-दुनिया में 80 हजार पौधे खाने योग्य, परंतु केवल 150 प्रजातियों का ही हो रहा अधिक उपयोग
नवीन समाचार, नैनीताल, 11 अगस्त 2023 (Jaiv Vividhta)। कुमाऊं विश्वविद्यालय मानव संसाधन केंद्र में आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में अमेरिका के पियुरो रीको विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा विजिटिंग साइंटिस्ट डॉ. आलोक अरुण ने ‘जीनोम बायोलॉजी ऑफ अंडर यूटिलाइज्ड क्रॉप्स फॉर फूड एंड न्यूट्रीशन सिक्योरिटी’ पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि दुनिया में 80 हजार पौधे खाने योग्य हैं जबकि 150 प्रजातियां ही अधिक मात्रा में उगाई जाती हैं।
भविष्य की भोजन की आवश्यकताओं को देखते हुए अन्य प्रजातियों का प्रयोग भी करना होगा। बताया कि विदेशों में लोग ‘अल्टरनेट फूड सिक्यूरिटी’ के तहत अन्य पौधों को भी भोजन में शामिल कर रहे हैं। इसके लिए कुछ स्थानीय फसलों को विश्व में प्रचारित करना जरूरी है। इसी कड़ी में उन्होंने उत्तराखंड की सब्जी लिंगुड़ा के गुणों को रेखांकित करते हुए इसे भोजन में शामिल करने की वकालत की। यह भी पढ़ें : http://deepskyblue-swallow-958027.hostingersite.com/pahad-ke-utpad/उत्तराखंड की सब्जी लिंगुड़ा सहित वैकल्पिक भोजन योग्य पौधों को विश्व में प्रचारित करने पर बल…
इस दौरान शोध एवं विकास सेल द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में कुलपति प्रो.दीवान सिंह रावत ने कहा कि शोध ही समस्याओं का निदान करने का सबसे कारगर उपाय है। इसलिए शोधार्थी बेहतर शोध के तरफ बढ़ें तथा अपना हौसला कभी न छोड़ें। कार्यक्रम का संचालन शोध निदेशक प्रो.ललित तिवारी ने किया। ‘नवीन समाचार’ के माध्यम से स्वतंत्रता दिवस पर अपने प्रियजनों को शुभकामना संदेश दें मात्र 500 रुपए में… संपर्क करें 8077566792, 9412037779 पर, 25 शब्दों में अपना संदेश भेजें saharanavinjoshi@gmail.com पर…
कार्यक्रम में प्रो.आशीष तिवारी, प्रो.दिव्या उपाध्याय, डॉ.रितेश साह, डॉ.महेंद्र राणा सहित बड़ी संख्या में शोध छात्र तथा गीतांजलि, दिशा, वसुंधरा, कुंजिका, स्वाति, खुशबू सहित छात्र छात्राएं उपस्थित रहे तथा उन्होंने डॉ.आलोक से कई सवाल भी पूछे।
जैव विविधता (Jaiv Vividhta) को संरक्षित कर सतत विकास में योगदान देना मानव की जिम्मेदारी: तिवारी
नैनीताल। कुमाऊं विश्वविद्यालय के शोध निदेशक प्रो. ललित तिवारी ने कहा मानव भी जैव विविधता (Jaiv Vividhta) का हिस्सा है। उसकी जिम्मेदारी है कि वह जैव विविधता को संरक्षित करे तथा सतत विकास में योगदान दे। प्रो. तिवारी ने यह विचार कुमाऊं विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केंद्र में पर्यावरण विषय पर आयोजित पुनश्चर्या कार्यक्रम में उपस्थित देश के 60 प्रतिभागी प्राध्यापकों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
प्रो.तिवारी ने इस अवसर पर औषधीय पौधों पर व्याख्यान देते हुए कहा कि अब तक लगभग 12 से 18 प्रतिशत पौधों में औषधीय गुण ज्ञात हुए है। उन्होंने बताया कि पूरे विश्व में पाये जाने वाले औषधीय पौधों में से 44 फीसद भारत में पाये जाते है। उन्होंने अस्टवर्ग पौधो की जानकारी देते हुए कहा कि इनमें से 5 प्रजातियां दुर्लभ श्रेणी में आ गई हैं, इसलिए इनके दोहन के साथ नई पौध भी लगानी आवश्यक है।
प्रो. तिवारी ने कहा कि उत्तराखंड में औषधीय पौधों की खेती की अपार संभावना है किंतु इसके लिए नियम बनाने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि ईसबगोल, सीना, सोन पत्ती, गिलोय व अश्वगंधा आदि औषधीय पौधों की मांग बहुत अधिक है।
आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..यहां क्लिक कर हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें। यहां क्लिक कर यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से, हमारे टेलीग्राम पेज से और यहां क्लिक कर हमारे फेसबुक ग्रुप में जुड़ें। हमारे माध्यम से अमेजॉन पर सर्वाधिक छूटों के साथ खरीददारी करने के लिए यहां क्लिक करें।