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December 21, 2024

नैनीताल में शुरू हुआ दूसरा चार दिवसीय पक्षी सर्वेक्षण अभियान…

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Bird Watcherनवीन समाचार, नैनीताल, 16 नवंबर 2022। नैनीताल प्राणी उद्यान के निदेशक व प्रभागीय वनाधिकारी चंद्रशेखर जोशी के तत्वावधान में नैनीताल वन प्रभाग एवं ओरियनटल ट्रेल के सहयोग से दूसरा 4 दिवसीय पक्षियों के सर्वेक्षण का अभियान शुरू हो गया है। यह भी पढ़ें : अपडेटेड : विराट कोहली पहुंचे घोड़ाखाल, जा सकते हैं कैंचीधाम

दूसरी बार नैनीताल वन प्रभाग के अंतर्गत नैना देवी हिमालयन बर्ड कन्जरवेशन रिजर्व में आयोजित हो रहे इस अभियान का बुधवार को अर्न्तराष्ट्रीय छायाकार पद्मश्री अनूप साह ने नारायण नगर स्थित हिमालयन बॉटनिक गार्डन मेंमहाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, केरल, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश व उड़ीसा आदि राज्यों से आए 41 बर्ड वॉचरो की उपस्थिति में बतौर मुख्य अतिथि शुभारंभ किया। यह भी पढ़ें : दूसरी शादी रचा रहा था महिला ग्राम प्रधान का पति, तभी पहुंच गई प्रधान पत्नी और…

इस अवसर पर पद्मश्री साह ने बताया कि उत्तराखण्ड राज्य में 790 पक्षियों की प्रजातियाँ हैं। दो वर्ष पूर्व कई वर्षो के बाद यहाँ बारापत्थर के पास वाईनेशियस रोज फिंच नाम की चिड़िया भी दिखाई दी। उन्होंने बर्ड वॉचरों से यहां पक्षियों के साथ यहां की जैव विविधता व वनस्पतियों का भी अध्ययन करने को कहा, ताकि वह यहां पक्षियों के वासस्थल के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकें। यह भी पढ़ें : नैनीताल हाईकोर्ट एवं धर्मांतरण कानून सहित 26 मुद्दों पर धामी मंत्रिमंडल की मुहर !

इस दौरान उप प्रभागीय वनाधिकारी व प्राणी उद्यान नैनीताल के उप निदेशक हेम चंद्र गहतोड़ी ने आगंतुक अतिथियों का स्वागत करते हुए नैना देवी हिमालयन बर्ड कन्जरवेशन रिजर्व तथा नैनीताल वन प्रभाग के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उप प्रभागीय वनाधिकारी राजकुमार ने बर्ड वॉचरों से बर्ड वाचिंग के समय छोटी-छोटी विडियो क्लिप भी बनाने की अपील की। यह भी पढ़ें : पंजाब में उत्तराखंड के 26 वर्षीय युवक की चाकू मारकर हत्या

ओरियनटल ट्रेल के संस्थापक अमित सांकल्य ने बताया कि आए 41 बर्ड वॉचरो को 6 समूहों में बांटा गया है जो नैनीताल वन प्रभाग, नैनीताल के अन्तर्गत हिमालयन बोटैनिकल गार्डन, नैना देवी हिमालयन बर्ड कन्जरवेशन रिजर्व, नैनीताल, भवाली एवं महेशखान में पक्षियों का सर्वेक्षण करेंगे। इस अवसर नैनीताल प्राणी उद्यान के वन क्षेत्राधिकारी अजय रावत, प्रमोद तिवारी, सोनल पनेरू, विजय मेलकानी, हरीश पन्त, अरविंद कुमार व आनन्द सिंह सहित विभिन्न वन क्षेत्रों के अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित रहे। संचालन अनुज काण्डपाल ने किया। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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यह भी पढ़ें : नैना देवी हिमालयन पक्षी आरक्षित क्षेत्र में शुरू हुआ पक्षियों का पहला सर्वेक्षण…

-अगले चार दिन देश भर से आए 54 पक्षी विशेषज्ञ जुटाएंगे यहां पाए जाने वाले पक्षियों के ब्यौरे
Bird watchersडॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 16 जून 2022। जनपद मुख्यालय के निकट किलबरी-पंगोट क्षेत्र में स्थित नैना देवी हिमालयन पक्षी आरक्षित क्षेत्र में पहली बार पक्षियों के सर्वेक्षण का कार्य होने जा रहा है। नैनीताल वन प्रभाग एवं ओरिएंटल ट्रेल्स संस्था के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रहे इस सर्वेक्षण कार्य में देश के 54 पक्षी विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं। यह विशेषज्ञ इस क्षेत्र में रहने वाले पक्षियों के फोटो और जानकारियां जुटाकर वन विभाग को उपलब्ध कराएंगे और वन विभाग इन्हें पंजीकृत करेगा।

गुरुवार को मुख्यालय के निकट नारायण नगर स्थित हिमालयन बॉटनिकल गार्डन में इस सर्वेक्षण कार्य का शुभारंभ अंतर्राष्ट्रीय छायाकार पद्मश्री अनूप साह के हाथों किया गया। इस दौरान पद्मश्री साह ने पक्षियों के सर्वेक्षण में बरती जाने वाली सावधनियों व बारीकियों से प्रतिभागियों को अवगत कराया। साथ ही बताया कि माउंटेन क्वेल को आखिरी बार नैनीताल व मसूरी में देखा गया था और अभी भी माउंटेन क्वेल का प्राकृतवास और इसके यहां मिलने की संभावना बनी हुई है।

नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ बीजू लाल टीआर ने बताया कि सर्वेक्षण से प्राप्त डाटा नैनीताल वन प्रभाग को प्राप्त होगा। बताया कि इस सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, केरल, छत्तीसगढ़ उड़ीसा आदि राज्यों से पहुंचे प्रतिभागी 16 से 19 जून तक नैना देवी हिमालयन पक्षी आरक्षित क्षेत्र के हिमालयन बॉटनिकल गार्डन, टांकी बैरियर, विनायक, कुंजाखड़क, सातताल व महेशखान क्षेत्र में पाए जाने वाले पक्षियों का सर्वेक्षण करेंगे।

इस अवसर सहित वन क्षेत्राधिकारी ममता चंद, सोनल पनेरू, अजय रावत, कल्याण सिंह सजवाण, अमित सांकल्य, सूरज बिष्ट, अरंिवंद कुमार, आनंद सिंह, अनुज कांडपाल आदि वन कर्मी मौजूद रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

यह भी पढ़ें : सुबह का सुखद समाचार: उत्तराखंड में देश की सर्वाधिक पक्षी प्रजातियां मिलींLong Tail Big Bil

