18 सितम्बर : नैनीताल के साथ पूरे उत्तराखंड वासियों वालों के लिए सबक लेने का दिन
18 सितंबर पर विशेष: आज का दिन याद कर कांपती है रूह, पर याद नहीं किये सबक
-कमजोर भूगर्भीय संरचना के शहर के सुरक्षित बचे रहने में है बड़ी भूमिका
डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 18 सितंबर 2024 (18 September 1880)। 18 की तिथि सरोवरनगरी के लिये बेहद महत्वपूर्ण है। 18 नवंबर 1841 को ही इस नगर को वर्तमान स्वरूप में बसाने वाले पीटर बैरन के नगर में आगमन की बात कही जाती है, वहीं सितंबर माह की इसी तिथि को 140 वर्ष पूर्व नगर में जो हुआ, उसे याद कर नैनीताल वासियों की रूह आज भी कांप उठती है। देखें वीडियो :
1880 में इस तिथि को यानी 18 सितंबर 1880 को हुई एक दुर्घटना से सबक लेकर नगर के अंग्रेज नियंताओं ने नगर में नालों के निर्माण के ऐसे प्रबंध किये जो आज भी नगर को पूरी तरह से सुरक्षित रखे हुए हैं, और ‘नैनीताल मॉडल’ के रूप में दुनिया के अन्य पर्वतीय नगरों को भी कैसी भी जल प्रलय से बचाने की क्षमता रखते हैं।
किंतु देश आजाद होने के बाद प्रति वर्ष नगर में इस दिन 1880 की याद करते हुए उस घटना में दिवंगत हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने की औपचारिकता भर निभाई जाती है, किंतु नगर वासी इन नालों को अतिक्रमण व गंदा कर नगरवासी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की राह पर नजर आते हैं, और कोई भी सही मायने में सबक लेता नहीं दिखता है। नतीजा, घटना की पुनरावृत्ति के रूप में सामने न आये, इसकी दुआ ही की जा सकती है।
वह मनहूस दिन
अंग्रेज लेखक एटकिंसन के अनुसार आधिकारिक तौर पर 18 नवम्बर 1841 को नगर में आये एक अंग्रेज पीटर बैरन द्वारा नगर के रूप में बसायी गयी सरोवरनगरी नैनीताल में कम-कम करके भी 1880 तक नगर में उस दौर के लिहाज से काफी निर्माण हो चुके थे और नगर की जनसंख्या लगभग ढाई हजार के आसपास पहुँच गयी थी, ऐसे में 18 सितम्बर का वह ‘काले शनिवार’ का मनहूस दिन आ गया जब केवल 40 घंटे में हुयी 35 इंच यानी 889 मिमी बारिश के बाद आठ सेकेण्ड के भीतर नगर में वर्तमान रोप-वे के पास ऐसा विनाशकारी भूस्खलन हुआ कि 151 लोग (108 भारतीय और 43 ब्रितानी नागरिक) यानी नगर की 6 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या काल कवलित हो गयी थी।
साथ ही उस जमाने का नगर का सबसे विशाल ‘विक्टोरिया होटल’ और मि. बेल के बिसातखाने की दुकान व तत्कालीन बोट हाउस क्लब के पास स्थित वास्तविक नैनादेवी मन्दिर जमींदोज हो गऐ। यह अलग बात है कि इस विनाश ने नगर को वर्तमान फ्लैट मैदान के रूप में अनोखा तोहफा दिया। वैसे इससे पूर्व भी वर्तमान स्थान पर घास के हरा मैदान होने और 1843 में ही यहाँ नैनीताल जिमखाना की स्थापना होने को जिक्र मिलता है।
अंग्रेजों ने लिया सबक
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व 1866 व 1879 में भी नगर की आल्मा पहाड़ी पर भी बड़े भूस्खलन हुये थे, जिनके कारण तत्कालीन सेंट लू गोर्ज स्थित राजभवन की दीवारों में दरारें आ गयी थीं। अंग्रेज इस घटना से बेहद डर गऐ थे और उन्होंने तुरन्त पूर्व में आ चुके विचार को कार्य रूप में परिणत करते हुए नगर की कमजोर भौगौलिक संरचना के दृष्टिगत समस्या के निदान व भूगर्भीय सर्वेक्षण को बेरजफोर्ड कमेटी का गठन किया। अंग्रेज सरकार ने पहले चरण में सबसे खतरनाक शेर-का-डंडा, चीना (वर्तमान नैना), अयारपाटा, लेक बेसिन व बड़ा नाला (बलिया नाला) का निर्माण दो लाख रुपये में किया। बाद में 80 के अंतिम व 90 के शुरुआती दशक में नगर पालिका ने तीन लाख रुपये से अन्य नाले बनाए।
1898 में आयी तेज बारिश ने लोंग्डेल व इंडक्लिफ क्षेत्र में ताजा बने नालों को नुक्सान पहुंचाया, जिसके बाद यह कार्य पालिका से हटाकर पीडब्लूडी को दे दिए गए। 23 सितम्बर 1898 को इंजीनियर वाइल्ड ब्लड्स द्वारा बनाए नक्शों से 35 से अधिक नाले बनाए गए। 1901 तक कैचपिट युक्त 50 नालों (लम्बाई 77,292 फिट) व 100 शाखाओं का निर्माण (कुल लम्बाई 1,06499 फिट) कर लिया गया। बारिश में भरते ही कैचपिट में भरा मलवा हटा लिया जाता था। अंग्रेजों ने ही नगर के आधार बलियानाले में भी सुरक्षा कार्य करवाऐ, जो आज भी बिना एक इंच हिले नगर को थामे हुऐ हैं, जबकि कुछ वर्ष पूर्व ही हमारे द्वारा बलियानाला में किये गए कार्य लगातार दरकते जा रहे हैं।
नालों ने बचाया
