विज्ञापन सड़क किनारे होर्डिंग पर लगाते हैं, और समाचार समाचार माध्यमों में निःशुल्क छपवाते हैं। समाचार माध्यम कैसे चलेंगे....? कभी सोचा है ? उत्तराखंड सरकार से 'A' श्रेणी में मान्यता प्राप्त रही, 30 लाख से अधिक उपयोक्ताओं के द्वारा 13.7 मिलियन यानी 1.37 करोड़ से अधिक बार पढी गई अपनी पसंदीदा व भरोसेमंद समाचार वेबसाइट ‘नवीन समाचार’ में आपका स्वागत है...‘नवीन समाचार’ के माध्यम से अपने व्यवसाय-सेवाओं को अपने उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए संपर्क करें मोबाईल 8077566792, व्हाट्सप्प 9412037779 व saharanavinjoshi@gmail.com पर... | क्या आपको वास्तव में कुछ भी FREE में मिलता है ? समाचारों के अलावा...? यदि नहीं तो ‘नवीन समाचार’ को सहयोग करें। ‘नवीन समाचार’ के माध्यम से अपने परिचितों, प्रेमियों, मित्रों को शुभकामना संदेश दें... अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने में हमें भी सहयोग का अवसर दें... संपर्क करें : मोबाईल 8077566792, व्हाट्सप्प 9412037779 व navinsamachar@gmail.com पर।

July 27, 2024

प्रसिद्ध वैष्णो देवी शक्तिपीठ सदृश रामायण-महाभारतकालीन द्रोणगिरि वैष्णवी शक्तिपीठ दूनागिरि

1

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 9 अक्टूबर 2021। हिमालय की गोद में बसे आध्यात्मिक महिमा से मंडित और नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर दूनागिरि शक्तिपीठ का अपार महात्म्य है। आइए आज हम आपको इस शक्तिपीठ के दर्शनों को लिए चलते हैं। दूनागिरि पहुंचने के लिए अल्मोड़ा से 65 किमी, रानीखेत से 38 किमी और द्वाराहाट से 14 किमी की दूरी पर मंगलीखान नाम के स्थान पहुंचा जाता है। यहां एक शिवालय और हनुमान मंदिर है। यहां से आगे करीब 400 पैदल सीढ़ियां मंदिर तक पहुंचाती हैं। पास ही दुधौली में कुमाऊं मंडल विकास निगम का पर्यटक आवास गृह भी है। दूनागिरि मंदिर का प्राचीन प्रवेश द्वार भी बेहद सुंदर है। देखें विडिओ :

दूनागिरि शक्तिपीठ में जम्मू के प्रसिद्ध वैष्णो देवी शक्तिपीठ की तरह ही वैष्णवी माता के दो स्वयंभू सिद्ध पिंडि विग्रह मौजूद हैं। इन्हें माता शैलपुत्री एवं ब्रह्मचारिणी का स्वरूप माना जाता है। कहते हैं कि वैष्णो देवी और दूनागिरि में अन्य शक्तिपीठों की तरह माता के कोई अंग नहीं गिरे थे, वरन माता यहां स्वयं उत्पन्न हुई थीं। इसलिए दूनागिरि को माता वैष्णवी का गोपनीय शक्तिपीठ भी माना जाता है, और इसी कारण 51 शक्तिपीठों में इसकी गणना नहीं की जाती है, वरन इस शक्तिपीठ की गणना शक्ति के प्रधान उग्र पीठों में भी होती है।

कहते हैं कि पद्म नाम के कल्प में असुरों से पराजित इंद्र आदि देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु के शरीर से दिव्य तेजपुंज के रूप में ‘वैष्णवी शक्ति’ का जन्म हुआ था। यह भी कहा जाता है कि दूनागिरि शक्तिपीठ में वैष्णो देवी की तरह ही देवी ने उमा हैमवती का रूप धारण कर इंद्र आदि देवताओं को ब्रह्मज्ञान का उपदेश दिया था। विराट हिमालय की गगनचुंबी पर्वत श्रृंखलाओं के दृश्यों के साथ इस स्थान पर प्रकृति की छटा मन को मोहित कर आत्मविभोर करने के साथ ही भक्ति भाव व आध्यात्मिकता की अलौकिक अनुभूति जगाती है।

