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March 17, 2025

उत्तराखंड बना UCC लागू करने वाला देश का पहला राज्य, जानें शादी, तलाक, लिव-इन संबंधों, इद्दत-हलाला, बहुविवाह, जाति व धर्म के रीति-रिवाजों, गोद लेने, उत्तराधिकार आदि के नियम विस्तार से…

Rules for Polygamy Live in Halala Bahu Vivah Iddat in Uttarakhand UCC Uniform Civil Code

नवीन समाचार, देहरादून, 27 जनवरी 2025 (UCC-Full Detail of Provisions about Communal law)उत्तराखंड में ढाई वर्षों की तैयारियों के बाद आज एक ऐतिहासिक क्षण आया जब समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू कर दिया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुख्य सेवक सदन में यूसीसी पोर्टल ucc.uk.gov.in और इसकी नियमावली का लोकार्पण किया। साथ ही, इसकी अधिसूचना भी जारी की गई। यह कदम उठाने के साथ उत्तराखंड स्वतंत्र भारत के इतिहास में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बन गया। पढ़ें UCC के समस्त प्रविधान यहाँ क्लिक करके….

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विवाह, तलाक और विरासत से जुड़े व्यापक प्रावधान

UCC-Full Detail of Provisions about Communal law उत्तराखंड UCC की नियामवाली का काम पूरा, CM को सौंपी जाएगी रिपोर्ट, 9 नवंबर  को लागू होने की उम्मीदप्राप्त जानकारी के अनुसार यूसीसी विधेयक में किसी विशेष धर्म का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन यह विधेयक कई पुरानी रूढ़ियों, परंपराओं और प्रथाओं को समाप्त करने का आधार बनाता है।

  • विवाह पंजीकरण अनिवार्य:

    • 26 मार्च 2010 के बाद विवाह करने वाले सभी दंपतियों के लिए शादी का पंजीकरण अनिवार्य होगा।
    • नगर पालिका, ग्राम पंचायत और नगर निगम स्तर पर पंजीकरण की व्यवस्था रहेगी।
    • पंजीकरण न कराने पर ₹25,000 तक का अर्थदंड और सरकारी सुविधाओं से वंचित होने का प्रावधान है।
    • लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष तय की गई है।
  • महिलाओं के अधिकार:

    • महिलाएं तलाक के लिए पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों का उपयोग कर सकती हैं।
    • हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया है।
    • बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करने पर संबंधित व्यक्ति से तलाक और गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा।
  • संपत्ति में समान अधिकार:

    • बेटा और बेटी को समान संपत्ति अधिकार दिए गए हैं।
    • जायज और नाजायज बच्चों के बीच कोई भेदभाव नहीं रहेगा।
    • गोद लिए, सरोगेसी या अन्य तकनीकों से जन्मे बच्चों को जैविक संतान का दर्जा मिलेगा।
    • वसीयत के माध्यम से किसी भी व्यक्ति को संपत्ति देने की स्वतंत्रता रहेगी।

अवैध शादी से हुई संतान को भी मिलेगा संपत्ति में अधिकार, इस तरह होंगे विवाह रद्द व अमान्य

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने के बाद अवैध शादी से पैदा हुई संतानों को भी संपत्ति में अधिकार मिलेगा। यूसीसी के निर्धारित मानकों को पूरा न करने पर शादियां अवैध घोषित की जा सकती हैं। यूसीसी में शादियों की हर रस्म का सम्मान किया जाएगा। फिर वह चाहे किसी भी धर्म, संप्रदाय आदि के रिवाजों के तहत हुई हों। ये सभी विवाह यदि दोनों पक्ष मानकों को पूरा करते हैं तो वैध माने जाएंगे।

शासन ने शादी की रस्मों को लेकर स्थिति को साफ किया है। यूसीसी के तहत विवाह समारोह उसी परंपरागत तरीके से पूरे किए जा सकेंगे जैसे कि अब तक होते आए हैं। इनमें सप्तपदी, निकाह, आशीर्वाद, होली यूनियन या आनंद विवाह अधिनियम 1909 के तहत आनंद कारज शामिल हैं। इसके अलावा विशेष विवाह अधिनियम 1954 और आर्य विवाह मान्यकरण अधिनियम 1937 के अनुसार हुए विवाह भी मान्य होंगे।

