नवीन समाचार, नैनीताल, 31 जनवरी 2024 (High Court News)। चमोली की निलंबित जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी को उत्तराखंड उच्च न्यायालय से फौरी राहत मिल गयी है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की अवकाशकालीन एकलपीठ ने श्रीमती भंडारी के निलंबन पर स्थगनादेश देते हुऐ उनके विरुद्ध चल रही जांच पर रोक लगा दी है। साथ ही राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
उल्लेखनीय है चमोली की निलंबित जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी पर वर्ष 2012-13 में नंदा राजजात के दौरान विकास कार्यों संबंधी निविदाओं में अनियमिताओं एवं अपने दायित्व का उचित निर्वहन न करने के आरोप हैं। पूर्व ब्लॉक प्रमुख नंदन सिंह बिष्ट की शिकायत पर जांच की सिफारिश के बाद पंचायती राज विभाग की ओर से गत 25 जनवरी को एक आदेश जारी करके रजनी भंडारी को जिला पंचायत अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था।
अनियमितताओं की जांच को रोकने के लिए श्रीमती भंडारी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। बुधवार को इस याचिका पर सुनवाई करते हुये न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की अवकाशकालीन एकलपीठ ने रजनी भंडारी को बड़ी राहत देते हुए जांच पर रोक लगा दी है।
भंडारी ने अपनी याचिका में कहा है कि सरकार ने जांच करने में पंचायती राज अधिनियम के प्रावधानों का पालन नहीं किया है। पंचायतीराज नियमावली के अनुसार अनियमितता होने पर पहले जिला अधिकारी द्वारा प्रारंभिक जांच की जानी थी, लेकिन जिलाधिकारी द्वारा खुद जांच न करके सीडीओ को जांच सौपी और सीडीओ ने जांच कराने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर जांच कराई।
याचिका में कहा गया कि जो जांच कराई गई, उसमें किसी तरह की नियमावली का पालन नहीं किया गया, इसलिए जांच पर रोक लगाई जाए। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि वह निर्वाचित पदाधिकारी हैं और उन्हें राजनीतिक दुर्भावना के चलते फंसाया जा रहा है। याचिका में यह भी कहा गया है कि एक व्यक्ति की शिकायत पर सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया और अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं।
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यह भी पढ़ें : उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) ने 1 जिला जज को किया निलंबित, उत्पीड़न से अधीनस्थ कर्मचारी ने कर लिया था विषपान…
नवीन समाचार, नैनीताल, 4 जनवरी 2024। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) ने रुद्रप्रयाग के जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनुज कुमार संगल को तत्काल प्रभाव से जांच होने तक निलंबित कर दिया है। उन पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय का रजिस्ट्रार (सतर्कता) रहते हुये अपने अधीन कार्यरत चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का उत्पीड़न करने का आरोप है। आरोप है कि इस उत्पीड़न से त्रस्त होकर कर्मचारी ने ठीक एक वर्ष पहले 3 जनवरी 2023 को विषपान कर लिया था। निलंबन की अवधि में वह जिला एवं सत्र न्यायालय चमोली में संबंद्ध रहेंगे।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर रजिस्ट्रार जनरल आशीष नैथानी की ओर से निलंबन आदेश जारी हुआ है। आदेश में कहा गया है कि अनुज कुमार संगल के खिलाफ कुछ आरोपों पर अनुशासनात्मक जांच पर विचार किया जा रहा है। उनके खिलाफ उत्तराखंड सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम 2003 के नियम 7 के तहत नियमित जांच शुरू की जाएगी इसलिए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है।
अनुज संगल पर आरोप है कि रजिस्ट्रार (सतर्कता) के रूप में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में तैनाती के दौरान उन्होंने अपने आवास पर तैनात एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हरीश अधिकारी को नियमित रूप से डांट-फटकार कर सुबह आठ से रात 10 बजे तक और उससे भी अधिक समय तक ड्यूटी करने को लेकर परेशान किया गया। संघल पर आरोप है कि उन्होंने अनुशासन समिति को अपने 18 नवंबर 2023 को दिये गये जवाब में कर्मचारी के कार्य समय और कार्य की प्रकृति के संबंध में गलत तथ्य बताकर अनुशासनात्मक प्राधिकारी को गुमराह करने का प्रयास किया।
साथ ही शिकायतकर्ता के अर्जित अवकाश की मंजूरी की प्रक्रिया में देरी करके अपने अधिकार का दुरुपयोग किया गया। परिणामस्वरूप उसका वेतन समय पर नहीं निकाला जा सका। इस प्रताड़ना के कारण पीड़ित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने तीन जनवरी 2023 को उनके आवास के सामने जहर खाया था। किंतु आरोपित न्यायिक अधिकारी के द्वारा अनुचित प्रभाव का उपयोग करके चतुर्थ श्रेणी कर्मी द्वारा जहर खाने के पूरे मामले को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश से छिपाने का प्रयास भी किया गया।
उच्च न्यायालय की ओर से कहा गया है कि किसी भी अधीनस्थ को परेशान करना और सेवा से हटाने की धमकी देना एक न्यायिक अधिकारी के लिए अमानवीय आचरण और अशोभनीय है और उत्तराखंड सरकारी सेवक आचरण नियमावली, 2002 के नियम-3(1) और 3(2) के तहत कदाचार है। किसी कर्मचारी की छुट्टी स्वीकृत करने की प्रक्रिया में जानबूझ कर देरी करना, उसका वेतन रोकना और गलत व्यवहार करके अधीनस्थ को जहर खाने जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर करना भी एक अमानवीय व्यवहार है।
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यह भी पढ़ें : हाईकोर्ट (High Court News) के आदेशों पर वैध घोषित हुआ छात्र संघ चुनाव प्रत्याशी का नामांकन, बिना चुनाव लड़े जीतना भी तय…
नवीन समाचार, रामनगर, 6 नवंबर 2023। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) ने रामनगर में पीएनजी पीजी कॉलेज के छात्र संघ चुनाव में सांस्कृतिक सचिव के पद पर मोहित कुमार का नामांकन खारिज किये जाने के आदेश को प्रथम दृष्टया गलत ठहराते हुए कॉलेज प्रशासन को दो घंटे में सोमवार को सायं पांच बजे तक फिर से मोहित कुमार के नामांकन की जांच कर कोर्ट को सूचित करने का आदेश दिया।
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(High Court News) इसके बाद कॉलेज प्रशासन ने मोहित के नामांकन को वैध घोषित कर दिया है। उल्लेखनीय है कि इस पद के लिए मोहित कुमार के अतिरिक्त अन्य कोई प्रत्याशी नहीं है। इसलिये मोहित का सांस्कृतिक सचिव के पद पर निर्विरोध निर्वाचन भी तय हो गया है।
(High Court News) इस मामले में याची मोहित कुमार के अधिवक्ता दुष्यन्त मैनाली ने न्यायालय को बताया कि लिंगदोह कमेटी के नियमों के अनुसार प्रत्याशी सभी अर्हताएं रखता है। नामांकन खारिज करने का आदेश पर निर्वाचन अधिकारी के साथ प्रधानाचार्य ने भी हस्ताक्षर किये हैं, जबकि लिंगदोह कमेटी और छात्र संघ चुनाव के संविधान के अनुसार प्रधानाचार्य शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के अपीलीय अधिकारी हैं और वह स्वयं नामांकन खारिज नहीं कर सकते।
(High Court News) यह भी बताया कि नामाँकन इस आधार पर खारिज किया गया था कि याची के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रतिभाग करने के प्रमाण पत्र नहीं लगाये गये हैं। जबकि संगीत की डिग्री सहित सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दस्तावेज दिखाने के बाद ही उसके नामांकन फार्म को इस पद हेतु स्वीकार किया गया। साथ ही प्रतिवेदन के साथ उसके द्वारा समस्त प्रमाणपत्रों की छाया प्रति दी गयी थी।
(High Court News) न्यायालय के आदेश के बाद आनन-फानन में कॉलेज प्रशासन द्वारा शाम चार बजे आपात बैठक कर मोहित कुमार के नामांकन की फिर से जांच की गई और नामांकन वैध घोषित किया गया और उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) को सूचना दी गयी। इस पर न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ ने याचिका निस्तारित कर दी।
यह भी पढ़ें : High Court News : उत्तराखंड उच्च न्यायालय से 7 लाख के गबन के आरोपित उत्तराखंड के बहुचर्चित अधिकारी को मिली करीब 8 माह बाद जमानत
नवीन समाचार, नैनीताल, 30 अक्टूबर 2023 (High Court News)। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने टिहरी के पूर्व जिला समाज कल्याण अधिकारी तथा उत्तराखंड के समाज कल्याण विभाग के निलंबित सहायक निदेशक कांति राम जोशी को करीब 8 माह बाद जमानत दे दी है। अलबत्ता जोशी से सरकारी धन का दुरुपयोग की गई 7 लाख की धनराशि को जमा करने के आदेश भी दिए हैं।
जोशी पर विभाग में वित्तीय अनियमितता के साथ सरकारी धन का गबन और टिहरी में छात्रवृत्ति में गड़बड़ी के आरोप हैं। जिसके चलते वह फरवरी 2023 से जेल में बंद हैं।
सोमवार को न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की एकलपीठ ने जोशी की जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की जिसमें उन्होंने कहा था कि उन पर लगे आरोप गलत हैं और जांच में आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है। जबकि सरकार की ओर से कहा गया कि आरोपित के खिलाफ गंभीर आरोप हैं और जांच में आरोप सही पाये गये हैं। उसके बाद ही मामला दर्ज किया गया है।
शासन ने आरोपित से गबन की राशि वसूलने के निर्देश दिये थे जिस पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। आरोपित की ओर से दुरूपयोग की सात लाख की धनराशि को जमा करने की अंडरटेकिंग के बाद न्यायालय ने जमानत प्रार्थना पत्र स्वीकार कर लिया। अदालत ने एक सप्ताह के अदंर धनराशि को जमा करने को कहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 से 2013 के बीच उस धनराशि का गबन का आरोप लगाया गया है।
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यह भी पढ़ें : High Court News : हाई कोर्ट (High Court News) से अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में कार्यरत तृतीय संवर्ग के मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों को बड़ी राहत, सरकार को झटका…
नवीन समाचार, नैनीताल, 14 सितंबर 2023 (High Court News)। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में कार्यरत तृतीय संवर्ग के मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए इस संबंध में पूर्व में दिये गये एकलपीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए सरकार की विशेष अपील को खारिज कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि एकलपीठ ने अशासकीय विद्यालयों में कार्यरत मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों की ओर से नारायण दत्त पांडे व अन्य द्वारा दायर याचिका पर कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय देते हुए कर्मचारियों को एक जनवरी 2013 से यह लाभ अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में कार्यरत तृतीय संवर्ग के मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों को ग्रेड वेतन का लाभ 20 अक्टूबर 2016 की जगह राजकीय विद्यालयों में कार्यरत मिनिस्ट्रीयल कर्मचारियों की तरह एक जनवरी 2013 से देने के निर्देश दिए थे।
एकलपीठ के इस आदेश के खिलाफ सरकार ने उच्च न्यायालय (High Court News) में विशेष अपील दायर कर चुनौती दी थी। खंडपीठ ने सरकार की इस विशेष अपील को खारिज करते हुए एकलपीठ के आदेश को सही माना है।
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यह भी पढ़ें : High Court News : सड़कों के किनारे अतिक्रमण पर उच्च न्यायालय से अतिक्रमणकारियों को राहत !
