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नैनीताल के निकटवर्ती पहाड़ी गांव-देवीधूरा तक चढ़ आया हाथियों का झुंड

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-पूर्व में भी सूखाताल एवं नैनी झील के पास हाथियों के पहुंचने हैं प्रमाण

रविवार को देवीधूरा गांव से वापस लौटता हाथियों का झंुड।

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 23 जनवरी, 2021। जी हां, आश्चर्य होगा। किंतु यह सच है। पर्वतीय पर्यटन नगरी नैनीताल के निकटवर्ती पर्वतीय गांव देवीधूरा में हाथियों का झुंड देखा गया है। इससे स्थानीय लोगों में हड़कंप मच गया। ग्रामीणों ने वन कर्मियों की मदद से शोर मचाकर व टिन पीटकर हाथियों के झंुड को गांव से दूर भगाया।

समुद्र सतह से करीब 1600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित देवीधूरा ग्राम निवासियों के अनुसार शनिवार रात्रि करीब 12 बजे फतेहपुर, धापला, जमीरा गांव की ओर से करीब एक दर्जन हाथियों का झुंड गांव में पहुंचा। इससे गांव में हड़कंप मच गया। रात्रि तीन बजे ग्रामीणों ने किसी तरह हाथियों के झुंड को गांव से भगाया, लेकिन सुबह करीब सात बजे यह झुंड वापस लौट आया। इस पर वनाधिकारियों को भी सूचना दी गई। इस पर वन कर्मी भी गांव में पहुंचे और हाथियों को भगाया। क्षेत्रीय वन क्षेत्राधिकारी भूपाल सिंह मेहता ने बताया कि दो बच्चे व 5 बड़े यानी सात हाथियों का झंुड देवीधूरा गांव में आया था। फिलहाल उन्हें गांव से जंगल की ओर भगा दिया गया है। अलबत्ता ग्रामीणों में अभी भी दहशत बनी हुई है। ग्रामीणों के अनुसार झुंड अभी भी गांव के आसपास ही बना हुआ है।

उल्लेखनीय है कि करीब दो वर्ष पूर्व भी मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर ज्योलीकोट के निकट चोपड़ा गांव में और इससे पूर्व 15 जनवरी 2015 को निकटवर्ती बल्दियाखान क्षेत्र में समुद्र सतह से करीब 1850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बसगांव के बुड़ भूमिया मंदिर के पास हाथियों का झुंड देखा गया था। अलबत्ता इस बार पहली बार स्थानीय लोग हाथियों के झुंड का वीडियो बनाने में भी सफल रहे हैं। ऐसे में ग्रामीणों के मन में यह सवाल भी कौंध रहा है कि हाथी पहाड़ की ओर क्यों चढ़ रहे हैं।

अलबत्ता, प्रदेश के वन्य जीव प्रतिपालक डा. पराग मधुकर धकाते के अनुसार पूर्व में नैनीताल जनपद में ही, करीब इसी ऊंचाई वाले घटगढ़ और पटवाडांगर क्षेत्र में भी हाथियों को देखा गया था, जबकि इतिहास में, अंग्रेजी दौर में, करीब 1950 मीटर की ऊंचाई पर नैनीताल की नैनी झील में पानी पीने के लिए हाथियों के आने की बात एक पुस्तक में दर्ज होने की बात कही जाती है। डा. धकाते के अनुसार हाथी अपने याददाश्त के लिए जाने जाते हैं। यदि बचपन में भी वे किसी मार्ग से गुजरे हों, तो वापस उन पारंपरिक मार्गों पर लौटते हैं। संभव है कि ये हाथी भी पहले कभी यहां आए हों। इस प्रकार वन विभाग के आला अधिकारी इसे पूर्व के संदर्भों व प्रमाणों के आधार पर इसे हाथियों का यहां पहली बार आना नहीं वरन अपने पुराने रास्तों पर वापस लौटना मान रहे हैं। यानी, कह सकते हैं कि हाथियों का झुंड नैनीताल को देखने अथवा पुरानी यादें ताजा करने की चाह में पहाड़ों पर चढ़ आया होगा। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : सांपों के बारे में भ्रम दूर किया, बताया-हर साँप नहीं होता जहरीला, उत्तराखंड में मात्र 10 प्रजातियां ही जहरीली

नवीन समाचार, नैनीताल, 19 मार्च 2021। सेन्ट्रल हिमालयन इन्वायरमेन्ट एसोसियेशन-चिया नैनीताल तथा सोसाइटी फॉर माउंटेन डेवलपमेंट एंड कंजरवेशन-एसएमडीसी नैनीताल के संयुक्त तत्वाधान में मुख्यालय स्थित चिया कार्यालय में शुक्रवार को सांपों पर एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर पिछले एक दशक से साँपों पर अध्ययन व भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून से किंग कोबरा सांप पर अपना शोध कर रहे कर रहे विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय फेलाशिप एवं सम्मान प्राप्त सर्प विशेषज्ञ जिग्नासु डोलिया ने हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाले सांपों के विषय में विस्तार से जानकारी दी, और समाज में सांपों के विषय में व्याप्त अनेक भ्रान्तियों को भी दूर किया। उन्होंने बताया कि दुनिया में पाये जाने वाले कुल सांपों में कुल 10 प्रतिशत सांप ही जहरीले एवं घातक होते हैं। उत्तराखण्ड में 35 प्रकार के साँपों की प्रजातियां पायी जाती हैं, जिसमें से 10 प्रजातियां ही जहरीली हैं। इन 10 जहरीली प्रजातियों में से भी केवल 8 प्रजातियां ही घातक हैैं।

