही थी और स्वास्थ्य खराब होने से जाने में असमर्थता जताई थी। जबकि एक प्रयोक्ता ने तो यह भी कह दिया, पांव भारी तो महिलाओं के होते हैं….।
धारचूला से हरिद्वार ग्रामीण, हरिद्वार ग्रामीण से किच्छा, किच्छा से डीडीहाट, डीडीहाट से रामनगर, रामनगर से लालकुआं- अभी भी सोच लो हार दा, अभी एक दिन बचा है। जुम्मे की छुट्टी के लगाव के चलते पिरान कलियर से लड़ लो आप। हमारे मुनीश सैनी, वहां आपकी प्रतीक्षा में हैं।#हरदा_बने_हारदा pic.twitter.com/Y7tiqIq23n
— BJP Uttarakhand (@BJP4UK) January 27, 2022
वहीं अन्य प्रयोक्ताओं ने लिखा है, अब फिर वोही गलती दोहरा रहे हो। कांग्रेस मुक्त कर दो मुक्ति पाओ। अन्य ने लिखा है, चिंता न करें रावत जी, वो खुद मुंह दिखाने लायक नहीं रहे इतना दिशाहीन नेतृत्व दे कर। सचिन पायलट अशोक गहलोत में से किसी को अध्यक्ष बनाया जाए। अशोक गहलोत और सचिन पायलट में काबिलियत है जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह को टक्कर दे सकते हैं, नहीं तो कांग्रेस को खत्म होने से कोई नहीं रोक सकता।
वहीं अन्य ने लिखा है, ये ट्विटर पर नाटक करने की जरूरत नहीं है अब तुम लोगो के अंदरूनी खींचतान के कारण ये हाल हुआ है काँग्रेस का। एक अन्य प्रयोक्ता ने लिखा है, ये कौव्वे अब कांग्रेस के श्राद्ध का भात खा के ही उड़ेंगे। अन्य ने लिखा है, अब सन्यास लेकर, युवाओं को आगे बढ़ाए।
वरना कोई मतलब नहीं है इस ट्वीट का। आपका मुस्लिम यूनिवर्सिटी का ख्वाब जो उतराखंड की स्वावलंबी जनता ने पूर्ण नहीं होने दिया… आका नाराज हो गए हैं। आप पर अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ की जनता का भी विश्वास था कई बार सांसद रहे आप, ऐसे ही भाव उनके लिये भी आते तो आज आपका वानप्रस्थ आश्रम सुकून से गुजर रहा होता।
एक और प्रयोक्ता ने लिखा है, हरदा आप राहुल का मुखौटा पहन कर चले जाओ, फिर तो न सवाल न ही जवाब। और क्या पता विदेश जाने का अवसर मिल जाए छुट्टियां मनाने का। किसी और ने यह भी लिखा है, कोई नहीं मालिक माफ कर देंगे आपने 40 साल से वफादारी की है, आप की कोई गलती नहीं है, मालिक को बोलना अब जनता सब जानती है।
(Harish Rawat) अन्य ने लिखा है, मुख्यमंत्री पद के लिए लड़िए और पार्टी का बंटाधार कीजिए। साफ कह दीजिएगा की जनता का विश्वास नहीं रहा। जल्दी आप सन्यास ले लो आपके बस की नही है राजनीति। कोंग्रेस माता के चरण छू कर 4 धाम यात्रा पर निकल जाओ अब बस करो राजनीति, आराम करो। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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नवीन समाचार, लालकुआं, 15 फरवरी 2022। पूर्व में मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री रह चुके हरीश रावत (Harish Rawat) ने मतदान निपट जाने के बाद कहा है, या तो मुख्यमंत्री बनेंगे-या घर बैठेंगे। उनके पास कोई तीसरा विकल्प नहीं है। लालकुआं से चुनाव लड़ते मतदान से पूर्व वह यह कहते तो सामान्य बात होती, ऐसा उन्होंने किया भी, लेकिन मतदान के बाद ऐसा कहने की क्या तुक है।
यदि उनकी पार्टी चुनाव जीतती है तो जैसा उनकी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पहले ही कह चुका है, विधायक मुख्यमंत्री के तौर पर अपने नेता का चयन करेंगे। चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष रहते हरीश रावत (Harish Rawat) अपने समर्थकों को अधिक टिकट दिलाकर इसकी तैयारी भी पहले ही कर चुके हैं कि बहुमत आने पर उनके दिए टिकटों पर जीते विधायक उन्हें ही अपना नेता चुनें। तो सवाल यह है कि हरीश रावत (Harish Rawat) के अब इस बयान के क्या मायने हैं।
उल्लेखनीय है कि इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी को ही चेहरे के रूप मे पेश किया है और हरीश रावत (Harish Rawat) भी अनाधिकारिक रूप से कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे हैं लेकिन बताया जा रहा है कि कुछ अन्य नेता भी चुनाव बाद पैदा होने वाले हालात से फायदा लेने की कोशिश में है। ऐसे में दोनो दलों के नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी की बिसात बिछनी अभी से शुरू होने वाली है।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने इसके संकेत दे दिए हैं कि मतदान से मतगणना के बीच के करीब एक माह में भी वह शांत बैठने वाले नहीं हैं, और इस दौरान वह मनोवैज्ञानिक तौर पर दूसरे दावेदारों का मनोबल तोड़ने की कोशिश करेंगे। गौरतलब है कि हरीश रावत (Harish Rawat) ने लालकुआं में चुनाव ही खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में किया है। जनता में यह संदेश देकर बताया गया कि वह विधायक नहीं मुख्यमंत्री चुनें।
दूसरे हरीश रावत (Harish Rawat) ने आज कहा, ‘मैं अपनी सोच का उत्तराखंड बनाऊंगा। जिसमे सभी सहयोगियों की सोच को समायोजित करूंगा।’ साथ ही अपनी ही बात पर विरोधाभाष भी प्रकट किया, ‘मैं पद के लिए अपनी सोच से समझौता नहीं कर सकता। न ही उसे छोड़ कर कुछ और काम कर सकता हूं।’
सवाल यह है कि हरीश रावत (Harish Rawat) के लिए पहली बार नहीं है कि वह पहली बार मुख्यमंत्री बनेंगे। वह पहले भी मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। तब क्यों नहीं वह अपनी सोच का उत्तराखंड बना पाए। जबकि तब वह भ्रष्टाचार पर ‘आंखें मूंदे’ रहे। अल्पसंख्यकों के लिए छुट्टी-अल्पावकाश का शासनादेश सार्वजनिक हो जाने के बाद अब वह उससे भी इंकार नहीं कर सकते। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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नवीन समाचार, लालकुआं, 28 जनवरी 2021। हरीश रावत (Harish Rawat) शायद इसीलिए हरीश रावत (Harish Rawat) हैं। क्या खूब राजनीतिक दिमाग पाया है। जिस लालकुआं सीट पर लगातार पिछले दो बार से उन्हीं की राशि के हरीश दुर्गापाल और हरेंद्र बोरा आपस में भिड़े हुए थे और आज तक कभी भी कांग्रेस नहीं जीत पाई, अब कांग्रेस की झोली में जाती बताई जा रही है।
कारण न केवल हरीश के एक दांव में आपस में धुर विरोधी हरेंद्र व हरीश दुर्गापाल एक साथ आ गए हैं, बल्कि अपना दो दिन पूर्व तक आसमान छू रहा अपमान व राजनीतिक भविष्य भूलकर हरीश रावत (Harish Rawat) को जिताने के लिए जुट गए हैं। हरीश रावत (Harish Rawat) जैसे राजनीतिज्ञ ही ऐसा कर सकते थे और उन्होंने कर दिखाया।
बड़ा प्रश्न यह है कि हरीश रावत (Harish Rawat) ने कैसे यह कर दिखाया, इसे समझना हो तो पीछे जाना होगा। पिछले चुनाव से पूर्व हरीश रावत (Harish Rawat) के पुत्र आनंद रावत लालकुआं में अपने लिए राजनीतिक जमीन तलाश रहे थे। नशा मुक्ति एवं खेलों के जरिए उन्होंने ऐसा करने की शुरुआत की, लेकिन जब हरीश व हरेंद्र के टशन में अपनी दाल गलती न देखी तो कदम पीछे खींच लिए और लालकुआं से निकल लेने में ही भलाई समझी।
लेकिन हरीश आनंद के पिता ठहरे। उनकी नजर तो पिछली बार से ही लालकुआं पर थी। लालकुआं से आने के लिए उन्होंने पटकथा लिखते हुए पिछले दिनों लालकुआं के दावेदारों को दिल्ली बुलाया। दावेदार दिल्ली पहुंचे तो उन्हें ठीक से भांपा। फिर मौका देख खुद का टिकट रामनगर का कटवा दिया। यह अच्छी तरह से जानते हुए कि रणजीत कभी उन्हें अपनी पकाई फसल नहीं चट करने देंगे।
दूसरी ओर लालकुआं से संध्या डालाकोटी का टिकट घोषित करवा दिया। हरीश दुर्गापाल या हरेंद्र का नहीं करवाया, क्योंकि जानते थे कि इन दोनों में से जिसे भी टिकट घोषित देंगे, दूसरा शर्तिया विरोध में आएगा। इसलिए रणनीति के तहत संध्या को टिकट दिलवाया।
टिकट मिलने पर संध्या दुर्गापाल के घर आर्शीवाद लेने आई तो उनके घर से पहली बार नारे लगवा दिये, ‘लालकुआं के दो ही लाल, हरेंद्र बोरा-दुर्गापाल’। और इस एक नारे से हरेंद्र बोरा व दुर्गापाल को एक खेमे में और दूसरे में संध्या डालाकोटी को खड़ा करवा दिया।
सोचिए यदि हरीश ने संध्या की जगह यदि हरीश दुर्गापाल या हरेंद्र बोरा का पहले टिकट कटवाया होता तो क्या यही हालात होते ? जिसे भी टिकट नहीं मिलता वह निर्दलीय खम ठोक देता। फिर हरीश रावत (Harish Rawat) आते भी तो जिसका मिला हुआ टिकट कटता वह तो कदापि हरीश के साथ न आता, जैसे इस बार संध्या नहीं आ रही।
दूसरा भले ही आ जाता, पर उसके भरोसे हरीश रावत (Harish Rawat) की जीत सुनिश्चित नहीं होती। संभव है तब हरीश रावत (Harish Rawat) के अलावा हरीश दुर्गापाल, हरेंद्र बोरा, संध्या डालाकोटी भी मैदान में होते….। स्पष्ट है कि इसीलिए हरीश रावत (Harish Rawat) ने यह खेल खेला….।
और इस खेल का ही परिणाम रहा कि अब तक लालकुआं की लड़ाई में ब्राह्मण-क्षत्रिय वोटों का बंटवारा करवाने वाले हरेंद्र व हरीश को हरीश रावत (Harish Rawat) ने चालाकी से एक साथ खड़ा कर दिया, और जैसे ही यह मिशन पूरा हुआ, नेताओं और मीडिया का पूरा फोकस रामनगर पर करवाया तो पीछे से अपने भीतर ‘लड़ सकती हूं’ का भरोसा जगा रही लड़की संध्या की जगह अपना टिकट लालकुआं से घोषित कर दिया।
इस पूरी राजनीतिक नौटंकी के बाद की स्थितियां देखिए। कांग्रेस के लालकुआं विधानसभा से दो धुर विरोधी, ब्राह्मण व क्षत्रिय वोटों की अलग-अलग राजनीति करने वाले क्षत्रप हरीश व हरेंद्र अपने पूरे लाव-लश्कर व वोटों के साथ हरीश रावत (Harish Rawat) की जेब में आ गए हैं। दूसरी ओर संध्या एक लड़की हैं, वह कितना लड़ पाएंगी। इसकी उन्हें परवाह भी नहीं है। उनकी जीत की संभावनाएं काफी बढ़ जो गई हैं….। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : सोशल मीडिया पर ‘हरदा’ बने ‘हारदा’… राहुल गांधी के ‘टाटा.. बाइ-बाइ… गया’ के साथ हो रहे वायरल..
नवीन समाचार, देहरादून, 27 जनवरी 2022। पूर्व सीएम एवं कांग्रेस के चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत (Harish Rawat) के रामनगर छोड़कर लालकुआं से प्रत्याशी घोषित होने पर भाजपा ने उन पर जबर्दस्त निजी हमला किया है। भाजपा उत्तराखंड ने ‘हरदा बने हारदा’ शीर्षक से ट्वीट किया है,
‘धारचूला से हरिद्वार ग्रामीण, हरिद्वार ग्रामीण से किच्छा, किच्छा से डीडीहाट, डीडीहाट से रामनगर, रामनगर से लालकुआं- अभी भी सोच लो हार दा, अभी एक दिन बचा है। जुम्मे की छुट्टी के लगाव के चलते पिरान कलियर से लड़ लो आप। हमारे मुनीश सैनी, वहां आपकी प्रतीक्षा में हैं।’
इसके साथ ही एक वीडियो भी दिखाया जा रहा है, जिसमें राहुल गांधी किसी अन्य संदर्भ में टाटा.. बाइ-बाइ… गया कहते सुनाई दे रहे हैं। यह ट्वीट व वीडियो काफी वायरल हो रहा है। उल्लेखनीय है कि सोशल मीडिया पर अन्यत्र भी हरदा के रामनगर से रणजीत के आगे रणछोड़ साबित होने और उत्तराखंडियत की बात करने वाले हरदा पर पहाड़ से पलायन करने औरर भबरी-भाबरी होने को लेकर भी तंज कसे जा रहे हैं।
धारचूला से हरिद्वार ग्रामीण, हरिद्वार ग्रामीण से किच्छा, किच्छा से डीडीहाट, डीडीहाट से रामनगर, रामनगर से लालकुआं…
ये किसी मैराथन का रूट नहीं है, ये तो कांग्रेस के ‘हार’दा यानी @harishrawatcmuk जी का विधानसभा सीट छोड़कर भागने का रिकॉर्ड है। 😊 pic.twitter.com/jf8j4JGdOX— BJP Uttarakhand (@BJP4UK) January 27, 2022
इसके अलावा एक अन्य ट्वीट में हरीश रावत (Harish Rawat) को रनिंग ट्रेक पर दौड़ते हुए दिखाया गया है। और लिखा गया है, ‘धारचूला से हरिद्वार ग्रामीण, हरिद्वार ग्रामीण से किच्छा, किच्छा से डीडीहाट, डीडीहाट से रामनगर, रामनगर से लालकुआं… ये किसी मैराथन का रूट नहीं है, ये तो कांग्रेस के ‘हार’दा यानी हरीश रावत (Harish Rawat) जी का विधानसभा सीट छोड़कर भागने का रिकॉर्ड है।’ (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : तो हरीश रावत रामनगर नहीं इस सीट से लड़ेंगे चुनाव, दावेदारों को दिल्ली बुलाया….
-रामनगर में भितरघात की आशंका बढ़ने से पेशानी पर बल, रावत अपनी ही सीट पर नहीं फंसे रहना चाहते
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 24 जनवरी, 2021। कांग्रेस के दिग्गज नेता व चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत (Harish Rawat) के चुनाव पर पेंच तगड़ा फंस गया है।
रामनगर से चुनाव लड़ने की स्थिति में रणजीत से रावत के गुट के द्वारा भितरघात की आशंका न केवल हरीश रावत (Harish Rawat) के कैंप में भी है बल्कि आलाकमान भी इस बात को गंभीरता से ले रहा है। रणजीत किसी हद पर मानने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि अब रावत का नाम लालकुआं से भी चलने लगा है।
रामनगर में भितरघात की आशंका कांग्रेस के आलानेताओं की ओर से ही जतायी गयी है। रावत खेमा भी इन आशंकाओं को हल्के में नहीं ले रहा है। पिछली बार दो-दो सीटों से चुनाव हारने के बाद हरीश रावत (Harish Rawat) भी खुद नहीं चाहेंगे कि चुनाव अभियान समिति के प्रमुख होने की स्थिति में उनकी अपनी ही सीट पर फंसकर रह जाएं।
बताया जा रहा है कि आलाकमान चाहता है कि हरीश रावत (Harish Rawat) पूरे प्रदेश में समय दें और वे चुनाव लड़ने की स्थिति में कम से अपनी सीट पर फंसकर न रह जाएं। यही वजह है कि इन सब परिस्थितियों को देखते हुए अब रामनगर के बजाय उन्हें लालकुआं सीट पर भी संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है।
इस बीच खबर है कि लालकुआं से प्रबल दावेदार रहे पूर्व हरीश दुर्गापाल को दिल्ली बुलाया गया है। दुर्गापाल को हरीश रावत (Harish Rawat) का ही करीबी माना जाता है। लालकुआं से अभी हरीश रावत (Harish Rawat) के नजदीकी पूर्व मंत्री हरीश दुर्गापाल व व प्रीतम सिंह की पसंद संध्या डालाकोटी के साथ ही हरेन्द्र बोरा की ओर से तगड़ी दावेदारी है।
कहा जा रहा है कि हरीश रावत (Harish Rawat) अगर लालकुआं से चुनाव लड़ने को राजी हो जाएं तो प्रीतम सिंह के साथ ही कोई भी दूसरा नेता विरोध नहीं करेगा। उसका कारण यह भी होगा कि हरीश रावत (Harish Rawat) के लालकुआं शिफ्ट होने पर रामनगर से रणजीत रावत का टिकट पक्का हो जाएगा।
अलबत्ता, हरीश दुर्गापाल यह सब भांप गए हैं, और उन्होंने रविवार को ही बगावती सुर अपना लिए हैं। वह पहले भी कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय चुनाव जीत चुके हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि आखिर ऊंट किस करवट बैठता है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : जानें क्यों ? मोदी के बाद अब हरीश रावत (Harish Rawat) ने मांगी माफी, लोगों ने कहा-राजमाता से फटकार लगी होगी….
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 26 दिसंबर 2021। राजनीति में कम ही लोग अपनी गलती पर माफी मांगते हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर यह कहकर माफी मांगी थी कि वह कुछ लोगों को इन कानूनों के बारे में समझा नहीं पाए। अब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) ने माफी मागी है।
रावत ने सोशल मीडिया पर लिखा है, ‘कल प्रेस कांफ्रेंस में थोड़ी गलती हो गई। ‘मेरा नेतृत्व’ शब्द से अहंकार झलकता है। चुनाव मेरे ‘नेतृत्व’ में नहीं बल्कि मेरी अगुवाई में लड़ा जाएगा। मैं अपने उस घमंडपूर्ण उद्बोधन के लिए क्षमा चाहता हूं। मेरे मुंह से वह शब्द शोभा जनक नहीं है।’
कल #pressconference में थोड़ी गलती हो गई, मेरा नेतृत्व शब्द से अहंकार झलकता है। चुनाव मेरे नेतृत्व में नहीं बल्कि मेरी अगुवाई में लड़ा जाएगा। मैं अपने उस घमंडपूर्ण उद्बोधन के लिए क्षमा चाहता हूं, मेरे मुंह से वह शब्द शोभा जनक नहीं है।#uttarakhand@INCIndia @INCUttarakhand pic.twitter.com/XRPwiXdpU4
— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) December 26, 2021
अब हरीश की मांफी पर जो टिप्पणियां आ रही हैं, उन्हें भी देख लीजिए। एक ने लिखा है, ‘राजमाता से फटकार लगी होगी’, अन्य ने लिखा है, क्षमा वीरता का विभूषण है, यह बात आपको समझ में आ रही है, पर यह बात कांग्रेस को समझ में नहीं आयी जब मोदी ने किसानों से क्षमा मांगी, क्षमा मांगने वाले का दिल और उसकी ताकत को देखना चाहिए, परंतु राहुल गांधी और पूरी कांग्रेस नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाने में लगी रही।
मजाक महंगा पड़ता है.… अन्य ने लिखा है, आपने बहुत अच्छा बहुत ज्यादा कांग्रेस के लिए काम किया है, अब आप कैप्टन अमरिंदर की राह पर मत चलिए, नए लोगों को जगह दीजिए, अपना अनुभव दीजिए, मान सम्मान अर्जित कीजिए, जो कांग्रेस की परंपरा है….