अंग्रेजों ने ही नगर के आधार बलियानाले में भी सुरक्षा कार्य करवाऐ, जो आज भी बिना एक इंच हिले नगर को थामे हुऐ हैं, जबकि कुछ वर्ष पूर्व ही हमारे इंजीनियरों द्वारा बलियानाला में कराये गए कार्य पूरी तरह दरक गये हैं, और अब नये सिरे से कार्य हो रहे हैं। पूर्व में हर बारिश से पहले और भरते ही कैच पिटों में भरा मलवा हटा लिया जाता था। लेकिन नालों में बने कैचपिट अब एकाध जगह देखने भर को मिलते हैं। उनकी सफाई हो-हल्ला मचने पर ही होती है।
करोड़ों रुपये की परियोजनाऐं चलने के बावजूद संबंधित विभाग हमेशा नालों की सफाई के लिये बजट न होने का रोना रोते रहे हैं। नगर पालिका से नालों से कूड़ा व मलवा हटाने को लेकर हमेशा विवाद रहा है, अलबत्ता अब सिचाई विभाग कुछ बेहतर कार्य कर रहा है। दूसरी ओर नगर वासी निर्माणों के मलवे को नालों के किनारे बारिश होने के इंतजार में रहते हैं, और बारिश होते ही उड़ेल देते हैं।
बहरहाल, 1880 के बाद बीते वर्षों में, खासकर वर्ष 2010 में ठीक 18 सितंबर और 2011 में भी सितंबर माह में प्रदेश व निकटवर्ती क्षेत्रों में जल प्रलय जैसे कई हालात आये। 2010 में नगर की सामान्य 248 सेमी से करीब दोगुनी 413 सेमी बारिश रिकार्ड की गई, बावजूद नगर पूरी तरह सुरक्षित रहा। इसका श्रेय नगर के नालों को दिया जाता है। लेकिन नगर ने सितंबर 2015 में नगर के नालों में अतिक्रमण का वह रूप भी देखा जब इससे कुछ दिन पूर्व ही नालों से हटाये गये होटलों के स्थान से आये मलबे से माल रोड पर मलबे का पहाड़ बन गया था।
अतिक्रमण न हटा होता तो होटलों में भारी तबाही निश्चित थी। 2021 में नैनीताल की झील का पानी ऐतिहासिक तौर पर सड़कों पर बहने लगा। घरों-दुकानों में फंसे लोगों को बचाने के लिये सेना तक बुलानी पड़ी। लेकिन माता नयना देवी की कृपा कहें कि नैनीताल मॉडल का प्रभाव, कहीं कोई जनहानि नहीं हुई। नगर के बुजुर्ग, आम जन, अधिकारी हर कोई इस बात को स्वीकार करते हैं, लेकिन कोई इस घटना से सबक लेता नहीं दिखता।
यह किए जाने की है जरूरत
- नालों से सटाकर किए निर्माणों को संभव हो तो हटाया अथवा मजबूत किया जाए।
- नालों से पानी की लाइनें पूरी तरह से हटाई जाएं, इनमें मलवा फंसने से होता है नुकसान।
- मरम्मत के कार्यों में हो उच्च गुणवता मानकों का पालन।
- नालों की सफाई सर्वोच्च प्राथमिकता में हो।
- नालों में कूड़ा डालने पर कड़े व बड़े जुर्माने लगें।
- नालों में कैचपिटों की व्यवस्था बहाल हो, सभी नालों में बनें कैचपिट और हर बारिश के बाद हो इनकी सफाई।
- नालों की सफाई के लिए पूर्व में बने अमेरिकी मशीन ऑगर लगाने जैसे प्रस्ताव लागू हों।
नैनीताल को कमजोर नगर बताना सच्चाई है या कोई साजिश !
हाईकोर्ट की रोक हटने के बाद नैनीताल में फिर ध्वस्तीकरण संकट: कदम-दर-कदम प्रशासनिक अक्षमताएं, और खामियाजा जनता को
फिर वही सवाल – क्या नैनीताल को बचाया नहीं जा सकता ? क्या ध्वस्तीकरण ही है आखिरी विकल्प ?
-2011 में पूरी हो चुकी है 1995 में बनी ‘नैनीताल महायोजना’, प्रशासन चार वर्षों से महायोजना नहीं बना पाया
-नालों की मरम्मत के लिए चार वर्ष पुराने करीब 21 करोड़ के दो प्रस्तावों पर शासन ने नहीं दिया एक ढेला भी, अब सारी गलती जनता पर डालने की तैयारी
-प्रशासन के पास कमजोर घरों का कोई सर्वेक्षण भी नहीं है
डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल। नैनीताल जिला प्रशासन नगर को ‘बचाने’ के नाम पर नगर के कमजोर, असुरक्षित घरों को ध्वस्त करने का मंसूबा बना रहा है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के कथित आदेशों का हवाला देकर नगर के जोन-एक व जोन-दो तथा सूखाताल के डूब क्षेत्र के घरों को ध्वस्त करने की योजना बताई जा रही है। इसके लिए प्रशासन भूमिका बनाने के लिए नगर के चुनिंदा लोगों की बैठक बुला चुका है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नैनीताल को बचाने को अन्य विकल्प आजमाए जा चुके हैं, और क्या ध्वस्तीकरण ही आखिरी विकल्प बचा है।
यह भी पढ़ें : नालों को बचाना होगा तभी बचेगा नैनीताल, नालों ने बचाया, नालों ने ही डराया नैनीताल को
(श्री नंदा स्मारिका 2015 में प्रकाशित आलेख)
भूगर्भीय दृष्टिकोण से जोन-चार में रखे गए नैनीताल नगर की भूगर्भीय व भूसतहीय कमजोरी के बात खूब बढ़-चढ़ कर कही जाती है,एमबीटी सहित कई भूगर्भीय भ्रंश नैनीताल को खतरनाक बनाते हैं, लेकिन इसके उलट इस बड़े तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि नगर के बचाव के लिए अंग्रेजी दौर से किए गए मजबूत प्रबंधों की वजह से नगर के भीतरी, नैनी झील के जलागम क्षेत्र में 1880 के बाद से और पूरे नगर के समग्र पर भी बीती पूरी और मौजूदा सदी के करीब सवा सौ वर्षों में एक भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है।