नवीन समाचार, नैनीताल, 5 सितंबर 2023 (High Court News)। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने सड़क किनारे के अतिक्रमणों को ध्वस्त करने पर आपत्ति जताने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को अतिक्रमणकारियों का पक्ष सुनने के बाद ही अगला कदम उठाने के निर्देश दिये हैं।
इसे उच्च न्यायालय (High Court News) की ओर से अतिक्रमणकारियों को राहत बताया जा रहा है, लेकिन देखने वाली बात होगी कि सुनवाई में कितने अतिक्रमणकारी अपने पक्ष से सरकार को संतुष्ट कर कार्रवाई से राहत पा सकते हैं।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) में मंगलवार को मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने कहा कि सरकार सभी लोगों की बातें सुन रही है और उसके बाद ही कार्यवाही कर रही है।
यह भी कहा कि बिना अतिक्रमणकारियों की पूरी बात सुने किसी भी तरह का ध्वस्तीकरण नहीं किया जायेगा। कहा कि सभी जिलाधिकारियों और डीएफओ ने अपने जवाब उच्च न्यायालय में दाखिल कर दिए हैं।
उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय (High Court News) की मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ नेे एक पत्र पर स्वतः संज्ञान लेकर इसे जनहित याचिका के रूप में मानते हुए प्रदेश के जिलाधिकारियों और डीएफओ से सड़क किनारे किये गये निर्माणों को अवैध मानते हुए ध्वस्त करने के आदेश दिए थे।
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यह भी पढ़ें : अंकिता हत्याकांड में हुई सुनवाई, न्यायालय, याचिकाकर्ता, सरकार और अंकिता के माता-पिता के पक्ष आये सामने
नवीन समाचार, नैनीताल, 11 नवंबर 2022। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय (High Court News) की वरिष्ठ न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा की एकलपीठ में शुक्रवार को प्रदेश के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड की जांच सीबीआई से कराने को लेकर अधिवक्ता आशुतोष नेगी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई हुई की।
इस दौरान एकलपीठ ने अंकिता के माता-पिता को मामले में पक्षकार बनाने के साथ उनसे से पूछा कि वह क्यों एसआईटीकी जांच पर संदेह कर रहे हैं इस पर प्रति शपथ पत्र के जरिये अपना पक्ष रखें। मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर को होगी। यह भी पढ़ें : विधायक पर भारी पड़ने जा रहा है राज्य स्थापना दिवस पर दिया बयान, मिली चुनौती…
उल्लेखनीय है कि इस मामले की पिछली सुनवाई पर एकलपीठ ने एसआईटी को 11 नवबर तक लिखित रूप से यह बताने को कहा था कि रिजॉर्ट में जिस स्थान पर बुलडोजर चलाया गया, वहां से कौन-कौन से सबूत एकत्र किए गए।
(High Court News) जबकि सुनवाई के दौरान एसआईटी ने अपना जवाब दाखिल कर बताया कि बुलडोजर से ध्वस्तीकरण से पहले फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र कर लिए गए थे। यह भी पढ़ें : ट्रक की टक्कर से नैनीताल निवासी एक स्कूटी सवार की मौत, दूसरा गंभीर
कोर्ट ने जांच अधिकारी से पूछा कि फोरेंसिक जांच में क्या साक्ष्य मिले, इस पर जांच अधिकारी ने बताया कि कमरे को ध्वस्त करने से पहले वहां की पूरी फोटोग्राफी कराई गई है। मृतका के कमरे से एक बैग के अलावा कुछ नहीं मिला है।
(High Court News) सरकार की ओर से यह भी बताया कि याचिकाकर्ता की ओर से क्राउड फंडिंग यानी आम लोगों से चंदा एकत्र किया जा रहा है और याचिकाकर्ता पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। यह भी पढ़ें : दुर्घटना पर कड़ी कार्रवाई : 30 यात्रियों से भरी बस पलटी, पुलिस ने चालक को गिरफ्तार कर उसका लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई भी शुरू की….
इसके अलावा सुनवाई के दौरान मृतका के माता-पिता ने अपनी बेटी को न्याय दिलाने व दोषियों को फांसी की सजा दिए जाने को लेकर याचिका में अपना प्रार्थना पत्र दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि एसआइटी इस मामले की जांच में लापरवाही कर रही है, इसलिए इस मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए। सरकार इस मामले में शुरुआत से ही किसी वीआईपी को बचाना चाह रही है।
सबूत मिटाने के लिए रिसॉर्ट से लगी फैक्ट्री को भी जला दिया गया जबकि वहां पर कई सबूत मिल सकते थे। स्थानीय लोगो के अनुसार फैक्ट्री में खून के धब्बे देखे गए थे। सरकार ने किसी को बचाने के लिए वहां के जिलाधिकारी का तबादला भी कर दिया।
(High Court News) याचिकाकर्ता का कहना है कि उन पर इस मामले को वापस लेने का दवाब डाला जा रहा है और क्राउड फंडिंग का आरोप भी लगाया जा रहा है। यह भी पढ़ें : नैनीताल के तीन पत्रकारों को मिलेगा ‘लेक सिटी पत्रकार सम्मान’
वहीं याचिकाकर्ता आशुतोष नेगी की ओर से कहा गया कि पुलिस व एसआइटी इस मामले के महत्वपूर्ण सबूतों को छुपा रहे हैं। एसआईटी ने अब तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है। मृतका का शव बरामद होने की शाम को ही उसका कमरा तोड़ दिया गया। पुलिस ने बिना महिला चिकित्सक की उपस्थिति में उसका पोस्टमार्टम कराया, जो सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के विरुद्ध है।
(High Court News) यह भी आरोप लगाया कि जिस दिन अंकिता की हत्या हुई थी उस दिन छः बजे पुलकित उसके कमरे में मौजूद था। वह रो रही थी। मृतका के साथ दुराचार हुआ है, जिसे पुलिस नहीं मान रही है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : अंकिता हत्याकांड में एसआईटी की जांच व रिजॉर्ट तोड़े जाने पर हाईकोर्ट में याचिका, फिर से सीबीआई जांच की मांग पर एक और याचिका दायर…
नवीन समाचार, नैनीताल, 20 अक्तूबर 2022। उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड मामले में एक बार फिर उच्च न्यायालय (High Court News) से सीबीआई जांच की मांग की गई है। उच्च न्यायालय (High Court News) की वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा की एकलपीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए एसआईटी से केस डायरी के साथ स्टेट्स रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई के लिए तीन नवंबर की तिथि नियत कर दी है। यह भी पढ़ें : नवविवाहिता बहु से 65 वर्षीय ससुर ने किया दुष्कर्म….
