यह भी पढ़ें : मुख्यमंत्री को ‘चोर-उचक्के’ कहने वाली शिक्षिका ने अब बताया ‘पिता तुल्य’, मांगी मांफी
पिछले सप्ताह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को जनता दरबार में ‘चोर-उचक्के’ तक कह जाने वाली निलंबित शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा ने अब मुख्यमंत्री को ‘पिता तुल्य’ बताया है, और उनसे माफी मांग ली है। सोशल मीडिया पर आये एक वीडियो में उत्तरा कहती सुनी जा रही हैं कि वह ट्रांसफर के लिए मुख्यमंत्री के जनता दरबार में गयी थीं। क्योंकि वह पिछले 25 वर्षों से अपने घर से बाहर हैं। इधर 2015 में उनके पति का निधन हुआ, जिसके बाद से उनके बच्चों का घर पर कोई सहारा नहीं है। इसलिए ही वह अपना स्थानांतरण चाह रही थीं। और मुख्यमंत्री के जनता दरबार में गयी थीं। वहां इतने वर्षों से अंदर भरा हुआ गुस्सा बाहर निकल गया। उन्होंने पिता तुल्य अभिभावक के समक्ष अपनी शिकायत गुस्से के रूप में की। मुझसे जो गलती हुई है, उसे वह क्षमा करें। मेरे साथ शिक्षा विभाग के कारण काफी बुरा हुआ है।
शिक्षिका उत्तरा पंत के व्यवहार में अचानक आया यह परिवर्तन सोमवार को शिक्षा निदेशक आरके कुंवर एवं मंगलवार को शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे से मिलने के बाद और इस मामले में बुरी तरह से घिरी राज्य सरकार के ‘डैमेज कंट्रोल’ का परिणाम माना जा रहा है। इससे सरकार व सत्तारूढ़ भाजपा को तो जरूर राहत मिलेगी, परंतु अपने राजनीतिक हितों के लिए उसे बिन मांगे समर्थन देने जुटे और सरकार को घेर रहे विपक्ष की किरकिरी होनी भी तय है।
इधर मुख्यमंत्री के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने के बाद राष्ट्रीय मीडिया में भी छा चुकी और गत दिवस हाईकोर्ट की शरण में भी जाने की बात कहने वाली उत्तरा पंत को मंगलवार को टीवी के ‘बिग बॉश’ शो से भी फोन आने की खबर है।
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लोक सभा चुनाव से भी बड़ी रही संजीव की जीत
-संजीव जीते ७२४७ वोटों से, जबकि पिछली बार सरिता आर्य जीती थीं सर्वाधिक ६३०८ वोटों से
-१५२ में से ११२ बूथों पर आगे रहे संजीव, जबकि २०१४ के लोस चुनाव में भाजपा १०५ और २०१२ के विस चुनाव में केवल ३० बूथों पर रही थी आगे
नवीन जोशी, नैनीताल। प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में अलग राज्य बनने के बाद ही नहीं, उत्तर प्रदेश में रहते भी आजादी के बाद से किसी भी दल को ‘मोदी लहर” की आंधी में मिले सबसे बड़े बहुमत का असर नैनीताल सुरक्षित सीट पर भी साफ दिखाई दिया। भाजपा प्रत्याशी संजीव आर्य ने इस चुनाव में ३००३६ वोट प्राप्त किये हैं, जो कि नैनीताल सीट पर अब तक के राजनीतिक इतिहास में किसी भी प्रत्याशी को मिले वोटों से अधिक हैं, साथ ही उन्होंने जो ७,२४७ मतों के अंतर से जीत हासिल की है, वह भी एक रिकार्ड है। इससे पूर्व पिछले चुनाव में कांग्रेस की निर्वाचित विधायक सरिता आर्य को तब तक के रिकार्ड २५५६३ वोट मिले थे, और उनकी जीत का अंतर ६३०८ वोटों का था।
यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि संजीव इस चुनाव में जिले के १५२ में से ११२ बूथों पर आगे रहे। जबकि इससे पूर्व २०१४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा रिकार्ड ५५.३ फीसद वोट लाने के साथ नैनीताल विस के क्षेत्र में १०५ बूथों एवं २०१२ के विस चुनावों में १४५ में से केवल ३० बूथों पर ही आगे रही थी। गौरतलब है कि इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सरिता आर्य को २२७८९ मत मिले हैं और वे पिछले चुनाव में पहला चुनाव लड़ने और इस बीच अपना राजनीतिक कद बढ़ाने, महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद अपने पिछले आंकड़े-२५५६३ के मुकाबले २७७४ वोटों के अंतर से पीछे रही हैं, जबकि पिछले चुनाव में १९२५५ मत प्राप्त करने वाले तब के भाजपा प्रत्याशी हेम चंद्र आर्य इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए तीसरे स्थान पर रहते हुए केवल ५५०५ वोट लाकर अपने ही आंकड़े से १३७५० वोटों से पीछे रह गये हैं, और अपनी जमानत भी नहीं बचा पाये हैं। अन्य की बात ही क्या, उन्हें नोटा को मिले ८९९ वोटों से कुछ ही अधिक वोट मिले हैं।
शहर में बराबर, गांवों से जीते संजीव
नैनीताल। भाजपा प्रत्याशी संजीव आर्य की जीत में ग्रामीण बूथों ने बड़ी भूमिका निभाई, जबकि मुख्यालय में वे बराबर रहने में सफल रहे। मुख्यालय के ३६ में से ठीक आधे यानी १८ बूथों पर संजीव और १८ पर ही सरिता आर्य आगे रहीं। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के १२८ बूथों में से ९६ बूथों में संजीव ने बढ़त दर्ज की। इस चुनाव में कांग्रेस केवल राइंका बेतालघाट, जितुवापीपल, च्यूनी, तल्ला बर्धो, रतौड़ा, हली, भवालीगांव, पार्टी जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल की खैरना व गरमपानी, भवाली सेनीटोरियम, भवाली के सभी पांच, तिरछाखेत, गेठिया के कक्ष २, भूमियाधार, छीड़ा गांजा, ज्योलीकोट कक्ष १ व सौड़ तथा नैनीताल मुख्यालय के सीआरएसटी के कक्ष १, ३ व ४, जिला पंचायत, राप्रावि मल्लीताल के कक्ष १, २, ३ व ४, आर्य समाज, एशडेल कक्ष १ व २, अयारपाटा कक्ष २, स्टेडियम, नारायणनगर, किंडरगार्डन कक्ष २, लोनिवि कक्ष २, प्रावि तल्लीताल कक्ष १ व जीआईसी कक्ष १ के यानी कुल ३९ बूथों में ही आगे रही है। इन में से भी बेतालघाट व जितुवापीपल में जीत का अंतर केवल एक-एक वोट का ही रहा, जबकि पटवाडांगर कक्ष दो में भाजपा-कांग्रेस दोनों को बराबर २६-२६ वोट ही मिले। वहीं तीसरे स्थान पर रहे हेम आर्य केवल एक बूथ ज्योलीकोट के कक्ष संख्या एक में ही आगे रहे।
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राजनीतिक दलों पर मेरे विचार:
किसी भी संगठन के राजनीतिक दल होने के लिये एक प्रमुख शर्त है, उसका चुनाव लड़ना। यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव नहीं लड़ता है तो वह राजनीतिक दल ही नहीं है, वरन केवल एक संगठन है। दूसरी बात, लोकतंत्र में किसी राजनीतिक दल की असली परीक्षा उसकी चुनाव में जीत या हार से ही तय होती है। क्योंकि इसी से तय होता है कि उस दल की विचारधारा का कितनी जनता समर्थन या विरोध करती है। यदि कोई राजनीतिक दल बहुत अच्छी विचारधारा व सिद्धांतों वाला है, किंतु वह चुनाव नहीं जीत पाता है, तो उसका कोई मूल्य नहीं। एक और बात, हर राजनीतिक दल की कोई एक विचार धारा या सिद्धांत होते हैं। लेकिन मेरे विचार से उस दल के विचार या सिद्धांत उसके सत्ता में आने पर किये गये कार्यों से देखे और आंके जाते हैं, केवल चुनाव के दौरान वादों, वादों और दावों से नहीं। चुनाव के दौरान कई राजनीतिक नेता और जनता के लोग भी अपना दल या निष्ठा बदलते हैं। मेरे विचार से इसमें कुछ बुरा नहीं है। क्योंकि यही समय होता है जब लोकतंत्र में नेता हों अथवा जनता, किसी दल के पिछले कार्यकाल का मूल्यांकन कर सकते हैं, और दलीय निष्ठा बदल सकते हैं। बेशक, इसमें लोगों अथवा राजनीतिक नेताओं का स्वार्थ, राजनीतिक नफा-नुकसान छुपा हुआ हो।
इसलिये मेरा मानना है कि चुनाव के दौरान जनता को राजनीतिक दलों के द्वारा अपने अथवा प्रतिद्वंद्वी दलों के लिये फैलाये जाने वाले भ्रम से भ्रमित नहीं होना चाहिये, वरन उस दल के पिछले कार्यकाल के आधार पर ही उसका वास्तविक आंकलन करना चाहिये। कौन उस दल में आया, अथवा गया, इससे भ्रमित नहीं होना चाहिये….। प्रत्याशी से अधिक उसका राजनीतिक दल महत्वपूर्ण है। क्योंकि एक अच्छा प्रत्याशी यदि एक बुरे दल में चला जाये या एक बुरा प्रत्याशी एक अच्छे दल में चला जाये तो इससे उस दल में बदलाव नहीं आता, बल्कि उस प्रत्याशी को उस दल के अनुरूप बदलना होता है। और यदि वह वहाँ उस दल की विचारधारा में नहीं ढल पाएगा, तो जल्दी ही उसे उस दल से वापस बाहर निकलना ही पड़ेगा।
कैसे लगे आपको मेरे विचार, मंथन हेतु गहन-गंभीर विचारों का स्वागत है।
उत्तराखंड विधान सभा चुनाव के कुछ अजीबोगरीब तथ्य :
- उत्तराखंड बनने के बाद तीनों चुनाव में हमेशा 3-3 ही निर्दलीय चुनाव जीते।
- भाजपा-कांग्रेस दोनों पार्टियों के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और किशोर उपाध्याय जब भी चुनाव जीते, उनकी पार्टियों की सरकार नहीं बनी।
- भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट की सीट रानीखेत और मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत की सीट हरिद्वार ग्रामीण से जुड़ा है दुर्योग कि यहाँ के विधायक जीतने के बाद हमेशा विपक्ष में बैठने को मजबूर हुए।
- गंगोत्री सीट से जुड़ा है संयोग कि जो पार्टी यहाँ से जीती, राज्य में उसी की सरकार बनती है।
- केंद्र के साथ विधानसभा चुनाव में कभी कदमताल नहीं करता है उत्तराखंड। केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की सरकार उत्तराखंड में नहीं बनती है।
- हर बार उत्तराखंड में बदलती है सरकार, हर बार अलग दल बनाता है सरकार, बनता है नया व्यक्ति मुख्यमंत्री।
उत्तराखंड: जनता को पहाड़ चढ़ाने वाले नेता ही ‘रणछोड़’ बन कर गये ‘पलायन’
-मौजूदा विस चुनाव में ‘रणछोड़’ नेताओं में सीएम हरीश रावत, किशोर उपाध्याय और मुख्यमंत्री के सर्वाधिक निकटस्थ व राजनीतिक सलाहकार रणजीत रावत प्रमुख रूप से शामिल -कोश्यारी, बहुगुणा, निशंक, हरक, अमृता भी कर चुके हैं अपनी पर्वतीय सीटों से मैदानों की ओर पलायन -एक दौर में यूपी के सीएम चंद्रभान गुप्ता ने पहाड़ की रानीखेत विधानसभा से लड़ा था चुनाव -अब जनता पर कि ‘रणछोड़” नेताओं को सबक सिखाती है कि स्वयं भी पहाड़ से पलायन कर पहाड़ की ‘नराई’ ही लगाती रहती है
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नैनीताल उच्च न्यायालय में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में 12 नवंबर 2014 को अधिवक्ताओं के बीच पलायन पर गहरी चिंता प्रकट करते हुए कहा था, ‘तो क्या पहाड़ पर बुल्डोजर चला दूं। प्रदेश के अधिकारी-कर्मचारी पहाड़ पर तैनाती के आदेशों पर ऐसी प्रतिक्रिया करते हैं, मानो किसी ने उनके मुंह में नींबू डाल दिया हो…” उनका
तात्पर्य पहाड़ों पर बुल्डोजर चलाकर उन्हें मैदान कर देने से था, ताकि पहाड़-मैदान में असुविधाओं का भेद मिट जाये। लेकिन इस वक्तव्य के करीब सवा दो वर्ष बाद ही उनकी अगुवाई में ही जब उनकी पार्टी के प्रत्याशियों की सूची जारी हुई तो स्वयं रावत ही अपनी धारचूला सीट छोड़कर दो-दो मैदानी सीटों-किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण सीटों पर पलायन कर गये हैं। यही नहीं उनकी पार्टी के प्रमुख किशोर उपाध्याय भी अपनी, दो बार 2002 व 2007 में विजय दिलाने वाली पहाड़ की परंपरागत टिहरी सीट छोड़कर सहसपुर उतरते हुए पहाड़ों के ‘रणछोड़’ साबित हुये हैं। साथ ही मुख्यमंत्री के सर्वाधिक निकटस्थ व राजनीतिक सलाहकार रणजीत रावत भी अपनी परंपरागत साल्ट सीट छोड़कर रामनगर उतर आये हैं। जबकि एक दौर में पूर्ववर्ती राज्य यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता (1967 में) पहाड़ की रानीखेत सीट से चुनाव लड़े और जीते थे, और अकबर अहमद डम्पी जैसी मैदानी नेता भी राज्य बनने से पूर्व पहाड़ से चुनाव लड़ने से गुरेज नहीं करते थे। जबकि अपने गोविन्द बल्लभ पन्त बरेली, हेमवती नन्दन बहुगुणा बारा और नारायण दत्त तिवारी काशीपुर की मैदानी सीटों से चुनाव लड़ते रहे।
गौरतलब है कि उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में जनाक्रोश भड़कने और लोगों के आंदोलित होने में पलायन की गंभीर समस्या सर्वप्रमुख थी। लेकिन पलायन का मुद्दा राज्य बनने के बाद पहली बार 2001 में हुई जनगणना में ही पहाड़ की जनसंख्या के बड़े पैमाने पर मैदानों की ओर पलायन करने से हाशिये पर आना शुरू गया। यहां तक कि राज्य में 2002 के बाद पांच वर्ष के भीतर ही 2007 में दूसरी बार विस सीटों का परिसीमन न केवल बिना किसी खास विरोध के हो गया, वरन नेता मौका देख कर स्वयं ही नीचे मैदानों की ओर सीटें तलाशने लगे। 2007 के नये परिसीमन के तहत पहाड़ों का पिछड़ेपन, भौगोलिक व सामाजिक स्थिति की वजह से मिली छूटें छीन ली गयीं, और पहाड़ की छह विस सीटें घटाकर मैदान की बढ़ा दी गयीं। पहली बार नये परिसीमन पर हुए 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस (अब भाजपा) नेता डा. हरक सिंह रावत व अमृता रावत सहित कई नेता पहाड़ छोड़कर मैदानी सीटों पर ‘भाग’ आये।
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- क्या अपना बोया काटने से बच पाएंगे हरीश रावत ?
