नये वर्ष में ठंड कम, बारिश अधिक कराएगा अल नीनो !
- पिछले वर्षों में अतिवृष्टि के रूप में अपना प्रभाव दिखा चुके अल-नीनो के बाबत यूजीसी के दीर्घकालीन मौसम विशेषज्ञ डा. बीएस कोटलिया का दावा
- अल नीनो के प्रभाव में सर्दियों में आईटीसीजेड को पर्वतीय राज्यों तक नहीं धकेल पाएगा दक्षिण-पश्चिमी मानसून
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तर भारत में बारिश को तरस रही सर्दियों का क्रम आने वाले नये वर्ष में भी बना रह सकता है। अलबत्ता नए वर्ष 2018 में मानसूनी वर्षा अच्छी मात्रा में हो सकती है। यह दावा यूजीसी के दीर्घकालीन मौसम विशेषज्ञ डा. बहादुर सिंह कोटलिया ने वैश्विक मौसम को प्रभावित करने वाले ‘भाई-बहन’ अल नीनो व ला नीना के अध्ययन के जरिए किया है।
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मालूम हो कि 1960 में वैज्ञानिकों द्वारा पहचानी गयी पेरू के प्रशांत महासागर के तटों की गर्म हवाओं को अल नीनो (स्थानीय भाषा में छोटा लड़का) व सर्द हवाओं को ला नीना (स्थानीय भाषा में छोटा लड़की) तथा आपस में सांकेतिक तौर पर भाई-बहन भी कहा जाता है। किसी भी अन्य सागर-महासागर के तटों की तरह गर्म हवाएं-अल नीनो जब ऊपर उठती हैं तो उनकी जगह को सर्द हवाएं भर लेती हैं। इसी पर पृथ्वी पर ठंडी व गर्म हवाओं और अधिक तथा कम वर्षा के साथ वर्ष का मौसम निर्भर करता है। हालांकि 1923 में भारतीय मौसम विभाग के अध्यक्ष सर गिलवर्ट वाकर ने पहली बार बताया था कि जब प्रशांत महासागर में उच्च दाब की स्थिति होती है, तब अफ्रीका से लेकर आस्ट्रेलिया तक हिंद महासागर में इसक उलट निम्न दाब की स्थिति पायी जाती है। हाल के वर्षांे में 1972, 1976, 1982, 1987, 1991, 1994 व 1997 के वर्षों में व्यापक तौर पर अल नीनो का व्यापक तौर पर प्रभाव कम वर्षा के रूप में देखा गया। मौसम वैज्ञानिकों का दावा है कि प्रशांत महासागर की ऐसी ही गर्म व सर्द हवाएं पूरी दुनिया के मौसम को अनियमित तरीके से प्रभावित करती हैं। दो से सात वर्ष के चक्रीय अंतराल में अल नीनो की स्थितियों के चलते समुद्र सतह का औसत तापमान पांच डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है।
इधर डा. कोटलिया का दावा है कि नए वर्ष में ला नीना की गर्म हवाओं के प्रभाव में उत्तर भारत में पश्चिमी विक्षोभ का दबाव कम बन पाएगा, फलस्वरूप कम शीतकालीन वर्षा के साथ ठंड सामान्य से कम हो सकती है। अलबत्ता 2018 में मानसून अच्छा रहेगा।
मानसून व पश्चिमी विक्षोभ की दोहरी नेमत के कारण सदानीरा हैं उत्तराखंड की नदियां
नैनीताल। सामान्यतया हर क्षेत्र में बारिश का एक अपना अलग विज्ञान होता है। दक्षिण भारत में केवल दक्षिण-पश्चिमी मानसून जिसे केवल मानसून भी कहते हैं, की इकलौती वजह से ही गर्मियों व बरसातों में बारिश होती है। लेकिन इसके इतर उत्तराखंड व हिमांचल आदि पर्वतीय राज्य इस मामले में भाग्यशाली हैं कि यहां केवल मानसून ही नहीं वरन मेडिटेरियन सागर और अटलांटिक महासागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभ की वजह से भी अक्टूबर से मई तक बारिश मिलती है। इस प्रकार यहां वर्ष भर बारिश की संभावना बनी रहती है। यहां हिमाच्छादित हिमालय के ऊंचे पहाड़ हैं, जो भी बादलों के टकराने से बारिश के कारक बनते हैं। इस तरह ऊंचे हिमालय, उनके ग्लेशियरों और दो-दो बारिश के प्रबंधों की वजह से ही यहां की नदियां सदानीरा हैं। इन नदियों के साथ ही यहां मौजूद ताल जैसी जल राशियां भी स्थानीय स्तर पर बारिश पैदा करती हैं।