मामले में पौड़ी गढ़वाल के आशुतोष नेगी ने याचिका दायर कर कहा है कि अंकिता हत्याकांड के बाद यमकेश्वर की विधायक रेनू बिष्ट के निर्देश पर वनंतरा रिसोर्ट में बुलडोजर चलवाकर मामले से संबंधित महत्वपूर्ण सबूत नष्ट कर दिए। यहां तक कि अंकिता के कमरे से चादर तक गायब कर दी गई।
(High Court News) लिहाजा, याचिका में पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की गई है। मामले में सुनवाई करते हुए एसआईटी को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : जिला चिकित्सालय का एक गेट खुलवाने को लगानी पड़ी हाईकोर्ट में गुहार, फिर भी हीलाहवाली
नवीन समाचार, नैनीताल, 4 नवंबर 2022। जनपद मुख्यालय स्थित बीडी पांडे जिला चिकित्सालय के एक गेट को कोरोना काल में बंद किया गया था। इसे खुलवाने के लिए स्थानीय लोगों ने कई अधिकारियों से गुहार लगाई। इसके बावजूद गेट नहीं खुलवाया जा सका। इसके बाद गेट खुलवाने के लिए उच्च न्यायालय (High Court News) की शरण लेनी पड़ी।
अब उच्च न्यायालय (High Court News) ने इस मामले में जनता को राहत देते हुए 24 घंटे गेट खुलवाने के निर्देश दिए हैं। अलबत्ता बताया गया है कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद दिन में तो गेट खोल दिया गया, लेकिन बाद में बंद कर दिया गया। यह भी पढ़ें : चिंताजनक : 46 वर्षीय शिक्षक कक्षा में पढ़ाते-पढ़ाते गिर पड़े, हुई हृदयाघात से मौत….
नगर के समाजसेवी अशोक कुमार साह की ओर से इस मामले में उच्च न्यायालय (High Court News) में जनहित याचिका दायर कर कहा गया कि बीड़ी पांडे जिला चिकित्सालय प्रबंधन द्वारा पिछले लंबे समय से अस्पताल के पश्चमी गेट को बंद कर दिया है। इसकी वजह से मरीजों, उनके तीमारदारों व दिव्यांगों तथा बुजुर्गों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
(High Court News) इस कारण लोग तीक्ष्ण चढ़ाई वाले गेट का प्रयोग करने को मजबूर हैं, जो बेहद खतरनाक है। इस गेट से चिकित्सालय के लिए खड़ी चढ़ाई होने के कारण कई बार हादसे भी हो चुके हैं। यह भी पढ़ें : 24 घंटे से पहले हल्द्वानी के कारोबारी पर गोली चलाने वालों के साथ पुलिस की मुठभेड़, एक बदमाश को गोली लगी
लिहाजा अस्पताल के मुख्य व पारंपरिक पश्चमी गेट को खुलवाया जाये। इस याचिका पर शुक्रवार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) की खंडपीठ ने पश्चिमी गेट को खोलने के निर्देश जारी करते हुए राज्य सरकार से आगामी 10 नवम्बर को आदेश के पालन की रिपोर्ट तलब की है।
(High Court News) इधर बताया गया है कि आदेश के बाद दिन में तो गेट खोल दिया गया, लेकिन अपराह्न तीन बजे के आसपास बंद कर दिया गया। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : कुंडा कांड को लेकर उच्च न्यायालय (High Court News) में दायर हुई याचिका, सीबीआई जांच की मांग…
नवीन समाचार, नैनीताल, 19 अक्तूबर 2022। राज्य के बहुचर्चित कुंडा कांड को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) में एक याचिका दायर की गई है। इस कारण में अकारण यूपी पुलिस की गोली का शिकार होकर जान गंवाने वाली मृतका गुरजीत कौर भुल्लर के पति, जसपुर के ज्येष्ठ उप प्रमुख गुरताज सिंह भुल्लर की ओर से दायर इस याचिका में पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने और याचिका के निस्तारित होने तक कुमाऊं परिक्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक और ऊधमसिंह नगर जनपद के एसएसपी की निगरानी में जांच किए जाने की मांग की गई है।
उल्लेखनीय है कि इस मामले को लेकर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की न केवल पुलिस बल्कि प्रशासनिक मशीनरी भी आमने-सामने आ चुकी है। इस मामले में गत दिवस उत्तराखंड अपर मुख्य सचिव गृह राधा रतूड़ी ने बयान दिया कि यूपी पुलिस फर्जी खुलासे करती है। किसी भी मासूम को उठाकर जेल भेज देती है।
(High Court News) इससे अपराध कम नहीं होत, बल्कि अपराधी बढ़ते हैं। एक निर्दोष व्यक्ति को सजा देंगे तो 99 और अपराधी पैदा होंगे। अपराध की सही विवेचना होनी चाहिए और सही लोगों को सजा होनी चाहिए। यह भी पढ़ें : शिक्षिका को भारी पड़ा सातवी कक्षा के छात्र को टोकना, छात्र ने नहीं, जिन्होंने मारा शिक्षिका को थप्पड़, हुए गिरफ्तार……
रतूड़ी के इस बयान पर यूपी प्रदेश पुलिस ने कड़ी आपत्ति जताई है। अपर पुलिस महानिदेशक कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार ने रतूड़ी के बयान को गैरजिम्मेदाराना बताते हुए उनसे सवाल किया था कि क्या उनकी नजर में न्यायालय से सजा पाने वाले मुख्तार अंसारी, विजय मिश्रा या खनन माफिया और एक लाख का वांछित जफर और ऊधमसिंह नगर का वांछित ज्येष्ठ ब्लाक प्रमुख निर्दोष लगते हैं। यह भी पढ़ें : लड़की को अकेली देख झपटा युवक, मोबाइल लेकर हुआ फरार, सीसीटीवी में कैद हुई घटना…
दूसरी ओर यूपी पुलिस का दावा है कि मुठभेड़ में पकड़े गए जफर ने पुलिस पूछताछ में बताया है कि वह घटना की रात जसपुर के ज्येष्ठ उप प्रमुख गुरताज सिंह भुल्लर के मकान की दूसरी मंजिल पहुंच गया था। पुलिस कर्मियों ने ऊपर जाने की कोशिश की तो महिलाएं सामने आ गई थीं। इसके बाद धक्का-मुक्की शुरू हो गई। वहां गोलियां चलीं तो वह वहां से भाग कर दूसरी जगह छिप गया था।
(High Court News) यानी यूपी पुलिस कह रही है कि घटना के दिन 1 लाख का ईनामी खनन माफिया इस मामले के याचिकाकर्ता गुरताज सिंह भुल्लर के घर में ही छिपा था। साथ ही वह गुरताज सिंह भुल्लर को भी अपराधी मानती है। भुल्लर के याचिका दायर करने से भी लगता है कि वह भी यूपी पुलिस के रवैये से डरा हुआ है कि उसे ही मामले में फंसाया जा सकता है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप में 12 वर्ष की सजा पाए जेल में बंद आरोपित आरोपों से बरी…
नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जुलाई 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) की न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी व न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप में 12 साल के कारावास व 50 हजार के अर्थदंड से दंडित जेल में बंद आरोपित को दुराचार के आरोपों से बरी कर दिया है।
(High Court News) इस मामले में पीठ ने विशेष न्यायाधीश पॉक्सो-अपर सत्र न्यायाधीश ऊधमसिंह नगर के आदेश को निरस्त कर दिया है। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि निचली अदालत ने गवाहों व साक्ष्यों का परीक्षण किए बिना आरोपित को यह सजा सुनाई। बताया गया है कि आरोपित लंबी सजा जेल में काट चुका है।
पीठ को इस मामले की सुनवाई होने पर पता चला कि पुलिस ने विवेचना के समय लड़की के नाबालिग होने संबंधित कोई प्रमाण न्यायालय में नहीं दिया और न ही लड़की के धारा 164 के बयान दर्ज कराए। न्यायमित्र ने तथ्यों के साथ कोर्ट को बताया कि लड़की बालिग थी और दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे। दोनों ने आर्य समाज मंदिर में विवाह भी किया था।
मामले के अनुसार 31 अगस्त 2013 को रुद्रपुर में एक होटल में काम करने वाला सूरज पाल ट्रांजिट कैंप की एक लड़की को भगा ले गया था। 18 सितंबर को लड़की के पिता ने ट्रांजिट कैंप रुद्रपुर में आरोपित के खिलाफ अपनी बेटी को भगा ले जाने व दुराचार करने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था। 29 अक्तूबर 2013 को पुलिस ने आरोपित सूरजपाल को गिरफ्तार कर उसके कब्जे से लड़की को बरामद कर नारी निकेतन भेज दिया गया।
इस मामले में विशेष न्यायाधीश पॉक्सो-अपर सत्र न्यायाधीश ऊधमसिंह नगर नीलम रात्रा की अदालत ने 10 अगस्त 2015 को अपने आदेश में सूरजपाल को दुराचार व नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में 12 साल के कारावास व 50 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई थी।
(High Court News) जेल में बंद सूरजपाल की पैरवी के लिए उसके परिजन नहीं आए। इस कारण उसने उच्च न्यायालय (High Court News) के रजिस्ट्रार जनरल को न्याय के लिए पत्र भेजा। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : उच्च न्यायालय(High Court News) से चोरगलिया में मां की गला काटकर नृशंस हत्या के मामले में फांसी की सजा उम्र कैद में बदली
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 25 मई 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति नारायण सिंह धानिक की खंडपीठ ने नैनीताल जनपद के चोरगलिया में एक बेटे द्वारा नवरात्र के दौरान अपनी मां की गले में कई वार कर की गई नृशंसा हत्या की सजा को फांसी से उम्र कैद में बदल दिया है।
