गंगा दशहरा पर गंगा पर हुआ वेबिनार, बताया देश की 43 फीसदी जनसंख्या गंगा से सीधे प्रभावित होती है
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 20 जून 2021। सोमवार को गंगा दशहरा के पर कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के शोध एवं प्रसार निदेशालय, राष्ट्रीय सेवा योजना प्रकोष्ठ, कूटा, डॉ. वाईपीएस पांगती फॉउंडेशन, एसएमडीसी नैनीताल, इग्नू के द्वारा ‘गंगा रिजूविनेशन अवर हेरिटैज’ विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार का संचालन करते हुए विश्वविद्यालय के शोध एवं प्रसार निदेशक प्रो. ललित तिवारी ने गंगा के महत्व पर जानकारी देते हुए कहा कि गंगा नदी आस्था, उम्मीद, संस्कृति एवं शुद्धता की प्रेरणा होने के साथ ही करोडो लोगों को आजीविका भी देती है।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.एनके जोशी ने कहा कि देश की 43 फीसद जनसंख्या गंगा से सीधे प्रभावित होती है। औद्योगिक कचरे ने इसे बुरी तरह से प्रदूषित किया है। एफएनएए के पूर्व निदेशक प्रो.गोपाल सिंह रावत ने गंगा में मिलने वाली सभी नदियों को स्वच्छ एवं संरक्षित करने और हिमालय को भी संरक्षित करने की आवश्यकता जताते हुए युवा वैज्ञानिकों से आगे आने की अपील की। एफएनएएस बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के प्रो. एनके दुबे ने गंगा की वैज्ञानिकता, धार्मिकता तथा सरकारी प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गंगा विश्व विरासत है। उत्तराखंडवासी भाग्यशाली हैं कि यहां पांच प्रयाग हैं। उन्होंने बताया कि गंगा में सीवरेज डिस्पोजल तथा औद्योगिक कचरा 204 एमएलडी एवं 300 एमएलडी तक है। रिजूविनेशन एंड क्यूश लाइफ मोनेटिरिगं डब्लूआईआई देहरादून की प्रोजक्ट निदेशक प्रो.रूचि बडौला ने कहा कि गंगा में 5 प्रजातियों के स्तनधारी, 177 प्रजातियों की चिड़ियां, 27 प्रजातियों के रेपेटाईल, 378 प्रजातियों की मछलियां, 3 प्रजातियों के उदबिल्लाव, 3 प्रकार की डॉल्फिन, 9 प्रकार के कठोर कवच वाले व 4 प्रकार के मुलायम कवच वाले कछुवे मिलते हैं। वेबिनार में डॉ. गिरीश रंजन तिवारी, डॉ. हितेश पंत, डॉ. डीके जोशी, डॉ. लज्जा भट्ट, डॉ. नीलू लोधियाल, डॉ. ललित मोहन, डॉ. विवेक लोहिया, डॉ. हरीश अंडोला, डॉ. भावना कर्नाटक, डॉ. आशा रानी, डॉ. गीता तिवारी, डॉ. कृष्ण कुमार टम्टा, डॉ, मैत्री नारायण, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. नन्दन सिंह मेहरा, डॉ. शशिबाला उनियाल, डॉ. सुनील कुमार सिंह, डॉ. सुनीता उपाध्याय, डॉ. सुरेश पांडे, डॉ. वैद्यनाथ झा, डॉ. विशाल कुमार, डॉ. भारत पांडे डॉ. जगमोहन सिंह, डॉ. पैनी जोशी, डॉ. श्रृति साह, डॉ. सुषमा टम्टा, डॉ. उषा जोशी, दिशा उप्रेती, वसुंधरा लोधियाल के साथ लगभग 98 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। आयोजन समिति में प्रो. ललित तिवारी, डॉ. आशीष तिवारी, डॉ. विजय कुमार, डॉ. नंदन मेंहरा, डॉ. नवीन पांडे तथा दीक्षा बोहरा ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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नवीन समाचार, हरिद्वार, 22 नवम्बर 2020। उत्तराखंड की त्रिवेंद्र रावत सरकार पिछली कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में गंगा को हर की पैड़ी पर नहर घोषित करने वाले अध्यादेश को बदलने जा रही है। रविवार को अखाड़ा परिषद के संतों और गंगा सभा के पदाधिकारियों की मौजूदगी में हुई बैठक के बाद सरकार ने एस्केप चैनल के अध्यादेश को निरस्त करने के निर्देश दिए। गंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ का दावा है कि आदेश सोमवार को जारी हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित पिछले 61 दिन से इस संबंध में हरीश रावत सरकार द्वारा लाये गए अध्यादेश को निरस्त करने की मांग को लेकर हरकी पैड़ी पर धरना दे रहे थे। स्वयं हरीश रावत भी इस हेतु हर की पैड़ी पर आकर संतों से लिखित में माफी मांग चुके थे। तब उन्होंने कहा था कि उनकी गलती को त्रिवेंद्र सरकार चाहे तो सुधार सकती है।
