‘नवीन समाचार’ के पाठकों के ‘2 करोड़ यानी 20 मिलियन बार मिले प्यार’ युक्त परिवार में आपका स्वागत है। आप पिछले 10 वर्षों से मान्यता प्राप्त- पत्रकारिता में पीएचडी डॉ. नवीन जोशी द्वारा संचालित, उत्तराखंड के सबसे पुराने, जनवरी 2010 से स्थापित, डिजिटल मीडिया परिवार का हिस्सा हैं, जिसके प्रत्येक समाचार एक लाख से अधिक लोगों तक और हर दिन लगभग 10 लाख बार पहुंचते हैं। हिंदी में विशिष्ट लेखन शैली हमारी पहचान है। आप भी हमारे माध्यम से हमारे इस परिवार तक अपना संदेश पहुंचा सकते हैं ₹500 से ₹20,000 प्रतिमाह की दरों में। यह दरें आधी भी हो सकती हैं। अधिक जानकारी के लिये यहां देखें और अपना विज्ञापन संदेश ह्वाट्सएप पर हमें भेजें 8077566792 पर।

 

दीपावली के शुभकामना संदेशों के लिए विशेष योजना : यहां आपके विज्ञापन को होर्डिंग की तरह कोई फाड़ेगा नहीं : हर 10 विज्ञापनों पर लकी ड्रॉ से 1 विज्ञापन मुफ़्त योजना भी लागू*। यहां प्रतिदिन आपका विज्ञापन लगभग एक लाख बार लोगों को दिखाई देगा, और इस विश्वसनीय माध्यम पर आपको गंभीरता से भी लिया जाएगा । विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें। हमें सहयोग करने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

November 8, 2024

कहीं सभी भाइयों की एक पत्नी तो कहीं बिन शादी के रहते हैं पति-पत्नी की तरह, यूसीसी के बाद भी रहेंगे ऐसे ही, जानें उत्तराखंड की इन खास जनजातियों के बारे में…

0
Shadi

नवीन समाचार, देहरादून, 16 फरवरी 2024। बीते बुधवार 7 फरवरी को चर्चा के बाद समान नागरिक संहिता विधेयक उत्तराखंड 2024 विधानसभा में पास हो गया है। अब राज्यपाल की मुहर लगने के बाद यह कानून पूरे उत्तराखंड राज्य में लागू हो जाएगा। इसपर सभी धर्मों में शादियों, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत उत्तराधिकार के लिए एक कानून होगा।

लेकिन राज्य की कुछ जनजातियां ऐसी हैं, जिन्हें इससे अलग रखा गया है, जिनमें सभी भाइयों की एक ही पत्नी होने और बिन शादी के पति-पत्नी की तरह पूरा जीवन साथ निभाने जैसी विशिष्ट परंपराएं भी हैं।

कौन सी जनजातियां?

सरकारी पोर्टल पर देखें तो राज्य में पांच समूहों को जनजाति की श्रेणी में रखा गया। ये हैं- भोटिया, जौनसारी, बुक्शा, थारू और राजी। वर्ष 1967 में इन्हें अनुसूचित जनजाति माना गया। इनकी पूरी आबादी मिलाकर उत्तराखंड की आबादी की करीब 3 प्रतिशत है। इनमें से ज्यादातर गांवों में रहती हैं। अगर उन्हें भी यूसीसी में शामिल कर लिया जाए तो जनजातीय परंपराओं की खासियत खत्म होने लगेगी।

खुद को कौरव-पांडवों के करीब बताते हैं 

जौनसारी जनजाति में महिलाओं के बहुविवाह का चलन है। इसे पॉलीएंड्री कहते हैं। चकराता तहसील का रहने वाला ये समुदाय कई बार जौनसार बावर भी कहा जाता है, लेकिन ये दोनों अलग समुदाय हैं। जौनसारी खुद को पांडवों के वंशज मानते हैं, जबकि बावर कौरवों के। यही वजह है कि दोनों में शादियां भी बहुत कम होती हैं, लेकिन शादियों को लेकर एक बात दोनों में है- बहुपतित्व की परंपरा। महिलाएं आमतौर पर एक घर में ही दो या कई भाइयों की पत्नियों के रूप में रहती हैं। इस शादी से हुई संतानों को बड़े भाई की संतान या सबकी माना जाता है।

क्यों शुरू हुआ होगा ये चलन?