उल्लेखनीय है कि 7 अक्तूबर 2019 को चोरगलिया के उदयपुर गांव में हुई इस दुर्दांत घटना में एक 35 वर्षीय कलयुगी, मानसिक रूप से बीमार युवक डिगर मेवाड़ी ने घास काटने जंगल जा रही अपनी माँ पर धारदार हथियार से वार कर उसकी गर्दन को धड़ से अलग कर दिया था। साथ ही उसकी मां को बचाने गए एक अन्य व्यक्ति पर भी जानलेवा हमला किया था।
इस मामले में 22 नवंबर 2021 को नैनीताल जनपद की प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश प्रीतू शर्मा की अदालत ने जिला शासकीय अधिवक्ता-फौजदारी सुशील कुमार शर्मा द्वारा की गई पैरवी के फलस्वरूप आरोपित डिगर सिंह पर मां की हत्या का दोष साबित किया था और 24 मई को उसे फांसी की सजा सुनाई थी। सजा को आरोपित की ओर से उच्च न्यायालय (High Court News) में चुनौती दी थी।
अब उच्च न्यायालय (High Court News) की खंडपीठ ने गत 19 मई को हत्यारे डिगर सिंह को हत्या के जुर्म में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत उम्र कैद एवं 25 हजार रुपए के जुर्माने तथा जुर्माना न चुकाने पर एक वर्ष के अतिरिक्त कारावास, तथा जानलेवा हमला करने के जुर्म में धारा 307 के तहत 10 वर्ष के सश्रम कारावास एवं 10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। जुर्माना न चुकाने पर उसे छह माह का अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : उच्च न्यायालय (High Court News) की खंडपीठ ने निरस्त की अपनी मां, बड़े भाई व गर्भवती भाभी की तलवार से काटकर निर्मम हत्या करने वाले की फासी की सजा
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 मई 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने अपनी मां, बड़े भाई व गर्भवती भाभी की तलवार से काटकर निर्मम हत्या करने के एक दोषी को निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा को निरस्त कर दिया है, और मामले को दोबारा सुनने के लिए निचली अदालत को लौटा दिया है।
(High Court News) खंडपीठ ने माना कि निचली अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान नहीं लिया था कि आरोपित मानसिक रूप से अस्वस्थ था। इसी आधार पर खंडपीठ ने उसकी फांसी की सजा को निरस्त कर दिया है।
मामले के अनुसार टिहरी गढ़वाल के गुमाल गांव निवासी संजय सिंह ने 13 दिसंबर 2014 को अपनी मां, बड़े भाई व गर्भवती भाभी की तलवार से काटकर हत्या कर दी थी। आरोपित के पिता राम सिंह पंवार ने पुलिस में इसकी रिपोर्ट दर्ज कराई थी। दोषी संजय सिंह को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रमा पांडेय की अदालत ने अगस्त 2021 में मृत्युदंड की सजा सुनाई थी, जिसे आरोपित की ओर से उच्च न्यायालय (High Court News) में चुनौती दी गई।
उच्च न्यायालय (High Court News) ने वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद वशिष्ठ को न्याय मित्र नियुक्त कर आरोपित की ओर से बहस के लिए नियुक्त किया था। न्याय मित्र ने कोर्ट को बताया कि मृत्यु दंड की सजा पाये आरोपित को मेडिकल बोर्ड ने मानसिक रूप से बीमार माना है, और कहा है कि वह अपने द्वारा किए जाने वाले कृत्य के परिणाम नहीं जानता है, लेकिन वह इलाज के बाद ठीक हो सकता है।
(High Court News) पर निचली अदालत ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर आरोपित को मृत्युदंड की सजा सुना दी। न्याय मित्र द्वारा प्रस्तुत तथ्य व मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आरोपित को दी गई मृत्युदंड की सजा को निरस्त कर उसका मानसिक परीक्षण कराने के निर्देश भी दिए हैं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : (High Court News) राष्ट्रीय लोक अदालत में 47.89 करोड के 8151 वादों का निस्तारण
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 12 मार्च 2022। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली के निर्देशों पर शनिवार को प्रदेश भर के न्यायालयों में राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया। इस दौरान राज्य भर में कुल 119 खंडपीठों के माध्यम से 16595 नियत वादों में से 47 करोड़ 89 लाख 18 हजा 996 रुपए समझौता धनराशि के 8151 वादों का निस्तारण किया गया।
उत्तराखण्ड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण नैनीताल के सदस्य सचिव-जिला जज आरके खुल्बे ने बताया कि इस दौरान उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय (High Court News) में कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा के निर्देशन में सर्वप्रथम 2 वादों का त्वरित निस्तारण किया गया।
(High Court News) इसके अतिरिक्त उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) में राष्ट्रीय लोक अदालत हेतु गठित न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठों ने दो करोड़ 95 लाख 5 हजाार 153 रुपए की समझौता राशि के 47 वादों का निस्तारण किया।
इसके अलावा अल्मोड़ा जिले में 23,53,722 के 62, बागेश्वर में 14,71,588 के 87, चमोली में 1,43,15,567 के 32, चंपावत में 28,92,406 के 49, देहरादून में 6,47,37,163 के 272, हरिद्वार में 2,78,18,010 के 1172, नैनीताल में 1,99,24,057 के 527, पौड़ी गढ़वाल में 1,13,67,740 के 296, पिथौरागढ़ में 1,20,06,358 के 92,
रुद्रप्रयाग में 29,88,300 के 43, टिहरी में 1,44,37,712 के 156, ऊधमसिंह नगर में 6,31,86,649 के 945, उत्तरकाशी में 25,12,864 के 58, उपभोक्ता न्यायालय में 92,50,463 के 145, श्रम न्यायालय में 16,25,567 के 3 एवं अभी न्यायालयों में नहीं गये 19,85,25,677 के 1739 मामले निस्तारित किए गए। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : उच्च न्यायालय (High Court News) पहुंचा पांच वर्षीय मासूम से दुष्कर्म के आरोपित भाई को फांसी की सजा का मामला
डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 28 सितंबर 2021। पिथौरागढ़ जनपद की फास्ट ट्रेक कोर्ट द्वारा गत 24 सितंबर को पांच वर्षीय बालिका के साथ छह माह तक दुष्कर्म करने वाले उसके 32 वर्षीय सौतेले बड़े भाई को फांसी की सजा सुनाने का मामला उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) में पहुंच गया है। मामले में आदेश के खिलाफ दोषी ने उच्च न्यायालय (High Court News) में याचिका दायर की है।
इस पर मंगलवार को उच्च न्यायालय (High Court News) की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए पिथौरागढ़ की फास्ट ट्रेक कोर्ट से मामले के रिकॉर्ड तलब किए हैं। साथ ही फास्ट ट्रेक कोर्ट ने भी अपने आदेश की पुष्टि करने के लिए अपना आदेश उच्च न्यायलय को भेजा है।
मामले के अनुसार नेपाली मूल का 32 वर्षीय जनक बहादुर अपने दो नाबालिग बच्चों और पांच वर्ष की सौतेली बहन के साथ जाजरदेवल थाना क्षेत्र के अंतर्गत रहता था, और अपनी सौतेली बहन को मारता-पीटता था। इस मामले की कुछ लोगों ने जाजरदेवल थाने में सूचना दी। पुलिस ने आरोपित को गिरफ्तार किया और दो नाबालिग बच्चों और पीड़िता को अपने संरक्षण में लिया। 4 अप्रैल 2021 को बच्ची को एक संस्था के संरक्षण में दिया गया।
(High Court News) बाद में पीड़ित बच्ची ने संस्था के सदस्यों को अपने साथ हुई घटना के बारे में बताया कि उसके माता, पिता का निधन हो गया है। वह अपने सौतेले भाई जनक बहादुर के साथ रहती है। जनक बहादुर विगत छह माह से उसके साथ दुष्कर्म कर रहा है। चिकित्सकीय परीक्षण किया गया तो बालिका के शरीर में कई गंभीर घाव भी मिले।
मामले में पुलिस ने आरोपी के खिलाफ पॉक्सो, भादवि धारा 376, 323 सहित अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया। मामले की सुनवाई विशेष न्यायालय पॉक्सो में चली। अभियोजन पक्ष की तरफ से शासकीय अधिवक्ता प्रमोद पंत और विशेष लोक अभियोजन प्रेम सिंह भंडारी ने पैरवी करते हुए संबंधित गवाहों को पेश किया।
(High Court News) दोनों पक्षों और गवाहों को सुनते हुए विशेष न्यायाधीश पॉक्सो डा. ज्ञानेंद्र कुमार शर्मा ने जनक बहादुर को दोषी करार देते हुए इसे अति घृणित कृत्य बताते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई। उन्होंने कहा कि सौतेला भाई जिस तरह के कृत्य कर रहा था वह क्षम्य नहीं है। न्यायालय ने पीड़िता के भरण पोषण व भविष्य के लिए सात लाख रुपए की धनराशि प्रतिकर के रूप में देने के आदेश भी दिए। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : अनूठा मामला (High Court News) : नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म करने के सजायाफ्ता से बच्चा पैदा करने के लिए उत्तराखंड HC से मांगी जमानत
-पीठ ने मामले के सभी पक्षों पर विचार कर व्यापक सुनवाई करने का लिया निर्णय
