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March 19, 2024

नैनीताल जनपद के ग्राम कुमाटी स्थित कुमाऊँ मंडल की सबसे लंबी बाखली 50 लाख रुपए से होगी पुर्नजीवित

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नवीन समाचार, नैनीताल, 2 फरवरी 2023। नैनीताल जनपद के रामगढ़ विकासखंड के ग्राम कुमाटी में कुमाऊँ मंडल की सबसे लंबी बाखली यानी घरों की सबसे लंबी श्रृंखला है। प्रदेश भर में हो रहे पलायन की मार इस बाखली और यहां रहने वाले लोगों पर भी पड़ी है। इसी समस्या के दृष्टिगत अब इस बाखली को पर्यटन विभाग की ओर से पुर्नजीवित करने के प्रयास शुरू होने जा रहे हैं। इस हेतु शासन से 50 लाख रुपये निर्गत भी हो गए हैं। यह भी पढ़ें : नैनीताल: डांठ पर कार से टकराई तेज रफ्तार स्पोर्ट्स बाइक, भयावह वीडियो भी आया सामने

इसी कड़ी में प्रदेश के पर्यटन सचिव श्री सचिन कुर्वे ने वीडियो कॉफ्रेंसिंग के माध्यम से नैनीताल के जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल सहित अन्य संबंधितों के साथ कुमाऊँ की कुमाटी गांव स्थित इस सबसे बड़ी बाखली को पुर्नजीवित करने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण बैठक ली। बैठक में श्री कुर्वे ने जिलाधिकारी को निर्देश दिये हैं कि स्थानीय रोजगार को बढ़ावा और गॉव के पलायन को रोकने के लिए हरसम्भव प्रयास करें। यह भी पढ़ें : नैनीताल के गजब के कुत्ते ही क्या पिल्ले भी, गुलदार दुम दबाकर भागा, देखें वीडियो…

उन्होंने कहा कि पर्यटन विभाग से इस स्थान का सौन्दर्यकरण करने के साथ ही क्राफ्ट म्यूजियम, ओपन थियेटर, स्थानीय व्यंजनों और सांस्कृति को बढ़ावा देने के लिए शासन स्तर से 50 लाख रूपये निर्गत कर दिये गये हैं। विडियों कॉफ्रेंसिंग में जिला पर्यटन विकास अधिकारी बृजेन्द्र पाण्डे, पीएस मनराल, प्रकाश कपिल, गोपाल दत्त जोशी, तारा दत्त जोशी, प्रमोद कुमार, डॉ पंकज, कवि कुमार के साथ स्थानीय ग्राम प्रधान, जिला पंचायत सदस्य एवं आरोही संस्था के निदेशक आदि लोग उपस्थित रहे। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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यह भी पढ़ें : बाखलीः पहाड़ की परंपरागत हाउसिंग कालोनी

-एक बाखली में 100 परिवार तक रहते हैं, भीतर-भीतर ही रेल के डिब्बों की तरह एक से दूसरे घर में जाने का प्रबंध भी रहता है। 

मन कही (नवीन समाचार): Kumaun Historyडॉ.  नवीन जोशी, नैनीताल। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और वह समाज में एक साथ मिलकर रना पसंद करता है। आज के एकाकी व एकल परिवार के दौर में भी मनुष्य समाज के साथ एक तरह की सुविधाओं युक्त कालोनियों में रहना पसंद करता है। बीते दौर में भी मानव की यही प्रवृत्ति रही थी। खासकर उत्तराखंड के गांवों में घरों की लंबी श्रृंखला होती थी, जिसे बाखली (बाखई) कहा जाता है। पहाड़ में अनेक गांवों में ऐसी बाखली हैं, जिनमें सैकड़ों परिवार एक साथ रहा करते थे। आज के बदलते दौर में भी कई गांवों में ऐसी बाखली मौजूद हैं, जो सामाजिकता का संदेश देती हैं। इन्हें पहाड़ की परंपरागत हाउसिंग कालोनियां भी कहा जा सकता है।

नैनीताल जनपद के मौना क्षेत्र में शिमायल के पास कुमाटी नाम का एक गांव है, जहां स्थित बाखली में करीब 80 मवासे (परिवार) एक साथ रहते हैं। बाखली पहाड़ के घरों की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें पहाड़ के परंपरागत पत्थर व मिट्टी के गारे से बने तथा चपटे पत्थरों (पाथरों) से छाये गए दर्जनों घर आपस में रेल के डिब्बों की तर बाहर ही नहीं भीतर से भी जुड़े रहते हैं, और इनमें घरों के बाहर आए बिना भी रेल के डिब्बों की तरह भीतर-भीतर ही एक से दूसरे घर में जाया जा सकता है। सामान्यतया घरों में बनने वाले व्यंजनों का आदान-प्रदान, एक-दूसरे के घरों में दुःख-तकलीफ तथा कामकाज में सहयोग और खासकर गांवों में रात्रि में बाघ आदि जंगली जानवरों के आने की स्थिति में घरों के भीतर-भीतर ही आने-जाने की यह व्यवस्था खासी कारगर साबित होती रही है।

इससे गांव के लोगों में आपसी संबंध भी काफी मधुर रहते हैं, क्योंकि लोग एक-दूसरे से अधिक गहराई तक जुड़े रहते हैं। इन घरों में जहां दरवाजे व खिड़कियों (द्वार-म्वाव) पर लकड़ी की नक्काशी पहाड़ की समृद्ध काष्ठ कला के दर्शन कराती है, वहीं निचली मंजिल में पशुओं के लिए गोठ, ऊपरी मंजिल में बाहरी कमरा-चाख (जहां चाख यानी अनाज पीसने के लिए हाथ से चलाई जाने वाली चक्की भी होती है), पीछे की ओर रसोई, बाहर की ओर पंछियों के लिए घोंसले, छत में पाथरों के बीच से धुंवे के बाहर निकलने और रोशनी के भीतर आने के प्रबंध तथा आंगन (पटांगण) में बैठने के लिए चौकोर पत्थरों (पटाल) के बीच धान कूटने की ओखली (ऊखल) आदि के प्रबंध भी होते थे।

लाल मिट्टी व गोबर से लीपे इन घरों में पहाड़ की समृद्ध परंपरागत चित्रकारी-ऐपण भी देखने लायक होती हैं। बदलते दौर में जहां 1970 के दशक में आए वनाधिकारों के बाद गांवों में पत्थर, लकड़ी आदि वन सामग्री न मिलने की वजह से सीमेंट-कंक्रीट से घर बनने लगे, और पुराने घर भी उनमें रहने वाले लोगों के पलायन की वजह से खाली छूटने के कारण खंडहर में तब्दील होने लगे हैं। इसके बावजूद कुमाटी जैसे अनेक गांव हैं, जहां के ग्रामीणों ने आज भी अपनी विरासत को सहेज कर रखा हुआ है। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : रात्रि में हुए ध्वस्तीकरण के बाद अब बदलेगी नैनीताल के तल्लीताल क्षेत्र की सूरत…

नवीन समाचार, नैनीताल, 6 नवंबर 2022। सरोवरनगरी नैनीताल में मल्लीताल के बाद अब नगर के प्रवेश द्वार तल्लीताल क्षेत्र की स्थिति भी बदलने, बल्कि कहें तो बेहद आकर्षक होने जा रही है। इसी कड़ी में बीती रात्रि यहां पुराने बस अड्डे को ध्वस्त करने का कार्य रात्रि में शुरू हो गया। देखें वीडियो:

डीएम धीराज गर्ब्याल ने बताया कि जिला योजना के तहत गौथिक शैली में बने बिशप शॉ स्कूल से लगे होने के कारण यहां गौथिक शैली में ही निर्माण किया जाएगा। इसका प्रस्तावित डिजाइन भी सामने आया है। इसके अलावा पोस्ट ऑफिस के आगे भी सुंदर फसाड निर्माण किया जाना एवं डांठ पर सड़क के बीच में एक फाउंटेन बनाया जाना भी प्रस्तावित है। यह भी पढ़ें : फॉलोअप: पुलिस कर्मी की पत्नी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, हत्यारे के लिए चाय बनाने गई थी महिला, तभी किए गए हथौड़े से प्रहार…!