इसी तरह अन्यान्यों ने लिखा है, उम्र आड़े आ रही है, अनुभव का फायदा कांग्रेस को दीजिए नए लोगों के लिए जगह छोड़िए…. दरअसल रावत जी जुबां पर दिल की बात चली आई, एक पहाड़ी और कांग्रेस समर्थक होने के नाते मैं आपकी इज्जत करता हूं, लेकिन आपके पिछले कुछ दिनों के कार्यकलाप से दिल में सिर्फ खटास पैदा हुई है। शायद यही बात आप कुछ बेहतर अंदाज से भी कह सकते थे….
जिस तरह धनुष से निकला हुआ बांण वापस नहीं आता उसी तरह आपका प्रकट किया हुआ खुद का घमंड अब धुल नहीं सकता, राष्ट्रीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक पूरी कांग्रेस पार्टी घमंड और अहंकार में ही चूर है…. अब उम्र हो गयीहै, यह इशारा है, समझदार के लिए इशारा है, अब आप की जिम्मेदारी होनी चाहिए नए नेतृत्व को सिंचित कर आगे लाना….
राहुल गांधी को पसंद नही आया होगा ये बयान, तभी क्षमा मांग रहे हो, बाकी कांग्रेस आपसे है उत्तराखंड में ना की आप कांग्रेस से है… आदि-आदि। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : दिल्ली के फरमान के बाद हरीश रावत (Harish Rawat) का ‘ट्वीट बम’ फुस्स……!
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 23 दिसंबर 2021। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) कल के अपने स्टेंड से पलट गए हैं। बृहस्पतिवार को उन्होंने अपने कल के ‘चुनाव रूपी समुद्र’ हैशटैग के साथ लिखे ट्वीट को अभी भी ‘पिन्ड’ रखने के बावजूद नया ट्वीट किया है।
इसमें उन्होंने अपनी खीझ मिटाते हुए लिखा है, ‘मेरा ट्वीट रोजमर्रा जैसा ही ट्वीट है, मगर आज अखबार पढ़ने के बाद लगा कि कुछ खास है, क्योंकि भाजपा और आप पार्टी को मेरी ट्वीट को पढ़कर बड़ी मिर्ची लग गई है और इसलिये बड़े नमक-मिर्च लगाये हुये बयान दे रहे हैं।’
अब कोई हरीश रावत (Harish Rawat) से पूछे कि इस ट्वीट पर मिर्ची वास्तव में किसे लगी है। नहीं लगी होती तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली क्यों बुलाया गया होता। हरीश रावत (Harish Rawat) के पास इस प्रश्न का भी जवाब नहीं होगा कि इंटरनेट मीडिया पर इतना सक्रिय रहने के बावजूद उन्हें कल समाचार वेबसाइटों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से यह बात क्यों पता नहीं चली ?
अलबत्ता यह साफ़ है कि दिल्ली से बुलावा आने या कहें कि वहां से मिली किसी घुड़की के बाद हरीश रावत (Harish Rawat) के सुर बदले हैं। और इसके साथ लगता है कि हरीश रावत (Harish Rawat) द्वारा छोड़ा गया ‘ट्वीट बम’ फिलहाल ‘फुस्स’ हो गया है। अलबत्ता, इस पर सही स्थिति शुक्रवार को दिल्ली में बैठक के बाद कुछ हद तक साफ हो सकती है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : हरीश रावत (Harish Rawat) की ‘प्रेसर पॉलिटिक्स’ में साथ आए तीन बड़े नेता, क्या हैं आगे हरीश रावत (Harish Rawat) की संभावनाएं…..
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 22 दिसंबर 2021। बुधवार को अपने ‘ट्वीट बम्स’ से चर्चा के केंद्र में रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) के समर्थन में उनके सलाहकार सुरेंद्र कुमार के बाद तीन और नेता, राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व धारचूला के विधायक हरीश धामी आ गए हैं।
तीनों नेताओं ने हरीश रावत (Harish Rawat) में हर वह कदम उठाने की चेतावनी दे डाली है, जो हरीश रावत (Harish Rawat) के समर्थन के लिए जरूरी है। तीनों ने सुरेंद्र कुमार की तर्ज पर ही दोहराया है कि हरीश रावत (Harish Rawat) ही उत्तराखंड कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं, इसलिए उन्हें ही राज्य में कांग्रेस का चेहरा घोषित करना चाहिए, और ऐसा न करने वाले कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने चाहते हैं।
गौरतलब है कि हरीश रावत (Harish Rawat) के आज के कदम पर तरह-तरह के कयास लग रहे हैं। राष्ट्रीय मीडिया में भी चर्चा है कि कल तक पंजाब के विवाद को निपटाने में लगे और कांग्रेस हाइकमान के इशारे पर पंजाब में कांग्रेस के चेहरे अमरिंदर सिंह को पार्टी से बाहर जाने को मजबूर करने में वहां के प्रभारी के रूप में बड़ी भूमिका निभाने वाले हरीश रावत (Harish Rawat) अब कांग्रेस हाईकमान के इशारे पर उत्तराखंड के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव के निशाने पर हैं।
उनकी नापसंद के नेताओं को राज्य में कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्हें उत्तराखंड में कांग्रेस का चेहरा घोषित करने की जगह राहुल गांधी को चेहरा घोषित किया गया है, ताकि वह कुछ बोल नहीं पाएं….।
ऐसे में कयास लग रहे हैं कि हरीश रावत (Harish Rawat) कांग्रेस छोड़ सकते हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें भाजपा में शामिल होने की सलाह देने वालों की भी कमी नहीं है। उनके राजनीति से सन्यास लेने के भी कयास लग रहे हैं। लेकिन खासकर हरीश रावत (Harish Rawat) की राजनीति के जानकारों का मानना है कि ऐसा कुछ भी फिलहाल नहीं होने जा रहा है।
हरीश रावत (Harish Rawat) की यह सारी कवायद ‘प्रेसर पॉलिटिक्स’ का हिस्सा है, जिसके तहत वह फौरी तौर पर अपने लोगों को टिकट दिलाना चाहते हैं, ताकि भले अभी वह कांग्रेस का चेहरा घोषित न हो पाएं, लेकिन कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में अपनी पसंद के विधायकों की पसंद से मुख्यमंत्री बन पाएं। बुधवार को रावत की उक्रांद नेताओं से मुलाकात भी इसी ‘प्रेसर पॉलिटिक्स’ का हिस्सा मानी जा रही है।
उनकी राजनीति को जानने वाले कांग्रेस के नेताओं के अनुसार देवेंद्र यादव को प्रदेश प्रभारी के पद से हटाना व अपने पुत्र एवं पुत्री को टिकट दिलाना भी उनकी प्राथमिकता में हो सकता है। उनसे संबंधित इतिहास दिलचस्प है कि उन पर तरजीह देकर मुख्यमंत्री बनाए गए पंडित एनडी तिवारी व विजय बहुगुणा की सरकारों में उनका क्या रवैया था
और खुद मुख्यमंत्री बनने पर उनके कार्यकाल में कांग्रेस में कितनी बड़ी टूट हुई थी और दो-दो विधानसभा सीटों के बाद लोकसभा चुनाव में राज्य में सबसे बड़ी हार के बावजूद वे ही उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता बताए जाते हैं।
गौरतलब है कि दूसरी ओर कांग्रेस का हाईकमान है जो राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी को अपनी तरह से चलाने, या कहें कि बर्बाद करने पर आमादा है। अपनी इस कोशिश में उन्होंने राजस्थान के अलावा कहीं झुकने का संदेश नहीं दिया है।
यूपी, मध्य प्रदेश व पंजाब में वह अपनी इसी कवायद से ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद व अमरिंदर सिंह जैसे पुश्तैनी-खानदानी कांग्रेस नेताओं को पार्टी छोड़ने पर मजबूर कर चुके हैं। देखने वाली बात यह होगी कि वह हरीश रावत (Harish Rawat) के बारे में क्या तय कर चुके हैं, और जो वह तय कर चुके हैं, उस पर अडिग रहते हैं या नहीं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : कांग्रेस के राहुल के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद हरीश रावत (Harish Rawat) हताश-निराश, लिखी पोस्ट, टिप्पणियां और भी टेंशन बढ़ाने वालीं….
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 22 दिसंबर 2021। कांग्रेस पार्टी द्वारा राहुल गांधी के उत्तराखंड दौरे के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) के साथ रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। अब तक स्वयंभू तरीके से ‘सबकी चाहत-हरीश रावत’ (Harish Rawat) और ‘हरदा आला..’ के नारे लगवाकर खुद को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बता रहे हरीश रावत (Harish Rawat) के बारे में अब साफ हो गया है कि वह कांग्रेस का आसन्न विधान सभा चुनाव में चेहरा नहीं हैं।
पार्टी ने किसी तरह के टकराव से बचने के लिए कह दिया है, कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। उन राहुल गांधी के, जो कई सालों के बाद एक बार उत्तराखंड आए हैं, और आगे चुनाव अभियान के दौरान कितनी बार आएंगे, कुछ पता नहीं।
बहरहाल, मुख्यमंत्री की संभावित कुर्सी हाथों से जाते देख हरदा गहरी उधेड़बुन और निराशा में हैं। सोशल मीडिया पर उन्होंने अपनी निराशा हैशटैब ‘चुनाव रूपी समुद्र’ और हैशटैग ‘राजनीति’ के माध्यम से व्यक्त की है। उनकी इस निराशा भरी पोस्ट्स पर जो टिप्पणियां आ रही हैं, उनमें से कुछ को छोड़कर अन्य भी उनकी निराशा को बढ़ाने वाली नजर आ रही हैं। इससे कांग्रेस की आसन्न चुनाव में स्थिति भी बयां हो रही है।
यह भी देखें विडियो : क्या पंजाब में भी कांग्रेस की उत्तराखंड जैसी ‘खंड-खंड’ हालत के लिए हरदा जिम्मेदार !
हरीश रावत (Harish Rawat) ने लिखा है, ‘है न अजीब सी बात, चुनाव रूपी समुद्र को तैरना है, सहयोग के लिए संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग का हाथ आगे बढ़ाने के बजाय या तो मुंह फेर करके खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। जिस समुद्र में तैरना है, सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं। जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं।
मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि हरीश रावत (Harish Rawat) अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिये, अब विश्राम का समय है! फिर चुपके से मन के एक कोने से आवाज उठ रही है ‘न दैन्यं न पलायनम्’ बड़ी उपापोह की स्थिति में हूंँ, नया वर्ष शायद रास्ता दिखा दे। मुझे विश्वास है कि भगवान केदारनाथ जी इस स्थिति में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।’
एक अन्य पोस्ट में हरीश रावत (Harish Rawat) ने लिखा है, ‘मैं आह भी भरता हूँ तो लोग खफा हो जाते हैं। यदि उत्तराखंड के भाई-बहन मुझसे प्यार जता देते हैं तो लोग उलझन में पड़ जाते हैं। मैंने पहले भी कहा है कि हम लाख कहें, लोकतंत्र की दुल्हन तो वही होगी जो जनता रुपी पिया के मन भायेगी। मैं तो केवल इतना भर कहना चाहता हूँ कि उत्तराखंड, यदि मैं, आपके घर को आपके मान-सम्मान के अनुरूप ठीक से संभाल सकता हूँ तो मेरे समर्थन में जुटिये।
(Harish Rawat) राजनीति की डगर सरल नहीं होती है, बड़ी फिसलन भरी होती है। कई लोग चाहे-अनचाहे भी धक्का दे देते हैं, ये धक्का देने वालों से भी बचाइये। यदि मैं आपके उपयोग का हूँ तो मेरा हाथ पकड़कर मुझे फिसलन और धक्का देने वाले, दोनों से बचाइये।’
अब इन पोस्ट्स पर टिप्पणियं भी देखिए। एक ने लिखा है, ‘आपसे कोई शिकायत नहीं, पर जब आप पप्पू को अपना नेता मानोगे तो फिर आप क्या हुए ?’, अन्य लिखते हैं, ‘पप्पू के कारण आपका ही नहीं, अनेक योग्य नेताओं का कांग्रेस में नुकसान हुआ, ऐसी भयानक मजबूरी क्या है जो आप पप्पू को छोड़ नही सकते, न पप्पू पास होगा न होने देगा.., बहुत हुआ रावत जी।
आप एक वरिष्ठ राजनीतिज्ञ हैं और अपने फैसले लेने में सक्षम भी हैं.. अब आदेश नहीं आत्ममंथन कर अपनी सुनिए… अगर दिल में इतना दर्द है तो पार्टी छोड़ दीजिए वैसे भी आप डूबती जहाज पर सवार हैं… आदरणीय रावत जी छोडि़ए पप्पू पार्टी, उत्तराखंड आधारित पार्टी बनायें और उत्तराखंड को दिशा दिखाइए. हमें अभी भी लगता है कि उत्तराखण्ड के नव निर्माण में आप सक्षम है…. मैंने आपको जब पप्पू के लिए कुर्सी उठाते देखा तब ही मेरा दिल रो दिया था।
It’s better late than never. Listen to your soul and move on…. जहां सम्मान न हो वहां नहीं रहना चाहिए….. रावत साहब , विद्वान लोगों के पास विकल्पों की कमी नहीं होती। आप जनता की सेवा का व्रत लेकर निकले हैं… सहयोग के अभाव में ही कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नए विकल्पों पर विचार किया। आप भी स्वतंत्र हैं…. पार्टी बनाने, दूसरी में जाने की जगह सन्यास लीजिये।
विश्राम करिए, हर दल के पहाड़ हितैषी के मार्गदर्शन के लिए उपलब्ध रहिए। अब कोई कदम कद छोटा ही करेगा, शीर्ष की प्रतिष्ठा के साथ रहना अच्छा रहेगा….. ऐसा प्रतीत होता है कांग्रेस के एक और क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस से हाथ छिटकने वाले हैं…! इज्जत चाहिए तो… या तो बीजेपी परिवार में शामिल हो जाओ.. या सन्यास ले लो…
आपके बहुत सारे मित्र और आपकी तरह ही घनघोर कांग्रेसी इसी अव्यवस्था के कारण पार्टी छोड़े होंगे क्योंकि एक परिवार के लिए काम करने से बेहतर है देश के लिए काम करना… बात समुद्र की है या “पानी” की? और पानी भी कहाँ का? पंज+आब यानी पंजाब का; या गंगा के उद्गम-प्रदेश उत्तराखंड का; या फिर “राम तेरी गंगा मैली” वाली कांग्रेस का ? इस रहस्योद्घाटन का मुहूर्त क्रिसमस पर होगा या मकर संक्रांति पर? सद्गति भाजपा में ही मिलेगी रावत जी….
आपके प्रश्न का उत्तर है भाजपा…. केन्द्र में राहुल ओर प्रदेश में हरीश रावत (Harish Rawat) दोनो हानिकारक हैं, हरदा हटाओ कांग्रेस बचाओ…, यदि ऐसा होता तो आप 2017 में दोनों सीटों से नहीं हारते। सीएम साहब जनता की याद सिर्फ चुनाव में ही आती है राजनेताओं को, वो चाहे कोई भी हो…’ वहीं खुद को कट्टर कांग्रेसी बताने वाली एक महिला लिखती हैं, ‘मैंने तो आपके हक की लड़ाई लड़ी, आपको बुरा कहने वालों से लड़ी, और मुझे कमेटी से बाहर कर दिया, उस पर आपने कुछ नहीं किया, क्यूँ??’
अन्य ने लिखा है, ‘हरदा अगर उत्तराखंड की जनता आपसे इतना ही प्यार जताती तो यूं 2 जगह से घर पर ना बैठाए रखती... इस बार भी आपके लिए मुख्यमंत्री बनने की सोचने से ज्यादा असमंजस तो यही होगा कि आखिर चुनाव लडंू कहां से। जहां भाजपा सबसे कमजोर है, वह सीट ढूंढने में व्यस्त होंगे…, खतरा झलक रहा है आपके विचारों में, अपनों से ही… रावत जी आप नेता तो बहुत अच्छे है लेकिन बहुत गलत पार्टी में हैं।
एक नई पार्टी का गठन करें… सर 39 प्रतिशत लोगों ने सर्वे में आपको मुख्यमंत्री के चेहरों में पहले नंबर पर रखा है, पर पता नहीं ये वोट के समय कौन सा बटन दबा देते हैं। ये तो सरासर चीटिंग है ना सर… या तो सर्वे में मुख्यमंत्री मत बनाओ…।आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : अचानक केदारनाथ पहुंचे हरीश रावत, वहां खास अंदाज पर हो रहे वायरल
नवीन समाचार, केदारनाथ, 26 अक्टूबर 2021। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दीपावली के दौरान आगामी 5 नवंबर को केदारनाथ आने का समाचार आते ही उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत मंगलवार को अचानक केदारनाथ पहुंच गए। यहां पहुंचने पर हरीश रावत कुछ अलग अंदाज में दिखे। देखें पूरा वीडियो:
उन्होंने एक बाबा जी से उनका त्रिशूल और डमरू अपने हाथ में ले लिया और उसे लेकर झूमने लगे। वहीं बाबा की डोली से उन्हें आर्शीवाद मिलता भी दिखा। इस दौरान रावत ने स्थानीय लोगों एवं पार्टी कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात की और उनकी बात सुनी। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : प्रदेश अध्यक्ष के साथ नैनीताल पहुंचे हरीश रावत (Harish Rawat) , की दैवीय आपदा के दृष्टिगत आपदाग्रस्त क्षेत्र घोषित करने व अविलंब विशेष राहत पैकेज देने की मांग
कहा-पांच दिन में व्यवस्थाएं सुचारू न हुई तो कांग्रेस शुरू करेगी आंदोलन
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 22 अक्टूबर 2021। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत (Harish Rawat) शुक्रवार को जनपद में आपदा से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के साथ पहली बार जिला मुख्यालय पहुंचे।
इस दौरान उन्होंने प्रदेश सरकार से नैनीताल को आपदाग्रस्त क्षेत्र घोषित करने और उस अनुसार राहत देने को कहा है। उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से राहत हेतु विशेष आर्थिक पैकेज घोषित किए जाने की भी आवश्यकता जताई।
यहां आपदाग्रस्त हरिनगर के विस्थापित परिवारों से मिलने के बाद उन्होंने कहा कि आपदा के पांच दिन हो गए हैं। कांग्रेस नहीं चाहती कि सरकार का बचाव कार्यों से ध्यान हटे इसलिए प्रदेश अध्यक्ष गोदियाल ने कहा है कि वह प्रदेश सरकार को राहत कार्यों के लिए पांच दिन और देते हैं। यदि इस अवधि तक बचाव व राहत के अपेक्षित कार्य नहीं होने पर उपवास और फिर प्रदर्शन करेंगे।
उन्होंने कहा कि सरकार को इस इलाके को आपदाग्रस्त घोषित करना चाहिए। भविष्य के बचाव के लिए व्यवस्थाएं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कई जगह घर नालों के पास बने हैं, और उनके बचाव के लिए कोई प्रबंध नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस समय जो युद्ध स्तर पर राहत कार्य होने चाहिए थे, वह नहीं हो रहे हैं। यहां तक कि अभी बचाव के कार्य भी पूरे नहीं हुए हैं। अभी भी कुछ लोग दबे हुए हैं।
उन्होंने राज्य सरकार पर शुरुआती 36 घंटों में बचाव कार्य शुरू नहीं कर पाने का आरोप भी लगाया। इस दौरान उनके साथ पूर्व विधायक व महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्य, डॉ. रमेश पांडे, नगर कांग्रेस अध्यक्ष अनुपम कबड़वाल, धीरज बिष्ट, मारुति नंदन साह, सभासद रेखा आर्य, निर्मला चंद्रा, मुकेश जोशी, पप्पू कर्नाटक सहित अन्य पार्टीजन मौजूद रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : क्या पंजाब में भी कांग्रेस की उत्तराखंड जैसी ‘खंड-खंड’ हालत के लिए हरदा जिम्मेदार !