- कौन और क्या हैं हरीश रावत ?
इस सूची में यशपाल आर्य भी शामिल हो मुक्तेश्वर छोड़ बाजपुर आ गये, अलबत्ता इस बार पुत्र संजीव आर्य को नैनीताल भेजकर उन्होंने एक तरह से पहाड़ के प्रति कुछ हद तक सम्मान का परिचय दिया है। अमृता के पति सतपाल महाराज भी कुछ इसी तरह पहाड चढ़ गये हैं। इस बीच भाजपा नेता प्रकाश पंत भी पिथौरागढ़ के साथ मैदान पर उतरे तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा से भिड़ने के नाम पर सितारगंज उतर आये थे, और आगे लालकुआ में भी करीब दो वर्ष ‘राजनीतिक जमीन’ तलाशने में नाकामी के बाद वापस पिथौरागढ़ लौटने को मजबूर हुए हैं, जबकि बहुगुणा ने बेटे सौरभ के साथ सितारगंज में ही जड़े गहरी करने की ठानी है। बहरहाल, अब जनता को तय करना है कि वे अपने पहाड़ के इन ‘रणछोड़’ नेताओं का क्या भविश्य तय करती है। याकि स्वयं भी पहाड़ से पलायन कर पहाड़ की ‘नराई’ ही लगाती रहती है।
बड़े नेता भी पीछे नहीं रहे पहाड़ की उपेक्षा करने में
नैनीताल। पहाड़ की उपेक्षा करने में पहाड़ के बड़े नेता भी पीछे नहीं रहे। यहां तक कहा जाता है कि पहाड़ के कई बड़े नेता अलग पर्वतीय राज्य का इसलिये विरोध करते थे कि इससे कहीं उनकी पहचान भी छोटे राज्य की तरह सिमट न जाये। वहीं लोक सभा चुनावों में भी कांग्रेस के बड़े नेता हरीश रावत से लेकर दूसरे पूर्व सीएम डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ अपनी परंपरागत सीट छोड़कर हरिद्वार तो भाजपा के पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी व पूर्व केंद्रीय मंत्री बची सिंह रावत को नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीट पर उतरने से कोई गुरेज नहीं रहा। वहीं एक अन्य पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी पहाड़ के होते हुए भी कमोबेश हमेशा ही मैदानी सीटों से चुनाव लड़े। कुछ इसी तरह पर्वत पुत्र कहे जाने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा को भी पहाड़ की बजाय मैदानी सीटें ही अधिक रास आर्इं।
सियासत की दौड़: चुनाव के दौरांन उड़ते हुए भी सितारे नहीं चढ़ पाये ‘पहाड़’
दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में ‘‘चुनावी पर्यटन’ के लिये भी नहीं पहुंच पाये राजनेता, मोदी, शाह, राजनाथ, गडकरी, हेमामालिनी और राहुल ने ही कीं एक-दो सभायें
नवीन जोशी/नैनीताल।अलग राज्य बनने के बाद भी लगातार बढ़ते पलायन के कारण ‘उड़ता उत्तराखंड’ तक कहे जा रहे राज्य के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में स्टार प्रचारक ‘चुनावी पर्यटन’ के लिये हेलीकॉप्टरों से भी नहीं पहुंच पाये। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के एक-दो कार्यक्रमों को छोड़ दें तो प्रदेश के चुनाव स्टार प्रचारकों कांग्रेस से मुख्यमंत्री हरीश रावत और भाजपा से कोश्यारी आदि को ही यह जिम्मेदारी संभालनी पड़ी, लेकिन बीसी खंडूड़ी, सतपाल महाराज, डा. रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, डा. हरक सिंह रावत, अजय भट्ट, डा. इंदिरा हृदयेश व किशोर उपाध्याय आदि भी कमोबेश अपने ‘घरों’ में ही कैद होकर रह गये। पहाड़ों में केवल मोदी की 12 फरवरी को पिथौरागढ़ व इससे पूर्व श्रीनगर तथा इससे पूर्व राहुल गांधी की अल्मोड़ा के सोमेश्वर, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बागेश्वर व केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की दन्या-अल्मोड़ा में ही जनसभा हो पायीं। वह भी नैनीताल के रामनगर से ऊपर नहीं चढ़ पाये। वहीं अन्य स्टार प्रचारकों में भाजपा की हेमामालिनी केवल चौखुटिया व सल्ट ही पहुंचीं पर फिल्म शोले का ‘प्लॉट’ रामगढ़ अपनी ‘बसंती’ के बड़े हेलीकॉप्टर के लिये छोटा पड़ गया, और वह यहां नहीं उतर पायीं। इस तरह पूरे नैनीताल जनपद के पर्वतीय क्षेत्रों और यहां तक कि नैनीताल मुख्यालय में किसी भी चुनावी सितारे के पूरे चुनावी प्रचार अभियान के बीच नहीं पहुंचने का संभवतया पहली बार नया ‘दुर्योग’ भी जुड़ गया। यहां केवल कोश्यारी, यशपाल और हरीश रावत की ही एक-एक जनसभाएं हुई और आखिरी दिन भी भाजपा की रैली के अलावा चुनाव प्रचार अभियान का कोई बड़ा कार्यक्रम तय नहीं है। भीमताल में तो इस बार हरीश रावत को छोड़कर कोश्यारी सहित एक भी सितारा नहीं पहुंचा। भाजपा के स्वामी आदित्यनाथ जोशीमठ, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के गंगोत्री व चंपावत तथा स्मृति ईरानी के कपकोट, रानीखेत व अल्मोड़ा के कार्यक्रम बने। वहीं भाजपा व कांग्रेस के अन्य केंद्रीय नेताओं के उत्तराखंड में चुनावी पर्यटन दौरे केवल मैदानी क्षेत्रों और देहरादून में पत्रकार वार्ताओं तक ही सीमित रहे।
पहाड़ के छह फीसद गांव खाली, 32 लाख लोग कर चुके पलायन, तीन हजार से अधिक गांव 2,57,875 घरों में ताले लटकने से वीरान
नैनीताल। उत्तराखंड प्रदेश में ‘विकास’ के लिये 409 अरब रुपये कर्ज लेने के बाद भी राज्य की अवधारणा के अनुरूप पलायन नहीं रुका है। 2011 की ताजा जनगणना के अनुसार प्रदेश के 17,793 गांवों में 1,053 यानी करीब छह फीसद गांव खाली हो चुके हैं, बल्कि इन्हें ‘भुतहा गांव’ (घोस्ट विलेज) कहा जा रहा है। वहीं कुल मिलाकर करीब एक करोड़ की आबादी वाले इस राज्य की पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाली 60 लाख की आबादी में से 32 लाख लोगों का पलायन हो चुका है। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय एकीकृत विकास केंद्र के एक अध्ययन के अनुसार तो प्रदेश के तीन हजार से अधिक गांव 2,57,875 घरों में ताले लटकने से वीरान हो गये हैं। इनमें से 42 फीसद ने रोजगार, 30 फीसद ने मूल सुविधाओं और 26 फीसद ने शिक्षा के अवसरों के अभाव अपने गांव छोड़े हैं। प्रदेश के अधिकांश बड़े राजनेताओं (कोश्यारी, बहुगुणा, निशंक, यशपाल आर्य) ने भी अपने लिये मैदानी क्षेत्रों की सीटें तलाश ली हैं। यही नहीं पहाड़ के भूमिया, ऐड़ी, गोलज्यू, छुरमल, ऐड़ी, अजिटियां, नारायण व कोटगाड़ी सहित पहाड़ों के कई कुल व ईष्ट देवताओं के मंदिरों को मैदानों पर स्थापित कर एक तरह से उनका भी पलायन कर दिया गया है।
राजनीतिक मौसम देखकर दल बदलने वाले ‘मौसम विज्ञानी दल बदलुओं’ का लंबा इतिहास रहा है उत्तराखंड में
-बदले दलों में स्वीकार्य भी रहे हैं दलबदलू
नवीन जोशी। नैनीताल। उत्तराखंड में दल-बदल आज की तिथि जनता के बीच सबसे बड़ा ‘हॉट इश्यू’ है। प्रदेश में राजनीतिक मौसम देखकर दल बदलने वाले ‘मौसम विज्ञानी दल बदलुओं’ का लंबा इतिहास रहा है। बीते वर्ष मार्च माह के बाद से प्रदेश में शुरू हुए बल-बदल का सिलसिला एक दिन पूर्व कांग्रेस के दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे और मौजूदा काबीना मंत्री यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव आर्य के भाजपा का दामन थामने, तथा तुरंत ही राज्य के राजनीतिक इतिहास में संभवतया पहली बार पिता-पुत्र दोनों को तथा भाजपा द्वारा जारी हुई 64 प्रत्याशियों की घोषणा में दूसरे दल से आये 14 लोगों को टिकट मिलने के साथ राज्य के हर विचारवान व्यक्ति की जुबान पर है। सोशल मीडिया पर भी यही विषय छाया हुआ है। ऐसे में उत्तराखंड में दल-बदल का इतिहास खंगालें तो इसकी जड़ें काफी गहरी नजर आती हैं। राज्य के छोटे नेता ही नहीं, बड़े-बड़े दिग्गज भी मौका मिलने पर दल-बदल करते रहे हैं। इनमें पर्वत पुत्र कहे जाने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा से लेकर नारायण दत्त तिवारी तक शामिल रहे हैं। मूलत: कांग्रेस की राजनीति करने वाले यूपी के मुख्यमंत्री व केंद्र में मंत्री रहे बहुगुणा 1976-77 में कांग्रेस छोड़कर ‘कांग्रेस फार डेमोक्रेसी’ यानी लोकतान्त्रिक कांग्रेस से लेकर निर्दलीय चुनाव लड़ने से भी नहीं चूके तो लाल टोपी वाली प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से राजनीतिक पारी शुरू करने वाले तिवारी ने पहले कांग्रेस में लंबी पारी खेली तो शीर्ष नेतृत्व से उपेक्षा के बीच अपनी तिवारी कांग्रेस बनाने से भी गुरेज नहीं किया और वापस कांग्रेस से यूपी व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहने के बाद इधर एक बार फिर उनके पुत्र रोहित शेखर के लिये भाजपा में जाने की जोरों से चर्चाएं हैं। इनके अलावा भी दल-बदलने वाले नेताओं में यूपी में वन मंत्री रहे नैनीताल के भाजपा नेता श्रीचंद का नाम भी शुमार है, जो कांग्रेस, बसपा, सपा होते हुए भाजपा से पिछली बार चुनाव लड़े। तिलक राज बेहड़ भाजपा से कांग्रेस में, प्रदीप टम्टा व पूर्व विधायक स्वर्गीय प्रताप बिष्ट उक्रांद से कांग्रेस में शामिल हुए थे। वहीं मौजूदा विधानसभा में शक्तिफार्म से भाजपा विधायक किरन मंडल ने तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा के लिये विधायकी व पार्टी से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थामा था, और केएमवीएन के अध्यक्ष बनाये गये। इस प्रकार इन नेताओं को एक तरह से बदले हुए दलों में भी सफल कहा जा सकता है।