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 5 अगस्त 2021। नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में सजायाफ्ता कैदी की पत्नी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) में अपने पति से बच्चा पैदा करने के लिए अल्पकालीन (शॉट टर्म) जमानत मांगी है। उत्तराखंड हाई कोर्ट में आया यह अपनी तरह का यह अनूठा व पहला मामला है।
(High Court News) इसे देखते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने महिला के प्रार्थना को अभी स्वीकार तो नहीं किया है, लेकिन इसे कैदियों से संबंधित जनहित याचिका से जोड़ते हुए इस संवैधानिक प्रश्न पर व्यापक सुनवाई का निर्णय लिया है।
न्यायालय ने इस मामले में सरकारी अधिवक्ता जेएस विर्क को न्याय मित्र नियुक्त किया है और उन्हें जिम्मेदारी दी है कि वह अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड जैसे देशों में इन परिस्थितियों में पालन की जा रही परंपरा व नीतियों की जानकारी जुटाकर न्यायालय को सूचित करने को कहा। साथ ही सरकार से भी राय बताने को कहा है। पीठ ने इस मामले की व्यापक सुनवाई का निर्णय लेते हुए अगली सुनवाई 31 अगस्त के लिए नियत कर दी है।
मामले के अनुसार आनंद बाग, हल्द्वानी निवासी सचिन एक बच्ची से ट्रक में हुए सामूहिक दुष्कर्म के मामले में आरोप सिद्ध होने के बाद पिछले छह साल से जेल में बंद है। मुखानी थाने में उसके खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज हुआ था। इस पर 2016 में उसे निचली अदालत ने 20 साल की सजा सुनाई है। निचली अदालत के साथ ही उच्च न्यायालय (High Court News) भी दो बार उसकी जमानत अर्जी को ठुकरा चुका है।
अब उसकी पत्नी का कहना है कि उसकी उम्र 30 वर्ष है। जब उसका पति जेल गया, तब उसकी शादी को तीन माह ही हुए थे। याचिकाकर्ता की ओर अधिवक्ता हिमांशु सिंह व सैफाली सिंह ने बहस करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद-21 के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को जीवन जीने के साथ वंश बढ़ाने के लिए बच्चा पैदा करने का अधिकार है। याचिकाकर्ता की पत्नी की आयु वर्तमान में 30 साल है, वह बच्चा पैदा करने की क्षमता रखती है।
इस पर न्यायालय ने टिप्पणी की कि जेल में बंद व्यक्ति के अधिकारों के अलावा, पत्नी के अधिकार भी हैं। लिहाजा इस स्थिति में पैदा होने वाले बच्चे के अधिकारों की जानकारी जुटाई जानी भी जरूरी है। क्योंकि बच्चा बाद में पिता के सानिध्य मेें रहने का अधिकार मांगेगा, जबकि वह कैद में है। इसके अलावा यह भी अहम सवाल है कि क्या ऐसे बच्चे को संसार में लाने की अनुमति दी जा सकती है ? ऐसे बच्चे का पालन पोषण भी मुश्किल होगा, क्योंकि मां अकेली है और वह यह कैसे करेगी।
पिता के बिना रहने से बच्चे पर पडने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव पर भी ध्यान देना होगा। अगर कैदी को संतान पैदा करने की अनुमति दी जाती है तो क्या राज्य को उस बच्चे की देखभाल के लिए बाध्य किया जा सकता है। अदालत के सामने यह सवाल भी हैं कि क्या संगीन अपराध में बंद कैदी को इस आधार पर जमानत दी जा सकती है ? और यदि जमानत मंजूर होने के बाद उसका बच्चा हो गया तो उसकी जिम्मेदारी कौन संभालेगा, क्या सरकार उसकी परवरिश की जिम्मेदारी उठाएगी। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
यह भी पढ़ें : बड़ा समाचार : राज्य खेल संघ में बाहरी राज्यों के लोग कर दिए नियुक्त, अब हाईकोर्ट हुआ गंभीर, यूपी के शिक्षक सहित 12 पक्षकारों को नोटिस
नवीन समाचार, नैनीताल, 12 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) की न्यायमुर्ति मनोज तिवाड़ी की एकलपीठ ने राज्य खेल संघ में बाहरी राज्यों के लोगों को पदों पर बैठाने के मामले में उच्च न्यायालय (High Court News) ने गम्भीर रुख अपनाया है। न्यायालय ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के सरकारी अध्यापक विरेश यादव को उत्तराखंड खेल संघ में पद देने पर नोटिस जारी किया है।
(High Court News) एकलपीठ ने केंद्र, राज्य एवं यूपी सरकार समेत उत्तराखंड ओलंपिक संघ, शिक्षक विरेश यादव व शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश समेत 12 पक्षकारों को नोटिस जारी किया है। न्यायालय ने पूछा है कि कैसे और किन नियमों के तहत राज्य के खेल संघ में पद पर बैठाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि गोपेश्वर के कीर्ति विजय ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर कहा है कि यूपी के विरेश यादव सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और उत्तराखण्ड के खो-खो व तलवारबाजी संघ में पद पर बने हैं। याचिका में कहा गया है कि भारतीय ओलंपिक संघ का नियम है कि राज्य ओलंपिक संघ में राज्य के ही लोग पदों पर हो सकते हैं, तभी वह खेलों को बढावा दे सकते हैं।
साथ ही याचिका में कहा गया है कि नियमों के तहत एक व्यक्ति को एक ही खेल में सदस्य बनाया जा सकता है जबकि विरेश यादव अन्य राज्य के होने के बाद भी दो खेल संघों में पदों पर बैठा दिया, जो इंडियन ओलंपिक संघ के नियमों का भी उलंघन किया गया है। याचिका में मांग की गई है कि उत्तराखण्ड में खेल संघ में राज्य से बाहर के लोगों को कमान ना दी जाए और जुगाड़ से इन पदों पर बैठने पर रोक लगाई जाए।
यह भी पढ़ें : उच्च न्यायालय (High Court News) की सर्किट बेंच नैनीताल से देहरादून ले जाने की याचिका खारिज
नवीन समाचार, नैनीताल, 18 जून 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय (High Court News) की सर्किट बेंच को नैनीताल से देहरादून के आसपास ले जाने की संभावनाओं को खारिज कर दिया है। इस संबंध में दायर एक जनहित याचिका को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली पीठ ने खारिज कर दिया है।
(High Court News) पीठ ने इस मामले में कहा कि पीठ इस मामले में न्यायिक आदेश नहीं दे सकते हैं। अगर याचिकाकर्ता चाहे तो वो प्रशासनिक स्तर पर अपना प्रत्यावेदन दे सकते हैं। उस पर अगर विचार होने योग्य हो तो यह आदेश उसमें आड़े नहीं आएगा।
उल्लेखनीय है कि हरिद्वार जिला बार एसोसिएशन के अधिवक्ता ममदेश शर्मा ने जनहित याचिका दाखिल कर कहा था कि उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 26-टी में प्रावधान है कि राज्य के मुख्य न्यायाधीश चाहंे तो राज्यपाल की सहमति से उच्च न्यायालय की सर्किट बेंच को राज्य के किसी भी स्थान पर ले जा सकते हैं।
(High Court News) याचिका में यह भी कहा गया था कि 70 प्रतिशत मामले देहरादून व हरिद्वार जिले के हैं। यहां के लोगों को यूपी के रास्ते से होकर नैनीताल आना पड़ता है। इससे राज्य सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है और सुनवाई पर भी इसका असर पड़ता है। इसलिये एक सर्किट बेंच देहरादून के आस पास होनी चाहिए।
यह भी पढ़ें : उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) में ग्रीष्मावकाश रद्द
नवीन समाचार, नैनीताल, 27 मई 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) में 1 से 5 जून तक होने वाला ग्रीष्मकालीन अवकाश रद्द कर दिये गये हैं। यह छुट्टियां अक्टूबर, नवम्बर व दिसंबर में समायोजित की जाएंगी।
(High Court News) उच्च न्यायालय (High Court News) के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल द्वारा जारी सूचना में बताया गया है कि जून के पहले सप्ताह में उच्च न्यायालय (High Court News) में कार्य दिवस होंगे। जबकि 30 अक्टूबर, 21 नवंबर तथा 5, 19 व 31 दिसंबर के कार्य दिवसों को छुट्टियां होंगी।
यह भी पढ़ें : खुलेंगी जिला अदालतें, होगी महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई
नवीन समाचार, नैनीताल, 26 मई 2020। हाईकोर्ट ने जिला अदालतों को कई दिशा निर्देशों के साथ खोलने के आदेश जिला जजों को दिए हैं। राज्य की जिला अदालतें करीब दो माह से लॉकडाउन में बंद थीं। हालांकि बहुत जरूरी मुकदमों की सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग से हो रही थी।
हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि निचली अदालतों को खोलने से पहले जिला जज सभी अदालती कक्षों सहित सम्पूर्ण कोर्ट परिसर को सैनिटाइज कराएंगे। इस दौरान जरूरी मुकदमों की ही सुनवाई होगी। वादकारी व अधिवक्ता जमानत प्रार्थना पत्र व अन्य वाद को कोर्ट परिसर के बाहर रखे बाक्स में डालेंगे। कोर्ट परिसर में नोटरी, स्टाम्प विक्रेता व टाइपिस्ट सीमित संख्या में आएंगे। अधिसूचना में करीब तीन दर्जन दिशा निर्देश दिए गए हैं।
