चिंताजनक: पहाड़ों में लड़कियों की बदल रही पसंदों से लड़कों की शादी न हो पाने की बढ़ रही समस्या…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 20 मई 2025 (Problem of Boy Not getting Married is Increasing)। सामान्यतया बेटियों की शादी को एक बड़ी समस्या बताया जाता है, लेकिन उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में शादी योग्य युवाओं की शादी न हो पाने की समस्या गंभीर होती जा रही है। लड़कियां बड़े परिवार और पहाड़ी गांवों के बजाय छोटे परिवार, मैदानी क्षेत्रों जैसे हल्द्वानी, देहरादून, रुद्रपुर, काशीपुर जैसे मैदानी शहरों में घर और सरकारी नौकरी वाले युवाओं को प्राथमिकता दे रही हैं। यह स्थिति इसलिये भी अधिक चिंताजनक है कि राज्य में लिंगानुपात 984 यानी ठीक-ठाक है। यह भी देखें :
बेरोजगारी और सामाजिक दबाव
पर्वतीय क्षेत्रों में बेरोजगारी, सीमित आर्थिक अवसर और पलायन ने युवाओं की शादी की राह मुश्किल कर दी है। 35 से 40 वर्ष की आयु पार कर चुके कई युवक कुंवारे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अनिल जोशी के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी और आय की कमी और बदलती मान्यताएं लड़कों की शादी में बाधा बन रहे हैं। एक 38 वर्षीय युवक ने बताया कि वह शादी न होने से कम, बल्कि सामाजिक टिप्पणियों से अधिक परेशान है। लोग जानबूझकर शादी, आय, और भविष्य पर सवाल उठाते हैं, जिससे मानसिक तनाव बढ़ता है।
समस्या का एक संबंधित कारण राज्य में दबे-छुपे हो रही कन्या भ्रूण हत्या के साथ यहां की लड़कियों की भी एक हद तक हरियाणा जैसे राज्यों के लड़कों के साथ शादी के लिये हो रही तस्करी को भी बताया जाता है। साथ ही एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि पहले जहां शादियां अपने ही समाज में होती थीं, वहीं अब समाज में बढ़े खुलेपन के साथ यहां की लड़कियां बाहरी दूसरे समाजों में भी शादियां कर रही हैं। हालांकि यह बात लड़कों के लिये भी कही जा सकती है।
लड़कियों की बदलती प्राथमिकताएं
समाजशास्त्री डॉ. रीतिका पंत के अनुसार, बढ़ते शैक्षिक स्तर के साथ शिक्षित लड़कियां अब आर्थिक स्थिरता, शहरी सुविधाएं और छोटे परिवार को तरजीह देती हैं। अब पर्वतीय गांवों में कृषि, चारा-पत्ती के लिये व गाय-बच्छियों के साथ जंगल जाना, खेतों में खाद डालना, घर के व अन्य कृषि कार्य करना किसी को पसंद नहीं है। कुछ दशक पूर्व जहां लड़कियां ब्याहने के लिये लड़कों का भरा-पूरा परिवार देखा जाता था, लेकिन अब परिवार में कम से कम सदस्य होने को वरीयता मिल रही है।
पहाड़ में अपेक्षाकृत बड़े घर के बावजूद लोग हल्द्वानी-रुद्रपुर, काशीपुर जैसे मैदानी शहरों में एक-दो कमरों के किराये के या अपने घरों में रहने को तैयार हैं। पहाड़ों में बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, स्वास्थ्य केंद्र और शिक्षा की कमी के कारण लड़कियां मैदानी क्षेत्रों में और परिवार व रिश्तेदारों द्वारा तय दूल्हों की जगह अपनी पसंद के विवाह को प्राथमिकता देती हैं। सरकारी नौकरी वाले युवकों को रिश्तों में प्राथमिकता मिलती है, जबकि निजी क्षेत्र या स्वरोजगार में लगे युवक पीछे रह जाते हैं।
विवाह के प्रति बदलता दृष्टिकोण
शादी के बाद बढ़ते पारिवारिक विवाद, तलाक के मामले और आर्थिक जिम्मेदारियों ने भी कई युवकों को विवाह से विमुख कर दिया है। एक युवक ने बताया कि वह अब शादी नहीं करना चाहता, लेकिन माता-पिता के बुढ़ापे और एकलौते होने की जिम्मेदारी उसे चिंतित करती है। वह भविष्य में अकेलेपन और सामाजिक दबाव की आशंका से भी ग्रस्त है।
