कैसे स्थापित हुआ ‘सिलीकॉन वैली’ के लिये रास्ता बनाने वाला बाबा नीब करौरी महाराज जी का कैंची धाम, पूरी-सच्ची कहानी

डॉ. नवीन जोशी @ नैनीताल, 14 जून 2025 (How Baba Neeb Karoris Kainchi Dham Established)। देवभूमि उत्तराखंड के नैनीताल जनपद स्थित बाबा नीब करौरी महाराज जी का कैंची धाम पिछले कुछ वर्षों में देश भर में अत्यधिक विख्यात है। कहते हैं कि इसी स्थान से एप्पल, गूगल व फेसबुक के विचार निकले। एप्पल के स्टीव जॉब्स अप्रैल 1974 में, मार्क जुकरबर्ग 2007 में यहां आये जबकि गूगल से जुड़े मानवतावादी लैरी ब्रिलिएंट गूगल के संस्थापक लैरी पेज को यहां लाये।
इस लिये कहा जाता है दुनिया की ‘सिलीकॉन वैली’ के लिये रास्ता कैंची धाम से ही निकला। इसलिए देश ही नहीं दुनिया भर में प्रसिद्ध कैंची धाम के बारे में हर कोई जानना चाहता है। कैंची धाम की ऐसी क्या महिमा है, इस आलेख में हम इस विषय पर बिल्कुल सच्ची कहानी प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं।
ऐसे शुरू होती है कहानी

महाराज जी का नैनीताल में पदार्पण 1935-38 में ही हो गया था और वह लगातार यहां आने लगे थे। इसी दौरान 1942 में मंदिर निर्माण के प्रयासों के दौरान नैनीताल जनपद मुख्यालय के निकटवर्ती भूमियाधार में खूपी गाँव के निकट ‘खुपिया डाँठ’ के पास वह पूर्णानंद तिवारी नाम के व्यक्ति से मिले। हालांकि अब तक प्रचलित कहानी के अनुसार पूर्णानंद तिवारी से बाबा जी की मुलाकात कैंची धाम में हुई थी। लेकिन यह सच नहीं है। बहरहाल, कैंची धाम से लगभग 13 किलोमीटर पहले भूमियाधार नाम के स्थान पर, जहां भी बाबा नीब करौरी का आश्रम स्थित है, यहीं 1942 में सड़क के किनारे भूतों की उपस्थिति के लिए कुख्यात ‘खुपिया डाँठ’ पर देर शाम के समय कैंची निवासी एक गरीब ग्रामीण पूर्णानंद तिवारी की भेंट बाबा से हुई थी।
बाबा ने मुकदमों पर भविष्यवाणी कर वादा किया था
तब पूर्णानंद तिवारी के घर व घराट (पनचक्की) के दो मुकदमे अल्मोड़ा व नैनीताल के न्यायालय में चल रहे थे। तब बाबा ने पूर्णानंद से कहा था कि घर का मुकदमा तो अगले दिन ही उसके पक्ष में आ जाएगा, जबकि चक्की का मुकदमा लंबा खिंचेगा और इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक पहुंचेगा और 20 वर्ष के बाद इसका फैसला भी पूर्णानंद के पक्ष में आएगा। तब वह पुनः पूर्णानंद से मिलने आएंगे।
सच साबित हुई भविष्यवाणी, लेकिन पूर्णानन्द भूल गए
बाबा अंतर्यामी थे। उनकी बात हमेशा की तरह सच साबित हुई और इस मुलाकात के अगले दिन ही पूर्णानंद अल्मोड़ा के न्यायालय में चल रहे घर के मुकदमे को जीत गये। दूसरा चक्की का मामला भी बाबा जी के कहे वचनों के अनुसार नैनीताल के न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय तक पहुंचा और 20 वर्ष के बाद यानी अप्रैल 1962 में इसका फैसला पूर्णानंद के पक्ष में आया। यानी बाबा की कही हुई बात शत-प्रतिशत सच हुई। लेकिन अपने 12 बच्चों के साथ दुनियादारी में फंसे पूर्णानंद एक तरह से बाबा जी को भूल गये।
बाबा ने अपना वादा निभाया
लेकिन बाबा अपना वादा नहीं भूले और अपने वादे के अनुसार मई 1962 में भवाली-अल्मोड़ा मार्ग पर निगलाट ग्राम सभा के अंतर्गत विरले ही मिलने वाली उत्तर वाहिनी शिप्रा नदी के किनारे कैंची जैसे आकार के ‘हेयर पिन बैंड’ पर बसे होने के कारण कैंची नाम के तब के एक छोटे से अनाम से गांव में एक दिन बाबा जी अंबेसडर कार से पहुंचे और सड़क के किनारे मवेशियों व राहगीरों द्वारा प्रयुक्त होने वाले पूर्णानंद के पुराने खंडहर नुमा घर में नैनीताल निवासी चालक ‘उपेन्दा’ के साथ बिना पूछे घुस गये।
