उत्तराखंडी लालों का कमाल : हरिमोहन ने मैजिक पजल्स में बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड
September 13, 2018 0
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नवीन समाचार. कपकोट (बागेश्वर), 22 अप्रैल 2019। कपकोट के ऐठाण गांव के शिक्षक हरिमोहन सिंह ऐठानी ने गणित में दो और रिकार्ड बनाए हैं। हस्तलिखित मैजिक पजल्स में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने 1260 घंटे में अलग-अलग श्रेणी के 48000 मैजिक पजल्स लिख डाले। 450 चार्ट पेपर्स में 13 किलो की किताब भी बना डाली है। केरल बुक ऑफ रिकॉर्ड ने उन्हें 2019 का वर्ल्ड रिकॉर्ड का तथा पुडुचेरी बुक ऑफ रिकॉर्ड संस्था ने नेशनल रिकॉर्ड का प्रमाण पत्र दिया है। यह प्रमाण पत्र एक जटिल अंतरारष्ट्रीय गणितीय सिद्धांत को 15 दिन में हल करने के लिए दिया गया है, जो कि संख्या सिद्धांत से संबंधित है। संस्था ने उन्हें 18 अप्रैल को यह रिकार्ड प्रदान किया है। हाल ही में इस गणितीय सिद्धांत का एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल भी प्रकाशित हो चुका है। शिक्षक हरिमोहन ऐठानी ने अपनी उपलब्धि पर बताया कि अनुसलझे और जटिल गणितीय सिद्धांतों का हल खोजना, गणित के सूत्र, शार्ट ट्रिक और रिजनिंग अध्ययन मेरा शौक है।
हरिमोहन की अब तक कि उपलब्धियां :
लिम्का नेशनल रिकॉर्ड 2014
लिम्का वल्र्ड रिकॉर्ड 2015
इंटरनेशनल वंडर बुक ऑफ रिकॉर्ड 2015
वर्ल्ड रिकॉर्ड ऑफ यूनिवर्सल रिकॉर्ड फोरम 2015
वर्ल्ड रिकॉर्ड इंडिया वर्ल्ड रिकॉर्ड 2015
तेलगु बुक ऑफ रिकार्ड द्वारा राष्ट्रीय स्पेशल जूरी अवार्ड 2015
इंटरनेशनल ऑनलाइन वर्ल्ड रिकॉर्ड 2015
मैथ जीनियस वर्ल्ड रिकॉर्ड 2016
एवेरेस्ट वर्ल्ड रिकॉर्ड 2016
इंटरनेशनल मेगास्टार वर्ल्ड रिकॉर्ड 2017
असम बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड 2018
कलाम बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड 2018
केरला बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड 2019
पांडिचेरी बुक ऑफ रिकॉर्ड 2019
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कपकोट के इंटर कालेज असों में गणित के शिक्षक हरिमोहन सिंह ऐठानी ने इस अबूझ प्रश्न को बूझा है। गणितज्ञ और अंतरराष्ट्रीय बैंकर एंड्रयू बील ने 381 साल पुराने एक गणितीय सिद्धांत के आधार पर प्रश्न 90 के दशक में तैयार किया था। इस सवाल को हल करने पर एक करोड़ डालर का ईनाम भी घोषित किया हुआ है। एठानी के मुताबिक इस सवाल का जवाब खोजने में उन्हें 15 दिन का समय लगा। आगे अनसुलझे सवाल और हरिमोहन के जवाब पर दुनिया भर के गणितज्ञों की नजरें टिकी हुई हैं।
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व अगस्त 2015 में शिक्षक हरिमोहन ऐठानी की मैजिक स्क्वायर बनाने की कला को वंडर बुक आफ रिकार्ड ने भी दर्ज करते हुए उन्हें इंटरनेशनल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ऐठानी ने 1260 घंटे में 48 हजार मैजिक स्क्वायर (जादुई वर्ग) का निर्माण किया था। ऐठानी की इस महारत का ‘इंटरनेशनल वंडर बुक आफ रिकार्ड’ ने भी परीक्षण कर उन्हें ‘इंटरनेशनल वंडर बुक आफ रिकार्ड ‘के पुरस्कार से नवाजा था। इससे पूर्व हरिमोहन को ‘यूनिवर्सल रिकार्ड फोरम’ तथा ‘वर्ल्ड रिकार्डस आफ इंडिया’ ने भी उन्हें प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया है।
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-17 वीं शताब्दी में स्कॉटलेंड व स्विटजरलेंड के वैज्ञानिकों द्वारा इसके हल के लिए प्रयोग की जारी वाली 1200 शब्दों की जगह केवल 50 शब्दों की लॉग टेबल खोजने का किया है दावा