विदित हो कि उत्तराखंड के पूर्व सीएम हरीश रावत की सरकार ने 2016 में भागीरथी बिंदु, सर्वानंद घाट भूपतवाला से हरकी पैड़ी, मायापुर और दक्ष मंदिर कनखल तक बहने वाली गंगा को एस्केप चैनल घोषित कर दिया था। इसका मतलब था कि यह धारा एक नहर है जो गंगा में अतिरिक्त पानी की निकासी के काम आती है। इसके बाद से ही तीर्थ पुरोहित इसका विरोध कर रहे थे।
यह भी पढ़ें : गंगा नदी के किनारे बनाये जा रहे कूड़ा निस्तारण प्लांट पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक
नवीन समाचार, नैनीताल, 2 अप्रैल 2019। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने नगर पालिका उत्तरकाशी द्वारा नगर की सीमा से बाहर गंगा नदी के किनारे बनाए जा रहे कूड़ा निस्तारण प्लांट के निर्माण पर रोक लगा दी है। साथ ही सचिव शहरी विकास व नगर पालिका उत्तरकाशी से अगली सुनवाई की तिथि 10 अप्रैल तक जवाब पेश करने को भी कहा है।
मामले के अनुसार स्थानीय ग्राम प्रधान रजनी भट्ट, नरेंद्र चौहान व कृष्ण कन्हैया निवासी मांडो उत्तरकाशी ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि नगर पालिका उत्तरकाशी द्वारा अपनी नगर क्षेत्र से बाहर जाकर गंगा नदी के किनारे कूड़ा डाला जा रहा है और वहाँ पर कूड़ा निस्तारण प्लांट का निर्माण भी कराया जा रहा है, जो उच्च न्यायालय के आदेशों व नियमों के विपरीत है। लिहाजा इस पर रोक लगाई जाये।
यह भी पढ़ें : गंगा-यमुना की स्वच्छता को सरकार के कदमों से हाई कोर्ट संतुष्ट ! याचिका निस्तारित…
नवीन समाचार, 6 मार्च 2019। उत्तराखण्ड हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खण्डपीठ ने गंगा और यमुना नदी में प्रदूषण को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को पानी शुद्ध बनाने के लिए उचित कदम उठाने के आदेश देते हुए इस सम्बन्ध में चल रही याचिका को निस्तारित कर दिया है। दिल्ली के अजय गौतम की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट में शपथपत्र पेश किया। बताया कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, मुनकीरेती, तपोवन, रुद्रप्रयाग,श्रीनगर, बद्रीनाथ,केदारनाथ सहित कई स्थानों पर सीवर प्लांट बना दिए गए हैं। माना जा रहा कि इन कार्यों पर न्यायालय ने संतुष्ट होकर ही याचिका को निस्तारित कर दिया है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में न्यायालय ने इस सम्बन्ध में कड़ा रुख दिखाया था।
उल्लेखनीय है कि याची ने हाईकोट में पत्र भेजकर गंगा और यमुना नदी में बढ रहे प्रदूषण की शिकायत की थी। याची का कहना है कि गंगा व यमुना नदी पर करोड़ों हिंदुओं की आस्था है । हिंदू लोग रोज गंगा और यमुना नदी के पवित्र जल से आचमन करते हैं और मंदिरो में चढ़ाते हैं। लेकिन गंगा और यमुना का पानी आचमन योग्य नहीं रह गया है। गंगा में जगह जगह गंदगी नदी में डाली जा रही है और कई जगह सीवर का पानी भी गंगा में डाला जा रहा है। जिसके लिए सरकार को निर्देश दिए जाएं की गंगा और यमुना नदी को स्वच्छ रखने का यत्न किया जाए। ताकि इन नदियों के पानी को आचमन व अन्य कार्यो के लिए प्रयोग में लाया जा सके।
पूर्व समाचार : गंगा-यमुना नदियों का पानी अपने मातृ प्रदेश में ही आचमन योग्य क्यों नहीं, उत्तराखंड हाईकोर्ट सरकार से मांगा जवाब