मनोवैज्ञानिक डॉ. संजय मेहता का कहना है कि शादी न करने का निर्णय व्यक्तिगत है, लेकिन सामाजिक समर्थन और आर्थिक स्थिरता के साथ यह कोई सजा नहीं पूर्व में पारिवारिक सहमति से और चिह्न (कुंडली) मिलाकर विवाह तय होते थे, लेकिन बदले दौर में प्रेम विवाह तथा अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाहों के मामले भी बढ़ रहे हैं। वहीं लिव-इन जैसी नये दौर की समस्याएं अभी पर्वतीय गांवों तक तो नहीं, लेकिन शहरों की ओर पहुंचने की कोशिश जरूर कर रही हैं।
एक पीड़ित की सोशल मीडिया पोस्ट
इस संबंध में एक युवक की पोस्ट सोशल मीडिया पर चर्चा में है, जिसमें उसने लिखा है: ‘शादियों का सीजन शुरू हो चुका है लेकिन लड़कों की शादी न हो पाने की समस्या अब एक बड़ा रूप ले चुकी है। हर गांव कस्बे में 35 की उम्र पार कर चुके बहुत लड़के कुंवारे ही हैं। मेरी उम्र भी 38 साल हो चुकी है और में अपनी शादी न हो पाने से नहीं लेकिन लोगों की बातों से परेशान हूं। हर दूसरा आदमी जान बूझकर सवाल करता है कि शादी कब कर रहे हो… अभी तक क्यों नहीं की… कहीं बातचीत करनी चाहिए थी.. कितना कमा लेते हो… नेपाल से कर लो… वगैरा वगैरा।
बेरोजगारी और बढ़ती उम्र और दिन-दिन शादी के नाम पर होते उत्पात को, शादी के बाद के झगड़ों और विवादों देखते हुए में अब शादी करना नहीं चाहता हूं। माता पिता बूढ़े हो चले हैं। मैं घर का इकलौता लड़का हूं, बुढ़ापे में क्या होगा? कल क्या होगा जैसे सवालों से परेशान भी हूं। अगर में शादी न करूं तो क्या भविष्य में यह निर्णय कोई सजा भर बन के रह जाएगा या सब ठीक ही रहेगा?’
समाधान की आवश्यकता (Problem of Boy Not getting Married is Increasing)
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से मांग की है कि पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार सृजन, बुनियादी सुविधाओं का विकास और सामुदायिक विवाह कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए। युवाओं के लिए परामर्श केंद्र और सामाजिक जागरूकता अभियान शुरू किए जाएं। यह समस्या न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी चुनौती बन रही है, जिसके लिए व्यापक नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है। (Problem of Boy Not getting Married is Increasing, Uttarakhand News, Uttarakhand Problems, Problem in Marriage)
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डॉ.नवीन जोशी, पिछले 20 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय, ‘कुमाऊँ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पीएचडी की डिग्री प्राप्त पहले और वर्ष 2015 से उत्तराखंड सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं। 15 लाख से अधिक नए उपयोक्ताओं के द्वारा 150 मिलियन यानी 1.5 करोड़ से अधिक बार पढी गई आपकी अपनी पसंदीदा व भरोसेमंद समाचार वेबसाइट ‘नवीन समाचार’ के संपादक हैं, साथ ही राष्ट्रीय सहारा, हिन्दुस्थान समाचार आदि समाचार पत्र एवं समाचार एजेंसियों से भी जुड़े हैं। देश के पत्रकारों के सबसे बड़े संगठन ‘नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) उत्तराखंड’ के उत्तराखंड प्रदेश के प्रदेश महामंत्री भी हैं और उत्तराखंड के मान्यता प्राप्त राज्य आंदोलनकारी भी हैं।











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