नवीन जोशी, नैनीताल ()। प्रतिभा उम्र सहित कैसी भी परिस्थितियों की मोहताज नहीं होती। कॉलेज की पढ़ाई में लगातार ह्रास की आम खबरों के बीच कुमाऊं विवि के एक बीएससी द्वितीय वर्ष के सामान्य पारिवारिक स्थिति वाले छात्र जितेंद्र जोशी का दावा यदि सही है, तो उसने ऐसा कमाल कर डाला है, जो उससे पहले 17 वीं शताब्दी में स्कॉटलेंड के गणितज्ञ जॉन नेपियर ने 1614 में और स्विटजरलेंड के जूस्ट बर्गी ने 1620 में किया था। इन दोनों विद्वान गणितज्ञों से भी छात्र जितेंद्र की उपलब्धि इस मामले में बड़ी है कि इन विद्वानों ने जो लॉग टेबल खोजी थी, वह करीब 1 9 00 शब्दों की है, लिहाजा उसे याद करना किसी के लिए भी आसान नहीं है, और परीक्षाओं में भी इस लॉग टेबल को छात्रों की सहायता के लिए उपलब्ध कराए जाने का प्राविधान है। जबकि जितेंद्र की लॉग टेबल केवल 50 शब्दों की है। इसे आसानी से तैयार तथा याद भी किया जा सकता है। लिहाजा यदि उसकी कोशिश सही पाई गई तो परीक्षाओं में परीक्षार्थियों को लॉग टेबल देने से निजात मिल सकती है, तथा गणित के कठिन घनमूल आसानी से निकाले जा सकते हैं।
गणित विषय के जानकार और छात्र जानते हैं कि हाईस्कूल, इंटरमीडिएट से लेकर स्नातक और परास्नातक तक की परीक्षाओं में लॉग टेबल से संबंधित प्रश्नों का हल करने के लिए परीक्षा के दौरान भी नेपियर और बर्गी द्वारा तैयार की गई लॉग टेबल उपलब्ध कराई जाती है। लॉग टेबल संभवतया इकलौती चीज हो, जिसे परीक्षा के दौरान परीक्षकों के द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। यानी समझा जा सकता है कि यह कितना गंभीर विषय है। इधर जितेंद्र जोशी का दावा है कि उसने कुमाऊं विवि में पढ़ाई से इतर पिछले डेढ़ वर्षों में अपने कड़े प्रयासों से ऐसा फॉर्मूला ढूंढ लिया है, जिसकी मदद से छात्र स्वयं लॉग टेबल तैयार कर सकते हैं। यह लॉग टेबल भी केवल 50 शब्दों की है, जिसे थोड़ा प्रयास से छात्र याद भी कर सकते हैं। पारिवारिक स्थिति की बात करें तो 21 वर्षीय जितेंद्र दो भाई व एक बहन में छोटा है। उसके पिता रमेश चंद्र जोशी निजी पॉलीटेक्निक कॉलेज में प्रयोगशाला सहायक के रूप में कार्य करते हैं। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के मद्देनजर उसकी माता भी आंगनबाड़ी में सहायिका के रूप में कार्य कर घर का खर्च चलाने के लिए हाथ बंटातीं है। वह स्वयं भी ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्चा स्वयं वहन करता है।
इसलिए जरूरत पड़ती है लॉग टेबल की
नैनीताल। किसी संख्या को उसी संख्या से यदि दो बार गुणा किया जाए तो उसे वर्ग, तीन बार गुणा किया जाए जो घन एवं इसी तरह चार, पांच, छह आदि बार गुणा करने पर उस संख्या की घात दो, तीन, चार, पांच आदि बोला जाता है। जैसे दो की घात दो बराबर चार, तीन घात बराबर आठ, चार घात बराबर 16 आदि होता है। इसके उल्टे संख्याओं के वर्ग मूल, घनमूल आदि भी निकालने की जरूरत होती है। आठ का घनमूल दो, 27 का तीन एवं 64 का घनमूल चार होता है। लेकिन यदि आठ से 27 अथवा 27 से 64 के बीच की संख्याओं का घनमूल निकालने का प्रश्न आए तो इसके हल के लिए लॉग टेबल का इस्तेमाल किया जाता है, और बिना लॉग टेबल के ऐसे सवाल हल करने संभव नहीं होते हैं। जितेंद्र का दावा है कि मौजूदा लॉग टेबल से अभी भी 172 9, 2745 व 15,626 जैसी संख्याओं के घनमूल पूरी शुद्धता के साथ नहीं निकल पाते हैं, जबकि उसके फॉर्मूले से ऐसी कठिन संख्याओं के घनमूल भी आसानी के साथ व पूरी शुद्धता के साथ निकालने संभव हो गए हैं। बृहस्पतिवार को जितेंद्र अपनी इस खोज को लेकर कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. एचएस धामी से भी मिला तथा उसकी खोज को कोई दुरुपयोग न कर ले, तथा वह अपनी खोज को कैसे ‘बौद्धिक संपदा अधिकार “हासिल करते हुए दुनिया के सुपुर्द करे, इस बारे में बात की है।
