Astha Blog Pages Nainital

Nayna Devi Temple History : नेपाली, तिब्बती, पैगोडा, गौथिक व ग्वालियर शैली में बना है नयना देवी मंदिर

नवीन समाचार, आस्था डेस्क, 25 मार्च 2014 (Nayana Devi Temple is built in Nepali, Tibetan, Pagoda, Gothic and Gwalior style.)। “सरोवरनगरी की पहचान से जुड़ा नगर का प्राचीन नयना देवी मंदिर नेपाली, तिब्बती, पैगोडा व कुछ हद तक अंग्रेजी गौथिक व ग्वालियर शैली में भी बना हुआ है। इसकी स्थापना नगर के संस्थापकों में शुमार मूलतः नेपाल निवासी मोती राम शाह के पुत्र अमर नाथ शाह ने अंग्रेजों से एक समझौते के तहत यहां लगभग सवा एकड़ भूमि पर 1883 में माता के जन्म दिन माने जाने वाली ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की नवमी की तिथि को की थी। नयना देवी मंदिर की गतिविधियां उनके फेसबुक पेज पर यहां क्लिक करके भी देख सकते हैं। नयना देवी मंदिर से संबंधित समाचारों के लिए यहां क्लिक करें। यह भी पढ़ें : भगवान राम की नगरी के समीप माता सीता का वन ‘सीतावनी’

नैनीताल व नयना देवी के संस्थापक मोती राम शाह

उल्लेखनीय है कि पूर्व में नयना देवी का मंदिर वर्तमान बोट हाउस क्लब व फव्वारे के बीच के स्थान पर कहीं स्थित था। उसकी स्थापना नगर के संस्थापक मोती राम शाह ने की थी। स्वर्गीय साह मूल रूप से नेपाल के निवासी तथा उस दौर में अल्मोड़ा के प्रमुख व्यवसायी, अग्रेज सरकार बहादुर के बैंकर और तत्कालीन बड़े ठेकेदार थे। वे ही नैनीताल में शुरूआती वर्षों में बने सभी बंगलों व अनेक सार्वजनिक उपयोग के भवनों के शिल्पी और ठेकेदार और नैनीताल में बसने वाले पहले हिंदुस्तानी भी थे । उन्होंने ही नगर के खोजकर्ता पीटर बैरन के लिए नगर के पहले घर पिलग्रिम हाउस का निर्माण भी कराया था। उनके द्वारा बोट हाउस क्लब के पास स्थापित नयना देवी का प्राचीन मंदिर 1880 के विनाशकारी भूस्खलन में दब गया था । यह भी पढ़ें : सच्चा न्याय दिलाने वाली माता कोटगाड़ी: जहां कालिया नाग को भी मिला था अभयदान

कहते हैं कि उस मंदिर का विग्रह एवं कुछ अंश वर्तमान मंदिर के स्थान पर मिले। इस पर अंग्रेजों ने मन्दिर के पूर्व के स्थान के बदले वर्तमान स्थान पर मन्दिर के लिए लगभग सवा एकड़ भूमि स्व. शाह को हस्तान्तरित की। इस पर 1883 में स्व. मोती राम शाह के ज्येष्ठ पुत्र स्व. अमर नाथ शाह ने माता नयना देवी का मौजूदा मंदिर बनवाया। बताते हैं कि मां की मूर्ति काले पत्थर से नेपाली मूर्तिकारों से बनवाई गई, और उसकी स्थापना 1883 में मां आदि शक्ति के जन्म दिन मानी जाने वाली ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को की गई। तभी से हर वर्ष इसी तिथि को मां नयना देवी का मंदिर का स्थापना दिवस मनाया जाता है, और इसे मां का जन्मोत्सव भी कहा जाता है। यह भी पढ़ें : भद्रकालीः जहां वैष्णो देवी की तरह त्रि-पिंडी स्वरूप में साथ विराजती हैं माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली 

मंदिर की व्यवस्था वर्तमान में मां नयना देवी अमर-उदय ट्रस्ट द्वारा की जाती है, और ट्रस्ट की डीड की शर्तों के अनुसार संस्थापक शाह परिवार के वंशजों को वर्ष में केवल इसी दिन मन्दिर के गर्भगृह में जाने की अनुमति होती है। बताते हैं कि शुरू में मंदिर परिसर में केवल तीन मन्दिर ही थे, इनमें से मां नयना देवी व भैरव मन्दिर में नेपाली एवं पैगोडा मूर्तिकला की छाप बताई जाती है, वहीं इसके झरोखों में अंग्रेजों की गौथिक शैली का प्रभाव भी नजर आता है। तीसरा नवग्रह मन्दिर ग्वालियर शैली में बना है। इसका निर्माण विशेष तरीके से पत्थरों को आपस में फंसाकर किया गया और इसमें गारे व मिट्टी का प्रयोग नहीं हुआ। कुछ मंदिरों पर पहाड़ी थानों (पर्वतीय मंदिरों) की झलक भी मिलती है, जबकि आगे यहां दक्षिण भारतीय शैली में बनी मूर्तियों से दशावतार मंदिर का निर्माण भी किया गया  है। यह भी पढ़ें : प्रसिद्ध वैष्णो देवी शक्तिपीठ सदृश रामायण-महाभारतकालीन द्रोणगिरि वैष्णवी शक्तिपीठ दूनागिरि

