‘नवीन समाचार’ के पाठकों के ‘2.11 करोड़ यानी 21.1 मिलियन से अधिक बार मिले प्यार’ युक्त परिवार में आपका स्वागत है। आप पिछले 10 वर्षों से मान्यता प्राप्त- पत्रकारिता में पीएचडी डॉ. नवीन जोशी द्वारा संचालित, उत्तराखंड के सबसे पुराने, जनवरी 2010 से स्थापित, डिजिटल मीडिया परिवार का हिस्सा हैं, जिसके प्रत्येक समाचार एक लाख से अधिक लोगों तक और हर दिन लगभग 10 लाख बार पहुंचते हैं। हिंदी में विशिष्ट लेखन शैली हमारी पहचान है। आप भी हमारे माध्यम से हमारे इस परिवार तक अपना संदेश पहुंचा सकते हैं ₹500 से ₹20,000 प्रतिमाह की दरों में। यह दरें आधी भी हो सकती हैं। अपना विज्ञापन संदेश ह्वाट्सएप पर हमें भेजें 8077566792 पर। अपने शुभकामना संदेश-विज्ञापन उपलब्ध कराएं। स्वयं भी दें, अपने मित्रों से भी दिलाएं, ताकि हम आपको निरन्तर-बेहतर 'निःशुल्क' 'नवीन समाचार' उपलब्ध कराते रह सकें...

December 3, 2024

परम्परागत तौर पर कैसे मनाई जाती थी दिवाली ? कैसे मनाएं दीपावली कि घर में वास्तव में लक्ष्मी आयें, क्यों भगवान राम की जगह लक्ष्मी-गणेश की होती है पूजा ?

0

Diwali Kumaoni

परंपरागत तौर पर उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में ‘च्यूड़ा बग्वाल’ के तौर पर मनायी जाती थी दीपावली

-दी जाती थीं भगवान राम को भी दी गयीं ‘आकाश की तरह ऊंचे और धरती की तरह विस्तृत’ होने की आशीषें

-कुछ ही दशक पूर्व से हो रहा है पटाखों का प्रयोग

-प्राचीन लोक कला ऐपण से होता है माता लक्ष्मी का स्वागत और डिगारा शैली में बनती हैं महालक्ष्मी

diwali%20GIF

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार,  आस्था डेस्क। समय के साथ हमारे परंपरागत त्योहार अपना स्वरूप बदलते जाते हैं, और बहुधा उनका परंपरागत स्वरूप याद ही नहीं रहता। आज जहां दीपावली का अर्थ रंग-बिरंगी बिजली की लड़ियों से घरों-प्रतिष्ठानों को सजाना, महंगी से महंगी आसमानी कान-फोड़ू ध्वनियुक्त आतिषबाजी से अपनी आर्थिक स्थिति का प्रदर्शन करना और अनेक जगह सामाजिक बुराई-जुवे को खेल बताकर खेलने और दीपावली से पूर्व धनतेरस पर आभूषणों और गृहस्थी की महंगी इलेक्ट्रानिक वस्तुओं को खरीदने के अवसर के रूप में जाना जाता है, ऐसा अतीत में नहीं था।

‘नवीन समाचार’ के माध्यम से दीपावली पर अपने प्रियजनों को शुभकामना संदेश दें मात्र 500, 1000 या 2000 रुपए में… संपर्क करें 8077566792, 9412037779 पर, अपना संदेश भेजें saharanavinjoshi@gmail.com पर…

खासकर कुमाऊं अंचल में दीपावली का पर्व मौसमी बदलाव के दौर में बरसात के बाद घरों को साफ-सफाई कर गंदगी से मुक्त करने, घरों को परंपरागत रंगोली जैसी लोक कला ‘ऐपण’ से सजाने तथा तेल अथवा घी के दीपकों से प्रकाशित करने का अवसर था। मूलतः ‘च्यूड़ा बग्वाल” के रूप से मनाए जाने वाले इस त्योहार पर कुमाऊं में बड़ी-बूढ़ी महिलाएं नई पीढ़ी को सिर में नए धान से बने ‘च्यूड़े’ रखकर आकाश की तरह ऊंचे और धरती की तरह चौड़े होने जैसी शुभाशीषें देती थीं।

विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद प्रकृति एवं पर्यावरण से जुड़ी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाला पूरा उत्तराखंड प्रदेश और इसका कुमाऊं अंचल अतीत में धन-धान्य की दृष्टि से कमतर ही रहा है। यहां आजादी के बाद तक अधिसंख्य आबादी दीपावली पर खील-बताशों, मोमबत्तियों तक से अनजान थी। पटाखे भी यहां बहुत देर से आए। बूढ़े-बुजुर्गों के अनुसार गांवों में दीपावली के दीए जलाने के लिए कपास की रुई भी नहीं होती थी।

अलबत्ता, लोग नए खद्दर का कपड़ा लाते थे, और उसकी कतरनों को बंटकर दीपक की बत्तियां बनाते थे। दीपावली से पहले घरों को आज की तरह आधुनिक रंगों, एक्रेलिक पेंट या डिस्टेंपर से नहीं, कहीं दूर-दराज के स्थानों पर मिलने वाली सफेद मिट्टी-कमेट से गांवों में ही मिलने वाली बाबीला नाम की घास से बनी झाड़ू से पोता जाता था। इसे घरों को ‘उछीटना’ कहते थे। घरों के पाल (फर्श) गोबर युक्त लाल मिट्टी से हर रोज घिसने का रिवाज था।

दीपावली पर घर की देहरी पर बनाये जाने वाले ऐपण।दीपावली पर यह कार्य अधिक वृहद स्तर पर होता था। गेरू की जगह इसी लाल मिट्टी से दीवारों को भी नीचे से करीब आधा फीट की ऊंचाई तक रंगकर बाद में उसके सूखने पर भिगोए चावलों को पीसकर बने सफेद रंग (विस्वार) से अंगुलियों की पोरों यानी नीबू, नारंगी आदि की पत्तियों से ‘बसुधारे’ निकाले जाते थे। फर्श तथा खासकर द्वारों पर तथा चौकियों पर अलग-अलग विशिष्ट प्रकार के लेखनों से लक्ष्मी चौकी व अन्य आकृतियां ऐपण के रूप में उकेरी जाती थीं, जो कि अब प्रिटेड स्वरूप में विश्व भर में पहचानी जाने लगी हैं। द्वार के बाहर आंगन तक बिस्वार में हाथों की मुट्ठी बांधकर छाप लगाते हुए माता लक्ष्मी के घर की ओर आते हुए पदचिन्ह इस विश्वास के साथ उकेरे जाते थे, कि माता इन्हीं पदचिन्हों पर कदम रखती हुई घर के भीतर आएंगी।

दीपावली के ही महीने कार्तिक मास में में द्वितिया बग्वाल मनाने की परंपरा भी थी। जिसके तहत इसी दौरान पककर तैयार होने वाले नए धान को भिगो व भूनकर तत्काल ही घर की ऊखल में कूटकर ‘च्यूड़े’ बनाए जाते थे, और ‘च्यूड़ा बग्वाल” के रूप से मनाए जाने वाले इस त्योहार पर कुमाऊं में बड़ी-बूढ़ी महिलाएं नई पीढ़ी को सिर में नए धान से बने च्यूड़े रखकर आकाश की तरह ऊंचे और धरती की तरह चौड़े होने जैसी शुभाशीषें देते हुए कहती थीं, ‘लाख हरयाव, लाख बग्वाल, अगाश जस उच्च, धरती जस चौड़, जी रया, जागि रया, यो दिन यो मास भेटनै रया।’ इसी दौरान गोवर्धन पड़वा पर घरेलू पशुओं को भी नहला-धुलाकर उन पर गोलाकार गिलास जैसी वस्तुओं से सफेद बिस्वार के गोल ठप्पे लगाए जाते थे। उनके सींगों को घर के सदस्यों की तरह सम्मान देते हुए तेल से मला जाता था।

यहाँ क्लिक कर सीधे संबंधित को पढ़ें

छोटी दिवाली से बूढ़ी दिवाली तक तीन स्तर पर मनाई जाती है दीवाली, महालक्ष्मी के साथ इसलिए विष्णु की जगह विराजते हैं गणेश