चिया व एसएमडीसी के कार्यक्रम में सर्प विशेषज्ञ को सम्मानित करते संस्था के लोग।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे चिया के सचिव डा. आशीष तिवारी ने श्री डोलिया जी के अध्ययन की सराहना करते हुए कहा कि आज के कार्यक्रम से हम सभी लोगों का ज्ञानवर्धन हुआ है जो कि भविष्य मे हमारे लिए अवश्य लाभकारी होगा। इस दौरान श्री डोलिया और उनकी धर्मपत्नी दिव्या डोेलिया को संयुक्त रूप से सम्मानित भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन चिया के कुंदन बिष्ट ने और धन्यवाद ज्ञापन डा. श्रुति शाह ने किया। कार्यक्रम में दीपा उपाध्याय, डा. बीना फुलारा, डा. भावना कर्नाटक, डा. कृष्ण कुमार टम्टा, डा. नीता आर्या, डा. नन्दन सिंह, धीरज जोशी, ज्योत्सना टम्टा, चिया एवं एसएमडीसी के कार्मिक उपस्थित रहे।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 03 सितंबर 2020। प्राकृतिक जैव विविधता से समृद्ध उत्तराखंड के नैनीताल जनपद में विश्व में सर्वाधिक 2,170 मीटर की ऊंचाई पर सांपों का राजा कहा जाने वाला किंग कोबरा पहली बार कैमरे में रिकॉर्ड हुआ है। किंग कोबरा को नैनीताल जनपद के मुक्तेश्वर के पास देखा गया है। इससे वन विभाग के अधिकारी आह्लादित हैं। इसे राज्य एवं खासकर नैनीताल जनपद की समृद्ध जैव विविधता का परिचायक माना जा रहा है।

 

उल्लेखनीय है कि कुछ वर्षों पूर्व तक नैनीताल व पहाड़ों पर सांप दिखना बहुत बड़ी बात होती थी, किंतु इधर जनपद का ज्योलीकोट क्षेत्र किंग कोबरा के प्राकृतिक आवास स्थल के रूप में स्थापित हो चुका है। जबकि 1900 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित जिला-मंडल मुख्यालय में अक्टूबर-नवंबर 2017 में किंग कोबरा देखे जाने की तीन घटनाएं हुई थीं। जबकि उत्तराखण्ड वन्य जीव बोर्ड के सदस्य, अंतर्राष्ट्रीय छायाकार व प्रकृतिविद् पद्मश्री अनूप साह के अनुसार करीब 60 वर्ष पहले नगर के हीरा लाल साह ठुलघरिया द्वारा नगर के बारापत्थर क्षेत्र में करीब 7000 फिट यानी 2,134 मीटर की ऊंचाई पर और जून 2014 में नगर के मान परिवार ने किलबरी रोड में समुद्र तल से करीब 7500 फिट यानी 2286 मीटर की ऊंचाई पर किंग कोबरा को देखने का दावा किया था, जो कि इतनी अधिक ऊंचाई के लिहाज से श्री साह के अनुसार विश्व कीर्तिमान था। लेकिन तब इसकी पुष्टि नहीं की जा सकी थी। गौरतलब है कि पूर्व में जनपद के कालाढुंगी क्षेत्र में वन विभाग को 22 फिट लंबे किंग कोबरा के सड़े-गले अवशेष मिले थे, जो कि लंदन के चिड़ियाघर में रखे गये 18.5 फिट के विश्व रिकॉर्डधारी लंबे सांप से भी अधिक लंबा था। परंतु इसका कोई प्रमाण सुरक्षित नहीं रखा गया।

ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव या नैनीताल किंग कोबरा का प्राकृतिक आवास स्थल !
नैनीताल। नैनीताल जनपद के मुक्तेश्वर सरीखे समुद्र सतह से 2,170 मीटर की ऊंचाई पर बसे स्थान पर किंग कोबरा की उपस्थिति को कई लोग ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव भी मान रहे हैं, वहीं इस बारे में पूछे जाने पर वन संरक्षक दक्षिणी कुमाऊं वृत्त डा. पराग मधुकर धकाते का कहना है कि नैनीताल किंग कोबरा का प्राकृतिक आवास हो सकता है। संभव है कि यह हमेशा से यहां रहता हो, परंतु पहले इसके फोटो आदि लिये जाने के प्रमाण नहीं थे। अब सूचना-प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रभाव से इसकी पुष्टि होना सुखद है। इसकी यहां उपस्थिति इस क्षेत्र की अब भी समृद्ध जैव विविधता होने का प्रमाण भी है। इस आधार पर विशेषज्ञ भी स्वीकार कर रहे हैं कि क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता, मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र व आहार श्रृंखला के परिचायक किंग कोबरा का यहां मिलना इस क्षेत्र के लिये बड़ी उपलब्धि हो सकता है, और इस क्षेत्र को सर्पराज के संरक्षित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है। परीक्षण किया जाये तो किंग कोबरा की यहां उपस्थिति देश के लिये बड़ी उपलब्धि हो सकती है।
 
इसलिए महत्वपूर्ण है किंग कोबरा
नैनीताल। यह प्रश्न उठता है कि किंग कोबारा जैसे जहरीले प्राणी के बारे में इतनी चर्चा की जाए और मनुष्य इतने विषैले सांप को बचाने का प्रयास क्यों करे। इसका उत्तर बाघों के संरक्षण के लिये चल रही देश व्यापी मुहिम में समाहित है। पारिस्थितिकी तंत्र की आहार श्रृंखला में बाघ की तरह सबसे ऊपर स्थित इस जीव की पहाड़ में उपस्थिति का अर्थ है, यहां इसकी आहार श्रृंखला के अन्य जीव भी भरपूर मात्रा में मौजूद हैं। इसका मुख्य भोजन छोटे सांप हैं। वह अन्य जीव जंतुओं को खाते हुऐ क्षेत्र में पारिस्थितिकीय संतुलन बनाते हैं।

 