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 29 सितंबर 2021। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि उत्तरांचल को उत्तराखंड बनाने वाली कांग्रेस पार्टी की पंजाब में भी ‘खंड-खंड’ जैसी हालत हो गई है। उत्तराखंड में जैसे हरदा यानी हरीश रावत (Harish Rawat) के मुख्यमंत्री रहते अच्छी खासी चलती कांग्रेस पार्टी की सरकार में ‘खंड-खंड’ की स्थितियां उत्पन्न हुईं, और सत्ता बमुश्किल दहाई अंकों में विधायकों के आने के साथ कांग्रेस के ‘हाथ’ शर्मनाक हार आई,
स्वयं रावत दो-दो विधानसभाओं के बाद लोकसभा का चुनाव भी राज्य में सबसे बड़े अंतर से हारे, कमोबेश वैसी ही स्थिति पंजाब में भी उनके प्रदेश प्रभारी रहते हो जाए तो आश्चर्य न होगा। बेशक पंजाब कांग्रेस की आज की स्थितियों के लिए पार्टी के कमजोर व अदूरदर्शी नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन उत्तराखंड व पंजाब में कांग्रेस की कमोबेश एक जैसी स्थितियों के पीछे एक साम्य दोनों जगह हरीश रावत (Harish Rawat) की सक्रिय मौजूदगी भी है।
इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। ऐसा भी लगता है कि जैसे हरीश रावत (Harish Rawat) को पंजाब में कांग्रेस की उत्तराखंड जैसी ही दुर्गति करने को भेजा गया हो और वह अपना मिशन पूरा कर अब जल्द से जल्द उत्तराखंड लौटना चाहते हैं।
हरीश रावत (Harish Rawat) की राजनीतिक चतुराई कहें कि मजबूरी] कि उनका कमजोर नेतृत्व के प्रति भी भाट-चारणों की तरह महिमामंडल करने वाला चरित्र, वह नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा ही सबसे पहले ‘पप्पू’ कहे गए राहुल गांधी की प्रशंसा एवं उनके इशारों पर किसी भी स्थिति तक जाने को उद्यत नजर आते हैं। पंजाब का प्रदेश प्रभारी रहते इसी कारण उन्होंने अनुभवी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर पार्टी में नए आए बड़बोले व पूर्व में हास्य कार्यक्रमों के निर्णायक रहे सिद्धू को तरजीह दी।
उन्हीं के कार्यकाल में सिद्धू पंजाब के प्रदेश अध्यक्ष बने और लगातार कबोबेश उसी तरह, जैसे हरीश रावत (Harish Rawat) अपनी पूर्ववर्ती एनडी तिवारी और विजय बहुगुणा की सरकारों को कमजोर करते रहे, सिद्धू भी कैप्टन सरकार की नाक में दम किए रहे।
इसकी पहली परिणति कैप्टन को सत्ताच्युत करने के रूप में हुई। इसके बावजूद अपने पक्ष में दो तिहाई से अधिक पार्टी विधायकों का बहुमत दिखाने के बावजूद सिद्धू मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। मजबूरी में चरनजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने, लेकिन रावत ने फिर यह कहकर पंजाब कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का प्रयास किया कि अगला चुनाव सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
इस पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को सफाई देनी भारी पड़ी। रावत ने अपने इस बयान की उत्तराखंड में भी दलित मुख्यमंत्री बनाने की इच्छा जताकर क्षतिपूर्ति करने का फिर गलत दांव चला, जिस पर उनकी ही पार्टी के उत्तराखंड के नेताओं को उन्हें आईना दिखाना पड़ा।
अब जबकि सिद्धू, उत्तराखंड में अपना आखिरी चुनाव लड़ने की बात कह रहे हरीश रावत (Harish Rawat) के, उनके पक्ष में किए दावे के करीब सप्ताह भर बाद ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद से त्यागपत्र दे चुके हैं। इससे न केवल कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठ रहे हैं, वरन रावत के राजनीतिक कौशल पर भी सवाल उठने लाजिमी हैं।
इससे उनके उत्तराखंड के कुछ ही माह बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए ‘स्वयंभू चेहरा’ घोषित होने की संभावनाओं पर भी प्रभाव पड़े तो आश्चर्य नहीं होगा। साथ ही पंजाब के प्रभारी पद से पहले ही इस्तीफा देने की पेशकश कर चुके रावत के उत्तराखंड लौटने व यहां समय देने की संभावनाओं पर भी इस घटना के बाद विलंब होना तय है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : आखिर क्यों व किससे इतना डरे हुए हैं हरीश रावत (Harish Rawat) ? कभी युद्ध भूमि में जान देने तो अब तेजाबी हमले की जता रहे आशंका…
डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 3 सितंबर 2021। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत (Harish Rawat) पिछले तीन चार दिनों से न जाने क्यों इतना डरे हुए हैं। हमेशा सोशल मीडिया पर अपने बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले रावत ने गत दिनों कहा था कि सिद्धांत, पार्टी, समाज, देश, प्रांत आदि के लिए कुछ लड़ाईयां लड़नी पड़ती हैं, चाहे उनको लड़ते-लड़ते युद्ध भूमि में ही दम क्यों न निकल जाये।
लेकिन अब वह डरते नजर आ रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस नेताओं पर तेजाबी हमला होने की आशंका जताई है। श्री रावत ने सोशल मीडिया पर आशंका जताई है कि ‘राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता में छात्रों को उकसा करके, या कुछ लोगों को प्रोत्साहित करके, उनके जरिए स्याही में तेजाब मिलाकर कांग्रेस के नेताओं पर फेंका जा सकता है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले श्री रावत ने एक पूर्व नौकरशाह पर राज्य के तीन राजनीतिक दलों के लिए राजनैतिक उघाई करने संबंधी बयान देकर चर्चा बटोरी थी।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने बृहस्पतिवार देर रात्रि किए गए एक ट्वीट में ‘राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता, स्वस्थ प्रतिद्वंद्विता, वैचारिक प्रतिद्वंद्विता व कर्म करने की प्रतिद्वद्विता’ का जिक्र करते हुए आशंका जताई है कि ‘राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता में छात्रों को उकसा करके, या कुछ लोगों को प्रोत्साहित करके, उनके जरिए स्याही में तेजाब मिलाकर कांग्रेस के नेताओं की यात्रा में किसी एक व्यक्ति को चिन्हित करके फेंकना चाहेंगे…’
इससे पहले एक सितंबर को श्री रावत ने ट्वीट किया था, ’कभी अपने साथ लोगों के द्वेष को देखकर मन करता है कि सब किस बात के लिये और फिर मैं तो राजनीति में वो सब प्राप्त कर चुका हूंँ जिस लायक में था। फिर मन में एक भाव आ रहा है, सभी लड़ाईयां चाहे वो राजनैतिक क्यों न हों, वो स्वयं सिद्धि के लिए नहीं होती हैं। सिद्धांत, पार्टी, समाज, देश, प्रांत कई तरीके के समर्पण मन में उभर करके आते हैं, कुछ लड़ाईयां उसके लिए भी लड़नी पड़ती हैं, चाहे उसको लड़ते-2 युद्ध भूमि में ही दम क्यों न निकल जाये!’
इसी पोस्ट में रावत ने आगे यह भी आशंका जताई थी कि ‘एक रिटायर्ड नौकरशाह आजकल सत्तारूढ़ दल ही नहीं बल्कि तीन-तीन राजनैतिक दलों के लिये एक साथ राजनैतिक उघाई कर रहे हैं, खनन की उघाई भी बंट रही है।’ ‘सत्तारूढ़ दल मुझे युद्ध भूमि में राजनैतिक अस्त्रों से परास्त करने के बाद अन्यान्य अस्त्रों की खोज में है तो दूसरी तरफ एक राजनैतिक दल किसान और कुछ राजनैतिक स्वार्थों के साथ राजनैतिक दुरासंधि हो रही है, कहीं-कहीं 22 नहीं तो 2027 की सुगबुगाहट भी हवाओं में है..।’
तीन दिन के भीतर रावत के इन दोनों ट्वीट से यह बात साफ तौर पर निकल कर आ रही है कि वह डरे हुए हैं। लेकिन किससे डरे हुए हैं, इसका जिक्र भी वह अपने ट्वीट में कर रहे हैं। उन्होंने अपने पहले ट्वीट में ‘अपने साथ लोगों के द्वेष’ का जिक्र किया है। इससे साफ है कि वह अपनी पार्टी से पहले अपने लिए डर रहे हैं, और खुद से द्वेष रखने वालों से डर बता रहे हैं, और इसके बावजूद ‘लड़ते-2 युद्ध भूमि में ही दम निकलने’ तक लड़ने की बात कर रहे हैं।
इसी ट्वीट के दूसरे हिस्से में रावत किसी सेवानिवृत्त नौकरशाह से तीन राजनैतिक दलों के लिए एक साथ राजनैतिक उघाई की बात कर रहे हैं, और इन दलों में उनका दल नहीं है, यह उन्होंने कहीं नहीं कहा है। वहीं तीसरे हिस्से में वह सत्तारूढ़ दल द्वारा उन्हें राजनीतिक अस्त्रों से ‘परास्त करने के बाद’ अन्यान्य अस्त्रों की खोज करने और दूसरे राजनीतिक दल पर किसान और अन्य राजनैतिक स्वार्थों के साथ हाथ मिलाने का इशारा कर रहे हैं।
इस सबसे लगता है कि रावत न केवल सत्तारूढ़ दल, बल्कि किसान आंदोलन और राज्य में उभर रही आम आदमी पार्टी से ही नहीं, बल्कि अपने दल के लोगों से भी डरे हुए हैं। क्योंकि वे जिस ‘राजनैतिक, स्वस्थ, वैचारिक व कर्म करने की प्रतिद्वद्विता’ का जिक्र कर रहे हैं, वह उनकी अन्य राजनैतिक दलों से ही नहीं, अपने दल के लोगों से भी है।
(Harish Rawat) साथ ही वे जिन तीन राजनैतिक दलों के लिए एक साथ राजनैतिक उघाई की बात कर रहे हैं, उसमें उन्होंने अपने दल के शामिल होने से इंकार नहीं किया है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : बयान से बुरे फंसे हरीश रावत (Harish Rawat) , सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी, झाडू लगाकर करेंगे प्रायश्चित
डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 1 सितंबर 2021। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के प्रजाब प्रभारी हरीश रावत (Harish Rawat) इस बार अपने बयान से बुरी तरह से फंस गए हैं। स्थिति यह हो गई है कि उन्हें तत्काल बैक फुट पर आते हुए अपने बयान पर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी पड़ी है। यही नहीं रावत ने अपनी गलती के प्रायश्चित के तौर गुरुद्धारे में झाडू़ लगाने का ऐलान किया है।
हुआ यह कि रावत ने मंगलवार को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिद्धू और कार्यकारी अध्यक्षों के लिए ‘पंज प्यारे’ शब्द का इस्तेमाल किया था। जिसके बाद ही पंजाब में उनके बयान का तेज विवाद शुरू हो गया था। विपक्षी दलों के साथ ही सिखों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था अकाल तख्त ने रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, और शिरोमणि अकाली दल ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में रावत के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग तक कर डाली थी।
ऐसे में रावत ने बुधवार को अपने इस बयान से सियासी नफे-नुकसान का अंदाजा लगाकर माफी मांगने में ही भलाई समझी। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा है, ‘कभी आप आदर व्यक्त करते हुये, कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग कर देते हैं जो आपत्तिजनक होते हैं। मुझसे भी कल अपने माननीय अध्यक्ष व चार कार्यकारी अध्यक्षों के लिए पंज प्यारे शब्द का उपयोग करने की गलती हुई है।
मैं देश के इतिहास का विद्यार्थी हूंँ और पंज प्यारों के अग्रणी स्थान की किसी और से तुलना नहीं की जा सकती है। मुझसे ये गलती हुई है, मैं लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। मैं प्रायश्चित स्वरूप अपने राज्य के किसी गुरुद्वारे में कुछ देर झाड़ू लगाकर सफाई करूंगा। मैं पुनः आदर सूचक शब्द समझकर उपयोग किये गये अपने शब्द के लिये मैं सबसे क्षमा चाहता हूँ।’
गौरतलब है कि पंज प्यारे खालसा सिख धर्म के विधिवत दीक्षाप्राप्त अनुयायियों का सामूहिक रूप है। खालसा पंथ की स्थापना श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी वाले दिन श्री आनंदपुर साहिब में की। इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पंज प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया और इसके बाद उन पंज प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : हरीश रावत (Harish Rawat) ने ‘निशंक’ पर लिखा लंबा लेख, कहा-उनके पद से हटते हुए लगा, मुझसे कुछ छीन लिया गया हो..