भाजपा से इन दल-बदलुओं को मिला है टिकट
नैनीताल। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा से कोटद्वार से टिकट प्राप्त करने वाले डा. हरक सिंह रावत भाजपा से शुरुआत करने के बाद बसपा व कांग्रेस होते हुए भाजपा में लौटे हैं। भगवानपुर से कांग्रेस से भाजपा में आये सुबोध राकेश को टिकट मिला है। इसी तरह सोमेश्वर से चुनाव लड़ रही रेखा आर्य भी भाजपा से कांग्रेस होते हुए वापस भाजपा में लौटी हैं। इनके अलावा शैलारानी रावत, सुबोध उनियाल, सतपाल महाराज, उमेश शर्मा काउ, प्रदीप बत्रा, डा. शैलेंद्र मोहन सिंघल तथा यशपाल आर्य व संजीव आर्य आदि ने कांग्रेस से आकर भाजपा से टिकट हासिल किया है। वहीं सितारगंज से सौरभ गुणा को टिकट कांग्रेस से भाजपा में आये पिता विजय बहुगुणा की वजह से मिला है तो देवप्रयाग से विनोद कंडारी को टिकट भाजपा से कांग्रेस होते हुए वापस लौटे मातबर सिंह कंडारी की वजह से मिला है। इनके अतिरिक्त भी रुद्रपुर से प्रत्याशी राजकुमार ठुकराल पूर्व में भाजपा से एक बार कांग्रेस में जाकर लौटे हैं, जबकि किच्छा से प्रत्याशी राजेश शुक्ला मूलत: समाजवादी पार्टी से तथा काशीपुर से हरभजन सिंह चीमा अकाली दल से भाजपा में आये हुए नेता हैं।
हरीश रावत ने दिया “उत्तराखंडियत” का नारा
भाजपा पर उनके कायरे को ही अपने विजन डॉक्यूमेंट में शामिल करने का आरोप
कहा-वे विजन के साथ ही कर रहे हैं विकास कार्य
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ‘उत्तराखंडियत’ का नया नारा दिया और कहा कि मुकाबला उनकी ‘उत्तराखंडियत’ और ‘‘दिल्ली वाले बाबा’ के खोखले जुमलों के बीच है। कई बार कहा-वे 58 इंच की छाती में 108 इंच का हृदय रखने वालों से बहुत छोटे हैं और उत्तराखंड के मंडुवा, रामबांश के रेशों व झंगोरा, सिसोंण जैसे धरती के ‘सत्वों’ को अंतरराष्ट्रीय ब्रांड और एक्सपोर्ट योग्य उत्पाद बनाने जैसे कायरे के साथ 2014 के बकौल उनके ‘लस्त-पस्त’ उत्तराखंड को 2022 में समुन्नत व स्वावलंबी उत्तराखंड बनाने जा रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि ढाई वर्ष से किये जा रहे उनके कायरे को ही भाजपा ने अपने ‘‘विजन डॉक्यूमेंट’ में स्थान दिया है। उनकी यह कोशिश पूरे प्रदेश और खासकर नैनीताल सीट पर उत्तराखंड क्रांति दल का प्रत्याशी न होने की वजह से विकल्पविहीन हुए वोटरों को रिझाने के रूप में देखी जा रही है। रावत ने दावा किया कि उनके प्रयास से चार रुपये प्रति किग्राके भाव बिकने वाले मंडुवा देहरादून में 50 रुपये के भाव भी नहीं मिल रहा है। झंगोरा राजभवन और राष्ट्रपति भवन के मीनू में शामिल हो गया है। चौलाई व रामदाना यूरोप व अमेरिका को निर्यात हो रहा है। ऐपण बनाने में 50 हजार लोग कार्य कर रहे हैं। 300 ग्रामीणों को रोजगार के लिए तीन बकरी व एक बकरा दिये, आगे तीन हजार लोगों को यह देने की योजना है। उत्तराखंड की धौली गाय को बद्री गाय में बदला जा रहा है। उत्तराखंड दुग्ध बोनस देने वाला पहला राज्य है। यहां भांग की वाणिज्यिक खेती को बढ़ावा देने के साथ गेठी, तुन, तिमूर व भिमुवा के पेड़ लगाने वालों को भी 300 रुपये प्रति पेड़ बोनस दिया जा रहा है। तेजपत्ता उत्पादन के क्लस्टर बनाये गये हैं। आगे बरसात के 30 फीसद पानी को पहाड़ पर ही रोककर उत्तराखंड को जलशक्ति बनाने की योजना है।हरीश रावत ने अपने संबोधन में कई बार प्रधानमंत्री मोदी का नाम लेने की जगह उन्हें ‘‘दिल्ली वाले बाबा’ कहते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा कर हमारी एचएमटी फैक्टरी ही बंद कर दी। आपदा से पुनर्निर्माण को कैबिनेट कमेटी ऑन उत्तराखंड ने 8000 करोड़ देने को कहा था, लेकिन यूपीए के 1800 करोड़ के अलावा कुछ नहीं मिला। दावा किया कि 2007 से 12 के बीच प्रदेश में भाजपा की सरकार के दौरान 343 सड़कों पर काम शुरू हुआ था, जबकि उनके ढाई वर्ष के कार्यकाल में 1343 सड़कों पर काम शुरू और 2017-18 तक दो हजार पर कार्य करने का रोडमैप तैयार है, और राज्य की सड़कें देश में सबसे अच्छी हैं। उत्तराखंड में प्रति 100 छात्रों में से देश में सर्वाधिक, केरल (26) से भी अधिक 36 छात्र स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं।
नैनीताल :जनसभा को संबोधित करते मुख्यमंत्री हरीश रावत।
भाजपा-कांग्रेस के पास हैं छह-छह अभेद्य किले !
- इस बार कांग्रेस से बड़े नेताओं के भाजपा की ओर हुए ‘‘पलायन’ से समीकरण बदलने के आसार
- दो तिहाई सीटों पर दोनों दलों के बागी, निर्दलीय बसपा व उक्रांद प्रत्याशी दे रहे कांटे की टक्कर
नवीन जोशी/नैनीताल। उत्तराखंड में कमोबेश सभी 70 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के प्रत्याशी ही आमने-सामने के मुकाबले में दिख रहे हैं और दो तिहाई सीटों पर इनके बागी, निर्दलीय अथवा बसपा और उक्रांद के प्रत्याशी त्रिकोण या चतुष्कोण बना रहे हैं। इसके साथ ही यह भी सही है कि करीब दो-तिहाई विस सीटों पर अब तक भाजपा और कांग्रेस के अलावा किसी भी दल के प्रत्याशी चुनाव नहीं जीते सके, और दोनों ही दलों के अपने ऐसे छह-छह अभेद्य किले भी हैं, जहां राज्य बनने के बाद और कई पर राज्य बनने से पूर्व से ही उनका कब्जा रहा है। हालांकि इस बार कांग्रेस से बड़े स्तर पर नेताओं के भाजपा की ओर हुए ‘पलायन’ के बाद इनमें से अधिकांश अभेद्य किलों के समीकरण बदलने की संभावना भी दिख रही है। राज्य बनने के बाद हुए तीनों चुनावों में अल्मोड़ा जिले की जागेश्वर सीट पर विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, धर्मपुर में काबीना मंत्री दिनेश अग्रवाल और चकराता पर काबीना मंत्री प्रीतम सिंह हैट्रिक जमा चुके हैं, और जीत का चौका मारने की फिराक में हैं। इसी तरह टिहरी, देवप्रयाग, पौड़ी भी कांग्रेस के अभेद्य किले हैं। अलबत्ता टिहरी सीट से कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय से ‘छीनकर’ निर्दलीय दिनेश धने को सौंप दी है। वहीं पिथौरागढ़ जिले की धारचूला सीट पर पहले निर्दलीय गगन सिंह रजवार चुनाव जीते थे, और इधर कांग्रेस के हरीश धामी और उपचुनाव में सीएम हरीश रावत चुनाव जीते। यानी ऐसी भी कई सीटें हैं जिन पर भाजपा कभी नहीं जीत पायी है। वहीँ भाजपा के अभेद्य किलों की बात करें तो पूर्व में नैनीताल सीट के अंतर्गत रही कालाढुंगी में कांग्रेस पिछले 26 वर्षो में नहीं जीत पायी है, और भाजपाई लगातार जीतते रहे हैं। वहीँ देहरादून की कैंट सीट पर भाजपा के पूर्व विस अध्यक्ष हरबंस कपूर पिछले तीन चुनाव जीतने के साथ ही वर्ष 1989 से यानी पिछले 28 वर्षो से चुनाव नहीं हारे हैं। इसी तरह हरिद्वार शहर सीट पर पूर्व काबीना मंत्री मदन कौशिक और पिथौरागढ़ की डीडीहाट सीट पर पूर्व भाजपा अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल जीत की हैट्रिक मार चुके हैं और लगातार चौथी जीत के लिये चुनाव मैदान में हैं। ऊधमसिंह नगर की काशीपुर सीट और यमकेश्वर भी भाजपा का अजेय गढ़ रही हैं। काशीपुर से हरभजन सिंह चीमा पहले शिरोमणि अकाली दल से और दो बार भाजपा से चुनाव जीते हैं, और इस बार भी हैट-ट्रिक के लिए मैदान में हैं। जसपुर भी अब तक के तीनों चुनावों में एक ही प्रत्याशी डा. शैलेंद्र मोहन सिंघल ने एक बार निर्दलीय और दो बार कांग्रेस के टिकट पर हैट्रिक जमाई है, और लगातार चौथी जीत के लिये ये दोनों इस बार भाजपा के टिकट पर अपनी परंपरागत सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं हरिद्वार जिले की मंगलौर, लंढौरा और झबरेड़ा ऐसी सीटें हैं, जिन में से दो बसपा के अभेद्य किले रहे हैं और कभी भी भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाये हैं। इनके अलावा प्रदेश में डा. हरक सिंह रावत जैसे नेता भी हैं, जिन्होंने हर बार सीट बदली और इसके बावजूद हर चुनाव जीतने का अनूठा रिकॉर्ड बनाया है।
कौन कहां भारी
- भाजपा के किले : कालाढुंगी, काशीपुर, हरिद्वार शहर, देहरादून कैंट, डीडीहाट और यमकेश्वर।
- कांग्रेस के गढ़ : जागेश्वर, टिहरी, पौड़ी, धर्मपुर, चकराता और धर्मपुर।
- भाजपा-कांग्रेस के ‘दर्द’ : मंगलौर, लंढौरा और झबरेड़ा।
ग्यारह प्रत्याशी ‘चौका’ लगाने के लिए हैं चुनाव मैदान में
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तीन प्रत्यासी गोविंद सिंह कुंजवाल, प्रीतम सिंह व दिनेश अग्रवाल के साथ ही अब भाजपा में शामिल हो गए कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, डॉ. हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य व डॉ. शैलेन्द्र मोहन सिंघल, तथा भाजपा के हरबंस कपूर, मदन कौशिक, बिशन सिंह चुफाल व अरविंद पांडे सहित कुल 8 भाजपा प्रत्यासी जीत की हैट्रिक जमाने के बाद अब चौका लगाने की कोशिश में चुनाव मैदान में हैं।
भाजपा के स्टार प्रचारक हो सकते हैं एनडी !