बच्चों से पिता को बुलाकर लाने के लिये कहा
उस समय पूर्णानंद के 7 वर्षीय पुत्र अपनी बड़ी बहन के साथ पास में मवेशियों को चरा रहे थे। बच्चों ने अपने घर में एक कंबल ओढ़े बाबा नुमा व्यक्ति को यूं घुसते देखा तो वह भी कौतूहल से वहां पहुंच गये। वहां बाबा उन्हें चेहरे पर चमकते तेज के साथ गोबर इत्यादि के कारण मक्खियों व गंदगी के बीच पड़ी एक पटखाट पर लेटे हुए नजर आये। उपेन्दा उन्हें झाड़न से हवा लगा रहे थे। बच्चों ने उन्हें प्रणाम किया तो बाबा ने उनसे सीधे उनके पिता पूर्णानंद का नाम लेकर उन्हें बुलाकर लाने के लिये कहा। कहा कि वह पूर्णानंद से ही मिलने के लिये यहां आये हैं।
ऐसे कई बाबा आते रहते हैं, कह दो स्वास्थ्य ठीक नहीं
इस पर बच्चे दौड़ कर घर पहुंचे तो पूर्णानंद उस समय रसोई में धोती पहनकर खाना खाने बैठे ही थे और एक-दो कौर ही खा पाये थे। बच्चों ने उन्हें बताया तो पूर्णानंद ने कहा अभी खाने बैठे ही हैं। ऐसे कई बाबा आते रहते हैं। जाओ कह दो- ‘पिता का बुखार से स्वास्थ्य ठीक नहीं है। सोने का बहाना बना देना। बताना मत कि खाना खा रहे हैं।’
पूर्णानंद से मिले बिना नहीं जाऊंगा
बच्चे वापस लौटे और पिता के बुखार से बीमार होने की बात बताते हुए कहा कि वह नहीं आ सकते। ऐसा सुनते ही बाबा बोले, ‘पूर्णानंद झूठ बोलता है’। उपेन्दा से बोले, ‘पूर्णानंद को कंधे पर लेकर आओ, उससे मिले बिना नहीं जाऊंगा।’ उपेन्दा बच्चों से पूछकर उनके घर की ओर चले तो बच्चे भी घबरा गये और नजदीक के रास्ते से दौड़कर उपेन्दा से पहले घर पहुंचकर पिता को सारी बात बता दी। यह भी पढ़ें : जानें बाबा नीब करौरी के गुरु, स्वामी विवेकानंद और एनडी तिवारी पर कृपा बरसाने वाले सोमवारी बाबा व उनके चमत्कारों के बारे में… अंग्रेजों को भी सिखाया था सबक..
पूर्णानंद नहीं पहचान पाए
इस पर बाबा की ऐसी बातें जानकर पूर्णानंद परिवार जनों के साथ आधा खाने खाये ही जैसे थे वैसे ही बाबा के पास दौड़े आये। वहां पहुंचते ही बाबा ने पूर्णानंद से पूछा- ‘पहचाना ?’। लेकिन पूर्णानंद उन्हें नहीं पहचान पाए। तब बाबा ने पूर्णानंद के कंधे पर हाथ फेरकर कहा, ‘अब क्यों पहचानेगा, घर का और चक्की का मुकदमा भी तू जीत गया।’ फिर 20 वर्ष पुरानी भूमियाधार में हुई मुलाकात का पूरा वृतांत बताने पर जब पूर्णानंद को समझ आया तो उन्होंने अपने कान पकड़ लिये और क्षमा याचना करते हुए गलती मानी।
कैंची गांव में पूर्व में कमला गिरि बाबा और सोमवारी बाबा ने भी तपस्या की थी
इसके तत्काल बाद बाबा पूर्णानंद से बोले, मुझे तेरे कैंची गांव में मंदिर बनाना है। चल जगह बता। कहा कि पूर्णानंद जो जगह बताएंगे, वहीं मंदिर बनाएंगे। पूर्णानंद ने शिप्रा नदी के पार समतल जगह बतायी। बताया कि वहां पूर्व में कमला गिरि बाबा और सोमवारी बाबा ने भी तपस्या की थी। बाबा उस दौरान करीब दो-ढाई घंटे वहां रुके और नदी पार कर एक पत्थर के पास पहुंचकर बोले- ‘जगह तो अच्छी है। कल 10 बजे आएंगे। तब आगे देखेंगे।’ तभी पूर्णानंद ने बताया कि यह जमीन सरकारी-जंगलात की है। बाबा बोले, ‘तू जंगलात की फिकर न कर।’
सोमवारी बाबा की धूनी पर स्थापित हुआ हनुमान जी का मंदिर
बाबा अगले दिन 10 बजे एक अंबेसडर कार में अन्य दो गाड़ियों में जिले के वन विभाग के बड़े अधिकारियों को लेकर पहुंच गये। इनमें नैनीताल में वन विभाग के सबसे बड़े अधिकारी के रूप में पंजाबी मूल के सोनी साहब भी शामिल थे। सबसे पहले उन्होंने पूर्णानंद को बुलाया और नदी के पार पहुंचे। पूर्णानंद से झाड़ियां साफ करवाईं।