नवीन समाचार, देहरादून, 19 मई 2022। उत्तराखंड में देश में सबसे ज्यादा पक्षी प्रजातियां मिली हैं। जी हां, हिमालयी क्षेत्रों यानी भारत के हिमालीय राज्यों व नेपाल और भूटान में बर्ड वाचरों के पक्षी प्रजातियां गिनने के सबसे बड़े अभियान ‘हिमालयन बर्ड काउंट’ की अंतरिम रिपोर्ट के मुताबिक देश में एक दिन में उत्तराखंड में सबसे अधिक 293 पक्षी प्रजातियां देखी गई हैं। यह भी देखें :https://deepskyblue-swallow-958027.hostingersite.com/bird/

उत्तराखंड के बाद अरुणाचल प्रदेश में 234 पक्षी प्रजातियों और सिक्किम में 157 पक्षी प्रजातियां देखी र्गइं। पूरे हिमालयी क्षेत्र में एक दिन में 607 पक्षी प्रजातियों को दर्ज किया गया। बता दें कि यह संख्या किसी भी क्षेत्र में रहने वाली कुल पक्षी प्रजातियों की नहीं है बल्कि बर्ड वाचरों को एक दिन में दिखी पक्षी प्रजातियों की संख्या है। वास्तविकता में यह संख्या ज्यादा ही होगी।

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बता दें कि बीती 14 मई को भारत, नेपाल और भूटान में पक्षी प्रजातियों की विविधता को मनाने के लिए हिमालयन बर्ड काउंट (हिमालयी पक्षी गणना) का आयोजन किया गया। इसमें बर्ड वाचरों ने जंगलों में ट्रैक करते हुए एक दिन में पक्षी प्रजातियों को दर्ज किया। इस कार्यक्रम के जरिए भारत नेपाल और भूटान से करीब 1000 चेकलिस्ट अपलोड की गई। इस बार हिमालयन बर्ड काउंट बर्ड काउंट इंडिया, बर्ड कंजरवेशन नेपाल और ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ नेचर ने मिलकर आयोजित किया।

Embrld Dove Green Pegionभारत में उत्तराखंड, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तर-पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश में बर्ड वाचिंग के शौकीन व बर्ड वाचरों ने एक दिन में उन्हें विभिन्न ट्रैक पर दिखने वाले पक्षी प्रजातियों को फोटो लिए व वीडियो बनाए। बर्ड काउंट इंडिया विभिन्न संस्थाओं का अनौपचारिक समूह है। यह देश में पक्षी प्रजातियों की निगरानी भी करता है और लोगां में बर्ड वाचिंग को प्रोत्साहित करता है। बर्ड काउंट इंडिया बर्ड वाचरों को उनकी देखी गई चिड़िया के बारे में जानकारी व फोटो आदि ई बर्ड डॉट ओआरजी स्लैश इंडिया जैसे वैश्विक प्लेटफार्म में अपलोड करने को प्रोत्साहित करता है।

d4359 mountainquailसेंटर फर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च की सीनियर फेलो गजाला शहाबुद्दीन का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी पक्षी प्रजातियां खतरे में हैं। ऐसे में हिमालयन बर्ड काउंट हिमालयी क्षेत्र की पक्षी विविधता के बाबत कुछ जानकारी देता ही है। अगर हर साल से कार्यक्रम हों तो पक्षी प्रजातियों की स्थिति के बारे में और जानकारी मिल सकेगी। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : पक्षियों के लिए दाने-पानी की व्यवस्था कर रही उन्नति स्वयं सहायता समिति

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पेड़ पर पक्षियों के लिए पानी व दाने की व्यवस्था करते उन्नति स्वयं सहायता समिति की सदस्य।

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 21 अप्रैल 2022। उन्नति स्वयं सहायता समिति के सदस्यों ने बीते मंगलवार यानी तीन दिनों से भीषण गर्मी को देखते हुए बेजुबान पक्षियों के लिए मिट्टी के बर्तनों में दाने और पानी की व्यवस्था करने के लिए अभियान चलाया हुआ है। कहा गया कि मनुष्य तो कहीं से भी पानी मांग कर पी सकते हैं लेकिन पक्षियों के लिए यह संभव नहीं है। इसलिए यह तीन दिवसीय अभियान शुरू किया गया है।

इस अभियान के तहत संस्था के सदस्यों ने हल्द्वानी, लालकुआं, नैनीताल व भवाली सहित अनेक स्थानों पर जगह-जगह पानी और दाने के बर्तनों को छायादार पेड़ों के नीचे पक्षियों के लिए लगाया गया है। साथ ही लोगों से पक्षियों को बचाने की अपील भी की गई है। अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा सांसद ने लगाए उत्तराखंड सरकार पर भ्रष्टाचार का बड़ा आरोप, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों का है मामला…

नवीन समाचार, देहरादून, 26 जून 2021। पूर्व केंद्रीय मंत्री व भाजपा सांसद मेनका गांधी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को पत्र लिखकर उत्तराखंड सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। श्रीमती गांधी ने नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों में प्रवासी पक्षियों के लिए कम्युनिटी रिजर्व यानी सामुदायिक आरक्षित क्षेत्र बनाने की योजना को खनन माफिया के इशारे पर तैयार की गई बताते हुए साफ तौर पर मांग की है कि इसे तत्काल निरस्त कर दिया जाए।

यही नहीं, चिट्ठी में उन्होंने साफ तौर पर आरोप लगाया है कि इसमें उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों का खनन माफिया के साथ सीधा गठजोड़ चल रहा है। इस मामले में कथित तौर पर भाजपा के दो बड़े नेताओं के नाम भी सामने आ रहे हैं। मेनका गांधी के पत्र के बाद उत्तराखंड सरकार में खलबली मच जाने की बातें भी सामने आ रही हैं क्योंकि गंभीर आरोप और सवाल सीधे तौर पर दागे गए हैं।

बताया गया है कि अगस्त 2020 में उत्तराखंड की तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए बैलपड़ाव व बाजपुर में प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करने के लिए कम्युनिटी रिजर्व बनाने की योजना पर मुहर लगाई थी। इस योजना के तहत प्रवासी पक्षियों को राज्य में आकर्षित करने के लिए नैनीताल के बैलपड़ाव और उधमसिंह नगर के बाजपुर में खोदकर तालाब बनाए जाने हैं। श्रीमती गांधी का इस मामले में साफ तौर पर कहना है कि इस तरह तालाब बनाकर प्रवासी पक्षियों को कहीं बुलाया नहीं जा सकता है। यह योजना केवल तालाब खोदने के नाम पर खनन माफिया को खनन का मौका देने का उपक्रम है।

श्रीमती गांधी ने मुख्यमंत्री से प्रवासी पक्षियों के लिए रिजर्व यानी आरक्षित क्षेत्र बनाए जाने संबंधी कई सवाल पूछते हुए लिखा है कि इन तमाम बातों की जानकारी उन्हें दी जाए। लिखा है कि उन्होंने पहले भी 26 अक्टूबर 2020 को इस मामले में उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखा था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अब मेनका गांधी ने अपने पत्र में सवाल उठाए हैं कि क्या प्रवासी पक्षियों कोई तालाब खोदकर लाई जा सकती हैं? क्या अधिकारियों ने प्रवासी पक्षियों को लेकर कोई सर्वे करवाया? कोई सूची तैयार की? कौन से प्रवासी पक्षी उत्तराखंड आते हैं, कहां से आते हैं, राज्य में कहां पाए जाते हैं? कम्युनिटी रिजर्व बनाने के लिए और कौन सी जगहें चुनी गई हैं?