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कैलाश जोशी @ नवीन समाचार, ज्योलीकोट, 27 जून 2020। जनपद के ज्योलीकोट स्थित एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में एक करीब 9-10 फिट लंबा, मोटा, पूर्ण वयस्क किंग कोबरा देखे जाने से सनसनी फैल गई। लेकिन उसे प्रत्यक्ष के साथ ही चित्रों व वीडियो में देखना भी बेहद रोमांचक था। बाद में उसे पकड़ के जंगल में छोड़ दिया गया। उल्लेखनीय है कि किंग कोबरा को सांपों का राजा कहा जाता है, और इसकी मौजूदगी क्षेत्र की उत्कृष्ट जैव विविधता की परिचायक बताई जाती है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार शुक्रवार की देर शाम यह किंग कोबरा निकटवर्ती वन क्षेत्र से ज्योलीकोट के शैक्षणिक संस्थान के परिसर में घुस गया। लगभग 9-10 फिट लंबे कोबरा के घुस आने से परिसर में दहशत एवं आसपास सनसनी फैल गई। परिसर के ही एक कर्मचारी ने हिम्मत का परिचय देते हुए उसे किसी तरह पकड़ लिया। इस दौरान उसे देखकर लोग रोमांचित हो गये। बाद में उसे वन क्षेत्र में छोड़ दिया दिया। उल्लेखनीय है कि ज्योलीकोट क्षेत्र किंग कोबरा के प्राकृतिक आवास स्थल के रूप में पहचान पा चुका है। यहां 10 वर्ष पूर्व किंग कोबरा की मौजूदगी का पता चला था। यहां किंग कोबरा द्वारा प्रजनन करने एवं मादा कोबरा द्वारा एक दर्जन बच्चों को जन्म देने की घटनाएं भी प्रकाश में आ चुकी हैं। उसके बाद से आसपास के इलाकों में इनकी तादाद काफी बढ़ गयी है और आये दिन किंग कोबरा यहां देखे जाते है।

यह भी पढ़ें : पहाड़ पर पहली बार वन विभाग ने रिपोर्ट किया अजगर, पहले निगल-फिर उगल गया सांभर को..

नवीन समाचार, नैनीताल, 25 सितंबर 2019। जनपद के बेतालघाट क्षेत्र के दूरस्थ गाँव हरचनोली में बुधवार की सुबह हिरन प्रजाति के एक सांभर को निगलते हुए अजगर को देखा गया। लोगों ने शोर मचाया तो अजगर ने आधे निगले चीतल को बाहर उगल दिया, किंतु तब तक चीतल की मृत्यु हो चुकी थी। इसके बाद लोगों ने वन व राजस्व विभाग को घटना की जानकारी दी। वन विभाग के कर्मी अजगर को अपने साथ रानीबाग स्थित रेसक्यू सेंटर ले गए, जहां से उसे बाद में जंगल में छोड़ दिया जाएगा। जबकि चीतल को वहीं दफना दिया गया।

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वन संरक्षक दक्षिणी कुमाऊं डा. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि अजगर को पहली बार बेतालघाट में करीब 1100 मीटर की ऊंचाई पर रिपोर्ट किया गया है, जबकि सांभर यहां मिलते हैं। हालांकि क्षेत्रवासियों के अनुसार अजगर को यहां पहले भी देखा गया है। उल्लेखनीय है कि पहले सांभर को चीतल बताया जा रहा था। माना जा रहा है जिम कार्बेट पार्क क्षेत्र में पाया जाने वाला अजगर कोसी नदी से होते हुए क्षेत्र में पहुंच गया होगा। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष हल्द्वानी-नैनीताल रोड पर डोलमार के पास भी एक अजगर देखा गया था। प्राप्त जानकारी के अनुसार सबसे पहले हरचनोली गांव निवासी गणेश ने सुबह छोटी नहर के पास चीतल को निगलते अजगर को देखा। गणेश ने ही आवाज लगाकर ग्रामीणों को एकत्र किया और शोर मचाकर चीतल को अजगर की गिरफ्त से छुड़वाया। माना जा रहा है सांभर नहर में पानी पीने आया होगा और तभी अजगर की गिरफ्तर में आ गया होगा।

यह भी पढ़ें : नैनीताल में मिला 5 फिट लंबा खतरनाक ब्राउन पिंकेट सांप..

नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जुलाई 2019। रविवार दोपहर नगर के मल्लीताल शेरवानी कंपाउंड के पास वेभरली कॉटेज क्षेत्र में बच्चों द्वारा एक विशाल सांप देखे जाने से हड़कंप मच गया। इस पर क्षेत्रीय लोगों का जमावड़ा लग गया। कुछ लोगों ने इसकी जानकारी वन विभाग को दी। इस पर वन विभाग के सांप पकड़ने के विशेषज्ञ संविदा कर्मी निमिष दानू ने करीब 5 फिट लंबे भूरे रंग के सांप को सड़क पर रखे बड़े डस्टबिन के नीचे से पकड़ लिया। तब जाकर लोगों ने राहत की सांस ली। नगर के वन क्षेत्राािधकारी प्रमोद तिवारी ने बताया कि सांप ब्रांउन पिंकेट प्रजाति का था। यह किंग कोबरा की तरह ही फन युक्त होता है, परंतु उससे कम जहरीला होता है। बाद में उसे नारायण नगर के नीचे जंगल में छोड़ दिया।

यह भी पढ़ें : शाबास ! जंगल में बुरी तरह से घायल मिले भालू का नैनीताल जू कर्मियों ने किया रेसक्यू