माना जाता है कि है ऐसा केवल परंपरा के नाम पर नहीं हुआ, बल्कि इसलिए भी हुआ क्योंकि पहाड़ी इलाकों में जमीनों की कमी होती थी। लोग खेती-बाड़ी के लिए बहुत मुश्किल से जमीन बना पाते थे। ऐसे में अगर परिवार बंट जाए तो जमीन के भी कई छोटे हिस्से हो जाएंगे और उसका फायदा किसी को नहीं मिल सकेगा। इस लिए ऐसा चलन आया होगा। एक तर्क ये भी रहा कि एक पति अलग कमाने-खाने के लिए बाहर जाए तो घर की देखभाल उतनी ही जिम्मेदारी से दूसरा पति कर सकेगा।

दूसरी जनजातियों में भी बहुपत्नित्व दिखता है

जैसे कि थारू जाति में महिलाओं के अलावा पुरुष कई शादियां कर सकते हैं। लेकिन ये कोई पक्का नियम नहीं है। आदिवासियों में परंपरा का मतलब लिखित या मौखिक नियम से नहीं, बल्कि सहूलियत से है। स्त्रियों या पुरुषों को अपने मनमुताबिक साथी चुनने की छूट रही है। यही सोच बहुविवाह के रूप में दिखती है।

लिव-इन से अलग है इनकी जीवनसाथी चुनने की परंपरा

आमतौर पर कई शादियां वही पुरुष करते हैं, जिनकी उनके समाज में हैसियत अच्छी हो। इसका संबंध ताकत से भी देखा जाता रहा है। भोटिया जनजाति के कुछ लोग बिना शादी ही साथ रहना शुरू कर देते हैं। यह समाज में स्वीकार्य भी है। लेकिन आधुनिक लिव-इन से यह अलग है। क्योंकि संतान होने पर दोनों ही उसकी जिम्मेदारी निभाते हैं।

राज्य सरकार ने ड्राफ्ट बनाने के दौरान उन क्षेत्रों का दौरा किया, जहां ये जनजातियां अधिक आबादी में हैं. उन्हें देखने और विवाह परंपराओं को समझने के बाद ही उन्हें इससे अलग रखा गया. माना जा रहा है कि मुख्यधारा में रहते लोगों की शादियों और परंपराओं को, जनजातियों से जोड़कर नहीं देखा जा सकता, वरना उनकी विशेषता खत्म हो जाएगी.

उत्तराखंड में किस जनजाति की आबादी कितनी?

यहां थारू जनजाति के लोग सबसे ज्यादा हैं. ये कुल अनुसूचित जनजाति में करीब 33 प्रतिशत हैं.
इसके बाद 32 प्रतिशत के साथ जौनसारी हैं.
बुक्सा जनजाति इसमें 18.3 फीसदी आबादी का योगदान करती है.
भोटिया केवल 14 प्रतिशत हैं. राजी जनजाति की आबादी कम है.
भोटिया को राज्य की सबसे कम विकसित जाति भी माना जाता रहा है। इनकी जीवन शैली में तिब्बत और म्यांमार की भी झलक मिलती है।

बहुत कम हो चुका बहुविवाह का चलन

महिला-प्रधान इन आदिवासी समूहों में महिलाएं पहाड़ों पर मुश्किल कामकाज करती हैं। उन्हें काम के बंटवारे जैसी बातों के लिए भी बहुविवाह की अनुमति रही है। या यूं कहा जाए कि खुली सोच वाले समुदायों में इसे लेकर कोई प्रतिबंध नहीं था. लेकिन चूंकि इस पर कोई नियम नहीं है, तो ये उनकी अपनी मर्जी से होता था।
धीरे-धीरे ये जनजातियां भी शहरों की तरफ जा रही हैं और उनकी तरह रहन-सहन अपना रही हैं. ऐसे में पॉलीगेमी या पॉलीएंड्री जैसा चलन उनमें भी काफी हद तक खत्म हो चुका है। लेकिन सुदूर इलाकों में अब भी इस तरह के वैवाहिक रिश्ते दिखते हैं। इसे जस का तस बनाए रखने के लिए ही इन्हें यूसीसी से बाहर रखा गया है।

आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप चैनल से, फेसबुक ग्रुप से, गूगल न्यूज से, टेलीग्राम से, कू से, एक्स से, कुटुंब एप से और डेलीहंट से जुड़ें। अमेजॉन पर सर्वाधिक छूटों के साथ खरीददारी करने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..

Leave a Reply

आप यह भी पढ़ना चाहेंगे :

You cannot copy content of this page