उत्तराखंड के कैलाश मार्ग पर मिला एक और ‘रूपकुंड’, गुफा में मिले हजारों मानव कंकाल
नवीन समाचार, पिथौरागढ़, 20 अक्टूबर 2024 ((Another Roopkund-Thousands of Human Skeletons)। पिथौरागढ़ के धारचूला में भारत-नेपाल सीमा के पास कैलाश-मानसरोवर, आदि कैलाश व ओम पर्वत मार्ग पर भारतीय गर्ब्यांग और नेपाल के छांगरू गांव के ऊपर एक खड़ी ढलान पर एक प्राचीन गुफा में हजारों मानव कंकाल मिलने से एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक खोज सामने आई है। इसकी खोज ने पुरातत्व विशेषज्ञों और इतिहासकारों को चौंका दिया है। इन अवशेषों को 8वीं शताब्दी से पहले का माना जा रहा है, और शोधकर्ता इनकी कार्बन डेटिंग और डीएनए जांच की तैयारी में जुटे हुए हैं।
1901 में हुआ था पहला उल्लेख (Another Roopkund-Thousands of Human Skeletons)
प्राप्त जानकारी के अनुसार यह गुफा एक संकरे द्वार के साथ ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। हालांकि इसका सबसे पहला उल्लेख 1901 में स्विस खोजकर्ताओं अर्नोल्ड हैम और ऑगस्ट गनसर द्वारा पश्चिमी तिब्बत और ब्रिटिश बॉर्डरलैंड के अध्ययन के बाद किये गये अपने निष्कर्षों का दस्तावेजीकरण में भी आता है। इस गुफा के बारे में स्थानीय लोगों के बीच अनेक दंतकथाएं भी प्रचलित हैं, जिनमें से एक कहानी इसे एक अभिशाप से जोड़ती है।
9वीं शताब्दी से पहले क्षेत्र में प्रचलित बॉन धर्म से जुड़े होने की संभावना
विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह गुफा बॉन धर्म से जुड़ी हो सकती है, जो तिब्बती परंपरा की एक प्राचीन धार्मिक पद्धति थी और 9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य के आगमन से पहले इस क्षेत्र में प्रचलित थी। बॉन धर्म में अंतिम संस्कार की विशेष प्रक्रियाओं का पालन किया जाता था, और इस गुफा के कंकाल संभवतः उसी प्रक्रिया का हिस्सा हो सकते हैं।
इतिहासकार प्रो. गिरिजा पांडे के अनुसार इस क्षेत्र में पुरातत्व की दृष्टि से कई अनसुलझे रहस्य छिपे हुए हैं। इससे पहले रूपकुंड और मलारी जैसे स्थानों पर भी ऐसे कंकाल मिले थे, जिनके रहस्य अब तक अनसुलझे हैं। इस नई खोज से इतिहास के उन अंधकारमय अध्यायों पर रोशनी पड़ने की उम्मीद है, जिनसे हजारों साल पहले इस क्षेत्र की संस्कृति और परंपराएं जुड़ी हुई थीं।
स्थानीय लोगों के अनुसार इसी क्षेत्र में भारतीय गांव बुदी के पास तीन किलोमीटर ऊपर भी एक अन्य गुफा है, जहां मानव कंकाल पाए गए थे, लेकिन उस पर अब तक कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है। अब इस नई खोज ने इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के लिए नए शोध के द्वार खोल दिए हैं, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर और अतीत की गहरी परतों को उजागर कर सकते हैं।
तिब्बतविज्ञानी एसएस पांगती के अनुसार इन क्षेत्रों में कई गुफाएं मौजूद हैं, हालांकि अभी तक किसी का भी वैज्ञानिक अध्ययन नहीं हुआ है। इन स्थलों से जुड़ी लोककथाएँ और मौखिक इतिहास लंबे समय से चली आ रही मानवीय उपस्थिति का संकेत देते हैं, जो स्थानीय परिदृश्य में जटिल रूप से बुनी गई है। (Another Roopkund-Thousands of Human Skeletons)
रूपकुंड का रहस्य भी जानें