नवीन समाचार, नैनीताल, 29 मई 2019। नैनीताल चिड़ियाघर की बचाव टीम के द्वारा बुधवार को कालाढुंगी रोड पर बजून चक के जंगल से एक बुरी तरह से घायल भालू को बचा कर मुख्यालय लाया गया और यहां से रानीबाग स्थित रेसक्यू सेंटर भेजा गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बुधवार सुबह बजून क्षेत्र के ग्रामीणों ने पास के जंगल में घायल भालू की चीत्कार सुनी। इससे ग्रामीण घायल भालू द्वारा हमला किये जाने की आशंका से भयभीत हो गये। ग्राम प्रधान ने नैनीताल चिड़ियाघर को इसकी सूचना दी। इस पर चिड़ियाघर के निदेशक डीएफओ बीजू लाल टीआर के निर्देशन में चिड़ियाघर एवं नैना रेंज की वन क्षेत्राधिकारी ममता चंद के नेतृत्व में चिड़ियाघर के पशु चिकित्सा अधिकारी डा. हिमांशु पांगती एवं अन्य कर्मी तथा उधर जिम कार्बेट पार्क से डा. दुश्यंत के साथ मौके पर पहुंचे एवं सड़क से दूर एक चट्टानी गुफा के पास घायल अवस्था में मिले हिंसक भालू को उसकी तथा स्वयं की सुरक्षा करते हुए बचाकर साथ ले आये। सुश्री चंद ने बताया कि यह करीब सात-आठ वर्ष की उम्र का नर भालू है। यह समय भालुओं के प्रजनन का होता है। संभवतया इसी कारण वह आपसी संघर्ष में घायल हुआ होगा।

यह भी पढ़ें : घर में घुसे 12 फिट लंबे किंग कोबरा ने दबोच दिया रेस्क्यू करने गये वन कर्मी का गला, और…

नवीन समाचार, नैनीताल, 24 मई 2019। मुख्यालय के निकट गेठिया पड़ाव में कुंदन सिंह जीना के घर के भीतर एक करीब 12 फिट सांप घुस गया था। इससे जीना के परिवार में भय व्याप्त हो गया। उन्होंने वन विभाग का इसकी सूचना दी। सूचना मिलने पर पहुंचे सांप विशेषज्ञ निमिश दानू ने करीब डेढ़ घंटे की मशक्कत के बाद सांप को बमुश्किल काबू में पाया। इस दौरान सांप ने निमिष को भी गर्दन से बुरी तरह से अपनी जकड़ में ले लिया। निमिश ने बताया कि हमेशा ही सांप मुंह पकड़े जाने पर स्वयं को छुड़ाने के लिए पकड़ने वाले को इतनी बुरी तरह से जकड़ लेते हैं कि वह उन्हें छोड़ने को मजबूर हो जाए। बहरहाल अब वे बिल्कुल ठीक हैं। पकड़ा गया सांप करीब दो से ढाई वर्ष की उम्र का सांपों का राजा कहा जाने वाला नर किंग कोबरा था। पकड़े गये सांप को कालाढुंगी के जंगल में छोड़ दिया गया। किंग कोबरा को पकड़ने में रजत कुमार व गौरी पंडित आदि ने भी उनका सहयोग किया।

सांप पकड़ने के शौक ने दिलाई नौकरी, अब तक आठ हजार से अधिक सांप पकड़ने का दावा

नैनीताल। सांप पकड़ने के विशेषज्ञ निमिश दानू ने बताया कि वे वर्ष 2012 से सांप पकड़ रहे हैं, और अब तक करीब ढाई हजार किंग कोबरा सहित 8165 सांपों को पकड़ चुके हैं। इनमें किंग कोबरा के अलावा हिमालय किट वाइपेर, बैंबो किट वाइपर, ब्राउन टिंकेट व रसल वाइपर आदि प्रजातियों के सांप भी शामिल हैं, जो नैनीताल मुख्यालय के कृष्णापुर व अन्य क्षेत्रों में आम तौर पर पाये जाते हैं। इनमें सांपों के अंडों से निकले बच्चे भी शामिल होते हैं, जिन्हें पकड़ना भी कम खतरनाक नहीं होता। उन्होंने बताया कि बचपन में मस्ती में सांप पकड़ते थे। बाद में टीवी पर डिस्कवरी चैनल देखकर उन्होंने स्वयं को सांप पकड़ने में पारंगत बनाया। उनकी सांप पकड़ने की खासियत देखकर ही तत्कालीन वन क्षेत्राधिकारी केसी सुयाल ने उन्हें वन विभाग में नौकरी दिलवा दी। इसके बाद जहां भी सांप घुसने की खबर मिलती है, उन्हें ही सांप पकड़ने के लिए बुलाया जाता है।

यह भी पढ़ें : डोलमार में एनएच पर दिखा विशालकाय अजगर, कौतूहल का केंद्र बना

नैनीताल, 12 अक्तूबर 2018। शुक्रवार को जनपद के हल्द्वानी रोड पर मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर डोलमार नाम के स्थान के पास एक विशालकाय अजहर राष्ट्रीय राजमार्ग पर देखा गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार अपराह्न करीब एक बजे करीब 12 से 14 फिट लंबे अजगर ने राष्ट्रीय राजमार्ग को एक ओर से दूसरी ओर पार किया और इसके बाद वह झाड़ियों में छुप गया। संभवतया उसने इसी दौरान किसी खरगोश जैसे छोटे जंगली जीव को अपना निवाला भी बनाया था। अजगर के इस स्थान पर देखे जाने की जानकारी मिलने पर क्षेत्रीय लोगों का कौतूहलवश जमावड़ा लग गया, और लोग झाड़ियों के बीच छुपे अजगर की फोटो लेने का प्रयास करने लगे। वन संरक्षक डा. पराग मधुकर धकाते ने संभावना जताई कि इंडियन पाइकॉन रहा होगा। उल्लेखनीय है कि डोलमार से लगा ज्योलीकोट क्षेत्र किंग कोबरा के प्राकृतिक आवास के रूप में स्थापित हो चुका है, जबकि अजगर को इस क्षेत्र में पहली बार देखे जाने की बात क्षेत्रवासियों द्वारा कही जा रही है।