जहां फूल गिरा, वहाँ स्थापित किया हनुमान जी का मंदिर
उस समय उनके हाथ में एक फूल था। उन्होंने एक पत्थर पर चढ़कर वह फूल एक ओर फेंक दिया। जहां फूल गिरा, पूर्णानंद से उस स्थान पर पूर्व संत की धूनी यानी हवन कुंड की राख निकलने तक गड्ढा खोदने को कहा। लगभग डेढ़-दो फिट का गड्ढा खोदने पर राख, एक चिपटा और एक त्रिशूल निकल आये। इस स्थान के आगे ही बाद में हनुमान जी का मंदिर स्थापित किया गया।
स्थायी तौर पर मंदिर के लिये भूमि नहीं
बहरहाल, धूनी निकल आने पर बाबा जी ने वनाधिकारी सोनी साहब को बताया कि उन्हें यहां पर मंदिर बनाना है, उन्हें यह भूमि चाहिए। वनाधिकारी ने कहा कि वह यहां बाबा जी को अस्थायी झोपड़ी बनाने की इजाजत तो दे सकते हैं, लेकिन मंत्री के आदेश के बिना वह स्थायी तौर पर मंदिर के लिये भूमि नहीं दे सकते। बाबा जी ने पूछा मंत्री कौन है। उस समय 1962 में चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के वन मंत्री थे। चरण सिंह का नाम सुनते ही बाबा बोले, ‘अभी चलते हैं। चरण सिंह से बात करेंगे।’
चौधरी चरण सिंह को साथ लेकर लौटे
इसके तीसरे दिन ही बाबा जी और पीछे-पीछे चौधरी चरण सिंह अपनी गाड़ियों से कैंची पहुंच गये। बाबा जी ने पुनः सबसे पहले पूर्णानंद को बुलाया और चरण सिंह को भी नदी के पार धूनी के पास ले गये और कहा- ‘वहां मंदिर बनाना चाहते हैं, कैसा रहेगा ?’ इस पर चरण सिंह ने सीधे ही हामी भर दी। पूछा- ‘कितना बड़ा मंदिर बनाना चाहते हैं ? इसके लिये कितनी भूमि चाहिए ?’
बाबा ने बताया तो चरण सिंह ने अधिकारियों को बाबा के बताये से कहीं अधिक, पहाड़ के नीचे की पूरी समतल भूमि नापने और इसका पट्टा एक रुपये वार्षिक शुल्क राजकोष में जमा करने के प्राविधान के साथ बाबा जी के नाम पर दाननामे का पट्टा तैयार करने के आदेश दिये और बाबा जी से कहा कि पट्टा तैयार होने में दो-तीन दिन का समय लगेगा। तब तक भी वह चाहें तो मंदिर का निर्माण शुरू कर सकते हैं। इस तरह कैंची नाम के छोटे से गाँव में कैंची धाम का निर्माण प्रारंभ हुआ।
चरण सिंह को दिया प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद
तब बाबा जी ने चरण सिंह से कहा, ‘चरण सिंह तुम बहुत बड़े मंत्री हो, बड़ी कुर्सी पर बैठे हो, बहुत कड़क बोलते हैं, कड़क मत बोला करो। एक दिन तुम देश के प्रधानमंत्री बनोगे।’ बताया जाता है कि बाबा की कृपा से ही बने संयोगों से चरण सिंह बाद में 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक देश के प्रधानमंत्री बने।
सिद्धि मां से बाबा जी का जुड़ाव
बताया जाता है 1950 के दशक में जब नैनीताल में बाबा जी के हनुमानगढ़ी धाम का निर्माण चल रहा था, एक दिन बाबा टहलते हुए नैनीताल आये और ठंडी सड़क पर स्थित पाषाण देवी मंदिर के पास एक शिला पर बैठ गये और अपने साथ मौजूद भक्तों से ठीक सामने देखकर बोले-उस सफेद घर में कात्यायनी मायी रहती हैं। बाद में सिद्धि मां अपनी मित्री जीवंती मां के साथ जो कि प्रधानाचार्या थीं हनुमानगढ़ी में बाबा जी से मिलीं और गृहस्थ त्याग कर बाबा जी की सेवा में अपना जीवन समर्पण कर दिया।
कैंची धाम में स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग और अन्य की यात्रा: समय और संदर्भ (How Baba Neeb Karoris Kainchi Dham Established)