- लखनऊ स्थित आवास पर की प्रधानमंत्री मोदी के कार्यों और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की तारीफ, अभी नहीं ली भाजपा की सदस्यता
- बीते माह दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के दिन ही बन गयी थी सहमति, पर पुत्र रोहित के हल्द्वानी से चुनाव लड़ने में मना करने के बाद बन गयी थी संशय की स्थिति
- पूर्व सीएम कोश्यारी, बहुगुणा और भाजपा अध्यक्ष भट्ट ने हल्द्वानी में बात करने के बावजूद राष्ट्रीय अध्यक्ष को नहीं थी तिवारी की मंशा के बारे में जानकारी
नवीन जोशी, नैनीताल। आखिर पिछले करीब एक माह की असमंजसपूर्ण स्थिति के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित नारायण दत्त तिवारी ने ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कायरे का पूरे हृदय से समर्थन’ और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की ‘लगन और समर्पित भाव’ की प्रशंसा कर दी है। इसके साथ ही साफ हो गया है कि आज के चुनावी समर में तिवारी किस ओर यानी भाजपा के साथ हैं। हालांकि अभी भी उन्होंने अथवा उनके पुत्र व पत्नी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण नहीं की है परंतु पं. तिवारी से जुड़े विश्वस्त सूत्रों पर यकीन करें तो उनके आज अपने लखनऊ के माल एवेन्यू स्थित आवास में आयोजित पत्रकार वार्ता में किये गये इस ऐलान की पटकथा बीती 18 जनवरी को दिल्ली में अमित शाह के आवास पर भेंट के दौरान ही लिख ली गयी थी। किंतु तब उनके पुत्र रोहित शेखर के रुख से मामला फंस गया था। लेकिन अब चीजें साफ हो गयी हैं और जल्द ही भाजपा तिवारी को अपने स्टार प्रचारक होने का ऐलान और उनका उपयोग उनके प्रभाव वाले उत्तराखंड और यूपी में कर सकती है। अलबत्ता, सूत्रों पर यकीन करें तो इस मामले में उत्तराखंड भाजपा के तीन नेताओं के बारे में कहा गया है कि उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष को इस बाबत जानकारी नहीं दी। अथवा हो सकता है कि ऐसा किसी रणनीति के तहत किया गया हो।विदित हो कि पंडित तिवारी के अक्टूबर माह में जन्मदिवस कार्यक्रम के बहाने हुए हल्द्वानी प्रवास के दौरान भाजपा के स्थानीय सांसद भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व सीएम विजय बहुगुणा और प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने भी मुलाकातें की थीं। तब बताया जा रहा था कि तिवारी की ओर से पुत्र रोहित शेखर को लालकुआ से टिकट दिलाये जाने की इच्छा जतायी गयी थी लेकिन यह जानकारी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तक नहीं पहुंची थी। इसलिए लालकुंआ सीट से टिकट की घोषणा होते ही तिवारी अपनी पत्नी व पुत्र के साथ दिल्ली में शाह से उनके आवास पर मिले। सूत्रों के अनुसार यह मुलाकात करीब पौने घंटे की हुई, जबकि शाह बड़े कद के नेताओं को भी 10-15 मिनट से अधिक समय नहीं दे पाते हैं। इस मुलाकात में शाह ने तिवारी की इच्छा जानी और लालकुंआ के बाबत उन्हें जानकारी न होने, अब टिकट दे दिये जाने आदि का हवाला देते हुए रोहित को हल्द्वानी सीट से टिकट देने की पेशकश की। किंतु रोहित इसकी हिम्मत नहीं जुटा पाये। इसके बाद रोहित की ओर से भाजपा में सदस्यता न लिये जाने संबंधित बयान भी आये, जिसमें उनकी नाराजगी भी दिखी थी। लेकिन इधर सूत्रों की मानें तो रोहित नफा-नुकसान का आंकलन कर चुके हैं कि उनके पिता एनडी के भाजपा का स्टार प्रचारक होने के बाद उनके लिए भाजपा भविष्य के लिहाज से सुरक्षित राजनीतिक आशियाना साबित हो सकता है।
कांग्रेस से इन दलबदलुओं को मिला टिकट
देहरादून कैंट से सूर्यकांत धस्माना (समाजवादी पार्टी), पुरोला (सुरक्षित) राजकुमार, बद्रीनाथ राजेन्द्र सिंह भंडारी (भाजपा), घनशाली(सुरक्षित) भीमलाल आर्य (भाजपा), देवप्रयाग मंत्री प्रसाद नैथानी (निर्दलीय/पीडीऍफ़), रानीपुर अंबरीश कुमार (समाजवादी पार्टी), पीरान कलियर फुरकान (बसपा) अहमद, रुड़की सुरेश चंद जैन (भाजपा), खानपुर चौधरी यशवीर सिंह, मंगलौर काजी मो. निजामुद्दीन (बसपा), लक्सर हाजी तस्लीम अहमद, यमकेश्वर शैलेन्द्र सिंह रावत (भाजपा), लैंसडाउन ले. जनरल टीपीएस रावत (भाजपा, उत्तराखंड रक्षा मोर्चा), लालकुंआ हरीश चंद्र दुर्गापाल (निर्दलीय/पीडीऍफ़), भीमताल दान सिंह भंडारी (भाजपा)और बाजपुर (सुरक्षित) सुनीता बाजवा (भाजपा), रुद्रपुर तिलकराज बेहड़ (भाजपा), जसपुर आदेश चौहान (भाजपा), सोमेश्वर राजेंद्र बाराकोटी (भाजपा)।
इन दल-बदलुओं को चौपट हुआ भविष्य नैनीताल। कांग्रेस नेता जनरल टीपीएस रावत ने तत्कालीन सीएम खंडूड़ी के लिये पार्टी व विधायकी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थापा था, किंतु भाजपा में बहुत छोटी पारी खेलने के बाद उन्होंने उत्तराखंड रक्षा मोर्चा बनाया, और अब कांग्रेस में हैं। वहीं भाजपा नेता मातबर सिंह कंडारी कुछ दिनों के लिये कांग्रेस में जाकर वापस भी लौट आये तो यथोचित सम्मान व स्थान प्राप्त नहीं कर पाये।
बी कॉम आनर्श व एमबीए हैं भाजपा प्रत्याशी संजीव आर्य
-3.15 करोड़ की संपत्तियों के मालिक हैं संजीव और पत्नी 1.85 करोड़ की मालकिन
नैनीताल। नैनीताल सुरक्षित सीट से भाजपा के प्रत्याशी 38 वर्षीय संजीव आर्य दिल्ली के श्रीराम कॉलेज से बीकॉम आनर्श एवं एमबीए हैं। नामांकन पत्र के माध्यम से चुनाव आयोग को दी गयी जानकारियों के अनुसार उनके पास स्वयं करीब 3.15 करोड़ की संपत्ति है, जबकि परामर्शदात्री के रूप में आय-अर्जन करने वाली धर्मपत्नी 1.85 करोड़ की संपत्तियों की मालकिन हैं। ब्यौरे के अनुसार संजीव के पास 85 हजार व पत्नी के पास 32 हजार रुपये की नगदी, उनके दो बैंक खातों में 23.52 लाख व 22.11 लाख व पत्नी के खाते में 20.97 लाख, संजीव की 2.15 लाख की व पत्नी की एक लाख रुपये की एलआईसी, संजीव के पास 1.4 लाख रुपये मूल्य के करीब पांच तोला सोने के जेवहरात, जबकि पत्नी के पास 4.48 लाख के 16 तोला सोने के जेवहरात हैं, साथ ही संजीव ने करीब 2.5 लाख रुपये के ऋ ण भी दिये हैं। इसके अलावा संजीव के पास 1.75 करोड़ रुपये की भूमि एवं 1.88 करोड़ का आवासीय भवन भी है, जबकि पत्नी के नाम 1.58 करोड़ रुपये का आवासीय भवन है। वहीं संजीव पर बैंकों का 1.495 करोड़ का और पत्नी पर 1.0036 करोड़ के ऋण भी हैं।
पांच वर्ष में आठ गुना बढ़ गयी सरिता की संपत्ति
नैनीताल। स्थानीय विधायक व कांग्रेस प्रत्याशी ५४ वर्षीया सरिता आर्य की संपत्ति बीते पांच वर्षों में करीब आठ गुना बढ़ गयी है। वर्ष २०१२ में इसी सीट से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ते हुए श्रीमती आर्य ने स्वयं ५.५ लाख रुपये की चल एवं करीब निकटवर्ती ग्राम भूमियाधार में करीब दो लाख रुपये की अचल संपत्ति, दोनों पुत्रों मोहित व रोहित की एक-एक लाख की चल व नौ-नौ लाख की अचल संपत्तियों, करीब साढ़े पांच लाख की २००७ मॉडल स्विफ्ट कार, ८० तोला जेवहरात की घोषणा की थी। वहीं इस बार अपने नामांकन के साथ दाखिल किये गये शपथ पत्र में उन्होंने स्वयं की दो कारें स्कॉर्पियों व स्विफ्ट, करीब २२ लाख का ८० तोला सोना सहित ४२.१३ लाख की चल संपत्ति, पुत्र मोहित की ३.०६ लाख व रोहित की ५.०५ लाख की संपत्तियां, रोहित के पास एक स्कॉर्पियो कार, स्वयं तथा पुत्र मोहित के पास भूमियाधार के ग्राम कुरियागांव में करीब १२ लाख रुपये मूल्य की विरासतन १ नाली १० मुट्ठी व दो नाली भूमि, दोनों पुत्रों रोहित व मोहित के संयुक्त नाम पर मुख्यालय के अयारपाटा स्ट्रॉबेरी लॉज में करीब ३३ लाख की संपत्ति के फ्लैट हैं। साथ ही उन्होंने एसबीआई से स्कॉर्पियो कार का करीब एक लाख का ऋ ण शेष होना भी दर्शाया है। अलबत्ता वे ७.२ लाख रुपये की आयकर विवरणी में प्रदर्शित करती हैं, जबकि दोनों पुत्र कोई आय नहीं दिखाते हैं।
६२.५ लाख के ऋण हैं भाजपा के बागी करोड़पति हेम आर्य पर
नैनीताल। २०१२ के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रहे हेम आर्य पर उत्तराखंड ग्रामीण बैंक, यूनियन बैंक और पंजाब नेशनल बैंक के ६२.५ लाख रुपये के ऋण हैं। अलबत्ता उनके पास ८.३१ लाख की चल एवं ग्राम डोब में २१०० वर्ग फीट में व मल्लीताल में १००० वर्ग फीट में मकान तथा डोब ल्वेशाल में २० लाख रुपये की १२ नाली व जिलिंग स्टेट पदमपुरी में २३८ नाली व १२ नाली विरासतन भूमि सहित कुल १३५.४७५ लाख रुपये की २००८ में खरीदी गयी यानी स्व अर्जित एवं पांच लाख रुपये की विरासतन प्राप्त अचल संपत्तियां भी हैं। इसके अलावा उनकी पत्नी के पास १० तोला सोना सहित ४.५४ लाख तथा पुत्र शुभम व सारांश के १.३-१.३ लाख रुपये की संपत्तियां भी हैं। वहीं उन्होंने इस वर्ष अपनी आयकर विवरणी में ४.४५ लाख एवं जिपं सदस्य पत्नी नीमा आर्य की २०१४-१५ में आय २.४३ लाख प्रदर्शित की है। जबकि इससे पूर्व पिछला चुनाव लड़ते समय उन्होंने वर्ष २०१०-११ के लिये स्वयं ५.६८ लाख व पत्नी की २.६१ लाख की आयकर विवरणी दाखिल की थी। साथ ही तब उनकी सकल चल संपत्ति २१.८१ लाख, पत्नी की ५.७७ लाख तथा पुत्रों शुभम व सारांश की १.६१-१.६१ लाख की चल संपत्ति, स्वयं की ८० लाख की अचल संपत्तियां तथा यूनियन बैंक से ११ लाख रुपये के ऋ णों का खुलासा किया था। यानी उनकी संपत्ति की कीमत तो आनुपातिक तौर पर बढ़ी है, किंतु ऋ ण करीब छह गुना बढ़ गये हैं।
यक्ष प्रश्नः नैनीताल में पिछली विधानसभा के आंकड़ों में उलझेगी या लोक सभा के आंकड़ों को छुएगी भाजपा ?