इस तरह श्रीमती गांधी का आरोप है कि इस तरह से कृत्रिम तालाब खोदकर प्रवासी पक्षियों को बुलाया जाना संभव नहीं है। ऐसे कृत्रिम तौर पर तैयार किए गए ईको सिस्टम यानी पारिस्थितिकी तंत्र को तैयार होने में कई साल लग जाते हैं। इसलिए स्पष्ट है कि खनन माफिया को बड़ा अवसर देना ही इस पूरी योजना का मकसद है, जिसे नैनीताल के बैलपड़ाव और उधमसिंह नगर के बाजपुर में लागू किए जाने की तैयारी की जा रही है। दूसरा गंभीर आरोप गांधी ने यह लगाया है कि इस मामले में तीरथ सिंह रावत सरकार के अधिकारी खनन माफिया के साथ सीधा संबंध रखते हैं और उन्हें फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी मेनका गांधी उत्तराखंड सरकार को निशाना बना चुकी हैं। इसी साल 5 जनवरी को लिखे एक पत्र में उन्होंने उत्तराखंड सरकार के भेड़ और ऊन विकास बोर्ड में भारी भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए इसे 3000 करोड़ रुपये के ऋण घोटाले का आरोप लगाते हुए इसका पर्दाफाश करने और इस कार्यक्रम को तुरंत बंद करने की मांग की थी। उन्होंने कर्ज की किसी रकम को चुराने के इस मामले को बेहद शर्मनाक और ‘कोयला व बोफोर्स कांड जितना बड़ा घपला’ भी बताया था। (डॉ.नवीन जोशी) अन्य ताज़ा नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : कोरोना में मानव सैलानियों की ‘नां’ के बावजूद यह विदेशी सैलानी बने आकर्षण के केंद्र…

नैनीताल पहुंचा आस्ट्रेलियाई कूट पक्षी-फोटोग्राफर रत्ना साह ने किया कैमरे में कैद
नवीन समाचार, नैनीताल, अप्रैल 2021। नैनीताल की चुनिंदा महिला छायाकारों में एक रत्ना साह नैनीताल के पर्यटन स्थल के साथ-साथ बर्ड वॉचिंग की छायाकारी के लिये
भी प्रसिद्ध है। यहां एशिया से ही नही बल्कि पूरी दुनिया से भी पक्षी हजारों मीलों की दूरी तय सैलानियों की तरह नैनीझील की सैर करने आते है। इन दिनों नैनीताल की नैनीझील में यूरोप से उड़ान भरकर यहां पहुंचा यूरेशियन कूट प्रजाति का पक्षी नैनीझील में तैरता हुआ नजर आया। जिसको नगर की फोटोग्राफर रत्ना साह ने अपने कैमरे में कैद किया। रत्ना ने बताया कि कूट मूलत: यूरोपीय पक्षी है। यह पक्षी पहली बार नैनीताल दस हजार से बीस हजार किलोमीटर की दूरी तय करके यहां पहुंचा है। यह आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। इस पक्षी की लम्बाई लंबाई 40 सेंटीमीटर तक पहुंच जाती है। वयस्कों में एक छोटी, मोटी सफेद चोंच होती है। माथे पर एक तरह का कवच होता है, जिसके ऊपरी हिस्से में आंखों के बीच में लाल-भूरे रंग का धब्बा होता है। कूट के पंजे पीले रंग के होते हैं। नर और मादा के आकार लगभग समान होते हैं।

इसे यूरेशियन कूट, आम कूट या आस्ट्रेलियाई कूट के नाम से जाना जाता है। यह रेल और क्रेक बर्ड परिवार का एक सदस्य है। इन दिनों प्रवासी पक्षी शहर की झीलों, नदियों, पक्षी प्रवास के लिए नैनीताल में पहुंच रहे है। यह पक्षी मुख्य रूप से समुद्री शैवाल और अन्य जलीय पौधों को खाते है। ये पक्षी भोजन खोजने के लिए पानी के नीचे गोता लगाते हैं, और जमीन के अंदर से भोजन प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि वे सर्वाहारी हैं। कूट के आहार में आर्थ्रोपोड, मछली और अन्य जलीय जानवर शामिल हैं। प्रजनन के मौसम के दौरान वे जलीय कीड़े और मोलस्क खाना पसंद करते हैं। दक्षिणपूर्वी राज्यों में खेल के लिए कूटों की शूटिंग की जाती है।

यह भी पढ़ें : नये साल के स्वागत पर सरोवरनगरी का आकर्षण बढ़ा रहा प्रवासी पक्षी ग्रेट कमोरेंट

नवीन समाचार, नैनीताल, 30 दिसम्बर 2020। सरोवर नगरी को प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है। लेकिन यहा का जीव जगत विभिन्नताओं से भरा है। इन दिनों नये वर्ष के स्वागत के मौके पर नैनी झील में साइबेरिया मूल का प्रवासी पक्षी ग्रेट कार्मोरेंट यानी पन कौवा के देर से किंतु कई जोड़े पहुंच गये हैं। इस पक्षी की यह खासियत है कि यह पानी के अंदर 15 मिनट तक रह सकता है।

इस दौरान यह झील में अपनी मनपसंद मछलियों के रूप में अपना भोजन तलाशता है, और इसके उपरांत झील के बीच में रखे ड्रमों और झील किनारे के पेड़ों पर अपने पंखों को सुखाता हुआ धूप का आनंद लेता है। इस दौरान तरह-तरह की कलाबाजी करने वाला यह पक्षी स्थानीय लोगों और पर्यटकों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह पक्षी साइबेरिया, अफगानिस्तान और तिब्बत आदि क्षेत्रों में ठंड बढ़ने व बर्फबारी होने पर झीलों व जलाशयों के जमने पर मध्य हिमालय क्षेत्र प्रवास पर पहुंचते हैं। करीब चार-पांच माह यहां रहने के बाद यह पक्षी हिमालय क्षेत्र में वापस लौट जाता है।

यह भी पढ़ें : नैनीताल में मानव सैलानियों के लिए सीजन ‘ऑफ’ तो पक्षी सैलानियों के लिए ‘ऑन’

-ध्रुवीय देशों से नैनी झील में पहुंचने लगे ग्रेट कॉर्मोरेंट, स्टीपी ईगल, सुर्खाब, बार हेडेड गीज आदि प्रवासी पक्षियों के भी जल्द पहुंचने की संभावना

नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 20 नवंबर 2019। जी हां, जहां दीपावली के बाद शरदकाल में ठंड बढ़ने के साथ आमतौर पर पहाड़ों और खासकर सरोवरनगरी में मानव सैलानियों के लिए पर्यटन सीजन को ‘ऑफ’ माना जाता है, वहीं यही समय है जब पक्षी सैलानियों के लिए यहां सीजन ‘ऑन’ हो गया है। आश्चर्य न करें, अब समय शुरू हो गया है जब पहाड़ों एवं खासकर नैनीताल एवं इसके करीब की जल राशियों पर हजारों मील दूर उच्च हिमालयी देशों के प्रवासी पक्षियों का लंबे प्रवास के लिए आना प्रारंभ हो गया है। नैनीताल में ग्रेट कॉर्मोरेंट यानी पन कौव्वे के करीब आधा दर्जन जोड़े पहुंच गए हैं, और इनके बार प्रकृति के स्वच्छक कहे जाने वाले स्टीपी ईगल व अपने सुनहरे पंखों के लिए प्रसिद्ध सुर्खाब पक्षी और हेडेड गीज सहित अन्य अनेकों प्रवासी पक्षियों के साथ शीघ्र ही पहुंचने की उम्मीद की जा रही है।

नैनीताल, इसके निकटवर्ती क्षेत्र व पहाड़ न केवल मानव सैलानियों, वरन पक्षियों को भी अपनी आबोहवा से आकर्षित करते हैं, और उनके भी पर्यटन स्थल हैं। इन दिनों यहां मनुष्य सैलानियों का पर्यटन की भाषा में ‘ऑफ सीजन” शुरू होने जा रहा है, वहीं मानो पक्षी सैलानियों का सीजन ‘ऑन” होने जा रहा है। ग्रेट कॉर्मोरेंट के जोड़ों ने यहां पहुंचकर अपने पीछे चीन, तिब्बत आदि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सुर्खाब पक्षी तथा बार हेडेड गीज सहित अनेक अन्य प्रवासी पक्षी प्रजातियांे के भी पहुंचने का इशारा कर दिया है। पक्षी विशेषज्ञ एवं अंतर्राष्ट्रीय छायाकार अनूप साह के अनुसार इन दिनों उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फवारी होने के कारण वहां की झीलें बर्फ से जम जाती हैं।

ऐसे में उन सरोवरों में रहने वाले पक्षी नैनीताल जैसे अपेक्षाकृत गर्म स्थानों की ओर आ जाते हैं। यह पक्षी यहां पूरे सर्दियों के मौसम में पहाड़ों और यहां भी सर्दी बढ़ने पर रामनगर के कार्बेट पार्क व नानक सागर, बौर जलाशय आदि में रहते हैं, और मार्च-अप्रैल तक यहां से वापस अपने देश लौट आते हैं। बताया गया है कि नैनी झील में कई प्रकार की बतखें भी पहुंची हैं, जबकि नगर के हल्द्वानी रोड स्थित कूड़ा खड्ड में अफगानिस्तान की ओर से स्टेपी ईगल पक्षी भी पहुंचने लगे हैं। कूड़ा खड्ड में पिछले कुछ वर्षों से कूड़ा नहीं डाले जाने के कारण स्टीपी ईगल की संख्या में कुछ कमी देखी जा रही है।

पक्षियों का मानो तीर्थ है नैनीताल

नैनीताल। सरोवरनगरी को पक्षियों का पर्यटन स्थल से अधिक यदि तीर्थ कहा जाऐ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जहां मनुष्य की तरह खासकर दुनिया भर के प्रवासी प्रकृति के पक्षी जीवन में एक बार जरूर जाना चाहते हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार देश भर में पाई जाने वाली 1100 पक्षी प्रजातियों में से 600 तो यहां प्राकृतिक रूप से हमेशा मिलती हैं, जबकि देश में प्रवास पर आने वाली 400 में से 200 से अधिक विदेशी पक्षी प्रजातियां भी यहां आती हैं। इनमें ग्रे हैरोन, शोवलर, पिनटेल, पोचर्ड, मलार्ड, गागेनी टेल, रूफस सिबिया, बारटेल ट्री क्रीपर, चेसनेट टेल मिल्ला, 20 प्रकार की बतखें, तीन प्रकार की क्रेन, स्टीपी ईगल, अबाबील आदि भी प्रमुख हैं।

यह भी पढ़ें : नैनीताल में आज से शुरू होगा तीन दिवसीय नैनीताल बर्ड फेस्टिवल

  • पहुचेंगे देश भर के बर्ड वॉचर एवं खासकर 30 महिला बर्ड फोटोग्राफर
  • आगे अक्टूबर-नवंबर माह में फ्लैट्स मैदान में मुख्यमंत्री की उपस्थिति के बीच इसी तरह का अंतराष्ट्रीय महोत्सव कराने की भी योजना

नैनीताल। मुख्यालय स्थित हिमालयन बॉटनिकल गार्डन में शुक्रवार 27 अप्रैल से तीन दिवसीय पहला ‘नैनीताल बर्ड फेस्टिवल’ का आयोजन शुरू होने जा रहा है। आयोजक नैनीताल वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी डा. धर्म सिंह मीणा ने बृहस्पतिवार को पत्रकार वार्ता में बताया कि इस महोत्सव के दौरान खासकर देश भर से पहुंच रही 30 महिला छायाकारों के चिड़ियों के चित्रों की ‘पिंक’ प्रदर्शनी, कार्यशाला, समूह चर्चा, चित्रकला प्रतियोगिता एवं प्रकृति पर प्रश्नोत्तरी सहित कई तरह के कार्यक्रम होंगे। इस दौरान उपस्थित प्रतिभागियों को प्रकृति के बारे में शिक्षित करने, बर्ड वाचिंग एवं आखिर में पुरस्कार वितरण खासकर स्कूलों को ‘चल वैजयंती ट्रॉफी’ दिये जाने के कार्यक्रम भी होंगे। आगे यह महोत्सव हर वर्ष आयोजित करने और इधर अक्टूबर-नवंबर माह में फ्लैट्स मैदान में मुख्यमंत्री की उपस्थिति के बीच इसी तरह का अंतराष्ट्रीय महोत्सव कराया जाएगा। साथ ही हर विद्यालय में बच्चों के ‘नेचर क्लब’ स्थापित करने और सातताल, किलबरी जैसे परिंदों की अधिक उपस्थिति वाले जंगलों में प्रवेश के लिए शुल्क लिये जाने की भी योजना है।