नैनीताल, 12 सितंबर 2018। ‘उत्तराखंड से निकलने वाली गंगा और यमुना नदियों का पानी अपने मातृ प्रदेश में ही आचमन योग्य नहीं रहा है।’ इससे संबंधित दिल्ली निवासी आचार्य अजय गौतम के पत्र को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जनहित याचिका के रूप में स्वीकार कर लिया है। श्री गौतम ने उच्च न्यायालय को एक पत्र लिखकर प्रार्थना की थी कि उत्तराखंड की इन दो पवित्र नदियों में पानी की गुणवत्ता अब बहुत खराब हो हो चुकी है। न्यायमूर्ति वीके बिष्ट और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने इस पत्र का संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया है। मामले को सुनने के बाद खण्डपीठ ने अधिवक्ता अजय वीर पुंडीर को न्यायमित्र नियुक्त किया है, तथा सरकार से अगली सुनवाई की तिथि 30 अक्टूबर तक जवाब पेश करने को कहा है।
अब मुर्गियों के हितों पर हाईकोर्ट नाराज, केंद्र व राज्य सरकारों को दिये निर्देश
नैनीताल, 14 अगस्त 2018। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मुर्गियों के हितों की हो रही अनदेखी से संबंधित एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को इस संबंध में तीन सप्ताह के अंदर विधि आयोग की ओर से तैयार नियमों का पालन करने को कहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा की अगुवाई वाली खंडपीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता गौरी मौलेखी की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद ये निर्देश जारी किये हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार को भी निर्देश दिये हैं कि वह 2013 में जारी शासनादेश का कड़ाई से पालन करे।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता की ओर से उच्च न्यायालय में पिछले साल एक याचिका दायर कर कहा गया था कि प्रदेश में मुर्गियों के हितों की अनदेखी की जा रही है। उनके साथ क्रूरता की जा रही है। उनको एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिये जो तरीका अपनाया जाता है वह उचित नहीं है। उनको पर्याप्त जगह में नहीं रखा जाता है। मामले को सुनने के बाद खंडपीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिये कि वह केंद्रीय विधि आयोग की ओर से तैयार नियमावली का तीन सप्ताह में अनुपालन करे, साथ ही उनका कड़ाई से अनुपालन भी सुनिश्चित कराये।
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यह भी पढ़ें : गंगा-यमुना, नदी नालों-तालों के बाद अब उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पशुओं को भी दिया जीवित मानव का दर्जा
नैनीताल, 14 अगस्त 2018। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने पूर्व के गंगा नदी सहित सभी नदी, नालों व झीलों आदि को जीवित मानव का दर्जा दिये जाने की ही तरह के एक नये फैसले में हवा, पानी व उत्तराखंड में रहनवाले जीव-जंतुओं को मानव की तरह की तरह का विधिक दर्जा प्रदान कर दिया है, तथा उत्तराखंड के नागरिकों को उनका संरक्षक घोषित कर दिया है। उच्च न्यायालय के इस महत्वपूर्ण फैसले में जीव जंतुओं के भी मानवों की तरह ही अधिकार, कर्तव्य व जिम्मेदारियां बताई गयी हैं।