साथ ही झील की ओर झूलते तारों को भी हटाया जाएगा। इसके अलावा जिला कलक्ट्रेट से तल्लीताल बाजार को आने वाली रैमजे रोड का भी सौंदर्यीकरण किया जाएगा। यहां जगह-जगह बैठने के लिए डैक भी बनाए जाएंगे। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : रात्रि प्रवास के बाद नैनीताल से लौटे सीएम, समझिए इशारे…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 29 अगस्त 2022। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी रविवार की रात्रि नैनीताल में प्रवास करने के बाद देहरादून लौट गए। लौटने से पूर्व सोमवार सुबह उन्होंने नयना देवी मंदिर में पूजा अर्चना की। इस दौरान उन्होंने कहा कि कुमाऊँ के धार्मिक पर्यटक स्थलों को विकसित करने के लिए सरकार मानस खंड कॉरिडोर स्थापित करने जा रही है। प्रथम चरण में कुमाऊँ के सभी जिलों के धार्मिक स्थलों को विकसित करने के लिए सड़क और हवाई कनेक्टिविटी को बेहतर करते हुए अवस्थापना सुविधायें बढ़ाने का मास्टर प्लान तैयार किया जा रहा है। इसके बाद चार धाम की तर्ज पर कुमाऊं के धार्मिक स्थलों तक देश भर से भक्तों और पर्यटकों को लाया जाएगा।

इस दौरान नितिन कार्की के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने मुख्यमंत्री ने नंदा देवी मेले के दौरान परंपरागत तौर पर होने वाली पशुबलि के लिए आवश्यक प्रबंध एवं अनुमति देने का अनुरोध किया। जबकि पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष मोहित रौतेला व वर्तमान छात्र संघ अध्यक्ष विशाल वर्मा के नेतृत्व में हरीश राणा व शुभम आदि छात्रों ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपकर डीएसबी परिसर नैनीताल के छात्रावास की टूटी हुई दीवारों की मरमत एवं छात्रावास के पुनर्निर्माण करने का निवेदन किया। कुमाऊँ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (कूटा)  के शिष्टमंडल ने भी पुष्कर सिंह धामी को शिष्टाचार मुलाकात कर प्राध्यापको की विभिन्न समस्याओं  से अवगत कराया तथा  समाधान के लिए ज्ञापन दिया।

आगे उन्होंने कुमाऊं परिक्षेत्र के पुलिस उपमहानिरीक्षक कार्यालय के विस्तारीकरण तथा पुलिस ट्रांजिट हॉस्टल के नवीनीकृत कार्यालय का लोकार्पण किया। लोकार्पण के पश्चात मुख्यमंत्री हल्द्वानी के लिए रवाना हो गए।इस दौरान मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा रविवार को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में पहाड़ी अंजीर कहे जाने वाले व ‘बेड़ू पाको बारों मासा’ गीत में वर्णित बेड़ू से पिथौरागढ़ में बनाए जा रहे जैम-जैली का जिक्र करते हुए नैनीताल जनपद में डीएम धीराज गर्ब्याल के निर्देशन में बेरी एवं सेब की आधुनिक तरीके से बड़े पैमाने पर कराई जा रही खेती की भी सराहना की। यह भी पढ़ें :

गौरतलब है कि इससे पूर्व मुख्यमंत्री धामी ने बीती रात्रि नगर के मल्लीताल खड़ी बाजार में डीएम गर्ब्याल द्वारा कराए गए सौंदर्यीकरण के कार्यों को निहारा व पसंद किया था और मंच से भी डीएम गर्ब्याल के कार्यों की सराहना की थी। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

यह भी पढ़ें : मुख्यमंत्री धामी ने एक वर्ष के भीतर शिलान्यास के बाद लोकार्पित किए 4 कार्य, 6 नए कार्यों का शिलान्यास भी किया

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 28 अगस्त 2022। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को जिला मुख्यालय में कुल 18 करोड़ 5 लाख रुपए लागत की 4 योजनाओं का लोकार्पण एवम 6 योजनाओं का शिलान्यास किया। खासकर नगर में पारंपरिक शैली में निर्मित योजनाओं का लोकार्पण करते हुए धामी ने कहा कि विगत वर्ष 2021 के सितम्बर माह में उन्होंने 4 योजनाओं का शिलान्यास किया था, आज एक वर्ष बाद उन्हीं 4 योजनाओं का लोकार्पण करके गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

इन योजनाओं से सरोवर नगरी पारंपरिक स्थापत्य कला से परिपूर्ण हुई है। इसके लिए उन्होंने नैनीताल के डीएम धीराज गर्ब्याल एवं उनकी टीम को बधाई दी। कहा कि जिलाधिकारी द्वारा नियमित योजनाओं का अनुश्रवण का परिणाम है कि योजना गुणवत्ता के साथ ही समय पर पूर्ण हुई। यह भी कहा कि नैनीताल की स्थापत्य कला अन्य जनपदों व राज्य के लिए विकास का मॉडल बनेगी।

इस दौरान मुख्यमंत्री ने नगर की मल्लीताल स्थित खड़ी बाजार व बीएम शाह ओपर एयर थियेटर का निरीक्षण भी किया और खड़ी बाजार में दुकानों के बाहर बनाए गए चित्रों के साथ फोटो भी खिंचवाए। वह पार्टी के मोदी एट 2.0 कार्यक्रम में भी शामिल हुए। साथ ही उन्होंने रविवार सुबह रन टु लिव संस्था एवं जिला प्रशासन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुई 11वीं नैनीताल मानसून माउंटेन मैराथन प्रतियोगिता के विजेताओं को चेक भेंट कर पुरस्कृत भी किया।

कहा कि आज सरोवरनगरी में स्थापत्य कला सिमेट्री में परिलक्षित हो रही है। सभी दुकान एक समान आकृति व रंग की होने के कारण सरोवर नगरी की नैसर्गिक सौंदर्य में वृद्धि कर रहे है। जनपद में गौथिक शैली में पहाड़ी पत्थरों के प्रयोग से हो रहे सौंदर्यीकरण यहां देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को एक नया आकर्षण उपलब्ध कराएगी।

इस दौरान उन्होंने तल्लीताल व मल्लीताल स्थित रिक्शा बस स्टैंड का पारंपरिक शैली में सौंदर्यीकरण, ओपन एयर थिएटर का पारम्परिक शैली में निर्माण तल्लीताल में पारम्परिक शैली में निर्मित टॉल बूथ के निर्माण कार्य का लोकार्पण तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय पार्क, बड़ा बाजार मल्लीताल नैनीताल, तल्लीताल डांठ, राम सेवक सभा का मैदान व ठंडी सड़क में समर हाउस के पारम्परिक शैली में सौंदर्यीकरण व तल्लीताल कचहरी पार्किंग के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया। इस दौरान सिने कलाकार हेमंत पांडे ने भी पारम्परिक शैली में बीएम शाह ओपन थियटर के लोकार्पण के लिए जिलाधिकारी को धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस अवसर पर विधायक सरिता आर्य, राम सिंह कैड़ा, डॉ. मोहन बिष्ट, डीआईजी डॉ. नीलेश आनंद भरणे, जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पंकज भट्ट, मुख्य विकास अधिकारी डॉ. संदीप तिवारी, अपर जिलाधिकारी अशोक जोशी, शिव चरण द्विवेदी, उपजिलाधिकारी राहुल साह, मनीष कुमार, मुख्य नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय, तहसीलदार नवाजिश खलीक सहित अन्य अधिकारी व जनता के लोग उपस्थित रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : नैनीताल : शुरू होगा रामलीला स्टेज का सौंदर्यीकरण, रजा क्लब में शिफ्ट होगी मंडी

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 22 जून 2022। व्यवसायियों के ग्रीष्मकालीन पर्यटन सीजन के दौरान न शुरू किए जाने के अनुरोध के बाद अब मुख्यालय में मल्लीताल रामलीला स्टेज में सौंदर्यीकरण के कार्य शुरू होने जा रहे हैं। इस कार्य हेतु बुधवार को एसडीएम प्रतीक जैन ने नगर पालिका के ईओ अशोक कुमार वर्मा एवं व्यवसायियों के साथ प्रस्तावित निर्माण स्थल का निरीक्षण किया और कार्य होने के दौरान रामलीला स्टेज में सुबह के समय लगने वाली सब्जी मंडी की आढ़तों को रजा क्लब के मैदान में लगाने एवं इस हेतु आढ़तियों को अस्थायी तौर पर स्थान चिन्हित व आवंटित करने के निर्देश दिए।

