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December 22, 2024

उत्तराखंड में भी एक रामेश्वर, रामेश्वरम की तर्ज पर भगवान राम ने की थी शिव लिंग की स्थापना, यहीं ली थी शिक्षा…

Ramlila

नवीन समाचार, आस्था डेस्क, 12 अक्टूबर 2024 (Rameshwar-Uttarakhand-Ram established Shiv Ling)। आज पूरे देश-दुनिया में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अयोध्या में जन्म स्थान पर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुल रहे मंदिर की चर्चा है। लेकिन आज हम आपको उत्तराखंड में स्थित भगवान राम के उस पौराणिक मंदिर की जानकारी देने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान राम ने स्वयं यहां रामेश्वरम की तर्ज पर शिव लिंग की स्थापना की थी। इसीलिये इस स्थान का नाम भी रामेश्वर है। कहते हैं कि यहीं भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी। देखें वीडिओ:

रामेश्वर धाम उत्तराखंड में पिथौरागढ़ जनपद मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर पहले घाट-पनार के बीच रामगंगा और सरयू नदी के संगम पर स्थित है। कहते हैं कि इस स्थान पर सरयू व रामगंगा के अलावा पाताल भुवनेश्वर से निकली गुप्त गंगा का संगम भी होता है।

स्कन्द पुराण के मानस खंड में कूर्मांचल के रामेश्वर माहात्म्य में वर्णित है कि भगवान राम ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। कहा गया है कि यहां स्थित शिव लिंग के पूजन से काशी विश्वनाथ के पूजन की अपेक्षा दस गुना अधिक पुण्य फल प्राप्त होता है। देखें वीडिओ:

कहा जाता है कि सेतुबंध रामेश्वर में जब भगवान श्री राम ने शिव लिंग की स्थापना करनी चाही तो उन्होंने श्री हनुमान जी को कैलाश पर्वत पर भेजकर शिवलिंग लाने के लिए कहा किन्तु शुभ मुहूर्त निकल जाने व हनुमान जी द्वारा शिवलिंग लाने पर देरी हो जाने पर श्री राम ने बालू से रामेश्वर में शिवलिंग की स्थापना की और बाद में अपनी नर लीला समाप्त करने से पूर्व स्वर्ग जाने से पहले 72 यज्ञ सम्पन्न करने के पश्चात यहां पर जन कल्याण के लिये शिवलिंग प्रतिष्ठित किया।

Rameshwar-Uttarakhand-Ram established Shiv Ling

स्कन्दपुराण में इस बात का भी जिक्र है कि अयोध्या के राजकुमारों यानी राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न की शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा के लिये ब्रह्मा के पुत्र वशिष्ठ का चयन किया गया। गुरु वशिष्ठ ने राजकुमारों की शिक्षा के लिये हिमालय की घाटियों का भ्रमण शुरू किया। तब उन्हें सरयू और रामगंगा के इस संगम पर भगवान विष्णु के चरण चिन्ह मिले। यहीं वशिष्ठ ने आश्रम की स्थापना की।

इस प्रकार भगवान राम और उनके भाइयों को शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा इसी संगम पर दी गयी। रामेश्वर से एक किलोमीटर दूर बौतड़ी ग्राम में महर्षि वशिष्ठ के आश्रम के खंडहर आज भी विद्यमान बताये जाते हैं। स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 95वे अध्याय में इस स्थान का वर्णन मिलता है।

कहा जाता है कि कौशल देश यानी अयोध्या में जन्मे दशरथ के पुत्र अवतार पुरुष भगवान श्री राम चन्द्र ने सत्यलोक जाने की इच्छा से यहां पर शंकर का पूजन किया। शिव कृपा से उन्होंने सशरीर बैकुण्ठ धाम को प्रस्थान किया। उन्होंने यहां पर जगत कल्याण के लिए शिवलिंग स्थापित किया। रामेश्वर में एक शिला स्वर्गारोहण की दिव्य शिला भी कही जाती है।

कुछ दशक पूर्व तक कैलाश मानसरोवर यात्री यहां स्नान और पूजन करके ही आगे की यात्रा प्रारम्भ करते थे। मकर संक्रांति और महा शिव रात्रि के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जहां स्थानीय जनता बढ़-चढ़कर भागीदारी करती है।

यह पिथौरागढ़, चम्पावत, अल्मोड़ा और गंगोलीहाट के लोगों का शमशान घाट भी है। परम्परानुसार यहां दाह करने पर अस्थियां अन्य तीर्थों हरिद्वार, काशी, प्रयाग आदि में नहीं पहुंचाई जाती है। यहां पर शिव की पूजा-अर्चना करने से मानव के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह शिव लोक को प्राप्त करता है। साथ ही माना जाता है कि श्रद्धा पूर्वक यहां पूजन करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को अपना शुभ आशीष प्रदान करते हैं।

कहते हैं कि रामेश्वर आदिकाल से ही राजाओं के अधीन न रहने वाला क्षेत्र है। यहां के पुजारियों को दीप धृत चन्द राजा चित्तौड़गढ़ से लेकर यहां आये जिनके वंशज गिरी लोग यहां आये जिनके वंशज गिरी लोग यहां पूजा-अर्चना का कार्य देख रहे हैं। यहां राजा उद्योत चंद का शाके 1604 का एक विशाल ताम्र पत्र उत्कीर्ण है। (Rameshwar-Uttarakhand-Ram established Shiv Ling)

जिसमें लिखा है कि राजा रुद्र चन्द ने यहां भक्तों के दर्शन के लिए व्यवस्था की थी। यहां सन 1789 ई. का राजा महेंद्र चन्द का भूमिदान सम्बन्धी शासनादेश भी उपलब्ध है जिसमें यहां पूजा, नित्यभोग और अखंड दीप सेवा का आदेश दिया गया है। (Rameshwar-Uttarakhand-Ram established Shiv Ling)

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