शासन की ओर से बताया गया है कि अधिनियम सभी धार्मिक व प्रथागत रीति-रिवाजों का सम्मान करता है। हालांकि, यह जरूरी है कि विवाह के लिए अधिनियम की बुनियादी शर्तें मसलन उम्र, मानसिक क्षमता और जीवित जीवनसाथी का न होना आदि पूरी की जाएं। इससे राज्य के लोगों की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक आजादी सुरक्षित रहेगा। जबकि, विवाह के मूलभूत कानूनी मानकों का पालन भी सुनिश्चित होता है।

इस तरह हो सकेंगे विवाह रद्द व अमान्य

अधिनियम पारंपरिक विवाह समारोहों को यथावत मान्य करता है, फिर भी यह कुछ ऐसे कानूनी प्रावधान रखता है जिनके तहत विवाह अमान्य या रद्द करने योग्य घोषित किया जा सकता है। अधिनियम लागू होने के बाद हुए किसी विवाह में ऐसे तथ्य सामने आते हैं जो अधिनियम की मुख्य शर्तों का उल्लंघन करते हैं तो विवाह अमान्य माना जाएगा। इनमें विवाह के समय किसी पक्षकार का पहले से जीवित जीवनसाथी होना, मनोवैधानिक रूप से वैध सहमति देने में असमर्थता या निषिद्ध संबंधों के दायरे में विवाह शामिल हैं।

ऐसी स्थिति में दोनों पक्षकारों में से कोई भी अदालत में याचिका दायर करके विवाह को शून्य घोषित करने की मांग कर सकता है। यही नहीं यदि कोई विवाह अमान्य या रद्द करने योग्य घोषित भी कर दिया जाए, तब भी उससे जन्म लेने वाले बच्चे को वैध माना जाता है।

लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण अनिवार्य

लिव इन रिलेशन में आने के बाद एक माह के भीतर अगर पंजीकरण नहीं कराया तो कानून सजा देगा। समान नागरिक संहिता में इसके प्रावधान किए गए हैं। वहीं, लिव इन के दोनों साथियों में से कोई भी इस रिश्ते को खत्म कर सकता है, जिसकी सूचना सब रजिस्ट्रार को देनी होगी। यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। 

इसके मुताबिक, सिर्फ एक वयस्क पुरुष व वयस्क महिला ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे। वे पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप या प्रोहिबिटेड डिग्रीस ऑफ रिलेशनशिप में नहीं होने चाहिए। लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अनिवार्य पंजीकरण एक रजिस्टर्ड वेब पोर्टल पर कराना होगा। लिव इन में आने के एक माह के भीतर अगर पंजीकरण नहीं कराया तो न्यायिक मजिस्ट्रेट के दोषी ठहराए जाने पर तीन माह का कारावास व 10 हजार का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

अगर कोई ऐसा दावा करता है, जो मिथ्या है या रजिस्ट्रार के निर्णय को प्रभावित कर रहा, तो उसका पंजीकरण स्वीकार नहीं होगा और तीन माह के कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।  लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाला नोटिस जारी होने के बाद सहवासी संबंध का कथन प्रस्तुत करने में विफल रहता है, तो उसे छह माह कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों का दंड मिलेगा।

लिव इन में भी मांग सकेगी भरण पोषण

अगर किसी महिला को पुरुष छोड़ देता है, तो महिला को अधिकार होगा कि वह भरण पोषण की मांग करते हुए न्यायालय के सामने पक्ष प्रस्तुत कर सकेगी। वहीं, लिव इन पंजीकरण के बाद उन्हें रजिस्ट्रार पंजीकरण की रसीद देगा। उसी रसीद के आधार पर वह युगल किराये पर घर या हॉस्टल या पीजी ले सकेगा। पंजीकरण कराने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी।