इस दौरान व्यवसायियों की ओर से रजा क्लब के मैदान में बारिश में पानी भरने और बेकरी लाइन की ओर सीवर लाइन की गंदगी फैलने आदि की समस्याएं बताईं। इस पर एसडीएम ने 10 लाख रुपए से सीवर लाइन का काम जल संस्थान के माध्यम से एक-दो दिन में शुरू किए जाने और मैदान में पानी जमा होने की समस्या का समाधान करने के साथ ही अंडा मार्केट के क्षतिग्रस्त मार्ग की तत्काल मरम्मत कराने का आश्वासन दिया।

इस मौके पर नगर पालिका के सुनील खोलिया, दीपराज, एसडीओ विद्युत पर्यंक पांडे, व्यापार मंडल के अध्यक्ष किसन नेगी, राजेश वर्मा, गिरीश जोशी ‘मक्खन’, रईस अहमद, गिरीश कांडपाल, अमित साह, पारस मेहरा, अतुल पाल व ओम प्रकाश आदि लोग मौजूद रहे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : रात्रि में अचानक बाजार में नजर आए उत्तराखंड के मुख्य सचिव और की जमकर तारीफ

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 जून 2022। रविवार को मुख्यालय में मौजूद रहे प्रदेश के मुख्य सचिव सुखबीर सिंह संधू रात्रि लगभग 10 बजे अचानक पूरे प्रशासनिक अमले के साथ मल्लीताल बाजार में नजर आए। उन्होंने जिला अधिकारी धीराज गर्ब्याल के साथ खड़ी बाजार में उनके द्वारा कराए जा रहे सौंदर्यीकरण के कार्यों को देखा और बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने कार्यों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। वह इस बात से भी खुश हुए कि यहां पर्यटकों की काफी भीड़ थी और वह बाजार और खासकर दुकानों के शटरों पर बनाए गए कुमाउनी लोक संस्कृति की झांकी प्रस्तुत करते सुंदर कलाकृतियों के साथ सेल्फी ले रहे थे।

इस दौरान नयना देवी व्यापार मंडल नैनीताल के संस्थापक अध्यक्ष पुनीत टंडन एवं साथी व्यापारियों ने इन कार्यों के लिए जिला अधिकारी, प्रशासन और मुख्य सचिव का आभार व्यक्त कर धन्यवाद किया और आग्रह किया कि आगे होने वाले कार्य भी जल्द पूर्ण हों। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : मल्लीताल खड़ी बाजार सौंदर्यीकरण, बाजार-कारोबार गुलजार तो समस्या भी, डीएम-कमिश्नर को भेजा पत्र

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 8 जून 2022। नगर के मल्लीताल खड़ी बाजार में जिला प्रशासन द्वारा कराए गए सौंदर्यीकरण कार्यों के दो पक्ष नजर आ रहे हैं। पहला, प्रशासन के इस प्रयोग की बड़े पैमाने पर प्रशंसा हो रही है। अपेक्षाकृत सुनसान रहने वाली इस बाजार में मध्य रात्रि के बाद तक देश-विदेश के सैलानी जुट रहे हैं। इससे इस बाजार के व्यवसायियों के कारोबार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। दूसरी बाजारों के कई व्यवसायी भी ऐसे ही कार्य उनके बाजार में भी किए जाने की उम्मीद कर रहे हैं। यह अलग बात है कि व्यापार मंडल ने बड़ा बाजार में प्रस्तावित ऐसे ही कार्य सीजन के बाद करने का अनुरोध किया था।

सैलानी यहां बाजार के बीच में लगी बेंचों पर बैठकर आराम करते यहां स्थित रेस्टोरेंटों में खाने-पीने एवं दुकानों के शटरों पर उकेरे गए कुमाउनी लोक संस्कृति के चित्रों का अवलोकन कर रहे हैं, और उनके व उनके साथ फोटो खींच रहे हैं। यह फोटो मीडिया में काफी वायरल हो रही हैं और पसंद भी की जा रही हैं। व्यवसायी बाजार में वाहनों का प्रवेश रोके जाने से भी खुश हैं। अलबत्ता, कुछ व्यवसायियों के द्वारा सौंदर्यीकरण के बावजूद दुकानों के बाहर तक अतिक्रमण कर कार्यों की खूबसूरती को छुपाने का उपक्रम भी किया जा रहा है।

बहरहाल, खड़ी बाजार में किए गए इन कार्यों से कुछ समस्या भी उत्पन्न हुई हैं। नगर पालिका के पूर्व सभासद अधिवक्ता भरत भट्ट ने जिलाधिकारी व मंडलायुक्त को पत्र भेजकर इन समस्याओं को रेखांकित किया हैं उनका कहना है इस बाजार में वाहनों का मार्ग बंद कर देने से कूड़े की गाड़ी एवं एंबुलेंस के साथ ही फायर ब्रिगेड बाजार में प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं। इस कारण जय लाल साह बाजार व लम्पुरिया लाइन पर्यावरण मित्रों को छोटे ठेलों से कूड़ा बड़ी गाड़ियों तक ले जाना पड़ रहा है। बुजुर्गों व बीमारों को पीठ पर लेकर एंबुलेंस या अस्पताल तक लाना पड़ रहा है।

गत 5 जून को बाजार की एक दुकान में सिलेंडर लीक होने पर अग्निशमन कर्मियों को बिना गाड़ी के पैदल आना पड़ा और हाथ वाले फायर एक्सटिंग्युशर से आग बुझानी पड़ी। अलबत्ता यदि भविष्य में कोई बड़ी घटना होती है, तो समस्या हो सकती है। उन्होंने बाजार में परंपरागत तौर पर नंदा देवी मेले के दौरान नंदा-सुनंदा की शोभायात्रा न निकल पाने की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया है, तथा कहा है कि मार्ग को स्थायी तौर पर बंद किया जाना ठीक नहीं है, इसे खुलावाया जाये। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : कुुमाउनी शैली में बनेंगे जनपद में नए निर्माण, डीएम ने दिए निर्देश

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 20 मई 2022। जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल ने शुक्रवार को पर्यटन विभाग की ‘13 डिस्ट्रिक्ट-13 डेस्टिनेशन’ योजना के तहत तर्गत निर्माणाधीन योजनाओं का स्थलीय निरीक्षण करने के लिए जनपद के मुक्तेश्वर क्षेत्र का भ्रमण किया। इस दौरान उन्होने कार्यदायी संस्था केएमवीएन को 99.47 लाख से सरगाखेत में निर्माणाधीन पुराने पुलिस थाने के भवन का हैंडीक्राफ्ट कैफे के रूप में जीर्णोद्धार वाहन पार्किंग की सुविधा बढाने, पुराने शौचालय को स्थानांतरित करने, भवन की छत को समयबद्धता, पारदर्शिता एवं गुणवत्ता के साथ कुमाउनी शैली में निर्माण करने के निर्देश दिए।

इसके अलावा मुक्तेश्वर सर्किट में हिमालय दर्शन के अंतर्गत निर्माणाधीन व्यू पॉइन्ट, कैफे व पर्यटक आवास गृह तथा जिला योजना के अंतर्गत भटेलिया में निर्माणाधीन शौचालय व कैफे का भी निरीक्षण किया व कार्यदायी संस्था को बाहरी दीवार पर कुमाउनी ग्रामीण जीवन को प्रदर्शित करने, पहाड़ी परिधान में पुरुष व महिला का चित्रांकन करने एवं दीवार की ऊंचाई बढ़ाने जैसे अन्य महत्वपूर्ण दिशानिर्देश भी दिए।

उन्होंने जिला पर्यटन अधिकारी को पर्यटकों हेतु सेल्फी पॉइंट बनाने के भी निर्देश दिये। इस दौरान होटल एसोसिएशन मुक्तेश्वर द्वारा जिलाधिकारी का स्वागत करते हुए उन्हें क्षेत्र की सड़क, पानी व पार्किंग की प्रमुख समस्याओं से अवगत कराया। श्री गर्ब्याल ने बताया कि पार्किंग हेतु प्रस्ताव शासन भेजा जा चुका है एवं जल भंडारण व वितरण की समस्या के समाधान हेतु 4.45 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। इस अवसर पर संयुक्त मजिस्ट्रेट प्रतीक जैन, जिला पर्यटन अधिकारी बृजेंद्र पांडे आदि भी मौजूद थे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : सुबह का सुखद समाचार-अभिनव पहल : उत्तराखंड के एक विद्यालय में बच्चे फिर कागज पर उतार रहे ‘मोतियों से अक्षर’