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 11 जुलाई 2021। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत (Harish Rawat) कभी-कभी बड़े व्यक्तित्व में नजर आते हैं। कभी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ आम खाते नजर आए और उनके अलावा तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनके लिए दुःख व्यक्त करने वाले हरीश रावत (Harish Rawat) जुबान के साथ कलम भी अच्छी चलाते हैं।
पूर्व में उनका रायते को लेकर भी एक लेख खासा पसंद किया गया था। अब रावत ने अभी हाल मंे केंद्रीय शिक्षा मंत्री के पद से हटे डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के बारे में एक लंबा लेख लिखकर उनके प्रति गैर राजनीतिक संवेदना व्यक्त की है।
श्री रावत ने लिखा है, ‘राजनीति में पद आते हैं और पद छिनते भी हैं। मगर कुछ लोगों से पद का छिन जाना, गहरी व्यथा देता है। निशंक जी, राज्य के भूतपूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री पद सुशोभित कर चुके, एक ऐसे व्यक्ति हैं जो ग्रामीण परिवेश से, एकदम सामान्य पर्वतीय घर से निकलकर देश के मानव संसाधन मंत्री बने। जब वो मानव संसाधन मंत्री बने तब भी मुझे बेहद प्रसन्नता हुई और मैंने अपनी खुशी जाहिर की।
क्योंकि उत्तराखंड छोटा राज्य है, अब हमारे लिए राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले गोविंद बल्लभ पंत देना संभव नहीं है, न हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी देना संभव है। मगर श्री निशंक जी मानव संसाधन मंत्री बने, यह एक बड़ी उपलब्धि थी। हम राजनैतिक प्रतिद्वंदी हैं, मुझे हरिद्वार से बेदखल करने के लिए निशंक जी हमेशा प्रयासरत रहे। मगर जिस समय सामूहिक गौरव की बात आती है तो उस समय ये सब बातें व्यक्तिगत राग-द्वेष, झगड़े राजनैतिक प्रतिस्पर्धाएं गौण हो जाती हैं।
जब श्री निशंक जी के इस्तीफे का समाचार आया तो मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझसे कुछ छीन लिया हो। श्री निशंक स्वस्थ रहें और जब यहां तक उन्होंने अवसर बनाया है तो वो आगे भी अवसर बना सकने की क्षमता रखते हैं, इसका मुझे विश्वास है। वो जन्म से ब्राह्मण हैं इसलिए मैं आशीर्वाद तो नहीं दे सकता, मगर मैं इच्छा प्रकट कर सकता हूंँ कि ऐसा हो।’ आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : हरीश रावत (Harish Rawat) को आज भी अपने डेनिस ह्विस्की व भांग के फैसलों पर गर्व, बागियों की घर वापसी के लिए भी बताया रास्ता…
नवीन समाचार, देहरादून, 11 जनवरी 2021। पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत (Harish Rawat) आज 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी मंे मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग वाले अपने बयान के लिए चर्चा में हैं। इसके अलावा गत दिनों उन्होंने कहा था कि कांग्रेस पार्टी का गांधी-नेहरू परिवार के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। इस तरह वह एक तरह से राजनीतिक तौर पर कड़वी एवं ऐसी बातों, जिन पर उनकी पार्टी के अन्य नेता मुंह चुराते हैं, वे साफगोई से कह जाते हैं।
यह अलग बात है कि कोई उनकी बात को पसंद करे या नहीं। इसी कड़ी में उन्होंने राज्य के वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन बिष्ट से एक विशेष बातचीत में कहा है कि वह अपनी सरकार में डेनिस ह्विस्की और भांग पर लिए गए फैसलों पर बिल्कुल भी शर्मिंदा नहीं हैं, बल्कि गर्व करते हैं। उनकी यह पहलें राज्य के दीर्घकालीन हित में थीं। साथ ही उन्होंने बागियों को कांग्रेस में शामिल करने को लेकर भी अपना सुस्पष्ट मन्तव्य जाहिर किया है।
वहीं दलबदलुओं पर उनका कहना है कि उन्हें घर लाने में कोई आपत्ति नहंीं है, बस वे सार्वजनिक रूप से यह कह दें कि उन्होंने ऐसा करके गलती की थी, ताकि दलबदल का यह पाप भाजपा के खाते में जाए। जहां तक वापसी का सवाल है, कांग्रेस की हालत इतनी गई गुजरी भी नहीं है कि कोई भी यहां से दरवाजा खोलकर चला जाए और जब मर्जी हो दरवाजा धकेल कर अंदर आ जाए। ऐसा कांग्रेस के लिए बहुत ही अपमानजनक होगा। कांग्रेस की एक गरिमा है, इसलिए हमें सबसे पहले पार्टी सम्मान के लिए सोचना होगा।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने इस वार्ता में कहा कि विरोधियों ने जिस डेनिस शराब के नाम पर उन पर निशाने साधे उन फैसलों पर वह गर्व करते हैं। उनका कहना है कि भांग की खेती पर पहल भी उन्होंने ही की थी। राज्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ये दोनों ही कदम गेमचेंजर साबित होंते। शराब फैक्ट्रियों को लगाकर यहां के सी ग्रेड फलों को बड़ा बाजार देने की मंशा थी।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की तारीफ के सवाल पर उनका कहना है कि जब कभी कुछ अच्छा दिखता है तो उसे स्वीकार किया जाना चाहिए। वे बंशीधर भगत के द्वारा इंदिरा हृदयेश के खिलाफ दिये गये बयान को राजनीतिक अपरिपक्वता करार देते हैं।
वे राजनीतिज्ञों को नसीहत भी देते हैं कि कुछ भी बोलने से पहले से सोचें। उन्होंने कहा कि प्रीतम सिंह के कार्यकाल को विपक्षी दल के नाते बेहतर बताते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में संगठन राज्य से जुड़े मुद्दों को उठा रहा है। यही गति चुनाव तक बनी रहेगी और कांग्रेस दमदार तरीके से चुनाव मैदान में होगी।
वहीं रावत का मानना है कि भाजपा के लिए भाजपा के भीतर ही चुनौतियां हैं। वह कहते हैं कि भाजपा क्या लेकर चुनाव में जाएंगी, उन्हें यही समझ में नहीं आ रहा है। बेरोजगारी, महंगाई के साथ ही विकास का पहिया ठप पड़ा है। आम आदमी यही सवाल उठा रहा है। रावत का यह भी कहना है कि डबल इंजन के नाम पर भाजपा ने प्रदेश की जनता समर्थन हासिल किया था।
आज दोनों ही इंजन नान स्टार्टर बन कर रह गए हैं। केंद्र से राज्य की उपेक्षा हो रही है और राज्य के पास क्रियान्वयन के लिए हौसला ही नहीं है। वे इसका उदाहरण कुंभ को बताते हैं। कांग्रेस नेता का कहना है कि प्रयाग व उज्जैन कुंभों में केंद्र से बहुत पैसा मिला, लेकिन हरिद्वार कुंभ में न तो पैसा ही मिल रहा है और न कुछ हो रहा है। कांग्रेस के झगड़ों को लेकर उनका कहना है कि कांग्रेस लोकतांत्रिक पार्टी है। भाजपा की तरह रेजिमेंटेड पार्टी नहीं है।
जहां उपर से आदेश आता है और नीचे वाले सब उसको फालो करते हैं। उनका कहना है कि हमारे यहां सभी को महत्व दिया जाता है। जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री और वह प्रदेश अध्यक्ष थे तो उन्होंने गैर औद्योगिक क्षेत्रों में विशेष आईटीआई और उद्योग में स्थानीय लोगों का ७० फीसद रोजगार देने की मांग तिवारी के सामने रखी थी। जब रिस्पांस नहीं आया तो उन्हें खुद ही अपनी सरकार के खिलाफ विधानसभा में धरने पर बैठना पड़ा।
उसी समय इन दोनों मांगों को लेकर तिवारी जी ने आदेश कर दिए, जो आज भी जारी है। यह विरोध जनहित का विरोध था। लड़ाई वैचारिक हो तो सब ठीक चलता है, लेकिन यदि वैचारिक मतभेदों को निजी दुश्मनी बना लें तो उसका नुकसान पार्टी को होना तय है। पीसीसी द्वारा प्रोटोकाल के अनुसार तवज्जो न मिलने के सवाल पर वे खुद को आजमाया हुआ कारतूस बताते हुए कहते हैं कि समय के अनुसार पार्टी को नए अस्त्रों से लैस होना पड़ता है।
इसलिए जहां कहेंगे खड़ा रहूंगा। साफगोई से कहते हैं कि राष्ट्रीय महासचिव व सीडब्ल्यूसी मेंबर के नाते उनका एक स्तर होना चाहिए, लेकिन वह उसकी परवाह नहीं करते, ताकि पार्टी का नुकसान न हो जाए। रावत को इस बात की भी पीड़ा है कि पार्टी के भीतर कुछ लोग उनकी भूमिका पर विपक्ष जैसी भूमिका निभाते हैं। वह कहते हैं कि भाजपा के लोगों का झल्लाना अच्छा लगता है, एक नई आ रही एक पार्टी भी उनकी कुछ बातों से झल्ला गयी है।
उन्हें लग रहा है कि बिजली-पानी मुफ्त देने की बात कहकर उन्होंने उस पार्टी को मुद्दाविहीन बना दिया है, लेकिन जब इन्हीं बातों से अपने ही लोग बौखलाने लगते हैं तो बहुत कुछ सोचने को विवश होना पड़ता है।
वहीं रावत २०१७ में हरिद्वार सीट से हुई हार से व्यथित दिखे। उनका कहना है वे किच्छा से हार नहीं मानते, वहां उन्होंने समय ही नहीं दिया, लेकिन हरिद्वार की हार को आज भी उनका मन नहीं मानता। वह कहते हैं कि हरिद्वार सीट के एक-एक परिवार को सरकारी योजनाओं का लाभ मिला और हर घर तक उनकी व्यक्तिगत रूप से पहुंच भी थी। ऐसे में उन्हें आज तक समझ नहीं आया कि उन लोगों ने मुझे क्यों हरा दिया।
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नवीन समाचार, देहरादून, 23 नवम्बर 2020। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) पिछली पीढ़ी के देश के उन चुनिंदा एवं राज्य के संभवतया इकलौते राजनीतिज्ञ हैं, जिनके बोलने और लिखने के निहितार्थ काफी सोचकर निकालने पड़ते हैं। इधर सोमवार को रावत अपनी एक फेसबुक पोस्ट को लेकर चर्चा में हैं, जिसे उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर भी शेयर किया है।
इस पोस्ट में स्वयं को महाभारत का अर्जुन और पार्टी के उन पर अंगुली उठा रहे नेताओं को ‘बच्चा’ बताते हुए उन्होंने जहां अपनी पार्टी के नेताओं को लताड़ा है तो आखिर में उन्हें सन्यास लेने की सलाह देने वाले राज्य के एक मंत्री को जवाब देते हुए उन्होंने अपने सन्यास लेने पर भी बोला है। अलबत्ता, लेकिन इस अच्छी पोस्ट पर भी रावत की चरणदास व धृतराष्ट्र जैसी उपमाओं के साथ किरकिरी ही अधिक हो रही है।
श्री रावत ने अपनी पोस्ट में लिखा है, ‘महाभारत के युद्ध में अर्जुन को जब घाव लगते थे, वो बहुत रोमांचित होते थे। राजनैतिक जीवन के प्रारंभ से ही मुझे घाव दर घाव लगे, कई-कई हारें झेली, मगर मैंने राजनीति में न निष्ठा बदली और न रण छोड़ा। मैं आभारी हूं, उन बच्चों का जिनके माध्यम से मेरी चुनावी हारें गिनाई जा रही हैं, इनमें से कुछ योद्धा जो आरएसएस की क्लास में सीखे हुए हुनर, मुझ पर आजमा रहे हैं।
वो उस समय जन्म ले रहे थे, जब मैं पहली हार झेलने के बाद फिर युद्ध के लिए कमर कस रहा था, कुछ पुराने चकल्लस बाज हैं जो कभी चुनाव ही नहीं लड़े हैं और जिनके वार्ड से कभी कांग्रेस जीती ही नहीं, वो मुझे यह स्मरण करा रहे हैं कि मेरे नेतृत्व में कांग्रेस 70 की विधानसभा में 11 पर क्यों आ गई! ऐसे लोगों ने जितनी बार मेरी चुनावी हारों की संख्या गिनाई है, उतनी बार अपने पूर्वजों का नाम नहीं लिया है, मगर यहां भी वो चूक कर गये हैं।
अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत व बागेश्वर में तो मैं सन् 1971-72 से चुनावी हार-जीत का जिम्मेदार बन गया था, जिला पंचायत सदस्यों से लेकर जिलापंचायत, नगर पंचायत अध्यक्ष, वार्ड मेंबरों, विधायकों के चुनाव में न जाने कितनों को लड़ाया और न जाने उनमें से कितने हार गये, ब्यौरा बहुत लंबा है मगर उत्तराखंड बनने के बाद सन् 2002 से लेकर सन् 2019 तक हर चुनावी युद्ध में मैं नायक की भूमिका में रहा हूं, यहां तक कि 2012 में भी मुझे पार्टी ने हैलीकॉप्टर देकर 62 सीटों पर चुनाव अभियान में प्रमुख दायित्व सौंपा।
चुनावी हारों के अंकगणित शास्त्रियों को अपने गुरुजनों से पूछना चाहिए कि उन्होंने अपने जीवन काल में कितनों को लड़ाया और उनमें से कितने जीते? यदि अंकगणितीय खेल में उलझे रहने के बजाय आगे की ओर देखो तो समाधान निकलता दिखता है। श्री त्रिवेंद्र सरकार के एक काबिल मंत्री जी ने जिन्हें मैं उनके राजनैतिक आका के दुराग्रह के कारण अपना साथी नहीं बना सका, उनकी सीख मुझे अच्छी लग रही है।
मैं संन्यास लूंगा, अवश्य लूंगा मगर 2024 में, देश में राहुल गांधी जी के नेतृत्व में संवैधानिक लोकतंत्रवादी शक्तियों की विजय और श्री राहुल गांधी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही यह संभव हो पायेगा, तब तक मेरे शुभचिंतक मेरे संन्यास के लिये प्रतीक्षारत रहें।’
इस पोस्ट पर सोशल मीडिया पर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया आ रही हैं। एक ने लिखा है, ‘राजनीति ऐसी जगह हैं कि चाहे चिता में कोई लेटा हो जलाने से पहले 10 मिनट को विधायक बनेगा बोलो तो हां कहेगा मुर्दा भी। पैसा, सत्ता की हनक, दादागिरी, सब कुछ मिलता हैं इसलिए अटल जी, आडवाणी, मुलायम तक सन्यास नहीं लेते हैं। फिर हरदा तो सिर्फ 70 के हुए हैं।
वहीं अन्य ने लिखा है, ‘आपका लेख शानदार है सर किंतु अंत मे जो आपने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने की बात लिखी उसने सब गुड़ गोबर कर दिया।’ दूसरे लोग भी कमोबेश यही लिख रहे हैं, ‘सारा लेख शानदार है, सत्य है, आपका संघर्ष और उसके परिणाम सब इतिहास में दर्ज हैं, लेकिन आखिरी दो-तीन पंक्तियों में आप अपने अंदर के चरणदास को बाहर ले आए… आप सशक्त हैं, सामर्थ्यवान है खुद कांग्रेस को नेतृत्व देने के लिए।
अपनी पार्टी और देश के लिए इस चाटुकारिता का त्याग कीजिये। पिछले 3 दशकों से जो काठ की हांडी में खयाली पुलाव आप लोग पकाए जा रहे हैं, उस मरीचिका से बाहर निकलिए। परिवारवादी राजनीति का त्याग ही लोकतंत्र के लिए, देश के लिए और आपके दल के लिए वरदान साबित होगा…. रावत जी राहुल गांधी के प्रधान मंत्री बनने व उनकी शादी होने तक की बात कभी गले नही उतरती यह सब देखने के लिए 100 साल और जीना पडेगा….
हरदा हम तो आपको राजनीति का भीष्म पितामह समझ रहे थे लेकिन आप धृतराष्ट्र की तरह व्यवहार कर रहे हो आप पप्पू मोह में यह नहीं देख पा रहे हो कि कांग्रेस रसातल में जा रही है।’ वहीं एक टिप्पणी यह भी है, ‘सीधे शब्दों में… ना राहुल दाज्यू ने प्रधानमंत्री बनना हैं, ना हरदा ने सन्यास लेना है। बात खतम।’
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-पूर्व सीएम हरीश रावत (Harish Rawat) द्वारा विधायकों की खरीद फरोख्त संबंधी स्टिंग ऑपरेशन की सीबीआई जांच के मामले में हुई सुनवाई
नवीन समाचार, नैनीताल, 06 मार्च 2020। उत्तराखंड हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति शुधांशू धुलिया की एकलपीठ में शुक्रवार को उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश चंद सिंह रावत (Harish Rawat) द्वारा विधायकों की खरीद फरोख्त संबंधी स्टिंग ऑपरेशन की सीबीआई जांच के मामले में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सीबीआई की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया गया कि उनके अधिवक्ता का स्वास्थ्य ठीक नही होने के कारण इस मामले की सुनवाई 1 मई की तिथि नियत की जाये।
इस पर कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई हेतु एक मई की तिथि नियत कर दी है। मामले के अनुसार मार्च 2016 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) द्वारा विधायकों की खरीद-फरोख्त का मामला सामने आया था । इसके बाद से उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई और 31 मार्च 2016 को राज्यपाल की संस्तुति से हरीश रावत (Harish Rawat) पर सीबीआई जांच शुरू हुई।
सीबीआई की प्राथमिक जांच रिपोर्ट न्यायालय में पेश कर हरीश रावत (Harish Rawat) के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति मांगी गई । यही नही हरक सिंह रावत ने भी कैबिनेट के उस 15 मई के आदेश को भी हाई कोर्ट में चुनौती दी जिसमें कैबिनेट ने सीबीआई से जाँच हटाकर एसआईटी को जांच के आदेश दे दिए थे।
इस बैठक में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की गैर मौजूदगी में कैबिनेट के अन्य सदस्यों द्वारा निर्णय लिया गया था। सीबीआई ने अपनी एफआईआर में हरीश रावत, हरक सिंह रावत व समाचार प्लस चैनल के सीईओ उमेश शर्मा के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की है।
यह भी पढ़ें : सीबीआई ने हरीश रावत (Harish Rawat) के खिलाफ दर्ज किया मुकदमा, FIR में एक भाजपा मंत्री व पत्रकार भी शामिल
नवीन समाचार, नैनीताल, 23 अक्तूबर 2019। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) के खिलाफ सीबीआई ने मुकदमा दर्ज कर लिया है। विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप में सीबीआई के डिप्टी एसपी आरएल यादव की ओर से दर्ज किए गए मुकदमे में आरोपितों के ख़िलाफ़ पीसी एक्ट 1988 की धारा 7, 8, 9 व 12 के साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 120 के तहत अभियोग पंजीकृत किया गया है।
उल्लेखनीय है कि गत 30 सितंबर को नैनीताल हाईकोर्ट ने सीबीआई को हरीश रावत (Harish Rawat) के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दे दी थी, अलबत्ता उन्हें गिरफ्तार न करने को भी कहा था। साथ ही यह भी ताकीद की थी कि मुकदमे सहित पूरी कार्रवाई उच्च न्यायालय के अंतिम आदेश के अधीन होगी। उल्लेखनीय है कि 2016 में उत्तराखंड कांग्रेस में जबरदस्त बगावत हुई थी।
इसमें पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में करीब 12 कांग्रेस विधायक हरीश रावत (Harish Rawat) के खिलाफ बगावत पर उतर आए थे। इसके बाद बहुमत साबित करने के लिए हरीश रावत इन बागी विधायकों को प्रलोभन देते हुए एक स्टिंग में फंस गए थे। स्टिंग सामने आने के बाद हरीश रावत सरकार को बर्खास्त कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। लेकिन, बाद में सुप्रीम कोर्ट में पैरवी के बाद हरीश रावत सरकार बहाल की गई।
सीबीआई ने करीब महीने भर पहले ही नैनीताल हाईकोर्ट से विधायकों के खरीद-फरोख्त मामले में हरीश रावत के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति मांगी थी। नैनीताल हाईकोर्ट में बहस के बाद ही सीबीआई को हरीश रावत के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दी थी। आगे देखने वाली बात होगी कि कैसे हरीश रावत अपने को बेगुनाह साबित कर पाते हैं।
प्राथमिकी में एक भाजपा मंत्री व पत्रकार के नाम भी
उल्लेखनीय बात यह भी है कि सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में कांग्रेस से भाजपा में आए कद्दावर कैबिनेट मिनिस्टर डा. हरक सिंह रावत और समाचार प्लस चैनल के सीईओ उमेश कुमार का भी नाम लिखा है। हरक सिंह रावत और उमेश कुमार दोनों ही जब-तब सरकार के खिलाफ बगावती तेवर अपनाते रहे हैं। अहम पहलू यह भी है कि इस स्टिंग में पूरा प्रकरण हरीश रावत (Harish Rawat) को विधायकों की खरीद-फरोख्त के लिए उकसाने का है
