December 22, 2025

उत्तराखंड को ‘विकसित भारत–जी राम जी ग्रामीण रोजगार योजना’ से मिलेंगे 125 दिन के कानूनी रोजगार और 90 प्रतिशत केंद्रीय हिस्सेदारी के विशेष लाभ, मनरेगा से हुए बदलाव भी जानें…

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डॉ. नवीन जोशी @  नैनीताल, 22 दिसंबर 2025 (VB-Ji Ram Ji Gramin Rojgar Yojna)। केंद्र की मोदी सरकार के द्वारा नाम परिवर्तित कर लाई गई ग्रामीण रोजगार से संबंधित बहुचर्चित योजना का यह समाचार उत्तराखंड सहित पर्वतीय राज्यों के लिए दूरगामी असर रखने वाली मानी जा रही है। केंद्र सरकार द्वारा लाए गए ‘विकसित भारत–जी राम जी विधेयक, 2025’ को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से स्वीकृति मिलने के बाद राज्य में ग्रामीण रोजगार की व्यवस्था नए ढांचे में प्रवेश कर रही है।

विकसित भारत - जी राम जी विधेयक, 2025 ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और  आजीविका के अवसरों को देगा बढ़ावा #ViksitBharat_G_RAM_Gइस प्रस्तावित कानून के तहत अब ग्रामीण परिवारों को पहले की तरह 100 नहीं, बल्कि 125 दिन का कानूनी रोजगार मिलने का प्रावधान किया गया है। खास बात यह है कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में इस योजना के कुल खर्च का 90 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार वहन करेगी, जिससे राज्य पर वित्तीय दबाव कम होने और गांवों में विकास कार्यों में तेजी आने की संभावना जताई जा रही है।

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मनरेगा से आगे का ढांचा-रोजगार गारंटी में क्या बदलेगा

बताया जा रहा है कि यह नया विधेयक मौजूदा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी व्यवस्था की जगह लेगा और रोजगार के अधिकार को अधिक मजबूत बनाएगा। इसके अंतर्गत प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ग्रामीण परिवारों को 125 दिन तक मजदूरी आधारित रोजगार की गारंटी दी जाएगी। सरकार का तर्क है कि इससे ग्रामीण आय में स्थिरता आएगी और मौसमी बेरोजगारी का असर कम होगा। पहाड़ी क्षेत्रों में जहां सीमित संसाधनों के कारण रोजगार के अवसर कम होते हैं, वहां यह प्रावधान विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

उत्तराखंड और पहाड़ी राज्यों के लिए 90:10 का वित्तीय अनुपात क्यों महत्वपूर्ण 

(VB-Ji Ram Ji Gramin Rojgar Yojna) विकसित भारत जी राम जी विधेयक, 2025 🔥 [ MGNREGA, Do you know, Current  Affairs, Gk, BPSC, UPPSC, State PSC] #mgnerga #BPSC #uppcs #doyouknow  #pscwallahनए ढांचे के अनुसार सामान्य राज्यों में योजना का खर्च 60:40 के अनुपात में केंद्र और राज्य साझा करेंगे, जबकि उत्तराखंड, हिमाचल और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए यह अनुपात 90:10 रखा गया है। इसका मतलब है कि उत्तराखंड सरकार को केवल 10 प्रतिशत राशि वहन करनी होगी। जानकारों के अनुसार इससे सड़क, जल संरक्षण, ग्रामीण अवसंरचना और आजीविका से जुड़े कार्यों को गति मिल सकती है, जो लंबे समय से पहाड़ी विकास की बड़ी जरूरत माने जाते रहे हैं।

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ग्राम सभाओं को मिलेगा अधिक अधिकार-योजना निर्माण में स्थानीय भागीदारी

नए प्रावधानों के तहत ‘विकसित ग्राम पंचायत योजना’ के माध्यम से ग्राम सभाओं और पंचायतों को योजना निर्माण की मुख्य जिम्मेदारी दी जाएगी। गांव स्तर पर यह तय किया जाएगा कि किस प्रकार के कार्य आवश्यक हैं, जैसे सड़क, जल आपूर्ति या अन्य बुनियादी सुविधाएं। इन योजनाओं को राष्ट्रीय मंचों से जोड़ने की बात कही जा रही है, ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग हो और दोहराव से बचा जा सके। इससे स्थानीय जरूरतों के अनुरूप विकास कार्य होने की उम्मीद जताई जा रही है।

मजदूरी भुगतान और पारदर्शिता-देरी पर दंड और निगरानी व्यवस्था 

प्रस्तावित कानून के अनुसार मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक या कार्य पूर्ण होने के 15 दिन के भीतर अनिवार्य रूप से किया जाएगा। यदि भुगतान में देरी होती है तो संबंधित प्रशासन को हर्जाना देना होगामजदूरी सीधे बैंक खाते में भेजे जाने का प्रावधान है। साथ ही बायोमेट्रिक उपस्थिति, सामाजिक लेखा-परीक्षा और जियो-टैगिंग जैसी व्यवस्थाओं के जरिए पारदर्शिता बढ़ाने की बात कही गई है, ताकि अनियमितताओं पर रोक लगाई जा सके।

किसानों और मजदूरों दोनों पर असर-विराम अवधि और बेरोजगारी भत्ता 

खेती के बुवाई और कटाई के समय श्रमिकों की कमी न हो, इसके लिए राज्य सरकार को 60 दिन की ‘विराम अवधि’ घोषित करने का अधिकार देने का उल्लेख किया गया है। इसके बावजूद मजदूरों का 125 दिन का रोजगार अधिकार बना रहेगा। साथ ही यदि काम मांगने के 15 दिन के भीतर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो बेरोजगारी भत्ता देना अनिवार्य होगा। इसे ग्रामीण सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से अहम कदम माना जा रहा है।