यह भी पढ़ें : अब हिमालयन बॉटनिकल गार्डन में मिला ‘हिमालयन पिट वाइपर’

-वन रक्षक अरविंद कुमार ने रेस्क्यू कर जंगल में छोड़ा
नैनीताल, 21 अगस्त 2018। मुख्यालय में कांग्रेस नेता के घर में बिस्तर पर किंग कोबरा को देखे जाने के बाद मुख्यालय के निकट नारायण नगर में वन विभाग द्वारा विकसित हिमालयन बॉटनिकल गार्डन में ‘हिमालयन पिट वाइपर’ प्रजाति का सांप रिकॉर्ड किया गया है। इसे हिमालयन बॉटनिकल गार्डन के वन रक्षक अरविंद कुमार ने जांबाजी दिखाते हुए पकड़ लिया, और बाद में जंगल में ले जा कर छोड़ दिया गया। वन संरक्षक दक्षिणी कुमाऊं डा. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि यह सांप जहरीला होता है, और मूलतः भारत, पाकिस्तान व नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। निचले पहाड़ों-मैदानों में नहीं मिलता है। नैनीताल में यह पहले भी देखा गया है किंतु सामान्यतया यह दिखता नहीं है। पीले रंग के इस सांप की नाक के नीचे एक पिट यानी गड्ढा होता है, जिसमें ‘थर्मल सेंसर’ लगे होते हैं, जिससे यह मौसम में ठंड-गर्मी को एवं अपने शिकार को भांपता है, साथ ही यह गड्ढों में रहता है, इसलिए इसका नाम पिट वाइपर है।

यह भी पढ़ें : कांग्रेस नेता के घर में बिस्तर पर निकला किंग कोबरा

नैनीताल, 19 अगस्त 2018। पर्वतीय नगर नैनीताल में एक घर में बिस्तर पर किंग कोबरा निकलने का सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है। शनिवार देर रात्रि दो बार नैनीताल नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव लड़ चुके कांग्रेस नेता राजेंद्र व्यास को रात्रि में सोते हुए करीब साढ़े 10 बजे बिस्तर में सरसराहट महसूस हुई। पहले वह इसे आधी नींद में सपना व बाद में चूहा आदि सोचते रहे। बाद में देखा तो वह एक सांप था, और बिस्तर पर फन फैलाये हुए था। इस पर घर के सदस्यों, उनके छोटे भाई भाजपा एवं ब्लड डोनर्स एसोसिएशन से जुड़े पवन व्यास आदि ने सांप की आंखों पर रोशनी लगातर किसी तरह उसे रोके रखा और नगर के सांप पकड़ने के विशेषज्ञ निमिश दानू को इसकी जानकारी दी। करीब आधे घंटे की मशक्कत के बाद निमिश ने किसी तक सांप को कब्जे में लिया, और बताया कि यह एक वयस्क किंग कोबरा है।

उल्लेखनीय है कि नैनीताल एवं आसपास के पर्वतीय क्षेत्रों में सामान्यतया मैदानी क्षेत्रों की तरह सांप नहीं पाये जाते हैं, किंतु बीते कुछ वर्षों से यहां किंग कोबरा देखे जाने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। किंग कोबरा को सांपों के पारिस्थितिकी व भोजन तंत्र का सबसे ऊपर का जीव है, और इसकी उपस्थिति को स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की मजबूती का सबूत भी माना जाता है। अलबत्ता, घर व खासकर सोते हुए बिस्तर पर किंग कोबरा के फन फैलाकर मिलने से घर के सदस्यों में घंटों के बाद भी दहशत की स्थिति देखी जा रही है।

यह भी पढ़ें : एक सांप खाकर ज्योलीकोट में घर में घोंसला बनाने घुसी मादा किंग कोबरा !

  • किंग कोबरा के प्राकृतिक आवास स्थल के रूप में स्थापित हुआ ज्योलीकोट
  • 2007 में घोंसला बना था, हुए थे 17 बच्चे, भवाली रोड पर मस्जिद तिराहे के पास छोड़े गए थे

नैनीताल। मुख्यालय से करीब 18 किमी दूर ज्योलीकोट किंग कोबरा के प्राकृतिक आवास स्थल (नेचरल हैबिटैट) के रूप में स्थापित होता जा रहा है। क्षेत्र में वर्ष 2007 में घोंसला बनाकर 17 बच्चे देने से प्रकाश में आये किंग कोबरा अब यहां घरों में भी घुसने लगे हैं।

स्थानीय निवासी भाजपा नेता पुष्कर जोशी ने बताया कि रविवार दोपहर करीब साढ़े 12 बजे यहां ग्राम गांजा में एक पूर्ण वयस्क करीब किंग कोबरा एक महिला जानकी देवी पत्नी स्वर्गीय प्रताप सिंह के घर में घुस गया। इससे इस परिवार सहित पूरे गांव में दहशत फैल गयी। बाद में सूचना दिये जाने के बाद रानीबाग स्थित रेस्क्यू सेंटर से पहुंचे वन कर्मियों ने काफी मसक्कत से कोबरा को कब्जे में ले लिया। कोबरा इस दौरान करीब 3 फिट का एक सांप भी आधा निगल रहा था। माना जा रहा है कि यह एक मादा किंग कोबरा थी, जो सांप को आहार बनाकर इस मौसम में घर में घोंसला बनाने की फिराक में थी।

यह भी पढ़ें : नैनीताल में मिले किंग कोबरा के नर-मादा, विश्व रिकार्ड, ग्लोबल वार्मिंग या समृद्ध जैव विविधता का प्रमाण !