इस तथ्य से क्या नगर की मजबूती का भरोसा नहीं मिलता है ? निस्संदेह इस भरोसे को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। मृत्यु शैया पर पड़े लाइलाज बीमारी से ग्रस्त रोगी को कोई कम बुद्धि और कम संसाधनों वाला चिकित्सक भी कभी नहीं कहता कि उसका बेहतर इलाज उसका जीवन समाप्त कर देेना है। लेकिन प्रकृति द्वारा दोनों हाथों से अपनी नेमतें लुटाए प्रकृति के स्वर्ग कही जाने वाली सरोवरनगरी के लिए मानो उसका उपचार करने की जिम्मेदारी वाले चिकित्सक, शासन-प्रशासन, बिना उसके उपचार के प्राथमिक प्रयास किए ही मानो निर्लज्जता के साथ कह रहे हैं, उसे बचाने का एक ही और आखिरी उपाय है-उसके कमजोर हिस्सों को काट दिया जाए।
वह अपने दर्द से मरें ना मरें, पहले ही उसकी जान ले ली जाए। नगर भले ‘श्मशान’ में बदल जाए, पर यदि वह इसमें सफल रहे तो उन पर पूर्व में किए गए उनके, अतीत से लेकर वर्तमान तक अपनी जेबें भरकर नगर को कुरूप कर देने के ‘पापों’ से मुक्ति मिल जाएगी। उनके कुकृत्यों को लोग भूल जाएंगे और उन पर लगातार उठने वाली अंगुलियां आगे नहीं उठ पाएंगी।
इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता कि ‘अपना’ शासन-प्रशासन नैनीताल नगर का उपचार करना दूर, ‘पराए’ अंग्रेज नियंताओं द्वारा किए गए मजबूत प्रबंधों की देखभाल-मरम्मत करने में ही पूरी तरह से विफल रहा है। उल्टे वह महज नगर के दो दशक पुराने हल्के-गहरे रंगों में रंगे नक्शे के जरिए नगर को कमजोर और अधिक व अत्यधिक कमजोर बताकर यह साबित करने की कोशिष करने में अधिक गंभीर नजर आ रहा है कि नगर बेहद जर्जर है, और मानो नगर में अधिसंख्य इलाके का ध्वस्तीकरण ही सारी समस्याओं का इलाज है।
नगर की कमजोरी की बातों में अनेकों स्तरों पर अजब और परले दर्जे का विरोधाभाष नजर आता है। नैनीताल कथित तौर पर बेहद कमजोर नगर है। इसका सबसे कमजोर हिस्सा रोप-वे स्टेशन के बिलकुल करीब से लेकर ऊपर की ओर सात नंबर तक का स्थान बताया जाता है, और यहीं 1985 मंे करीब 12 व्यक्तियों को एक साथ लेकर चलने वाले 825 किग्रा भार वहन क्षमता के भारी-भरकम ढांचे युक्त रोप वे का निर्माण किया गया, जो कि इतने वर्षों से बिना किसी समस्या के सीजन के कई दिनों में हजार सैलानियों को भी नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे की सैर कराता है।
वहीं नैनीताल की दूसरी सबसे कमजोर नब्ज है नगर का आधार-बलियानाला, जिसके ऊपर प्रशासन ने तल्लीताल में ‘न्यू ब्रिज कम बाईपास’ का निर्माण करा डाला है, और पुराने बस अड्डे को खाली कराकर इस पर ही रोडवेज की भारी-भरकम बसों को खड़ा करने की ‘जिद’ भी पूरी कर डाली है। वहीं नगर की तीसरी कमजोर दुःखती रग प्रदेश के नैनीताल राजभवन को निहाल नाले की ओर से खोखला कर रही है तो चौथा और सबसे ताजा भूस्खलन के स्थान पर प्रदेश का उच्च न्यायालय स्थित है।
इसी तरह रिक्शा स्टेंड के हजारों रुपए से बने ढांचे को तोड़कर ठीक नाला नंबर 21 के ऊपर फिर लाखों रुपए खर्च कर बनाया जा रहा है। यानी नगर की कमजोरी का उपयोग अपनी पसंद के साथ हो रहा है। जहां काम बनाना हो, जनहित की बात कह दी जाए, अन्यथा जनता की जान का डर दिखा दिया जाए। बावजूद हम पूरी गंभीरता के साथ दोहरा रहे हैं-नैनीताल कमजोर नहीं मजबूत स्थान है। हमारे इस बात को कहने का आधार फिर वही है, और हमारे विश्वास को मजबूत करने वाला तथ्य यह है कि नगर में पिछले करीब सवा सौ वर्षों में एक भी व्यक्ति की मौत नगर की कमजोरी या भूस्खलनों की वजह से नहीं हुई है।
अब पड़ताल करते हैं उन कारणों की जिनकी वजह से नगर की ऊपर बताई गई इतनी कमजोरी के बावजूद नगर सवा सौ वर्षों से पूरी तरह सुरक्षित है। यह आधार 18 सितंबर 1880 को आए नगर के महाविनाशकारी, उस दौर के केवल करीब ढाई हजार की जनसंख्या वाले नगर में 108 भारतीयों व 43 ब्रितानी नागरिकों सहित कुल 151 लोगों की जान लीलने वाले भयानक भूस्खलन के बाद नगर के अंग्रेज नियंताओं द्वारा बनाए गए कैचपिट युक्त 100 शाखाओं युक्त 50 नाले हैं, जिन्हें नगर की आराध्य देवी माता नयना और प्रदेश की कुल देवी नंदा-सुनंदा का स्वरूप और नगर का हृदय कही जाने वाली नैनी झील की धमनियां कहा जाता है।