और स्टिंग कर्ता फोन पर कथित तौर पर हरक सिंह रावत से भी बात कर रहा है और खुद ही पैसों के इंतजाम की भी बात कर रहा है। जाहिर है कि सीबीआई इस प्रकरण की जांच षडयंत्र रचने के एंगल से भी कर सकती है। यदि सीबीआई इस प्रकरण में आगे बढ़ी तो भाजपा के कई विधायक और मंत्री भी आने वाले समय में सीबीआई के लपेटे में आ सकते हैं।
हालांकि सीबीआई जांच की वैधता पर ही अभी हाई कोर्ट में मामला विचाराधीन है। हाई कोर्ट हॉर्स ट्रेडिंग मामले की जांच को इस नजरिए से भी देखना चाह रही है कि राज्यपाल शासन के समय स्टिंग प्रकरण की जांच सीबीआई को दी गई थी लेकिन कुछ समय बाद ही हरीश रावत की सरकार बहाल होने के बाद हरीश रावत ने सीबीआई से जांच कराने का आदेश वापस लेकर स्टिंग प्रकरण की जांच एसआईटी को सौंप दी थी तो फिर ऐसे में इस स्टिंग प्रकरण की जांच करने के लिए सीबीआई की क्या अधिकारिता रह जाती है।
यदि हाई कोर्ट का निर्णय सीबीआई के खिलाफ जाता है तो सरकार को भी झटका लग सकता है। हरीश रावत भी जब-तब आरोप लगाते रहे हैं कि विधायकों की खरीद-फरोख्त तो भाजपा ने की थी, उनकी तो सरकार ही गिरा दी गई थी, इसके बावजूद सरकार उन्हें जानबूझकर लपेटना चाहती है। कांग्रेस का आरोप यह भी है कि हरीश रावत वाले स्टिंग में कहीं भी पैसे का लेन-देन नहीं हो रहा है।
लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के परिजनों के स्टिंग में उनके करीबी बाकायदा पैसा ले रहे हैं, लेकिन सरकार उसकी कोई जांच नहीं कर रही है। कांग्रेस इस बात को आने वाले समय में बड़ा मुद्दा बना सकती है
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-हरीश रावत (Harish Rawat) की गिरफ़्तारी पर न्यायालय के अंतिम फैसले तक रोक, एक नवंबर को होगी अगली सुनवाई
नवीन समाचार, नैनीताल, 30 सितंबर 2019। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) के बहुचर्चित स्टिंग मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकल पीठ ने एकलपीठ ने सीबीआई की प्रारंभिक सीलबंद जांच रिपोर्ट देखी और सीबीआई के अधिवक्ता की दलील को स्वीकार कर लिया है।
वहीं न्यायालय में हुई लंबी बहस के बाद एकलपीठ ने कहा कि सीबीआई एफआईआर दर्ज कर जांच कर सकती है, किंतु मामले में न्यायालय के अंतिम आदेश तक हरीश रावत (Harish Rawat) को गिरफ्तार नहीं करेगी। साथ ही यह भी कहा कि यदि 31 मार्च 2016 का राज्यपाल का आदेश अवैध साबित होता है तो सीबीआई जांच का कोई अर्थ नहीं रहेगा। इसके साथ ही एकलपीठ ने मामले की सुनवाई के लिए अगली तिथि एक माह बाद एक नवंबर की तय कर दी है।
यह भी पढ़ें : हरीश रावत को सीबीआई से बचाने, पी चिदंबरम को सीबीआई से न बचा पाये वकील पहुंचे नैनीताल
नवीन समाचार, नैनीताल, 29 सितंबर 2019। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) को सीबीआई के शिकंजे से बचाने के लिए, सीबीआई के शिकंजे से न बचा पाये सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता, वरिष्ठ कंाग्रेस नेता व पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल नैनीताल पहुंच गए हैं।
वे सोमवार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ के समक्ष हरीश रावत (Harish Rawat) को बचाने के लिए पैरवी करेंगे। उल्लेखनीय है कि सिब्बल पूर्व में हरीश रावत (Harish Rawat) के नेतृत्व वाली सरकार को केंद्र सरकार द्वारा पदच्युत कर दिये जाने के दौरान उत्तराखंड उच्च न्यायालय में रावत के संकटमोचक साबित हुए थे। इस बार भी रावत को उनसे ऐसी ही उम्मीद होगी।
नोट: पंचायत चुनाव में ‘सबसे सस्ते’ विज्ञापन देने के लिए संपर्क करें हमारे मोबाइल-व्हाट्सएप नंबर 8077566792 अथवा 9412037779 पर
यह भी पढ़ें : आज ‘चिदंबरम जैसी धोती’ में उन जैसी ही स्थिति में नजर आये हरीश रावत (Harish Rawat) , साथ में सिमटी दिखी कांग्रेस की एकता
नवीन समाचार, नैनीताल, 20 सितंबर 2019। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत (Harish Rawat) के खिलाफ सीबीआई जांच के मामले में उच्च न्यायालय में शुक्रवार को सुनवाई हुई। न्यायालय ने सुनवाई के बाद 1 अक्टूबर की अगली तिथि निश्चित कर दी है। न्यायालय में सीबीआई द्वारा आरोप पत्र प्रस्तुत करने पर रावत के अधिवक्ताओं ने समय की मांग की। इस पर न्यायालय में सुनवाई के लिए 1 अक्टूबर की अगली तिथि निश्चित कर दी।
सीबीआई जांच मामले में सुनवाई के दौरान अपनी पूर्व घोषणा पर शुक्रवार को पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता मुख्यालय में थे। इस दौरान वे राज्य अतिथि गृह में पहली बार पार्टी नेताओं व नेत्रियों के साथ अनपेक्षित तौर पर गत दिनों सीबीआई के फंदे में फंसकर इन दिनों जेल में मौजूद पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम जैसी दक्षिण भारतीय तरीके से लुंगी की तरह बांधी गयी सफेद धोती में सार्वजनिक तौर पर देखे गये।
इस मौके पर कांग्रेस के पार्टी के पूर्व व वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष, उनके पूर्व मंत्रिमंडलीय सहयोगी व विधायक भी मौजूद रहे, लेकिन जिस तरह के शक्ति प्रदर्शन की रावत व कांग्रेस पार्टी की ओर से उम्मीद की जा रही थी, वैसा कुछ नहीं दिखा। अलबत्ता, मौजदा अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय व पूर्व काबीना मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश ने कहा कि यह मामला तब का है, जब वे भी रावत के सहयोगी थे। इसलिए तब के हर कार्य में रावत का समर्थन व्यक्त करते हैं, और इसीलिये आज आये हैं।
डा. हृदयेश ने कहा कि कोई संज्ञेय अपराध नहीं किया गया था, लेकिन भाजपा सरकार जिस प्रकार उत्पीड़न पर उतारू है, अपनी विदाई के दिन गिन ले। वहीं रावत सहित दोनों पूर्व व वर्तमान अध्यक्षों ने कहा कि न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है, किंतु भाजपा की ओर से किये जा रहे उत्पीड़न के खिलाफ सड़क पर संघर्ष करने व जेल भरो आंदोलन जैसा कोई आंदोलन भी करने को तैयार हैं।
इस मौके पर कांग्रेस विधायक हरीश धामी, पूर्व विधायक हरीश दुर्गापाल, हेमेश खर्कवाल, नगर पालिकाध्यक्ष सचिन नेगी, पूर्व पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी, जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल, नगर अध्यक्ष अनुपम कबडवाल, प्रकाश जोशी, भोला भट्ट, सूरज पांडे, खष्टी बिष्ट, पुष्कर बोरा, कैलाश मिश्रा, सुशील राठी, व हुकुम सिंह कुंवर आदि कांग्रेस नेता भी मौजूद रहे।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 24 अगस्त 2019। सीबीआई द्वारा विधायकों की खरीद-फरोख्त के मामले में जांच रिपोर्ट उत्तराखंड उच्च न्यायालय में रखने के साथ कार्रवाई की तलवार लटकने के बीच उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने स्वयं को ‘गंगलोड़’ (पहाड़ में नदियों के पत्थरों के लिए प्रयुक्त शब्द) बताया है।
उन्होंने ट्वीट किया है, ‘मेरे राजनैतिक जीवन में एक बार और दुर्दश, दुर्घष चुनौतीपूर्ण क्षण आ रहा है। कुछ ताकतें मुझे मिटा देना चाहती हैं। मैं मिटूंगा अवश्य, परन्तु उत्तराखण्डी गंगलोड़ की तरह लुढ़कते-लुढ़कते, घिंसते-घिसते इस मिट्टी में मिल जाऊंगा, परन्तु टूटंगा नहीं।’
उनके इस ट्वीट को अब तक करीब दो दर्जन बार रिट्वीट भी किया जा चुका है। इसमें पहली सहित कई प्रतिक्रियाओं में लोग रावत से पूछ रहे हैं, ‘कांग्रेस का अध्यक्ष बनना है क्या ?’ वहीं कुछ उन्हें कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने और कुछ कांग्रेस-भाजपा दोनों को छोड़कर उत्तराखंड के लिए नया राजनीतिक दल बनाने की सलाह भी दे रहे हैं। वहीं कई उन्हें उनके द्वारा किये गये भ्रष्टाचार की याद भी दिला रहे हैं, और कई उन्हें अपने समर्थन का भरोसा भी दिला रहे हैं।
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श्री हरीश रावत जी के नाम खुला पत्र :
आदरणीय हरीश रावत जी,
उम्मीद है कि आप कुशल होंगे. आपकी कुशलता की खैरखबर इसलिए लेनी पड़ रही है क्यूंकि कल आपने जो विराट गिरफ्तारी दी,उससे खैर खबर लेना लाज़मी हो गया ! गिरफ्तारी का क्या नज़ारा था ! खुद ही एक-दूसरे के गले में माला डाल कर गाजे-बाजे के साथ तमाम कांग्रेस जन, आपकी अगुवाई में गैरसैण तहसील पहुंचे. वहाँ गिरफ्तार होने के लिए आपने तहसील की सीढ़ियाँ भर दी.
जेल भरो आंदोलन तो सुनते आए थे पर जेल भेजे गए आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी के विरोध में “तहसील की सीढ़ियाँ भरो” आंदोलन,आपके नेतृत्व में पहली बार देखा. क्या नजारा था-आपके संगी-साथियों ने एस.डी.एम से कहा,हमें गिरफ्तार करो क्यूंकि हमारे 35 साथी जेल भेज दिये गए हैं. स्मित मुस्कान के साथ एस.डी.एम ने कहा-हमने आपको गिरफ्तार किया और अब हम आपको रिहा करते हैं. फर्जी मुकदमें में जेल भेजे गए आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी के ऐसे “प्रचंड” प्रतिवाद की अन्यत्र मिसाल मिलना लगभग नामुमकिन है !
एक पूर्व मुख्यमंत्री,विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान विधायक,उप नेता प्रतिपक्ष,पूर्व डिप्टी स्पीकर,पूर्व कैबिनेट मंत्री आदि-आदि अदने से एस.डी.एम को ज्ञापन दे कर गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने की मांग कर रहे थे और ऐसा न होने की दशा में प्रचंड आंदोलन की चेतावनी दे रहे थे ! आंदोलन के ऐसे प्रहसन का दृश्य आपके अतिरिक्त इस प्रदेश को और कौन दिखा सकता है !
इस प्रचंड प्रतिवाद प्रहसन से पूर्व आपने कांग्रेस जनों के साथ गैरसैण नगर में जुलूस निकाला. होने को जुलूस गैरसैण को राजधानी बनाए जाने के समर्थन में था पर जुलूस में नारे लग रहे थे कि हरीश रावत नहीं आँधी है,ये तो दूसरा गांधी है. जाहिर सी बात है कि नाम भले ही गैरसैण का था,पर प्रदर्शन आपके द्वारा,आपके निमित्त था.आपके निमित्त यह सब न होना होता तो जिन आंदोलनकारियों की 3 दिन बाद जमानत हुई,वह बिना उनके जेल गए ही हो जाती.
पर तब आप यह गिरफ्तारी प्रहसन कैसे कर पाते ? और हाँ आँधी क्या बवंडर हैं आप ! वो बवंडर जो पानी में जब उठता है तो सबसे पहले अपने आसपास वालों को ही अपने में विलीन कर देता है,वे आपमें समा जाते हैं और रह जाते हैं सिर्फ आप. जहां तक गांधी होने का सवाल है तो गांधी तो एक ही था, एक ही है,एक ही रहेगा. गांधी के बंदर तीन भले ही बताए गए थे पर इतने सालों में वे कई कई हो गए हैं. इन बंदरों पर बाबा नागार्जुन की कविता आज भी बड़ी प्रासंगिक है. नागार्जुन कहते हैं :
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के!
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के!
सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के!
ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के!
जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के!
लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के!
लम्बी उमर मिली है, ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
दिल की कली खिली है, ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
बूढ़े हैं फिर भी जवान हैं, तीनों बन्दर बापू के!
परम चतुर हैं, अति सुजान हैं तीनों बन्दर बापू के!
सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
बापू को हीबना रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
करें रात-दिन टूर हवाई तीनों बन्दर बापू के!
बदल-बदल कर चखें मलाई तीनों बन्दर बापू के!
असली हैं, सर्कस वाले हैं तीनों बन्दर बापू के!
हमें अँगूठा दिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
कैसी हिकमत सिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
प्रेम-पगे हैं, शहद-सने हैं तीनों बन्दर बापू के!
गुरुओं के भी गुरु बने हैं तीनों बन्दर बापू के!
नागार्जुन की कविता की बात इसलिए ताकि “प्रेम पगे, शहद सने, परम चतुर, अति सुजानों” को यह भान रहे है कि कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना की तर्ज पर गैरसैण पर निगाहों वालों का निशाना किधर है,यह बखूबी समझा जा रहा है !
वैसे एक प्रश्न तो आप से सीधा पूछना बनता ही है हरदा कि आपके मन में गैरसैण कुर्सी छूट जाने के बाद ही क्यूँ हिलोरें मार रहा है ?आखिर जब आप मुख्यमंत्री थे तब आपको गैरसैण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने की घोषणा करने से किसने रोका था ? आप घोषणा कर देते तो जिन साथियों को चक्काजाम करने की आड़ में जेल भेजा गया, न वे चक्काजाम करते,न मुकदमा होता,न उन्हें जेल जाना पड़ता.
पर आपके राज में तो मुझे ही अपने साथियों के साथ गैरसैण के विधानसभा सत्र के दौरान स्थायी राजधानी की मांग करने के लिए पदयात्रा करने पर जंगल चट्टी से आपकी पुलिस ने कभी आगे नहीं बढ़ने दिया. अर्द्ध रात्रि में एस.डी.एम और पुलिस भेजी आपने,हमें धमकाने को ! ऐसा आदमी अचानक गैरसैण राजधानी की मांग का पैरोकार होने का दम भरता है तो संदेह होना लाज़मी है. साफ लगता है कि यह सत्ता,विधायकी,सांसदी गंवा चुके व्यक्ति की स्टंटबाजी है.
राजनीति में ऊंचे कद वाले राजनेता अपनी स्टेट्समैनशिप के लिए जाने जाते हैं. पर आपको देख कर लगता है कि आपके पास केवल स्टंटमैनशिप है. आपकी स्टंटमैनशिप कायम रहे,आप सलामत रहें.
भवदीय
इन्द्रेश मैखुरी
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-क्या सक्रिय राजनीति छोड़ देंगे रावत… एक राजनीतिक विश्लेषण
नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 8 जुलाई 2019। एक ओर अपनी पहले जैसी ही राजनीतिक सक्रियता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पंचायत चुनाव में जीत के लिए पांच नये कार्यकर्ताओं को जोड़ने का मंत्र देने के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने देहरादून में एक समाचार एजेंसी को अचानक यह बयान देकर चौकाने का प्रयास किया है कि वे अपनी पारी खेल चुके।
(Harish Rawat) किंतु रावत की राजनीति के अभ्यस्त जनों को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा है कि रावत सक्रिय राजनीति से सन्यास ले सकते हैं। सच्चाई यह भी है कि वास्तव में अपने बयान में रावत ने कभी सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने की बात कही ही नहीं है। बल्कि उन्होंने अपने बयान के एक हिस्से में यह भी कहा है, ‘वे कांग्रेस की सेवा करते रहना चाहते हैं।’
(Harish Rawat) साफ है रावत का सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने का कोई इरादा नहीं है। उनके इस बयान को पिछले घटनाक्रमों व उनके पिछले बयानों से जोड़कर देखें तो भी इस बात की पुष्टि होती है। उल्लेखनीय है कि रावत प्रतीकात्मक राजनीति करने वाले ऐसे खांटी नेता हैं जो अपने बयानों से राज्य की राजनीति में विरोधी दल ही नहीं अपने दल के नेताओं को भी संदेश देते रहते हैं।
(Harish Rawat) विधान सभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते दो सीटों से चुनाव हारने का ऐतिहासिक तौर पर बुरा रिकार्ड बनाने के बाद रावत ने नैनीताल से लोक सभा चुनाव राज्य के दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के साथ ‘उज्याड़ खांणी बल्द’ यानी दूसरों की फसल चरने वाला बैल, ‘इकलू बानर’ यानी झुंड से अलग अकेले रहने वाला बंदर, ‘भिजी घुघुत’ यानी भीगा हुआ कबूतर प्रजाति का पहाड़ का प्रतिनिधि पक्षी घुघुता एवं ‘स्याउ’ यानी सियार जैसी उपमाओं का आदान-प्रदान करते हुए, और यह कहते हुए लड़ा कि वह जानना चाहते थे कि
(Harish Rawat) कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में हार दुर्घटनावश थी अथवा जनता को वास्तव में उनसे कोई समस्या थी। इस बीच जनता ने उन्हें उनके कद जितनी ही बड़ी, तीन लाख 39 हजार 96 वोटों के बड़े अंतर से हार देकर शायद उन्हें उनके प्रश्न का जवाब दे भी दिया, लेकिन इसके बाद रावत बोले, राजनीति में हार-जीत होती रहती है। अब 2022 के विधान सभा चुनाव की तैयारी करेंगे। इस बीच लोक सभा चुनाव के बाद असम में भी हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा भी दे दिया।
(Harish Rawat) लेकिन इधर हाल में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का इस्तीफा देने के बाद बीती तीन जुलाई को फिर इस तरह अपना इस्तीफा देने की याद दिलायी कि मीडिया के जरिये यह बात राहुल गांधी के स्तर की ही ‘कुर्बानी’ की तरह जनता के बीच पहुंचे। साथ में अपनी पार्टी के विरोधियों को यह संदेश भी जाये कि वे भी इस्तीफा देकर सीट खाली करें। मीडिया के जरिये भी ऐसे संदेश दिये गये कि रावत के इस्तीफे के बाद अब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह व नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश पर भी इस्तीफा देने का दबाव आ गया है।
(Harish Rawat) बावजूद विरोधियों ने उनका संदेश लेकर इस्तीफा नहीं दिया। लगा कि उन्हें रावत का साफ-साफ दिया गया संदेश समझ में नहीं आया तो उनके करीबी, सर्वाधित कठिन दौर में विधानसभा अध्यक्ष रहते उनके लिए केंद्र सरकार के समक्ष चट्टान की तरह खड़े रहे गोविंद सिंह कुंजवाल ने साफ-साफ बयान दिया कि (रावत से सबक लेकर) प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को इस्तीफा दे देना चाहिए। इसके बाद भी विरोधियों ने इस्तीफे नहीं दिये, तो अब रावत का आठ जुलाई को बयान आया है कि वे ‘अपनी पारी खेल चुके हैं’।
(Harish Rawat) साफ है, रावत अपने बयान से सिर्फ विरोधियों को संदेश दे रहे हैं। साथ ही उनके ताजा बयान का एक इशारा, जिसमें उन्होंने कहा है, ‘वह पार्टी नेता राहुल गांधी से मुलाकात के बाद अपने अगले कदम पर विचार करेंगे’ गांधी परिवार के प्रति उनके अति समर्पण व निष्ठा को उजागर करने और आत्म प्रचार का भी हो सकता है। बहरहाल, इतना साफ है कि उनका राजनीति से सन्यास लेने का फिलहाल कोई इरादा नहीं है। 2022 का विधानभा चुनाव लड़ने का वह लोभ संवरण करने की स्थिति में नहीं हैं।
यह कहा है हरीश रावत (Harish Rawat) ने
हाल ही में कांग्रेस महासचिव पद से इस्तीफा दे चुके उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पूरे एक सप्ताह राज्य का भ्रमण करने के बाद रविवार को कहा, ‘‘मैं अपनी पारी खेल चुका हूं। लेकिन मैं अपना अगला कदम राहुल गांधी से मिलने के बाद तय करूंगा।’ इसके अलावा भी कुछ स्थानीय मीडिया संस्थानों को दिए विभिन्न साक्षात्कारों में उन्होंने कहा कि वह अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना चाहते हैं। वहीं यह पूछे जाने पर क्या वह राजनीति छोड़ना चाहते हैं?