उत्तराखंड के नैनीताल जनपद में स्थित कैंची धाम, बाबा नीम करौली (नीब करौरी) का आश्रम, आध्यात्मिक खोज में रुचि रखने वाले विश्व प्रसिद्ध व्यक्तियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल रहा है। स्टीव जॉब्स, मार्क जुकरबर्ग, लैरी ब्रिलिएंट और लैरी पेज जैसे प्रौद्योगिकी क्षेत्र के दिग्गजों ने इस आश्रम का दौरा किया। पुलिस व संबंधितों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, नीम करौली बाबा, जो हनुमान के भक्त और रहस्यमयी संत थे, के इस आश्रम ने कई लोगों के जीवन को प्रभावित किया।
स्टीव जॉब्स ने 1974 में अपने मित्र डैन कोटके के साथ, आध्यात्मिक शांति की खोज में कैंची धाम की यात्रा की। उस समय वह 19 वर्ष के थे और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने से पहले जीवन के गहरे प्रश्नों के उत्तर तलाश रहे थे। दुर्भाग्यवश, उनकी यात्रा के समय बाबा नीम करौली का 11 सितंबर 1973 को देहांत हो चुका था। जॉब्स ने आश्रम में समय बिताया और बाबा के शिष्यों से मुलाकात की, जिसने उनकी सोच पर गहरा प्रभाव डाला। नैनीताल के हरदा बाबा-अमेरिका के बाबा हरिदास
उन्होंने बाद में मार्क जुकरबर्ग को भी इस स्थल की यात्रा की सलाह दी। मार्क जुकरबर्ग ने 2008 में, स्टीव जॉब्स की सलाह पर, कैंची धाम का दौरा किया। उस समय फेसबुक अपने प्रारंभिक चरण में था और जुकरबर्ग कंपनी के भविष्य को लेकर दुविधा में थे। आश्रम में बिताए समय ने उन्हें फेसबुक के मिशन को विश्व को जोड़ने की दृष्टि से पुनर्परिभाषित करने में मदद की। जुकरबर्ग ने एक दिन के लिए आश्रम में रहने की योजना बनायी थी, किंतु खराब मौसम के कारण वह दो दिन तक रुके। बाबा के शिष्य विनोद जोशी ने बताया कि उस समय जुकरबर्ग की पहचान व्यापक नहीं थी, पर उनकी यात्रा ने उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट किया।
लैरी ब्रिलिएंट, जो गूगल के परोपकारी विभाग गूगल.ऑर्ग के पूर्व निदेशक रहे, ने 1960 और 1970 के दशक में कैंची धाम में तीन वर्ष बिताए। बाबा नीम करौली के प्रत्यक्ष शिष्य रहे ब्रिलिएंट ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के चेचक उन्मूलन अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने गूगल के सह-संस्थापक लैरी पेज और ईबे के सह-संस्थापक जेफ स्कॉल को कैंची धाम की यात्रा पर लाया। लैरी पेज की कैंची धाम यात्रा की सटीक तारीख उपलब्ध नहीं है, किंतु विभिन्न स्रोतों के अनुसार, यह यात्रा 2000 के दशक में लैरी ब्रिलिएंट के साथ हुई। ब्रिलिएंट ने बताया कि बाबा नीम करौली की शिक्षाओं ने उनकी मानवतावादी दृष्टि को आकार दिया, जिसे उन्होंने गूगल के परोपकारी कार्यों में लागू किया।
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डॉ.नवीन जोशी, पिछले 20 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय, ‘कुमाऊँ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पीएचडी की डिग्री प्राप्त पहले और वर्ष 2015 से उत्तराखंड सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं। 15 लाख से अधिक नए उपयोक्ताओं के द्वारा 150 मिलियन यानी 1.5 करोड़ से अधिक बार पढी गई आपकी अपनी पसंदीदा व भरोसेमंद समाचार वेबसाइट ‘नवीन समाचार’ के संपादक हैं, साथ ही राष्ट्रीय सहारा, हिन्दुस्थान समाचार आदि समाचार पत्र एवं समाचार एजेंसियों से भी जुड़े हैं। देश के पत्रकारों के सबसे बड़े संगठन ‘नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) उत्तराखंड’ के उत्तराखंड प्रदेश के प्रदेश महामंत्री भी हैं और उत्तराखंड के मान्यता प्राप्त राज्य आंदोलनकारी भी हैं।











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