नैनीताल। लोक चित्रकार एवं परंपरा संस्था के प्रमुख बृजमोहन जोशी के अनुसार पहाड़ पर दिवाली छोटी दिवाली से बूढ़ी दिवाली तक तीन स्तर पर मनाई जाती है। यहां कोजागरी पूर्णिमा कही जाने वाली शरद पूर्णिमा को छोटी दिवाली माता लक्ष्मी के बाल स्वरूप के साथ मनाई जाती है। कोजागरी पूर्णिमा से बूढ़ी दिवाली यानी हरिबोधनी एकादसी तक घरों के बाहर पितरों यानी दिवंगत पूर्वजों के लिये आकाशदीप जलाया जाता है।

928c04ec09b6928999ecdf7de22d70f1 624475729
दीपावली पर गन्नों से बनायी जाने वाली माता लक्ष्मी।

इस दौरान चूंकि लक्ष्मीपति भगवान विष्णु चातुर्मास के लिये क्षीरसागर में निद्रा में होते हैं, इसलिए महालक्ष्मी के पूजन पर माता लक्ष्मी के साथ विष्णु की जगह प्रथम पूज्य गणेश की पूजा होती है, तथा कुमाऊं की प्रसिद्ध डिगारा शैली में गन्ने से बनाई जाने वाली लक्ष्मी को घूंघट में बनाकर कुमाऊं की परंपरागत ऐपण विधा में बनने वाली लक्ष्मी चौकी पर कांशे की थाली में रखा जाता है। साथ ही घर के छज्जे से गन्ने लटकाए जाते हैं, ताकि देवगण इन्हें सीढ़ी बनाकर घर प्रवेश करें। महालक्ष्मी पूजन के लिये प्रयुक्त कुल्हड़, ऊखल व तुलसी के बरतनों में भी अलग तरह के ऐपण बनाए जाते हैं। वहीं बूढ़ी दिवाली को चूंकि विष्णु भगवान जाग जाते हैं, इसलिये इस दिन लक्ष्मी के साथ विष्णु के चरण भी ऐपण के माध्यम से बनाए जाते हैं।

यह भी पढ़ें : कुमाउनी ऐपण: शक, हूण सभ्यताओं के साथ ही तिब्बत, महाराष्ट्र, राजस्थान व बिहार की लोक चित्रकारी की झलक 

नैनीताल में हर्षोल्लास व धूम-धड़ाके से मनाया गया दीपोत्सव
-रंग-बिरंगी लड़ियों की रोशनी से जगमग हो नैनी झील में अपना अक्श देखती होली का भी अहसास कराती नजर आयी सरोवरनगरी
डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल।
भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के उपरांत अयोध्या वापस लौटने एवं समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी के धरती पर अवतरण का पर्व-दीपोत्सव दीपावली सरोवरनगरी नैनीताल एवं आसपास के क्षेत्रों में बेहद हर्षोल्लास व धूम-धड़ाके के साथ मनाया गया। इस दौरान सरोवरनगरी रंग-बिरंगी रोशनी की लड़ियों से जगमगाती हुई और विश्व प्रसिद्ध नैनी सरोवर में अपना अक्श देखती हुई दीपावली के साथ मानो होली का भी अहसास कराती दिखी।

घरों व मंदिरों में माता लक्ष्मी व प्रथम पूज्य गणेश की खील-खिलौने चढ़ाते हुये पूजा-अर्चना का भी लंबा दौर चला। घरों में गन्ने के तनों ने माता लक्ष्मी को सुंदर बनाने व रंग-बिरंगी दीपमालिकाओं तथा दीपकों व मोमबत्तियों से घरों को सजाने की होढ़ भी दिखी। घरों की देहली पर लाल रंग के गेरू से लीपकर चावल के आटे को घोलकर बनाये ‘बिस्वार’ से अंगुलियों की पोरों से ऐपण दिये गये। घर के बाहर से भीतर तक माता लक्ष्मी के नन्हे पग चिन्ह इस विश्वास के साथ बनाये गये कि माता महालक्ष्मी इन्हीं पग चिन्हों पर चरण कमल रखकर घर के भीतर प्रवेश करेंगी।

भजन-कीर्तनों का भी लंबा सिलसिला चला। लोगों ने एक-दूसरे को घर की बनी और बाजार से लाई मिठाइयों का आदान-प्रदान कर खुशियां आपस में बांटीं। दिन में बादलों की मौजूदगी के कारण हल्की ठंड के बावजूद शाम से शुरू हुआ आतिशबाजी का धूम-धड़ाका रात के चढ़ने के साथ चढ़ता रहा और मध्य रात्रि के बाद तक यह सिलसिला जारी रहा।

दीपावली के अगले दिन यानी मंगलवार और इसके बाद भी कई दिनों तक आतिशबाजी होती रही। साथ ही गोवर्धन पूजा का त्योहार भी मनाया गया। इस दौरान नगर के मल्लीताल स्थित गौशाला में गौपालक गायों को नहलाने-घुलाने तथा आम लोग उन्हें तेल लगाकर सहलाते व उत्तम भोजन कराते नजर आये। 

दीपावली (Diwali Kumaoni) पर इसलिए होता है लक्ष्मी के साथ गणेश का पूजन

लक्ष्मी जी के साथ भगवान विष्णु नहीं बल्कि श्री गणेश का पूजन किया जाता है। लेकिन ऐसा क्यों? यह तो सभी जानते हैं कि लक्ष्मी जी, विष्णु जी की प्राण वल्लभा व प्रियतमा मानी गई हैं. यदि धन की देवी को प्रसन्न करना है तो उनके पति विष्णु जी का उनके साथ पूजन करना आवश्यक माना गया है.

शास्त्रों में यह मान्यता है कि लक्ष्मी जी विष्णु जी को कभी नहीं छोड़तीं. वेदों के अनुसार भी विष्णु जी के प्रत्येक अवतार में लक्ष्मी जी को ही उनकी पत्नी का स्थान मिला है. जहां विष्णु जी हैं वहीं उनकी पत्नी लक्ष्मी जी भी हैं. लेकिन फिर भी आज भगवान विष्णु के साथ नहीं बल्कि गणेश के साथ लक्ष्मी का पूजन किया जाता है.

लक्ष्मी जी के साथ गणेश का पूजन करने का शास्त्रों में क्या आधार है? लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन की जाती है. यह तो सभी जानते हैं कि दीपावली (Diwali Kumaoni) पर्व का अत्यंत प्राचीन काल से अत्यधिक महत्व है. हिन्दू धर्म में इस त्यौहार को अत्यंत महत्ता दी जाती है. इस दिन सभी लोग अपने-अपने घरों को साफ सुथरा करके, स्वयं भी शुद्ध पवित्र होकर रात्रि को विधि-विधान से गणेश लक्ष्मी का पूजन कर उनको प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं.

दीपावली (Diwali Kumaoni) के त्यौहार में लक्ष्मी पूजन एक ही भावना से किया जाता है कि मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन का प्रकाश लेकर आएं. इस पूजा में यदि हम चाहते हैं कि लक्ष्मी जी का स्थाई निवास हमारे घर में हो और उनकी कृपा हम पर बनी रहे तो उनके पति विष्णु जी का आह्वान करना चाहिये लेकिन फिर भी विष्णु के स्थान पर गणेश को पूजा जाता है, ऐसा क्यों?

शास्त्रों के अनुसार गणेश जी को लक्ष्मी जी का मानस-पुत्र माना गया है. दीपावली (Diwali Kumaoni) के शुभ अवसर पर ही इस दोनों का पूजन किया जाता है. तांत्रिक दृष्टि से दीपावली को तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने तथा महाशक्तियों को जागृत करने की सर्वश्रेष्ठ रात्रि माना गया है.

यह तो सभी जानते हैं कि किसी भी कार्य को करने से पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है लेकिन इसके साथ ही गणेश जी के विविध नामों का स्मरण सभी सिद्धियों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन एवं नियामक भी है. अतः दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी के साथ निम्न गणेश मंत्र का जाप सर्व सिद्धि प्रदायक माना गया है.

‘‘प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्रं विनायकम्॥ भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुष्य कामार्थ सिद्धये॥

इसलिए भी पूजा जाता है गणेश जी को : गणेश जी का स्मरण वक्रतुंड, एकदन्त, गजवक्त्र, लंबोदर, विघ्न राजेंद्र, धूम्रवर्ण, भालचंद्र, विनायक, गणपति, एवं गजानन इत्यादि विभिन्न नामों द्वारा किया जाता है. इन सभी रूपों में गणेश जी ने देवताओं को दानवों के प्रकोप से मुक्त किया था. दानवों के अत्याचार के कारण उस समय जो अधर्म और दुराचार का राज्य स्थापित हो गया था, उसे पूर्णतया समाप्त कर न केवल देवताओं को बल्कि दैत्यों को भी अभय दान देकर उन्हें अपनी भक्ति का प्रसाद दिया और उनका भी कल्याण ही किया.