(Harish Rawat) रावत ने कहा कि वह कांग्रेस की सेवा करते रहना चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने कांग्रेस के लिए अथक काम किया है। मैं कह सकता हूं कि मैं सिर्फ सोते वक्त काम नहीं करता।’ रावत ने यह भी कहा कि वह यह समझने के लिए देश के विभिन्न भागों का दौरा कर रहे हैं कि कांग्रेस से चुनाव में गलतियां कहां हुईं। उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव परिणाम आने के बाद से मैंने असम, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु आदि राज्यों का दौरा किया है। मैं यह जानना चाहता था कि हमारे साथ गलती कहां हुई।’
(Harish Rawat) रावत ने कहा कि उनके जैसे व्यक्ति के लिए पार्टी के प्रति समर्पित होकर काम करने के लिए किसी पद की जरूरत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी नेता में पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने के गुण होने चाहिए और सिर्फ राहुल गांधी में ऐसे प्रेरक गुण हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस की लगाम अगर राहुल गांधी के हाथ में रहती है तो हम 2022 में स्थिति बदल सकते हैं, जब कुछ राज्यों में चुनाव होंगे।’
(Harish Rawat) उनके अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को 2024 के आम चुनाव में हराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य के लिए लोकतांत्रिक तत्व और पार्टी कार्यकर्ता राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं।
-विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते दो विधानसभा सीटों से चुनाव हारने के बाद अब बनाया लोक सभा चुनाव में भी प्रदेश में सर्वाधिक तीन लाख से अधिक वोटों से हारने का रिकॉर्ड
-असोम राज्य के प्रभारी के रूप में भी विफल रहे रावत, असोम की 14 सीटों में केवल दो सीटों पर ही जीत की स्थिति में है कांग्रेस
नवीन जोशी @ नवीन समाचार नैनीताल, 23 मई 2019। आज के दौर की राजनीति में स्वयं को कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े नेता के रूप में प्रदर्शित करने वाले, आज के दौर में (विजय बहुगुणा के भाजपा में जाने एवं पं. एनडी तिवारी के देहावसान के बाद) कांग्रेस पार्टी से प्रदेश के एकमात्र पूर्व मुख्यमंत्री एवं पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एवं असोम प्रदेश के प्रभारी के रूप में सबसे बड़े नेता बताये जाने वाले,
(Harish Rawat) परन्तु काम से अधिक प्रतीकात्मक राजनीति के माहिर माने जाने वाले हरीश रावत के लिए 2019 के लोक सभा चुनाव नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीट से हारने के साथ ‘अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने’ जैसा साबित हुए हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते नैनीताल लोकसभा की किच्छा सहित दो विधानसभा सीटें हारने के बाद आखिरी क्षणों में जातिगत कारणों से रावत नैनीताल लड़ने के लिए ऐसे आये, मानो कह रहे हों, ‘आ बैल मुझे मार’।
हरीश रावत (Harish Rawat) ने इस चुनाव में भी प्रदेश में सर्वाधिक तीन लाख 39 हजार 96 वोटों से हारने का ऐसा बुरा रिकार्ड अपने नाम कर लिया है, जिसे शायद वे कभी याद नहीं रखना चाहेंगे। हरीश रावत के लिए यह भी एक अनचाहा बुरा परिणाम रहा है कि उनके प्रभार वाले असोम राज्य में भी उनकी पार्टी की दो सीटों पर सिमटकर बुरी दुर्गति होती दिख रही है। यहां तक कि रावत असोम में अपनी निवर्तमान सांसद व राष्ट्रीय पदाधिकारी व महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव को भी जीत नहीं दिला पाये हैं।
वहीं दूसरी ओर हरीश रावत (Harish Rawat) की पिछली हरिद्वार सीट पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी अंबरीश कुमार न केवल अपेक्षाकृत कम वोटों के अंतर से हार रहे हैं, अपितु शुरुआती चरणों में अंबरीश वहां से विजयी हुए भाजपा प्रत्याशी डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ से भी आगे निकल गये थे। जबकि इधर नैनीताल में हरीश रावत (Harish Rawat) अपने सामने सर्वाधिक कमजोर बताये जा रहे,
(Harish Rawat) उनकी तरह ही अपने घर रानीखेत की विधानसभा सीट से हार कर नामांकन से कुछ ही दिन पूर्व निवर्तमान सांसद भगत ंिसह कोश्यारी के चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद अनमने तरीके से चुनाव मैदान में उतरे भाजपा के अजय भट्ट से तीन लाख 39 हजार से अधिक वोटों से हारे हैं। गौरतलब है कि 2017 में नैनीताल से भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी दो लाख 84 हजार 717 वोटों के अंतर से हारे थे।
(Harish Rawat) रावत की हार इसलिए भी बड़ी है कि राज्य में हार का यह सबसे बड़ा अंतर तो रहा ही है, वह पूरे चुनाव व खासकर मतगणना के दौरान कभी भी मुकाबला करते नजर नहीं आये। उनकी हार इसलिये भी बड़ी है कि पिछले लोक सभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बरक्स पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के बजाय खुद को खड़ा कर चुनाव को ‘मोदी वर्सेज रावत’ करने की भूल का वैसा बुरा अंजाम (खुद दो सीटों से हार और पार्टी को ऐतिहासिक तौर पर 70 सीटों की विधान सभा में महज दहाई के करीब का स्थान) दिलाने के बावजूद उन्होंने सबक नहीं लिया।
(Harish Rawat) इस धोखे में रहे कि भाजपा के क्षत्रिय वर्ग से आने वाले निवर्तमान सांसद भगत सिंह कोश्यारी के चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद स्वयं क्षत्रिय वर्ग से होने के कारण उस वर्ग के वोट हासिल कर लेंगे, दूसरे कांग्रेस के प्रबल प्रत्याशी-दो बार के पूर्व सांसद डा. महंेद्र पाल को मिलता-मिलता टिकट अपने प्रभाव से कांग्रेस हाईकमान से छीन लाये।
(Harish Rawat) हल्द्वानी के नगर निगम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी, काबीना मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश के पुत्र सुमित हृदयेश को हराने के आरोपों के बावजूद मान बैठे कि सबके वोट हासिल कर जीत हासिल कर लेंगे। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते न केवल सीसीटीवी की फुटेज में भ्रष्टाचार पर ‘आंखें मूंद लेने’ की बात कहने वरन व्यवहार में भी खनन, शराब आदि के कार्यों में ऐसा ही रवैया दिखाना अभी जनता भूली नहीं है।
(Harish Rawat) दूसरी ओर देश भर में चली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘सुनामी’ सरीखी लहर को न केवल कम करके आंकना, वरन नजर अंदाज कर स्वयं को मोदी से बेहतर दिखाने की रावत की कोशिश ने उनकी बड़ी हार की पटकथा लिखने में बड़ी भूमिका निभाई है। अब देखना होगा कि कांग्रेस को ‘हरीश रावत कांग्रेस’ में तब्दील करते हुए हमेशा ‘एकला चलो’ की नीति पर चलने वाले रावत आगामी विधानसभा चुनाव के लिए स्वयं की क्या भूमिका तय करते हैं।
(Harish Rawat) क्योंकि वह कह चुके हैं कि विधानसभा में अपनी दो सीटों से मिली हार को ‘दुर्घटनावश अथवा जनता का गुस्सा’ भांपने के लिए वह लोक सभा चुनाव लड़े थे। शायद उन्हें इस प्रश्न का उत्तर मिल चुका होगा।
कहीं मुकाबले में नहीं दिखी कांग्रेस
नैनीताल। देश को संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत, प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचते बताये गये पं. नारायण दत्त तिवारी एवं हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा सरीखे नेता देने वाली कांग्रेस पार्टी मोदी युग में 2019 के लोक सभा चुनाव तक कांग्रेस का किला माने जाने वाले उत्तराखंड को पूरी तरह से भेद कर रख दिया है।
(Harish Rawat) यहां तक कि पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश की 70 विधानसभाओं में से केवल 11 सीटें जीत पाने के बाद इस लोक सभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी किसी भी सीट पर मुकाबले में ही नहीं दिखे। केवल हरिद्वार सीट पर सर्वाधिक कमजोर माने जा रहे अंबरीश कुमार को छोड़कर कोई भी प्रत्याशी किसी राउंड में भाजपा प्रत्याशी से एक बार भी आगे नहीं निकल पाया।
(Harish Rawat) यहां तक कि स्वयं को प्रदेश का सबसे बड़ा एवं राष्ट्रीय स्तर के कांग्रेस नेता बताने वाले पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तो सर्वाधिक वोटों से हार का रिकॉर्ड ही बना दिया। हरीश अपनी गृह सीट अल्मोड़ा पर अपने खास, खुद के टिकट दिलाये हुए प्रदीप टम्टा को भी 2,21,154 वोटों के बड़े अंतर से हार के अंतर को कम नहीं कर पाये।
(Harish Rawat) वहीं राज्य के इतिहास में पहली बार पांच की पांच सीटें लगातार दूसरी बार जीतने का इतिहास रचते हुए भाजपा ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को भी नहीं बख्शा। प्रीतम 2,93,390 वोटों से हारे। वहीं भाजपा के पूर्व सीएम भुवन चंद्र खंडूड़ी के पुत्र होने के नाते कांग्रेस द्वारा हाथों-हाथ लिये मनीष खंडूड़ी भी पौड़ी से 2,85,003 वोटों के बड़े अंतर से हारे हैं।
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पीसी तिवारी का मुख्यमंत्री हरीश रावत के नाम जेल से खुला ख़त
सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री हरीश रावत जी,
उत्तराखण्ड सरकार,
देहरादून।
माननीय मुख्यमंत्री जी,
एक स्थानीय चैनल ईटीवी पर कल रात व आज सुबह पुनः नानीसार पर आपका विस्तृत पक्ष सुनने का मौका मिला। आपकी इस मामले में चुप्पी टूटने ये यह साबित हुआ कि उत्तराखण्ड में संघर्षरत जनता की आवाज आपकी पार्टी की सियासी सेहत को नुकसान पहुंचाने लगी है।
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लेकिन आपका वक्तव्य ध्यान से सुनने और मनन करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि आपके वक्तव्य में सच्चाई का नितांत अभाव था और एक बार फिर अपनी गरदन बचाने के लिए आप नानीसार के ग्रामीणों की दुहाई देकर पूरे उत्तराखण्ड व देश को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। जनता इस बात को कितना समझती है, इसके लिए थोड़ा वक्त का इंतजार करना पड़ेगा
(Harish Rawat) पर आपको अपने छात्र व सामाजिक जीवन से मैंने जितना जाना समझा है, उसके आधार पर मैं कह सकता हूॅं कि इतने बड़े संवैधानिक व जिम्मेदारी वाले पद पर पहुंचने के बाद भी आपकी फितरत नहीं बदली। इसे मैं उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य ही कहूंगा। आप भी कहें न कहें इस सच्चाई को मन ही मन आप भी जरूर स्वीकारेंगे। रावत जी, आपने अपने पत्र में जिस वैचारिक भिन्नता बात कही है , वह सही है।
(Harish Rawat) आप यह भी जानते हैं कि आपका विचार हमसे अकसर मेल नहीं खाता है तो भी हम अपने विचारों और संकल्पों पर दृढ़ता से कायम रहने वाले लोग हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो आपके फेंके चारे को खाकर कुछ लोगों की भांति हम भी गरीब, भूमिहीन, दलित को अपने पक्ष में गुमराह करने का माध्यम बने होते और आपकी कृपा व इशारे से जिंदल ग्रुप के गुण्डो द्वारा खुद मारपीट और जानलेवा हमला कर अनुसूचित जाति जनजाति के लगाए गए झूठे मुकदमे में जेल में नहीं होते।
(Harish Rawat) रावत जी, आपको मैं याद दिलाना चाहूंगा कि कुमाऊॅं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर का छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए हमने अपने संस्थान के एक सफाईकर्मी श्री नन्हे लाल वाल्मीिकि से 1978 के छात्र संघ समारोह का उद्घाटन कराया था। लेकिन इससे आपको क्या, आपके लिए तो दलित और आदिवासी मात्र वोट बैंक हैं और उसे पाने लिए आप हर स्तर पर तिकड़म करते हैं। शराब, पैसा बांटकर लोकतंत्र का हनन करते हैं।
(Harish Rawat) क्या मैं कुछ अधिक कड़वी सच्चाई कह गया? लेकिन उत्तराखण्ड आंदोलन को दलित विरोधी करार देने वाले आपके दलित नेता आज उन दलित भूमिहीनों को भूल गए हैं जिनके पक्ष की आवाज हम आज भी लगातार उठाए हुए हैं। ऐसे नेता प्रदेश में आपदा प्रभावित, दलितों, भूमिहीनों के हक जमीन को जिंदल व अन्य पूंजीपतियों को कौड़ियों के भाव अवैध ढंग से देने के मामले में आज भी मौन हैं।
(Harish Rawat) माननीय मुख्यमंत्री जी, नानीसार का लेकर स्थानीय चैनल ई टीवी पर आपने जो कहा वह तथ्यात्मक रूप से भी गलत है। आज जानते हैं या नहीं, अपनी आदत के अनुसार आप जानबूझ कर अनजान बने रहना चाहते हैं। आप जानते हैं कि यह सच है कि स्थानीय डीडा गांव के लोग उनके नानीसार तोक की जमीन जिंदल को दिए जाने के खिलाफ 25 सितम्बर 2015 से ही आक्रोशित हैं।
(Harish Rawat) आपकी शह पर वहां तभी से भारी मशीनें, अवैध कटान का उपयोग कर जिंदल के गुण्डों ने कब्जा कर दिया था। जिस ग्राम प्रधान की सहमति का आप टीवी में जिक्र कर रहे थे उसके इस कृत्य के लिए ग्रामीण उसका ग्राम सभा में बहिष्कार कर चुके हैं। इस बाबत ग्रामीणों ने सूचना अधिकार से प्रक्रिया को जानना चाहा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि ग्राम प्रधान ने गलत ढंग से ग्रामीणों को गुमराह किया।
(Harish Rawat) इस बाबत ग्रामीण जिलाधिकारी को अनेकों बार ज्ञापन भी दे चुके है तथा तभी से लगातार आंदोलन कर इस पूरे मामले की जांच की मांग करते आ रहे हैं। लेकिन शासन-प्रशासन ने इसे संज्ञान में नहीं लिया। अब यह मामला अदालत में है। लोकतंत्र में क्या आप इसे ग्रामीणों की सहमति कहेंगे? डीडा के ग्रामीण राज्य स्थापना दिवस से मेरे जेल जाने तक क्रमिक धरना और भूख हड़ताल कर रहे थे। क्या यही जिंदल को जमीन देने की सहमति हैं।
(Harish Rawat)
22 अक्टूबर को जब बिना लीज पट्टा निर्गत किए आप भाजपा सांसद मनोज तिवारी को विशिष्ट अतिथि बनाकर वहां अपने होनहार पुत्र के साथ कथित इंटरनेशनल स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचे, तो भी ग्रामीणों को प्रबल विरोध आपको नहीं दिखा। तब भी आपकी पुलिस के हाथों पिटती ग्रामीण महिलाएं और क्षेत्र के लोग क्या जिंदल को जमीन देने के समर्थन में थे?
रावत जी, मुझे आश्चंर्य होता है कि, एक जिम्मेदार पद पर विराजमान होते हुए आप इतने भोले कैसे बन जाते हैं। यहां मैं आपको याद दिला दूूं कि आपने 28 नवम्बर को मीडिया को सार्वजनिक बयान देकर कहा था कि यदि ग्रामीण चाहेंगे तो जमीन सरकार वापस ले लेगी लेकिन दो महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी आपने इस दिशा में कोई निर्णय नहीं लिया।
(Harish Rawat) अंतरराष्ट्रीनय मानव अधिकार दिवस 10 दिसम्बर को नैनीसार बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले डीडा के ग्रामीणों ने हर परिवार के व्यक्ति के हस्ताक्षरों से एक ज्ञापन जिलाधिकारी के द्वारा आपको भेजा जिसमें इस भूमि आवंटन को खत्म करने की मांग थी। लोकतंत्र में इसे भी क्या लोगों की सहमति कहेंगे ? आपकी शह पर बिना लीज पट्टा निर्गत किए वहां चल रहे निर्माण कार्य व नियम विरूद्ध भारी तार बाड़, ग्रामीणों के रास्ते, पानी पर कब्जा, वहां बुरांस, काफल के पेड़ों का दोहन देखकर हर उत्तराखण्डी को आक्रोश आएगा।
(Harish Rawat) वहां सिविल जज अल्मोड़ा सीनियर डिविजन के स्थगन आदेश के बाद भी आपकी सरकार उस अवैध निर्माण को नहीं रोक पा रही है। ऐसे में आप मुझ जैसे निरीह उत्तराखण्डी पर, जिसे आपकी शह और इशारे पर जिंदल के अज्ञात गुण्डों व कथित अंगरक्षकों द्वारा मारपीट कर अपमानित किया जा रहा है और आरोप है कि मैं अपने विचारों का आप पर थोप रहा हूूॅं। क्या मेरी ऐसी हैसियत है ?
(Harish Rawat) जब 26 जनवरी को नानीसार में आपके प्रशासन के अनेक स्थानों पर रोकने के बाद भी वहां पहुंची 400 के आसपास जनता के समक्ष वहां एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया, तो आपके सिपहसालारों और जिंदल के दबंगों ने उस झण्डे को वहां से उतारकर फेंक दिया।
(Harish Rawat) रावत जी क्या आप चाहते हैं कि नानीसार को लेकर जिस तरह पूरे प्रदेश व देश में सामाजिक कार्यकर्ता व राजनीतिक कार्यकर्ता संघर्ष में उतरकर उसका विरोध कर रहे हैं, उन सब पर आपकी कोई समझ नहीं है, कृपया इसे स्पष्ट करने की कृपा करें।
(Harish Rawat) मुख्यमंत्री जी, जो कुछ आप टीवी पर बोंल रहे थे, स्थिति उसके विपरीत है। आपने भूमि की जांच हेतु स्वयं वरिष्ठंतम अधिकारी राधा रतूड़ी व शैलेश बगौली की कमेटी तीन नवम्बर 2015 को गैरसैंण में घोषित की थी। यदि आप अपने निर्णय पर दृढ़ थे तो फिर दिखाने के लिए वह कमेटी क्यों बनाई ? और इस कमेटी ने अब तक क्या किया ? यदि सब कुछ ठीक है तो आपकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष इस मामले में जाॅंच कमेटी क्यों घोषित कर रहे हैं ?
(Harish Rawat) रावत जी, सुना तो यह भी जा रहा है कि आपने पता नहीं किन कारणों से भूमि आवंटन की यह विवादास्पद पत्रावली अपने वरिष्ठकतम सहयोगी राजस्व मंत्री श्री यशपाल आर्य को भी नहीं भेजी। तब अपने विचारों व निर्णयों को आप थोप रहे हैं या सच्चाई यह है कि सत्ता का दुरूपयोग करे हुए आप अपनी मनमानी पर उतर आए हैं और राज्य के हितों से खिलवाड़ कर रहे हैं, यह जानते हुए कि इसका खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।
(Harish Rawat) जहां तक आपके द्वारा वैकल्पिक विकास माॅडल के सुझावों का मामला है, तो क्या आपने इसके लिए कभी रायशुमारी की ? क्या आपकी सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य की लड़ाई में शामिल हम जैसे सिपाहियों से इस मामले में संवाद शुरू किया ? जबकि आप जानते हैं कि पिछले 4 दशकों से हम लोग इस राज्य में तमाम मुददों पर लड़ रहे हैं फिर ऐसे तोहमत आप हमपर कैसे लगा सकते हैं ?