नवीन जोशी, नैनीताल। भाजपा ने 2014 के लोक सभा चुनावों में रिकार्ड 55.30 प्रतिशत मत प्राप्त कर राज्य की पांचों सीटें जीतकर कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था, बावजूद उत्तराखंड राज्य गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली यह पार्टी विधानसभा चुनावों में अपना मत प्रतिशत नहीं बढ़ा पाई है। वहीं 2014 के लोक सभा चुनाव में केवल 34 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाली कांग्रेस राज्य के विधानसभा चुनावों में खासकर सपा और कुछ हद तक बसपा के गिरे जनाधार को लपककर हर विधानसभा चुनाव में और अधिक मजबूत होती चली गयी है। आसन्न विधानसभा चुनाव में देखने वाली बात होगी 2012 की कमोबेश एक तिहाई कांग्रेस को स्वयं में समाहित कर चुकी भाजपा इस तिलिस्म को क्या ‘मोदी लहर’ के बल पर बढ़े मनोबल के साथ 2014 के लोक सभा चुनावों के अपने स्तर के करीब पहुंच कर तोड़ पाती है, या कि विधानसभा चुनावों के पुराने आंकड़ों में ही उलझ कर रह जाती है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि तत्कालीन यूपी एवं केंद्र में भाजपा की सरकार रहते ही उत्तराखंड राज्य का दशकों लंबे संघर्ष के बाद जन्म हुआ। लेकिन यही पार्टी राज्य गठन के बाद पहले विधानसभा चुनावों में न केवल हार गयी, वरन उनका मत प्रतिशत इससे पूर्व के यानी 1996 के विधानसभा चुनावों के 32.52 प्रतिशत के मुकाबले सात प्रतिशत से अधिक गिर कर 25.45 प्रतिशत रह गया। आगे 2007 के चुनावों में उसने 34 प्रतिशत मत लाकर वापसी जरूर की, किंतु 2012 आते ‘खंडूड़ी है जरूरी’ नारे के बीच उसने अपने करीब छह प्रतिशत मतदाताओं के साथ राज्य की सत्ता भी गंवा दी। वहीं 1996 में केवल 8.35 मत लाने वाली कांग्रेस पार्टी 2002 में 26.91 प्रतिशत मत लाकर नारायण दत्त तिवारी की अगुवाई में सत्तासीन हो गयी। उसे मिला यह करीब 18 प्रतिशत से अधिक जनसमर्थन सपा के 21.8 प्रतिशत से 6.24 प्रतिशत पर और बसपा के 19.64 प्रतिशत से 10.93 प्रतिशत पर आ गिरने के फलस्वरूप मिला। आगे 2007 में कांग्रेस ने सत्ता जरूर गंवाई, बावजूद अपने मतदाताओं को करीब तीन प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ 29.6 प्रतिशत कर दिया। वहीं 2012 में वह और चार प्रतिशत मत बढ़ाकर 33.79 प्रतिशत मतों के साथ राज्य की सत्ता में लौट आई।
उत्तराखंड में विभिन्न दलों को मिले मत प्रतिशत में:
वर्ष कांग्रेस भाजपा सपा बसपा
1996 8.35 32.52 21.80 19.64
2002 26.91 25.45 06.24 10.93
2007 29.60 34.00 05.00 11.08
2012 33.79 33.15 01.45 12.19
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 के लिए भाजपा-कांग्रेस के उम्मीदवारों के नाम :
सीट संख्या नाम भाजपा कांग्रेस
- पुरोला (सुरक्षित) -मालचंद – राजकुमार
- यमुनोत्री-केदार सिंह रावत – संजय डोभाल
- गंगोत्री-गोपाल सिंह रावत – विजयपाल सिंह सजवाण
- बद्रीनाथ-महेन्द्र भट्ट – राजेन्द्र सिंह भंडारी
- थराली (सुरक्षित) -मगनलाल शाह- डा. जीत राम
- कर्णप्रयाग-सुरेन्द्र सिंह नेगी – डा. अनसुया प्रसाद मैखुरी
- केदारनाथ-शैलारानी रावत – मनोज रावत
- रुद्रप्रयाग-भरत सिंह चौधरी – लक्ष्मी राणा
- घनसाली(सुरक्षित) -शक्तिलाल – भीमलाल आर्य
- देवप्रयाग-विनोद कण्डारी – मंत्री प्रसाद नैथानी
- नरेन्द्रनगर-सुबोध उनियाल – हिमांशु बिजल्वाण
- प्रतापनगर-विजय पंवार(गुड्डू) – विक्रम सिंह नेगी
- टिहरी-धन सिंह नेगी- नरेन्द्र चन्द्र रमोला
- धनोल्टी-नारायण सिंह राणा – मनमोहन मल्ल
- चकराता-मधु चौहान – प्रीतम सिंह
- विकासनगर- मुन्ना सिंह चौहान – नव प्रभात
- सहसपुर-सहदेव पुण्डीर – किशोर उपाध्याय
- धर्मपुर- विनोद चमोली – दिनेश अग्रवाल
- रायपुर-उमेश शर्मा (काऊ) – प्रभु लाल बहुगुणा
- राजपुर रोड (सुरक्षित -खजानदास – राजकुमार
- देहरादून कैंट-हरबंश कपूर – सूर्यकांत धस्माना
- मसूरी-गणेश जोशी – गोदावरी थापली
- डोईवाला-त्रिवेन्द्र सिंह रावत – हीरा सिंह बिष्ट
- ऋषिकेश-प्रेमचंद अग्रवाल – राजपाल खरोला
- हरिद्वार-मदन कौशिक – ब्रह्मस्वरूप ब्रहमचारी
- बीएचईएल रानीपुर-आदेश चौहान – अंबरीश कुमार
- ज्वालापुर-सुरेश राठौर
- भगवानपुर-सुबोध राकेश- ममता राकेश
- झबरेड़ा (सुरक्षित) -देशराज कर्नवाल – राजपाल सिंह
- पिरानकलियर-जयभगवान सैनी – फुरकान अहमद
- रुड़की-प्रदीप बत्रा – सुरेश चंद जैन
- खानपुर-कुंवर प्रणव चैम्पियन – चौधरी यशवीर सिंह
- मंगलौर-ऋषि बालियान – काजी मो. निजामुद्दीन
- लक्सर-संजय गुप्ता – हाजी तस्लीम अहमद
- हरिद्वार ग्रामीण-स्वामी यतीश्वरानन्द- हरीश रावत
- यमकेश्वर-ऋतु खण्डूड़ी – शैलेन्द्र सिंह रावत
- पौड़ी (सुरक्षित) -मुकेश कोली – नवल किशोर
- श्रीनगर-धनसिंह रावत – गणेश गोदियाल
- चौबट्टा खाल-सतपाल महाराज – राजपाल सिंह बिष्ट
- लैंसडाउन-दलीप रावत – ले. जनरल टीपीएस रावत
- कोटद्वार-डा. हरक सिंह – सुरेन्द्र सिंह नेगी
- धारचूला-दीपेन्द्र पाल – हरीश धामी
- डीडीहाट-बिशनसिंह चुफाल – प्रदीप सिंह पाल
- पिथौरागढ-प्रकाश पंत – मयूख महर
- गंगोलीहाट (सुरक्षित) -मीना गंगोला -नारायण राम आर्य
- कपकोट-बलवन्त सिंह भौर्याल – ललित फरस्वाण
- बागेश्वर (सुरक्षित) -चंदनदास – बाल किशन
- द्वाराहाट-महेश नेगी – मदन सिंह बिष्ट
- सल्ट-सुरेन्द्र सिंह जीना – गंगा पंचोली
- रानीखेत-अजय भट्ट – करन मेहरा
- सोमेश्वर-रेखा आर्य – राजेन्द्र बाराकोटी
- अल्मोड़ा-रघुनाथ सिंह चौहान – मनोज तिवारी
- जागेश्वर-सुभाष पाण्डे – गोविन्द सिंह कुंजवाल
- लोहाघाट-पूरन फर्त्याल – खुशहाल सिंह अधिकारी
- चंपावत-कैलाश गहतोड़ी – हेमेश खर्कवाल
- लालकुआं- नवीन दुमका – हरीश चंद्र दुर्गापाल
- भीमताल- गोविन्द सिंह बिष्ट – दान सिंह भंडारी
- नैनीताल(सुरक्षित) -संजीव आर्य – सरिता आर्य
- हल्द्वानी- जोगेंद्र सिंह रौतेला – डा. इंदिरा ह्दयेश
- कालाढूंगी-बंशीधर भगत – प्रकाश जोशी
- रामनगर- दीवान सिंह बिष्ट – रणजीत रावत
- जसपुर-डा. शैलेन्द्र मोहन सिंघल – आदेश चौहान
- काशीपुर-हरभजन सिंह चीमा – मनोज जोशी
- बाजपुर (सुरक्षित) -यशपाल आर्य- सुनीता बाजवा टम्टा
- गदरपुर-अरविन्द पाण्डे – राजेन्द्र सिंह
- रुद्रपुर-राजकुमार ठुकराल – तिलकराज बेहड़
- किच्छा-राजेश शुक्ला – हरीश रावत
- सितारगंज-सौरभ बहुगुणा – मालती बिश्वास
- नानकमत्ता (एसटी) -प्रेम सिंह राणा – गोपाल सिंह राणा
- खटीमा-पुष्कर सिंह धामी – भुवन कापड़ी
निवार्चन आयोग ने जारी किया मतदान का रिपोर्ट कार्ड
उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हुए मतदान की रिपोर्ट सामने आ गई है। निर्वाचन आयोग द्वारा दिए गए आंकणों के अनुसार 2017 के विधान सभा चुनाव में कुल 48 लाख 70 हजार 889 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।जिसमें 2449844 महिलाएं, 2421019 पुरूष तथा 16 तृतीय लिंगी मतदाता सम्मिलित है। यद्यपि वर्ष 2012 की तुलना में मतदान प्रतिशत 67.22 की तुलना में घट कर 65.64 प्रतिशत पर आया है परन्तु वर्ष 2012 में 42 लाख 19 हजार 925 की तुलना में कुल मतदाताओं की संख्या में 650954 की वृद्धि हुई है। यदि 2007 के आकड़ों से तुलना करें तो 10 वर्ष में कुल 13 लाख 27 हजार 899 अधिक मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया है। वर्ष 2007 एवं 2012 के आंकड़ों में कर्णप्रयाग विधानसभा के आंकड़ें भी सम्मिलित है। वर्ष 2017 में कुल 69.34 प्रतिशत महिलाओं और 62.28 प्रतिशत पुरूष मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। वर्ष 2007 में मतदाता सूची में कुल मतदाता 5985302 (70 विधानसभा क्षेत्र), वर्ष 2012 में 6277956 (70 विधानसभा क्षेत्र) मतदाता तथा वर्ष 2017 में 7420710(69 विधानसभा क्षेत्र) मतदाता दर्ज हैं।
जिलावार कुल मतदान प्रतिशत इस प्रकार है –
- उत्तरकाशी में 68.29 प्रतिशत(63.69 प्रतिशत पुरूष एवं 73.21 प्रतिशत महिलाएं),
- चमोली में 60.51 प्रतिशत(55.41 प्रतिशत पुरूष एवं 65.96 प्रतिशत महिलाएं)
- रूद्रप्रयाग में 61.46 प्रतिशत(52.61 प्रतिशत पुरूष एवं 70.25 प्रतिशत महिलाएं)
- टिहरी गढ़वाल में 55.40 प्रतिशत(46.76 प्रतिशत पुरूष एवं 64.62 प्रतिशत महिलाएं)
- देहरादून में 63.45 प्रतिशत(61.27 प्रतिशत पुरूष एवं 65.93 प्रतिशत महिलाएं)
- हरिद्वार में 75.69 प्रतिशत(75.32 प्रतिशत पुरूष एवं 76.14 प्रतिशत महिलाएं)
- पौड़ी गढ़वाल में 54.95 प्रतिशत(48.52 प्रतिशत पुरूष एवं 61.63 प्रतिशत महिलाएं)
- पिथौरागढ़ में 60.58 प्रतिशत(56.64 प्रतिशत पुरूष एवं 64.52 प्रतिशत महिलाएं)
- बागेश्वर में 61.23 प्रतिशत(52.53 प्रतिशत पुरूष एवं 70.18 प्रतिशत महिलाएं)
- अल्मोड़ा में 52.81 प्रतिशत(45.20 प्रतिशत पुरूष एवं 60.69 प्रतिशत महिलाएं)
- चम्पावत में 61.66 प्रतिशत(53.37 प्रतिशत पुरूष एवं 70.81 प्रतिशत महिलाएं
- नैनीताल में 66.77 प्रतिशत(64.96 प्रतिशत पुरूष एवं 68.80 प्रतिशत महिलाएं)
- ऊधमसिंह नगर में 75.79 प्रतिशत(74.46 प्रतिशत पुरूष एवं 77.30 प्रतिशत महिलाएं)
इस प्रकार ऊधमसिंह नगर 75.79 प्रतिशत के साथ सर्वाधिक मतदान प्रतिशत वाला जनपद तथा अल्मोड़ा 52.81 प्रतिशत के साथ न्यूनतम मतदान प्रतिशत वाला जनपद है। वहीं सर्वाधिक मतदान वाली विधानसभाओं की बात करे तो लक्सर टॉप पर रहा।