No photo description available.-लेख सुधार के लिए परंपरागत रिगाल की कलम की ओर लौटा उत्तराखंड का एक विद्यालय

नवीन समाचार, देहरादून, 19 मई 2022। पूर्व में छात्रों के हस्तलेख पर काफी ध्यान दिया जाता था। कई छात्रों द्वारा लिखे शब्दों को ‘मोती से अक्षरों’ की संज्ञा दी जाती थी। इसके लिए प्रारंभिक कक्षाओं में रिगाल की कलम और कक्षा छः या आठ से निब युक्त होल्डर या पेन का प्रयोग किया जाता था। ‘कलम-दवात’ बहुत प्रचलित शब्द थे। किंतु बीते दशक में छोटे बच्चे भी पहले पेंसिल और बाद में प्रारंभिक कक्षाओं से ही बॉल पेन का प्रयोग करने लगे हैं। इससे बच्चों का हस्तलेख काफी खराब हो गया है।

लेकिन इधर देहरादून जनपद के राजकीय इंटर कालेज डोभालवाला में लेख सुधार के लिए की अभिनव पहल की गई है। इसे शिक्षा विभाग ने भी सराहा है। इस पहल के तहत बच्चों को परंपरागत रिंगाल की कलम से लिखाया जा रहा है। इसके अपेक्षित परिणाम सामने आए हैं। छात्र-छात्राओं ने रिंगाल की कलम से लेख में काफी सुधार किया है। इस पहल का संज्ञान लेते हुए अपर राज्य परियोजना निदेशक समग्र शिक्षा डा. मुकुल कुमार सती ने प्रदेशभर में इस रचनात्मक प्रयोग को धरातल पर उतारने का निर्देश दिया है।

उन्होंने सभी जनपदों के मुख्य शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे रिंगाल की कलम से लिखवाने के लिए प्रयास शुरू करें। आदेश में कहा गया है कि समय-समय पर विद्यालयों के निरीक्षण में यह पाया गया है कि प्रायः अधिकांश छात्र-छात्राओं का हस्तलेख सुंदर नहीं होते। शिक्षक भी छात्रों के हस्तलेख सुधारने में प्रायः उदासीन होते हैं अथवा अधिक परिश्रम नहीं करते। छात्रों के लेख में सुडौलता एवं सुन्दरता की कमी तथा अस्पष्टता होने के कारण परीक्षा परिणाम में भी कमी आती है। हस्तलेख में कमी का मुख्य कारण छात्र-छात्राओं द्वारा लेखन का कम अभ्यास एवं बालपेन का प्रयोग किया जाना है।

उन्होंने लिखा है कि पूर्व में छात्र-छात्राओं को रिंगाल बौना बांस की कलम अथवा निब युक्त पेन से लेख सुधारने के लिए अधिक से अधिक अभ्यास कराया जाता था। इससे छात्र छात्राओं के लेख में सुडौलता के साथ शुद्धता आती थी। इस पर छात्र-छात्राओं को पुनः सुन्दर लेख लिखने के प्रति जागरूक करने एवं रिंगाल या निब युक्त पेन से हस्तलेख का अभ्यास कराने के लिए विद्यालयों को निर्देशित करने को कहा गया है।

गौरतलब है कि खासकर अंग्रेजी माध्यम के निजी विद्यालयों के आने के बाद बच्चों की न ही हिंदी और न ही अंग्रेजी अच्छी है। कारण वह अपने पाठ्यक्रम के साथ अपनी मातृभाषा हिंदी में ज्यादा पढ़ व लिख नहीं पाते, और अंग्रेजी उनकी मातृभाषा न होने के कारण उसमें भी वे पारंगत नहीं हो पाते। इसलिए उनकी दोनों भाषाओ को नुकसान हो रहा है। जबकि पूर्व के हिंदी में पढ़ने-लिखने वाले लोग भी ठीक-ठाक अंग्रेजी लिख व बोल पाते हैं। इस ओर भी ध्यान दिये जाने की आवश्यता है।

अलबत्ता, रिंगाल की कलम से लिखने की इस पहल पर राइंका डोभालवाला के प्रधानाचार्य सुरेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा, ‘हमने अपने विद्यालय में रिंगाल की कलम का उपयोग शुरू किया है। हम कक्षा छह से लेकर 12वीं तक के सभी विद्यार्थियों को रिंगाल की कलम से लिखवा रहे हैं। इस प्रयोग के परिणाम बहुत उत्साहजनक और सकारात्मक रहे हैं। इसका लाभ विद्यार्थियों को मिलेगा। लेख अच्छे होने के कारण उन्हें परीक्षा में अच्छे अंक तो मिलेंगे ही प्रदेश में इस परंपरागत कलम का प्रयोग करने पर बड़े पैमाने पर कुटीर उद्योग भी शुरू होगा। शिक्षा विभाग ने हमारे प्रयोग को पूरे प्रदेश में लागू करने के निर्देश दिए हैं। यह राजकीय इंटर कालेज डोभालवाला के लिए सौभाग्य की बात है। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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सरोवरनगरी की खड़ी बाजार में दुकानों के शटरों में बने लोक संस्कृति के चित्र।

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 9 मई 2022। सरोवरनगरी इन दिनों कई स्थानों पर कुमाउनी लोक संस्कृति के रंग में रंग रही है। नगर का मल्लीताल रिक्शा स्टेंड अल्मोड़ा जनपद के कोसी-कटारमल स्थित खान से लाए गए पीले रंग के पत्थरों की चिनाई से कुमाउनी शिल्प कला के रंग में रंग गया है और अब तल्लीताल रिक्शा स्टेंड में भी ऐसा ही कार्य चल रहा है। इसके अलावा नगर के मल्लीताल क्षेत्र में खुले रंगमंच का निर्माण भी इसी पत्थर से किया जा रहा है। डीएम धीराज गर्ब्याल की इस अभिनव-अनूठी पहल का नगर के व्यापारियों के साथ ही नगर वासी और सैलानी भी मुक्तकंठ से प्रशंसा कर रहे हैं।

सरोवरनगरी की खड़ी बाजार में दुकानों के शटरों में बने लोक संस्कृति के चित्र।

इसी तरह नगर की मल्लीताल स्थित खड़ी बाजार में फर्श से लेकर यहां मौजूद करीब 40 दुकानों के अगले हिस्सों को भी कोसी-कटारमल के पत्थरों सेे परंपरागत तरीके से चिना गया है। इससे पहले बाजार की लटकती बिजली आदि की तारों को भूमिगत किया गया है। आग लगने जैसी स्थितियों में फायर हाइडेंट आदि का भी भूमिगत प्रबंध किया गया है। इसके बाद दुकानों के शटरों में कुमाउनी लोक संस्कृति के चित्र उकेरे जा रहे हैं।

सरोवरनगरी की खड़ी बाजार में दुकानों के शटरों में बने लोक संस्कृति के चित्र।

यह कार्य अयोध्या से आए कलाकार एसएन तिवारी द्वारा किया जा रहा है। बताया गया कि एक दुकान के शटर पर एक कलाकृति बनाने में करीब 6 हजार रुपए का खर्च आ रहा है। आगे यही कार्य नगर की तल्लीताल बाजार में भी शुरू हो गया है, जबकि आगे नगर के मल्लीताल स्थित रामलीला मैदान, सब्जी मंडी एवं नगर के मुख्य बड़ा बाजार को भी इसी तरह से कुमाउनी रंग में रंगा जाना है। डीएम धीराज गर्ब्याल ने बताया कि इसके पीछे नैनीताल की बाजार को रात्रि में एक अलग ही रूप व खासकर प्रदेश के पर्वतीय अंचल की कुमाउनी, गढ़वाली व जौनसारी आदि लोक संस्कृति दिखाने का है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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नवीन समाचार, गरूड (बागेश्वर), 3 जुलाई 2021। उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद की लाहुर घाटी में बसे ग्रामसभा सलखन्यारी के अंतर्गत आने वाले ग्राम सिरानी के ग्रामवासियों ने मिलकर पहाड़ की पौराणिक विरासत घराट (घट) का जीर्णोद्धार कर अपनी जड़ों की ओर लौटने का अनुकरणीय कार्य किया है।