यह भी पढ़ें : हाईकोर्ट के बाहर गये कार्मिकों को 14 दिन रहना होगा होम क्वारन्टीन, हल्द्वानी-भवाली-भीमताल वालों के लिए आया स्पष्टीकरण
नवीन समाचार, नैनीताल, 3 मई 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट के जो अधिकारी व कर्मचारी 25 मार्च के बाद नैनीताल जनपद के हल्द्वानी, भवाली व भीमताल से इतर बाहर चले गए थे, उन कार्मिकों को अभी 14 दिन तक होम क्वारन्टीन रहना होगा। उन्हें चार मई से हाईकोर्ट परिसर में आने की अनुमति नहीं होगी।
(High Court News) हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल द्वारा जारी सूचना में कहा गया है कि नैनीताल जनपद के हल्द्वानी, भवाली व भीमताल से इतर बाहर चले गए अधिकारियों व कर्मचारियों को नियमों के अनुसार क्वारन्टाइन में जाना होगा। ऐसे कार्मिकों को चार मई से ड्यूटी हेतु हाईकोर्ट परिसर आने की अनुमति नहीं होगी। ऐसे कार्मिक अगले 14 दिन घर में रहेंगे और उन्हें इस आशय की जानकारी का फार्म भरकर भी ऑफिस में जमा करना होगा।
(High Court News) उल्लेखनीय है कि पहले नैनीताल शहर से आठ किमी दूर गये लोगों को 14 दिन के क्वारन्टाइन में जाने की बात कही गई थी। बाद में नये स्पष्टीकरण से स्पष्ट किया गया है कि हल्द्वानी, भवाली व भीमताल गये लोगों को फॉर्म ए भरना होगा और नित्य प्रवेश द्वार पर स्क्रीनिंग से गुजरना होगा। उन्हें क्वारन्टाइन में नहीं जाना होगा।
यह भी पढ़ें : जिला न्यायालयों में ऑनलाइन सुनवाई की दिक्कतों पर हाईकोर्ट ने जारी किये नये दिशा-निर्देश
नवीन समाचार, नैनीताल, 21 अप्रैल 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) ने अपने जिला अदालतों में अति आवश्यकीय मामलों की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से करने की अपनी गत 12 अप्रैल को अधिसूचना के तहत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई में हो रही परेशानी से निजात के लिये कुछ और दिशा निर्देश जारी किये हैं।
(High Court News) इस संदर्भ में जिलों से हाईकोर्ट को सूचित किया गया कि इंटरनेट कनेक्टिविटी ठीक न होने के कारण विडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई में परेशानी हो रही है। इस संदर्भ में हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल के हस्ताक्षरों से आज जारी अधिसूचना में कहा गया है कि जिला न्यायाधीष व न्यायिक अधिकारी को इंटरनेट सेवा प्रदाता कम्पनी सही सेवा नहीं दे पा रही है तो वह दूसरी कम्पनी का कनेक्शन लें जिसमें हॉट् स्पॉट सुविधा हो।
(High Court News) वहीं अधिवक्ताओं को वकालतनामा पेश करने में आ रही दिक्कतों को देखते हुये उन्हें वकालतनामा लॉक डाउन खुलने के बाद जमा करने की छूट दी गई है। लेकिन ऐसे अधिवक्ताओं को अपना रजिस्ट्रेशन नम्बर व आई डी आदि का प्रमाण ईमेल से देना होगा। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि कोर्ट में रिमांड के अलावा अन्य कोई सुनवाई नहीं होगी।
यह भी पढ़ें : हाई कोर्ट से वीडियो कॉन्फ्रेंस से सुनवाई के लिए नये दिशा-निर्देश जारी
-जमानत प्रार्थना पत्रों लंबित प्रार्थना पत्रों की भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो सकेगी सुनवाई
नवीन समाचार, नैनीताल, 18 अप्रैल 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट में अति आवश्यक मुकदमों के साथ ही अब जमानत प्रार्थना पत्रों की भी विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई होगी। इनमें लंबित जमानत प्रार्थना पत्र भी शामिल होंगे।
(High Court News) उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट द्वारा विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये होने वाली सुनवाई को लेकर 11 अप्रैल को जारी सूचना के क्रम में आज हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल ने एक और अधिसूचना जारी कर बताया है कि अब ताजा आवश्यक मामलों के साथ ही जमानत प्रार्थना पत्र एवं लंबित प्रार्थना पत्रों पर भी सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से होगी ।
यह भी पढ़ें : अधिवक्ताओं के पास स्मार्टफोन नहीं, वीडियो कांफ्रेंसिंग भी नहीं आती, इसलिए…
-उत्तराखंड बार काउंसिल अध्यक्ष ने उच्च न्यायालय (High Court News) से की जिला न्यायालयों में वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई पर पुर्नविचार की मांग
नवीन समाचार, नैनीताल, 14 अप्रैल 2020। उत्तराखंड बार कौंसिल अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह पुंडीर ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश को पत्र भेजकर जिला न्यायालयों में कल (आज) से आवश्यक वादों की सुनवाई विडियो कॉन्फ्रेंसिंग से करने के फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है।
उन्होंने कहा है कि जिला न्यायालय के अधिकांश अधिवक्ताओं के पास विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के संसाधन व तकनीकी जानकारी का अभाव है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) ने 12 अप्रैल को एक अधिसूचना जारी कर 15 अप्रैल से जिला न्यायालयों में आवश्यक वादों की सुनवाई विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये किये जाने के आदेश दिए थे।
(High Court News) इस संदर्भ में कई जिला बार एसोसिएशनों व कई अन्य अधिवक्ताओं ने उत्तराखंड बार कौंसिल को पत्र लिखकर विडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होने वाली सुनवाई से उत्पन्न दिक्कतों से अवगत कराया है। बार कौंसिल अध्यक्ष सुरेंद्र पुंडीर ने विभिन्न जिलों से आये पत्रों का हवाला देते हुए मुख्य न्यायधीश को पत्र भेजा है।
(High Court News) जिसमें उन्होंने कहा है कि जिलों में विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिये इंटरनेट की पर्याप्त स्पीड नहीं है और कई अधिवक्ताओं के पास स्मार्ट फोन व इंटरनेट की सुविधा नहीं है। जिनके पास यह सुविधा है भी, उन्हें विडियो कॉन्फ्रेंसिंग करना नहीं आता। उन्हें विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के संदर्भ में प्रशिक्षण की जरूरत है।
(High Court News) इसके अलावा केंद्र सरकार ने 3 मई तक लॉक डाउन की अवधि बढ़ा दी है। जिससे कोर्ट के कार्मिकों को भी ऑफिस आने में दिक्कतें होंगी। उन्होंने पत्र में लिखा है कि कोर्ट प्रक्रिया पूर्ण पारदर्शिता में होती है। इसलिए विडियो कॉन्फ्रेंसिंग की रिकार्डिंग प्रतिबंधित करने पर भी पुनर्विचार की जरूरत है।
यह भी पढ़ें : बड़ा समाचार : उत्तराखंड की सभी जिला न्यायालयों में भी 15 से वीडियो कांफ्रेंसिंग से होगी आवश्यक मामलों की सुनवाई
नवीन समाचार, नैनीताल, 12 अप्रैल 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय (High Court News) की तरह राज्य के जिला न्यायालयों में भी 15 अप्रैल से महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये होगी। उच्च न्यायालय (High Court News) के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल ने रविवार को इस आशय की अधिसूचना जारी की है।
जारी की गई अधिसूचना में बताया गया है कि सामाजिक दूरी के सिद्धांत को बनाये रखने के लिए 15 अप्रैल से जिला न्यायालयों में रिमांड, जमानत, रिलीज ऑफ प्रोपर्टी, सीसीपी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज करने, पुलिस जांच के प्रार्थना पत्र, चार्जशीट दाखिल करने, आपराधिक शिकायतों आदि से सम्बंधित नए मुकदमों जिनमें तत्काल राहत की जरूरत होती है, की सुनवाई 15 अप्रैल से विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये होगी।
(High Court News) इसके लिये अधिवक्ताओं को जिला न्यायाधीश के ई-मेल पर वाद से संबंधित प्रार्थना पत्र व जरूरी जानकारियां देनी होगी। जिला न्यायाधीश मामले को आवश्यक सुनवाई की श्रेणी में मानेंगे तो वे संबंधित अधिवक्ता द्वारा दिये गए ई-मेल या अन्य संचार माध्यम से मामले की सुनवाई की तिथि व समय से अवगत कराएंगे।
(High Court News) इस सुनवाई के लिये अधिवक्ता के मोबाइल, लैपटॉप या कम्प्यूटर में इंटरनेट की सुविधा होनी जरूरी है। अधिवक्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिये अपने घर या दफ्तर में रहना होगा और उन्हें कोर्ट प्रोटोकॉल का भी पालन करना होगा।
नवीन समाचार, नैनीताल, 11 अप्रैल 2020। कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट में 15 अप्रैल से आवश्यक मामलों की सुनवाई विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये होगी। शनिवार को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल द्वारा जारी अधिसूचना में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होने वाली सुनवाई के लिये विस्तृत दिशा निर्देश दिए गए हैं, जिसे हाईकोर्ट की बेवसाइड में देखा जा सकता है।