(Harish Rawat) मुख्यमंत्री जी यदि आपको राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य की इतनी ही चिंता है तो इसे व्यापार क्यों बना रहे हैं ? सरकार की जिम्मेदारी क्या है ? फिर क्यों स्वास्थ्य व शिक्षा के कारण राज्य में पलायन बढ़ रहा है? सरकारी चिकित्सालयों व स्कूलों की दुर्दशा आप जानते हैं। आप इसमें सरकार की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय करते ?
(Harish Rawat) सरकार का काम है कि हर नागरिक को समान और गुणवत्तापूर्वक शिक्षा व स्वास्थ्य दे । हम स्वयं इस कार्य में आपका हर स्तर पर सहयोग करने को तैयार है, लेकिन आप हैं कि लगातार बड़े-बड़े मुनाफाखोर निजी स्कूलों के उद्घाटन समारोहों में ही नजर आ रहे हैं।
(Harish Rawat) मुख्यमंत्री जी, सोशल मीडिया में आपको ‘जमीनी नेता’ के स्थान पर ‘जमीन का नेता’ कह कर स्वयं आपके अपने व्यंग्य करने लगे हैं पर आपकी कार्यप्रणाली को देखकर ऐसा लगता है कि आप राज्य की सवा करोड़ जनता की भावना, सोच, विचार से नहीं वरन अपनी सोच और विवेक पर ही भरोसा करते हैं। ऐसे में तमाम संस्थाओं का क्या महत्व है? इसके बावजूद नानीसार को लेकर मैं आपको एक सुझाव दे सकता हूँ।
(Harish Rawat) यदि आप उचित समझें तो जेएनयू की तर्ज पर जो आवासीय विश्वविद्यालय आप अपने जन्मदिन पर हर जिले में खोलने की घोषणा कर चुके हैं, उसे नानीसार में खोलने की घोषणा करें। लेकिन जिंदल के हितों के सामने शायद आपको मेरा यह सुझाव पसंद न आए।
(Harish Rawat) रावत जी, आप बार-बार इस कथित अंतरराष्ट्रीय स्कूल से रोजगार देने की बात कर रहे हैं। अभी तक हमें सूचना अधिकार से मिले सरकारी दस्तावेजों में इसके बारे में कोई प्रमाण नहीं मिला। स्पष्ट है यह सब जुबानी जमा खर्च है। यदि आप इस पर सोच रहे हैं तो यह जनता का दबाव नहीं है जिसमें आप अपने तरकश में कोई भी तीर रख सकते हैं।
(Harish Rawat) आप बता सकते हैं कि केवल पांच माह में आपकी सरकार ने जमीन आवंटन करने का जो शासनादेष जारी किया उसमें रोजगार भर्ती की क्या व्यवस्था है, गांव के किसानों के बच्चों की पढ़ाई की क्या व्यवस्था है। यदि नहीं, तो मैं समझता हूँ कि मुख्यमंत्री जैसे गरिमापूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति को सदैव जिम्मेदारी से सच बोलना चाहिए। अन्यथा इस पद का भी अवमूल्यन होने लगता है।
(Harish Rawat) खैर, शायद मेरा पत्र लंबा होने लगा है। यदि वक्त मिला और आपके संरक्षण में पल रहे जिंदल और उसके गुण्डों से मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहा तो जरूर मैं जनता के समक्ष आपसे खुली बहस करने को तैयार हूँ,
और आप मेरे इस निमंत्रण को स्वीकारें, ताकि आपके विचार और अनुभवों से उत्तराखण्ड की जनता और मैं कुछ सीख सकें।
बुरा न मानें, यह लोकतंत्र हैं। आपके लाख जुल्म हों, मैं तो अपनी बात कहूंगा।
पी.सी. तिवारी
केंद्रीय अध्यक्ष, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी
जिला कारागार अल्मोड़ा
29 जनवरी, 2016
संपर्क- 9412092159
पूर्व आलेख : दो टूक
आखिर फ़रवरी 2014 में अपने ही एक कार्यकर्ता को झन्नाटेदार झापड़ मारने से उत्तराखंड राज्य के आठवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले हरीश रावत की बीती 18 मार्च 2016 को विधान सभा में मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के बीच हुई मारपीट से पतन की कहानी शुरू हुई, और आखिर 27 मार्च को उनकी दो वर्ष एक माह लम्बी पारी का समापन हो गया। उनके इस हश्र की आशंका पहले ही जता दी गयी थी।
- राष्ट्रपति शासन 27 फ़रवरी को : 7 + 2 = 9
- विधायक बागी हुए = 9
- वर्ष 2016 = 2 + 0 +1 + 6 = 9
- राज्य को अब मिलेगा नौवां मुख्यमंत्री
- तो क्या 9 का अंक हुआ रावत के लिए अशुभ, क्या घोड़े (Horse) से शुरू हुई उत्तराखंड की राजनीति में Horse Trading के आरोपों के बाद रावत को पड़ी ‘नौ’लत्ती
उत्तराखंड राज्य के आठवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने वाले हरीश रावत की धनै के पीडीएफ से इस्तीफे, महाराज के आशीर्वाद बिना और झन्नाटेदार थप्पड़ जैसे एक्शन-ड्रामा के साथ हुई ताजपोशी के बाद यही सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या रावत अपना बोया काटने से बच पाएंगे। इस बाबत आशंकाएं गैरवाजिब भी नहीं हैं।
(Harish Rawat) रावत के तीन से चार दशक लंबे राजनीतिक जीवन में उपलब्धियों के नाम पर वादों और विरोध के अलावा कुछ नहीं दिखता।हरीश रावत का उत्तराखंड की राजनीति में उदय किसी ‘धूमकेतु’ की तरह हुआ था। अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही जनता के दुलारे इस राजनेता का ऐसा आकर्षण था, कि उन्होंने सबसे कम उम्र में ब्लाक प्रमुख बनने का रिकार्ड बनाया।
(Harish Rawat) हालांकि बाद में निर्धारित से कम उम्र का होने के कारण उन्हें भिकियासेंण के ब्लाक प्रमुख के पद से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशों पर पद से हटना पड़ा था। और आज भी राज्य की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद उन्हें पद से हटना पड़ा है, और आज की तिथि में बकौल स्वयं उनके वह ‘सिर कटे’ मुख्यमंत्री हैं।
(Harish Rawat) यह दुर्योग ही कहा जायेगा कि एक अन्य ‘सिर कटे’ राहु ने भी अपने दौर में आज के दौर के सत्ता शीर्ष की तरह का ‘अमरत्व’ प्राप्त भी कर लिया था, किंतु आखिर उसे सिर काट कर वापस उसकी अपनी लाइन में भेज दिया गया।
(Harish Rawat) हालांकि रावत गिरते-टूटते भी फिर सिर उठाकर खड़े होने की राजनीतिक कला बखूबी जानते हैं कि आज की तिथि में यह सवाल मौजू है कि उनकी राजनीति का जो हश्र हुआ है, क्या वह अनपेक्षित था कि यह तय ही था। रावत पर दूसरा पहलू अधिक उभर कर आता है। कहते हैं मनुश्य जैसा बोता है, वही उसे काटना पड़ता है। बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय। रावत पर यह उक्ति कहीं अधिक सटीक बैठती है। रावत ने जैसा-जैसा किया, वैसा-वैसा उनके साथ भी होता चला गया।
(Harish Rawat) रावत ने भाजपा की बीते दौर की त्रिमूर्तियों में शुमार मुरली मनोहर जोशी को अल्मोड़ा में हराकर राजनीतिक रूप से तड़ीपार कराया तो यही दंश उन्हें भी अल्मोड़ा से हरिद्वार ‘भागने’ को मजबूर होने के रूप में झेलना पड़ा। पार्टी में उनके अग्रज पं. नारायण दत्त तिवारी की राजनीतिक यात्रा का अंत एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ से हुआ था। आरोप लगता है कि इसके पीछे रावत थे।
(Harish Rawat) अब रावत की आज तक की राजनीतिक यात्रा, कम से कम राजनीतिक शीर्ष पर पहुंचने की यात्रा का अंत करने में भी एक ‘स्टिंग ऑपरेशन’ ने सर्वप्रमुख भूमिका निभाई है। 2012 में बकौल उनके सिपहसालार तत्कालीन सांसद प्रदीप टम्टा, सत्ता शीर्ष पर पहुंचने के लिए विजय बहुगुणा ने रावत के ‘पीठ मंे छुरा’ भौंका था, तो 2014 में रावत भी बहुगुणा की ‘छाती में वार’ जैसा ही कुछ करके ही सत्ता में आए थे।
(Harish Rawat) तो अब बहुगुणा ने फिर उन्हें पटखनी मिली है, तो इसे उसी वार-प्रतिवार की श्रृंखला का ही एक हिस्सा माना जाएगा। वहीं उन्हांेने फरवरी 2014 में उत्तराखंड राज्य के आठवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करने की शुरुआत अपने ही एक कार्यकर्ता को झन्नाटेदार थप्पड़़ जड़ने से की थी, तो सदन में उनके आखिरी दिन भी ऐसे ही एक और ‘थप्पड़ की गूंज’ भी बाहर तक सुनाई दी थी। ये कुछ ऐसी बातें हैं, जिनके साथ यह बड़ा सवाल रावत की ताजपोशी के दिन से उठ रहा है कि क्या रावत अपना बोया काटने से बच पाएंगे।
(Harish Rawat) रावत के तीन से चार दशक लंबे राजनीतिक जीवन में उपलब्धियों पर नजर डालें तो वहां राजनीतिक चाल-चतुराई, शब्दों को घुमा-घुमाकर मीठी छुरी से विरोधियों ही नहीं सहयोगियों पर भी वार-प्रतिवार, वादों और विरोध के अलावा कुछ नहीं दिखता। चाहे राज्य की पिछली बहुगुणा सरकार हो या 2002 में प्रदेश में बनी पं. नारायण दत्त तिवारी की सरकार, रावत ने कभी अपनी सरकारों और मुख्यमंत्रियों के विरोध के लिए विपक्ष को मौका ही नहीं दिया।
(Harish Rawat) दूसरी ओर केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहते चाहे श्रम राज्य मंत्री का कार्यकाल हो, उन्होंने बेरोजगारी व पलायन से पीड़ित अपने राज्य के लिए एक भी कार्य उपलब्धि बताने लायक नहीं किया। वह कृषि मंत्री बने तब भी उन्होंने लगातार किसानी छोड़कर पलायन करने को मजबूर अपने राज्य के किसानों के लिए कुछ नहीं किया। जल संसाधन मंत्री बने, तब भी अपने राज्य की जवानी की तरह ही बह रहे पानी को रोकने या उसके सदुपयोग के लिए एक भी उल्लेखनीय पहल नहीं की।
(Harish Rawat) कुल मिलाकर तीन-चार दशक लंबे राजनीतिक करियर के बावजूद रावत के पास अपनी उपलब्धियां बताते के लिए कुछ है तो अपने उत्पाती प्रकृति के समर्थकों की धरोहर है, जिनके बारे में बताया जा रहा है कि वे आखिरी समय में रावत के लिये भी ‘कुछ’ बचाकर नहीं गए हैं। जैसा कि कथित स्टिंग में दिखा। रावत लाचारगी के साथ कह रहे थे, मेरे पास कुछ नहीं है, ऊपर वाले भी ‘कंगले’ बैठे हैं।
(Harish Rawat) और बमुश्किल अपना हाथ उठाकर इशारा कर शायद बता रहे थे, मेरे पास तो पांच करोड़ रुपए ही हैं। हां, बाद में ‘टॉप-अप’ जरूर करवा देंगे। जनता की याददास्त कमजोर होती है। लेकिन, बहुगुणा की सरकार बनने के दौरान एक हफ्ते तक दिल्ली में पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र के नाम पर चले राजनीतिक ड्रामे की यादें अभी बहुत पुरानी भी नहीं पड़ी हैं, जिसकी हल्की झलक हरीश रावत की ताजपोशी के दिन सतपाल महाराज ने भी दिखाई थी।
(Harish Rawat) जिसका प्रतिफल यह हुआ कि रावत के राजनीतिक प्रतिवार के फलस्वरूप न केवल सतपाल की जल्द ही कांग्रेस से विदाई हुई, वरन मजबूरी में मंत्री बनाई गई उनकी धर्मपत्नी अमृता रावत को भी मंत्रिमंडल से विदा कर दिया गया। याद रखना होगा, अमृता ही एकमात्र मंत्री थी, जिन्हें कांग्रेस की बहुगुणा व रावत सरकारों से हटाया गया।
(Harish Rawat) वहीं शपथ ग्रहण समारोह में ही रावत समर्थकों के ‘कंधों पर झूलते’ हुए ‘दिन-दहाड़े’ दिखाए ‘चाल-चरित्र’ की झलक के चर्चे भी आम रहे, जिस पर आगे टीवी चैनलों ने उनके कार्यकाल के लिए ‘राव‘त’ राज’’ का एक अक्षर बदलकर ‘रावण राज’ कहने जैसी अतिशयोक्तिपूर्ण टिप्पणी भी की।
वह गूल में पानी ना आने पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखने की अदा….
अपने शुरुआती राजनीतिक दौर में अपनी समस्याएं बताने वाले लोगों को तत्काल पत्र लिखकर समाधान कराने का वादा करना, तब हरीश चंद्र सिंह रावत के नाम से पहचाने जाने वाले रावत का लोगों को अपना मुरीद बनाने का मूलमंत्र रहा। अपने खेत में पानी की गूल से पानी न आने की शिकायत करने वाले ग्रामीण को उनका तीसरे दिन ही पोस्टकार्ड से जवाब आ जाता कि उन्हें लगा है कि गूल में पानी आपके नहीं मेरी गूल में नहीं आ रहा है।
(Harish Rawat) उन्होंने शिकायत को सिंचाई विभाग के जेई, एई, ईई, एसई से लेकर राज्य के सिंचाई मंत्री, मुख्यमंत्री के साथ ही केंद्रीय सिंचाई मंत्री और प्रधानमंत्री को भी सूचित कर दिया है। गूल में पानी कभी ना आता, लेकिर ग्रामीण पत्र प्राप्त कर ही हरीश का मुरीद बन जाते।
विरोध, विरोध और विरोध….