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अल्मोड़ा के रवि टम्टा नैनीताल के राजकीय इंटर कालेज में महज 12वीं के छात्र हैं। पिता एक साधारण से मोटर मैकेनिक। पिता की देखा-देखी गाड़ियों के कलपुर्जों को तोड़ते-जोड़ते उन्होंने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया जो बड़े-बड़ों को दांतों तले उंगुली दबाने को मजबूर कर दे। पिछले महीने नैनीताल में बर्फबारी के दौरान बिजली क्या गुल हुई, रवि के दिमाग की बत्ती जल उठी। उन्होंने जूतों में एक ऐसा ‘डायनेमो’ फिट कर दिखाया जिससे चलते-फिरते बिजली पैदा हो सकती है। इस बिजली से मोबाइल को रिचार्ज किया जा सकता है तो 20 वाट का सीएफएल भी रोशन हो सकता है। पांव तले बने इस छोटे से पावर हाउस की बिजली को बैटरी में स्टोर कर जरूरत के अनुसार इस्तेमाल भी किया जा सकता है। वह कहता है, मैं दुनिया को ऐसा कुछ देना चाहता हूं जिसके बारे में अब तक किसी ने सोचा तक न हो। पेश है रवि टम्टा से बातचीत के अंश :
वाह क्या खूब, मोबाइल फोन से बना डाली पूरी फिल्म
-नगर के युवाओं ने किया कारनामा, करीब आठ मिनट की फिल्म ‘एक दूर घटना” को छोटी फिल्मों की श्रेणी के पुरस्कारों के लिए भेजने की कोशिश भी
नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी को कला की नगरी भी यूं ही नहीं कहा जाता। एक अभिनेता होते हुए सात समुंदर पार कांस फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतने वाले स्वर्गीय निर्मल पांडे तथा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक बीएम शाह तथा गीत एवं नाटक प्रभाग के निदेशक मटियानी की धरती के चार युवाओं ने बीती गुड फ्राइडे की एक दिन की छुट्टी का उपयोग करते हुए अपने मोबाइल फोन से पूरी फिल्म बनाने का संभवतया देश-दुनिया में पहला सफल प्रयोग कर डाला है। सात मिनट की इस फिल्म को अब छोटी फिल्मों की श्रेणी में पुरस्कारों के लिए भेजने की तैयारी चल रही है।
मुंबई फिल्म उद्योग एवं छोटे परदे में भी अपनी अभिनय कला का प्रदर्शन कर चुके तथा वर्तमान में एनआरएचएम के जिला परियोजना प्रबंधक पद पर कार्यरत मदन मेहरा ने अपने अन्यत्र कार्यरत कलाकार साथियों, मुख्यत: अनवर रजा, मुकेश धस्माना व पवन कुमार के साथ ‘एक दूर घटना” नाम से बनाई गई यह फिल्म केवल सात मिनट 41 सेकेंड की है, और इसकी शूटिंग पूरी तरह से एचटीसी डिजायर-820 मॉडल के मोबाइल फोन से नगर की कैमल्स बैक पहाड़ी के रास्ते पर व कुछ हिस्सा हनुमानगढ़ी के पास की गई है। श्री मेहरा ने बताया कि पूरी फिल्म की शूटिंग एक दिन में ही करीब दो-तीन घंटे शूटिंग करके तथा बाद में कंप्यूटर पर एडिट करके बनाई गई है। फिल्म एक मोटरसाइकिल दुर्घटना से शुरू होती है, जिसमें चालक की मौत हो जाती है। बाद में इस घटना के लिए जिम्मेदार तीन दोस्तों की अपराधबोध के साथ लौटने के दौरान रहस्यमय तरीके से मौत हो जाती है। आखिर में फिल्म संदेश देती है कि कोई भी घटना केवल स्वयं तक सीमित नहीं होती वरन, स्वयं में एक अतीत, वर्तमान और भविष्य भी समेटे रहती है। इस प्रकार छोटी सी फिल्म में रहस्य, रोमांच युक्त दृश्यों के साथ एक कसी हुई कहानी, पटकथा, सिनेमेटोग्राफी तथा संगीत आदि का भी बेहतर तालमेल दिखाई देता है। दिनेश बोरा,अनूप बमोला, एसके श्रीवास्तव आदि ने भी फिल्म निर्माण में सहयोग दिया है।