बच्चे को सभी अधिकार मिलेंगे 

लिव इन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उस युगल का जायज बच्चा ही माना जाएगा और उस बच्चे को जैविक संतान के समस्त अधिकार प्राप्त होंगे। लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को संबंध विच्छेद का पंजीकरण कराना भी अनिवार्य होगा। समान नागरिक संहिता में गोद लिए बच्चों, सरोगेसी द्वारा जन्म लिए गए बच्चों व असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी द्वारा जन्म लिए गए बच्चों में कोई भेद नहीं होगा। उन्हें अन्य की भांति जैविक संतान ही माना गया है।

संहिता में ये शामिल नहीं

  • दत्तक ग्रहण किशोर न्याय अधिनियम 2015 

  • संरक्षण, संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम 1890 

जाति व धर्म के रीति-रिवाजों से छेड़छाड़ नहीं, जानें शादी, लिव इन व संपत्ति को लेकर प्रावधान की खास बातें : शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य

  • विधेयक में 26 मार्च वर्ष 2010 के बाद से हर दंपती के लिए तलाक व शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
  • ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका स्तर पर पंजीकरण का प्रावधान।
  • पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25 हजार रुपये का अर्थदंड का प्रावधान।
  • पंजीकरण नहीं कराने वाले सरकारी सुविधाओं के लाभ से भी वंचित रहेंगे।
  • विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 और लड़की की 18 वर्ष तय की गई है।
  • महिलाएं भी पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों को तलाक का आधार बना सकती हैं।
  • हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं को समाप्त किया गया है। महिला का दोबारा विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक होगी।
  • कोई बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा।
  • एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।
  • पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी।
    संपत्ति में बराबरी का अधिकार
  • संपत्ति में बेटा और बेटी को बराबर अधिकार होंगे।
  • जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं होगा।
  • नाजायज बच्चों को भी उस दंपती की जैविक संतान माना जाएगा।
  • गोद लिए, सरगोसी के द्वारा असिस्टेड री प्रोडेक्टिव टेक्नोलॉजी से जन्मे बच्चे जैविक संतान होंगे।
  • किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार संरक्षित रहेंगे।
  • कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को वसीयत से अपनी संपत्ति दे सकता है।

लिव इन रिलेशनशिप का पंजीकरण कराना अनिवार्य

  • लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए वेब पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य होगा।
  • युगल पंजीकरण रसीद से ही किराया पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकेंगे।
  • लिव इन में पैदा होने वाले बच्चों को जायज संतान माना जाएगा और जैविक संतान के सभी अधिकार मिलेंगे।
  • लिव इन में रहने वालों के लिए संबंध विच्छेद का भी पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
  • अनिवार्य पंजीकरण न कराने पर छह माह के कारावास या 25 हजार जुर्माना या दोनों का प्रावधान होंगे।

गोद लेने का कोई कानून नहीं : समान नागरिक संहिता में गोद लेने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया

रख-रखाव 

विधेयक में केवल वैवाहिक विवादों से उत्पन्न रख-रखाव के प्रकरणों को ही शामिल किया गया 
घरेलू हिंसा अधिनियम, सीनियर सिटीजन एक्ट व विकलांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम में रखरखाव के लिए पूर्व से ही प्रावधान हैं।

गोद लेने का कोई नया कानून नहीं

यूसीसी में गोद लेने से संबंधित कोई नया कानून नहीं बनाया गया है। हालांकि, 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।

धार्मिक रीति-रिवाजों पर कोई प्रभाव नहीं

विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि विवाह प्रक्रिया और संबंधित रीति-रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। जाति, धर्म और पंथ के आधार पर वैवाहिक परंपराएं जस की तस रहेंगी। पूजा-पाठ, खानपान और वेशभूषा पर भी इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान

  • घरेलू विवाद या तलाक के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी माता के पास रहेगी।
  • दूसरी शादी के लिए एक पति या पत्नी के जीवित रहते अनुमति नहीं होगी।

इद्दत-हलाला, बहुविवाह पर समान नागरिक संहिता विधेयक में क्या-क्या?