अतः स्पष्ट है कि दीपावली (Diwali Kumaoni) की रात्रि को लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन का धार्मिक, अध्यात्मिक, तांत्रिक एवं भौतिक सभी दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है ताकि लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर हमें धन-संपदा प्रदान करें तथा उस धन को प्राप्त करने में हमें कोई भी कठिनाई या विघ्न ना आए, हमें आयुष्य प्राप्त हो, सभी कामनाओं की पूर्ति हो तथा सभी सिद्धियां भी प्राप्त हों.

दीपावली (Diwali Kumaoni) पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन करने में संभवतः एक भावना यह भी कही गई है कि मां लक्ष्मी अपने प्रिय पुत्र की भांति हमारी भी सदैव रक्षा करें. हमें भी उनका स्नेह व आशीर्वाद मिलता रहे. लक्ष्मी जी के साथ गणेश पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी को सदा लक्ष्मी जी की बाईं ओर ही रखें.

आदिकाल से पत्नी को ‘वामांगी’ कहा गया है. बायां स्थान पत्नी को ही दिया जाता है. अतः पूजा करते समय लक्ष्मी-गणेश को इस प्रकार स्थापित करें कि लक्ष्मी जी सदा गणेश जी के दाहिनी ओर ही रहें, तभी पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होगा।

दीपावली (Diwali Kumaoni) पर राम की जगह इसलिये होती है लक्ष्मी-गणेश की पूजा, जानिए वजह

देवताओं और असुरों के बीच मेंं समुद्र मंथन हुआ। हजारों साल चले इस मंथन में एक दिन महालक्ष्मी निकली। उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी।

नैनीताल। दीपावली (Diwali Kumaoni) का पर्व आदि काल से मनाया जाता है। इसे संसार में खुशी का प्रतीक माना गया है। दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन अन्य कई इतिहास भी जुड़े है। भगवान् श्री कृष्ण इसी दिन शरीर मुक्त हुए। जैन मत के अनुसार अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर व महर्षि दयानंद सरस्वती ने भी दीपावली (Diwali Kumaoni) को ही निर्वाण प्राप्त किया था। लेकिन हिन्दुओं का मत है कि दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन ही श्री राम विजयी होकर अयोध्या लौटे थे। उनके आने की खुशी में घी के दीपक जलाए गए और खुशियां मनाई गई।

राम-सीता और लक्ष्मण की खुशी में दीपावली (Diwali Kumaoni) मनाई जाती है तो इस दिन राम की पूजा क्यों नहीं की जाती। सिर्फ लक्ष्मी पुत्र गणेश, विष्णु पत्नी लक्ष्मी, सरस्वती का ही पूजन क्यों किया जाता है। आइए हम बताते है इस रहस्य को। युगों पुरानी बात है। जब समुद्रमंथन नही हुआ था। उस दौरान देवता और राक्षसों के बीच आए दिन युद्ध होते रहते थे। कभी देवता राक्षसों पर भारी पड़ते तो कभी राक्षस। एक बार देवता राक्षसों पर भारी पड़ रहे थे।

जिसके कारण राक्षस पाताल लोक में भागकर छिप गए। राक्षस जानते थे कि वे इतने शक्तिशाली नहीं हैं कि देवताओं से लड़ सकें। देवताओं पर महालक्ष्मी अपनी कृपा बरसा रही थी। मां लक्ष्मी अपने 8 रूपों के साथ इंद्रलोक में थी। जिसके कारण देवताओं में अंहकार भरा हुआ था। एक दिन दुर्वासा ऋषि समामन की माला पहनकर स्वर्ग की तरफ जा रहे थे। रास्ते में इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ आते हुए दिखाई दिए। इंद्र को देखकर ऋषि प्रसन्न हुए और गले की माला उतार कर इंद्र की ओर फेंकी। लेकिन इंद्र मस्त थे।

उन्होंने ऋषि को प्रणाम तो किया लेकिन माला नही संभाल पाए और वह ऐरावत के सिर में डल गई। हाथी को अपने सिर में कुछ होने का अनुभव हुआ और उसने तुंरत सिर हिला दिया था। जिससे माला जमीन पर गिर गई और पैरों से कुचल गई। यह देखकर वे क्रोधित हो गए। दुर्वासा ने इंद्र को श्राप देते हुए कहा कि जिस अंहकार में हो, वह तेरे पास से तुरंत पाताल लोक चली जाएगी। श्राप के कारण लक्ष्मी स्वर्गलोक छोड़कर पाताल लोक चली गई।

लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए। राक्षसों ने माता लक्ष्मी को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। राक्षस बलशाली हो गए और इंद्रलोक पाने की जुगत भिड़ाने लगे। उधर लक्ष्मी के जाने के बाद में इन्द्र देवगुरु बृहस्पति और अन्य देवाताओं के साथ ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन की युक्ति बताई।

देवताओं और असुरों के बीच मेंं समुद्र मंथन हुआ। हजारों साल चले इस मंथन में एक दिन महालक्ष्मी निकली। उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी। लक्ष्मी को पाकर देवता एक बार फिर से बलशाली हो गए। माता लक्ष्मी का समुद्र मंथन से आगमन हो रहा था, सभी देवता हाथ जोड़कर आराधना कर रहे थे। भगवान विष्णु भी उनकी आराधना कर रहे थे।

इसी कारण कार्तिक आमावस्या के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही रोशनी की जाती है। लक्ष्मी जी के मद में कोई गलती न कर दें, इसलिए सरस्वती और गणेश जी की पूजा भी होती है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : Diwali Kumaoni : दीपावली पर लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने और धन पाने के 18 अचूक उपाय, जानें क्यों दिवाली पर भगवान राम या विष्णु की जगह होती हैं माता लक्ष्मी व गणेश की पूजा

नवीन समाचार, आस्था डेस्क, 11 नवंबर 2023।  दीपावली पर हर व्यक्ति चाहता है कि लक्ष्मी उस पर मेहरबान हों। लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने और दीवाली पर धन पाने के कुछ अचूक उपाय बतलाये जाते हैं। आशा है इनका प्रयोग कर आप लाभ उठा सकेंगे। ये उपाय इस प्रकार हैं :-