नैनीताल चिड़ियाघर में आयोजित पत्रकार वार्ता में डीएफओ मीणा ने कहा कि परिंदे किसी भी क्षेत्र, जंगल की समृद्ध जैव विविधता के सबसे बड़े सूचक हैं। इनके महोत्सव का उद्देश्य न केवल चिड़ियों, वरन प्रकृति के समग्र तौर पर संरक्षण का है। पूरी तरह हर वर्ग की सहभागिता करने और सबको लाभांन्वित करने के प्रयासों के साथ आयोजित हो रहे इस महोत्सव में बच्चों की भी मोबाइल से खींचे गए फोटो, चित्रकारी व प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं आयोजित होंगी, और विजेताओं को मोबाइल फोन, डिजिटल कैमरे व टैबलेट पुरस्कार में दिये जाएंगे, साथ ही उनमें प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता विकसित की जाएगी। बताया कि इस महोत्सव के लिए देश भर से करीब 150 पेशेवरों ने पंजीकरण करा दिया है। इसके अलावा प्रकृति व पर्यावरण के जानकारों के बीच समूह चर्चा एवं 28 व 29 को ‘बर्ड रेस’ का आयोजन भी किया जाएगा, जिसमें प्रतिभागियों को अधिक से अधिक परिंदों को रिकार्ड करना होगा। पत्रकार वार्ता में सहयोगी की भूमिका निभा रहे स्ट्रैब पिक्सल क्लब के संस्थापक पारस बोरा, शेरवुड कॉलेज के अजय शर्मा, ममता चंद आदि भी मौजूद रहे।

 विश्व भर के पक्षियों का जैसे तीर्थ है नैनीताल

  • देश की 1266 व उत्तराखंड की 710 में से 600 पक्षी प्रजातियों मिलती हैं यहां
  • देश में आने वाली 400 प्रवासी प्रजातियों में से 200 से अधिक भी आती हैं यहां
  • स्थाई रूप से 200 प्रजातियों का प्राकृतिक आवास भी है नैनीताल
  • आखिरी बार ‘माउनटेन क्वेल’ को भी नैनीताल में ही देखा गया था

नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी नैनीताल की विश्व प्रसिद्ध पहचान पर्वतीय पर्यटन नगरी के रूप में ही की जाती है, इसकी स्थापना ही एक विदेशी सैलानी पीटर बैरन ने 18 नवम्बर 1841 में की थी, और तभी से यह नगर देश-विदेश के सैलानियों का स्वर्ग है। लेकिन इससे इतर इस नगर की एक और पहचान विश्व भर में है, जिसे बहुधा कम ही लोग शायद जानते हों। इस पहचान के लिए नगर को न तो कहीं बताने की जरूरत है, और नहीं महंगे विज्ञापन करने की। दरअसल यह पहचान मानव नहीं वरन पक्षियों के बीच है। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार दुनियां में 10,000 पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भारत में तीन नई मिलाकर कुल 1266 पक्षी प्रजातियों में कुमाऊँ व उत्तराखंड में 710 पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं। और इनमें से 70-80 फीसद यानी करीब 600 तक नैनीताल में पाई जाती हैं। इनके अलावा भी प्रवासी पक्षियों या पर्यटन की भाषा में पक्षी सैलानियों की बात करें तो देश में कुल आने वाली 400 प्रवासी पक्षी प्रजातियों में से 200 से अधिक यहां आती हैं, जबकि 200 से अधिक पक्षी प्रजातियों का यहां प्राकृतिक आवास भी है। यही आकर्षण है कि देश दुनियां के पक्षी प्रेमी प्रति वर्ष बड़ी संख्या में केवल पक्षियों के दीदार को यहाँ पहुंचाते हैं. इस प्रकार नैनीताल को विश्व भर के पक्षियों का तीर्थ कहा जा सकता है।

नैनीताल के मंगोली, बजून, पंगोट, सातताल व नैनीझील एवं कूड़ा खड्ड पक्षियों के जैसे तीर्थ ही हैं। अगर देश-विदेश में नैनीताल का इस रूप में प्रचार किया जाऐ तो यहां अनंत संभावनायें हैं। गर्मियों में लगभग 20 प्रकार की बतखें, तीन प्रकार की क्रेन सहित सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी साइबेरिया के कुनावात प्रान्त स्थित ओका नदी में प्रजनन करते हैं। यहां सितम्बर माह में सर्दी बढ़ने पर और बच्चों के उड़ने लायक हो जाने पर यह कजाकिस्तान-साइबेरिया की सीमा में कुछ दिन रुकते हैं और फिर उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान व पाकिस्तान होते हुए भारत आते हैं। इनमें से लगभग 600 पक्षी प्रजातियां लगभग एक से डेड़ माह की उड़ान के बाद भारत पहुंचती हैं, जिनमें से 200 से अधिक उत्तराखण्ड के पहाड़ों और खास तौर पर अक्टूबर से नवंबर अन्त तक नैनीताल पहुँच जाते हैं। इनके उपग्रह एवं ट्रांसमीटर की मदद से भी रूट परीक्षण किए गऐ हैं। इस प्रकार दुनियां की कुल 10.5 हजार पक्षी प्रजातियों में से देश में जो 1266 प्रजातियां हैं उनमें से 600 से अधिक प्रजातियां नैनीताल में पाई जाती हैं। डीएफओ डीएस मीणा ने बताया कि इधर नैनीताल में पूर्वी हिमालय के भूटान में पायी जाने वाली हरी रंग की खूबसूरत हेलमेट बर्ड नाम से विख्यात लांग टेल ब्रॉड बिल के करीब आधा दर्जन जोड़े भी सातताल क्षेत्र में करीब 3 महीने प्रवास करती रिकार्ड की गयी है। वहीं नैनीताल चिड़ियाघर में भी 49 पक्षी प्रजातियां रिकार्ड की गयी हैं।