इस अधिसूचना में बताया गया है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में केवल आवश्यक मामलों की ही सुनवाई होगी। ऐसे मामले को अधिवक्ता द्वारा पीडीएफ फाइल के जरिये हाईकोर्ट की ई-मेल में भेजा जाएगा। हिाईकोर्ट के रजिस्ट्रार न्यायिक इसकी जांच करेंगे और यदि रजिस्ट्रार न्यायिक मामले को आवश्यक मामले की श्रेणी में पाएंगे तो तभी मामलो को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेजेंगे और उसके बाद मुकदमा सुनवाई के लिये दर्ज होगा।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई के लिये अधिवक्ता के पास हार्डवेयरध्सॉफ्टवेयर की सुविधा होनी आवश्यक है। जो अपने ऑफिस या घर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में जुड़ेंगे। इसके लिये अधिवक्ताओं को अपने मोबाइल,कम्प्यूटर या लैपटॉप में ‘जितसी मीट’ या वीडियो मोबाइल डेस्कटॉप सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर इनस्टॉल करना होगा। सुनवाई की तिथि व समय कोर्ट द्वारा ई-मेल व अन्य संचार माध्यमों से दी जाएगी।
सुनवाई के समय अधिवक्ता को कोर्ट की गरिमा व प्रोटोकॉल का ध्यान रखना होगा चाहे वह मुकदमे में बहस अपने घर से ही क्यों नही कर रहा हो। मुकदमे की सुनवाई के दौरान सभी पक्षो और कोर्ट प्रक्रिया की रिकॉर्डिंग प्रतिबंधित रहेगी। कोर्ट के आदेश की प्रति भी ई-मेल से ही अधिवक्ताओं को भेजी जाएगी। जिन अधिवक्ताओं के पास वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा अपने घर पर है तो वे अपने घर से ही बहस कर सकते है जिनके पास ये सुविधा नही है उनके लिए यह सुविधा कोर्ट में उपलब्ध है।
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-निचली अदालतों में 14 अप्रैल तक अवकाश बढ़ा
नवीन समाचार, नैनीताल, 2 अप्रैल 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाघीश कोरोना की महामारी से लड़ने के लिए पीएम केयर यानी प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजन एसिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन फंड में 25-25 हजार रुपए की धनराशि देंगे।
(High Court News) साथ ही उच्च न्यायालय एवं समस्त अधीनस्थ न्यायालयों, शासन के न्याय विभाग से संबंधित सचिवों एवं विभिन्न ट्रिब्यूनलों व लोक अदालतों आदि के राजपत्रित अधिकारियों मूल एवं डीए सहित तीन दिन का वेतन, गैर राजपत्रित अधिकारी एवं कर्मचारी दो दिन का वेतन तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी एवं वाहन चालक आदि एक दिन का वेतन पीएम केयर में स्वैच्छिक रूप से देंगे।
(High Court News) सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों की ओर से यह योगदान अप्रैल माह में देय मार्च माह के वेतन से काटा जाएगा। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल हीरा सिंह बोनाल ने अपेक्षा की है कि यदि कोई न्यायिक अधिकारी अथवा कर्मचारी स्वैच्छिक तौर पर पीएम केयर में यह योगदान नहीं देना चाहते हैं तो उन्हें चार अप्रैल की सुबह 10 बजे तक उच्च न्यायालय के जॉइंट रजिस्ट्रार एमसी जोशी को उनके मोबाइल नंबर 9411167403 पर संदेश भेजना होगा।
इसके साथ ही रजिस्ट्रार जनरल श्री बोनाल ने एक नोटिफिकेशन जारी कर देश में लागू 21 दिन के लॉक डाउन के दृष्टिगत अधीनस्थ न्यायालयों में 4 अप्रैल तक घोषित हुए अवकाश को 14 अप्रैल तक आगे बढ़ा दिया है। उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय में पहले ही 14 अप्रैल तक अवकाश घोषित किया जा चुका है।
यह भी पढ़ें : देहरादून के डीएम को 23 मार्च को व्यक्तिगत रूप से हाईकोर्ट में पेश होने का आदेश
नवीन समाचार, नैनीताल, 18 मार्च 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने बुधवार को देहरादून के जिलाधिकारी को 23 मार्च को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए। इसके साथ ही यह बताने का निर्देश दिया है कि देहरादून में कोई बूचड़खाना संचालित नहीं होने पर लाइव स्टॉक का ट्रक लोड क्यों हो रहा है।
बुधवार को देहरादून के जिलाधिकारी की ओर से हाईकोर्ट में दून वैली में चल रहे अवैध स्लाटर हाउस मामले में रिपोर्ट पेश की गई। कोर्ट ने रिपोर्ट पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए जिलाधिकारी को 23 मार्च को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं। जिलाधिकारी ने अपने शपथपत्र में कहा है कि देहरादून के भंडारी बाग में नगर निगम द्वारा संचालित स्लाटर हाउस को भी अग्रिम आदशों तक बंद कर दिया गया है।
(High Court News) सुनवाई के दौरान अधिवक्ता डॉ कार्तिकेय हरि गुप्ता ने बताया कि कोई भी स्थान जहां दस या उससे अधिक पशुओं का वध किया जा रहा है, वह स्थान नियमानुसार वधशाला है। डीएम केवल सरकारी बूचड़खाने बंद करके हाईकोर्ट के आदेश के पालन से खुद को निर्दोष साबित नहीं कर सकते हैं। सभी निजी दुकानें जो दस पशुओं या अधिक का वध कर रही हैं, वे भी बूचड़खाने हैं उन्हें बंद किया जाना चाहिए।
यह भी पढ़ें : हाईकोर्ट ने डीएम देहरादून से जिंदा जानवरों के आयात पर दो दिन में रिपोर्ट मांगी
नवीन समाचार, नैनीताल, 16 मार्च 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने दून वैली में जिंदा जानवरों के आयात पर रोक लगाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जिलाधिकारी देहरादून से दो दिन के भीतर रिपोर्ट पेश करने को कहा है। कोर्ट ने यह भी पूछा है कि देहरादून में कितने अवैध स्लाटर हाउस चल रहे हैं और मीट कहां से आ रहा है।
(High Court News) यह याचिका देहरादून निवासी वरुण सोबती ने दायर की है। इसमें कहा गया है कि 29 सितम्बर 2018 को हाईकोर्ट ने राज्य में अवैध रूप से चल रहे स्लाटर हाउस बंद करने व खुले में पशु वध पर रोक लगाने के निर्देश सरकार को दिए थे। केंद्र सरकार ने दून वैली को रेड जोन में रखा है। देहरादून में कोई भी स्लाटर हाउस नहीं है।
(High Court News) बावजूद इसके यहां जिंदा जानवरों का आयात किया जा रहा है। इस पर रोक लगाई जाए। दलील में कहा कि गया है चीन में कोरोना वायरस भी पशुओं की मंडी से फैला है। ऐसे में जिंदा जानवरों को लाने व उनके वध पर रोक लगाने का आदेश पारित किया जाए। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बताया कि देहरादून घाटी के लिए 1989 व 2020 में अलग-अलग नोटिफिकेशन जारी किए हैं।
यह भी पढ़ें : 2 सप्ताह के भीतर दून वैली में सभी स्लाटर हाउसों की जांच कर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने के आदेश
नवीन समाचार, नैनीताल, 2 मार्च 2020। (High Court News) उत्तराखंड हाईकोर्ट की मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने दून वैली में जिंदा जानवरों के आयात पर रोक लगाने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए देहरादून के जिलाधिकारी सहित राज्य सरकार से 2 सप्ताह के भीतर दून वैली में सभी स्लाटर हाउसों की जांच कर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है। मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट ने 16 मार्च की तिथि नियत की है।
मामले के अनुसार देहरादून निवासी वरुण सोबती ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा कि 29 सितम्बर 2018 को हाईकोर्ट ने राज्य में अवैध रूप से चल रहे स्लाटर हाउस बंद करने व खुले में पशु वध करने पर रोक लगाने के निर्देश सरकार को दिए थे। लेकिन देहरादून में इस आदेश का पालन नहीं हो रहा है। यहां अवैध रूप से स्लाटर हाउस भी चल रहे हैं और खुले में पशुओं को मारा भी जा रहा है। लिहाजा दून वैली में मांस की बिक्री पर पूर्णतः रोक लगाई जाए।
यह भी पढ़ें : छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपियों को एक माह के भीतर पैसा जमा करने के निर्देश, गिरफ्तारी पर रोक
नवीन समाचार, नैनीताल, 27 फरवरी 2020। हाईकोर्ट ने छात्रवृत्ति घोटाले मामले में आरोपी याचिकाकर्ताओं को एक माह के भीतर पैसा जमा करने के निर्देश देते हुए उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
मामले के अनुसार चंद्र प्रकाश चेयरमैन चमन देवी पैरामेडिकल प्राईवेट आईटीआई सदहोली हरिया मलहीपुर रोड सहारनपुर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी।
(High Court News) याचिका में कहा कि हरिद्वार निरीक्षक कमल कुमार लुंठी ने 3 फरवरी 2020 को एफआइआर दर्ज कर कहा था कि यूपी आनलाईन वर्ष 2014-2015 में अनुसूचित जाति के 84 छात्रों को धनराशि 726600 रूपये सात लाख छब्बीस हजार छह सौ रूपये संबंधित छात्रों के बैंक खातों में प्रदान की गई। सभी छात्रों को बैक खातों में एक समान मोबाईल नंबर एवं बैंक खाते एक ही बैंक में खोले गए है।