लक्सर 81.87 प्रतिशत, हरिद्वार ग्रामीण 81.69 प्रतिशत, पिरान कलियर 81.43 प्रतिशत, सितारगंज 81.21 प्रतिशत, गदरपुर 80.71 प्रतिशत प्रमुख है। न्यूनतम मतदान वाली विधानसभाओं में सल्ट 45.74 प्रतिशत, चैबट्टाखाल 46.88 प्रतिशत, लैन्सडाउन 47.95 प्रतिशत, घनसाली 48.79 प्रतिशत प्रमुख है।
प्रदेश में कुल 10685 मतदान केन्द्रों में 07 मतदान केन्द्रों पर शून्य मतदान, तीन मतदान केन्द्रों में 1 से 10 प्रतिशत, 5 मतदान केन्द्रों में 11 से 20 प्रतिशत, 18 मतदान केन्द्रों में 21 से 30 प्रतिशत, 152 मतदान केन्द्रों में 31 से 40 प्रतिशत, 1146 मतदान केन्द्रों में 41 से 50 प्रतिशत, 2506 मतदान केन्द्रों में 51 से 60 प्रतिशत, 2896 मतदान केन्द्रों में 61 से 70 प्रतिशत, 2336 मतदान केन्द्रों में 71 से 80 प्रतिशत, 1406 मतदान केन्द्रों में 81 से 90 प्रतिशत तथा 170 मतदान केन्द्रों में 90 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है।
उत्तरकाशी के पुरोला में 04, पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में 01, अल्मोड़ा के सोमेश्वर एवं अल्मोड़ा में 01-01 मतदान केन्द्रों पर शून्य मतदान हुआ है। हरिद्वार में पिरान कलियर के 64-हलवेहेरी मतदान केन्द्र में 99.21 प्रतिशत मतदान अधिकतम तथा नैनीताल में भीमताल के 19-कौंता मतदान केन्द्र में 01.35 प्रतिशत न्यूनतम मतदान दर्ज हुआ है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी राधा रतूड़ी के द्वारा 10 जनवरी को जारी उत्तराखंड की विधानसभावार मतदाताओं की अनंतिम सूची के अनुसार आगामी विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कुल 74,95, 672 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमें महिला मतदाताओं की संख्या 35,72,029 व पुरुष मतदाताओं की संख्या 39,23492 है। सूची के अनुसार उत्तरकाशी के पुरोला विधानसभा में सबसे कम 67,031 मतदाता हैं, जबकि देहरादून के धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक 1,82,919 मतदाता हैं। वहीँ सर्वाधिक मतदाता वाले जिले में देहरादून 13,68,225 मतदाताओं के साथ शीर्ष पर है, जबकि 1,78, 778 मतदाताओं के साथ रुद्र प्रयाग सबसे कम मतदाता वाला जिला है।
विस्तृत जानकारी टेबल में :
Name Of District Assembly Constituency TOTAL ELECTORS Total Polling Station No Name Male Female T. G. Total Urban Rural Total 1 2 3 7 8 9 10 11 12 UTTARKASHI 1 PUROLA (SC) 34775 32256 0 67031 6 172 178 2 YAMUNOTRI 35573 33623 0 69196 14 145 159 3 GANGOTRI 41637 38761 0 80398 11 154 165 District Total 111985 104640 0 216625 31 471 502 CHAMOLI 4 BADRINATH 51181 47409 6 98596 35 170 205 5 THARALI (SC) 50621 47738 0 98359 1 177 178 6 KARANPRAYAG 45835 45132 1 90968 20 149 169 District Total 147637 140279 7 287923 56 496 552 RUDRAPRAYAG 7 KEDARNATH 40630 41941 0 82571 7 142 149 8 RUDRAPRAYAG 48400 47807 0 96207 5 157 162 District Total 89030 89748 0 178778 12 299 311 TEHRI GARHWAL 9 GHANSALI (SC) 46344 44367 0 90711 0 152 152 10 DEOPRAYAG 40907 39528 0 80435 3 136 139 11 NARENDRANAGAR 43963 39472 0 83435 10 153 163 12 PRATAPNAGAR 40836 39075 0 79911 0 143 143 13 TEHRI 41454 38506 4 79964 24 126 150 14 DHANOLTI 39808 36534 1 76343 0 167 167 District Total 253312 237482 5 490799 37 877 914 DEHRADUN 15 CHAKRATA (ST) 54198 44929 2 99129 0 216 216 16 VIKASNAGAR 57749 50814 4 108567 27 108 135 17 SAHASPUR 77322 70444 4 147770 10 174 184 18 DHARAMPUR 99547 83371 1 182919 123 71 194 19 RAIPUR 86548 77042 1 163591 109 80 189 20 RAJPUR ROAD SC) 63296 55939 8 119243 150 0 150 21 DEHRADUN CANT 67719 58941 2 126662 137 0 137 22 MUSSOORIE 67658 60528 3 128189 111 53 164 23 DOIWWALA 73162 68026 1 141189 10 163 173 24 RISHIKESH 79232 71761 3 150996 68 112 180 District Total 726431 641795 29 1368255 745 977 1722 HARIDWAR 25 HARIDWAR 79114 64230 9 143353 175 0 175 26 BHEL RANIPUR 78585 68091 12 146688 109 68 177 27 JWALAPUR (SC) 58419 50354 14 108787 0 143 143 28 BHAGWANPUR SC) 62725 53551 2 116278 13 136 149 29 JHABRERA (SC) 59839 50587 2 110428 23 128 151 30 PIRANKALIYAR 59353 51595 5 110953 55 78 133 31 ROORKEE 59430 52786 6 112222 125 8 133 32 KHANPUR 72049 62967 7 135023 12 156 168 33 MANGLOR 56247 47336 19 103602 38 90 128 34 LAKSAR 51225 43952 6 95183 19 104 123 35 HARIDWAR RURAL 64073 55964 8 120045 0 153 153 District Total 701059 601413 90 1302562 569 1064 1633 PAURI GARHWAL 36 YAMKESHWAR 43919 39565 1 83485 4 163 167 37 PAURI (SC) 45659 45916 1 91576 18 136 154 38 SHRINAGAR 52109 50172 2 102283 15 140 155 39 CHAUBATAKHAL 43660 44332 0 87992 0 157 157 40 LANSDOWNE 40434 37920 0 78354 4 129 133 41 KOTDWAR 51036 49470 1 100507 27 86 113 District Total 276817 267375 5 544197 68 811 879 PITHORAGARH 42 DHARCHULA 41522 42217 0 83739 5 147 152 43 DIDIHAT 38634 41255 0 79889 4 128 132 44 PITHORAGARH 51272 51481 1 102754 40 99 139 45 GANGOLIHAT (SC) 50467 47627 0 98094 8 146 154 District Total 181895 182580 1 364476 57 520 577 BAGESHWAR 46 KAPKOT 47264 46354 0 93618 0 172 172 47 BAGESHWWAR 55883 53816 0 109699 6 171 177 District Total 103147 100170 0 203317 6 343 349 ALMORA 48 DWARAHAT 43416 46142 1 89559 0 144 144 49 SALT 48332 46710 0 95042 0 134 134 50 RANIKHET 40176 38305 0 78481 14 119 133 51 SOMESHWAR (SC) 43140 41343 0 84483 0 139 139 52 ALMORA 45149 42526 0 87675 31 109 140 53 JAGESHWAR 46808 42746 0 89554 0 173 173 District Total 267021 257772 1 524794 45 818 863 CHAMPAWAT 54 LOHAGHAT 52733 47645 0 100378 6 172 178 55 CHAMPAWAT 45619 41430 0 87049 38 104 142 District Total 98352 89075 0 187427 44 276 320 NAINITAL 56 LALKUWAN 58240 51913 1 110154 18 115 133 57 BHIMTAL 51464 44213 1 95678 7 144 151 58 NAINITAL (SC) 56925 50238 2 107165 42 110 152 59 HALDWANI 74091 65115 2 139208 163 0 163 60 KALADHUNGI 75304 70516 2 145822 7 176 183 61 RAMNAGAR 56719 51253 2 107974 43 89 132 District Total 372743 333248 10 706001 280 634 914 UDHAMSINGH NAGAR 62 JASPUR 62576 53013 0 115589 48 93 141 63 KASHIPUR 79358 71454 0 150812 98 72 170 64 BAZPUR (SC) 72057 63675 0 135732 35 117 152 65 GADARPUR 63975 56999 2 120976 31 113 144 66 RUDRAPUR 85859 73270 1 159130 127 55 182 67 KICHHA 63904 55407 0 119311 28 112 140 68 SITARGANJ 57145 49939 0 107084 28 97 125 69 NANAKMATA (ST) 55795 52051 0 107846 0 136 136 70 KHATIMA 53394 50644 0 104038 12 116 128 District Total 594063 526452 3 1120518 407 911 1318 TOTAL 3923492 3572029 151 7495672 2357 8497 10854
लगातार जमीन खो रहा है उक्रांद
-2002 में चार, 2007 में तीन व 2012 में एक सीट जीती
-इस बार ५८ सीटों पर मैदान में, नैनीताल व भीमताल में घोषित प्रत्याशियों ने नहीं कराया नामांकन
नवीन जोशी, नैनीताल। कहते हैं इतिहास स्वयं को दोराता है, साथ ही यह भी एक सच्चाई है कि इतिहास से मिले सबकों से कोई सबक नहीं सीखता। राज्य के एकमात्र क्षेत्रीय दल बताये जाने वाले उत्तराखंड क्रांति दल यानी उक्रांद ने इतिहास को इसी रूप में सही साबित करते हुऐ अपनी गलती का इतिहास दोहरा दिया है। ऐसे में ऐसी कल्पना तक की जाने लगी है कि पिछली बार की तरह राज्य में समान विचार धारा वाले दलों को साथ लेकर न चलने वाला उक्रांद इस बार भी पिछली बार की तरह दल के बजाय अपने दम पर जीत मानने वाले कुछ विधायकों के साथ न सिमट जाये, और इस बार दो धड़ों में बंटने के बाद बमुश्किल क्षेत्रीय पार्टी के रूप में बचे अपने अस्तित्व को ही शून्य न कर दे।
यह आशंकाऐं उक्रांद के केवल 58 सीटों पर ही चुनाव लड़ने और, घोषित प्रत्याशियों के भी नामांकन न कराने की स्थितियों के बीच उठ खड़ी हुई हैं। ऐसी स्थितियों में ऐसा भी लगने लगा है कि उक्रांद ने टिकट वितरण से ही चुनाव चिन्ह कुर्सी वापस मिलने और दूसरे गुट के भी समर्थन में आ खड़ा होने से मिलने वाले राजनीतिक लाभ और राज्य की आंदोलनकारी शक्तियों का विश्वास भी खो दिया है। यहां तक कि न तो उक्रांद राज्य की सभी 70 सीटों पर टिकट ही दे पाया, और ना ही समान विचारधारा वाले दलों से समझौता ही कर पाया। वहीं कुमाऊं मंडल के मुख्यालय की सीट पर तो उसके घोषित प्रत्याशी, भारी बहुमत से नगर पालिका अध्यक्ष बने श्याम नारायण नामांकन पत्र खरीदने के बाद नामांकन ही नहीं कर पाये, और भीमताल सीट पर घोषित प्रत्याशी, पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष व विधायक डा. नारायण सिंह जंतवाल ने भी स्वयं ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया, और उनकी जगह किसी अन्य को चुनाव लड़ाना पड़ा। बताया गया है कि जंतवाल को उनके बिना पूछे पिछली सीट कालाढुंगी की बजाय भीमताल से और श्याम नारायण को बिना स्थानीय कार्यकर्ताओं से बात किये टिकट दे दिया गया था।
