पाषाण देवी शक्तिपीठ: जहां घी, दूध का भोग करती हैं सिंदूर सजीं मां वैष्णवी
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 7 अप्रैल 2022 (Paashan Devi Shaktipeeth Thandi Road Nainital)। उत्तराखंड को देवभूमि इसीलिए कहा जाता है, कि यहां के कण-कण में देवों का वास है। बदरी, केदार सहित चार धामों और गंगा, यमुना की इसी धरती में शिव के धाम कैलाश का द्वार है, और यहीं शिवा यानी माता पार्वती का मायका हिमालय भी है। यहां के हर पुराने शहर और गांव देवी देवताऑ के प्रसंगों से जुड़े हैं और वहां आज भी श्रद्धालु साक्षात दर्शन कर दिव्य अनुभूतियां प्राप्त करते हैं। देखें वीडिओ :
प्रदेश के कुमाऊं मंडल के मुख्यालय मां नयना की नगरी का शास्त्रों में त्रिऋषि सरोवर के रूप में वृतांत मिलता है। यहीं नगर का प्राचीनतम बताया जाने वाला मां पाषाण देवी के एक विशाल शिला खंड पर नवदुर्गा स्वरूप में दर्शन होते हैं, जबकि मां के चरण नैनी झील में बताये जाते हैं।
कहते हैं कि कई बार मां का वाहन शेर, पहाड़ों पर नहीं पाया जाता है, लेकिन यहां कुछ श्रद्धालुओं को दिन में भी घूमता दिख जाता है, और बिना किसी को नुकसान पहुंचाये अचानक आंखों से ओझल भी हो जाता है। यहां मां का क्षृंगार महाबली हनुमान की तरह सिंदूर से होता है, और उन्हें वैष्णवी स्वरूप में दुग्ध उत्पादों व फल फूलों का भोग लगाया जाता है।
माना जाता है कि पिता दक्ष प्रजापति द्वारा पति का अनादर करने पर माता पार्वती अग्रि में कूदकर सती हो गई थीं। उनके दग्ध शरीर को देवाधिदेव महादेव आकाश मार्ग से कैलाश की ओर लेकर चले। इस बीच माता के दग्ध अंग जहां जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गये। मां के नयनों के गिरने के कारण और सरोवर यानी ताल होने से यह स्थान नयना ताल तथा कालांतर में अपभ्रंस होता हुआ नैनीताल कहलाया।
(Paashan Devi Shaktipeeth Thandi Road Nainital)
इसी मान्यता के अनुसार मां के नयनों के नीर से नैनी सरोवर बना और दक्षिण पूर्वी अयारपाटा पहाड़ी पर हृदय सहित अन्य शरीर यानी ‘पाषाण’ गिरा, तथा मां पाषाण देवी के प्राकृतिक मंदिर की स्थापना अनादि काल में ही हो गई थी। बताते हैं कि 1841 में नगर की स्थापना से पूर्व से ही इस स्थान पर नजदीकी गांवों के लोग गायों और पशुओं के चारण के लिए आते थे, और धार्मिक मान्यता के कारण शाम होने से पहले वापस भी लौट जाते थे।
पहाड़ों में खासकर गायों के नई संतति देने पर नये दूध से देवों का अभिषेक करने की परंपरा है। ऐसे देवता ‘बौधांण देवता’ कहे जाते हैं। लेकिन नैनीताल संभवतया अकेला ऐसा स्थान होगा जहां नया दूध एवं घी, दही, मक्खन व छांस जैसे दुग्ध उत्पाद बौधांण देवता के बजाय बौधांण देवी के रूप में पाषाण देवी को चढ़ाये जाते थे, और आज भी ग्रामीण पाषाण देवी की इसी रूप में पूजा करते हैं।
मान्यता है कि मां का चेहरा धुले पानी से समस्त त्वचा रोगों के साथ ही अतृप्त व बुरी आत्माऑ के प्रकोप भी समाप्त हो जाते हैं। बताते हैं कि नगर की स्थापना के बाद एक अंग्रेज अफसर इस स्थान से होता हुआ घोड़े पर निकला था, किंतु उसका घोड़ा यहां से लाख प्रयासों के बावजूद आगे नहीं बढ़ पाया। इस पर नाराज हो उसने मां की मूर्ति पर कालिख पोत दी थी। हालांकि बाद में उसे गलती का अहसास हुआ और स्थानीय महिलाऑ ने कालिख के स्थान पर मां का सिंदूर से क्षृंगार किया। इस प्रकार यहां देवी का सिंदूर से क्षृंगार किये जाने की अनूठी मान्यता है।
इस स्थान पर पाषाण देवी नवदुर्गा के रूप में पत्थर की शिला पर प्राकृतिक रूप से विराजमान हैं, जो स्पष्ट दिखाई देती हैं। मां के नवदुर्गा स्वरूप चेहरे के नीचे गले वाला भाग हालांकि अब ढक दिया गया है, लेकिन अभी हाल तक इसके नीचे गुफा बताई जाती है, जिसमें पानी चढ़ाने पर इस तरह ‘घट घट’ की आवाज आती थी, मानो मां पानी पी रही हों। कई बार झील का पानी मंदिर तक चढ़ आता था। इसके नीचे गुफा अब भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका अन्य द्वार हरिद्वार में खुलता है।
मंदिर की जिम्मेदारी शुरू से स्थानीय भट्ट परिवार के जिम्मे है। सर्वप्रथम चंद्रमणि भट्ट मंदिर के पुजारी थे, बाद में उनके पुत्र भैरव दत्त भट्ट और वर्तमान में उनके पौत्र जगदीश चंद्र भट्ट मंदिर के पुजारी हैं। इस मंदिर के सदस्य बारी बारी से मंदिर की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाते हैं। नीचे की गुफा में केवल हरीश चंद्र भट्ट ही जा पाते हैं। गुफा में नागों की उपस्थिति बताई जाती है, जो कई बार श्रद्धालुऑ द्वारा अशुद्धता बरतने पर बाहर निकल आते हैं। मां को दुग्ध उत्पाद व फल फूल ही चढ़ते हैं, इस प्रकार यहां मां नवदुर्गा वैष्णवीस्वरूप में पूजी जाती हैं।
नगर को सर्वप्रथम खोजने वाले कुमाऊं के पहले कमिश्नर जीडब्ल्यू ट्रेल द्वारा वर्णित और नगर को 1941 में बसाने वाले अंग्रेज व्यापारी पीटर बैरन की बहुचर्चित पुस्तक ‘वंडरिंग इन हिमालया’ में वर्णित नगर का प्राचीनतम मंदिर भी इसी प्राकृतिक मंदिर को बताया जाता है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी सहित न जाने कितने श्रद्धालु होंगे जो अपने प्रत्येक कार्य के लिए आशीर्वाद लेने यहां निरंतर आते रहते हैं। (Paashan Devi Shaktipeeth Thandi Road Nainital)
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