December 25, 2025

एक वन प्रभाग में अधिकारियों की संपत्ति के अचानक अत्यधिक बढ़ने और वन सीमा स्तंभों पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उठाए गंभीर प्रश्न, कई संस्थानों से जवाब तलब…

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नवीन समाचार, नैनीताल, 24 दिसंबर 2025 (HC on Mussorie Forest Division)। उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित उच्च न्यायालय ने मसूरी वन प्रभाग से जुड़े एक गंभीर मामले में प्रशासनिक पारदर्शिता और पर्यावरण संरक्षण को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। न्यायालय ने सवाल उठाया है कि एक ही वन प्रभाग में तैनात कुछ वन अधिकारी कम समय में इतनी अधिक संपत्ति कैसे अर्जित कर पाए। यह मामला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे वन भूमि, अतिक्रमण, पर्यावरण संतुलन और प्रशासनिक जवाबदेही जैसे विषय सीधे जुड़े हैं, जिनका असर समाज और प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ता है।

मसूरी वन प्रभाग से जुड़ा मामला और न्यायालय की टिप्पणी

(HC on Mussorie Forest Division) वन प्रभाग में 7 हजार बाउंड्री पिलर्स गायब होने का मामला, मसूरी DFO ने बताया  सच, अपनी प्रॉपर्टी को लेकर भी दिया जवाबमामले की सुनवाई कर रही उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति मनोज तिवारी और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने सीबीआई, केंद्र सरकार, उत्तराखंड सरकार, सर्वे ऑफ इंडिया और उच्चतम न्यायालय की सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी को नोटिस जारी किए हैं। इन सभी से छह सप्ताह के भीतर अपना पक्ष और जवाब दाखिल करने को कहा गया है। मामले की अगली सुनवाई 11 फरवरी को निर्धारित की गई है। न्यायालय का यह रुख यह संकेत देता है कि प्रकरण को गंभीरता से लिया जा रहा है।

आंतरिक रिपोर्ट और संपत्ति को लेकर सवाल

न्यायालय ने सुनवाई के दौरान आंतरिक रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि एक ही वन प्रभाग में लंबे समय तक तैनाती के दौरान इतनी बड़ी मात्रा में संपत्ति का अर्जन संदेह पैदा करता है। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से पूछा कि क्या यह सब नियमों और सेवा शर्तों के अनुरूप हुआ। इस टिप्पणी ने प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता और निगरानी व्यवस्था पर भी प्रश्न खड़े किए हैं। क्या भविष्य में ऐसी तैनातियों और संपत्ति विवरण की निगरानी और सख्त होगी। यह प्रश्न अब सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया है।

वन सीमा स्तंभों के गायब होने से बढ़ी चिंता

इस याचिका में 7,375 वन सीमा स्तंभों के गायब होने को भी गंभीर चिंता का विषय बताया गया है। वन सीमा स्तंभों का उद्देश्य वन भूमि की स्पष्ट पहचान करना और अतिक्रमण को रोकना होता है। न्यायालय ने माना कि इतने बड़े पैमाने पर स्तंभों का गायब होना केवल लापरवाही नहीं, बल्कि संभावित व्यावसायिक शोषण की ओर इशारा करता है। मसूरी और रायपुर रेंज में बढ़ते रियल एस्टेट दबाव के बीच यह स्थिति पर्यावरण संतुलन के लिए खतरा बन सकती है।

याचिका की पृष्ठभूमि और आगे की प्रक्रिया

यह याचिका पर्यावरण कार्यकर्ता नरेश चौधरी द्वारा दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि सर्वे ऑफ इंडिया के माध्यम से मसूरी वन प्रभाग की सभी वन सीमाओं का वैज्ञानिक और जियो संदर्भित सर्वे कराया जाए। इसके साथ ही यह भी आग्रह किया गया है कि राजस्व अधिकारियों के पास मौजूद या उनके नियंत्रण में रहने वाली वन भूमि को एक निश्चित समय सीमा में वन विभाग को सौंपा जाए।

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वर्ष 2023 में मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के निर्देश पर हुए भौतिक सत्यापन में सामने आया था कि कुल 12,321 वन सीमा स्तंभों में से 7,375 गायब हैं। न्यायालय के समक्ष अब यह प्रश्न है कि इन स्तंभों के लुप्त होने से किसे लाभ हुआ और जिम्मेदारी किसकी है।

यह प्रकरण न केवल मसूरी क्षेत्र, बल्कि पूरे उत्तराखंड में वन संरक्षण, भूमि प्रबंधन और प्रशासनिक ईमानदारी से जुड़े मामलों के लिए एक मिसाल बन सकता है। पाठकों से आग्रह है कि इस समाचार से संबंधित अपनी राय और विचार नीचे दिए गए कमेन्ट बॉक्स में अवश्य साझा करें।

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