  1. धनतेरस के दिन हल्दी और चावल पीसकर उसके घोल से घर के मुख्य दरवाजे पर ‘ऊँ’ बनाने से घर में लक्ष्मीजी (धन) का आगमन बना ही रहता है।
  2. नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली (Diwali Kumaoni) को प्रात:काल अगर हाथी मिल जाए तो उसे गन्ना या मीठा जरूर खिलाने से अनिष्ठों, जटिल मुसीबतों से मुक्ति मिलती हैै। अनहोनी से सदैव रक्षा होती है।
  3. Diya%20GIFनरक चतुर्दशी की संध्या के समय घर की पश्चिम दिशा में खुले स्थान में या घर के पश्चिम में 14 दीपक पूर्वजों के नाम से जलाएं, इससे पितृ दोषों का नाश होता है तथा पितरों के आशीर्वाद से धन-समृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है।
  4. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन पति-पत्नी सुबह लक्ष्मी-नारायण विष्णु मंदिर जाएं और एक साथ लक्ष्मी-नारायण को वस्त्र अर्पण करें। ऐसा करने से कभी भी धन की कमी नहीं रहेगी। संतान दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करेगी।
  5. bhavani mata dussehara%20(1)दीपावली (Diwali Kumaoni) पर गणेश-लक्ष्मीजी की मूर्ति खरीदते समय यह अवश्य ही देखें कि गणेशजी की सूड दांयी भुजा की ओर जरूर मुड़ी हो। इनकी पूजा दीपावली (Diwali Kumaoni) में करने से घर में रिद्धि-सिद्धि धनसंपदा में बढ़ोत्तरी, संतान की प्रतिष्ठा दिनों-दिन बढ़ती है।
  6. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन नया झाड़ू खरीदकर लाएं। पूजा से पहले उससे पूजा स्थान की सफाई कर उसे छुपाकर एक तरफ रख दें। अगले दिन से उसका उपयोग करें, इससे दरिद्रता का नाश होगा और लक्ष्मीजी का आगमन बना रहेगा।
  7. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन इमली के पेड़ की छोटी टहनी लाकर अपनी तिजेरी या धन रखने के स्थान पर रखने से धन में दिनों-दिन वृद्धि होती है।
  8. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन काली हल्दी को सिंदूर और धूप-दीप से पूजन करने के बाद 2 चाँदी के सिक्कों के साथ लाल कपड़े में लपेटकर धन स्थान पर रखने से आर्थिक समस्याएं कभी नहीं रहतीं।
  9. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन पानी का नया घड़ा लाकर पानी भरकर रसोई में कपड़े से ढंककर रखने से घर में बरक्कत और खुशहाली बनी रहती है।
  10. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन एक चाँदी की बाँसुरी राधा-कृष्णजी के मंदिर में चढ़ाने के बाद 43 दिन लगातार भगवान श्रीकृष्णजी के किसी भी मंत्र का जाप करें। गाय को चारा खिलाएं और संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। निश्चय ही भगवान श्रीकृष्णजी की कृपा से आपको संतान प्राप्ति अवश्य ही होगी।
  11. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन हनुमान मंदिर में लाल पताका चढ़ाने से घर-परिवार की उन्नति के साथ ख्याति धन संपदा बढ़ाती है।
  12. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन मुक्तिधाम (श्मशानभूमि) में स्थित शिव मंदिर में जाकर दूध में शहर मिलाकर चढ़ाने से सट्टे और शेयर बाजार से धन अवश्य ही मिलता है।
  13. दीपावली (Diwali Kumaoni) पूजन में 11 कोड़ियां, 21 कमलगट्टा, 25 ग्राम पीली सरसों लक्ष्मीजी को चढ़ाएं (एक प्लेट में रखकर अर्पण करें)। अगले दिन तीनों चीजें लाल या पीले कपड़े में बांधकर तिजौरी में या जहां पैसा रखते हों वहां , रख दें।
  14. दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन अशोक वृक्ष की जड़ का पूजन करने से घर में धन-संपत्ति की वृद्धि होती है।
  15. दीपावली (Diwali Kumaoni) के पूजन के बाद शंख और डमरू बजाने से घर की दरिद्रता दूर होती है और लक्ष्मीजी का आगमन बना रहता है ।
  16. आंवले के फल में, गाय के गोबर में, शंख में, कमल में, सफेद वस्त्रों में लक्ष्मीजी का वास होता है, इनका हमेशा ही प्रयोग करें। आंवला घर में या गल्ले में अवश्य ही रखें।
  17. दीपावली (Diwali Kumaoni) के अगले दिन गोवर्धन पूजा पर गाय के गोबर का दीपक बनाकर उसमें पुराने गुड़ की एक डेली और मीठा तेल डालकर दीपक जलाकर घर के मुख्य द्वार के बीचों-बीच रख दें। इससे घर में सुख-समृद्धि दिनों दिन बढ़ती रहेगी।
  18. भाईदूज के दिन एक मुट्ठी साबुत बासमती चावल बहते हुए पानी में महालक्ष्मीजी का स्मरण करते हुए छोड़ने से धन्य-धान्य में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती है।

यह भी पढ़ें : धनतेरस पर क्या है पूजा का विधान तथा राशिवार क्या करें व क्या न करें खरीददारी और क्या करें कि वर्ष भर होती रहे लक्ष्मी जी की कृपा….

नवीन समाचार, आस्था डेस्क, 10 नवंबर 2023। आज दीपोत्सव दीपावली (Diwali Kumaoni) से पूर्व धनतेरस का पर्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 2 नवंबर 2021, दिन मंगलवार को है। धनतेरस पर हस्त नक्षत्र के साथ ही त्रिपुष्कर योग प्राप्त हो रहा है। इस दौरान किए गए शुभ कार्य का तीन गुना फल प्राप्त होता है।

क्यों मनाया जाता है धनतेरस:
happy dhanteras diwaliधार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज ही समुद्रमंथन के दौरान प्रभु धन्वंतरि प्रकट हुए थे। उस दौरान उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इसलिए इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। इस तिथि को धन्वंतरि जयंती या धन त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन नए धातु एवं चांदी के बर्तनों को खरीदने की परंपरा के साथ ही सोने चांदी के सिक्के, रत्न आभूषण खरीदे जाते हैं।

धनतेरस पर पूजा व खरीददारी का मुहूर्त: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। इस वर्ष मंगलवार पूर्वाह्न 11.30 बजे त्रयोदशी की तिथि आरंभ होगी। इस दौरान सुबह 9.50 से रात 9.30 बजे तक खरीदारी का मुहूर्त है। पूर्वाह्न 11.30 बजे से अपराह्न 3.05 बजे तक श्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा।

डा. जोशी ने बताया कि उत्तरा फाल्गुनी व हस्त नक्षत्र का योग देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने वाला होगा। आज धनतेरस पर त्रिपुष्कर के साथ धन योग का अद्भुत संयोग भी बन रहा है। इस दौरान प्रदोष काल शाम 05.39 से 8.14 बजे तक व वृषभ काल-शाम 6.51 से 8.47 तक रहेगा। धनतेरस पर भगवान गणेश व लक्ष्मीजी का पूजन का मुहूर्त शाम 5. 50 बजे से रात 8.20 बजे तक रहेगा।

धनतेरस की पूजा विधि: धनतेरस के दिन धन्वंतरि देव और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में कभी धन की कमी नहीं रहती है। इस दिन भगवान कुबेर की पूजा की भी विधान है। ऐसे करें पूजा:
1. सबसे पहले चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
2. अब गंगाजल छिड़कर भगवान धन्वंतरि, माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।

3. भगवान के सामने देसी घी का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं।
4. अब देवी-देवताओं को लाल फूल अर्पित करें।
5. अब आपने इस दिन जो बर्तन अथवा ज्वेलरी की खरीदारी की है, उसे चौकी पर रखें।
6. लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और कुबेर स्तोत्र आदि का पाठ करें।
7. धनतेरस की पूजा के दौरान लक्ष्मी माता के मंत्रों का जाप करें और मिठाई का भोग भी लगाएं।

यमराज की पूजा: प्रदोष काल में यमराज के लिए दीपदान करना चाहिए। इसके लिए आटे से चौमुखा दीपक बनाना चाहिए। उसमें सरसों या तिल का तेल डालकर घर के बाहर दक्षिण दिशा में या देहरी पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर दीपक रखना चाहिए। ऐसा करते हुए यमराज से परिवार की लंबी उम्र की कामना करनी चाहिए।

(Diwali Kumaoni) माना जाता है ऐसा करने से अकाल मृत्यु होने की संभावना नहीं रहती। बाद में इस दीपक को पीपल के पेड़ के नीचे या खुले मैदान में छोड़ आएं। इस पूरी सामग्री को कदापि घर के भीतर न लाएं, क्योंकि यह यमराज की पूजा है।

यह भी ध्यान में रखें: धनतेरस से भैया दूज तक अभ्यंग स्नान से आरोग्य सुख मिलता है। इस दौरान सूर्योदय के पूर्व उठें। शरीर पर तेल लगाकर स्नान करने से आरोग्य सुख मिलेगा। तेल के अलावा दूध, दही, देशी घी, तिल, आंवला आदि से स्नान करने पर कष्टों का निवारण होता है। नरक चतुर्दशी पर तीन नवंबर को 14 दीप प्रज्ज्वलित करके देवस्थान, बाग-बगीचे, और स्वच्छ स्थानों पर रखने का विधान है।

धनतेरस के दिन ऐसे कौन से उपाय हैं जो आप कर सकते हैं जिससे आपके संकट कट जाएंगे और आप मालामाल हो जाएंगे:
पीली कौड़ियांः आप अगर धनतेरस पर अमीर बनना चाहते हैं और घर में खूब सारा धन चाहते हैं तो धनतेरस के दिन कौड़ियां खरीदकर उसकी पूजा करें। उसके बाद आप उन्हें तिजोरी में रखें। यदि कौड़ियां पीली नहीं हैं तो उन्हें हल्दी के घोल में पीला कर लें। उसके बाद उनकी पूजा कर अपनी तिजोरी में रखें।

(Diwali Kumaoni) इस दिन 13 दीपक जलाएं और घर के सभी कोने में रख दें। वहीं आधी रात के बाद सभी दीपकों के पास एक एक पीली कौड़ियां रख दें। बाद में इन कौड़ियों को जमीन में गाड़ने का विधान है। कहते हैं ऐसा करने से आपके जीवन में अचानक से धनवृद्धि होगी।