निर्विवाद तौर पर माता नयना तथा नंदा-सुनंदा तथा यह नाले ही नैनीताल को इतने वर्षों में हुई हजारों सेंटीमीटर-मीटर वर्षा की अकल्पनीय विभिषिका से बचाए हुए हैं। इनकी ताकत और कृपा को शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है। लेकिन इनकी ताकत-क्षमता के बारे में इतना दावे के साथ कहा जा सकता है कि नैनीताल नगर में इन नालों का सफल व सही प्रयोग ‘नैनीताल मॉडल’ के रूप आगे भी न केवल नैनीताल को हमेशा के लिए ही नहीं, वरन देश-दुनिया के किसी भी अन्य पर्वतीय शहर को बारिश की वजह से होने वाले भूस्खलन के खतरों से बचा सकता है। पिछले वर्षों में भूस्खलन की जद में आए अल्मोड़ा व वरुणावत पर्वत के खतरे से घिरे उत्तरकाशी और केदारनाथ में ‘नैनीताल मॉडल’ को लागू कर बचाया जा सकता है।
इस दावे को सच मानने पर जरूर सवाल उठेगा कि नैनीताल नगर के लिए जीवन-मरण जितने महत्वपूर्ण इन नालों में इतनी ही ताकत है तो फिर नगर में पिछले वर्षों में नैनीताल नगर में कई भूस्खलन क्यों हुए। विश्लेषण करने पर इन सवालों का जवाब भी आसानी से मिल जाता है। चलिए, इस बात की पड़ताल करते हैं कि 1880 से पहले और बाद में नैनीताल में कितने भूस्खलन आए और उनसे क्या नुकसान हुआ।
पहले बात नैनीताल नगर की स्थापना के बाद आए भूस्खलनों की। नगर के अंग्रेज नियंता नगर की कमजोर प्रकृति से सर्वप्रथम 1866 और फिर 1869 व 1879 में रूबरू हुए। नगर की आल्मा पहाड़ी पर हुए इन भूस्खलनों की वजह से तत्कालीन गवर्नर हाउसों में भी दरारें आ गई थी। अंग्रेजों ने इससे बचाव के तरीके खोजने ही प्रारंभ किए थे कि 18 सितंबर 1880 को वर्तमान रोप-वे के पास पुनः आल्मा पहाड़ी पर आए भूस्खलन ने 151 लोगों को जिंदा दफन करने के साथ नगर का नक्शा भी बदल दिया। नगर की आराध्य देवी माता नयना को भी नहीं बक्शा। नयना देवी का वर्तमान बोट स्टेंड के पास स्थित मंदिर भी झील में समा गया, जिसके बाद मंदिर को वर्तमान स्थान पर बनाया गया।
बीती आधी सदी में नैनीताल में आए भूस्खलनों की बात करें तो सब से बड़ा भूस्खलन 1988 में नैना पीक की तलहटी के क्षेत्रों में हुआ था, जिसमें भूस्खलन का मलबा हंस निवास, मेलरोज कंपाउंड और सैनिक स्कूल से होते हुए तत्कालीन ब्रुक हिल छात्रावास (वर्तमान उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आउट हाउस) के कक्षों में भर गया था। लेकिन इस भूस्खलन का कारण जान लीजिए। अंग्रेजी दौर में बने नाला नंबर 26 पर इन प्रभावित क्षेत्रों के ऊपर किलवरी रोड के पास स्थित तीन नौ गुणा नौ वर्ग मीटर आकार के कैचपिटों की सफाई नहीं की गई थी।
फलस्वरूप बारिश के दौरान गिरा एक सुरई का विशाल पेड़ नाले में फंस गया था, जिस कारण मलबा नाले में बहने की बजाय फंसे पेड़ की वजह से आवासीय क्षेत्रों की ओर आ गया था। कई लोगों को कुछ समय के लिए घर भी छोड़ने पड़े, पर कोई जनहानि नहीं हुई। गौरतलब है कि यह कैचपिट अभी भी भरे हुए हैं। उनकी सफाई नहीं की जा रही। अभी हाल में जून माह में नैनीताल क्लब में मुख्यमंत्री हरीश रावत के जनता दरबार में स्थानीय लोगों ने इस समस्या को रखते हुए बताया था कि उनके घरों में मलबा घुस गया है, और अफसोसजनक स्थिति थी कि संबंधित अधिकारी इस समस्या को समझ ही नहीं पाए, और कैचपिटों की सफाई इसके बाद भी नहीं हुई।
दूसरा बड़ा भूस्खलन 10 वर्ष बाद 1998 में ठंडी सड़क के ऊपर डीएसबी कॉलेज के गेट के पास के क्षेत्र में कई दिनों तक भूस्खलन होता रहा। इसकी चर्चा रेडियो के उस दौर में बीबीसी लंदन से भी हुई थी। इस क्षेत्र में पूर्व से नाले के प्रबंध ही नहीं किए गए थे। शायद इसलिए कि यहां अंग्रेजी दौर में घर ही नहीं थे। इस भूस्खलन के दौर में भी यहां गिने-चुने ही मकान थे। एक मकान हवा में लटक सा गया था, लेकिन इस बार भी कोई जनहानि नहीं हुई।
अब बात नैनीताल के सर्वाधिक संवेदनशील व नगर के आधार बलियानाला की। इस क्षेत्र में भूस्खलनों का इतिहास 1898 से रहा है। इस क्षेत्र में सबसे बड़ा भूस्खलन 17 अगस्त 1898 को हुआ था। इसे नगर के इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी दुर्घटना भी कहा जाता है। इस दुर्घटना में 27 भारतीय व एक अंग्रेज सहित कुल 28 लोग मारे गए थे। लेकिन याद रखना होगा कि यह वह दौर था, जब नालों का निर्माण चल ही रहा था, और इस क्षेत्र में इसके बाद भी 1901 तक नालों तक नालों का निर्माण होता रहा था, और यह क्षेत्र नैनी झील के जलागम क्षेत्र के बाहर आता है।
गौरतलब है कि इसके बाद भी इस क्षेत्र में 1935, 1972 और 2004 में भी बड़े भूस्खलन हुए, बड़ा क्षेत्र बलियानाले में समाया, लेकिन गनीमत रही कि कोई जनहानि नहीं हुई। 2004 के भूस्खलन के बाद 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी सरकार ने बलियानाले के सुधार कार्यों के लिए 15 करोड़ रुपए की भारी-भरकम धनराशि दी। बताया जाता है कि इससे बलियानाला में आठ ‘बेड-बार’ बनाए गए, परंतु कार्यों की गुणवत्ता कैसी थी, यह बताने के लिए इतना ही कहना काफी है कि इन ‘बेड-बार’ के भग्नावशेष भी आज देख पाने कठिन हैं।
