नैनीताल को आज मिलीं सर्वधर्म की दुवाएं, पर क्या आपको पता है नैनीताल आये पहले अंग्रेज बताये जाने वाले बैरन ने कॉपी किया था 16 वर्ष पहले आये ट्रेल का आलेख
नवीन समाचार, नैनीताल, 17 नवम्बर 2020। माना जाता है कि नगर में बसासत शुरू करने वाले पहले अंग्रेज पीटर बैरन 18 नवंबर 1841 को पहली बार नैनीताल आए थे। इसलिए इस दिन को कुछ लोग नगर के जन्म दिन के रूप में मनाते हैं। जबकि अन्य का मानना है कि आज के दिन से नगर में नए दौर में बसासत शुरू हुई थी, जबकि शोध अध्ययनों में इससे पहले 1823 में ही कुमाऊं के दूसरे कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल के नैनीताल आने के भी प्रमाण हैं।
बहरहाल, पिछले एक-डेढ़ दशक से इस दिन पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला में इस वर्ष का कार्यक्रम मल्लीताल श्रीराम सेवक सभा में आयोजित हुई। इस मौके पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई व तिब्बती धर्म गुरुओं के द्वारा हवन-यज्ञ एवं अन्य माध्यमों से नगर को दुवाएं दी गईं। चार केक भी काटे गए। वहीं करीब 100 गरीब वर्ग के बच्चों के लिए कॉपी, पेंसिल आदि लेखन सामग्री उनके घरों को भिजवाई गई। कार्यक्रम में अपर प्रमुख वन संरक्षक कपिल जोशी, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश जोशी, भाजपा नगर मंडल अध्यक्ष आनंद बिष्ट, वरिष्ठ फिजीशियन डा. एमएस दुग्ताल, आचार्य केसी सुयाल, लक्ष्मी नारायण लोहनी, मो. दिलावर, पूर्व सभासद ईशा साह, जगदीश बवाड़ी, डीएन भट्ट, मुन्नी तिवाड़ी, आशा शर्मा, नीलू एल्हेंस, गीता साह, प्रगति जैन, वर्षा साह इदरीश मलिक व हरीश राणा सहित कई अन्य लोग मौजूद रहे।
बैरन ने कॉपी किया ट्रेल का आलेख
नैनीताल। एक शोध अध्ययन के अनुसार 1815 से 1830 के बीच कुमाऊं के दूसरे कमिश्नर रहे जॉर्ज विलियम ट्रेल द्वारा कुमाऊं के दूसरे सेटलमेंट के दौरान किए गए अध्ययन के आधार पर 1828 में प्रकाशित 99 पृष्ठों में कुमाऊं के भूगोल एवं तत्कालीन स्थितियों पर ‘स्टेटिस्टिकल स्केच ऑफ कुमाऊं’ नाम से आलेख लिखा। इस आलेख में पहली बार नैनीताल का वही जिक्र आता है। इस आलेख में लिखा गया है, ‘कुमाऊं में बमौरी दर्रें के पास छःखाता जिले में नागनी ताल, भीम ताल और नौ कुन्तिया ताल स्थित हैं। इनमें पहला यानी नागनी ताल सबसे बड़ा, करीब एक मील लंबा और तीन-चौथाई मील चौड़ा है। इस तथा अन्य सभी झीलों में पानी आंतरिक श्रोतों (स्प्रिंग्स) से आता है और पूरी तरह से साफ है। इस झील की गहराई बीच में अत्यधिक है।’ उल्लेखनीय है कि पीटर बैरन के द्वारा 1844 में ‘नोट्स ऑफ वांडरिंग इन द हिमाला’ में छद्म नाम ‘पिलग्रिम’ से लिखे गए लेख में कमिश्नर टेªल के आलेख को केवल ‘नागनी ताल’ की जगह ‘नयनी ताल’ लिखने के अलावा शब्दशः लिखा है, तथा ट्रेल की अन्य लोगों (अंग्रेजों) को जानकारी न देने को लेकर जमकर आलोचना भी की है। इसके अलावा एडिनबर्ग लंदन की कंपनी डब्लू एंड एके आन्स्टन लिमिटेड द्वारा 1823 में प्रकाशित तत्कालीन भारतवर्ष के एटलस मानचित्र में नैनीताल की उपस्थिति दर्शाई जा चुकी थी। इतिहासकार डा. अजय रावत की वर्ष 2014 में प्रकाशित पुस्तक में भी बताया गया है कि अंग्रेजी दौर में बसासत से पूर्व इस स्थान पर वर्तमान पाषाण देवी का मंदिर था, जिसकी पशुओं की नई संतति होने पर पहले दूध एवं दुग्ध उत्पादों से पूजी जाने वाली बौधांण देवी के रूप में पूजा की जाती थी। यहां वर्ष में एक बार मेला लगता था, जिसमें निकटवर्ती गांवों के लोग शामिल होते थे। इस मंदिर की स्थापना 1823 में नैनीताल आए पहले अंग्रेज अधिकारी जॉर्ज विलियम ट्रेल ने ही की थी। अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी इस स्थान की धार्मिक मान्यताओं को सुरक्षित नहीं रख पाएंगे, यह सोचकर उन्होंने इस स्थान के बारे में किसी को नहीं बताया था।