उत्तराखंड आंदोलन के दौरान हरीश की पहचान उत्तराखंड राज्य विरोधी की भी बनी, जिसके परिणामस्वरूप 1989 के चुनावों के लिए नामांकन कराने के लिए उन्हें मात्र चार-छह समर्थकों के साथ कमोबेश चुपचाप आना पड़ा था। बाद के वर्षों में हरीश की अपने अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मणद्रोही क्षत्रिय नेता की छवि बनती चली गई, जिसका परिणाम उन्हें अपनी हार की हैट-ट्रिक और पत्नी की भी हार के बाद अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र का रण छोड़ने पर विवश कर गया।
(Harish Rawat) राज्य के ब्राह्मण नेता तिवारी और बहुगुणा का लगातार विरोध करने से भी उनकी इस ब्राह्मण विरोधी छवि का विस्तार ही हुआ। इसी का परिणाम है कि उन्होंने राज्य की कुर्सी प्राप्त भी की तो नारायण दत्त तिवारी के राज्य की राजनीति से दूर जाने के बाद।
जानें कौन और क्या हैं हरीश रावत
हरीश रावत उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे कद्दावर व मंझे हुए राजनेताओं में शामिल रहे हैं। अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही जनता के दुलारे इस राजनेता का ऐसा आकर्षण था, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने सबसे कम उम्र में ब्लाक प्रमुख बनने का रिकार्ड बनाया। हालांकि बाद में निर्धारित से कम उम्र का होने के कारण उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशों पर भिकियासेंण के ब्लाक प्रमुख के पद से हटना पड़ा था।
(Harish Rawat) 27 अप्रैल 1947 को तत्कालीन उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के ग्राम मोहनरी पोस्ट चौनलिया में स्वर्गीय राजेंद्र सिंह रावत व देवकी देवी के घर जन्मे रावत की राजनीतिक यात्रा एलएलबी की पढ़ाई के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय जाने से शुरू हुई। यहां वह रानीखेत के कांग्रेस विधायक व यूपी सरकार में कद्दावर मंत्री गोविंद सिंह मेहरा के संपर्क में आए, और गांव में एक पत्नी के होते हुए रावत ने रेणुका से दूसरा विवाह किया।
(Harish Rawat) यहीं संजय गांधी की नजर भी उन पर पड़ी, जिन्होंने तभी उनमें भविष्य का नेता देख लिया था, और केवल 33 वर्ष के युवक हरीश को 1980 में कांग्रेस पार्टी का न केवल सक्रिय सदस्य बनाकर, वरन लोक सभा चुनावों में अल्मोड़ा संसदीय सीट से कांग्रेस-इंदिरा का टिकट दिलाने के साथ ही कांग्रेस सेवादल की जिम्मेदारी भी सोंप दी।
(Harish Rawat) इस चुनाव में हरीश ने गांव से निकले एक आम युवक की छवि के साथ बाद में भाजपा के त्रिमूर्तियों में शुमार व तब भारतीय लोक दल से तत्कालीन सांसद प्रोफेसर डा. मुरली मनोहर जोशी के विरुद्ध 50 हजार से अधिक मतों से बड़ी पटखनी देकर भारतीय राजनीति में एक नए ‘धूमकेतु’ के उतरने के संकेत दे दिए। जोशी को मात्र 49,848 और रावत को 1,08,503 वोट मिले। आगे 1984 में भी उन्होंने जोशी को हराकर अल्मोड़ा सीट छोड़ने पर ही विवश कर दिया।
(Harish Rawat) 1989 के चुनावों में उक्रांद के कद्दावर नेता काशी सिंह ऐरी निर्दलीय और भगत सिंह कोश्यारी भाजपा के टिकट पर उनके सामने थे। यह चुनाव भी रावत करीब 11 हजार वोटों से जीते। रावत को 1,49,703, ऐरी को 1,38,902 और कोश्यारी को केवल 34,768 वोट मिले, और यही कोश्यारी रावत से 12 वर्ष पहले उत्तराखंड के दूसरे मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। आगे वह युवा कांग्रेस व कांग्रेस की ट्रेड यूनियन के साथ ही 2000 से 2007 तक उत्तराखंड कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। इस बीच 2002 में वह राज्य सभा सांसद के रूप में भी संसद पहुंचे।
(Harish Rawat) उत्तराखंड आंदोलन के दौर में हरीश रावत उत्तराखंड आंदोलन के दौरान वह राज्य विरोधी रहे। कहते हैं कि इसी कारण 1989 के लोक सभा चुनावों के लिए उन्हें जनता के विरोध को देखते हुए अल्मोड़ा में नामांकन कराने के लिए भी चुपचाप अकेले आना पड़ा। लेकिन इस चुनाव में उक्रांद के काशी सिंह ऐरी को हराने के बाद राजनीतिक चालबाजी दिखाते हुए अचानक अपने सिपहसालार किशोर उपाध्याय के साथ उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति का गठन कर खुद को राज्य आंदोलन से जोड़ते हुए एक तरह से राज्य आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली।
(Harish Rawat) हालांकि इस दौरान भी वह राज्य से पहले केंद्र शासित प्रदेश की मांग पर बल देते रहे। आगे रामलहर के दौर में रावत भाजपा के नए चेहरे जीवन शर्मा से करीब 29 हजार वोटों से सीट गंवा बैठे। इसके साथ ही विरोधियों को मौका मिल गया, जो उनकी राजनीतिक छवि एक ब्राह्मण विरोधी छत्रिय नेता की बनाते चले गए, जिसका नुकसान उन्हें बाद में केंद्रीय मंत्री बने भाजपा नेता बची सिंह रावत से लगातार 1996, 1998 और 1999 में तीन हारों के रूप में झेलना पड़ा।
(Harish Rawat) 2004 के लोक सभा चुनावों में हरीश की पत्नी रेणुका को भी बची सिंह रावत ने करीब 10 हजार मतों के अंतर से हरा दिया। लेकिन इन विपरीत हालातों को भी वह अपने पक्ष में मोड़ने में सफल रहे। 2009 के चुनावों में रावत ने एक असाधारण फैसला करते हुए दूर-दूर तक संबंध रहित प्रदेश की हरिद्वार सीट से नामांकन करा दिया, जहां समाजवादी पार्टी से उनकी परंपरागत सीट रिकार्ड 3,32,235 वोट प्राप्त कर छीन ली, और इस तरह उनका एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ के रूप में राजनीतिक पुर्नजन्म हुआ।
(Harish Rawat) इसी जीत के बाद उन्हें केंद्र सरकार में पहले श्रम राज्यमंत्री बनाया गया, और आगे केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनका कद बढ़ता चला गया। वर्ष 2011 में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में राज्य मंत्री, तथा बाद में ससंदीय कार्य राज्य मंत्री के बाद 2012 में वह जल संसाधन मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री बना दिए गए। इस दौरान वह लगातार विपक्ष के हमले झेल रही यूपीए सरकार और कांग्रेस पार्टी के ‘फेस सेवर’ की दोहरी जिम्मेदारी निभाते रहे।
(Harish Rawat) अनेक बेहद विषम मौकों पर जब पार्टी के कोई भी नेता मीडिया चौनलों पर आने से बचते थे, रावत एक ही दिन कई-कई मीडिया चौनलों पर अपनी कुशल वाकपटुता और तर्कों के साथ पार्टी और सरकार का मजबूती से बचाव करते थे। इस तरह वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के समक्ष उत्तराखंड के सबसे विश्वस्त और भरोसेमंद राजनेता बनने में सफल रहे।
(Harish Rawat) शायद इसी का परिणाम रहा कि 2002 और 2012 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को प्रदेश में सत्ता तक पहुंचाने में सबसे प्रमुख भूमिका निभाने वाले हरीश रावत के राजनीतिक कौशल की हाईकमान अधिक दिनों तक अनदेखी नहीं कर पाया, और लोक सभा चुनावों के विपरीत नजर आ रहे हालातों में रावत के हाथों में ही संकटमोचक के रूप में उत्तराखंड राज्य की सत्ता सोंपी गई।
स्याह पक्ष:
गांव में एक पत्नी के होते हुए रावत ने रेणुका से दूसरा विवाह किया। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान वह राज्य विरोधी रहे। इसी कारण 1989 के लोक सभा चुनावों के लिए उन्हें जनता के विरोध को देखते हुए अल्मोड़ा में नामांकन कराने के लिए भी चुपचाप अकेले आना पड़ा। लेकिन इस चुनाव में उक्रांद के काशी सिंह ऐरी को हराने के बाद राजनीतिक चालबाजी दिखाते हुए अचानक उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति का गठन कर खुद को राज्य आंदोलन से भी जोड़ लिया।
(Harish Rawat) हालांकि इस दौरान भी वह राज्य से पहले केंद्र शासित प्रदेश की मांग पर बल देते रहे। अल्मोड़ा के सांसद रहते वह ब्राह्मण विरोधी क्षत्रिय नेता बनते चले गए, जिसका खामियाजा उन्हें बाद में स्वयं की हार की तिकड़ी और पत्नी रेणुका की भी हार के साथ अल्मोड़ा छोड़ने के रूप में भुगतना पड़ा। आगे प्रदेश में पंडित नारायण दत्त तिवारी और विजय बहुगुणा सरकारों को लगातार स्वयं और अपने समर्थक विधायकों के भारी विरोध के निशाने पर रखा,
(Harish Rawat) और अपनी ब्राह्मण विरोधी क्षत्रिय नेता और सत्ता के लिए कुछ भी करने वाले नेता की छवि को आगे ही बढ़ाया। केंद्र में श्रम एवं सेवायोजन, कृषि एवं खाद्य प्रसंसकरण तथा जल संसाधन मंत्री रहे, लेकिन इन मंत्रालयों के जरिए प्रदेश के बेरोजगारों को रोजगार, कृषि व फल उत्पादों को बढ़ावा देने तथा जल संसाधनों के सदुपयोग की दिशा में उन्होंने एक भी उल्लेखनीय कार्य राज्य हित में नहीं किया।
मुख्यमंत्री हरीश रावत का राजनीतिक लेखा-जोखा
चुनाव लोक सभा क्षेत्र जीते हारे
1980 अल्मोड़ा हरीश रावत-कांग्रेस-ई (108530) मुरली मनोहर जोशी-भाजपा(49848)
1884 अल्मोड़ा हरीश रावत-कांग्रेस (185006) मुरली मनोहर जोशी-भाजपा(44674)
1989 अल्मोड़ा हरीश रावत-कांग्रेस (149703) काशी सिंह ऐरी-निर्दलीय (138902)
1991 अल्मोड़ा जीवन शर्मा-भाजपा (149761) हरीश रावत-कांग्रेस (120616)
1996 अल्मोड़ा बची सिंह रावत-भाजपा (161548) हरीश रावत-कांग्रेस (104642)
1998 अल्मोड़ा बची सिंह रावत-भाजपा (228414) हरीश रावत-कांग्रेस (146511)
1999 अल्मोड़ा बची सिंह रावत-भाजपा (192388) हरीश रावत-कांग्रेस (180920)
2004 अल्मोड़ा बची सिंह रावत-भाजपा (225431) रेणुका रावत-कांग्रेस (215568)
2009 हरिद्वार हरीश रावत -कांग्रेस (332235) स्वामी यतींद्रानंद गिरि-भाजपा (204823)
नेहरू के बहाने: सोनिया-राहुल से भी आगे निकलने की कोशिश में हरीश रावत
नवीन जोशी, नैनीताल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शुरू होकर भाजपा और राजग को भी कांग्रेस के सम्मेलन में न बुलाने को लेकर ‘नेहरू के बहाने’ शुरू हुई बहस में अब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत भी कूद पड़े हैं। मौका भुनाते हुए रावत ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी और राहुल गांधी के न केवल सुरों में सुर मिलाए हैं, वरन उनसे भी आगे निकलने की कोशिश की है।
(Harish Rawat) उन्होंने किसी का नाम लिए बिना कहा सांप्रदायिक ताकतों के द्वारा नेहरू के व्यक्तित्व को खंडित करने की कोशिश की जा रही है, पर यह असंभव है। लेकिन उनकी (नेहरू की) विचारधारा को खंडित करने की बड़ी चिंता है। कुछ लोग (नाम लिए बिना) नेहरू द्वारा रखी गई गांव आधारित योजनागत विकास की बुनियाद को हिलाने, कमजोर करने में लगे हैं।
वह इसकी जगह कॉरपोरेट की बात करते हैं। कांग्रेसजनों को इससे सावधान रहना है। कहा, ऐसी कोशिशों को बर्दास्त नहीं किया जाएगा और मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।
श्री रावत ने यह बात शुक्रवार को नैनीताल क्लब स्थित शैले हॉल में देश के प्रथम राष्ट्रपति जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस-बाल दिवस के अवसर पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करने के उपरांत कही। कहा, 125वीं जयंती पर नेहरू जी की प्रासंगिकता उनके जीवन काल से भी अधिक बढ़ गई है। नेहरू जी ने गांधी जी के समरसता, सर्वधर्म सम्भाव व धर्मनिरपेक्षता जैसे सिद्धांतों को अपने व्यक्तित्व में शामिल कर लिया था। आज देश ने जो भी प्रगति की है, उसकी नींव नेहरू जी ने ही रखी थी।
(Harish Rawat) वह सांप्रदायिकता के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने ही देश को योजनागत विकास का मॉडल दिया था, और अंग्रेजों की गुलामी से छूटे देश को दुनिया की पांचवी औद्योगिक शक्ति के रूप में स्थान दिलाया था, तथा अपने देश को आजादी दिलाने के साथ ही 150 अन्य देशों को भी आजादी की राह दिखाकर रूस व अमेरिका के सामने तीसरी विश्व शक्ति खड़ी की थी।
(Harish Rawat) उन्होंने ही बोकारो से लेकर भिलाई और दुर्गापुर से लेकर भाखड़ा बांध बनाकर उद्योगों, ऊर्जा जरूरतों और सिंचाई की परियोजनाएं शुरू की थीं। भाभा एटोमिक प्लांट बनाया था, जिससे हम बाद में इंदिरा गांधी के दौर में अणुशक्ति बने। उन्होंने ही अंतरिक्ष मिशन की नीव रखी थी, जिसके प्रतिफल में आज हम चंद्रयान, मंगलयान भेजने में सफल रहे हैं।
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यह क्या अजीबोगरीब हो रहा हरीश सरकार में !
हरीश रावत के आते ही तीन ‘रावत’ निपटे
उत्तराखंड में जब से हरीश रावत के नेतृत्व में सरकार बनी है, बहुत कुछ अजीबोगरीब हो रहा है। विरोधियों को ‘विघ्नसंतोषी’ कहने और उनसे निपटने में महारत रखने वाले रावत के खिलाफ मुंह खोल रहे और खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बता रहे तीन रावत (सतपाल, अमृता और हरक) निपट चुके हैं। सतपाल व अमृता के खिलाफ विपक्ष ने अपने परिजनो को पॉलीहाउस बांटने में घोटाले का आरोप लगाया, और सीबीआई जांच की मांग उठाई है।
(Harish Rawat) हरक का नाम दिल्ली की लॉ इंटर्न ने छेड़खानी का मुक़दमा दर्ज कराकर ख़राब कर दिया है। बचा-खुचा नाम भाजपाई हरक को ‘बलात्कारी हरक सिंह रावत’ बताकर और उनका पुतला फूंक कर ख़राब करने में जुट गए हैं। रावत ने पहले ही उनके पसंदीदा कृषि महकमे की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी गैर विधायक तिलक राज बेहड़ को मंत्री के दर्जे के साथ देकर जोर का झटका धीरे से दे दिया था।
(Harish Rawat) विपक्ष के ‘मुंहमांगे’ से अविश्वाश प्रस्ताव से हरीश सरकार पहले ही छह मांह के लिए पक्की हो ही चुकी है। अब यह समझने वाली बात है कि विरोधी खुद-ब-खुद निपट रहे और रावत की राह स्वतः आसान होती जा रही है कि यह रावत के राजनीतिक या कूटनीतिक कौशल का कमाल है।
माँगा गाँव-मिला शहर
हरीश रावत (Harish Rawat) सरकार आसन्न त्रि-स्तरीय पंचायत व लोक सभा चुनावों की चुनावी बेला में अनेक अनूठी चीजें कर रही हैं। अचानक राज्य के सब उत्तराखंडी लखपति हो गए हैं। सरकार ने बताया है, राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1,12,000 रुपये से अधिक हो गयी है। सांख्यिकी विभाग ने आंकड़ों की बाजीगरी कर कर सिडकुल में लगे चंद उद्योगों के औद्योगिक घरानों की आय राज्य की जीडीपी में जोड़कर यह कारनामा कर डाला है।
(Harish Rawat) दूसरे संभवतया देश में ही ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य में पंचायत चुनावों की अधिसूचना 1 मार्च को और चुनाव आचार संहिता 2 मार्च से जारी होने वाली है और चुनावों के लिए नामांकन पत्रों की बिक्री इससे एक सप्ताह पहले 24 फरवरी से ही शुरू हो गयी है।
(Harish Rawat) तीसरे राज्य के वन क्षेत्र सीधे ही शहर बन गए हैं। लालकुआ के पास पूरी तरह वन भूमि पर बसे बिन्दुखत्ता को राज्य कैबिनेट ने जनता की राजस्व गाँव घोषित करने की मांग से भी कई कदम आगे बढ़कर एक तरह के बिन मांगे ही स्वतंत्र रूप से नगर पालिका बनाने की घोषणा कर दी है, वहीँ इसी तरह के दमुवाढूंगा को सीधे हल्द्वानी नगर निगम का हिस्सा बनाने की घोषणा कर दी गयी है।
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उत्तराखंड में आयी दैवीय आपदा का आख़िरी पीड़ित |
(Harish Rawat) अपने दो वर्ष से भी कम समय में ही उत्तराखड की सत्ता से च्युत हुए विजय बहुगुणा की मुख्यमन्त्री पद से वापसी न केवल उनकी वरन 10 जनपथ की नाकामी अधिक है। 2010 के बाद दोबारा मार्च 2012 में विधायक दल की स्वाभाविक पसंद की अनदेखी के बावजूद उन्हें राज्य पर थोपे जाने का ही नतीजा है कि बहुगुणा अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही कमोबेश हर दिन सत्ता से आते-जाते रहे और एक जज के बाद एक सांसद और अब मुख्यमंत्री के रूप में भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए हैं.
(Harish Rawat) तथा अपना नाम डुबाने के साथ ही अपने पिता के नाम पर भी दाग लगा चुके हैं, और कांग्रेस को भी केदारनाथ आपदा के दौरान अपने निकृष्ट कुप्रबंधन से न केवल उत्तराखंड वरन पूरे देश में नुकसान पहुंचा चुके हैं।याद रखना होगा कि बहुगुणा की ताजपोशी 10 जनपथ को 500 करोड़ रुपए की थैली पहुंचाए जाने का प्रतिफल बताई गई थी। शायद तभी उन्हें पूरे देश को झकझोरने वाली उत्तराखंड में आई जल प्रलय की तबाही में निकृष्ट प्रबंधन की नाकामी और चारों ओर से हो रही आलोचनाओं के बावजूद के बावजूद नहीं हटाया गया।
(Harish Rawat) और अब हटाया भी गया है तो तब , जब तमाम ओपिनियन पोल में कांग्रेस को आगामी लोक सभा चुनावों में उत्तराखंड में पांच में से कम से कम चार सीटों पर हारता बताया जा रहा है, और आसन्न पंचायत चुनावों में भी कांग्रेस की बहुत बुरी हालत बताई जा रही है।
अब तो बस यह देखिये कि बहुगुणा के लिए 13 का अंक शुभ होता है या नहीं….
“चिंता न करें, जल्द मान जाऊँगा…” शायद यही कह रहे हैं हरीश रावत, उत्तराखंड के सीएम विजय बहुगुणा से |
(Harish Rawat) दोस्तो आश्चर्य न करें, कांग्रेस पार्टी में बिना पारिवारिक पृष्ठभूमि के कोई नेता मुख्यमंत्री बनना दूर आगे भी नहीं बढ़ सकता…बहुगुणा की ताजपोशी पहले से ही तय थी, बस माहौल बनाया जा रहा था….
(Harish Rawat) विजय बहुगुणा को उत्तराखंड का सीएम बनाना कांग्रेस हाईकमान ने चुनावों से पहले ही तय कर लिया था. इसकी शुरुवात तब के पराजित भाजपा सांसद प्रत्यासी रहे अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज जसपाल राणा को कांग्रेस में शामिल कराया गया था, ताकि बहुगुणा को सीएम बनाये जाने पर पौड़ी सीट खली हो तो वहां से जसपाल को चुनाव लड़ाया जा सके.
(Harish Rawat) तब इसलिए उनका नाम घोषित नहीं किया गया कि पार्टी के अन्य क्षत्रप पहले ही (अब की तरह) न बिदक जाएँ. 6 मार्च को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद भी नाम घोषित नहीं किया, ताकि सीएम पद का ख्वाब पाल रहे दावेदार बहुमत के लिए जरूरी निर्दलीयों व उक्रांद का समर्थन हासिल कर लायें. क्षत्रप 36 का आंकड़ा तो हासिल कर लाये, पर यहाँ पर एक गड़बड़ हो गयी. निर्दलीय अपने आकाओं को सीएम बनाने की मांग उठा कर एक तरह से हाईकमान को आँख दिखाने लगे,
(Harish Rawat) इस पर हाईकमान को एक बार फिर बहुगुणा को सीएम बनाने की घोषणा टालनी पडी. अब प्रयास हुए बसपा का समर्थन हासिल करने की, बसपा के कथित तौर पर दो विधायक कांग्रेस में आने को आतुर थे, ऐसे में तीसरा भी क्यों रीते हाथ बैठता. ऐसे में बसपाई 12 मार्च को राजभवन जा कर कमोबेश बिन मांगे कांग्रेस को समर्थन का पत्र सौंप आये.
(Harish Rawat) अब क्या था, तत्काल ही कांग्रेस हाईकमान ने बहुगुणा के नाम की घोषणा कर दी. इसके तुरंत बाद हरीश रावत गुट ने दिल्ली में जो किया, उससे कांग्रेस में बीते सात दिनों से ‘आतंरिक लोकतंत्र’ के नाम पर चल रहे विधायकों की राय पूछने के ड्रामे की पोल-पट्टी खुल गयी.
(Harish Rawat) सच्चाई है कि कांग्रेस हाईकमान के विजय बहुगुणा को सीएम घोषित करने का एकमात्र कारण था उनका पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा का पुत्र होना. स्वयं परिवारवाद पर चल रहे कांग्रेस हाईकमान के लिए अपनी इस मानसिकता से बाहर निकलना आसान न था, रावत समर्थक सांसद प्रदीप टम्टा कह चुके हैं की बहुगुणा को कांग्रेस के बड़े नेता किशोर उपाध्याय को निर्दलीय दिनेश धने के हाथों हराकर पार्टी की ‘पीठ में छुरा भौकने’ का इनाम मिला है,
(Harish Rawat) जबकि रावत कांग्रेस की ‘छाती में वार’ करने चले थे. सो आगे उनका ‘कोर्टमार्शल’ होना तय है, कब होगा-इतिहास बतायेगा. हरीश रावत और उनके समर्थक नेता इस बात को जितना जल्दी समझ लें बेहतर होगा..
(Harish Rawat) किसी भ्रम में न रहें, कुछ भी आश्चर्यजनक या अनपेक्षित नहीं होने जा रहा है, बन्दर घुड़की दिखाने के बाद दोनों रावत (हरीश-हरक) व टम्टा आदि हाईकमान की ‘दहाड़’ के बाद चुप होकर फैसले को स्वीकार कर लेंगे, किसी शौक से नहीं वरन इस फैसले को ही नियति मानकर, आखिर उनका इस पार्टी के इतर अपना कोई वजूद भी तो नहीं है.
(Harish Rawat) अब तो बस यह देखिये कि 13 मार्च को प्रदेश के सीएम पद की शपथ ग्रहण करने वाले बहुगुणा के लिए 13 का अंक पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की तरह पूर्व मान्यताओं के इतर शुभ होता है या नहीं….बहरहाल खंडूडी के बाद उनके ममेरे भाई में प्रदेश की जनता एक धीर-गंभीर मुख्यमंत्री देख रही है..