नए रंगरोगन के बाद नगर का एक ऐतिहासिक लेटर बॉक्स।

उल्लेखनीय है कि सिरानी गांव जनपद मुख्यालय से काफी दूर पिछड़े इलाके में बसा हुआ है। यहां सिर्फ 19 परिवार रहते हैं। यहां के ग्रामीण वर्तमान में भी अनाज पीसने के लिए घराट पर आश्रित हैं। लेकिन उनके पुराने घराट की पत्थरों से आच्छादित छत काफी जर्जर हो चुकी थी और कभी भी टूटने की कगार पर थी। साथ ही घराट में इस्तेमाल होने वाले फिरक व फितड़ जैसे लकड़ी के उपकरण भी पुराने हो गए थे। इन्हें गांव के ही मिस्तरी गुमान सिंह तुलेरा की मदद से बदलकर नया लगाया गया है। साथ ही घराट के जीर्णोद्धार के कार्य में गांव के खीम सिंह तुलेरा, भूपाल सिंह तुलेरा, जीवन सिंह तुलेरा व बलवंत सिंह तुलेरा सहित अन्य ग्रामीण युवाओं ने भी योगदान दिया।

बताया गया है कि इलाके में पहले तीन घराट थे, परंतु अब सिर्फ यही एक घराट ही बचा है। घराट के मालिक आन सिंह तुलेरा ने बताया कि यह घराट चार पीढ़ियों से उपयोग में आ रहा है। उनसे पहले उनके दादा और पिताजी घराट का देखरेख करते थे। तब घराट में अनाज पीसने के लिए पूरे इलाके के दूर-दूर के गांवों के लोग आते थे। अब जमाने में बदलाव आ गया है। लोग बिजली से चालित चक्की पर आश्रित हो चुके हैं, इस कारण पहाड़ के घराटों की विरासत संकट में है। सिरानी के ग्रामीणों का कहना है कि घराट की इस विरासत को आज संजोने की बहुत जरूरत है। प्रशासन को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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इस तरह 'जागर' के दौरान पारलौकिक शक्तियों के वसीभूत होकर झूमते हें 'डंगरिये'
इस तरह ‘जागर’ के दौरान पारलौकिक शक्तियों के वसीभूत होकर झूमते हें ‘डंगरिये’

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल। कुमाऊं के जटिल भौगोलिक परिस्थितियों वाले दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में संगीत की मौखिक परम्पराओं के अनेक विशिष्ट रूप प्रचलित हैं। उत्तराखंड के इस अंचल की संस्कृति में बहुत गहरे तक बैठी प्रकृति यहां की लोक संस्कृति के अन्य अंगों की तरह यहां लोक गीतों में भी गहरी समाई हुई है। इन गीतों का मानव पर अद्भुत चमत्कारिक ईश्वरीय प्रभाव भी दिखाई देता है। ‘जागर’ गीत इसके प्रमाण हैं, जो मानव को इन कठिन परिस्थितियों में युग-युगों से परा और प्राकृतिक शक्तियों की कृपा के साथ आत्मिक संबल प्रदान करते आए हैं, और आज भी यह पल भर में मानव का न केवल झंकायमान कर देते हैं, वरन दुःख-तकलीफों, बीमारियांे की हर ओर से गहरी हताशा जैसी स्थितियों से बाहर भी निकाल लाते हैं।

इसीलिए पुरानी पीढ़ियों के साथ ही संस्कृति के अन्य रूपों से दूर हो रही और प्रवास में रहने वाली आधुनिक विज्ञान पढ़ी-लिखी पीढ़ी के लोग भी इन्हें खारिज नहीं कर पाते हैं, और पारिवारिक अनुष्ठान के रूप में इसमें अब भी शामिल होते हैं। जागर के गीतों में लोक देवताओं का कथात्मक शैली में गुणगान करते हुए आह्वान किया जाता है, साथ ही इनमें कुमाऊं के सदियों पुराने प्राचीन इतिहास खासकर कत्यूरी शासकों का जिक्र भी आता है, इस प्रकार यह कुमाऊं के इतिहास के मौखिक परंपरा के प्रमाण भी साबित होते हैं, और इस तरह यह ऐतिहासिक धरोहर भी हैं।

खास बात यह भी है जागर के माध्यम से न केवल व्यक्तिगत वरन भारतीय संस्कृति की मूल व अभिन्न भावना ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ का भी पालन किया जाता है तथा प्रकृति के संरक्षण की भी कामना की जाती है। जागर को सामान्यतया कोई व्यक्ति अकेले नहीं आयोजित कर सकता, वरन उसे अपने पूरे कुटुंब, और पूरे गांव को साथ लेकर यह आयोजन करना होता है। इस तरह यह आज के एकल परिवार में टूटते समाज को साथ लाने का एक माध्यम भी बनता है और इसके जरिए समाज में सामूहिकता की भावना भी बलवती होती जाती है। अलबत्ता, सभी लोगों के एक साथ एक अवधि में साथ नहीं जुट पाने की वजह, इस विधा के छूटने की एक बड़ी वजह भी है।

ग्वेल देवता की जागर का मंचन

जागर का शाब्दिक अर्थ जागरण या जगाना है। इस शैली में ‘जगरिया’ या ‘धौंसिया’ कहा जाने वाला और गुरू गोरखनाथ का प्रतिनिधि माने जाने वाला लोक गायक अपने ‘भग्यार’ कहे जाने वाले साथियों की मदद से देवी-देवताओं को कथात्मक शैली में उनकी गाथा गाते हुए उनकी प्रशंसा कर उन्हें जागृत तथा पवित्र अवसरों पर पधारने के लिए आमंत्रित करता है, तथा उनसे जीवन में हुई गलतियों और व्याप्त दुःख-तकलीफों का समाधान तथा आशीर्वाद प्राप्त करता है। इस दौरान जगरिया रामायण, महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों की कहानियों के साथ ही ग्वेल या गोलू, नरसिंह या नृसिंह, भनरिया, काल्सण यानी कालू सैम, हरू या हरज्यू, सैम, भोलानाथ, कलविष्ट सैम, भोलनाथ, गंगनाथ भैरों, ऐड़ी, आछरी, जीतू, लाटू, भगवती, चंडिका, विनसर, नागर्जा, नरसिंह, भैरों, ऐड़ी, आछरी, जीतू, लाटू, पांडवों, कत्येर आदि स्थानीय व लोक तथा कुल एवं ग्राम इष्ट देवताओं या ‘ग्राम देवताओं’ में से जिस देवता को जगाना होता है उस देवता की गाथाओं का बखान करता है। कई जागरों, जैसे रानीबाग में उत्तरायणी के पर्व की पहली रात कत्यूरी राजाओं के वंशजों द्वारा की जाने वाली जागर में कत्यूरी शासकों के काल का जिक्र आता है। इसी तरह अन्य जागरों में कुमाऊं की प्रसिद्ध प्रेम लोकगाथा-राजुला मालूशाही का भी जिक्र आता है, जो कुमाऊं के तत्कालीन इतिहास को भी बयां करती हैं, इस प्रकार यह ऐतिहासिक धरोहरें भी हैं, जिन्हें सहेजने की जरूरत महसूस की जाती है।