इधर पिछले वर्ष यानी 2014 में यहां 10 जुलाई को और इस वर्ष 11 जुलाई को भी यहां बड़े भूस्खलन हुए। इन भूस्खलनों में क्षेत्र का काफी हिस्सा बलियानाले में समा गया, और समाता जा रहा है। अनेक परिवारों को विस्थापित भी करना पड़ा है लेकिन यह भी सच्चाई है कि इन घटनाओं में भी कोई जनहानि नहीं हुई। इधर बलियानाले को फिर से चैनलाइज करने के लिए 44.25 करोड़ रुपए के प्रस्ताव शासन को भेजे गए हैं, लेकिन शासन अब तक एक रुपया भी देने को तैयार नहीं दिख रहा।
वहीं बात नगर के दूसरे आधार निहाल नाले की, जहाँ नैनीताल राजभवन की ‘तीसरी ठौर’ भी खतरे में है। इस क्षेत्र में पिछली सदी से ही लगातार भूस्खलन जारी हैं, फलस्वरूप 1960 से इस क्षेत्र में खनन प्रतिबंधित है। लेकिन सच्चाई यह है कि इस प्रतिबंध का कोई अर्थ नहीं है। निहाल नाले में भूस्खलन करीब 10 मीटर प्रति वर्ष की दर से जारी है, और दिन-दहाड़े धड़ल्ले से जारी अवैध खनन की गति भी इससे कुछ कम नहीं है। ‘बुद्धिमान’ नियंताओं ने क्षेत्र में दूसरों को खनन से रोकना दूर, स्वयं 1960 के प्रतिबंध को धता बताकर ‘अवैध खनन’ करते हुए इस क्षेत्र से ही नैनीताल बाई-पास का निर्माण करने का ‘दुस्साहस’ कर दिखाया है। बाई पास से नगर की यातायात व्यवस्था को कुछ लाभ हुआ है अथवा नहीं, पता नहीं, अलबत्ता इसने अवैध खनन कर्ताओं को जरूर आसान रास्ता उपलब्ध करा दिया है।
गौरतलब है कि निहाल नाले के शीर्ष पर उत्तराखंड राज्य का नैनीताल राजभवन स्थित है। राजभवन के गोल्फ कोर्स का पूर्व राज्यपाल रोमेश भंडारी के नाम पर बना भंडारी स्टेडियम इस भूस्खलन की जद में आ चुका है। निहाल नाले का प्लम कंक्रीट, वायर क्रेट नाला निर्माण, साट क्रीटिंग व रॉक नेलिंग आदि आधुनिक तकनीकों से क्षरण रोकने के लिए वर्ष 2012 में 38.7 करोड़ रुपए सहित पूरे नैनीताल नगर की सुरक्षा के लिए 58.02 करोड़ रुपए की बड़ी योजनाओं का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया था। इन प्रस्तावों पर भी ‘धन की कमी आढ़े नहीं आने दी जाएगी’ की तोता रटंत करने वाला शासन अब तक एक रुपया भी स्वीकार नहीं कर पाया है।
अब बात हालिया बीती पांच जुलाई 2015 को आए बड़े भूस्खलन की, जिसकी वजह से नगर की कमजोरी पर बोलने के लिए प्रशासन को बड़ा मौका मिला। इस घटना का पहला मूल कारण तो बिड़ला रोड पर हुआ भूस्खलन रहा, जिसका मूल कारण इस बेहद संकरे, बीते दौर में घोड़ों के लिए बने बेहद तीक्ष्ण चढ़ाई वाले मार्ग में स्नो-व्यू, किलवरी जाने के लिए ‘शॉर्ट कट’ के रूप में प्रयोग करने वाले नए जमाने के अत्यधिक क्षमता वाले भारी-भरकम वाहनों का बेधड़क-बेरोकटोक गुजरना भी रहा, जिस कारण स्तुति गेस्ट हाउस के पास का पहले से ही वाहनों के बोझ से ढहता नाला तेज बारिश के दौरान दरक गया।
लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि घटना की विभीषिका इस मलबे को लेकर आने वाले नाला नंबर-6 के जीर्ण-शीर्ण होने की वजह से बढ़ी। नाला जीर्ण-शीर्ण होने से मलबा नाले की कमजोर दीवारों को तोड़कर पास के मकानों को खोखला करते हुए निकला। इसी तरह मल्लीताल पालिका गार्डन में नुकसान नाला नंबर 20 के पाइप लाइनों से बुरी तरह पटे रहने, इस कारण मलबा फंसने और नाले की कमजोर दीवारों के टूटकर पास के घरों को खोखला करने के कारण काफी नुकसान हुआ।
नालों के ऊपर डाली गई सीमेंट की पटालों व लोहे की जालियों ने भी पानी को रोकने का काम किया। फलस्वरूप मल्लीताल बाजार में रामलीला मैदान के पास दो जगह सड़क ही फट गई है। जबकि नारायणनगर वार्ड के लोगों को खतरनाक पहाड़ की तलहटी में बसने और नाले न होने का खामियाजा भुगतना पड़ा।
मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की (18 September 1880)
नैनीताल नगर का जो हाल हुआ है, उसके लिए निर्विवाद तौर पर केवल यहां अवैध तरीके से घर बनाने वाले ही नहीं, वरन शासन-प्रशासन भी बराबर का जिम्मेदार हैं। 1841 में स्थापित हुए इस नगर पर ‘ज्यों-ज्यों दवा की-मर्ज बढ़ता ही गया’ की उक्ति साकार बैठती है। नगर वासियों के अनुसार नगर को व्यवस्थित करने के नाम पर 1984 में की गई झील विकास प्राधिकरण की व्यवस्था ने नगर को पहले के मुकाबले कहीं अधिक अव्यवस्थित करने का कार्य किया है।