हल्दी की गांठ: अगर रातों-रात अमीर बनना चाहते हैं तो धनतेरस के दिन खड़ी हल्दी खरीदें। ध्यान रहे शुभ मुहूर्त देखकर बाजार से गांठ वाली पीली हल्दी अथवा काली हल्दी को घर लाएं और इस हल्दी को कोरे कपड़े पर रखकर स्थापित करें। उसके बाद षडोशपचार से पूजन करें क्योंकि यह धन समृद्धि का उपाय है और इसे करने से व्यक्ति रातों-रात अमीर बन जाता है।

लौंग के उपाय: अगर आपके पास धन नहीं टिकता है, तो धनतेरस से दीपावली (Diwali Kumaoni) के दिन तक आप मां लक्ष्मी को पूजा के दौरान एक जोड़ा लौंग चढ़ाएं। ऐसा करने से बड़ा लाभ होगा।

ऐसे अपनी राशि के अनुसार करें धनतेरस पर खरीददारी: धनतेरस के दिन सोना खरीदना शुभ माना जाता है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए ये संभव नहीं हो पाता तो ऐसे लोग शगुन के तौर पर पीतल या अन्य धातुओं के बर्तन खरीद सकते हैं। चांदी के बर्तन या चांदी खरीदने से घर में शांति आती है और क्लेश खत्म होता है। झाड़ू खरीदने से घर में लक्ष्मी आती है।

(Diwali Kumaoni) सोना खरीदने से सौंदर्य और समृद्धि बढ़ती है। घर में यदि धनतेरस के दिन तांबे का बर्तन लाते हैं तो धर्म और पुण्य की वृद्धि होती है। धनतेरस के दिन मिट्टी से बने बर्तन और दीपक भी खरीदना शुभ माना जाता है। महत्वपूर्ण पर्व होने के कारण धनतेरस पर पूजा-पाठ की चीजें, कपड़े और वाहन भी खरीदे जाते हैं। इस दिन प्रॉपर्टी संबंधी निवेश या लेन-देन करना भी शुभ माना जाता है।

यह न खरीदें: धनतेरस पर लोहे से बने बर्तन कड़ाही, तवा, चिमटा आदि नहीं खरीदने चाहिए। इसके अलावा इस शुभ दिन नुकीले सामान जैसे चाकू, छुरी, कैंची, हंसिया जैसी चीजें, कांच और प्लास्टिक से बने सामान खरीदने से बचना चाहिए।

एल्युमिनियम के बर्तन सेहत के लिए ठीक नहीं होते हैं। इसलिए ऐसे बर्तन भी नहीं खरीदने चाहिए। ध्यान रखें कि लोहे या स्टील के बर्तन इस दौरान कदापि न खरीदें। क्योंकि लोहा और लोहे के ही अंश स्टील में शनि बसते हैं और माता लक्ष्मी के साथ शनिदेव का संयोग नहीं बनता है। इसके अलावा:

  • मेष राशि वालों के लिए सोना, चांदी, इलेक्ट्रॉनिक्स, जमीन जायदाद, वस्त्र, वाहन, स्वर्ण आभूषण, चांदी के बर्तन, रसोईघर का सामान आदि की खरीदारी करना शुभ हो सकता है।
  • वृषभ राशि वालों को हीरे-चांदी के जेवर और जमीन जायदाद की खरीदारी करनी चाहिए। इसके अलावा वे बैंक में फिक्स डिपॉजिट भी कर सकते हैं या वाहन की खरीदारी भी कर सकते हैं।
  • मिथुन राशि वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सोना, चांदी, जमीन जायदाद, तांबे, पीतल के बर्तन, वाहन आदि की खरीदारी कर सकते हैं।
  • कर्क राशि वालों को शेयर मार्केट में निवेश करना चाहिए। इसके अलावा वे जमीन जायदाद की खरीदारी व सोना, चांदी के आभूषण व कृषि सामान भी खरीद सकते हैं।
  • सिंह राशि वालों को या तो बैंक में फिक्स डिपॉजिट करना चाहिए। या उनके लिए शेयर मार्केट में निवेश करना शुभ हो सकता है। यही नहीं लकड़ी के फर्नीचर, सोना, तांबा व वाहन आदि की खरीदारी भी कर सकते हैं।
  • कन्या राशि वाले जमीन जायदाद, इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान के अलावा सोना-चांदी, वस्त्र व खेती संबंधी उपकरण आदि की खरीदारी कर सकते हैं।
  • तुला राशि वालों को वाहन की खरीदारी करने से बचना चाहिए, इसके जगह वे शेयर मार्केट में पैसे लगा सकते हैं या फिर फिक्स्ड डिपॉजिट कर सकते हैं। इसके अलावा चांदी, सोना, वाहन व रसोईघर के सामान की खरीदारी भी कर सकते हैं।
  • वृश्चिक राशि वाले किसी भी प्रकार का निवेश कर सकते हैं। इसके अलावा वह जमीन जायदाद की खरीदारी और सोना चांदी में भी पैसे लगा सकते हैं। ज्वेलरी, बर्तन, फर्नीचर भी खरीद सकते हैं।
  • धनु राशि वालों को शेयर मार्केट, इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान जमीन, जायदाद, सोना, व तांबा आदि की खरीदारी करनी चाहिए।
  • मकर राशि वाले स्टील के फर्नीचर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, चांदी, जमीन जायदाद व सोने आदि की खरीदारी कर सकते हैं।
  • कुंभ राशि वालों को भी वाहन की खरीदारी करने से बचना होगा। उसकी जगह वह चांदी की खरीदारी कर सकते हैं। साथ ही साथ सोना भी ले सकते हैं या बैंक में फिक्स डिपॉजिट भी कर सकते हैं।
  • मीन राशि वालों को किसी भी तरह की खरीदारी वर्जित नहीं है। वह किसी भी प्रकार की खरीदारी या निवेश कर सकते हैं। इसके अलावा व ज्वेलरी, फर्नीचर, वस्त्र, किचन सामग्री भी खरीद सकते हैं।

यह भी पढ़ें : गढ़वाल में इसलिए मनाई जाती है ‘इगास’ और कुमाऊं में बूढ़ी दिवाली

-सेनापति माधो सिंह भंडारी की वीरता से है इसका संबंध
ईगास 2020 : बूढ़ी दीपावली (बग्वाल) और भैलो का खेल, पढ़िए उत्तराखंड की इस  अद्वितीय संस्कृति के बारे में - Mirror Uttarakhandनवीन समाचार, आस्था डेस्क, 14 नवंबर 2021। दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को पूरे देश में हरिबोधनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में इगास और कुमाऊं मंडल में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है।

इस वर्ष से प्रदेश की पुष्कर सिंह धामी सरकार की बड़ी पहल बताई जा रही, इस दिन इगास पर राजकीय अवकाश घोषित करने की पहल हुई है। लोग इस त्योहार के बारे में अन्जान हैं। इसलिए इस लोक पर्व पर पूरी जानकारी यहां से ले सकते हैं।

(Diwali Kumaoni) कहा जाता है कि हरिबोधनी एकादशी को चार माह के चार्तुमास में क्षीरसागर में योगनिद्रा में सोने के बाद भगवान बिष्णु जागते हैं। इस दौरान भगवान शिव भगवान विष्णु लोक की जगह पृथ्वी लोक का पालन करते हैं। इसी बीच दीपावली पड़ती है। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में दीपावली तीन स्तरों पर मनाई जाती है। पहले कोजागरी यानी शरद पूर्णिमा को छोटी दिवाली के रूप में बालिका रूप लक्ष्मी की पूजा होती है,

(Diwali Kumaoni) फिर दिवाली को यहां युवा माता लक्ष्मी की घूंघट में डिगारा शैली में मूर्ति बनाई जाती है और चूंकि इस दौरान भगवान विष्णु सोये होते हैं, इसलिए अकेले माता लक्ष्मी के पदचिन्ह उकेरे जाते हैं, उनके पति श्रीविष्णु के नहीं। वहीं हरिबोधनी एकादशी यानी गढ़वाल में मनाये जाने वाले इगास के दिन यहां बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है, और इस दिन चूंकि हरिविष्णु जाग चुके होते हैं, इसलिए इस दिन माता लक्ष्मी के साथ विष्णु के चरण भी ऐपण के माध्यम से बनाए जाते हैं।

