नवीन समाचार, हल्द्वानी, 6 अगस्त 2023 (Haldwani Railway Land )। हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर कथित अतिक्रमण के बहुचर्चित मामले में सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को प्रस्तावित सुनवाई को लेकर बड़ी अपडेट सामने आ रही है। इस मामले की सुनवाई आज न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की खंडपीठ में होनी थी, लेकिन बताया गया है कि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने स्वयं को इस मामले की सुनवाई से अलग कर लिया है।
हालांकि इसका कारण अभी सामने नहीं आया है, लेकिन न्यायमूर्ति धूलिया के नाम वापस लेने से इस मामले की सुनवाई टल गई है। आज इस मामले पर सुनवाई नहीं हुई और अभी मामले की अगली तारीख भी निर्धारित नहीं हुई है। इसे एक तरह से वनभूलपुरा के कथित अतिक्रमणकारियों के लिहाज से अच्छा ही माना जा रहा है।
बताया जा रहा है कि चूंकि न्यायमूर्ति धूलिया उत्तराखंड से ही हैं, इसलिए संभावना जताई जा रही है कि इसी कारण उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया है। यह भी बताया जा रहा है कि न्यायमूर्ति धूलिया उत्तराखंड उच्च न्यायालय में इस पूरे मामले को लेकर न सिर्फ बचाव पक्ष के अधिवक्ता रहे हैं बल्कि एक न्यायधीश के तौर पर भी उत्तराखंड उच्च न्यायालय में इस मामले को देख चुके हैं। अब माना जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई के लिए किन्ही अन्य न्यायधीश को इस मामले की सुनवाई के लिए नामित करेंगे। इसके बाद ही मामले की अगली सुनवाई की तिथि तय होगी।
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नवीन समाचार, हल्द्वानी, 6 अगस्त 2023 (Haldwani Railway Land)। हल्द्वानी में रेलवे की 31.87 हेक्टेयर भूमि से जमीन से अतिक्रमण हटाने का मामला सोमवार को तीन महीने के बाद फिर सतह पर आने वाला है। देश की सर्वोच्च अदालत सोमवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई करेगी। विदित हो कि सर्वोच्च न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 20 दिसंबर के आदेश पर इस वर्ष दो मई को स्टे लगा दिया था। इसके बाद से यह मामला लंबित था।
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सोमवार को इन याचिकाओं को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। गौरतलब है कि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया उत्तराखंड से ही हैं। ऐसे में यह विषय पहले से उनके संज्ञान में है। विदित हो कि रेलवे के अनुसार हल्द्वानी में रेलवे जमीन पर 4,365 परिवारों ने अतिक्रमण कर रखा है।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय नेे पिछले साल 20 दिसंबर के हल्द्वानी के बनभूलपुरा में कथित रूप से रेलवे की करीब 31.87 हेक्टेयर अतिक्रमित भूमि पर 4365 परिवारों द्वारा किए गए अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। जबकि उच्चतम न्यायालय ने पांच जनवरी को एक अंतरिम आदेश में 29 एकड़ भूमि से अतिक्रमण हटाने के उच्च न्यायालय के निर्देशों पर रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं शीर्ष अदालत ने इसे ‘मानवीय मुद्दा’ भी करार दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि 50 हजार लोगों को रातों-रात नहीं हटाया जा सकता है। वहीं दो मई को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने संबंधी उसका अंतरिम आदेश शीर्ष अदालत में याचिकाओं के लंबित रहने तक जारी रहेगा।
जबकि इससे पहले शीर्ष अदालत ने रेलवे और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर अतिक्रमण हटाने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उनके जवाब मांगे थे। केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने कहा था कि यथाशीघ्र उचित समाधान निकालने का प्रयास किया जा रहा है।