जागर के दौरान ईश्वरीय व परा शक्तियों के आवाहन में कुमाऊं के परंपरागत वाद्य यंत्र हुड़का के साथ कांसे की थाली और छोटे-बड़े ढोलों व दमाऊ आदि का प्रयोग इस तरह एक विशिष्ट प्रकार से किया जाता है कि गायन और वाद्यों की ध्वनि, लय, सुर और तान से एसे दिव्य वातावरण का निर्माण हो जाता है कि ‘डंगरिया’ (उसे डगर या रास्ता बताने वाला भी माना जाता है) कहे जाने वाले कुछ विशिष्ट लोगों ईश्वरीय शक्ति या देवता का अवतरण हो जाता है, और वह उसके प्रभाव में आकर नृत्य करने लगते हैं, तथा अन्य उपस्थित लोगों की आत्मा, मस्तिष्क और अन्तर्रात्मा भी झंकायमान हो जाते हैं। डंगरिये स्त्री और पुरूष दोनों हो सकते हैं। कहते हैं कि इस स्थिति में साफ-सफाई के साथ रोज-स्नान ध्यान कर पूजा तथा अनेक नियमों का पालन करने वाले डंगरियों में ईश्वरीय भक्ति, आस्था व प्रेम की इस त्रिवेणी जैसी स्थिति में लोक देवताओं की शक्ति संचारित हो जाती है और उनमें जागर जगाने वाले ‘सौकार’ या ‘स्योंकार’ (सेवाकार) व उसकी पत्नी-‘स्योंनाई’ तथा जागर में उपस्थित लोगों के प्रश्नों का ‘दानी’ या ‘दांणी’ (चावल के दाने) देखकर उत्तर देने की परा भौतिक-ईश्वरीय शक्ति आ जाती है, और वे मानव दुःखों के निवारण और मानव मात्र के कल्याण के लिए पूछे जाने वाले प्रश्नों के जवाब सहज रूप से देने लगते हैं।

जागर कई प्रकार की होती हैं। इसका आयोजन सामान्यतया चैत्र, आसाढ़ व मार्गशीर्ष महीनों में एक, तीन अथवा पांच रात्रि के लिए किया जाता है। अलबत्ता, सामुहिक रूप से कई जगह ‘धूनी’ जलाकर भी जागर लगाई जाती है, जिसे ‘धूनी’ ही कहते हैं। ऐसी जागर 22 दिन तक चलती है जिसे ‘बैसी’ कहा जाता है। इसी तरह 14 दिनों की जागर भी जोती है, जिसे ‘चौरास’ कहते हैं। बैसी के आखिरी दिन ‘किलोर मारना’ मनाया जाता है। जिसमें हल के पृथ्वी को जोतने के लिए लोहे का टुकड़ा लगी नसूट कही जाने वाली लकड़ी के टुकड़े से निर्मित खूंटों को गांव की चारों दिशाओं में इस विश्वास के साथ गाड़ दिया जाता है, कि इससे प्राकृतिक आपदाओं तथा अन्य बुराइयों से गाँव की रक्षा होगी। बैसी में अनेक ‘गुरू-मुन्डा’ कहे जाने वाले जगरिए भाग लेते हैं, और इस तरह भविष्य की जागरों के लिए प्रशिक्षण भी लेते हैं।

जागर पूरी प्रक्रिया में साफ-सफाई व आचरण की शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। जागर के लिये धूणी यानी धूनी जलाने के लिए लोग नहा-धो यानी शुद्ध होकर पंडित जी के अगुवाई में शुद्ध स्थान का चयन किया जाता है, फिर वहां पर गौ-दान किया जाता है तथा गोलाकार भाग में थोड़ी सी खुदाई कर वहां पर लकड़ियां रखी जाती हैं। लकड़ियों के चारों ओर गाय के गोबर और दीमक की बांबी वाली मिट्टी (यदि उपलब्ध न हो तो शुद्ध स्थान की लाल मिट्टी) से लीपा जाता है। स्योंकार द्वारा यहां पर दीप जलाया जाता है, और शंखनाद कर धूनी को प्रज्जवलित किया जाता है। इस धूनी में किसी भी अशुद्ध व्यक्ति के जाने और जूता-चप्पल लेकर जाने का निषेध होता है। आगे जागर को मुख्यतः आठ चरणों में पूरा किया जाता है। प्रथम चरण में जगरिया हुड़्के या ढोल-दमाऊं के वादन के साथ सांझवाली गायन यानी पंच नाम देवों की आरती और संध्या वंदन करता है। इस गायन में जगरिया सभी देवी-देवताओं का नाम, उनके निवास स्थानों का नाम और संध्या के समय सम्पूर्ण प्रकृति एवं दैवी कार्यों के स्वतः प्राकृतिक रुप से संचालन का वर्णन करता है।

दूसरे चरण में बिरत्वाई यानी महाभारत के कोई आख्यान और संबंधित देवता की गाथाओं-बिरुदावली का गायन कर तीसरे चरण में औसाण यानी डंगरिया के रूप में देवता को प्रज्जलित धूनी के चारों ओर विशिष्ट कराते हुए नृत्य कराता है। इस चरण में जगरिये के गायन से डंगरिये का शरीर धीरे-धीरे झूमने लगता हैं। इसके साथ ही जगरिया अपने स्वरों और वादन की गति को बढ़ाता जाता है, जिसके फलस्वरूप डंगरिये के शरीर में देवी-देवता का अवतरण हो जाता है, और वे नाचने लगते है, तथा नाचते-नाचते अपने आसन में बैठ जाते हैं। इस पर जगरिये द्वारा फिर से इन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, और देवता से जागर लगवाने वाले की मनोकामना पूर्ण करने का अनुरोध करता है। आगे चौथे चरण में हरिद्वार में गुरु की आरती की जाती है। पांचवे चरण को खाक रमाना कहते हैं। वहीं छठे चरण में दाणी यानी स्योंकार एवं अन्य लोगों द्वारा अपने घर से लाए जाने वाले चावलों को देखकर देवता से उन पर विचार करवाया जाता है। फलस्वरूप डंगरिये चावल के दानों हाथों में लेकर भूत, भविष्य और वर्तमान के विषय में सभी बातें बताने लगते हैं। आगे सातवें चरण में स्योंकार व अन्य लोगों को देवता से आशीर्वाद दिलाया जाता है। इसी दौरान देवता लोगों को संकट हरण के उपाय बताते हैं, और सभी विघ्न-बाधाओं को मिटाने का भरोसा दिलाते हैं, तथा आखिरी आठवां चरण में देवता को उनके निवास स्थान माने जाने वाले कैलाश पर्वत और हिमालय पर्वत को प्रस्थान कराया जाता है। इन जागर लोकगीतों का दुर्लभ सांस्कृतिक और साहित्यिक ज्ञान पहाड़ों में बिखरा पड़ा है, लेकिन इसके मर्मज्ञ लोक कलाकार धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं, ऐसे में इन्हें सहेजने, इनका आलेखीकरण करने की बड़ी आवश्यकता महसूस की जा रही है, अन्यथा यह अमूल्य निधि विलुप्त ही हो जाएगी।