Madho Singh Bhandari Smriti And Vikas Mela Started With A Grand Glimpse -  भव्य झांकी के साथ शुरू हुआ माधोसिंह भंडारी स्मृति एवं विकास मेला - Pauri  Newsउधर गढ़वाल मंडल में मनाया जाने वाला इगास पर्व माधो सिंह भंडारी को याद कर मनाया जाता है। कहते हैं कि 17 वीं शताब्दी में मलेथा गांव में पैदा हुए माधो सिंह भंडारी गढ़वाल के प्रसिद्ध भड़ यानी योद्धा थे। तब श्रीनगर गढ़वाल के राजाओं की राजधानी थी। माधो सिंह के पिता कालो भंडारी की बहुत ख्याति थी। माधो सिंह पहले राजा महीपत शाह, फिर रानी कर्णावती और फिर पृथ्वीपति शाह के वजीर और वर्षों तक सेनानायक भी रहे।

तब गढ़वाल और तिब्बत के बीच अक्सर युद्ध हुआ करते थे। दापा के तिब्बती सरदार गर्मियों में दर्रों से उतरकर गढ़वाल के ऊपरी भाग में अनाज की लूटपाट करते थे, इसी से उनका जीवन यापन चलता था। माधो सिंह भंडारी ने तिब्बत के सरदारों से दो या तीन युद्ध लड़े। सीमाओं का निर्धारण किया। सीमा पर भंडारी के बनवाए कुछ मुनारे (स्तंभ) आज भी चीन सीमा पर मौजूद हैं। माधो सिंह ने पश्चिमी सीमा पर हिमाचल प्रदेश की ओर भी एक बार युद्ध लड़ा।

कहते हैं कि एक बार तिब्बत से युद्ध में वे इतने उलझ गए कि दिवाली के समय तक वापस श्रीनगर गढ़वाल नहीं पहुंच पाए। आशंका थी कि वे युद्ध में मारे जा चुके हैं। इस कारण तब गढ़वाल अंचल में दिवाली नहीं मनाई गई। लेकिन दिवाली के कुछ दिन बाद माधो सिंह की युद्ध में विजय और सुरक्षित होने की खबर श्रीनगर गढ़वाल पहुंची।

(Diwali Kumaoni) तब राजा की सहमति पर एकादशी के दिन दिवाली मनाने की घोषणा हुई। तभी से यहां एकादशी को दिवाली यानी इगास मनाने की शुरुआत हुए और तभी से इगास बग्वाल निरंतर लोकपर्व के रूप में मनाई जाती है। अलबत्ता गढ़वाल के कुछ गांवों में अमावस्या की दिवाली भी मनाई जाती है, और कुछ गांवो में दिवाली के साथ इगास पर भी दिवाली मनाई जाती है। इगास बिल्कुल दीवाली की तरह ही उड़द के पकौड़े, दियों की रोशनी, भैला और मंडाण आदि के साथ मनाई जाती है।

इन्हीं माधो सिंह भंडारी ने 1634 के आसपास मलेथा की प्रसिद्ध भूमिगत सिंचाई नहर बनाई, जिसमें उनके पुत्र का बलिदान हुआ। जीवन के उत्तरार्ध में शायद 1664-65 के बाद उन्होंने तिब्बत से ही एक और युद्ध लड़ा, जिसमें उन्हें वीरगति प्राप्त हुई। इतिहास के अलावा भी अनेक लोकगाथा गीतों में माधो सिंह की शौर्य गाथा गाई जाती है।

(Diwali Kumaoni) उनके बारे में प्रसिद्ध पंवाड़ा यानी एक गढ़वाली लोकगाथा गीत में कहा जाता है-”सैंणा सिरीनगर रैंदू राजा महीपत शाही, महीपत शाह राजान भंडारी सिरीनगर बुलाया….।” यानी श्रीनगर के मैदानी क्षेत्र में राजा महीपत शाह रहते थे, उन्होंने भंडारी को श्रीनगर बुलाया। इगास दिवाली पर उन्हें याद किया जाता है-‘‘दाळ दळीं रैगे माधो सिंह, चौंऴ छड्यां रैगे माधो सिंह, बार ऐन बग्वाळी माधो सिंह, सोला ऐन शराद माधो सिंह, मेरो माधो निं आई माधो सिंह, तेरी राणी बोराणी माधो सिंह……….।’’

वीरगाथा गीतों में उनके पिता कालो भंडारी, पत्नियां रुक्मा और उदीना तथा पुत्र गजे सिंह और पौत्र अमर सिंह का भी उल्लेख आता है। मलेथा में नहर निर्माण, संभवत पहाड़ की पहली भूमिगत सिंचाई नहर पर भी लोक गाथा गीत हैं। इसके अलावा रुक्मा का उलाहना-‘‘योछ भंडारी क्या तेरू मलेथा, जख सैणा पुंगड़ा बिनपाणी रगड़ा……..’’, और जब नहर बन जाती है तब भंडारी रुक्मा से कहता है-‘‘ऐ जाणू रुक्मा मेरा मलेथा, गौं मुंड को सेरो मेरा मलेथा……….।’’

इस प्रकार माधो सिंह भंडारी की इतिहास शौर्य गाथा और लोकगाथाएं बहुत विस्तृत हैं। उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले इंद्रमणि बडोनी के निर्देशन में माधो सिंह भंडारी से सम्बन्धित गाथा गीतों को 1970 के दशक में संकलित करके नृत्य नाटिका में ढाला गया था। एक डेढ़ दशक तक दर्जनों मंचन हुए। इसमें स्वर और ताल देने वाले लोक साधक 85 वर्षीय शिवजनी अब भी टिहरी के ढुंग बजियाल गांव में रहते हैं।

Veer Bhad Madho Singh Bhandari - Posts | Facebookलोग इगास तो मनाते रहे लेकिन इसका इतिहास और इसकी गाथा भूलते चले गए। आधा गढ़वाल भूल गया, जबकि आधे गढ़वाल में अब भी बड़े उत्साह से इगास मनाई जाती है। खास बात यह भी समझें कि मध्य काल में उत्तर की सीमाएं माधो सिंह, रिखोला लोदी, भीम सिंह बर्त्वाल जैसे गढ़वाल के योद्धाओं के कारण सुरक्षित रही हैं।

(Diwali Kumaoni) चीन से भारत का युद्ध आजादी के बाद हुआ लेकिन तिब्बत से तो गढ़वाल के योद्धा शताब्दियों तक लड़ते रहे। पर्वत की घाटियों में ही तिब्बत के सरदारों को रोकते रहे। सिर्फ गढ़वाल ही नहीं भारत भूमि की रक्षा भी की। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार एक बार तो तिब्बत के सरदार टिहरी के निकट भल्डियाणा तक चले आए थे । इसलिए कहा जाता है कि गढ़वाल ही नहीं, पूरे भारत देश को इन योद्धाओं का ऋणी होना चाहिए। गाथा सुननी चाहिए, और पढ़नी चाहिए। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : कुमाऊँ में भैय्यादूज नहीं, दूतिया त्यार मनाया जाता है…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 6  नवंबर 2021। दीपावली के तीसरे दिन शहरी क्षेत्रों में जहां भैय्यादूज का त्योहार मनाया जाता है, वहीं कुमाऊं मंडल के ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी परंपरागत तौर पर लोक परम्परा के तहत यम द्वितीया या ‘दुतिया त्यार’ मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन यमराज भी अपनी बहन यमुना से मिलने जाते हैं, जबकि रक्षाबंधन पर बहनें अपने भाई से मिलने जाती हैं।

इस त्योहार को मनाने की तैयारी कहीं एकादशी के दिन, कहीं धनतेरस के दिन और कहीं दीपावली के दिन शाम को तौले (एक बर्तन) में धान पानी में भिगाने के साथ शुरू होती है। गोवर्धन पूजा के दिन यानी एक दिन पूर्व इस धान को पानी में से निकाल लिया जाता है, और उन्हें देर तक कपड़े में रखकर या बांध कर उसका सारा पानी निथार लिया जाता है। इसके बाद धान को कढ़ाई में भून कर उन्हें गर्म-गर्म ही ओखल में मूसल से कूटा जाता है। गर्म होने के कारण चावल का आकार चपटा हो जाता है और उसका भूसा भी निकल कर अलग हो जाता है।

इन हल्के भूने हुए चपटे चावलों को ही “च्यूड़े” कहते हैं। इन्हें गोवर्धन पूजा पर गौशाला में पाले गए गाय, भैंस व बैल, बछिया आदि पशुओं को तथा दुतिया त्यार को घर की बड़ी महिलाओं के द्वारा देवताओं, घर के सभी सदस्यों एवं बहनों के द्वारा भाइयों को चढ़ाकर पूजा जाता है। इन च्यूड़ों को सर्दियों में अखरोट व भूने हुए भांग के साथ खाने की भी परंपरा है। इससे शरीर को गर्मी भी मिलती है। इस दौरान :

“जी रया जागी रया
य दिन य मास भ्यटनें रया।
पातिक जै पौलि जया दुबकि जैसि जङ है जौ.
हिमाल में ह्यू छन तक, गाड़क बलु छन तक,
घवड़ाक सींग उँण तक जी रया।
स्याव जस चतुर है जया, बाघ जस बलवान है जया, काव जस नजैर है जौ,
आकाश जस उच्च (सम्मान) है जया, धरति जस तुमर नाम है जौ.
जी राया, जागि राया, फुलि जया, फलि जया, दिन य बार भ्यटनै राया.”