नैनीताल जिले में पाए जाने वाली अन्य पक्षी

नैनीताल जिले में पाए जाने वाले पक्षियों में रेड बिल्ड ब्लू मैगपाई, रेड बिल्ड मैगपाई, किंगफिशर, नीले-गले और भूरे रंग के शिर वाले बारबेट, लिनेटेड बारबेट, क्रिमसन फ्रंटेड बारबेट, कॉपरस्मिथ बारबेट, प्लम हेडेड पाराकीट यानी कठफोड़वा, स्लेटी हेडेड पाराकीट, चेस्टनट बेलीड थ्रस, टिटमाउस, बाबलर्स, जंगल आवलेट, फिश ईगल, हिमालय कठफोड़वा, पाइड कठफोड़वा, ब्राउन कैप्ड वुडपीकर, ग्रे कैप्ड पिग्मी वुडपीकर, ब्राउन फ्रंटेड वुडपीकर, स्ट्राइप ब्रेस्टेड वुडपीकर, येलो क्राउन्ड वुडपीकर, रूफोस बेलीड वुडपीकर, क्रिमसन ब्रेस्टेड यानी लाल छाती वाला कठफोड़वा, हिमालयी कठफोड़वा, लेसर येलोनेप वुडपीकर, ग्रेटर येलोनेप वुडपीकर, स्ट्रेक थ्रोटेड वुडपीकर, ग्रे हेेडेड यानी भूरे शिर वाला कठफोड़वा, स्केली बेलीड वुडपीकर, कॉमन फ्लेमबैक वुडपीकर, लेडी गोल्ड सनबर्ड, क्रिमसन सनबर्ड, हिमालयन किंगफिशर, ब्राउन हेडेट स्टार्क बिल्ड किंगफिशर, स्टार्क बिल्ड किंगफिशर, पाइड किंगफिशर, कॉमन किंगफिशर, ब्लू इयर्ड किंगफिशर, ग्रीन-टेल्ड सनबर्ड, बैगनी सनबर्ड, मिसेज गॉल्ड सनबर्ड, काले गले वाली ब्लेक थ्रोटेड सनबर्ड, ब्लेक ब्रेस्टेड यानी काले छाती वाली सनबर्ड, फायर टेल्ड सनबर्ड, रसेट यानी लाल गौरैया, फिंच, माउंटेन हॉक ईगल, काले ईगल, सफेद पूंछ वाली नीडल टेल, काली बुलबुल, येलो थ्रोटेड यानी पीले गले वाली वार्बलर, लेमन रम्प्ड वार्बलर, एशी यानी राख जैसे गले वाली वार्बलर, आम गिद्ध, लॉफिंगथ्रश, इंडियन ट्री पाइज, ब्लू ह्विसलिंग थ्रस यानी चिड़िया, लैम्रेगियर, हिमालयन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन, क्रेस्टेड सेरपेंट ईगल, फ्लाई कैचर्स यानी तितलियां पकड़ने वाले, चीड़ फीजेंट्स, कलीज फीजेंट्स, कोकलास फीजेंट्स, डॉलर बर्ड, लीफ बर्ड्स, फ्लावर पीकर, थिक बिल्ड फ्लावरपीकर, प्लेन लीफ फ्लावरपीकर, फायर ब्रेस्टेड फ्लावरपीकर, ब्लेक हेडेड जे, यूरेशियन जे, स्केली ब्रेस्टेड रेन बाबलर, ब्लेक चिन्ड बाबलर, रुफोस बाबलर, ब्लेक कैप्ड सिबिया, ब्लू ह्विसलिंग थ्रस, ह्वाइट रम्प्ड नीडलटेल, ब्लेक हेडेड जे, ब्लेक लोर्ड, ब्लेक थ्रोटेड टिट्स यानी छोटी चिड़िया,रूफोस ब्रेस्टेड एसेंटर, ग्रे विंग्ड ब्लेक बर्ड यानी भूरे पंखों वाली काली चिड़िया, कॉमर बुजॉर्ड, पिंक ब्रावड रोजफिंच, कॉमर वुड पिजन, चेस्टनट टेल्ड मिन्ला।

‘माउंटेन क्वेल’

d4359 mountainquail‘माउंटेन क्वेल’ यानि “काला तीतर” को केवल भारत में तथा आखिरी बार 1876 में नैनीताल की “शेर-का-डांडा” पहाडी में देखने के दावे किये जाते हैं। इस पक्षी को उस समय मेजर कास्वेथन नाम के अंग्रेज द्वारा मारे जाने की बात कही जाती है। इससे पूर्व 1865 में कैनथ मैकनन ने मसूरी के बुद्धराजा व बेकनाग के बीच में इसके एक जोड़े का शिकार किया था, जबकि 1867 में मसूरी के जेवपानी में कैप्टन हटन ने अपने घर के पास इसके आधा दर्जन जोड़े देखने का दावा किया था। आम तौर पर पहाड़ी बटेर कहे जाने माउंटेन क्वेल की गर्दन चकोर की सफेद रंग की गर्दन से इतर काली होती है। आम तौर पर जोड़े में दिखने वाले और घास के मैदानों में रहने वाले इस पक्षी का प्रिय भोजन घास के बीज बताए जाते हैं। कांग्रेस के संस्थापक व प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ एओ ह्यूम द्वारा 1885 में लिखे एक दस्तावेज के अनुसार विश्व में इसकी केवल 10 खालें ही उपलब्ध थीं, जिनमें से पांच खालें स्वयं ह्यूम के संग्रहलय में, दो खालें लार्ड डर्बिन के संग्रहालय में तथा एक-एक ब्रिटिश म्यूजियम व कर्नल टाइटलर के संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई थीं। नैनीताल में मारी गई आखिरी माउंटेन क्वेल की खाल के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

नैनीताल जू में जर्मनी, इटली, उजबेकिस्तान से आएंगे हिम तेंदुए

-साथ ही दार्जिलिंग से एक नर मारखोर व रेड पांडा भी लाने की चल रही है कोशिश

-नस्ल सुधार के लिए ‘ब्लड एक्सचेंज’ यानी ‘रक्त बदलाव’ की प्रक्रिया के तहत पक्षियों व रेड पांडा की अदला-बदली करने की भी चल रही कोशिश
नैनीताल। सरोवरनगरी स्थित गोविंद बल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान में शीघ्र जर्मनी, इटली अथवा उज्बेकिस्तान से हिम तेंदुए का एक जोड़ा तथा दार्जिलिंग स्थित चिड़ियाघर से एक नर मारखोर लाने और एक रेड पांडा की ‘ब्लड एक्सचेंज’ यानी ‘रक्त बदलाव’ की प्रक्रिया के तहत अदला-बदली करने की कोशिश चल रही है। यह जानकारी देते हुए चिड़ियाघर के निदेशक डीएफओ धर्म सिंह मीणा ने बताया कि इस हेतु राष्ट्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से पत्राचार चल रहा है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में नैनीताल जू में हिम तेंदुआ था, जिसकी मृत्यु हो गयी थी। इसी तरह दार्जिलिंग से लाये गए पाकिस्तान के राष्ट्रीय पशु मारखोर के जोड़े में से नर की जल्दी ही मृत्यु हो जाने के बाद से इसकी मादा अकेली पड़ी हुई है। वहीं हालिया वर्षों में यहां दार्जिलिंग से ही लाये गए रेड पांडा ने सफलता पूर्वक अपने बच्चों को भी जन्म दिया है।
विदित हो कि बृहस्पतिवार को यहां कानपुर चिड़ियाघर से लेडी एम्हर्स्ट, गोल्डन एम्हर्स्ट, रेड जंगल फाउल व सिल्वर फीजेंट के चार नर व पांच मादा पक्षी ‘ब्लड एक्सचेंज’ की प्रक्रिया के तहत लाये गये हैं, और इन्हीं प्रजातियों के यहां पहले से मौजूद इतने ही पक्षियों को इसी कोशिश के तहत कानपुर भेजा जा रहा है।