मनरेगा की तुलना में संरचनात्मक बदलाव-मांग आधारित अधिकार से योजना आधारित ढांचा

मनरेगा की सबसे बड़ी ताकत यह रही है कि यह पूरी तरह मांग आधारित कानून था। कोई भी ग्रामीण मजदूर काम मांगता था तो 15 दिन के भीतर काम देना कानूनी जिम्मेदारी थी, अन्यथा बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता था। नए विधेयक में रोजगार की गारंटी बनी हुई है, लेकिन योजना निर्माण को विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं और मानक आवंटन से जोड़ा गया है। आलोचकों का कहना है कि यदि पंचायत स्तर पर योजना समय से नहीं बनी या प्रशासनिक क्षमता कमजोर रही, तो गरीब मजदूरों को काम मिलने में देरी हो सकती है। ऐसे में सबसे कमजोर तबका, जो रोजाना की मजदूरी पर निर्भर है, असुरक्षित महसूस कर सकता है।

125 दिन का लाभ, लेकिन क्या सभी को मिलेगा-वास्तविक पहुंच पर सवाल

कागजों में 125 दिन का रोजगार बड़ा लाभ दिखता है, लेकिन मनरेगा के अनुभव बताते हैं कि बहुत कम परिवार ही पूरे 100 दिन का काम ले पाते थे। आशंका यह है कि नए ढांचे में भी 125 दिन का लाभ कुछ सीमित परिवारों तक ही सिमट सकता है। जिन मजदूरों के पास दस्तावेज, डिजिटल पहुंच या पंचायत स्तर पर प्रभाव नहीं है, वे पीछे छूट सकते हैं। इससे असमानता बढ़ने का खतरा माना जा रहा है।

डिजिटल और बायोमेट्रिक व्यवस्था, गरीबों के लिए नई चुनौती

नए विधेयक में बायोमेट्रिक उपस्थिति, डिजिटल भुगतान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित निगरानी को और सख्त करने की बात कही गई है। पारदर्शिता के लिहाज से यह जरूरी है, लेकिन जमीनी हकीकत यह भी है कि कई दूरस्थ और पहाड़ी क्षेत्रों में नेटवर्क, बिजली और तकनीकी सुविधाएं अब भी सीमित हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यदि बायोमेट्रिक उपस्थिति तकनीकी कारणों से दर्ज नहीं हो पाई, तो मजदूर की मजदूरी अटक सकती है। इसका सीधा नुकसान गरीब और बुजुर्ग मजदूरों को हो सकता है।

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विराम अवधि का प्रभाव-खेती के मौसम में काम न मिलने की आशंका

खेती के बुवाई और कटाई के समय 60 दिन की विराम अवधि का प्रावधान किसानों के लिए सहायक माना जा रहा है, लेकिन भूमिहीन मजदूरों के लिए यह चिंता का विषय भी बन सकता है। जिनके पास अपनी खेती नहीं है, उनके लिए यही समय अतिरिक्त कमाई का होता था। यदि इस अवधि में वैकल्पिक काम सुनिश्चित नहीं किया गया, तो उनकी आय पर असर पड़ सकता है। सवाल यह है कि क्या राज्य सरकारें इस संतुलन को व्यवहार में ठीक से साध पाएंगी।

पंचायतों पर बढ़ा दायित्व-क्षमता की असमानता से खतरा

नए ढांचे में ग्राम सभाओं और पंचायतों को अधिक अधिकार दिए गए हैं, जो सिद्धांत रूप से अच्छा कदम है। लेकिन देशभर में पंचायतों की प्रशासनिक क्षमता एक जैसी नहीं है। जहां पंचायतें मजबूत हैं, वहां मजदूरों को लाभ मिल सकता है, लेकिन कमजोर पंचायतों वाले क्षेत्रों में गरीब मजदूरों को योजना का पूरा फायदा न मिल पाने की आशंका बनी रहेगी।

निष्कर्ष : सतर्कता और निगरानी जरूरी

विकसित भारत–जी राम जी विधेयक, 2025 में ग्रामीण रोजगार को मजबूत करने की बड़ी संभावनाएं हैं, लेकिन इसके साथ यह जोखिम भी जुड़ा है कि यदि क्रियान्वयन में लचीलापन और मानवीय दृष्टिकोण नहीं रखा गया, तो सबसे गरीब मजदूर पीछे छूट सकते हैं। मनरेगा की तुलना में यह ढांचा अधिक संरचित और तकनीकी है, जो तभी सफल होगा जब राज्यों और पंचायतों की क्षमता समान रूप से मजबूत की जाए। असली परीक्षा कागजों में नहीं, बल्कि गांव के सबसे कमजोर मजदूर के जीवन में आने वाले बदलाव से होगी।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था, पलायन, रोजगार और अवसंरचना के संदर्भ में इस नए ढांचे को लेकर उम्मीदें भी हैं और सवाल भी उठ रहे हैं कि इसका क्रियान्वयन जमीन पर कैसे होगा। आने वाले समय में इसके नियम, दिशा-निर्देश और राज्य स्तरीय तैयारियां ही तय करेंगी कि यह बदलाव उत्तराखंड के गांवों में कितना असरदार साबित होता है। योजना की पूरी जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करके भी जान सकते हैं। 

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