गंगनाथ की जागर का सार

गंगनाथ की जागर में डोटी के कुंवर गंगनाथ के जन्म से लेकर उनका उनकी रूपवती प्रेमिका भाना से प्रेम प्रसंग और इसके फलस्वरूप् उनकी निर्मम हत्या का उल्लेख मिलता है। गंगनाथ की जागर में केवल हुड़के और कांसे की थाली का वाद्य यंत्र के रूप में प्रयोग होता हैं। गंगनाथ को गुरु गोरखनाथ का शिष्य बताया जाता है और उनके जागरों में नाथ पंथी मंत्रो का प्रभाव स्पष्ट देखा जाता है। गंगनाथ और भाना की अमर व करुण प्रेम गाथा के अनुसार डोटी के अपने नाम के अनुसार धन धन्य से संपन राजा वैभव चन्द और उनकी पत्नी प्योंला देवी को संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ था। आखिर प्योंला देवी को शिव ने उनकी आराधना के बाद स्वप्न में दर्शन दिये और पुत्र प्राप्ति के लिए मार्ग सुझाया। इस प्रकार प्योंला रानी ने एक सुन्दर, दिव्य तेजवान और अदभुत बालक को जन्म दिया। शिव की कृपा से प्राप्त होने की वजह से राजकुमार का नाम गंगनाथ रखा गया। लेकिन राज ज्योतिष ने अपनी भविष्यवाणी से राजा-रानी को चिंता में डाल दिया कि गंगनाथ 14 वर्ष के बाद प्रेम -वियोग में जोगी हो जाएगा ओर डोटी को सदा के लिये छोड़ देगा। यह भविष्यवाणी सच भी साबित हुआ। भाना नाम की सुंदरी उसके स्वप्न में आई और उसे मिलने के लिए जोशी खोला (अल्मोड़ा ) बुलाया। गंगनाथ इस स्वप्न के बाद दीवाना-जोगी होकर डोटी छोड़कर हरिद्वार आकर गुरु गोरखनाथ से शिक्षा दीक्षा लेते हैं, और गुरु गोरखनाथ से बुक्सार विद्या का दुर्लभ ज्ञान तथा दिव्य और अनिष्ठ रक्षक वस्त्र तथा ग्वेल देवता से भी शक्ति प्राप्त करते हैं। आगे वह साधुओं का चोला धारण कर बारही जोगी बनकर भिक्षा मांगते मांगते हुआ देवीधुरा के बन में ध्यान आसन लगाता हैं। इस दौरान लोग उनके अपने दुःखों व समस्याओं का कारण-निवारण पूछते हैं। लेकिन भाना की स्वप्न स्मृतियां उनके ध्यान को तोड़ता रहता है। आखिर भाना से उनका मिलन होता है। अल्मोड़ा के दीवान जोशी को जब उनकी नजदीकी का पता लगता है तो वे एक साजिश के तहत होली के दिन गंगनाथ को भंग पिला कर उनको गोरखनाथ से प्राप्त अनिष्ठ रक्षक दिव्य वस्त्र उतार कर आखिर अल्मोड़ा के पास विश्वनाथ घाट पर मौत के घाट उतार देते हैं। इस दौरान भाना विलाप करती हुई उसके प्राणों की दुहाई देती रहती है, पर उसकी एक नहीं सुनी जाती। इस पर क्रोधाग्नि में जलती भाना उनको फिटगार मारती (श्राप) देती है कि उन सबका घोर अनिष्ठ होगा, ओर वे पानी की बूंद और अन्न के एक दाने के लिए भी तरसेंगे। इस पर क्रोध में आकर दीवान भाना को भी मौत के घाट उतार देता है। इसके कुछ दिन बाद ही सारा जोशी खोला ओर विश्वनाथ घाट डोलने लगता है ओर वहां घोर अकाल जैसी स्थिति उत्पन हो जाती है। आखिर भयाक्रांत होकर वे गंगनाथ और भाना की पूजा कर उनसे क्षमा याचना करते हैं, और उन्हंे देव रूप में स्थापित करते हैं। तब से कुमाऊं के अनेक क्षेत्रों में गंगनाथ जी की लोक देवता रूप में पूजा अर्चना की जाती है उनका जागर लगाया जाता है।

जागर की शुरुआत कुछ इस तरह से होती है:

सिद्धिदाता भगवान गणेश, संध्याकाल का प्रज्ज्वलित पंचमुखी पानस, माता-पिता, गुरु-देवता, चार गुरु चौरंगीनाथ, बार गुरु बारंगी नाथ, नौखंडी धरती, ऊंचा हिमाल-गहरा पाताल, कि धुणी-पाणी सिद्धों की बाणी-बिना गुरु ग्यान नहीं, कि बिणा धुणी ध्यान नहीं, चौरासी सिद्ध-बारह पंथ-तैंतीस कोटि देवता-बावन सौ बीर-सोलह सौ मशान, न्योली का शब्द-कफुवे की भाषा, सुलक्षिणी नारी का सत, हरी हरिद्वार की, बद्री-केदार, पंचनाम देवताओं का सत……….
(इन सभी के धीर-धरम, कौल करार और महाशक्ति को साक्षी करके बजने लगता है शंख, कांसे की थाली, बिजयसार का ढोल और ढोल के बाईस तालों के साथ जगरिया हुड़का ढोल बजाने लगता है- भम भाम, पम पाम और पय्या के सोटे से बजने लगती है कांसे की थाली।)

जै गुरु-जै गुरु
माता पिता गुरु देवता
तब तुमरो नाम छू इजा…….
यो रुमनी-झूमनी संध्या का बखत में,
तै बखत का बीच में,
संध्या जो झुलि रै।
बरम का बरम लोक में, बिष्णु का बिष्णु लोक में,
राम की अजुध्या में, कृष्ण की द्वारिका में,
यो संध्या जो झुलि रै,
शंभु का कैलाश में,
ऊंचा हिमाल, गैला पताल में,
डोटी गढ़ भगालिंग में

गंगनाथ की जागर के कुछ अंश: प्योंला रानी को आशीष प्राप्ति का अंश :

हे भुल्लू
सुण म्यारा गंगू अब, यो मेरी बखन
यो राजा भबै चन्न तब बड़ दुःख हई राही हो ओ आं…………
हे भुल्लू क्या दान करैछ अब, यो माता प्योंला राणी
यो गंगा नौं की नाम तुमुल, यो गध्यार नहाल हो आं…..
इज्जा गंगा नाम की गध्यार नयाली आं……
हे भुल्ली
ये देबता नाम का तुमुल, यो ढुंगा ज्वाड़ी व्हाला
कैसी कन देखि तुमुल, यो संतानौं मुख आं…….
हे भुल्ली
को देब रूठो सी कौला यो डोटी भगलिंग
हाँ क्या दान करलू भग ?, ये डोटीगढ़ मझ हो औ डोटी भागलिंग की आन छै,
आं………
हे भुल्ली
यो तुम्हरी धातुन्द एगे, तौं डोटी भगलिंग
ये सुणिक सपन ऐगे,
ओ माता प्योंला राणी हों
डोटी भगलिंग जा ,माता प्योला राणि स्वीली सपन हेगि आं…….
हे भुल्ली
त्यार कुड़ी का रवाडी होलो, यो सांदंण कु खुंट
सात दिन तू तो राणि,
यो जल चढ़ा दिये…
इज्जा सांदंण फूल मा जल चढई तू आं……
हे भुल्ली
सात दिन कौला अब, यो फल खिली जाल आं…..
यो फल आयी जालू तब ,संतान हई जाली हो
इज्जा सांदंण खुंट भटेय कल्ल खिलल तब संतान व्हेली आं…..
हे भुल्ली
वो माता प्योंला राणि तब, यरणित उठी जैली आं…
रात-ब्याण बगत प्योंला आं…. क्या जल चढाली ? हो……..

(2) गंगनाथ की गुरु गोरखनाथ जी से दीक्षा का अंश

ए तै बखत का बीच में, हरिद्वार में बार बर्षक कुम्भ जो लागि रौ।
ए गांगू! हरिद्वार जै बेर गुरु की सेवा टहल जो करि दिनु कूंछे….!
अहा तै बखत का बीच में, कनखल में गुरु गोरखीनाथ जो भै रईं…!
ए गुरु कें सिरां ढोक जो दिना, पयां लोट जो लिना…..!
ए तै बखत में गुरु की आरती जो करण फैगो, म्यरा ठाकुर बाबा…..!
अहा गुरु धें कुना, म्यारा कान फाड़ि दियो,
मून-मूनि दियो, भगैलि चादर दि दियौ, मैं कें विद्या भार दी दियो,
मैं कें गुरुमुखी ज बणा दियो। ओ…
दो तारी को तार-ओ दो तारी को तार,
गुरु मैंकें दियो कूंछो, विद्या को भार,
बिद्या को भार जोगी, मांगता फकीर, रमता रंगीला जोगी, मांगता फकीर।

(3) मृत्यु उपरान्त जोशी खोला में गंगनाथ और भाना की आत्मा आहवान का अंश

मानी जा हो डोटी का कुंवर अब
मानी जा हो रूपवती भाना अब
जागा हो डोटी का कुंवर अब
जागा हो रूपवती भाना अब
प्राणियों का रणवासी छोडियो अब
छोडियो डोटी वास
माँ का प्यार पिता का द्वार -2, छोडियो तू ले आज
भभूती रमाई गंगनाथा रे -2
डोटी का कुंवर गंगनाथा रे -2
रूपवती भाना गंगनाथा रे -2
ताज क्यूँ उतारी दियो नाथा रे -2
जोगी का भेष लियो नाथा रे -2
भभूती रमाई गंगनाथा रे -2

नरसिंग जागर और नाथपंथी मन्त्र:

आम तौर पर नरसिंग (नृसिंह-नरसिंह का अपभ्रंश) को भगवान को विष्णु का अवतार माना जाता है, किन्तु कुमाऊं व गढ़वाल में यह गुरु गोरखनाथ के चेले के रूप में ही पूजे जाते हैं। नरसिंगावली का मंत्रों और घड़ेलों में जागर के रूप में भी प्रयोग होता है। नरसिंग नौ प्रकार के बताए जाते हैं-इंगला वीर, पिंगला बीर, जतीबीर, थतीबीर, घोरबीर, अघोरबीर, चंड बीर, प्रचंड बीर, दुधिया व डौंडिया नरसिंग। आमतौर पर दुधिया नरसिंग व डौंडिया नरसिंग के जागर लगते हैं। दुधिया नरसिंग शांत नरसिंग माने जाते है, जिनकी पूजा रोट काटने से पूरी हो जाती है। जबकि, डौंडिया नरसिंग घोर बीर माने जाते हैं व इनकी पूजा में भेड़-बकरी का बलिदान करने की प्रथा भी है।

नरसिंग की जागर के कुछ अंश:

जाग जाग नरसिंग बीर बाबा
रूपा को तेरा सोंटा जाग, फटिन्गु को तेरा मुद्रा जाग .
डिमरी रसोया जाग, केदारी रौल जाग
नेपाली तेरी चिमटा जाग, खरुवा की तेरी झोली जाग
तामा की पतरी जाग, सतमुख तेरो शंख जाग
नौलड्या चाबुक जाग, उर्दमुख्या तेरी नाद जाग
गुरु गोरखनाथ का चेला जाग
पिता भस्मासुर माता महाकाली जाग
लोह खम्भ जाग रतो होई जाई बीर बाबा नरसिंग
बीर तुम खेला हिंडोला बीर उच्चा कविलासू
हे बाबा तुम मारा झकोरा, अब औंद भुवन मा
हे बीर तीन लोक प्रिथी सातों समुंदर मा बाबा
हिंडोलो घुमद घुमद चढे बैकुंठ सभाई, इंद्र सभाई
तब देवता जागदा ह्वेगें, लौन्दन फूल किन्नरी
शिवजी की सभाई, पेंदन भांग कटोरी
सुलपा को रौण पेंदन राठवळी भंग
तब लगया भांग को झकोरा
तब जांद बाबा कविलास गुफा
जांद तब गोरख सभाई , बैकुंठ सभाई
गुरु खेकदास बिन्नौली कला कल्पण्या
अजै पीठा गजै सोरंग दे सारंग दे
राजा बगिया ताम पातर को जाग
न्यूस को भैरिया बेल्मु भैसिया
कूटणि को छोकरा गुरु दैणि ह्वे जै रे
ऊंची लखनपुरी मा जै गुरुन बाटो बतायो
आज वे गुरु की जुहार लगान्दु
जै दुध्या गुरून चुडैलो आड़बंद पैरे
ओ गुरु होलो जोशीमठ को रक्छ्यापाल
जिया व्बेन घार का बोठ्या पूजा
गाड का गंगलोड़ा पूज्या
तौ भी तू जाती नि आयो मेरा गुरु रे
गुरून जैकार लगाये, बिछुवा सणि नाम गहराए
क्विल कटोरा हंसली घोड़ा बेताल्मुखी चुर्र
आज गुरु जाती को ऐ जाणि रे………….

जै नौ नरसिंग बीर छयासी भैरव
हरकी पैड़ी तू जाग
केदारी तू गुन्फो मा जाग
डौंडी तू गढ़ मा जाग
खैरा तू गढ़ मा जाग
निसासु भावरू जाग
सागरु का तू बीच जाग
खरवा का तू तेरी झोली जाग
नौलडिया तेरी चाबुक जाग
टेमुरु कु तेरो सोंटा जाग
बाग्म्बरी का तेरा आसण जाग
माता का तेरी पाथी जाग
संखना की तेरी ध्वनि जाग
गुरु गोरखनाथ का चेला पिता भस्मासुर माता महाकाली का जाया
एक त फूल पड़ी केदारी गुम्फा मा
तख त पैदा ह्वेगी बीर केदारी नरसिंग
एक त फूल पड़ी खैरा गढ़ मा
तख त पैदा ह्वेगी बीर डौंडि
एक त फूल पोड़ी वीर तों सागरु मा
तख त पैदा ह्वेगी सागरया नरसिंग
एक त फूल पड़ी बीर तों भाबरू मा
तख त पैदा ह्वेगी बीर भाबर्या नारसिंग
एक त फूल पड़ी बीर गायों का गोठ, भैस्यों क खरक
तख त पैदा ह्वेगी दुधिया नरसिंग
एक त फूल पड़ी वीर शिब्जी क जटा मा
तख त पैदा ह्वेगी जटाधारी नरसिंग
हे बीर आदेसु आदेसु बीर तेरी नौल्ड्या चाबुक
बीर आदेसु आदेसु बीर तेरो तेमरू का सोंटा
बीर आदेसु आदेसु बीर तेरा खरवा की झोली
वीर आदेसु आदेसु बीर तेरु नेपाली चिमटा
वीर आदेसु आदेसु बीर तेरु बांगम्बरी आसण
वीर आदेसु आदेसु बीर तेरी भांगला की कटोरी
वीर आदेसु आदेसु बीर तेरी संखन की छूक
वीर रुंड मुंड जोग्यों की बीर रुंड मुंड सभा
वीर रुंड मुंड जोग्यों बीर अखाड़ो लगेली
वीर रुंड मुंड जोग्युंक धुनी रमैला
कन चलैन बीर हरिद्वार नहेण
कना जान्दन वीर तैं कुम्भ नहेण
नौ सोंऊ जोग्यों चल्या सोल सोंऊ बैरागी
वीर एक एक जोगी की नौ नौ जोगणि
नौ सोंऊ जोगयाऊं बोडा पैलि कुम्भ हमन नयेण
कनि पड़ी जोग्यों मा बनसेढु की मार
बनसेढु की मार ह्वेगी हर की पैड़ी माग
बीर आदेसु आदेसु बीर आदेसु बीर आदेसु
पारबती बोल्दी हे मादेव, और का वास्ता तू चेला करदी
मेरा भंग्लू घोटदू फांफ्दा फटन, बाबा कल्लोर कोट कल्लोर का बीज
मामी पारबती लाई कल्लोर का बीज, कालोर का बीज तैं धरती बुति याले
एक औंसी बूते दूसरी औंसी को चोप्ती ह्वे गे बाबा
सोनपंखी ब्रज मुंडी गरुड़ी टों करी पंखुरी का छोप
कल्लोर बाबा डाली झुल्मुल्या ह्वेगी तै डाली पर अब ह्वेगे बाबा नौरंग का फूल
नौरंग फूल नामन बास चले गे देवता को लोक
पंचनाम देवतों न भेजी गुरु गोरखनाथ , देख दों बाबा ऐगे कुसुम की क्यारी
फूल क्यारी ऐगे अब गुरु गोरखनाथ
गुरु गोरखनाथ न तैं कल्लोर डाली पर फावड़ी मार
नौरंग फूल से ह्वेन नौ नरसिंग निगुरा, निठुरा सद्गुरु का चेला
मंत्र को मारी चलदा सद्गुरु का चेला…….
(यह गढ़वाली जागर कत्यूर शासन और केदारनाथ धाम की स्थापना के बाद की मानी जाती है, क्योंकि इसमें केदार नाथ धाम और वहां के पुजारी रावल का साथ कत्यूर वंश की तत्कालीन राजधानी जोशीमठ का जिक्र भी है।)

नरसिंगावली में उल्लेखित नरसिंग का मंत्र

ऊं नमो गुरु को आदेस … प्रथमे को अंड अंड उपजे धरती, धरती उपजे नवखंड, नवखंड उपजे धूमी, धूमी उपजे भूमि, भूमि उपजे डाली, डाली उपजे काष्ठ, काष्ठ उपजे अग्नि, अग्नि उपजे धुंवां, धुंवां उपजे बादल , बादल उपजे मेघ , मेघ पड़े धरती, धरती चले जल, जल उपजे थल, थल उपजे आमी, आमी उपजे चामी, चामी उपजे चावन छेदा बावन बीर उपजे महाज्ञानी, महादेव न निलाट चढाई अंग भष्म धूलि का पूत बीर नरसिंग….

(डा. शिवानन्द नौटियाल, पंडित गोकुलदेव बहुगुणा, डा. विष्णु दत्त कुकरेती व रूहेम सिंह बिष्ट आदि के संकलनों से साभार )

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