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-नैनीताल जू में जर्मनी, इटली, उजबेकिस्तान से आएंगे हिम तेंदुए, साथ ही दार्जिलिंग से एक नर मारखोर व रेड पांडा भी लाने की चल रही है कोशिश
नैनीताल। सरोवरनगरी स्थित गोविंद बल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान में शीघ्र जर्मनी, इटली अथवा उज्बेकिस्तान से हिम तेंदुए का एक जोड़ा तथा दार्जिलिंग स्थित चिड़ियाघर से एक नर मारखोर लाने और एक रेड पांडा की ‘ब्लड एक्सचेंज’ यानी ‘रक्त बदलाव’ की प्रक्रिया के तहत अदला-बदली करने की कोशिश चल रही है। यह जानकारी देते हुए चिड़ियाघर के निदेशक डीएफओ धर्म सिंह मीणा ने बताया कि इस हेतु राष्ट्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से पत्राचार चल रहा है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में नैनीताल जू में हिम तेंदुआ था, जिसकी मृत्यु हो गयी थी। इसी तरह दार्जिलिंग से लाये गए पाकिस्तान के राष्ट्रीय पशु मारखोर के जोड़े में से नर की जल्दी ही मृत्यु हो जाने के बाद से इसकी मादा अकेली पड़ी हुई है। वहीं हालिया वर्षों में यहां दार्जिलिंग से ही लाये गए रेड पांडा ने सफलता पूर्वक अपने बच्चों को भी जन्म दिया है।
विदित हो कि बृहस्पतिवार को यहां कानपुर चिड़ियाघर से लेडी एम्हर्स्ट, गोल्डन एम्हर्स्ट, रेड जंगल फाउल व सिल्वर फीजेंट के चार नर व पांच मादा पक्षी ‘ब्लड एक्सचेंज’ की प्रक्रिया के तहत लाये गये हैं, और इन्हीं प्रजातियों के यहां पहले से मौजूद इतने ही पक्षियों को इसी कोशिश के तहत कानपुर भेजा जा रहा है।

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गौरैया

 
Green Pegeon (हरियल)

घुघुती न बासा….. पहाड़ के सर्वप्रिय पक्षी घुघूती के साथ ही पहाड़ के अन्य पक्षियों को देखने के लिए पक्षी प्रेमियों का पसंदीदा पड़ाव है नैनीताल

विश्व भर के पक्षियों का जैसे तीर्थ है नैनीताल

नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी नैनीताल की विश्व प्रसिद्ध पहचान पर्वतीय पर्यटन नगरी के रूप में ही की जाती है, इसकी स्थापना ही एक विदेशी सैलानी पीटर बैरन ने 18 नवम्बर 1841 में की थी, और तभी से यह  नगर देश-विदेश के सैलानियों का स्वर्ग है। लेकिन इससे इतर इस नगर की एक और पहचान विश्व भर में है, जिसे बहुधा कम ही लोग शायद जानते हों। इस पहचान के लिए नगर को न तो कहीं बताने की जरूरत है, और नहीं महंगे विज्ञापन करने की। दरअसल यह पहचान मानव नहीं वरन पक्षियों के बीच है। पक्षी विशेषज्ञ उत्तराखंड के अपर प्रमुख वन संरक्षक धनञ्जय मोहन के अनुसार दुनियां में 10,000 पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भारत में 1263 पक्षी प्रजातियां, और कुमाऊँ में 710 पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं। और कुमाऊँ में पाई जाने वाली पक्षी प्रजातियों में से 70-80 प्रतिशत नैनीताल में पाई जाती हैं। वहीँ अन्य विशेषज्ञों के अनुसार भी नैनीताल में 600 पक्षी प्रजातियां मिलती हैं। इनके अलावा भी प्रवासी पक्षियों या पर्यटन की भाषा में पक्षी सैलानियों की बात करें तो देश में कुल आने वाली 400 प्रवासी पक्षी प्रजातियों में से 200 से अधिक यहां आती हैं, जबकि 200 से अधिक पक्षी प्रजातियों का यहां प्राकृतिक आवास भी है। यही आकर्षण है कि देश दुनियां के पक्षी प्रेमी प्रति वर्ष बड़ी संख्या में केवल पक्षियों के दीदार को यहाँ पहुंचाते हैं. इस प्रकार नैनीताल को विश्व भर के पक्षियों का तीर्थ कहा जा सकता है।
  • देश की 1263 पक्षी प्रजातियों में से 600 हैं यहां
  • देश में आने वाली 400 प्रवासी प्रजातियों में से 200 से अधिक भी आती हैं यहां
  • स्थाई रूप से 200 प्रजातियों का प्राकृतिक आवास भी है नैनीताल
  • आखिरी बार ‘माउनटेन क्वेल’ को भी नैनीताल में ही देखा गया था 

नैनीताल में पक्षियों की संख्या के बारे में यह दावे केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी पार्क भरतपुर राजस्थान के मशहूर पक्षी गाइड बच्चू सिंह ने किऐ हैं। वह गत दिनों ताईवान के लगभग 100 पक्षी प्रेमियों को जयपुर की संस्था इण्डिविजुअल एण्ड ग्रुप टूर्स के मनोज वर्धन के निर्देशन में यहाँ लाये थे. इस दौरान ताईवान के पक्षी प्रेमी जैसे ही यहाँ पहुंचे, उन्हें अपने देश की ग्रे हैरौन एवं चीन, मंगोलिया की शोवलर, पिनटेल, पोचर्ड, मलार्ड व गार्गनी टेल जैसी कुछ चिड़ियाऐं तो होटल परिसर के आसपास की पहाड़ियों पर ही जैसे उनके इन्तजार में ही बैठी हुई मिल गईं। उन्हें यहां रूफस सिबिया, बारटेल ट्री क्रीपर, चेसनेट टेल मिल्ला आदि भी मिलीं। मनोज वर्धन के अनुसार वह कई दशकों से यहाँ विदेशी दलों को पक्षी दिखाने ला रहे हैं. यहां मंगोली, बजून, पंगोट, सातताल व नैनीझील एवं कूड़ा खड्ड पक्षियों के जैसे तीर्थ ही हैं। उनका मानना है कि अगर देश-विदेश में नैनीताल का इस रूप में प्रचार किया जाऐ तो यहां अनंत संभावनायें हैं। अब गाइड बच्चू सिंह की बात करते हैं। वह बताते हैं जिम कार्बेट पार्क, तुमड़िया जलाशय, नानक सागर आदि का भी ऐसा आकर्षण है कि हर प्रवासी पक्षी अपने जीवन में एक बार यहां जरूर आता है।वह प्रवासी पक्षियों का रूट बताते हैं। गर्मियों में लगभग 20 प्रकार की बतखें, तीन प्रकार की क्रेन सहित सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी साइबेरिया के कुनावात प्रान्त स्थित ओका नदी में प्रजनन करते हैं। यहां सितम्बर माह में सर्दी बढ़ने पर और बच्चों के उड़ने लायक हो जाने पर यह कजाकिस्तान-साइबेरिया की सीमा में कुछ दिन रुकते हैं और फिर उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान व पाकिस्तान होते हुए भारत आते हैं। इनमें से लगभग 600 पक्षी प्रजातियां लगभग एक से डेड़ माह की उड़ान के बाद भारत पहुंचती हैं, जिनमें से 200 से अधिक उत्तराखण्ड के पहाड़ों और खास तौर पर अक्टूबर से नवंबर अन्त तक नैनीताल पहुँच जाते हैं। इनके उपग्रह एवं ट्रांसमीटर की मदद से भी रूट परीक्षण किए गऐ हैं। 