नवीन समाचार, चमोली, 24 अक्टूबर 2024। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित रूपकुंड झील 5,029 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय की गोद में बसी है, अपनी अद्भुत रहस्यमयी कंकालों की वजह से प्रसिद्ध है। हर साल जब बर्फ पिघलती है, तो झील के किनारे सैकड़ों प्राचीन नरकंकाल दिखाई देते हैं। यह नजारा चौंकाने वाला होता है और यहीं से इस झील की रहस्यमयी कहानी शुरू होती है।
रूपकुंड झील का यह रहस्य वर्षों से चर्चा का विषय बना हुआ है कि यहां इतने सारे कंकाल कहां से आए और किस कारण से यह जगह नरकंकालों से भरी हुई है। हाल के शोध और वैज्ञानिकों के अध्ययनों ने इस रहस्य से कुछ हद तक पर्दा उठाया है, परंतु यह अभी भी पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है।
रूपकुंड झील का परिचय
यह झील उत्तराखंड के चमोली जिले के सीमांत देवाल विकासखंड में स्थित है। नंदा घुंघटी और त्रिशूल जैसे विशाल हिम शिखरों की छांव में यह अंडाकार आकृति की झील है, जिसकी लंबाई 12 मीटर और चौड़ाई 10 मीटर है। रूपकुंड झील का सबसे बड़ा आकर्षण इसके चारों ओर पाए जाने वाले प्राचीन नरकंकाल, अस्थियां, कपड़े, गहने, बर्तन, और अन्य उपकरण हैं। यह झील 6 माह तक बर्फ से ढकी रहती है, जिससे इसे रहस्यमयी झील का नाम दिया गया है। इस झील से रूपगंगा की धारा भी फूटती है।
झील का रहस्य और वैज्ञानिक शोध
रूपकुंड झील के किनारे पाए गए कंकालों का सबसे पहले अनावरण वर्ष 1942 में हुआ, जब हरिकृष्ण मधवाल नामक वन रेंजर ने दुर्लभ पुष्पों की खोज के दौरान यहां नरकंकालों का पता लगाया। तब से लेकर अब तक अनेक वैज्ञानिक दलों ने इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश की है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां पाए गए कंकाल 9वीं सदी के उन आदिवासियों के हैं, जो ओलों की आंधी में मारे गए थे। लगभग 200 कंकाल झील के पास पाए गए, जिनमें कई महिलाओं और छोटे कद के व्यक्तियों के अवशेष भी शामिल हैं। यह भी बताया गया है कि उनकी मौत किसी हथियार से नहीं, बल्कि ओलों के बड़े-बड़े टुकड़ों से सिर में चोट लगने से हुई थी।
स्थानीय कथाएं : स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार यह कंकाल जसधावल नामक एक राजा और उसके सैनिकों के हैं। राजा अपने लाव-लश्कर के साथ नंदा देवी यात्रा पर निकला था, और स्थानीय पंडितों की चेतावनी को अनसुना करते हुए देवी की नाराजगी का सामना करना पड़ा। माना जाता है कि देवी के क्रोध के कारण राजा और उसके साथियों की मृत्यु हो गई। झील के पास पाई गई चूड़ियों और गहनों से यह भी संकेत मिलता है कि इस समूह में महिलाएं भी थीं।
शोधकर्ताओं के निष्कर्ष :हालांकि वैज्ञानिकों ने भी यहां तिब्बती याक और अन्य सामानों के अवशेष पाए हैं, जिनसे पता चलता है कि यहां व्यापारी या तीर्थयात्री भी हो सकते थे। शोधकर्ताओं ने यहां तिब्बती लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ऊन के जूते, लकड़ी के बर्तन, और याक के अवशेष भी देखे हैं। इस रहस्यमयी झील को लेकर कई तरह की कहानियां और शोध किए गए हैं, लेकिन अभी भी यह रहस्य पूरी तरह से नहीं सुलझ पाया है। झील और इसके कंकालों का अनावरण कई नई जानकारियों को उजागर करता है, लेकिन इनके पीछे की असली कहानी अभी भी भविष्य के गर्भ में छुपी हुई है। (Another Roopkund-Thousands of Human Skeletons, Uttarakhand News, Pithauragarh News, Rupkund, History, Skeltons Found)
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