उच्च न्यायालय की वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ का यह फैसला उत्तराखंड के चम्पावत जिले के पड़ोसी देश नेपाल की सीमा से लगे बनबसा कस्बे के निवासी नारायण दत्त भट्ट की जनहित याचिका पर आया है। 2014 में दायर इस याचिका में बनबसा से महेंद्रनगर (नेपाल) की 14 किमी की दूरी के मार्ग पर चलने वाले बुग्गी, तांगा व भैंसा गाड़ियों में जुतने वाले पशुओं के चिकित्सकीय परीक्षण, टीकाकरण के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की प्रार्थना की गयी थी। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया था कि बुग्गियों, तांगों व भैंसा गाडियों से यातायात प्रभावित होता है और इन गाड़ियों के माध्यम से मानव तस्करी व ड्रग्स तस्करी की आशंका भी बनी रहती है, लेकिन भारत-नेपाल सीमा पर इनकी जांच नहीं की जाती है, जो कि भारत-नेपाल सहयोग संधि 1991 का उल्लंघन है। इस याचिका पर बुधवार को अपना फैसला सुनाते हुए खंडपीठ ने अपने आदेश में नगर पंचायत बनबसा को नेपाल से भारत आने वाले घोड़े-खच्चरों का परीक्षण करने व सीमा पर एक पशु चिकित्सा केंद्र खोलने के निर्देश दिए हैं। साथ ही पंतनगर विवि के कुलपति को पशुपालन विभाग की अध्यक्षता में दो प्रोफेसरों को शामिल करते हुए एक कमेटी का गठन करने को कहा है। कमेटी से पशु क्रूरता अधिनियम से संबंधित मामलों में रिपोर्ट पेश करने तथा कुलपति से मुख्य सचिव को रिपोर्ट भेजने को कहा है, ताकि जरूरत पड़ने पर अधिनियम में संशोधन किया जा सके। इसके अलावा आदेश में पीठ ने सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि पशुओं से अधिक भार ना ढोया जाए। जानवरों के माध्यम से ले जाने वाले भार को भी तय कर दिया गया है। पीठ ने जानवरों से अधिक व कम तापमान में काम ना लेने के निर्देश भी दिए हैं। साथ ही नगरपालिकाओं से कहा है कि जानवरों से भार ढोने वाले मामलों में नजर रखने, जानवरों के लिए आश्रय स्थल बनाने तथा जानवरों के लिए बनाए गए कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित कराने को भी कहा है। वहीं तांगा व घोड़ा गाड़ियों के मालिकों से रात्रि में दृश्यता बनाने के लिए रिफ्लेक्टर लगाने को कहा है। वहीं पुलिस अधिकारियों से जानवरों से अधिक भार ना ढोने देना सुनिश्चित करने को तथा पशु चिकित्सकों से बीमार जानवरों का उपचार करने, यदि जानवर चिकित्सक के पास नहीं लाया जा सकता तो चिकित्सकों को जानवर के पास खुद जाका उपका उपचार करने को कहा है।
हाईकोर्ट के निर्देश
1, प्रदेश के समस्त पशु, पक्षी, जलीय प्राणी लीगल entity घोषित, मनुष्यों की भांति उनके अधिकार, कर्तव्य घोषित। प्रदेश का हर नागरिक पशुओं का अभिभावक घोषित।
2, सड़कों में वाहन चालक पहले बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी इत्यादि को देंगे रास्ता, नहीं बाधित होगी उनकी राह।
3, जानवरों को हर दो घंटे में पानी, चार घंटे में भोजन देना आवश्यक, एक बार में 2 घंटे से ज्यादा पैदल चलाने पर रोक।
4, पशुओं को केवल 12 डिग्री से 30 डिग्री तापमान के दौरान ही चलाया जा सकता है पैदल। 37 डिग्री से ज्यादा 5 डिग्री से कम तापमान के दौरान हल जोतने पर प्रतिबंध।
5, पशुओं के स्वास्थ्य, भोजन, इलाज के साथ ही उनकी भावनाओं और संवेदनाओं का ध्यान रखना आवश्यक।
6, बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी के आगे पीछे व खींचने वाले पशुओं के शरीर पर रेडियम का कवर लगाना आवश्यक।
7, किसी वाहन में 6 से अधिक पशु न लादे जाएं, साथ में एक अटेंडेंट व फर्श पर मैटिंग आवश्यक।
7, पशुओं को हांकने के लिए चाबुक, डंडे सहित किसी भी प्रकार की अन्य विधि पर रोक। पशुओं के नाक, मुंह में लगाम लगाने पर रोक, केवल रस्सी से गर्दन से बांधने की अनुमति। रस्सी का मुलायम होना आवश्यक।
8, पंत विवि के कुलपति वरिष्ठ प्रोफेसरों की कमेटी बनाएं, जो यह बताये कि बछड़े, बैल ऊंट आदि द्वारा ढोए जाने वाले बोझ के लिए निर्धारित मानदंड सही हैं या बोझ की मात्रा ज्यादा है।
9, बनबसा से नेपाल तथा नेपाल से बनबसा के मध्य चलने वाली घोड़ागाड़ी के घोडों के स्वास्थ्य की नियमित जांच हो व प्रमाणपत्र जारी हों।