प्राधिकरण की ओर से नगर को बढ़ते जन दबाव से बाहर निकालने के लिए कोई प्रयास नहीं किये गए। प्राधिकरण तथा शासन-प्रशासन की उदासीनता और भविष्य की रणनीति बनाने में पूरी तरह अक्षमता परखने के लिए एक उदाहरण ही काफी होगा कि एक ओर पर्यटन नगरी में हर वर्ष पर्यटन बढ़ाने की बात कही गई, और दूसरी ओर 1984 से 21 वर्षों में एक भी नया होटल, यहां तक कि एक भी नया कक्ष बढ़ाने का औपचारिक और नियमों के अंतर्गत कोई प्रयास किया गया, जबकि अनाधिकृत तौर पर वह सब कुछ हुआ, जिसे करने की मनाही बताई गई।
दूसरी ओर आवासीय घरों के नवनिर्माण क्या मरम्मत की भी बेहद कठिन की गई प्रक्रिया का परिणाम रहा कि लोग चोरी-छुपे, रात-रात में बेहद कच्चे घरों का निर्माण करने लगे। इस प्रकार इस कठोरता ने नगर को और अधिक कमजोर करने का ही कार्य किया। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
मृतप्राय महायोजना से चल रही व्यवस्थाएं, 21 करोड़ के प्रस्तावों नहीं मिला ढेला भी (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
दूसरी ओर प्रशासनिक अक्षमता की ही बानगी है कि नगर को ‘बचाने’ के नाम पर नगर के कमजोर, असुरक्षित घरों को ध्वस्त करने का मंसूबा बना रहा नगर की व्यवस्थाओं के लिए जिम्मेदार प्रशासन 1995 में बनी और 2011 में पूरी हो चुकी मृतप्राय ‘नैनीताल महायोजना’ को अभी भी नगर पर थोपे हुए है, और पिछले चार वर्षों से नई महायोजना नहीं बना पाया है।
सवाल उठता है कि क्या महायोजना के पूरा होने से पूर्व ही नई महायोजना बनाने के प्रयास नहीं शुरू हो जाने चाहिए थे। और जो व्यवस्था समय पर अपने प्रबंध और स्वयं को समयानुसार ‘अपडेट’ न कर पाए, क्या वह नगर की अन्य मायनों में बेहतर देखरेख के काबिल है।
वहीं राज्य बनने से भी पूर्व 1998 से नगर की पर्यावरणीय व भूगर्भीय सुरक्षा में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाली नैनीताल झील विशेषज्ञ समिति एवं हिल साइड सेफ्टी कमेटी की केवल एक बैठक हुई है। 1990 के दशक में नगर की सुरक्षा पर विस्तृत अध्ययन करने वाली ब्रजेंद्र सहाय समिति की संस्तुतियां का कहीं अता-पता नहीं है। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
वहीं शासन स्तर पर अक्षमता देखनी हो तो यह उदाहरण पर्याप्त होगा कि वर्ष 2011 में लोनिवि प्रांतीय खंड के अधिकारियों ने नगर की धमनियां कहे जाने वाले नालों की मरम्मत के लिए जेएलएनयूआरएम को 20.80 करोड़ और राज्य योजना को 20.67 करोड़ के दो अलग-अलग प्रस्ताव भिजवाए, लेकिन यह दोनों प्रस्ताव शासन में धूल फांक रहे हैं।
जबकि नगरवासियों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न और नगर की धमनियां कहे जाने वाले नाले उत्तराखंड सरकार की प्राथमिकता में कहीं नहीं हैं। इसीलिए दशकों से नगर के नालों की मरम्मत के लिए एक रुपया नहीं मिला है, और मरम्मत की जगह सफाई के लिए मिलने वाली धनराशि से खानापूरी की जा रही है। पूर्व में लोनिवि ने भी इस हेतु 80 लाख रुपए शासन से मांगे थे, वह भी नहीं मिले। अब लोनिवि की जरूरत 3.6 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। इसका प्रस्ताव भी शासन में लंबित है, लेकिन नतीजा ढाक के वही तीन पात। नगर के नाले बुरी तरह से उखड़ गए हैं। उनकी दोनों ओर की दीवारें अनेक स्थानों पर टूट चुकी हैं।
कैच पिट पूरी तरह मलबे से पट चुके हैं, और जालियों में पत्थर अटके हुए हैं। ऐसे में वह अपनी दिशा बदलकर किनारे चोट कर बड़ी तबाही का कारण बनने की मानो पूरी तैयारी कर चुके हैं, लेकिन सरकार की आंखें नहीं खुल रही हैं। नाले गंदगी-मलबे से भी बुरी तरह पटे हैं, और इनकी सफाई के लिए नगर पालिका और लोक निर्माण विभाग के कर्मियों की मलबे और गंदगी को लेकर होने वाला विवाद निपटाने तक में भी प्रशासन की ओर से आज तक कोई सफल प्रयास नहीं किया जा सका है।
इन्हीं कारणों से गत पांच जुलाई को नाला नंबर तीन, छह व 20 ने अपनी हिम्मत के टूट जाने का इशारा कर भयावह रूप दिखा दिया है। नाला नंबर तीन ने चांदनी चौक रेस्टोरेंट के भीतर से बहकर तथा नाला नंबर छह से इंडिया व एवरेस्ट होटलों के बीच बहते हुए करीब 15 हजार क्यूसेक मलबा माल रोड पर लाकर पहाड़ खड़ा कर दिया। वहीं नाला नंबर 20 मल्लीताल रिक्शा स्टेंड वाला नाला स्टाफ हाउस तक अनेक घरों के लिए खतरा बन गया। इसके अपने पत्थर और मलबे से नगर का खूबसूरत कंपनी गार्डन पट गया है।
यही हाल मस्जिल तिराहे से डीएसबी की ओर जाने के मार्ग पर सबसे पहले पड़ने वाले नाला नंबर 24 के भी हैं। इस नाले ने भी किनारे मार करनी शुरू कर दी है। नाला नंबर 23 के भी यही हाल हैं, लेकिन सरकार के पास इन नालों की मरम्मत के लिए पैंसा नहीं है। मजबूर होकर डीएम के समक्ष झील विकास प्राधिकरण से नालों की तात्कालिक मरम्मत के लिए 10 लाख रुपए ‘मांगने’ जैसी नौबत आ गई है। इस सबसे सबक लेने के बजाय अब प्रशासन अपनी गलतियों पर परदा जनता पर कार्रवाई के जरिए डालने की तैयारी कर रहा है।