-सर्पराज के प्राकृतिक आवास स्थल के रूप में स्थापित हो रहा नैनीताल का दावा
-पूर्व में विश्व रिकार्ड 22 फिट लंबे किंग कोबरा के कालाढुंगी में मिले थे अवशेष
नवीन जोशी, नैनीताल। कुछ वर्षों पूर्व तक नैनीताल व पहाड़ों पर सांप दिखना बहुत बड़ी बात होती थी, किंतु इधर इस वर्ष नगर में हाल के कुछ महीनों में ही चार सांप नजर आये हैं, और सर्वाधिक दिलचस्प बात यह है कि इनमें से दो सर्पराज कहे जाने वाले किंग कोबरा थे। पहले बीती पांच अक्टूबर 2017 की रात्रि में नगर की माल रोड पर स्थित क्लासिक होटल में करीब 15 फिट लंबा नर किंग कोबरा घुस गया था, जिसे छह अक्टूबर को पकड़ा गया। जबकि इधर 14 नवंबर को नगर के तल्लीताल जॉय विला क्षेत्र में एक करीब 12 फिट लंबी मादा किंग कोबरा पकड़ी गयी है। इस प्रकार ऐतिहासिक तौर पर पहली बार नगर में सर्पराज के पाये जाने के पहले पुख्ता तथ्यपूर्ण प्रमाण प्रमाण प्राप्त हुए हैं।

विश्व रिकार्ड हो सकती है किंग कोबरा की नैनीताल में उपस्थिति

नैनीताल। उल्लेखनीय है कि सर्पराज कहे जाने वाले अनुसूचि एक में शामिल किंग कोबरा को मैदानी क्षेत्रों में पाया जाने वाला जीव माना जाता है। उत्तराखण्ड वन्य जीव बोर्ड के सदस्य, अंतर्राष्ट्रीय छायाकार व प्रकृतिविद् अनूप साह के अनुसार करीब 60 वर्ष पहले नगर के हीरा लाल साह ठुलघरिया द्वारा नगर के बारापत्थर क्षेत्र में करीब 7000 फिट की ऊंचाई पर और इधर जून 2014 में नगर के मान परिवार ने किलबरी रोड में समुद्र तल से करीब 7500 फिट की ऊंचाई पर किंग कोबरा को देखने का दावा किया था, जो कि इतनी अधिक ऊंचाई के लिहाज से श्री साह के अनुसार विश्व कीर्तिमान है। श्री साह के अनुसार इससे अधिक लंबे किंग कोबरा के पाये जाने के कोई रिकार्ड नहीं हैं। जोकि लंदन के चिड़ियाघर में रखे गये सर्वाधिक 18.5 फिट के सांप से भी अधिक लंबा था। परंतु इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं था। लेकिन इधर इसे 1938 मीटर (6358 फिट) की ऊँचाई पर बसे शहर के ऊपरी क्षेत्रों में देखने की पहली बार पुष्टि हुई है। गौरतलब है कि पूर्व में जनपद के कालाढुंगी क्षेत्र में वन विभाग को 22 फिट लंबे किंग कोबरा के सड़े-गले अवशेष मिले थे, जो कि विश्व रिकॉर्ड बताया जाता है।

लंबा है इस क्षेत्र में किंग कोबरा मिलने का इतिहास

2014 में ज्योलीकोट के निकट अपने घोंसले में अण्डों को सेती हुई रिकॉर्ड की गयी मादा किंग कोबरा

नैनीताल। वन्य जीव प्रेमी विनोद पांडे के अनुसार किंग कोबरा को वर्ष 1998 में निकटवर्ती बेलुवाखान में और वर्ष 2005 में भवाली सेनेटोरियम के पास भी देखा गया। वहीं सर्प विशेषज्ञ मनीश राय ने इस क्षेत्र में किंग कोबरा का पहला घोंसला वर्ष 2006 में तल्ला रामगढ़ में देखा व इस पर शोध किये। इसके अलावा नैनीताल नगर में सूखाताल में प्रसाद भवन, फ्लैट्स, टैक्सी स्टैंड आदि स्थानों पर तथा प्रदेश के चम्पावत, लोहाघाट, बागेश्वर, आदि बद्री, रूद्रप्रयाग व तराई-भाबर में करीब 10 से 17 फुट लंबे किंग कोबरा को देखे जाने के दावे किए जाते रहे हैं।

ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव या नैनीताल किंग कोबरा का प्राकृतिक आवास स्थल !
इधर नैनीताल में किंग कोबरा की उपस्थिति को कई लोग ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव भी मान रहे हैं, वहीं इस बारे में पूछे जाने पर वन संरक्षक दक्षिणी कुमाऊं वृत्त डा. पराग मधुकर धकाते का कहना है कि नैनीताल किंग कोबरा का प्राकृतिक आवास हो सकता है। संभव है कि यह हमेशा से यहां रहता हो, परंतु पहले इसके फोटो आदि लिये जाने के प्रमाण नहीं थे। अब सूचना-प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रभाव से इसकी पुष्टि होना सुखद है। इसकी यहां उपस्थिति इस क्षेत्र की अब भी समृद्ध जैव विविधता होने का प्रमाण भी है। इस आधार पर विशेषज्ञ भी स्वीकार कर रहे हैं कि क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता, मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र व आहार श्रृंखला के परिचायक किंग कोबरा का यहां मिलना इस क्षेत्र के लिये बड़ी उपलब्धि हो सकता है, और इस क्षेत्र को सर्पराज के संरक्षित क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है। परीक्षण किया जाये तो किंग कोबरा की यहां उपस्थिति देश के लिये बड़ी उपलब्धि हो सकती है।