दूसरी कथा के अनुसार कहा जाता है कि त्रेता युग में राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण को शक्ति लगने पर जब हनुमान जी आकाश मार्ग से संजीवनी बूटी लेकर लंका के लिए जा रहे थे, तब यहीं पास में स्थित भरतकोट के अपभ्रंश भटकोट में तपस्या कर रहे भरत ने उन्हें अपना घुटना जमीन पर टेक कर तीर मारा था, जिस कारण उनके हाथ से संजीवनी बूटी युक्त पर्वत का एक हिस्सा यहां गिर गया था। इसलिए जैव विविधता से परिपूर्ण इस बेहद पवित्र स्थान पर मृत व्यक्तियों को जीवित करने की क्षमता युक्त संजीवनी जैसी दिव्य जड़ी-बूटियों की उपस्थिति भी बताई जाती है। भरत का घुटना टेकने का स्थान भी निकट के पहाड़ पर स्पष्ट दिखाई देता है।

इसके अलावा द्वापर युग में पांडव इसी क्षेत्र में स्थित पांडुखोली नामक स्थान पर अज्ञातवास के दौरान रहे थे। कहते हैं कि उनके गुरु द्रोणाचार्य के तपस्या करने की वजह से ही यहां का नाम मूलतः द्रोणगिरि और अपभ्रंश दूनागिरि पड़ा था। इसी क्षेत्र में गर्ग मुनि का आश्रम भी था, जिनकी तपस्या के प्रभाव से गगास नदी का उद्गम हुआ। यह स्थान शुकदेव एवं जमदग्नि जैसी ऋषियों की तपोभूमि भी रही।

वहीं स्कंद पुराण के ‘मानस खंड’ के द्रोणाद्रिमाहात्म्य के अनुसार यह देवी शिव की शक्ति है जिसे ‘महामाया हरिप्रिया’ और सिंह वाहिनी दुर्गा और ‘वह्निमती’ के रूप में भी जाना जाता है। कत्यूरी राजाओं ने दूनागिरि देवी के अव्यक्त विग्रहों को रूपाकृति प्रदान की, तथा मंदिर में गणेश, शिव एवं पार्वती के कलात्मक भित्ति चित्रों को स्थापित किया।

वैष्णवी शक्तिपीठ होने के कारण ही यहां किसी प्रकार की पशु बलि नहीं चढ़ाई जाती, यहां तक कि नारियल भी मंदिर परिसर में नहीं तोड़ा जाता है। मंदिर में अखंड ज्योति लगातार जलती रहती है।

यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है। आश्विन मास के नवरात्रों में दुर्गाष्टमी को यहां श्रद्धालुओं का बहुत बड़ा मेला लगता है। क्षेत्र के सभी नवविवाहित युगल यहां नियमपूर्वक आकर अपने सुखी दांपत्य जीवन के लिए तथा अन्य लोग माता की कृपा-आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पहुंचते हैं। निःसंतान दंपति पूरी रात्रि हाथ में जलता हुआ दीपक लेकर खड़े होकर तपस्या कर संतान प्राप्त करते हैं, और मनौती पूरी होने पर अपने नवजात शिशु को लेकर माता के दर्शन को आते हैं।

सड़क, हैलीपैड व बस सेवा की मांग

इधर क्षेत्रवासी दूनागिरी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के वाहनों की पार्किंग हेतु मंगलीखान में द्वाराहाट-कुकुछीना मोटर मार्ग से लगी हुई वन विभाग की खाली पडी पर लगभग 100 गाडियों की पार्किंग व एक हैलीपैड बनवाने की मांग कर रहे हैं। इस बारे में उन्होंने केंद्रीय रक्षा व पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट को अपने गृह क्षेत्र आने पर ज्ञापन देकर मांग की है। इसके अलावा हल्द्वानी से पूर्व में दूनागिरि तक चलने वाली रोडवेज की बस सेवा को भी फिर से शुरू करने की मांग भी क्षेत्रवासियों द्वारा की जा रही है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आप यह भी पढ़ना चाहेंगे :