यानी 18 सितंबर 1880 को आई आपदा के बाद नगर के अंग्रेज निर्माताओं द्वारा दीर्घकालीन सोच के तहत बनाए गए नालों की स्थिति नगर को करीब सवा सौ वर्ष बिना मरम्मत सुरक्षित रखने के बाद अब दम तोड़ने की स्थिति में पहुंच गए है। बताने की जरूरत नहीं कि इन वर्षों में आई बारिश से नैनीताल को बचाने और अपनी उपस्थिति वाले स्थानों पर एक भी जनहानि न होने देने वाली नगर की इन धमनियों की दुर्दशा के लिए कौन बड़ा जिम्मेदार है। क्या नालों में गंदगी, मलबे के कट्टे डालने वालों को जिम्मेदार बताकर प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है।
जबकि वह नालों में गंदगी-मलबा डालने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की अपनी जिम्मेदारी भी पूरी नहीं कर पाया है। जबकि एक तथ्य यह भी है कि प्रशासन के पास नगर के कमजोर घरों का कोई सर्वेक्षण भी नहीं है, और वह हवा में कार्रवाई करने का मन बना रहा है। नगर के ‘कमजोर’ होने का भ्रम फैला कर कहा जा रहा है कि यह कार्रवाई नगर को ‘बचाने’ के लिए की जा रही है, लेकिन जिस तरह प्राधिकरण करीब 900 लोगों को पहले ही ध्वस्तीकरण नोटिस देने की बात कर रहा है, और दबी जुबान 10 हजार घरों को आदेश की जद में बता रहा है, उससे अंदाजा लगाना कठिन नहीं कि शहर बचेगा, या उजड़ जाएगा।
कालातीत महायोजना से भी नहीं हो पाया जोन एक व दो का निर्धारण
-वर्ष 2011 में कालातीत हो चुकी है नैनीताल महायोजना
-कालातीत महायोजना में प्रदर्शित जोन एक व दो का भी अब तक धरातल पर नहीं हो पाया है चिन्हीकरण
डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल। बीते वर्ष 2015 में पांच जुलाई को नगर में भीषण जल प्रलय जैसे हालातों के बाद सात नंबर क्षेत्र की भौगोलिक कमजोरी नुमाया हुई थी, इस पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुये नालों के निकट खतरनाक स्थिति में आये घरों को खाली कराने संबंधी आदेश दिये थे। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
इस पर नगर में अगस्त माह में बड़ा जनांदोलन हुआ, जिसके फलस्वरूप राज्य सरकार हरकत में आई और उच्च न्यायालय में पक्ष रखते हुये इस क्षेत्र को भूगर्भीय तौर पर जोन एक व दो में बताते हुये खतरनाक घरों का चिन्हीकरण और चिन्हीकृत परिवारों को अन्यत्र पुनर्वासित करने के लिये क्रमश: केएमवीएन के एमडी धीराज गब्र्याल और डीएम दीपक रावत की अध्यक्षता में दो कमेटियां बनाने की जानकारी दी। गौरतलब है कि इस क्षेत्र को जिन जोन एक व दो में बताया गया, वह दरअसल 1995 में बनी और 2011 में समाप्त हो चुकी नैनीताल महायोजना के आधार पर था। यानी महायोजना सही अर्थों में अस्तित्व में ही नहीं है।
दूसरे एमडी धीराज गब्र्याल की अध्यक्षता वाली कमेटी के कार्य में नक्शे में जोन एक व दो के स्थानों का वास्तव में धरातल पर निर्धारण करना कठिन साबित हुआ, इसके लिये जीएसआई की वैज्ञानिकों की टीम की सहायता ली गई, लेकिन बताया गया है कि अभी भी जीएसआई ने इस बाबत रिपोर्ट ही नहीं दी है। वहीं दूसरी ओर पुर्नस्थापन संबंधी रिपोर्ट देने वाली डीएम की अध्यक्षता वाली दूसरी कमेटी ने खुर्पाताल बाईपास के पास की सरकारी भूमि को यहां के लोगों को विस्थापित करने के लिये चयनित किया है। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
लेकिन अभी इस पर भी शासन से स्थिति साफ नहीं हुई है, जिसके बाद भी इस भूमि के लिये संभावित विस्थापितों को मनाने, भूमि को कार्यदायी विभाग को हस्तांतरित करने, उस पर विस्थापितों के लिये भवन बनाने आदि की लंबी प्रक्रिया शुरू हो पायेगी। इसी तरह तीसरी ओर चार वर्ष पूर्व कालातीत हो चुकी नैनीताल महायोजना को नये शिरे से बनाने की योजना भी बीच में इस हेतु निविदा प्रक्रिया आमंत्रित किये जाने के बाद जहां की तहां अटकी पड़ी है। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
आगे झील विकास प्राधिकरण के सचिव सीएस मर्तोलिया ने बताया कि आगामी १८ अप्रैल को कुमाऊं आयुक्त अवनेंद्र सिंह नयाल की अध्यक्षता में बैठक में इस बाबत कोई निर्णय लिया जा सकता है। वहीं पहली कमेटी के अध्यक्ष एमडी धीराज गब्र्याल ने बताया कि शीघ्र ही जीएसआई के वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट मिलने की उम्मीद है, जिसके बाद स्थिति साफ होने की उम्मीद है। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