की आशीष दी जाती हैं। च्यूड़े चढ़ाने के दौरान पहले व बाद में दूब घास के गुच्छों से सिर में तेल भी लगाया जाता है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : दीपों के पर्व पर होली सी रंग-बिरंगी सजी सरोवरनगरी, आज हुई गौशाला में पूजा…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 5 नवंबर 2021। दीपों के पर्व पर विश्व प्रसिद्ध सरोवरनगरी नैनीताल में दीपावली के साथ होली भी मानो साथ नजर आई। इस दौरान नगरी नैनी झील में रंग-बिरंगी रोशनियों के साथ अपनी प्रतिकृति निहारती व रंगों से सराबोर होती प्रतीत हो रही थी। यह नजारा बेहद ही दिलकश नजर आ रहा था।

(Diwali Kumaoni) खासकर नगर के सर्वोच्च शिखर नैना पीक से रात्रि में नगर का दृश्य हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। यहां से हल्द्वानी आदि मैदानी शहरों की रोशनियां भी आसमान में टिमटिमाते तारों की तरह बेहद सुंदर नजर आ रही थी।

नैनीताल की दीपावली : देखें विडियो :

बीते कुछ समय में चीनी लड़ियों के आने के बाद रोशनियों में कुछ गिरावट तो आई है, पर इसकी भरपाई नगर में बढ़े निर्माणों और लोगों की आर्थिक समृद्धि बढ़ने से पहले से अधिक दीप मालाएं लगने से हो गयी लगती है। इस दौरान नगर में जमकर आतिषबाजी भी की गई।

इधर शुक्रवार को गोवर्धन पड़वा पर्व मनाया गया। इस दौरान नगर के मल्लीताल स्थित नगर पालिका की गौशाला में गौवंशीय पशुओं को नहला-धुलाकर उन पर गोलाकार गिलास जैसी वस्तुओं से सफेद बिस्वार के गोल ठप्पे लगाए गए। गायों की विशेष तौर पर पूजा की गई उनके सींगों को घर के सदस्यों की तरह सम्मान देते हुए तेल से मला गया और महिलाओ ने विशेष तौर पर पूजा-अर्चना की। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : पटाखों पर आया सुप्रीम कोर्ट का नया निर्णय, मीडिया में नहीं छपा, कारण शायद यह कि पटाखे जलाने पर कोई मनाही नहीं…

नवीन समाचार, नैनीताल, 1 नवंबर 2021। देश में शादी-व्याह से लेकर नए वर्ष तक अनेक मौकों पर आतिशबाजी होती है, लेकिन खासकर दीपावली (Diwali Kumaoni) पर पटाखे-आतिशबाजी जलाने को लेकर हमेशा बहस चलती है। अब दीपावली (Diwali Kumaoni) के ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय से पटाखे-आतिशबाजी जलाने को लेकर निर्णय आया है लेकिन देश भर की मीडिया में इस पर समाचार नहीं है।

इसका कारण शायद यह कि सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखे जलाने को लेकर न केवल स्थिति बल्कि साफ कर दिया है कि देश में पटाखे जलाने को लेकर कोई मनाही नहीं है। अलबत्ता, आदेश में शासन-प्रशासन पर जिम्मेदारी आयद की गई है कि वह प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे न उपलब्ध होने दें। ऐसा होने पर राज्यों के मुख्य सचिव भी जिम्मेदार माने जाएंगे।

इस 29 नवंबर को दीपावली (Diwali Kumaoni) से ठीक पहले सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति एमआर शाह व एएस बोपन्ना की पीठ ने अर्जुन गोपाल एवं अन्य की केंद्र सरकार के विरुद्ध दायर याचिका पर जारी आदेश के बिंदु संख्या 8 में साफ किया है कि ‘पटाखे जलाने पर कोई मनाही नहीं है। केवल उन पटाखों पर मनाही है, जो खासकर बुजुर्गों एवं बच्चों एवं नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हैं’।

(Diwali Kumaoni) इसके अलावा आदेश के बिंदु संख्या 9 में साफ किया गया है कि ‘बेरियम सॉल्ट के प्रयोग से बने पटाखों को जलाने पर मनाही है।’ साथ ही आदेश में देश के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के कहा गया है कि लोगों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह पटाखों के उत्पादन, विपणन व प्रयोग होने पर संबंधित राज्य के मुख्य सचिव व गृह सचिव, पुलिस कमिश्नर, डीएसपी व थाना प्रभारी जिम्मेदार होंगे। आदेश में इस बारे में उचित प्रचार-प्रसार करने को भी कहा गया है। मामले की अगली सुनवाई 30 नवंबर को होगी।

(Diwali Kumaoni) इस बारे में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता सुयश पंत एवं नितिन कार्की ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के अनुसार केवल बेरियम सॉल्ट का प्रयोग वाले पटाखों पर प्रतिबंध है। ऐसे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह पटाखों को प्रदेश के बाजारों में ना बिकने देने की जिम्मेदारी प्रदेश के मुख्य सचिव से लेकर थाना प्रभारियों की है।

(Diwali Kumaoni) बाजार में जो पटाखे उपलब्ध हैं, वह हरित या सुरक्षित श्रेणी के हैं।उन्हें लोग जला सकते हैं। उन्हें जलाने पर कोई मनाही नहीं है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें (Diwali Kumaoni) : हाईकोर्ट की पाबंदी के बाद हल्द्वानी के साथ नैनीताल में पटाखा बाजार के लिए स्थान तय…

(Diwali Kumaoni) पटाखा दुकानों के लिए प्रशासन ने जारी की गाइड लाइन | Guideline for cracker  shops in indore - Dainik Bhaskarनवीन समाचार, नैनीताल, 21 अक्तूबर 2022 (Diwali Kumaoni) उत्तराखंड उच्च न्यायालय के हल्द्वानी के रामलीला मैदान में पटाखों का बाजार लगाए जाने पर रोक के आदेश के बाद प्रशासन ने शहर के चार स्थानों पर पटाखा बाजार लगाने का प्रबंध कर लिया है। शुक्रवार की शाम तक सीएफओ यानी मुख्य अग्निशमन अधिकारी की रिपोर्ट पर ही नगर प्रशासन ने शहर के चार जगहों पर पटाखा बाजार लगाने की अनुमति दे दी है।

‘नवीन समाचार’ के माध्यम से दीपावली पर अपने प्रियजनों को शुभकामना संदेश दें मात्र 500 रुपए में… संपर्क करें 8077566792, 9412037779 पर, अपना संदेश भेजें saharanavinjoshi@gmail.com पर… यह भी पढ़ें : अब नैनीताल में पिटबुल ने किशोर को बुरी तरह से नोंचा….