यूसीसी बिल में महिला के दोबारा विवाह करने (चाहे वह तलाक लिए हुए उसी पुराने व्यक्ति से विवाह हो या किसी दूसरे व्यक्ति से) को लेकर शर्तों को प्रतिबंधित किया गया है। संहिता में माना गया कि इससे पति की मृत्यु पर होने वाली इद्दत और निकाह टूटने के बाद दोबारा उसी व्यक्ति से निकाह से पहले हलाला यानी अन्य व्यक्ति से निकाह व तलाक का खात्मा होगा। यूसीसी में हलाला का प्रकरण सामने आने पर तीन साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

शाहबानो प्रकरण भी बना आधार

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लाने के लिए इंदौर की शाहबानो के मामले को भी आधार बनाया गया। इसमें बताया गया कि कैसे 62 वर्ष की उम्र में शाहबानो को उनके पति ने तलाक दे दिया था। उनके पांच बच्चे थे। वह न्यायालय गईं तो उन्हें 25 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का निर्णय हुआ। इससे असंतुष्ट शाहबानो मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय गईं, जिसने गुजारा भत्ता बढ़ाकर 179.20 रुपये प्रतिमाह कर दिया, मगर पति ने भत्ता देने से इन्कार कर दिया। अप्रैल 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर मुहर लगा दी।

बहु विवाह प्रतिबंधित किया गया

यूसीसी बिल में बहु विवाह को पूर्ण प्रतिबंधित कर दिया गया है। हर विवाह और तलाक का पंजीकरण ग्राम, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका के स्तर पर ही कराया जाना संभव होगा। इसके लिए पोर्टल भी एक माध्यम होगा। बिल में स्पष्ट किया गया है कि एक विवाह होने के बाद दूसरा विवाह पूर्ण प्रतिबंधित किया गया है।

 शादी के लिए कानूनी उम्र 21 साल होगी तय

सभी धर्मों के लिए विवाह की आयु समान की गई है। पुरुष के लिए कम से कम 21 वर्ष और स्त्री के लिए न्यूनतम 18 वर्ष। मुस्लिम पर्सनल लॉ में विवाह की आयु बालिग होने या 15 वर्ष निर्धारित की गई है, लेकिन अब प्रदेश में सबके लिए आयु की एक ही सीमा होगी। हालांकि, ये स्पष्ट किया गया कि इससे किसी धर्म, मजहब, पंथ, संप्रदाय और मत के अपने-अपने रीति रिवाजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। निकाह, आनंद कारज, अग्नि के समक्ष फेरे और होली मेट्रिमोनि रीति रिवाज अपनी मान्यताओं के अनुसार ही होंगे। हालांकि, इसमें ये भी स्पष्ट कर दिया है कि अनुसूचित जनजातियां यूसीसी के दायरे से बाहर रहेंगी।

2010 के बाद हुई है शादी तो कराना होगा पंजीकरण, वरना लगेगा जुर्माना, जानें पूरी प्रक्रिया

अगर आपका विवाह 26 मार्च 2010 के बाद हुआ है, तो उसका पंजीकरण कराना होगा। पहले जो करा चुके हैं, उन्हें दोबारा पंजीकरण की जरूरत नहीं होगी। खास बात ये भी है कि कानून लागू होने के छह माह के भीतर पंजीकरण न कराने वालों पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगेगा। पंजीकरण में गलत तथ्य देने वालों पर 25 हजार का जुर्माना लगेगा। यूसीसी में स्पष्ट किया गया कि विवाह करने वालों में से अगर स्त्री या पुरुष राज्य का निवासी होगा तो उसका पंजीकरण अनिवार्य होगा।

26 मार्च 2010 (उत्तराखंड अनिवार्य विवाह पंजीकरण एक्ट) तक के जो विवाह पंजीकृत नहीं हैं, उन्हें यूसीसी लागू होने के बाद छह माह के भीतर पंजीकरण कराना होगा। जो पहले से पंजीकृत हैं, उन्हें कानून लागू होने के छह माह के भीतर सब रजिस्ट्रार कार्यालय में घोषणा पेश करनी होगी। 2010 के पूर्व के दंपती चाहें तो अपना पंजीकरण करा सकते हैं, लेकिन उनकी एक से अधिक जीवनसाथी न हों। आयु का मानक पूरा हो रहा हो।