सरकार की हाई पावर कमेटी ने नहीं माने नैनीताल वासियों के सुझाव, जोन-1 व 2 क्षेत्रों के केवल असुरक्षित भवनों का होगा चिन्हीकरण
-केएमवीएन के एमडी धीराज गर्ब्याल की अध्यक्षता में गठित समिति करेगी निर्धारण, आगामी शुक्रवार यानी 28 अगस्त को होगी बैठक
-ध्वस्तीकरण से प्रभावित परिवारों के यथासंभव विस्थापन के लिए भी सुरक्षित क्षेत्र होंगे चिन्हित
डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद शासन-प्रशासन में ध्वस्तीकरण की जद में आए नैनीताल के महायोजना में जीएसआई द्वारा जोन एक व दो में रखे गए क्षेत्रों का नगर वासियों एवं यहां तक कि सत्तारूढ़ दल द्वारा दिए गए सुझावों को भी सरकार ने नहीं माना है। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली हाईपावर कमेटी की बैठक में महज नगर के जोन एक व दो में स्थित भवनों के असुरक्षित एवं अत्यधिक संवेदनशील होने के बाबत सर्वेक्षण किए जाने की बात कही गई है, और सुरक्षित भवनों के लिए कुछ भी नहीं कहा गया है।
यानी सर्वेक्षण होने के बाद भी इन क्षेत्रों के सभी घरों पर ध्वस्तीकरण की तलवार लटकी रहेगी। खास बात यह भी है कि इस सर्वेक्षण में भूवैज्ञानिकों को भी शामिल नहीं किया गया है, जबकि नगर के सुरक्षित क्षेत्रों के लिए बनी समिति में भूवैज्ञानिकों को रखा गया है। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
इसके अलावा ध्वस्तीकरण से प्रभावित परिवारों के यथासंभव विस्थापन के लिए सुरक्षित क्षेत्रों का चयन करने के लिए नैनीताल डीएम की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है, जिसमें अन्य सदस्यों के साथ ही भू वैज्ञानिक एवं अन्य तकनीकी विभागों का सहयोग लिया जा सकेगा। इसके साथ ही प्राधिकरण से जोन-तीन व चार के क्षेत्रों में अपेक्षाकृत सुरक्षित उपक्षेत्रों में शमन योग्य (कंपाउंडेबल) एवं भूगर्भीय दृष्टि से उपयुक्त क्षेत्रों में कंपाउंडिंग की कार्रवाई करेगा। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
साथ ही प्राधिकरण से नगर की पुनरीक्षित महायोजना तैयार करने के लिए कार्रवाई शीघ्र प्रारंभ करने और इस हेतु सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए जाने वाले आधार मानचित्र में भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील उपक्षेत्रों का चिन्हीकरण व सीमांकन करने को भी कहा गया है। (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
यह भी पढ़ें:
नैनीताल से हाईकोर्ट हटाओ : कोश्यारी (राष्ट्रीय सहारा, देहरादून संस्करण, 3 अगस्त 2015 , पेज-2)
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प्रतिक्रियाएं : (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
Sunil Agrawal : नवीन जी आपने 18 सितम्बर को नैनीताल के लिए मनहूस दिन बताया है, पर नैनीताल में पिछले कुछ वर्षों से तो इस दिन कुछ समाजसेवी संस्थाये झील के किनारों पर कुछ सफाई करके अपनी फोटो अखबारों में छपवा कर खुश हो लेती हैं जमीन पर कुछ भी हकीकत में दिखता नहीं है, वर्ना आज जो वास्तिवकता में हो रहा है उसका खामियाजा शायद हर नैनीताल वासी को ही भुगतना पड़ेगा, आज जिस तरह से नैनीताल झील सूख रही हैं उस पर काफी मनन व चिंता का विषय है वर्ना हम लोगो के पास पछताने के अलावा कुछ नहीं आएगा,
हर वर्ष सरकारी फण्ड की बंदरबाट ऐसे ही चलती रहेगी, हर वर्ष नैनी झील के नाम पर मोटी रकम आती रहेगी, पर झील का कुछ भी जीर्णोद्धार नहीं हो पाए, और हम लोग इसी मे खुश हो लें कि अब अगली बार सफाई और विकास की जिम्मेदारी एक से दूसरे विभाग में ट्रांसफर होती रहे । कभी सीमेंट हाउस के पास या फिर कभी सात नंबर की पहाड़ी से मलवा झील में समाता रहेगा, और झील पानी के बजाय मलवा-मिट्टी से पट जाए,
और फिर गर्मियो में होने वाली पार्किंग का भी समाधान हो जाए, सचमुच में सब कुछ बहुत अफसोसजनक है, सोच सोच कर ही आने वाले दिनों की याद कर लगता है कि एक पर्यटक स्थल की समय से पहले ही मानचित्र से समाप्ति हो जाए । अभी भी समय है जब हम लोगो को अपने व्यक्तिगत/राजनीतिक फायदों से उप्पर उठकर कुछ ठोस करने का प्रयास करें ।
- Sunil Agrawal : आज मानवीकृत अतिक्रमण व कंक्रीट के जंगल बनने के बाद एक नयी पहल की आवस्यकता है, वर्ना फिर किसी ऐसे ही मनहूस दिन को न याद करना पड़े ।
- Kamlesh Dhondiyal : Nice da (18 September 1880, History, History of Land Slides in Nainital, Nainital Land Slides, Nainital Model)
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