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-आज के ही दिन यानी 18 नवंबर 1841 को अंग्रेज शराब व्यवसायी पीटर बैरन के यहां पड़े थे कदम
नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 18 नवंबर 2019। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 18 नवंबर 1841 को नैनीताल में पीटर बैरन नाम के पहले अंग्रेज के कदम पड़े थे। इस आधार पर इधर कुछ वर्षों से इस दिन नगर का ‘जन्मोत्सव’ मनाने की परंपरा चल पड़ी है। नगर के एक वर्ग में आज के दिन को नगर का ‘जन्म दिन’ कहे जाने पर ऐतराज भी है। क्योंकि उनका मानना है कि नैनीतालें 18 नवंबर 1841 से पूर्व भी अस्तित्व में था। स्कंद पुराण में यहां के सरोवर को मानसरोवर के समान पुण्य प्रदान करने वाला ‘त्रिऋषि सरोवर’ कहा गया है। वहीं 1841 से 18 वर्ष पूर्व 1823 में इस स्थान के बारे में आलेख प्रकाशित हो चुका था और 1823 के अंग्रेजी दौर मानचित्र में भी इस स्थान को प्रदर्शित किया गया था।
यह भी कहा जाता है कि 1841 में आज ही के दिन यानी 18 नवंबर को हुए एक घटनाक्रम से इस नगर का बनना और बिगड़ना साथ ही प्रारंभ हो गया था। इस दिन नगर में एक अंग्रेज शराब व्यवसायी पीटर बैरन के कदम पड़े थे, जिसने इस नगर में अपने घर पिलग्रिम लॉज के साथ आधुनिक स्वरूप में बसासत की शुरुआत की, और ‘नोट्स ऑफ वांडरिंग इन द हिमाला’ में इस नगर का एक तरह से विज्ञापन कर यहां बसने के लिए अंग्रेजों को आमंत्रित किया।
जॉर्ज विलियम ट्रेल थे नगर में आने वाले पहले आधिकारिक अंग्रेज
नैनीताल। यह सच्चाई है कि 1841 से 18 वर्ष पहले ही तत्कालीन ब्रिटिश कुमाऊं के दूसरे आयुक्त जॉर्ज विलियम ट्रेल यहां आ और ‘स्टेटिस्टिकल स्केच ऑफ कुमाऊ टिल 1823’ में नैनीताल के विषय में दुनिया को जानकारी दे चुके थे, और यह नगर 1823 के मानचित्र में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराता हुआ मौजूद था। नगर के तल्लीताल बाजार में स्थित ‘शाम लाल एंड सन्स’ की एक दुकान 1840 में अपनी स्थापना का दावा करती हुए आज भी मौजूद है। लेकिन तो भी नगर के सही-गलत इतिहास के अनुसार 18 नवंबर 1841 के दिन को नगर की बसासत शुरू होने एवं ‘जन्मोत्सव’ के रूप में मनाने की परंपरा भी हालिया कुछ वर्षों से चल रही है।
बसासत शुरू होते ही प्रकृति ने चेताना भी शुरू कर दिया था
नैनीताल। नगर में बसासत शुरू करने के दौरान नैनीताल की मिल्कियत के तत्कालीन स्वामी, थोकदार नर सिंह से नगर को हड़पने की प्रक्रिया के दौरान नैनी झील में नाव से ले जाकर डुबोने का प्रयास किया, और जबरन स्वामित्व ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के नाम करवाया। आगे नगर में निर्माण शुरू हुए, जिनका प्रभाव यह रहा कि अपनी बसासत के दो दशक बाद ही 1867, 1880, 1898 व 1924 में भयंकर भूस्खलनों के साथ नगर ने अपनी कमजोर भूगर्भीय संरचना को लेकर संदेश दिये, बावजूद नगर में निर्माण जारी रहे, और 1880 में अपनी बसासत की ही तारीख यानी 18 सितंबर को तो