यूसीसी लागू होने के बाद क्या होगी विवाह पंजीकरण की व्यवस्था, जानें इससे जुड़ी जरूरी बातें

यूसीसी लागू होने के बाद पति-पत्नी मिलकर एक फार्म भरेंगे। विवाह की तिथि से 60 दिन के भीतर सब रजिस्ट्रार के सामने प्रस्तुत करेंगे। शर्त है कि दोनों में से एक राज्य में निवास करता हो। इसी प्रकार, 2010 के पहले के दंपती के लिए भी औपचारिकताएं होंगी।

सब रजिस्ट्रार, रजिस्ट्रार, रजिस्ट्रार जनरल नियुक्त करेगी सरकार

यूसीसी के तहत राज्य सरकार सचिव स्तर के अधिकारी को रजिस्ट्रार जनरल (महानिबंधक) नियुक्त करेगी। इसके बाद उपजिलाधिकारी स्तर तक के अधिकारियों को रजिस्ट्रार और क्षेत्रों के लिए सब रजिस्ट्रार तैनात किए जाएंगे।

पुरुष की 21, स्त्री की 18 वर्ष आयु

यूसीसी में ये प्रावधान किया गया कि विवाह तभी होगा जबकि पुरुष की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और स्त्री की न्यूनतम आयु 18 वर्ष हो।

10 से 25 हजार रुपये तक जुर्माना

कोई भी व्यक्ति जो विवाह होने के बाद जानबूझकर पंजीकरण नहीं कराएगा या उपेक्षा करेगा, उस पर सब रजिस्ट्रार 10 हजार का जुर्माना लगा सकते हैं। जो व्यक्ति पंजीकरण में गलत तथ्य प्रस्तुत करेगा या कूटरचित दस्तावेज लगाएगा, उसे तीन माह की जेल और 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों लग सकते हैं। जो सब रजिस्ट्रार पंजीकरण प्रक्रिया, विच्छेद पर 15 दिन के भीतर एक्शन नहीं लेगा, उस पर भी 25 हजार रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।

सब रजिस्ट्रार खुद भी ले सकते हैं संज्ञान

अगर कोई विवाह होता है और उसका पंजीकरण नहीं होता तो सब रजिस्ट्रार इसका खुद भी संज्ञान ले सकेगा। वह नोटिस भेजेगा, जिस पर 30 दिन के भीतर ज्ञापन प्रस्तुत करना होगा। ऐसा न करने पर 25 हजार का जुर्माना लगेगा। पंजीकरण न कराने पर कोई विवाह अविधिमान्य नहीं होगा।

बिना रजिस्ट्रेशन, लिव इन रिलेशन में रहने पर अब होगी जेल (UCC-Full Detail of Provisions about Communal law

इसके साथ ही लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद उत्तराखंड में लिव इन रिलेशनशिप का वेब पोर्टल पर एक माह के अंदर रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। रजिस्ट्रेशन न कराने पर युगल को छह महीने का कारावास और 25 हजार का दंड या दोनों हो सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के तौर पर जो रसीद युगल को मिलेगी उसी के आधार पर उन्हें किराए पर घर, हॉस्टल या पीजी मिल सकेगा। 

यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक, सिर्फ एक व्यस्क पुरुष व वयस्क महिला ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे। वे पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप या प्रोहिबिटेड डिग्रीस ऑफ रिलेशनशिप में नहीं होने चाहिए। पंजीकरण कराने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी।

उत्तराखंड का यह कदम देश के लिए मिसाल बनेगा। समान नागरिक संहिता लागू होने से समाज में समानता और समरसता का संदेश जाएगा। इस ऐतिहासिक निर्णय से व्यक्तिगत अधिकारों को मजबूती मिलेगी। (UCC-Full Detail of Provisions about Communal law, UCC News, Uniform Civil Code, Uttarakhand, Equal Rights)

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