जिससे स्पष्ट है कि छात्रों के बैैंक खातों का संचालन उनसे भिन्न व्यक्ति द्वारा किया गया। याचिकाकर्ता की ओर से उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की मांग की थी। इसी प्रकार दूसरी याचिका प्रशांत वर्मा मैनेजर शिवालिक इंस्टीटयूट आफ टेक्नॉलाजी मुस्तकम सहारनपुर ने भी दायर की थी। पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को एक माह के भीतर पैसा जमा करने के निर्देश देते हुए उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।
यह भी पढ़ें : चारधाम देव स्थानम एक्ट पर उत्तराखंड की भाजपा सरकार की मुश्किलें बढनी तय, केंद्र, राज्य व बोर्ड से जवाब तलब
नवीन समाचार, नैनीताल, 25 फरवरी 2020। चारधाम देव स्थानम एक्ट पर उत्तराखंड की भाजपा सरकार की मुश्किलें बढनी तय हैं। मंगलवार को हाईकोर्ट ने पूरे मामले पर सुनवाई कर केंद्र सरकार, राज्य सरकार व सीईओ चारधाम देव स्थानम बोर्ड़ को नोटिस जारी किया है।
(High Court News) कोर्ट ने कहा है कि तीन हफ्तों के भीतर सभी पक्षकार अपना जवाब दाखिल करें। सुनवाई के दौरान आज याचिकाकर्ता भाजपा सांसद पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने कोर्ट के सामने कहा कि कल रात ही इसका सीईओ नियुक्त किया गया है लिहाजा जब तक इस पूरे मामले की सुनवाई जारी है तब तक किसी तरह की कार्रवाई पर रोक लगाई जाये। कोर्ट ने सरकार से इस मामले पर भी जवाब दाखिल करने को कहा है।
(High Court News) उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने चारधाम देवस्थानम एक्ट पास कर 51 मन्दिरों को इसमें शामिल किया, जिसका पंड़ा पुरोहितों ने भारी विरोध किया था। अब हाईकोर्ट में सरकार के एक्ट को बीजेपी के राज्यसभा सांसद ने ही चुनौती देते हुए कहा है कि राज्य सरकार का एक्ट असंवैधानिक है और सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश का उल्लंघन भी करता है।
(High Court News) याचिका में कहा गया है कि सरकार को मन्दिर चलाने का कोई अधिकार नहीं है मन्दिर को भक्त या फिर उनके लोग ही चला सकते हैं लिहाजा सरकार के एक्ट को निरस्त किया जाए। आज सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के महाधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि स्वामी ने राजनीति से प्रेरित होकर प्रचार के लिये ये जनहित याचिका दाखिल की है जिस पर कोर्ट में सरकार की किरकिरी भी हुई।
(High Court News) जिला-मंडल मुख्यालय में मित्र पुलिस का ऐसा चेहरा सामने आया है, जो उनके नाम को साकार नहीं करता है। बेशक पुलिस कर्मी अपनी कार्य परिस्थितियों में काफी तनावों व दबावों में होते हैं, लेकिन उनसे उम्मीद की जाती है कि वे आम लोगो के साथ पूरी सादगी और संवेदनशीलता से पेश आएं। उनके लिए कठिन परिस्थितियों में भी शांत रहने और परेशान लोगों की समस्या सुनने की उम्मीद की जाती है।
(High Court News) लेकिन मुख्यालय में सोमवार अपराह्न एक ऐसा मामला प्रकाश मंे आया है, जहां मल्लीताल कोतवाली पुलिस के एक सिपाही व एक दरोगा ने चेकिंग के दौरान एक महिला की समस्या नहीं सुनी। महिला वाहन के कुछ कागजात घर पर भूल आई थी और उसके पास पैंसे भी नहीं थे। उधर पुलिस कर्मी उसका चालान करने पर उतारू थे। महिला ने कुमाऊं रेंज के डीआईजी जगतराम जोशी से बात की।
(High Court News) डीआईजी जोशी ने संबंधित पुलिस कर्मी से बात कराने को कहा तो महिला ने अपना फोन सिपाही को थमा दिया। सिपाही ने फोन कान पर लगा कर दूसरी ओर से डीआईजी की आवाज को भी गंभीरता से लिए बगैर डीआईजी से भी अभद्रता कर डाली। डीआईजी जोशी ने बताया, उनसे सिपाही ने कहा, ‘कौन डीआईजी ? कहां के डीआईजी ?’ साथ ही और भी अभद्रता करने लगा।
(High Court News) डीआईजी जोशी ने बताया, उन्हें लगा कि संभवतया महिला ने किसी और को फोन मिला दिया है। क्योंकि जैसी बातें सिपाही कर रहा था, वैसी बातें एक पुलिस कर्मी कर ही नहीं सकता। इस पर उन्होंने सिपाही से दरोगा से बात करने को कहा तो दरोगा भी डीआईजी से अभद्रता करने लगा।
(High Court News) डीआईजी जोशी ने बताया, उन्होंने अपने पूरे जीवन व सेवा में किसी पुलिस कर्मी से इस तरह की भाषा व व्यवहार नहीं देखा था। इसलिए दोनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की संस्तुति की गई है। सिपाही को निलंबित करने एवं दरोगा को लाइन हाजिर किया जा रहा है।
यह भी पढ़ें : हाईकोर्ट ने प्रधानाचार्य से पूछा-फीस वृद्धि पर क्यों न अवमानना की कार्रवाई की जाए
नवीन समाचार, नैनीताल, 20 फरवरी 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ हिमालया आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज देहरादून के प्रधानाचार्य अनिल कुमार झा को 2 मार्च को कोर्ट में पेश होने के आदेश दिए हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि क्यों न प्रधानाचार्य के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाय।
मामले के अनुसार उत्तराखंड सरकार ने 14 अक्टूबर 2015 को शासनादेश जारी कर आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों की फीस 80 हजार से बढ़ाकर 2.15 लाख कर दी थी। जिसे आयुर्वेदिक कॉलेजों से बीएएमएस कर रहे छात्रों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
(High Court News) हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 9 जुलाई 2018 को इस शासनादेश को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के खिलाफ बताते हुए उसे निरस्त कर दिया और मेडिकल कॉलेजों से छात्रों से ली गई बढ़ी हुई फीस वापस करने के आदेश दिए थे।
(High Court News) एकलपीठ के इस आदेश को आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों की एसोसिएशन ने खंडपीठ में चुनौती दी, जिसे खंडपीठ ने खारिज करते हुए एकलपीठ के आदेश को सही ठहराया। किंतु लंबे समय बाद भी आयुर्वेदिक कॉलेजों ने यह फीस वापस नहीं की। इसके खिलाफ कॉलेज के छात्र मनीष कुमार व अन्य ने अवमानना याचिका दायर की।
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कहा-कॉलेज संबंधित धनराशि को सरकार के वित्त विभाग में जमा कराएं
नवीन समाचार, नैनीताल, 19 फरवरी 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाला मामले में सम्बंधित कॉलेजों के प्रबंधकों को आदेश दिए कि वे कॉलेज से संबंधित धनराशि को सरकार के वित्त विभाग में जमा कराएं।
(High Court News) कोर्ट ने वित्त विभाग को निर्देश दिए हैं कि वह इसके लिए अलग से खाता खोलें। कोर्ट ने कहा कि जमा की गई धनराशि का निस्तारण संबंधित वाद के भविष्य में होने वाले आदेशों पर निर्भर होगा। न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
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-हाईकोर्ट ने बिजली विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों को मुफ्त बिजली देने पर सरकार को भेजा नोटिस
नवीन समाचार, नैनीताल, 7 नवंबर 2019। उत्तराखंड उच्च न्यायाल की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने ऊर्जा निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों को सस्ती बिजली देने व आम आदमी के लिए बिजली की दरें बढ़ाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए स्वतः संज्ञान लेकर सरकार को नोटिस जारी किया है।
तथा इस प्रवृत्ति पर सख्त नाराजगी जताते हुए ऊर्जा निगम को विस्तृत हलफनामा प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिए हैं। उल्लेखनीय है कि आरटीआइ क्लब देहरादून ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि ऊर्जा निगमों के अधिकारियों से एक माह का बिजली बिल मात्र 4-5 सौ व कर्मचारियों का मात्र सौ रुपये लिया जा रहा है। वर्तमान कर्मचारियों के अलावा अनेक सेवानिवृत्त कर्मचारियों व उनके आश्रितों को भी मुफ्त बिजली दी गई है।
(High Court News) वहीं ऊर्जा निगमों के अनेक अधिकारियों के आवासों में मीटर ही नहीं लगे हैं, और अन्य के मीटर खराब स्थिति में हैं। उदाहरण के लिए जीएम सीके टम्टा का 25 माह का बिल चार लाख 20 हजार आया था, लेकिन उनसे करीब 400 रुपए का बिल लिया गया। उनके बिजली के मीटर की रीडिंग 2005 से 2016 तक नहीं ली गई थी।
(High Court News) लिहाजा उनके द्वारा प्रयोग की गई बिजली का सीधा भार जनता की जेब पर पड़ रहा है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश घोषित है लेकिन यहां हिमाचल प्रदेश से महंगी बिजली है। जबकि हिमाचल में बिजली उत्पादन कम होता है।