(Diwali Kumaoni) सिटी मजिस्ट्रेट ऋचा सिंह ने बताया कि रामलीला मैदान से इतर अब एमबी इंटर कॉलेज के मैदान, ऊंचापुल स्थित रामलीला मैदान, कठघरिया हाट बाजार व शीशमहल स्थित रामलीला मैदान में पटाखा बाजार लगाने की अनुमति दी गई है।

(Diwali Kumaoni) इसके अतिरिक्त जहां भी मानकों का पालन हो सकता है और सीएफओ की रिपोर्ट सकारात्मक रहती है तो वहां पर बाजार लगाया जा सकता है। उधर, रामलीला मैदान में पटाखा बाजार सजाने के लिए तैयार टिनशेड उखाड़ लिए गए हैं। यह भी पढ़ें : गेस्ट हाउस में युवती से अनैतिक देह व्यापार कराता संचालक गिरफ्तार(डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

(Diwali Kumaoni) ये ऐसे पटाखे जो फूटते नहीं, रिश्तों में मिठास घोलते हैं

(Diwali Kumaoni) -नेहा छावड़ा ने तैयार की हैं पटाखों के आकार की चॉकलेट, शुगर फ्री चॉकलेट भी उपलब्ध हैं

नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 नवम्बर 2020 (Diwali Kumaoni) पटाखे फूटते हैं तो धमाका करते हैं, साथ में प्रदूषण भी फैलता है। पर नैनीताल में इस दीपावली (Diwali Kumaoni) ऐसे पटाखों की चर्चा है, जो फूटते नहीं, पर रिश्तों में मिठास घोलते हैं। यह नया प्रयोग किया है नगर के मॉल रोड पर स्थित जय गारमेंट्स प्रतिष्ठान के स्वामी अनुज छावड़ा की धर्मपत्नी नेहा छावड़ा ने।

(Diwali Kumaoni) भीमताल के पास मेहरागांव में रह रहीं नेहा ने पटाखों के आकार व पैकिंग में यानी हूबहू पटाखों सी नजर आने वाली 6 तरह के स्वाद की चॉकलेट तैयार की हैं। इनमें खास है शुगर फ्री मिंट के फ्लेवर की चॉकलेट, जो खाने के बाद मुंह में मिंट का ठंडा सा अहसास दिलाते हुए एक तरह का धमाका भी करती हैं।

(Diwali Kumaoni) मूलतः दिल्ली निवासी नेहा ने बताया कि वह शौकिया तौर पर घर से ही होम बेकरी का काम करती हैं। इधर चार माह पूर्व उन्हें दिवाली और इस दौरान बढ़ने वाले प्रदूषण के बारे में सोचते हुए पटाखों की तरह दिखने वाली चॉकलेट बनाने का विचार आया। सोचा कि वातावरण में प्रदूषण की जगह रिश्तों में मिठास घोली जाए। लेकिन इस बीच उनके साथ एक दुर्घटना हो गई और उनके घुटने की सर्जरी करानी पड़ी।

(Diwali Kumaoni) फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और घर पर बैठ-बैठकर ही छोटे-बड़े अनार, चकरघिन्नी, रॉकेट, लक्ष्मी बम, स्काई शॉट, ताश के पत्ते, पोकर कॉइन तथा 500 व 2000 के नोटों के आकार की चॉकलेट तैयार कीं। इन चॉकलेट के उपहार पैक 65 रुपए से लेकर 450 तक में उपलब्ध हैं।

(Diwali Kumaoni) यह नया प्रयोग इतना पसंद किया जा रहा है कि उन्हें घर व दुकान पर व्यक्तिगत संपर्कों से ही ऑर्डर आ रहे हैं। अभी तक वह 100 से अधिक उपहार के पैक बेच चुकी हैं, और उनका स्टॉक करीब-करीब समाप्त हो गया है। फिर भी काफी मांग आ रही है। खासकर शुगर फ्री मिंट फ्लेवर की चॉकलेट सर्वाधिक पसंद की जा रही है।

यह भी पढ़ें : धनतेरस पर महंगाई से ठिठका दीपावली (Diwali Kumaoni) के त्योहार का उत्साह…

नवीन समाचार, नैनीताल, 12 नवम्बर 2020। दीपावली (Diwali Kumaoni) के अवसर पर आने वाले वाले धनतेरस के दिन हर घर में कुछ न कुछ स्थायी वस्तु, बरतन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि खरीदने की परंपरा रही है। लेकिन इस वर्ष कोरोना की वजह से पहले ही आर्थिक रूप से पस्त खरीददारों का दीपावली (Diwali Kumaoni) मनाने का उत्साह महंगाई के आगे ठिठकता नजर आया।

नगर में दीपावली (Diwali Kumaoni) के खील-खिलौने 80 रुपए प्रति किग्रा, माता लक्ष्मी बनाने के लिए गन्ने 30 रुपए प्रति नग, माता के मुखड़े 300-400 रुपए, फूल मालाएं 40 रुपए और सस्ती से सस्ती प्लास्टिक की मालाएं भी 40 से 60 रुपए प्रति नग के भाव बेची गईं। वहीं दुकानदारों का आरोप रहा कि बाजार में खरीददारों की संख्या काफी कम रही, जबकि दुकानें पहले से अधिक संख्या में लगीं।

यह भी पढ़ें : उत्तराखंड के 6 शहरों में दीपावली (Diwali Kumaoni) पर जलाए जा सकेंगे सिर्फ खास तरह के पटाखे, वह भी सिर्फ दो घंटों में ही…

नवीन समाचार, देहरादून, 11 नवंबर 2020। उत्तराखंड सरकार ने राष्ट्रीय हरित अधिग्रहण के आदेश पर देश के कई अन्य राज्यों की तरह राष्ट्रीय हरित अधिग्रहण के आदेश पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रस्ताव पर मुहर लगाते हुए दीपावली (Diwali Kumaoni) पर पटाखे जलाने के लिए दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। इन दिशा-निर्देशों के तहत राज्य के 6 शहरों में सिर्फ 2 घंटे तक ही और सिर्फ ग्रीन यानी हरित पटाखे भी जलाए जा सकेंगे।

(Diwali Kumaoni) यह कदम उठाया गया है। मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने बुधवार इस बाबत आदेश को जारी कर दिया है। आदेश में देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, हल्द्वानी, रुद्रपुर और काशीपुर में सिर्फ 2 घंटे ही हरित आतिशबाजी की जा सकेगी। राज्य के बाकी क्षेत्रों में इस तरह के प्रतिबंध के कोई निर्देश नहीं है।

आदेश में कहा गया है कि इन छह शहरों में केवल ग्रीन क्रैकर्स का ही विक्रय किया जाएगा, और दीपावली व गुरु पर्व पर रात्रि 6 से 8 एवं छठ पूजा पर प्रातः 6 से प्रातः 8 बजे तक दो घंटे ही इन्हें जलाया जा सकेगा।

क्या होते हैं ग्रीन क्रैकर्स:
(Diwali Kumaoni) ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की खोज हैं। बेरियम सौल्ट रहित ये पटाखे आवाज से लेकर दिखने तक पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है। नीरी ने ग्रीन पटाखों पर जनवरी में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के उस बयान के बाद शोध शुरू किया था जिसमें उन्होंने इसकी जरूरत की बात कही थी।

(Diwali Kumaoni) सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा करते हैं। इनसे हानिकारक गैसें बेहद कम यानी सामान्य से 50 फीसदी तक कम मात्रा में निकलेंगी। यानी इनसे प्रदूषण तो होगा लेकिन कम हानिकारक होगा। सामान्य पटाखों को जलाने से जहां भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर गैस निकलती है, लेकिन ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाले मसाले बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होते हैं।

(Diwali Kumaoni) इनसे हानिकारक गैस कम पैदा होंगी। इनके जलने के बाद पानी बनेगा और हानिकारक गैस उसमें घुल जाएगी। नीरी ने चार तरह के ग्रीन पटाखे बनाए हैं। सेफ वाटर रिलीजर: ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फर और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे। उल्लेखनीय है कि पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है। (Diwali Kumaoni, Kumaoni Diwali, Deepawali, Paramparik Deepawali, Deepawali ka itihas)

स्टार क्रैकर: स्टार क्रैकर का फुल फॉर्म है सेफ थर्माइट क्रैकर। इनमें ऑक्सीडाइजिंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे जलने के बाद सल्फर और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं। इसके लिए खास तरह के कैमिकल का इस्तेमाल होता है।
सफल पटाखे: सफल यानी ‘सेफ मिनिमल एल्यूमीनियम’ पटाखों में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है।

(Diwali Kumaoni) अरोमा क्रैकर्सः इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ हानिकारक गैस कम पैदा होगी बल्कि ये अच्छी खुशबू भी देते हैं।
ग्रीन पटाखे फिलहाल भारत के बाजारों में उपलब्ध नहीं हैं। कहा जा रहा है इन्हें बाजार में आने में अभी वक्त लगेगा। ये आवाज से लेकर दिखने तक पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है। (Diwali Kumaoni, Kumaoni Diwali, Deepawali, Paramparik Deepawali, Deepawali ka itihas)

(Diwali Kumaoni, Kumaoni Diwali, Deepawali, Paramparik Deepawali, Deepawali ka itihas, Diwali traditions, Kumaon region, traditional festivals, cultural heritage, Uttarakhand festivals, Chyuda Bagwal, Appan art, Lakshmi Puja, eco-friendly Diwali, ancient customs, Kumouni customs, Ramayana blessings, spiritual celebrations, festive rituals, rural traditions, goddess worship, cultural preservation, Diwali without fireworks, Kumaoni heritage, appan designs, local traditions,)

Leave a Reply

आप यह भी पढ़ना चाहेंगे :

You cannot copy content of this page