10, कोर्ट ने विभिन्न पशुओं द्वारा ढोए जाने वाले बोझ की सीमा भी निर्धारित की हैै।
यह भी पढ़ें : फ्रांस के उच्च शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाया जा रहा है उत्तराखंड उच्च न्यायालय का गंगा नदी को ‘जीवित मानव’ का दर्जा दिए जाने का फैसला
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के गंगा नदी को ‘जीवित मानव’ का दर्जा दिए जाने के बहुचर्चित व ऐतिहासिक फैसले को भले ही देश में भुला दिया गया हो, और देश की सर्वाेच्च अदालत ने भी इस पर उत्तराखंड सरकार को स्थगनादेश दे दिया हो, किंतु प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए संवेदनशील फ्रांस के उच्चशिक्षण संस्थाओं में इस पर न केवल खूब चर्चा हो रही है, वरन वहां की एक शोधार्थी की मानें तो वहां इसे पढ़ाया भी जा रहा है।
इस फैसले के प्रभावों व पृष्ठभूमि पर अध्ययन करने के लिए फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंस रिसर्च – सेंटर फॉर हिमालयन स्टडीज की शोधार्थी डेनियल बेरती ने इस बहुचर्चित मामले के याचिकाकर्ता – अधिवक्ता ललित मिगलानी से मुलाकात कर फैसले तथा गंगा की धार्मिक व सामाजिक मान्यता को लेकर तथ्यात्मक जानकारी जुटाई। साथ ही बताया कि मिगलानी की ‘गंगा के प्रदूषण एवं गंगा को बचाने’ से सम्बंधित जनहित याचिका संख्या 140/2015 को फ्रांस में उनके संस्थान में पढाया गया, और उन्हें इस विषय पर ही पीएच.डी. स्वीकृत हुई है। अधिवक्ता मिगलानी ने इसको उत्तराखंड उच्च न्यायालय के साथ ही देश के लिए बड़ी उपलब्धि करार दिया। बताया कि पूर्व में एक विदेशी पत्रकार ने हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में भी इस विषय पर चर्चा होने की बात कही थी। तब उन्होंने इस बात को अपेक्षित गंभीरता से नहीं लिया था।
ज्ञात हो कि अधिवक्ता ललित मिगलानी की इसी यायिका की सुनवाई के दौरान ही आए हरिद्वार निवासी मो. सलीम द्वारा दायर एक अन्य याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी पंत ने उच्च न्यायालय के समक्ष न्यूजीलेंड की वानकुई नदी को ‘जीवित व्यक्ति’ का दर्जा दिए जाने का तर्क रखा था, जिस पर न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ ने 20 मार्च 2016 को गंगा और यमुना को भी ‘जीवित व्यक्ति’ का दर्जा दे दिया था। इसके कुछ समय बाद ही अधिवक्ता ललित मिगलानी की जनहित याचिका पर वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दो दिसंबर 2016 को गंगा के साथ ही ग्लेशियरों, नदियों, चरागाहों, झीलों, झरनों, पेड़ व पौधों आदि प्राकृतिक संपदाओं को जीवित व्यक्ति का दर्जा दे दिया था। हालांकि बाद में उत्तराखंड सरकार ने गंगा-यमुना को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिए जाने के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में विशेष जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी, जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय की याचिका पर रोक लगा दी थी। अलबत्ता, ग्लेशियरों व नदियों, चरागाहों, झीलों, झरनों, पेड़-पौधों आदि को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने वाला आदेश प्रभावी है।
पूर्व आलेख : गंगा-यमुना के बाद ग्लेशियर, नदी, नाले, झील, जंगल, चरागाह भी अब ‘जीवित मानव’
-उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक और एतिहासिक फैसला देते हुए गंगा-यमुना के बाद गंगोत्री, यमुनोत्री सहित नदी, नालों, झीलों, जंगलों, चरागाहों को भी जीवित मानव का दर्जा दिया
– भारतीय मिथकों की कण-कण में ईश्वर होने की परिकल्पना पर लगी एक तरह से मुहर