शक्तिपीठ है नयना देवी मंदिर

नैनीताल। वर्तमान नयना मंदिर को शक्तिपीठ की मान्यता दी जाती है। कहा जाता है कि देवी भागवत के अनुसार भगवान शिव जब माता सती के दग्ध अंगों को आकाश मार्ग से कैलाश की ओर ले जा रहे थे, तभी मां की एक आंख यहां तथा दूसरी हिमांचल प्रदेश के नैना देवी में गिरी थी। तभी से यहां मां की आंख के ही आकार के नैना सरोवर के किनारे प्राचीन मंदिर की उपस्थिति बताई जाती है। यह भी पढ़ें : पाषाण देवी शक्तिपीठ: जहां घी, दूध का भोग करती हैं सिंदूर सजीं मां वैष्णवी

यहां सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। नैनी झील के स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्थापना की गई है। यह भी पढ़ें : नागेशं दारूका वने… ज्योर्तिलिंग जागेश्वर : यहीं से शुरू हुई थी शिवलिंग की पूजा, यहाँ होते हैं शिव के बाल स्वरुप की पूजा

पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि ‘मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल स्वरुप यज्ञ के हवन कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।’ यह भी पढ़ें : स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरवर्ग, विराट कोहली को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले बाबा नीब करौरी व उनके कैंची धाम के बारे में सब कुछ
जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ-जहाँ पर शरीर के अंग किरे, वहाँ-वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे; वहीं पर नैनादेवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिव पत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैना देवी के रूप में होती है। यह भी पढ़ें : नैनीताल के हरदा बाबा-अमेरिका के बाबा हरिदास

यह भी पढ़ें : कार्तिक पूर्णिमा पर नयना देवी मंदिर में चढ़ाए गए 18 बड़े घंटे

नयना देवी मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा पर चढ़ाए गए बड़े घंटे।

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 18 नवंबर 2021। नगर की आराध्य देवी माता नयना देवी के मंदिर में कार्तिक पूर्णमासी के दिन 18 बड़े घंटे लगाए गए हैं। बृहस्पतिवार को मंदिर के आचार्यों ने प्रतिष्ठा कर मंदिर परिसर में इन्हें लगाया गया। बताया गया कि मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाई गई पुरानी छोटी व निष्क्रिय घंटियों को पिघला कर यह बड़े घंटे बनाए गए हैं। यह भी पढ़ें : राजुला-मालूशाही और उत्तराखंड की रक्तहीन क्रांति की धरती, कुमाऊं की काशी-बागेश्वर

शालीन-मर्यादित वस्त्रों में ही आयें मंदिर
नैनीताल। नयना देवी मंदिर अमर उदय ट्रस्ट ने अपने 139वें स्थापना दिवस से मंदिर में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं के प्रवेश के लिए शालीन व मर्यादित वस्त्रों में मंदिर आने की उम्मीद एवं अपील की है। इस हेतु मंदिर में जगह-जगह पोस्टर भी लगाए गए हैं। उम्मीद की जा रही है कि लोग पूर्ण वस्त्रों में एवं सिर को ढककर पूरी श्रद्धा के साथ मंदिर में आएंगे। इसके अलावा वक्त से कदम ताल मिलाते हुए मंदिर में ऑनलाइन चढ़ावा चढ़ाए जाने की व्यवस्था भी की गई है। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार
‘नवीन समाचार’ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल से ‘मन कही’ के रूप में जनवरी 2010 से इंटरननेट-वेब मीडिया पर सक्रिय, उत्तराखंड का सबसे पुराना ऑनलाइन पत्रकारिता में सक्रिय समूह है। यह उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त, अलेक्सा रैंकिंग के अनुसार उत्तराखंड के समाचार पोर्टलों में अग्रणी, गूगल सर्च पर उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ, भरोसेमंद समाचार पोर्टल के रूप में अग्रणी, समाचारों को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाला ऑनलाइन समाचार पोर्टल भी है।
https://navinsamachar.com

Leave a Reply