प्रकृति ने ऐसा भयावह संदेश दिया कि उस भूस्खलन में तब करीब 2,500 की जनसंख्या वाले तत्कालीन नैनीताल नगर के 151 लोगों को जिंदा दफन करने के साथ ही नगर का नक्शा ही बदल दिया था। तब तत्कालीन हुक्मरानों ने कुछ सबक लेते हुए जरूर नगर को सुरक्षित करने के लिए प्रयास किए। कुमाऊं के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर सीएल विलियन की अध्यक्षता में अभियंताओं एवं भू-गर्भ वेत्ताओं की ‘हिल साइड सेफ्टी कमेटी’ का गठन किया था। इस समिति में समय-समय पर अनेक रिपोर्ट पेश कीं, जिनके आधार पर नगर में बेहद मजबूत नाला तंत्र विकसित किया गया, जिसे आज भी नगर की सुरक्षा का मजबूत आधार बताया जाता है। इस समिति की 1928 में नैनी झील, पहाड़ियों और नालों के रखरखाव के लिये आई समीक्षात्मक रिपोर्ट और 1930 में जारी स्टैंडिंग आर्डर आए, जिनकी रिपोर्टों को तब से लेकर आज तक शासन-प्रशासन पर लगातार ठंडे बस्ते में डालने के आरोप लगते रहते हैं। नगर में स्थानीय लोगों के तो नियम कड़े से कड़े होते चले गये, परंतु बाहरी बिल्डरों, धनवानों के लिए ‘ग्रीन बेल्ट’ में भी निर्माण अनुमति लेकर होते रहे। इधर कुछ समय से नालों को साफ रखने के प्रति प्रशासनिक स्तर पर सक्रियता देखी जा रही है।
नगर का 178वां बसासत-जन्मोत्सव कार्यक्रम आज
नैनीताल। इस वर्ष नगर का 178वां स्थापना-जन्म दिवस 18 नवंबर को अपराह्न दो बजे से मल्लीताल डीएसए मैदान स्थित बास्केटबॉल कोर्ट में आयोजित किया गया है। पूर्व में इस कार्यक्रम को नैनीताल का ‘जन्मोत्सव’ बताया जाता था, किंतु इस वर्ष संभवतया पहली बार ‘बसासत (जन्मोत्सव)’ बताते हुए बसासत शब्द जोड़ा गया है। इस कार्यक्रम में प्रदेश के परिवहन एवं समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य मुख्य अतिथि, आईएफएस डा. कपिल जोशी एवं विधायक संजीव आर्य बतौर विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होंगे। इस मौके पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा, नगर के इतिहास की जानकारी, स्कूली बच्चों को उपहार वितरण व अन्य कार्यक्रम होंगे। इससे पूर्व श्री आर्य का नारायण नगर वार्ड में बीएसएनएल के टावर का शिलान्यास करने और नैनीताल क्लब में पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलने का भी कार्यक्रम है।
1995 में नाम भर की त्रुटिपूर्ण नगर योजना…
नैनीताल। 1995 में नाम भर की त्रुटिपूर्ण नगर योजना बनी, उसके अनुरूप कोई कार्य नहीं हुए, और 2011 में वह कालातीत भी हो गयी, बावजूद सात वर्षों से व्यवस्था नयी नगर योजना नहीं बना पाई। स्थिति यह है कि यहां अधिकारी अब केवल उच्च न्यायालय में चल रही जनहित याचिका की सुनवाई के ठीक एक दिन पहले जागते हैं, और फिर सो जाते हैं। इसका प्रभाव यह है कि बीते एक दशक में नगर की प्राण-आधार व हृदय कही जाने वाली नैनी झील वर्ष में भरे रहने से अधिक सूख जाने के लिए चर्चा में रहती है। उच्च न्यायालय को नगर में सैलानियों के वाहनों का प्रवेश भी प्रतिबंधित करने जैसे आदेश देने पड़े हैं। इसलिए इस दिन का कितना और कैसा उत्सव मनाया जाए, यह सवाल हर वर्ष आज के दिन खड़ा होता है, साथ ही अब भी संभलने का संदेश भी देता है।
1841 में कथित तौर पर ‘खोजे गए’ नैनीताल की 1823 से संदर्भित पुरानी दुर्लभ तस्वीरें, पुराने चित्रों में नैनीताल की चिर युवा अद्वितीय खूबसूरती :
सम्मानित छायाकारों के प्रति कृतज्ञता के साथ