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक और एतिहासिक फैसला देते हुए गंगा और यमुना नदियों के बाद अब इनके उद्गम स्थलों-गंगोत्री व यमुनोत्री सहित ग्लेशियरों के साथ ही नदियों, छोटी नदियों, घाटियों, जल धाराओं, ग्लेशियरों, झीलों, हवा, घास के मैदानों, जंगलों, जंगली जलराशियों व झरने इत्यादि को कानूनी वैधता, कानूनी तौर पर जीवित मनुष्य का दर्जा दे दिया है। इन्हें एक कानूनी तौर पर जीवित व्यक्ति की तरह सभी संबंधित मौलिक व कानूनी अधिकार होंगे, साथ ही इनके जीवित मनुष्य की तरह दायित्व और जिम्मेदारियां भी होंगी।
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की एक खंडपीठ ने हरिद्वार निवासी मोहम्मद सलीम द्वारा दायर की गयी एक जनहित याचिका पर बीती 20 मार्च को भी अपने एक ऐतिहासिक फैसले में देश की दो पवित्र नदियों गंगा और यमुना को जीवित मानव का दर्जा देने का आदेश दिया था। वहीं दो दिसंबर 2016 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय की इसी खंड पीठ ने ललित मिगलानी की याचिका पर सुनवाई के बाद पूर्ण फैसला देते हुए 66 पृष्ठ का यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। फैसले में केंद्र सरकार को 10 श्मशान घाटों को हटाकर इनकी जगह प्रदूषण रहित श्मशान घाट बनाने की प्रक्रिया आठ सप्ताह एवं शेष 40 श्मशान घाटों की प्रक्रिया तीन माह में पूरी करने के आदेश दिये हैं।
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इसके साथ ही उत्तराखंड के मुख्य सचिव, नमामि गंगे प्रोजेक्ट के निदेशक प्रवीण कुमार व कानूनी सलाहकार ईश्वर सिंह, उत्तराखंड के महाधिवक्ता, चंडीगढ़ ज्यूडिशियल के निदेशक डा. बलराम के गुप्ता, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एमसी मेहता को इनके मानवीय चेहरे की तरह संरक्षण के लिये ‘लोको पैरेंट्स’ यानी कानूनी अभिभावक नियुक्त किया है, और उन्हें इनके संरक्षण व इनकी तय स्थिति को बहाल रखने के लिये एक मानवीय चेहरे की तरह कार्य करने को कहा है। यानी ये अधिकारी गंगा और यमुना के जीवित मानव का दर्जे को बरकरार रखने तथा इन नदियों के स्वास्थ्य और कुशलता को बढावा देने के लिये बाध्य होंगे। वहीं उत्तराखंड के मुख्य सचिव को प्रदेश के नदियों, झीलों व ग्लेशियरों आदि के शहरों, कस्बों व गांवों के सात या अधिक जन सामान्य के प्रतिनिधियों को चुनने की अनुमति दी है।
…तो ‘ओ माई गॉड’ फिल्म की तरह इनके विरुद्ध भी दर्ज हो सकेंगे मुकदमे
नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जिस तरह गंगा और यमुना के बाद अब अन्य प्राकृतिक चीजों को भी कानूनी तौर पर जीवित व्यक्ति माना है और इन्हें एक जीवित व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के साथ ही एक जीवित व्यक्ति के कर्तव्यों के साथ ही दायित्व व जिम्मेदारियां भी दी हैं। आदेश में साफ कहा गया है कि उपरोक्त के द्वारा अन्य को पहुंचाये जाने वाले घाव, चोट या नुकसान पहुंचाने को एक जीवित मनुष्य की तरह ही माना जायेगा। उल्लेखनीय है कि बीते दिनों आई एक फिल्म-ओ माई गॉड में फिल्म का नायक भूकंप में अपनी दुकान नष्ट हो जाने पर अदालत के माध्यम से ईश्वर के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करवाता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय मिथकों में भी प्रकृति के विविध अंगों नदी-नालों, पर्वतों, जंगलों आदि को जीवित महामानवों या ईश्वरों की तरह माना जाता है। उनका संरक्षण किया जाता है, उनसे अच्छा करने की प्रार्थना की जाती है, और कई बार बुरा होने पर उन्हें ही इसके लिये दोषी भी ठहराया जाता है।