बैंक मैनेजर से प्रगतिशील किसान बने महेंद्र, हवा में उगने वाला ‘एयर पोटैटो’ (गेठी) को बनाया पहाड़ों की नई उम्मीद

नवीन समाचार, अल्मोड़ा, 21 दिसंबर 2025 (Air Potato-Gethi-Grows in the Air)। अल्मोड़ा जनपद के एक छोटे से गांव से निकली यह कहानी केवल व्यक्तिगत सफलता की नहीं, बल्कि पहाड़ों में रोजगार, आत्मनिर्भरता और टिकाऊ खेती की नई राह दिखाने वाली मिसाल बन चुकी है। कभी नोएडा में एक निजी बैंक में प्रबंधक रहे महेंद्र मनराल ने नौकरी छोड़कर अपने गांव लौटने का जो निर्णय लिया, वह आज सैकड़ों परिवारों के जीवन को दिशा दे रहा है। कोविड काल में गांव लौटने के बाद उन्होंने पारंपरिक लेकिन लगभग भुला दी गई फसल ‘गेठी’ यानी ‘एयर पोटैटो’ (Dioscorea Bulbifera) की खेती को आधुनिक स्वरूप देकर पहाड़ों के लिए नई उम्मीद खड़ी की है।
नौकरी से गांव वापसी तक की यात्रा-कोविड ने बदली सोच, खेती बनी विकल्प
अल्मोड़ा जनपद के सोनगांव निवासी महेंद्र मनराल कभी नोएडा स्थित एक निजी बैंक की ऋण शाखा में प्रबंधक थे। बचपन से खेत-खलिहानों से जुड़ाव होने के बावजूद रोज़गार के लिए उन्हें मैदानों का रुख करना पड़ा। लेकिन कोविड काल में जब वे गांव लौटे, तो उन्होंने देखा कि आसपास के लोग आर्थिक तंगी, बेरोज़गारी और पलायन की मजबूरी से जूझ रहे हैं। यहीं से उनके भीतर यह सवाल उठा कि क्या पहाड़ों में रहकर ही स्थायी रोज़गार संभव है। इसी सोच ने उनकी दिशा बदल दी।
‘एयर पोटैटो’ क्यों है खास-जमीन में नहीं, हवा में उगने वाली फसल
महेंद्र ने अपनी पत्नी दीपा मनराल और बहन शोभा रौतेला के साथ मिलकर करीब छह लाख रुपये का ऋण लेकर खेती की शुरुआत की। उन्होंने जिस फसल को चुना, वह थी पारंपरिक पहाड़ी कंद ‘गेठी’, जिसे अंग्रेजी में ‘एयर पोटैटो’ कहा जाता है। यह आलू की तरह दिखता जरूर है, लेकिन जमीन में नहीं बल्कि बेलों पर हवा में उगता है। यह रतालू परिवार का पौधा है, जो करीब दो हजार मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अच्छी पैदावार देता है। इसकी पहचान इसके औषधीय गुणों के कारण भी है, हालांकि यह तेजी से फैलने वाला पौधा माना जाता है, इसलिए इसकी नियंत्रित खेती आवश्यक होती है।
औषधीय गुण और बढ़ती मांग-स्वास्थ्य और बाजार, दोनों में उपयोगी
गेठी की तासीर गर्म मानी जाती है और यह पाचन, खांसी, रक्तचाप, जोड़ों के दर्द और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक मानी जाती है। इसमें रेशा, लौह तत्व, पोटैशियम और एंटीआक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका उपयोग सब्जी के रूप में, उबालकर, भूनकर और औषधीय उत्पादों में किया जाता है। पहाड़ों पर सर्दियों के मौसम में परंपरागत तौर पर खूब खाया जाता है। वर्तमान दौर में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण इसकी मांग लगातार बढ़ रही है, जिसका लाभ पहाड़ी किसानों को मिल रहा है।
खेती से सामूहिक समृद्धि-हजार से अधिक लोग जुड़े, लाखों की आय
आज महेंद्र केवल एयर पोटैटो तक सीमित नहीं हैं। वे जमीन के नीचे उगने वाले मूल-तरुड़, आलू और जैविक दालों की खेती भी कर रहे हैं। उनके मॉडल से एक हजार से अधिक किसान और महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जुड़ चुके हैं। इस व्यवस्था से जुड़े लोगों की मासिक आय 25 से 35 हजार रुपये तक पहुंच रही है, जबकि महेंद्र की वार्षिक आय करीब 25 लाख रुपये बताई जा रही है। यह मॉडल पहाड़ों में लघु उद्योग, कृषि आधारित उद्यम और पलायन रोकने की दिशा में प्रभावी उदाहरण बन रहा है।
आनलाइन माध्यम से गांव से वैश्विक बाजार तक पहुँच
महेंद्र के उत्पाद आनलाइन मंचों के जरिए देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ विदेशों तक पहुंच रहे हैं। अमेरिका जैसे देशों में भी उनके उत्पादों की मांग है। उनका कहना है कि सही दिशा, तकनीक और भरोसा मिले तो खेती कभी घाटे का सौदा नहीं होती। आज हवा में उगने वाला यह आलू पहाड़ों के लिए केवल एक फसल नहीं, बल्कि आत्मसम्मान, रोज़गार और भविष्य की नई बेल बन चुका है।
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डॉ.नवीन जोशी, पिछले 20 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय, ‘कुमाऊँ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पीएचडी की डिग्री प्राप्त पहले और वर्ष 2015 से उत्तराखंड सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं। 15 लाख से अधिक नए उपयोक्ताओं के द्वारा 150 मिलियन यानी 1.5 करोड़ से अधिक बार पढी गई आपकी अपनी पसंदीदा व भरोसेमंद समाचार वेबसाइट ‘नवीन समाचार’ के संपादक हैं, साथ ही राष्ट्रीय सहारा, हिन्दुस्थान समाचार आदि समाचार पत्र एवं समाचार एजेंसियों से भी जुड़े हैं। देश के पत्रकारों के सबसे बड़े संगठन ‘नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) उत्तराखंड’ के उत्तराखंड प्रदेश के प्रदेश महामंत्री भी हैं और उत्तराखंड के मान्यता प्राप्त राज्य आंदोलनकारी भी हैं।











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