उक्रांद का राजनीतिक इतिहास
नैनीताल। २५ जुलाई १९७९ को कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. डीडी पंत, उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले इंद्रमणि बड़ौनी व विपिन त्रिपाठी सरीखे नेताओं के द्वारा स्थापना हुई थी। राज्य बनने से पूर्व प्रभावी भूमिका में रहे दल के प्रमुख चेहरे काशी सिंह ऐरी उत्तर प्रदेश विधानसभा में १९८५, १९८९ व १९९३ में यानी लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधायक रहे। लेकिन १९९४ के राज्य आंदोलन के चरम के दौर में १९९६ का लोक सभा चुनाव का बहिस्कार करने का बड़ा दाग भी उक्रांद पर लगा। वहीं राज्य बनने के बाद पहली निर्वाचित विधान सभा में उक्रांद के चार विधायक-ऐरी, जंतवाल, विपिन त्रिपाठी (उनकी मृत्यु के बाद उपचुनाव में पुत्र पुष्पेश त्रिपाठी) और त्रिवेंद्र पवार (बाद में अलग गुट बना लिया), २००७ में तीन विधायक-पुष्पेश, दिवाकर भट्ट और ओमगोपाल (दिवाकर और ओमगोपाल २०१२ के चुनाव में भाजपा से लड़े, इस बार निर्दलीय लड़ रहे हैं) और २०१२ में केवल एक विधायक प्रीतम सिंह पवार (कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे, अब निर्दलीय लड़ रहे) जीते, यानी लगातार उसकी विधायक संख्या एक-एक कर घटती चली गयी। यह भी रहा कि तीन में से दो बार दल ने वैचारिक भिन्नता के बावजूद कमोबेश बिना समर्थन मांगे भी सत्तारूढ़ दल से हाथ मिलाया, और उसके निर्वाचित विधायक अपने नेतृत्व के प्रति कमोबेश बेलगाम हुए, और पार्टी से अलग चलते रहे।
अपने गठन से गलती दर गलती करता रहा है उक्रांद
नैनीताल। उक्रांद में वर्तमान राजनीति के लिहाज से राजनीतिक चातुर्य या तिकड़मों की कमी मानें या कुछ और पर सच्चाई यह है कि वह अपने गठन से ही गलतियों पर गलतियां करता जा रहा है, और इन्हीं गलतियों का ही परिणाम कहा जाऐगा कि वह प्रदेश का एकमात्र क्षेत्रीय दल होने के बावजूद अब निर्दलीयों की भांति पिछली विधानसभा में एक विधायक पर सिमट गया, और वह एकमात्र विधायक भी दूसरी विधानसभा की तरह पार्टी के नियंत्रण से अलग रहे, व २००७ के दो विधायकों की तरह इस बार निर्दलीय चुनाव लड़ने की स्थिति में हैं। इस दल ने १९९६ के चुनावों का बहिस्कार कर अपनी पहली राजनीतिक गलती की थी। राज्य गठन के पूर्व उक्रांद के नेता सपा से सांठ-गांठ करते दिखे और अलग राज्य का विरोध कर रहे कांग्रेस-भाजपा जैसी राज्य विरोधी ताकतों को संघर्ष समिति की कमान सोंपकर हावी होने का मौका दिया। शायद यही कारण रहे कि राज्य बनने के बाद वह लगातार अपनी शक्ति खोता रहा। २००७ में उसने भाजपा सरकार को समर्थन दिया और फिर समर्थन वापस लेकर तथा और २०१२ में कांग्रेस सरकार को कमोबेश बिन मांगे समर्थन देकर अपनी राजनीतिक अनुभवहीनता का ही परिचय दिया। इस कवायद में दल दो टुकड़े भी हो गया। यही स्थिति २००७ में भी रही। ऐसे ही अतिवादी रवैये के कारण वह १९९५ में भी टूटा, और लगातार टूटना ही शायद उसकी नियति बन गया।
नैनीताल जनपद में 60 फीसद युवा मतदाता होंगे जीत की धुरी ! दलों की रहेगी ‘यूथ कैप्चरिंग’ की कोशिश
-प्रदेश विधानसभा के चुनावों में भी देश के लिये वोट देने और राज्य की राजनीति से व्यथित दिखे पहली बार मतदाता बने युवा
नवीन जोशी, नैनीताल। यूं तो पूरा भारत देश ही युवाओं का देश है, और युवा देश की राजनीति को बदलने की भी ताकत रखते हैं। लोक नायक जयप्रकाश के आंदोलन से लेकर अन्ना हजारे में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और इधर दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा सरकार को मिले ऐतिहासिक समर्थन में भी युवाओं की बड़ी भूमिका को निर्विवाद तौर पर स्वीकार किया जाता है। कुछ इसी तर्ज पर नैनीताल जनपद भी युवाओं के मामले में अपवाद नहीं है। जनपद में कुल ७,०५,८१७ मतदाताओं में से ४,०१,३१४ यानी ५६.८५ फीसद मतदाता ३९ वर्ष से कम उम्र के हैं, और यदि इनमें ४९ वर्ष तक के मतदाताओं को भी शामिल कर लें तो ५,३४,२०२ यानी ७५.८० फीसद से अधिक मतदाता ४९ वर्ष से कम उम्र के हैं। वहीं जिले में ११,१२३ मतदाता ऐसे हैं जो इसी वर्ष १८ वर्ष के हुए हैं, यानी अपने जीवन का पहला वोट देंगे। इन युवाओं में मतदान के प्रति कितना उत्साह है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीते एक वर्ष में कुल ११,४८२ मतदाताओं ने अपना नाम मतदाता सूची में जुड़वाया है, जिनमें से करीब ९७ फीसद ये ही यानी पहली बार मतदाता बने युवा ही हैं। इसलिए उनके वोटों की “यूथ कैप्चरिंग” करने पर सभी दलों की कोशिश रहेगी।
नगर के युवाओं में जीवन का पहला वोट देने को लेकर खासा उत्साह दिखा। इस वर्ग के युवाओं में मतदान के प्रति तो पूरी यानी १०० फीसद जागरूकता दिखाई दी। उन्होंने कहा कि वे हर हाल में बिना किसी के बहकावे में आये १०० फीसद अपना वोट देंगे। वहीं वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति भी जागरूक नजर आये। उन्होंने जाति-धर्म से ऊपर उठकर, और कई ने तो अपनी उच्च शिक्षा, रोजगार जैसी समस्याओं को भी दरकिनार कर प्रदेश की विधानसभा के लिये हो रहे चुनाव में देश की बेहतरी के लिये वोट देने का जज्बा भी दिखाया। इसके अलावा कुछ राजनीति में सफाई, भाई-भतीजावाद से राजनीति को दूर रखने के भी हामी दिखे। कुछ ने ई-वोटिंग को भी आज के दौर की जरूरत बताया, ताकि समय की कमी के दौर में वे किसी गलती रहित व्यवस्था के जरिये घर बैठे भी अपना वोट दे पायें। अलबत्ता, ऐसे युवा राज्य में भ्रष्टाचार, जोड़-तोड़ की राजनीति, राजनीति में हल्केपन को लेकर भी चिंतित दिखाई दिये।
नैनीताल जनपद में पहली बार बने मतदाता :
विधानसभा पुरुष महिला कुल
लालकुआ ९४४ ६०० १५४४
भीमताल १३०० ७८९ २०८९
नैनीताल १२४६ ७९५ २०४१
हल्द्वानी ११२२ ८१६ १९३८
कालाढुंगी ११३८ ८०८ २५११
रामनगर ९३५ ६३० १५६५
कुल ६६८५ ४४३८ १११२३
नैनीताल जनपद में विभिन्न आयु वर्ग के मतदाता :
विधानसभा २० से २९ ३० से ३९ ४० से ४९ ५० से ५९ ६० से ६९ ७० से ८० ८० से अधिक कुल
लालकुआ ३१८३५ २९८०५ २०९४० १३५४५ ७९७२ ३४०२ ११११ १०८६१०
भीमताल २७९४८ २४७०० १७३७६ ११६०८ ७४२३ ३५३४ ९९९ ९३५८८
नैनीताल २८७१६ २७९८१ २१२०९ १३८१४ ८२८३ ३९४३ ११७९ १०५१२५
हल्द्वानी ४१८७७ ३८६३८ २५५७४ १६३५७ ९४३९ ४१९८ १२०५ १३७२८८
कालाढुंगी ३८५०४ ३८५९० २७९०३ १९३६५ १२४०१ ५४११ १७०१ १४३८७५
रामनगर ३२८५३ २८७४४ १९८८६ १२६०८ ७९५९ ३२४७ ९११ १०६२०८
कुल २०१७३३ १८८४५८ १३२८८८ ८७२९७ ५३४७७ २३७३५ ७१०६ ६९४६९४
यक्ष प्रश्न : नैनीताल में 2012 दोहरायेगा या 2014, या लिखी जाएगी नयी इबारत
-२०१२ के विधानसभा चुनाव में नैनीताल विस में १४५ में से केवल ३० बूथों पर ही मामूली अंतर से आगे रही भाजपा, जबकि ११५ बूथों पर आगे रही थी कांग्रेस -वहीं २०१४ के लोकसभा चुनावों में १०५ बूथों पर भाजपा और ४० बूथों पर ही आगे रही थी कांग्रेस नवीन जोशी, नैनीताल। आजादी के बाद से विशुद्ध रूप से केवल एक और संयुक्त क्षेत्र होने पर दो बार ही भाजपा के खाते में गई नैनीताल विधानसभा में आसन्न चुनावों में पिछले दो चुनाव एक-दूसरे के बिलकुल उलट रहे थे। २०१२ के विस चुनावों में जहां नैनीताल विस की १४५ में से केवल ३० बूथों को छोड़कर शेष ११५ बूथों पर कांग्रेस आगे रही थी, वहीं २०१४ के लोक सभा चुनावों में यह आंकड़े कमोबेश पूरी तरह उलट गये थे और १०५ बूथों पर भाजपा जबकि केवल ४० बूथों पर कांग्रेस आगे रही थी। अब करीब ढाई वर्ष के बाद एक बार फिर बाजी मतदाताओं के हाथ में है कि वे नैनीताल विधानसभा में २०१२ का इतिहास दोहराते हैं कि २०१४ का, या कि कोई नयी इबारत ही लिखते हैं।
पहले २०१४ के लोक सभा चुनावों की बात करें तो इन चुनावों में मोदी की आंधी में नैनीताल विधानसभा क्षेत्र के १४६ में से करीब २० फीसद यानी ३० सीटों पर ही कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा कहीं दो से लेकर अधिकतम १३२ वोटों की बढ़त ले पाए, जबकि भाजपा प्रत्याशी भगत सिंह कोश्यारी ने ८० फीसद यानी ११६ बूथों से अपनी बड़ी जीत की इबारत लिखी। वहीं नैनीताल विस के इतिहास की बात करें आजादी के बाद से भाजपा के लिए नैनीताल विधानसभा में कालाढुंगी का बड़ा हिस्सा जुड़ा होने के उत्तराखंड बनने से पहले के दौर में बंशीधर भगत चुनाव जीते थे। तब भी वर्तमान नैनीताल विस के क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी कमोबेश पिछड़ते ही रहते थे। उत्तराखंड बनने के बाद भाजपा के खड़क सिंह बोहरा २००७ में कोटाबाग और कालाढुंगी क्षेत्र में बढ़त लेकर बमुश्किल यहां से चुनाव जीत पाए थे। वहीं २०१२ के विधानसभा चुनावों में यहां से चुनाव के कुछ दिन पहले ही प्रत्याशी घोषित हुर्इं, और चुनाव क्षेत्र में ठीक से पहुंच भी न पार्इं सरिता आर्या ने २५५६३ वोट प्राप्त कर पांच वर्ष से दिन-रात चुनाव की तैयारी में जुटे भाजपा के हेम चंद्र आर्या को ६३५८ मतों के बड़े अंतर से हरा दिया था। लेकिन, दो वर्ष के भीतर ही हुए लोक सभा चुनावों में कांग्रेस यहां बुरी तरह से पस्त नजर आई। वहीं २०१४ के लोस चुनावों में नैनीताल विस से भाजपा को ३०१७३ व कांग्रेस को २१५७५ वोट मिले, और कांग्रेस ८५७८ वोटों से पीछे रही।