इस प्रकार दुनियां की कुल साढ़े दस हजार पक्षी प्रजातियों में से देश में जो 1100 प्रजातियां भारत में हैं उनमें से 600 से अधिक प्रजातियां नैनीताल में पाई जाती हैं। यहां उन्हें अपनी आवश्यकतानुसार दलदली, रुके या चलते पानी और जंगल में अपने खाने योग्य कीड़े मकोड़े और अन्य खाद्य वनस्पतियां आसानी से मिल जाती हैं। 

नैनीताल जिले में पाए जाने वाली अन्य पक्षी

नैनीताल जिले में पाए जाने वाले पक्षियों में रेड बिल्ड ब्लू मैगपाई, रेड बिल्ड मैगपाई, किंगफिशर, नीले-गले और भूरे रंग के शिर वाले बारबेट, लिनेटेड बारबेट, क्रिमसन फ्रंटेड बारबेट, कॉपरस्मिथ बारबेट, प्लम हेडेड पाराकीट यानी कठफोड़वा, स्लेटी हेडेड पाराकीट, चेस्टनट बेलीड थ्रस, टिटमाउस, बाबलर्स, जंगल आवलेट, फिश ईगल, हिमालय कठफोड़वा, पाइड कठफोड़वा, ब्राउन कैप्ड वुडपीकर, ग्रे कैप्ड पिग्मी वुडपीकर, ब्राउन फ्रंटेड वुडपीकर, स्ट्राइप ब्रेस्टेड वुडपीकर, येलो क्राउन्ड वुडपीकर, रूफोस बेलीड वुडपीकर, क्रिमसन ब्रेस्टेड यानी लाल छाती वाला कठफोड़वा, हिमालयी कठफोड़वा, लेसर येलोनेप वुडपीकर, ग्रेटर येलोनेप वुडपीकर, स्ट्रेक थ्रोटेड वुडपीकर, ग्रे हेेडेड यानी भूरे शिर वाला कठफोड़वा, स्केली बेलीड वुडपीकर, कॉमन फ्लेमबैक वुडपीकर, लेडी गोल्ड सनबर्ड, क्रिमसन सनबर्ड, हिमालयन किंगफिशर, ब्राउन हेडेट स्टार्क बिल्ड किंगफिशर, स्टार्क बिल्ड किंगफिशर, पाइड किंगफिशर, कॉमन किंगफिशर, ब्लू इयर्ड किंगफिशर, ग्रीन-टेल्ड सनबर्ड, बैगनी सनबर्ड, मिसेज गॉल्ड सनबर्ड, काले गले वाली ब्लेक थ्रोटेड सनबर्ड, ब्लेक ब्रेस्टेड यानी काले छाती वाली सनबर्ड, फायर टेल्ड सनबर्ड, रसेट यानी लाल गौरैया, फिंच, माउंटेन हॉक ईगल, काले ईगल, सफेद पूंछ वाली नीडल टेल, काली बुलबुल, येलो थ्रोटेड यानी पीले गले वाली वार्बलर, लेमन रम्प्ड वार्बलर, एशी यानी राख जैसे गले वाली वार्बलर, आम गिद्ध, लॉफिंगथ्रश, इंडियन ट्री पाइज, ब्लू ह्विसलिंग थ्रस यानी चिड़िया, लैम्रेगियर, हिमालयन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन, क्रेस्टेड सेरपेंट ईगल, फ्लाई कैचर्स यानी तितलियां पकड़ने वाले, चीड़ फीजेंट्स, कलीज फीजेंट्स, कोकलास फीजेंट्स, डॉलर बर्ड, लीफ बर्ड्स, फ्लावर पीकर, थिक बिल्ड फ्लावरपीकर, प्लेन लीफ फ्लावरपीकर, फायर ब्रेस्टेड फ्लावरपीकर, ब्लेक हेडेड जे, यूरेशियन जे, स्केली ब्रेस्टेड रेन बाबलर, ब्लेक चिन्ड बाबलर, रुफोस बाबलर, ब्लेक कैप्ड सिबिया, ब्लू ह्विसलिंग थ्रस, ह्वाइट रम्प्ड नीडलटेल, ब्लेक हेडेड जे, ब्लेक लोर्ड, ब्लेक थ्रोटेड टिट्स यानी छोटी चिड़िया,रूफोस ब्रेस्टेड एसेंटर, ग्रे विंग्ड ब्लेक बर्ड यानी भूरे पंखों वाली काली चिड़िया, कॉमर बुजॉर्ड, पिंक ब्रावड रोजफिंच, कॉमर वुड पिजन, चेस्टनट टेल्ड मिन्ला,

‘माउंटेन क्वेल’

‘माउंटेन क्वेल’ यानि “काला तीतर” को केवल भारत में तथा आखिरी बार 1876 में नैनीताल की “शेर-का-डांडा” पहाडी में देखने के दावे किये जाते हैं। इस पक्षी को उस समय मेजर कास्वेथन नाम के अंग्रेज द्वारा मारे जाने की बात कही जाती है। इससे पूर्व 1865 में कैनथ मैकनन ने मसूरी के बुद्धराजा व बेकनाग के बीच में इसके एक जोड़े का शिकार किया था, जबकि 1867 में मसूरी के जेवपानी में कैप्टन हटन ने अपने घर के पास इसके आधा दर्जन जोड़े देखने का दावा किया था। आम तौर पर पहाड़ी बटेर कहे जाने माउंटेन क्वेल की गर्दन चकोर की सफेद रंग की गर्दन से इतर काली होती है। आम तौर पर जोड़े में दिखने वाले और घास के मैदानों में रहने वाले इस पक्षी का प्रिय भोजन घास के बीज बताए जाते हैं। कांग्रेस के संस्थापक व प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ एओ ह्यूम द्वारा  1885 में लिखे एक दस्तावेज के अनुसार विश्व में इसकी केवल 10 खालें ही उपलब्ध थीं, जिनमें से पांच खालें स्वयं ह्यूम के संग्रहलय में, दो खालें लार्ड डर्बिन के संग्रहालय में तथा एक-एक ब्रिटिश म्यूजियम व कर्नल टाइटलर के संग्रहालय में सुरक्षित रखी गई थीं। नैनीताल में मारी गई आखिरी माउंटेन क्वेल की खाल के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

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