सर्वाधिक विषैले के साथ ही सहनशील भी होता है किंग कोबरा

नैनीताल। अनूप साह के अनुसार किंग कोबरा सबसे अधिक  विषैला सांप होने के साथ ही अत्यन्त सहनशील सांप भी है, यह आमतौर पर बिना कारण किसी प्राणी को नहीं काटता है। इसमें इतना विष होता है कि यह एक बार में ही 20 लोगों को मार सकता है, बावजूद पूरे भारत मे सांपो के काटने से जहां प्रतिवर्ष 50000 मौतें  होती हैं, वहीं किंग कोबरा के काटने से पिछले 20 साल में मात्र चार व्यक्तियों की मृत्यु हुई है। इसलिए इस सर्प से भयभीत होने का कारण नहीं है। श्री साह इस आधार पर भी किंग कोबरा की विषेश सुरक्षा किये जाने की मांग उठा रहे हैं।

क्यों महत्वपूर्ण है किंग कोबरा

नैनीताल। नि:संदेह यह प्रश्न उठता है कि मनुष्य इतने विषैले सांप को बचाने का प्रयास क्यों करे। इसका उत्तर बाघों के संरक्षण के लिये चल रही देश व्यापी मुहिम में ही समाहित है। पारिस्थितिकी तंत्र की आहार श्रृंखला में बाघ की तरह सबसे ऊपर स्थित इस जीव की पहाड़ में उपस्थिति का अर्थ है, यहां इसकी आहार श्रृंखला के अन्य जीव भी भरपूर मात्रा में मौजूद हैं। इसका मुख्य भोजन छोटे सांप हैं। वह अन्य जीव जंतुओं को खाते हुऐ क्षेत्र में पारिस्थितिकीय संतुलन बनाते हैं।

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समरफील्ड के पास जंगल में मिले पैरों के निशान।

नवीन समाचार, नैनीताल, 13 सितंबर 2020। नगर के अयारपाटा वार्ड के सभासद मनोज साह जगाती अपनी संस्था ‘जय जननी जय भारत’ के सदस्यों के साथ रविवार सुबह आठ बजे अपने वार्ड के ही जंगल में पौधारोपण करने गए थे किंतु इस दौरान समरफील्ड के पास किसी पशु के पग चिन्ह देखकर सहम उठे। जगाती का कहना था कि समरफील्ड जंजीर वाली कोठी के पास तालाब की हल्की दलदली भूमि पर उन्हें वन्य जीव के काफी बड़े पैरों के निशान मिले। जगाती का दावा है कि वह निशान गुलदार अथवा बाघ के रहे होंगे। उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में अक्सर गुलदार दिखते हैं। करीब 6-7 माह पूर्व यहां वन्य जीव गाय की एक बछिया को खा गया था, जिसके बाद यहां वन विभाग ने पिंजरा भी लगाया गया था। वहीं इस बारे में वन विभाग के डीएफओ बीजू लाल टीआर सहित अन्य अधिकारियों से जानकारी लेने का प्रयास किया गया, किंतु उन्होंने जवाब नहीं दिया। वहीं नैनीताल चिड़ियाघर के डिप्टी रेंजर दीपक तिवारी ने फोटो के आधार पर संभावना जताई कि पैरों के निशान बड़े कुत्ते के भी हो सकते हैं।
इधर पौध रोपण अभियान के तहत जगाती, पवन आर्या व कक्षा दो की छात्रा हिमांगी बिष्ट आदि ने जंजीर वाली कोठी के पास जंगल में पांगर के 20 पौधे लगाए।

नैनीताल देखने की चाह में पहाड़ चढ़ आया हाथियों का झुंड

-पूर्व में भी सूखाताल एवं नैनी झील के पास हाथियों के पहुंचने हैं प्रमाण
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, आश्चर्य होगा। किंतु यह सच है। मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर ज्योलीकोट के निकट चोपड़ा गांव में हाथियों का झुंड देखे जाने की अभूतपूर्व घटना हुई है। ज्ञात इतिहास में पहली बार, शुक्रवार दोपहर करीब 12 बजे ग्रामीणों ने जिम कार्बेट पार्क से अलग, समुद्र सतह से करीब 1500 मीटर की ऊंचाई वाले चोपड़ा गांव में चार वयस्क हाथियों का झुंड देखा गया। उत्साही ग्रामीण युवा इन हाथियों की फ़ोटो लेने में भी सफल रहे। क्षेत्रीय निवासी एवम वन क्षेत्राधिकारी कैलाश चंद्र सुयाल ने बताया कि इतिहास में यहां हाथियों के देखे जाने की कोई जानकारी नहीं है। ऐसे में ग्रामीणों के मन में यह सवाल भी कौंध रहा है कि हाथी पहाड़ की ओर क्यों चढ़ रहे हैं। अलबत्ता, पश्चिमी वृत्त के वन संरक्षक डा. पराग मधुकर धकाते ने बताया कि पूर्व में नैनीताल जनपद में ही, करीब इसी ऊंचाई वाले घटगढ़ और पटवाडांगर क्षेत्र में भी हाथियों को देखा गया था, जबकि इतिहास में, अंग्रेजी दौर में, करीब 1950 मीटर की ऊंचाई पर नैनीताल की नैनी झील में पानी पीने के लिए हाथियों के आने की बात एक पुस्तक में दर्ज होने की बात कही जाती है। गौरतलब है कि घटगढ़ और पटवाडांगर जिम कार्बेट पार्क से लगे क्षेत्र हैं, जबकि चोपड़ा पूरी तरह से पार्क से अलग क्षेत्र है। इसलिये यहां हाथियों का आना अपने आप में अनूठी घटना है।डा. धकाते के अनुसार हाथी अपने याददाश्त के लिए जाने जाते हैं। यदि बचपन में भी वे किसी मार्ग से गुजरे हों, तो वापस उन पारंपरिक मार्गों पर लौटते हैं। संभव है कि ये हाथी भी पहले कभी यहां आए हों।

उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व 15 जनवरी 2015 के आसपास भी नैनीताल के निकटवर्ती बल्दियाखान क्षेत्र में समुद्र सतह से करीब 1850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बसगांव के बुड़ भूमिया मंदिर के पास हाथियों का झुंड देखे जाने का दावा किया गया था। वन विभाग के आला अधिकारी इसे पूर्व के संदर्भों व प्रमाणों के आधार पर इसे हाथियों का यहां पहली बार आना नहीं वरन अपने पुराने रास्तों पर वापस लौटना मान रहे हैं। यानि, कह सकते हैं कि हाथियों का झुंड नैनीताल को देखने अथवा पुरानी यादें ताजा करने की चाह में पहाड़ों पर चढ़ आया होगा।

देश में बाघों की संख्या (ऑल इंडिया टाइगर एक्सपीडिशन 2014 के मुताबिक) बीते चार वर्ष में 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ (2010 में 1520-1909) औसत अनुमानित 1706 से बढ़कर अब 1,945 से 2,491 के बीच (औसत अनुमानित 2226) हो जाने और उत्तराखंड के इस मामले में राष्ट्रीय औसत से भी आगे करीब 50 प्रतिशत के साथ देश में में नंबर 2 रहने (यहां पिछले चार वर्षो में बाघों की संख्या में 113 यानी करीब 50 फीसद की बढ़ोतरी के साथ 340 हो गई है, और वह कर्नाटक (406) तथा मध्यप्रदेश (308) के बीच दूसरे स्थान पर है।) की खुशखबरी के बीच यह एक और अच्छी खबर है।

नगर के खोजी युवक दीपक बिष्ट ने क्षेत्र से लौटने के बाद बसगांव के बुड़ भूमिया मंदिर के पास अनेक स्थानों पर यहां से हाथियों का बड़ी मात्रा में मल देखे जाने की जानकारी दी। उल्लेखनीय है कि वन्य जीवों की गतिविधियां जानने के लिए वन्य जीव शोधकर्ता उनके पद चिन्हों व मल आदि से ही पुष्टि व पहचान करते हैं।

बल्दियाखान निवासी खीमराज सिंह बिष्ट ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि बड़ी मान्यता वाले बुड़ भूमिया मंदिर के पास गत दिवस हाथियों का झुंड देखा गया था। इसने ग्रामीणों की फसलों को भी नुकसान पहुंचाया है। पहाड़ की इतनी ऊंचाई पर हाथियों के चढ़ आने से जहां ग्रामीणों में फसलों के नुकसान की चिंता के साथ ही आश्चर्य भी है, वहीं वन्य जीव विशेषज्ञ के तौर पर प्रभागीय वनाधिकारी डा. पराग मधुकर धकाते ने माना कि ऐसा संभव है। उनका कहना था कि हालांकि हाथी मैदानी क्षेत्रों में ही रहने वाला प्राणी है, और जिम कार्बेट पार्क और जनपद मे भाबर क्षेत्र के हाथी कॉरीडोर क्षेत्र में इसकी काफी उपस्थिति है, लेकिन उन्होंने स्वयं वर्ष 2006 में एक जीर्ण-शीर्ण पुरानी पुस्तक में १०-१५ हाथियों के झुंड के नैनीताल के संभवतया नैनी झील के पास का चित्र देखा है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष कालाढुंगी रोड पर मंगोली के निकट भी हाथियों का झुंड देखा गया था, जो कि खासा चर्चा में रहा था। वहीं दीपक बिष्ट ने बताया कि हैनरी रैमजे की 1892 में लंदन से प्रकाशित पुस्तक-अपर इंडिया फॉरेस्ट में हाथियों के नैनीताल की सूखाताल झील के पास तक पहुंचने का जिक्र मिलता है। इस आधार पर डा. धकाते कहते हैं कि हाथी भोजन की उपलब्धता होने पर एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते रहते हैं, लेकिन इनके आने-जाने में एक खाशियत यह भी होती है कि यह पूर्व में प्रयोग किए गए मार्ग पर ही चलते हैं। लिहाजा यह संभव है कि बसगांव में दिखे झुंड का कोई हाथी संभवतया कभी पूर्व में अपने बाल्यकाल में इसी रास्ते से नैनीताल आया होगा। डा. धकाते ने स्वयं भी शीघ्र इसकी पुष्टि के लिए क्षेत्र का दौरा किये जाने की बात कही।

रॉयल बंगाल टाइगर भी देखे जा चुके हैं नैनीताल में

(10-11 फ़रवरी 2014 की रात्रि नैनीताल की कैमल्स बैक छोटी पर वन विभाग के कैमरे से लिया गया चित्र )

नैनीताल। उल्लेखनीय है कि 10-11 फरवरी 2014 की रात्रि बाघों के राजा रॉयल बंगाल टाइगर को 2591 मीटर ऊंची कैमल्स बैक चोटी पर वन विभाग द्वारा लगाए गए कैमरे में रिकार्ड किया गया था। इन वन्य जीवों की नैनीताल में उपस्थिति को इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता व मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का परिचायक माना जा सकता है।

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डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार
‘नवीन समाचार’ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल से ‘मन कही’ के रूप में जनवरी 2010 से इंटरननेट-वेब मीडिया पर सक्रिय, उत्तराखंड का सबसे पुराना ऑनलाइन पत्रकारिता में सक्रिय समूह है। यह उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त, अलेक्सा रैंकिंग के अनुसार उत्तराखंड के समाचार पोर्टलों में अग्रणी, गूगल सर्च पर उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ, भरोसेमंद समाचार पोर्टल के रूप में अग्रणी, समाचारों को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाला ऑनलाइन समाचार पोर्टल भी है।
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