नैनीताल नगर में केवल दो बार ही कांग्रेस के तिलिस्म को तोड़ पायी है भाजपा
नैनीताल। नैनीताल विस के बाबत लोकसभा चुनावों के इतिहास की बात करें तो एकमात्र २००४ में भाजपा प्रत्याशी विजय बंसल नैनीताल मंडल से आगे रहे थे, पर तब भी उनके आगे रहने में खुर्पाताल के ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान रहा था। जबकि २०१४ के लोस चुनाव में भाजपा को नैनीताल नगर के ३७ बूथों में इतिहास में सर्वाधिक ९१५४ वोट मिले, जबकि कांग्रेस ७०२१ वोटों के साथ २१३३ वोटों से पीछे रह गई है। नगर के नारायणनगर, हरिनगर, लोनिवि कार्यालय कक्ष नंबर और मल्लीताल के कुछ मुस्लिम, दलित व कर्मचारी बहुत क्षेत्रों के केवल नौ बूथों पर ही कांग्रेस अपनी साख बचा पाई। वहीं भाजपा ने नगर के राबाउप्रावि मल्लीताल में ४३९ मत प्राप्त कर विधानसभा में सर्वाधिक १८२ वोटों से बढ़त दर्ज की।
बसपा और उक्रांद के मतदाताओं के रुख पर टिका भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों का भविष्य
-बसपा से कमजोर तो उक्रांद से प्रत्याशी ही न होने से इन दलों से जुड़े वोटर बनेंगे किंगमेकर
-नैनीताल ने हर बार पार्टी बदलकर सबको देखा एक-एक बार, 2002 में उक्रांद, 2007 में भाजपा व 2012 में कांग्रेस प्रत्यासी पर जताया भरोसा
नवीन जोशी/ नैनीताल। नैनीताल सुरक्षित विधानसभा सीट पर पहली बार अनूठी स्थिति नजर आ रही है। चुनाव में भाजपा और कांग्रेस मुख्य मुकाबले में हैं, परंतु उनके राजनीतिक भविष्य का निर्धारण बसपा और उक्रांद के मतदाताओं के रुख पर टिका है। राज्य गठन के बाद से इस सीट पर उक्रांद और बसपा के मतदाता ही निर्णायक स्थिति में रहे हैं। सबसे पहले विस चुनाव में उक्रांद प्रत्याशी यहां से चुनाव जीता और दूसरे चुनाव में मामूली अंतर से दूसरे स्थान पर रहा। वर्तमान में यहां उक्रांद के टिकट पर जीते व्यक्ति ही नगर पालिका के अध्यक्ष हैं। बसपा प्रत्याशी भी यहां वर्ष 2002 व 2012 के चुनावों में तीसरे स्थानों पर रहे, लेकिन इस बार जहां बसपा के प्रत्याशी अपेक्षाकृत कमजोर आंके जा रहे हैं, वहीं उक्रांद प्रत्याशी ने नाम घोषित होने और नामांकन पत्र लाने के बावजूद नामांकन ही नहीं किया। ऐसे में इन दोनों दलों के मतदाताओं के समक्ष भाजपा-कांग्रेस अथवा निर्दलीयों में से किसी को चुनने की विवशता दिखाई दे रही है।
वर्ष 2002 के पहले विस चुनाव में नैनीताल सीट से 17 उम्मीदवारों में से उक्रांद के डा. नारायण सिंह जंतवाल (10,864) जीते थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी जया बिष्ट (8,517) दूसरे, बसपा के डा. भूपाल सिंह भाकुनी (7,499) तीसरे और भाजपा की शांति मेहरा (6,936) चौथे स्थान पर रही थीं। शेष 13 प्रत्यासी केवल 6,807 मत ही ला पाए थे। वहीं 2007 के चुनाव में जंतवाल (11,980) को भाजपा के खड़क सिंह बोहरा (12,342) के हाथों केवल 367 मतों के अंतर से हार झेलनी पड़ी थी। उस चुनाव में कांग्रेस के बागी, एनसीपी यानी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़े डा. हरीश बिष्ट (6,267) वोट लाकर सभी दलों के समीकरण बदल दिये थे। फलस्वरूप कांग्रेस प्रत्याशी जया बिष्ट (11,164) तीसरे, हरीश बिष्ट चौथे और बसपा प्रत्याशी महेश भट्ट (6,079) पांचवें स्थान पर रहे थे। जबकि शेष पांच प्रत्यासी केवल 2,658 मत ही ला पाए थे। वर्ष 2012 में यह सीट नये परिसीमन में अनुसूचित वर्ग के लिये सुरक्षित होने के साथ ही मतदाताओं के लिहाज से बड़ी हुई तो प्रत्याशियों की संख्या कम हो गयी। ऐसे में कांग्रेस की सरिता आर्य ने नामांकन के बाद ही चुनाव की तैयारियां शुरू करने के बावजूद पांच वर्ष से तैयारी कर रहे भाजपा के हेम चंद्र आर्य (19,255) के मुकाबले 25,563 मत हासिल कर छह हजार से भी बड़े अंतर से जीत दर्ज कर ली। वहीं उक्रांद प्रत्याशी विनोद कुमार (763), सपा के देवेन्द्र देवा (503) व निर्दलीय पद्मा देवी (878) के कमजोर होने की परिस्थितियों के बीच बसपा प्रत्याशी पूर्व नगर पालिकाध्यक्ष संजय कुमार ‘‘संजू’ 4,460 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे।
मौजूदा विस चुनाव में कांग्रेस को छोड़कर पूरी तरह से मैदान बदल चुका है। हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये वरिष्ठ नेता यशपाल आर्य के पुत्र संजीव आर्य यहां से भाजपा प्रत्याशी हैं। टिकट न मिलने से नाराज पिछली बार के भाजपा प्रत्याशी हेम चंद्र आर्य बागी होकर निर्दलीय मैदान में हैं। वहीं बसपा से क्षेत्र पंचायत सदस्य सुंदर लाल आर्य और एक निर्दलीय प्रत्याशी केएल आर्य भी मैदान में हैं। इन परिस्थितियों में बसपा और उक्रांद के मतदाताओं के रुख पर दोनों राष्ट्रीय दलों के साथ ही निर्दलीयों की भी नजरें टिकी हैं।
नोटा दबा सकती है ‘प्रगतिशील स्येणियां’!
उक्रांद का विकल्प मौजूद न होने की परिस्थितियों में स्वयं को प्रगतिवादी-वामपंथी कहलाना पसंद करने वाली सैंणियां यानी महिलाएं ऊहापोह की स्थिति में हैं। ऐेसे में इन महिलाओं के उत्तराखंड महिला मंच, उत्तराखंड महिला एकता परिषद, विमर्श, सरल, प्रयास, सैंणियों का संगठन, माटी, मैत्री, सौहार्द्र जनसेवा संस्थान, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र आदि दबाव समूह के रूप में संगठन एक छत के नीचे आकर अपनी बातें आगे कर रही हैं। उन्होंने कहा कि नैनीताल सीट पर उनकी विचारधारा का कोई भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है। इसलिये वे चुनाव में नोटा का बटन भी दबा सकती हैं।
नैनीताल सीट पर मतदाता : पुरुष 56,925 महिलाएं 50,238, कुल : 107165
पिछले 2012 के चुनाव में मिले मत : सरिता आर्य कांग्रेस : 25,563, हेम चंद्र आर्य भाजपा 19,255, संजय कुमार ‘संजू’ बसपा 4,460
मैदान में उतरे प्रत्याशी : भाजपा से संजीव आर्य, कांग्रेस से सरिता आर्य, बसपा से सुंदर लाल आर्य, निर्दलीय हेम चंद्र आर्य व केएल आर्य
मिथक-दुर्योग:हमेशा विपक्ष में बैठता रहा है रानीखेत का विधायक
-कांटे की टक्कर के लिये विख्यात रानीखेत में भाजपा-कांग्रेस दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर
नवीन जोशी/ गिरीश पांडे। रानीखेत सीट की पहचान उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ऐसी सीट की बन गयी है, जहां हमेशा त्रिकोणीय संघर्ष होता है, तथा प्रत्याशियों में कांटे का मुकाबले के साथ विजेता व उपविजेता में जीत का अंतर बहुत कम होता है। ऐसा पिछले दो चुनावों में हुआ है। २००७ के चुनाव में जहां कांग्रेस प्रत्याशी करन माहरा ने भाजपा के अजय भट्ट को २०४ मतों के मामूली अंतर से हराया, वहीं पिछले चुनावों में भट्ट ने करन को केवल ७८ मतों के मामूली अंतर से हराकर हिसाब चुकता कर दिया। वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री का गृहक्षेत्र और कांग्रेस प्रत्याशी के उनके सगे साले होने तथा भाजपा प्रत्याशी के पार्टी अध्यक्ष तथा नेता प्रतिपक्ष होने से भी रानीखेत इस बार प्रदेश की हॉट सीटों में शुमार है तथा भाजपा-कांग्रेस दोनों की ही प्रतिष्ठा इस सीट पर दांव पर लगी हुई है। यूपी के दौर से अपने विधायक को सत्तापक्ष की बेंचों पर बैठाने वाली प्रदेश की गंगोत्री सीट के उलट रानीखेत सीट के साथ एक दुर्योग यह भी जुड़ा है कि यहां का विधायक हमेशा विपक्ष में रहा है।
रानीखेत के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो छावनी परिषद के अंतर्गत आने वाले मुख्यालय और शेष ग्रामीण क्षेत्र में बंटी इस सीट पर राज्य बनने के बाद २००२ के पहले विधानसभा चुनाव में अंतरिम सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे अजय भट्ट (१०,१९९) यूपी के पर्वतीय विकास मंत्री रहे गोविंद माहरा (मुख्यमंत्री हरीश रावत के श्वसुर) के पुत्र कांग्रेस प्रत्याशी पूरन सिंह माहरा (७,८९७) से करीब तीन हजार वोटों से जीते, जबकि राज्य में एनडी तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी। वहीं निर्दलीय नरेंद्र सिंह ३९९० मतों के साथ तीसरे और निर्दलीय रमेश चिलवाल चौथे स्थान पर रहे। ऐसी स्थितियों में कांग्रेस ने २००७ के चुनाव में पूर्व प्रत्याशी के छोटे भाई करन माहरा पर दांव खेला, जो सही बैठा। करन (१३,५०३) जीते तो, अलबत्ता अजय भट्ट (१३,२९८) पर जीत का अंतर केवल २०४ मतों का ही रहा। इस बार राज्य में भाजपा की सरकार बनी। इस चुनाव में राज्य के प्रमुख राज्य आंदोलनकारी पूरन सिंह डंगवाल बसपा के टिकट पर ६७३६ मतों के साथ तीसरे स्थान पर ले आये थे। इस चुनाव में रानीखेत वासियों ने प्रत्यक्ष तौर पर हाथी को पहाड़ पर चढ़ते हुए भी देखा। २०१२ में भी ये तीनों प्रत्याशी ही इस सीट पर त्रिकोणीय संघर्ष की परंपरा जारी रखे रहे। जिले और इस सीट के अंतर्गत आने वाली भिकियासेंण सीट के नये परिसीमन में समाप्त होने के बाद बढ़ी हुई मतदाता संख्या के साथ हुए इस चुनाव में अजय भट्ट को १४,०८९ और करन माहरा को १४,०११ मत मिले, तथा दोनों के बीच जीत का अंतर प्रदेश में सबसे कम, केवल ७८ मतों का रहा। इस बार राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। बसपा प्रत्याशी डंगवाल ने भी ९%2