बाखलीः पहाड़ की परंपरागत हाउसिंग कालोनी, जानें उत्तराखंड की सबसे बड़ी बाखली के बारे में
डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और वह समाज में एक साथ मिलकर रना पसंद करता है। आज के एकाकी व एकल परिवार के दौर में भी मनुष्य समाज के साथ एक तरह की सुविधाओं युक्त कालोनियों में रहना पसंद करता है। बीते दौर में भी मानव की यही प्रवृत्ति रही थी। खासकर उत्तराखंड के गांवों में घरों की लंबी श्रृंखला होती थी, जिसे बाखली (बाखई) कहा जाता है।
पहाड़ में अनेक गांवों में ऐसी बाखली हैं, जिनमें सैकड़ों परिवार एक साथ रहा करते थे। आज के बदलते दौर में भी कई गांवों में ऐसी बाखली मौजूद हैं, जो सामाजिकता का संदेश देती हैं। इन्हें पहाड़ की परंपरागत हाउसिंग कालोनियां भी कहा जा सकता है।
नैनीताल जनपद के मौना क्षेत्र में शिमायल के पास कुमाटी नाम का एक गांव है, जहां स्थित बाखली में करीब 80 मवासे (परिवार) एक साथ रहते हैं। बाखली पहाड़ के घरों की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें पहाड़ के परंपरागत पत्थर व मिट्टी के गारे से बने तथा चपटे पत्थरों (पाथरों) से छाये गए दर्जनों घर आपस में रेल के डिब्बों की तर बाहर ही नहीं भीतर से भी जुड़े रहते हैं, और इनमें घरों के बाहर आए बिना भी रेल के डिब्बों की तरह भीतर-भीतर ही एक से दूसरे घर में जाया जा सकता है।
सामान्यतया घरों में बनने वाले व्यंजनों का आदान-प्रदान, एक-दूसरे के घरों में दुःख-तकलीफ तथा कामकाज में सहयोग और खासकर गांवों में रात्रि में बाघ आदि जंगली जानवरों के आने की स्थिति में घरों के भीतर-भीतर ही आने-जाने की यह व्यवस्था खासी कारगर साबित होती रही है।
इससे गांव के लोगों में आपसी संबंध भी काफी मधुर रहते हैं, क्योंकि लोग एक-दूसरे से अधिक गहराई तक जुड़े रहते हैं। इन घरों में जहां दरवाजे व खिड़कियों (द्वार-म्वाव) पर लकड़ी की नक्काशी पहाड़ की समृद्ध काष्ठ कला के दर्शन कराती है, वहीं निचली मंजिल में पशुओं के लिए गोठ, ऊपरी मंजिल में बाहरी कमरा-चाख (जहां चाख यानी अनाज पीसने के लिए हाथ से चलाई जाने वाली चक्की भी होती है),
पीछे की ओर रसोई, बाहर की ओर पंछियों के लिए घोंसले, छत में पाथरों के बीच से धुंवे के बाहर निकलने और रोशनी के भीतर आने के प्रबंध तथा आंगन (पटांगण) में बैठने के लिए चौकोर पत्थरों (पटाल) के बीच धान कूटने की ओखली (ऊखल) आदि के प्रबंध भी होते थे।
लाल मिट्टी व गोबर से लीपे इन घरों में पहाड़ की समृद्ध परंपरागत चित्रकारी-ऐपण भी देखने लायक होती हैं। बदलते दौर में जहां 1970 के दशक में आए वनाधिकारों के बाद गांवों में पत्थर, लकड़ी आदि वन सामग्री न मिलने की वजह से सीमेंट-कंक्रीट से घर बनने लगे, और पुराने घर भी उनमें रहने वाले लोगों के पलायन की वजह से खाली छूटने के कारण खंडहर में तब्दील होने लगे हैं। इसके बावजूद कुमाटी जैसे अनेक गांव हैं, जहां के ग्रामीणों ने आज भी अपनी विरासत को सहेज कर रखा हुआ है।
नैनीताल जनपद के ग्राम कुमाटी स्थित कुमाऊँ मंडल की सबसे लंबी बाखली 50 लाख रुपए से होगी पुर्नजीवित (Bakhli-Traditional Housing Colony of the Hills)
नवीन समाचार, नैनीताल, 2 फरवरी 2023। नैनीताल जनपद के रामगढ़ विकासखंड के ग्राम कुमाटी में कुमाऊँ मंडल की सबसे लंबी बाखली यानी घरों की सबसे लंबी श्रृंखला है। प्रदेश भर में हो रहे पलायन की मार इस बाखली और यहां रहने वाले लोगों पर भी पड़ी है। इसी समस्या के दृष्टिगत अब इस बाखली को पर्यटन विभाग की ओर से पुर्नजीवित करने के प्रयास शुरू होने जा रहे हैं। इस हेतु शासन से 50 लाख रुपये निर्गत भी हो गए हैं। यह भी पढ़ें : नैनीताल: डांठ पर कार से टकराई तेज रफ्तार स्पोर्ट्स बाइक, भयावह वीडियो भी आया सामने
इसी कड़ी में प्रदेश के पर्यटन सचिव श्री सचिन कुर्वे ने वीडियो कॉफ्रेंसिंग के माध्यम से नैनीताल के जिलाधिकारी सहित अन्य संबंधितों के साथ कुमाऊँ की कुमाटी गांव स्थित इस सबसे बड़ी बाखली को पुर्नजीवित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण बैठक ली। बैठक में श्री कुर्वे ने जिलाधिकारी को निर्देश दिये हैं कि स्थानीय रोजगार को बढ़ावा और गॉव के पलायन को रोकने के लिए हरसम्भव प्रयास करें। यह भी पढ़ें : नैनीताल के गजब के कुत्ते ही क्या पिल्ले भी, गुलदार दुम दबाकर भागा, देखें वीडियो…
उन्होंने कहा कि पर्यटन विभाग से इस स्थान का सौन्दर्यकरण करने के साथ ही क्राफ्ट म्यूजियम, ओपन थियेटर, स्थानीय व्यंजनों और सांस्कृति को बढ़ावा देने के लिए शासन स्तर से 50 लाख रूपये निर्गत कर दिये गये हैं। विडियों कॉफ्रेंसिंग में जिला पर्यटन विकास अधिकारी बृजेन्द्र पाण्डे, पीएस मनराल, प्रकाश कपिल, गोपाल दत्त जोशी, तारा दत्त जोशी, प्रमोद कुमार, डॉ पंकज, कवि कुमार के साथ स्थानीय ग्राम प्रधान, जिला पंचायत सदस्य एवं आरोही संस्था के निदेशक आदि लोग उपस्थित रहे। (डॉ.नवीन जोशी)
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