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यह भी पढ़ें (Haldwani Railway Land) : हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण मामले में अदालत का आया नया आदेश…
-बेदखली के नोटिस को चुनौती देने वाली अतिक्रमणकारियों की 33 याचिकाओं को किया खारिज
नवीन समाचार, हल्द्वानी 6 मई 2023 (Haldwani Railway Land)। हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण मामले में नया मोड़ आ सकता है। हल्द्वानी की अतिरिक्त जिला न्यायाधीश नीलम रात्रा और कंवर अमनिंदर सिंह की अदालत ने वर्ष 2021 में उत्तर पूर्व रेलवे के बेदखली नोटिस के खिलाफ दर्ज 33 अपीलों को खारिज कर दिया है तथा रेलवे की भूमि पर अतिक्रमण करने वालों को जगह खाली करने का आदेश भी दिया है। अदालत ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि भूमि रेलवे की ही है। इस पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है।
(Haldwani Railway Land) उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर 2022 को रेलवे की 31.87 हेक्टेयर भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। लेकिन बाद में मामला सर्वोच्च न्यायालय चला गया और सर्वोच्च न्यायालय ने गत पांच जनवरी को एक अंतरिम आदेश में इस मामले को मानवीय मुद्दा बताते हुए अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि 50 हजार लोगों को रातों-रात नहीं हटाया जा सकता।
(Haldwani Railway Land) जबकि इधर गत दो मई को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक संबंधी अपने आदेश को याचिकाओं के लंबित रहने तक जारी रहने की बात कही है। मामले में अगली सुनवाई अगस्त माह में होगी। यानी अतिक्रमण हटाने पर फिलहाल अगस्त माह तक रोक लगी हुई है।
(Haldwani Railway Land) मामले के अनुसार एनईआर के इज्जत नगर रेल मंडल के राज्य संपदा अधिकारी ने वर्ष 2021 में रेलवे की भूमि पर कब्जा करने वालों को नोटिस जारी किया था। इस पर किदवई नगर निवासी इस्लाम पुत्र इकबाल हुसैन सहित बनभूलपुरा हल्द्वानी के अन्य लोगों ने दावा किया कि विवादित भूमि नगर पालिका की सीमा में आती है। इसलिए रेलवे की ओर से जारी नोटिस कानून के विरुद्ध है। इस पर रेलवे ने कहा कि भूमि रेलवे की ही है। इसे खाली कराने की प्रक्रिया सार्वजनिक परिसर (बेदखली) अधिनियम के तहत नियमानुसार की की जा रही है।
(Haldwani Railway Land) इस पर गत चार मई को न्यायालय ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद कहा कि देश भर में नगर पालिका की सीमा के अंतर्गत केंद्र सरकार और अन्य केंद्रीय संगठनों की कई संपत्तियों का निर्माण किया गया है। इससे यह दावा नहीं किया जा सकता कि संबंधित विभागों के पास उस संपत्ति का स्वामित्व नहीं है। न्यायालय ने माना कि जब यह स्पष्ट है कि भूमि रेलवे की है, तो उस पर अवैध कब्जा अतिक्रमण है। इस पर रेलवे की कार्रवाई वैध है।
अदालत ने यह भी कहा है कि राज्य संपदा अधिकारी ने ऐसी कार्यवाही नहीं की, जिससे अपीलार्थियों को अन्य जानकारी एकत्रित करने का मौका न मिला हो। इन परिस्थितियों में न्यायालय का मत है कि राज्य संपदा अधिकारी ने नैसर्गिक सिद्धांत का अनुपालन किया है। अपीलार्थियों ने उदासीनता एवं पैरवी में कमी के कारण राज्य संपदा अधिकारी के समक्ष न तो अपना साक्ष्य प्रस्तुत किया और न कार्यवाही में हिस्सा लिया।
ऐसी परिस्थिति में राज्य संपदा अधिकारी की प्रक्रिया को अवैधानिक नहीं कहा जा सकता। इसलिए इस मामले में यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत संपत्ति रेलवे विभाग की है और इस मामले में अपीलार्थियों का कब्जा अनाधिकृत है और अपीलार्थियों के कब्जे के संबंध में जो बिंदु उठाये गये हैं, वह बलहीन एवं तर्कहीन हैं। लिहाजा न्यायालय का मत है कि राज्य संपदा अधिकारी की ओर से बेदखली का जो आदेश पारित किया गया है, वह उचित एवं दस्तावेजों के आधार पर है और उसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण मौजूद नहीं है।
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